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_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 089)*_
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_*🕌नमाज़ पढ़ने का तरीका 🕌*_
_*📚हदीस न 4 . : - इमाम अहमद अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि हुजूर ने हम को नमाज़ पढ़ाई और पिछली सफ में एक शख्स था जिसने नमाज़ में कुछ कमी की । जब सलाम फेरा तो उसे पुकारा फलाँ ! तू अल्लाह से नहीं डरता क्या तू नहीं देखता कि कैसे नमाज़ पढ़ता है । तुम यह गुमान करते होगे कि जो तुम करते हो उसमें से कुछ मुझ पर पोशीदा ( छुपा हुआ ) रह जाता होगा । खुदा की कसम मैं पीछे से वैसा ही देखता हूँ जैसा सामने से ।*_
_*📚हदीस न .5 व 6 : - अबू दाऊद ने रिवायत की कि उबई इब्ने कअ्ब रदियल्लाहु तआला अन्हु ने दो मकाम पर रसुलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का सकता फरमाना यानी ठहरना याद किया । एक उस वक्त जब तकबीरे तहरीमा कहते दूसरा {غَيْرِ الْمَغْضُوْبِ عَلَيْهِمْ وَ لَا الضَّآلِّيْنَؒ} जब पढ़ कर फारिग होते उबई इब्ने कअ्ब रदियल्लाहु तआला अन्हु ने इसकी तस्दीक की यानी इसको सच बताया । तिर्मिज़ी व इब्ने माजा व दारमी ने भी इसके मिस्ल रिवायत की इस हदीस से ' आमीन' का आहिस्ता कहना साबित होता है ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 53/54*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 090)*_
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_*🕌नमाज़ पढ़ने का तरीका 🕌*_
_*📚हदीस न .7 : - इमाम बुखारी अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि हुजूर अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जब इमाम { غَيْرِ الْمَغْضُوْبِ عَلَيْهِمْ وَ لَا الضَّآلِّيْنَؒ } कहे तो आमीन कहो कि जिसका कौल मलाइका के कौल के मुवाफिक हो उस के अगले गुनाह बख़्श दिये जायेंगे ।*_
_*📚हदीस न . 8 : सही मुस्लिम में अबू मूसा अशअरी रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी कि इरशाद फरमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जब तुम नमाज़ पढ़ो तो सफें सीधी कर लो फिर तुम में से जो कोई इमामत करे वह जब तकबीर कहे तुम भी तकबीर कहो और जब { غَيْرِ الْمَغْضُوْبِ عَلَيْهِمْ وَ لَا الضَّآلِّيْنَؒ } कहे तो तुम आमीन कहो । अल्लाह तआला तुम्हारी दुआ कबूल फ़रमायेगा और जब रूकू करो कि इमाम तुम से पहले रूकू करेगा और तुम से पहले उठेगा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया तो यह उसका बदला हो गया और जब वह “ समिअल्लाहु लिमन हमिदाह " कहे तुम " अल्लाहुम्मा व लकल हम्द " कहो अल्लाह तुम्हारी सुनेगा ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 54*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 091)*_
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_*🕌नमाज़ पढ़ने का तरीका 🕌*_
_*📚हदीस न .9,10 : अबू हुरैरा व कतादा रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से इसी सही मुस्लिम में है जब इमाम किरात करे तो तुम चुप रहो । इस हदीस और इसके जो पहले हदीस है दोनों से साबित होता है कि आमीन आहिस्ता कही जाये कि अगर ज़ोर से कहना हो तो इमाम के आमीन कहने का पता और मौका बताने की क्या हाजत होती कि जब वह { غَيْرِ الْمَغْضُوْبِ عَلَيْهِمْ وَ لَا الضَّآلِّيْنَؒ } कहे तो आमीन कहो और इस से बहुत सरीह ( साफ ) तिर्मिज़ी की रिवायात शोबा से है वह अलकमा से वह अबी वाइल से रिवायत करते हैं ' आमीन कहो और उस में आवाज़ पस्त ( धीमी ) कि नीज़ अबू हुरैरा व कतादा रदियल्लााहु तआला अन्हुमा की रिवायत से यह भी साबित होता है कि इमाम के पीछे मुकतदी किरत न करे बल्कि चुप रहे और यही कुर्आन अज़ीम का भी इरशाद है कि :*_
*_[وَ اِذَا قُرِئَ الْقُرْاٰنُ فَاسْتَمِعُوْا لَهٗ وَ اَنْصِتُوْا لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُوْنَ۴]_*
_*📝तर्जमा : “ जब कुआन पढ़ा जाये तो सुनो और चुप रहो इस उम्मीद पर कि रहम किए जाओ ' ।*_
_*📚हदीस न . 11 व 12 : - अबू दाऊद व नसई इब्ने माजा अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि इमाम तो इस लिये बनाया गया है कि उसकी इक़्तिदा की जाये जब तकबीर कहे तुम भी तकबीर कहो और जब वह किरअत करे तुम चुप रहो ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 54*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 092)*_
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_*🕌नमाज़ पढ़ने का तरीका 🕌*_
_*📚हदीस न . 13 : - अबू दाऊद व तिर्मिज़ी अलकमा से रावी कि अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रदियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं क्या तुम्हें वह नमाज़ पढ़ाऊँ जो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की नमाज थी । फिर नमाज़ पढ़ी और हाथ न उठाये मगर पहली बार यानी तकबीरे तहरीमा के वक़्त और एक रिवायत में यूँ है कि । पहली मर्तबा उठाते फिर नहीं । तिर्मिज़ी ने कहा यह हदीस हसन है ।*_
_*📚हदीस न .14 दार कुतनी व इब्ने अदी की रिवायत उन्हीं से है कि अब्दुल्ला इब्ने मसऊद रदियल्लाहु तआला फरमाते हैं मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम और अबू बक्र व उमर रदियल्लाहु तआला अन्हुमा के साथ नमाज़ पढ़ी तो इन हज़रात ने हाथ न उठाये मगर नमाज़ शुरू करते वक़्त ।*_
_*📚हदीस न .15 : मुस्लिम व अहमद जाबिर इब्ने समुरह रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि फरमाते हैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम यह क्या बात है कि तुम्हें हाथ उठाते देखता हूँ जैसे चंचल घोड़े की दुमें , नमाज़ में सुकून के साथ रहो ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 54/55*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 093)*_
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_*🕌नमाज़ पढ़ने का तरीका 🕌*_
_*📚हदीस न .16 : - अबू दाऊद व इमाम अहमद ने अली रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि सुन्नत से है कि नमाज़ में हाथ पर हाथ नाफ़ के नीचे रखे जायें ।*_
_*इन अहकाम के मुतअल्लिक कसरत के साथ और अहादीस व आसार मौजूद हैं । तबर्रूकन चन्द हदीसें ज़िक्र की कि यह मकसूद नहीं कि अफआले नमाज़ अहादीस से साबित किये जायें कि हम न इस के अहल न इस की ज़रूरत कि अइम्मए किराम ने यह मरहले तय फरमा दिये हमें तो उनके इरशाद काफी हैं कि वह अरकाने शरीअ़्त हैं वह वही फरमाते हैं जो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के इरशाद से माखूज़ है ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 55*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 094)*_
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_*🕌नमाज़ पढ़ने का तरीका 🕌*_
_*पार्ट 1️⃣*_
_*🕌नमाज़ पढ़ने का तरीका : यह है कि बावुजू किब्ला - रू दोनों पाँव के पंजो में चार उंगल का फासला करके खड़ा हो और दोनों हाथ कान तक ले जाये कि अंगूठे कान की लौ से छू जायें और उंगलियाँ न मिली हुई रखे न खूब खोले हुये बल्कि अपनी हालत पर हों और हथेलियाँ किब्ले को हों । नियत कर के अल्लाहु अकबर कहता हुआ हाथ नीचे लाये और नाफ के नीचे बाँध ले यूँ कि दाहिनी हथेली की गद्दी बाई कलाई के सिरे पर हो और बीच की तीन उँगलियाँ बाई कलाई की पुश्त पर और अँगुठा और छंगुलिया कलाई के अगल बगल और सना पढ़े यानी :*_
*سُبْحَانَکَ اللّٰھُمَّ وَ بِحَمْدِکَ وَ تَبَارَکَ اسْمُکَ وَتَعَالٰی جَدُّکَ وَلَا اِلٰـہَ غَیْرُکَ ۔*
_*सुब्हा न कल्लाहुम्मा व बिहम्मद क व तबार कस्मुका व तआला जद्दु का व ला इलाह गैरूका*_
_*तर्जमा " पाक है तू ऐ अल्लाह और मैं तेरी हम्द करता हूँ तेरा नाम बरकत वाला है और तेरी अज़मत बलन्द है और तेरे सिवा कोई माबूद नहीं ।*_
*اَعُوْذُ بِاللّٰہِ مِنَ الشَّیْطٰنِ الرَّجِیْمِ*
_*( अऊजुबिल्लाहिमिनश्शैता निर्रजीम ) फिर तस्मीया यानी ,*_
*بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ*
*_( बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम ) कहे फिर अल्हम्द पढ़े ।_*
_*बाकि अगले पोस्ट में*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 55*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 095)*_
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_*🕌नमाज़ पढ़ने का तरीका 🕌*_
_*पार्ट 2️⃣*_
_*" और ख़त्म पर आमीन आहिस्ता कहे उसके बाद कोई सूरत या तीन आयतें पढ़े या एक आयत कि तीन के बराबर हो अब अल्लाहु अकबर कहता हुआ रूकू में जाये और घुटनों को हाथ से पकड़े इस तरह कि हथेलियाँ घुटने पर हों और उंगलियाँ खूब फैली हों न यूँ कि सब उंगलियाँ एक तरफ़ फ़क़त अँगूठा और पीठ बिछी हो और सर पीठ के बराबर हो ऊँचा नीचा न हो और कम से कम तीन बार ( सुब्हान रब्बियल अज़ीम ) سُبْحَانَ رَبِّیَ الْعَظِیْمِ कहे फिर سَمِعَ اللّٰہُ لِمَنْ حَمِدَہ ( समिअल्लाहुलिमन हमिदह ) कहता हुआ सीधा खड़ा हो जाये और तन्हा हो तो इसके बाद اَللَّھُمَّ رَبَّنَا وَلَکَ الْحَمْدُ ( अल्लाहुम्मा रब्बना व लकलहम्दु ) कहे फिर अल्लाहु अकबर कहता हुआ सजदे में जाये यूँ कि पहले घुटने ज़मीन पर रखे फिर हाथ दोनों हाथों के बीच में सर रखे न यूँ कि सिर्फ पेशानी छू जाये और नाक की नोक लग जाये बल्कि पेशानी और नाक की हड्डी जमाये और बाजूओं को करवटों और पेट को रानों और रानों को पिंडलियों से जुदा रखे और दोनों पाँव की सब उंगलियों के पेट किब्ला - रू जमे हों और हथेलियाँ बिछी हों और उगलियाँ किब्ले को हों और कम अज़ कम तीन बार*_
*سُبْحَانَ رَبِّیَ الْاَعْلٰی*
_*( सुब्हा न रब्बियल अअला ) कहे फिर सर फिर हाथ उठाये और दाहिना क़दम खड़ा कर के उसकी उंगलियाँ किब्ला - रूख करे और बायाँ कदम बिछा कर उस पर खूब सीधा बैठ जायें और हथेलियाँ बिछा कर रानों पर घुटनों के पास रखे कि दोनों हाथों की उंगलियाँ किब्ले को हों फिर अल्लाहु अकबर कहता हुआ सजदे को जाये और उसी तरह सजदा करे फिर सर उठाये फिर हाथ को घुटने पर रखकर पंजों के बल खड़ा हो जाये अब सिर्फ*_
*بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ*
_*पढ़ कर किरात शुरू कर दे फिर उसी तरह रूकू और सजदा कर के दाहिना कदम खड़ा कर के बायाँ कदम बिछा कर बैठ जाये और यह पढ़े*_
*اَلتَّحِیَّاتُ لِلّٰہِ وَالصَّلَوٰتُ وَالطَّیِّبَاتُ اَلسَّلَامُ عَلَیْکَ اَیُّھَا النَّبِیُّ وَرَحْمَۃُ اللّٰہِ وَ بَرَکَاتُہٗ اَلسَّلَامُ عَلَیْنَا وَعَلٰی عِبَادِ اللّٰہِ الصَّالِحِیْنَ اَشْھَدُ اَنْ لَّا اِلٰہَ اِلَّا اللّٰہُ وَاَشْھَدُ اَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُہٗ وَرُسُوْلُہٗ ۔*
_*अत्तहिय्यातु लिल्ला हि वस्सला वातु वत्तय्यिबातु अस्सलामु अलैक अय्युहन्नबिय्यु व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू अस्सलामु अलैना व अला इबादिल्लाहि - स्सालिहीन अश्हदु अल्लाइलाह इल्लल्लाहु व अश्हदु अन्ना - मुहम्मदन अब्दुहू व रसूलुहू 0*_
_*📝तर्जमा:- "तमाम तहिय्यतें और नमाजें और पाकीजगियाँ अल्लाह के लिए हैं सलाम आप पर ऐ नबी और अल्लाह की रहमत और बरकतें हम पर और अल्लाह के नेक बन्दों पर सलाम । मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई मअबूद नहीं और गवाही देता हूँ मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम उसके बन्दे और रसूल हैं " ।*_
_*और यह ख्याल रहे कि इस में कोई हर्फ कमो बेश ( कम या ज्यादा ) न करे और इसको ' अत्तहीय्यात ' कहते हैं और जब कलिमए । ला ' के करीब पहुँचे दाहिने हाथ की बीच की उंगली और अंगूठे का हलका बनाये और छुगलिया और उसके पास वाली को हथेली से मिला दे और लफ्जे ' ला ' पर कलिमे की उंगली उठाये मगर उस को हरकत न दे और कलिमए ' इल्लल्लाह पर गिरा दे और सब उंगलियाँ फौरन सीधी करे अगर दो से ज्यादा रकअतें पढ़नी हैं तो उठ खड़ा हो और इसी तरह पढ़े मगर फर्ज़ों की इन रकअतों में सूरह फ़ातिहा के साथ सूरत मिलाना जरूरी नहीं अब पिछला कादा जिस के बाद नमाज खत्म करेगा उसमें तशहहुद ( अत्तहिय्यात ) के बाद दुरूद शरीफ पढ़े । दुरूद शरीफ यह है :*_
*"اَللّٰھُمَّ صَلِّ عَلٰی سَیِّدِنَا مُحَمَّدٍ وَّعَلٰی اٰلِ سَیِّدِنَا مُحَمَّدٍ کَمَا صَلَّیْتَ عَلٰی سَیِّدِنَا اِبْرَاھِیْمَ وَعَلٰی اٰلِ سَیِّدِنَا اِبْرَاھِیْمَ اِنَّکَ حَمِیْدٌ مَّجِیْدٌ اَللّٰھُمَّ بَارِکْ عَلٰی سَیِّدِنَا مُحَمَّدٍ وَّعَلٰی اٰلِ سَیِّدِنَا مُحَمَّدٍ کَمَا بَارَکْتَ عَلٰی سَیِّدِنَا اِبْرَاھِیْمَ وَعَلٰی اٰلِ سَیِّدِنَا اِبْرَاھِیْمَ اِنَّکَ حَمِیْدٌ مَّجِیْدٌ۔*
_*अल्लाहुम्मा सल्लिअला सय्यिदना मुहम्मदिव व अला आलि सय्यदिना मुहम्मदिन कमा सल्लै त अला सय्यिदिना इब्राहीम व अला आलि सय्यिदिना इब्राहीमा इन्नक हमीदुम मजीद अल्ला हुम्मा बारिक अला सय्यिदिना मुहम्मदिव व अला आलि सय्यिदिना मुहम्मदिन कमा बारकता अला सय्यिदिना इब्राहीम व अला आलि सय्यिदिना इब्राहीम इन्न क हमीदुम्मजीद 0*_
_*📝तर्जमा :- " ऐ अल्लाह ! दुरूद भेज हमारे सरदार मुहम्मद पर और उनकी आल पर जिस तरह तूने दुरूद भेजी सय्यिदिना इब्राहीम पर और उनकी आल पर बेशक
तू सराहा हुआ बुजुर्ग है । ऐ अल्लाह ! बरकत नाजिल कर हमारे सरदार मुहम्मद पर और उनकी आल पर जिस तरह तूने बरकत नाज़िल की सय्यिदिना इब्राहीम पर और उनकी आल पर । बेशक तू सराहा हुआ बुजुर्ग है ।*_
_*" और इसके बाद नीचे दी जा रही दुआओं में से कोई दुआ पढ़े*_
*اَللّٰھُمَّ رَبَّنَا اٰتِنَا فِی الدُّنْیَا حَسَنَۃً وَّفِی الْاٰخِرَۃِ حَسَنَۃً وَّقِنَا عَذَابَ النَّارِ۔*
_*अल्लाहुम्म रब्बना आतिना फिदुन्यिा हसनतंव व फिल आखिरति हसनतंव वकिना अजाबन्नार ।*_
_*📝तर्जमा :- "ऐ अल्लाह ! ऐ हमारे परवरदिगार ! तू हमको दुनिया में नेकी दे और आखिरत में नेकी दे और हमको जहन्नम के अज़ाब से बचा ।*_
_*📍बाकि दुआओं के लिए किताब का मुताला करें या हमसे राब्ता करें*_
_*इन दुआओं में से जो भी दुआ पढ़े बगैर ' अल्लाहुम्मा ' के न पढ़े फिर दाहिने शाने की तरफ़ मुँह कर के*_
*اَلسَّلاَمُ عَلَیْکُمْ وَ رَحْمَۃُ اللّٰہِ*
_*(अस्सलामुअलैकुम व रहमतुल्लाहि) ' कहे फिर बाईं तरफ । यह तरीका जो ज़िक्र हुआ इमाम या तन्हा मर्द के पढ़ने का है । मुकतदी के लिये इस में की बाज़ बातें जाइज़ नहीं मसलन इमाम के पीछे फ़ातिहा या और कोई सूरत पढ़ना औरत भी बाज़ बातों में अलग है मसलन हाथ बाँधने और सजदे की हालत और कअ्दे की सूरत में फर्क है जिस को हम बयान करेंगे इन ज़िक्र की हुई चीज़ों में बाज़ चीजें फ़र्ज़ हैं कि इस के बगैर नमाज़ होगी ही नही बाज़ वाजिब कि जान बूझकर उसका तर्क करना गुनाह और नमाज़ वाजिबुल इआदा यानी लौटाना वाजिब है और भूल कर हो तो सजदए सहव वाजिब । बाज़ सुन्नते मुअक्कदा कि उसके तर्क की आदत गुनाह और बाज़ मुस्तहब कि करे तो सवाब और न करे तो गुनाह नहीं ।*_
_*📍नोट :- " हमने कुछ अरबी इबारतों को हिन्दी में भी लिख दिया है ताकि पढ़कर याद कर सकें मगर हिन्दी में हर लफ़्ज़ का तलफ्फुज़ ( उच्चारण ) मुमकिन नहीं है । इस लिए किसी कारी से उसका उच्चारण ठीक करलें ।
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 56/57/58*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 096)*_
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_*🕌फराइजे नमाज़ 🕌*_
_*✨सात चीजें नमाज़ में फर्ज हैं*_
_*🎗️1. तकबीरे तह़रीमा ( नमाज़ शुरू करने के लिए जो तकबीर कहते हैं उसे तकबीरे तह़रीमा कहते हैं)*_
_*🎗️2. क़ियाम ( नमाज़ में खड़े होने की हालत को क़ियाम कहते हैं )*_
_*🎗️3. किरात*_
_*🎗️4. रूकू*_
_*🎗️5. सजदा*_
_*🎗️6. काअ़्दा ए आखीरा ( नमाज़ में बैठने की हालत को कादा कहते हैं । वह दो होते हैं एक कादए ऊला दूसरा कदए अखीरा जिस काअ्देए के बाद सलाम फेरना हो उसे काअ़्दए अखीरा और जिसके बाद सलाम नही फेरना हो उसे काअ़्दए ऊला कहते हैं ।*_
_*🎗️7. खुरूज बिसुनएही ( यानी अपने इरादे से नमाज़ ख़त्म करना )*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 58/59*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 097)*_
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_*🗣️तकबीरे तह़रीमा 🗣️*_
_*✨1. तकबीरे तह़रीमा : - हक़ीक़तन यह शराइते नमाज़ से है मगर चूँकि अफआले नमाज़ से इसको बहुत ज्यादा नज़दीकी हासिल है ( यानी तकबीरे तह़रीमा नमाज़ से बहुत करीब और बिल्कुल मिली हुई है ) इस वजह से फराइज़े नमाज़ में इसका शुमार हुआ ।*_
_*📖मसअ्ला.1: - नमाज़ के शराइत यानी तहारत व इस्तिकबाल व सत्रे औरत व वक़्त तकबीरे तहरीमा के लिये शराइत हैं यानी तकबीर कहने से पहले इन सब शराइत का पाया जाना ज़रूरी है अगर अल्लाहु अकबर कह चुका और कोई शर्त मफकूद ( कम ) है नमाज़ न होगी ।*_
_*📖मसअ्ला.2: - जिन नमाजों में क़ियाम फ़र्ज़ है उनमें तकबीरे तह़रीमा के लिये कियाम फर्ज़ है तो अगर बैठकर अल्लाहु अकबर कहा फिर खड़ा हो गया नमाज़ शुरू ही न हुई ।*_
_*📖मसअ्ला .3: - इमाम को रूकू में पाया और तकबीरे तह़रीमा कहता हुआ रूकू में गया यानी तकबीर उस वक़्त खत्म की कि हाथ बढ़ाये तो घुटने तक पहुँच जायें नमाज़ न हुई । नफ्ल के लिये तकबीरे तह़रीमा रूकू में कही नमाज़ न हुई और बैठकर कहता तो हो जाती ।*_
_*📖मसअ्ला.4: - मुकतदी ने लफ़्ज़े अल्लाह इमाम के साथ कहा मगर अकबर को इमाम से पहले खत्म कर चुका नमाज़ न हुई ।*_
_*📖मसअ्ला.5: - इमाम को रूकु में पाया और अल्लाहु अकबर खड़े होकर कहा मगर उस तकबीर से तकबीरे रूकूअ की नियत की नमाज़ शुरू हो गई और यह नियत बेकार है।*_
_*📖मसअ्ला.6: - इमाम से पहले तकबीरे तहरीमा कही अगर इक़तिदा की नियत है नमाज़ में न आया वर्ना शुरू हो गई मगर इमाम की नमाज में शिर्कत न हुई बल्कि अपनी अलग।*_
_*📖मसअ्ला.7: - इमाम की तकबीर का हाल मालूम नहीं कि कब कही तो अगर गालिब गुमान है कि इमाम से पहले कही , न हुई और अगर गालिब गुमान न हो तो एहतियात यह है कि नियत तोड़ दे और फिर से तकबीरे तह़रीमा कह कर नियत बाँधे ।*_
_*📖मसअ्ला.8: - जो शख़्स तकबीर के तलफ्फुज़ पर कादिर न हो मसलन गूंगा हो या किसी और वजह से जुबान बन्द हो उस पर तलफ्फुज वाजिब नहीं दिल में इरादा काफी है।*_
_*📖मसअ्ला.9: - अगर तअज्जुब के तौर पर अल्लाहु अकबर कहा या मोअज्जिन के जवाब में कहा और इसी तकबीर से नमाज़ शुरू कर दी नमाज़ न हुई ।*_
_*📖मसअ्ला.10: - अल्लाहु अकबर की जगह कोई और लफ़्ज़ जो ख़ालिस ताज़ीमे इलाही के अल्फाज़ हो 'अल्लाहु अजल्ल' या 'अल्लाहु अअज़म'या'अल्लाहुकबीरून' या 'अल्लाहुल अकबर या 'अल्लाहुल कबीर' या 'अर्रहमानु अकबर या 'अल्लाहु इलाहुन' या 'ला इलाह-ह इल्लल्लाहु या सुब्हानल्लाह,या अलहम्दुलिल्लाह'या 'ला इला–ह गैरूहु' या 'तबारकल्लाह वगैरा" अल्फाजे ताजीमी कहे तो इन से भी इब्तिदा हो जायेगी मगर यह तब्दीली मकरूहे तहरीमी है और अगर दुआ या तलबे हाजत लफ्ज़ हों मसलन :- अल्लाहुम्मगफिरली'या 'अल्लाहुम्मरहमनी' या 'अल्लाहुम्मर्जुकनी' वगैरा अल्फाजों दुआ कहे तो नमाज़ शुरू न हुई और अगर सिर्फ अल्लाह' या 'अऊजुबिल्लाह' या 'इन्नालिल्लाह या लाहौ-ल वलाकुब्व-त इल्ला बिल्लाह या 'माशा अल्लाहु का-न' या بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ या अल्लाहु या 'अल्लाहुम-म' कहा तो नमाज़ शुरू न हुई और अगर सिर्फ अल्लाहु कहा या 'अल्लाह कहा हो जायेगी।*_
_*📖मसअ्ला.11: - लफ्जे अल्लाह को आल्लाहु या अकबर को आकबर या अकबार कहा नमाज़ न होगी बल्कि अगर उनके गलत मअ़्ना समझ कर कस्दन कहे तो काफ़िर है।*_
_*📖मसअ्ला.12: - पहली रकअत का रूकू मिल गया तो तकबीरे ऊला की फजीलत पा गया ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 59/60*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 98)*_
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_*🚹 क़ियाम 🚹*_
_*✨2. क़ियाम :- कमी की जानिब इसकी हद यह है कि हाथ फैलाये तो घुटनों तक न पहुँचे और कियाम यह है कि सीधा खड़ा हो ।*_
_*📖मसअ्ला.13: - क़ियाम उतनी देर तक है जितनी देर क़िरात है यानी जितनी क़िरात फ़र्ज़ है उतनी देर क़ियाम वाजिब है और जितनी क़िरात सुन्नत है उतनी देर क़ियाम सुन्नत है।*_
_*📖मसअ्ला.14: - यह हुक्म पहली रक़अ़्त के सिवा और रक़अतों का है पहली रक़अ्त में क़ियामे फर्ज में मिकदारे तकबीरे तहरीमा भी शामिल होगी और क़ियामे मसनून यानी जितनी देर खड़ा होना सुन्नत है उस में सना और अऊजुबिल्लाह और बिस्मिल्लाह की मिकदार भी शामिल है।*_
_*📖मसअ्ला.15: - क़ियाम व क़िरात का वाजिब व सुन्नत होने का यह मना है कि उस के तर्क पर तर्क वाजिब व सुन्नत का हुक्म दिया जायेगा वर्ना बजा लाने में जितनी देर तक क़ियाम किया और जो कुछ क़िरात की सब फ़र्ज़ ही है फर्ज़ का सवाब मिलेगा।*_
_*📖मसअ्ला.16: - फर्ज व वित्र व ईदैन व सुन्नते फज़्र में क़ियाम फ़र्ज़ है कि बिला सही उज़्र के बैठकर यह नमाजें पढ़ेगा न होंगी।*_
_*📖मसअ्ला.17: - एक पाँव पर खड़ा होना यानी दूसरे पाँव को ज़मीन से उठा लेना मकरूहे तहरीमी है और अगर उज़्र की वजह से ऐसा किया तो हरज नहीं।*_
_*📖मसअ्ला.18: - अगर क़ियाम पर कादिर है मगर सजदा नहीं कर सकता तो उसे बेहतर यह है कि बैठकर इशारे से पढ़े और खड़े होकर भी पढ़ सकता है।*_
_*📖मसअ्ला.19: - जो शख्स सजदा कर तो सकता है मगर सजदा करने से ज़ख्म बहता है जब भी उसे बैठकर इशारे से पढ़ना मुस्तहब है और खड़े होकर इशारे से पढ़ना भी जाइज़ है
_*📖मसअ्ला.20: - जिस शख्स को खड़े होने से कतरा आता है या ज़ख्म बहता है और बैठने से नहीं तो उसे फर्ज़ है कि बैठकर पढ़े अगर और तौर पर उस की रोक न कर सके यूँही खड़ा होने से चौथाई सतर खुल जायेगा या क़िरात बिल्कुल न कर सकेगा तो बैठकर पढ़े और अगर खड़े होकर कुछ भी पढ़ सकता है तो फ़र्ज़ है कि जितनी पर कादिर हो खड़े होकर पढ़े बाकी बैठकर ।*_
_*📖मसअ्ला.21: - अगर इतना कमज़ोर है कि मस्जिद में जमाअ़्त के लिये जाने के बाद खड़े होकर न पढ़ सकेगा और घर में पढ़े तो खड़ा होकर पढ़ सकता है तो घर में पढ़े जमाअ़्त मयस्सर हो तो जमाअत से वर्ना तन्हा ।
_*📖मसअ्ला.22: - खड़े होने से महज़ कुछ तकलीफ होना उज़्र नहीं बल्कि क़ियाम उस वक़्त साकित होगा ( यानी माफ होगा ) कि खड़ा न हो सके या सजदा न कर सके या खड़े होने या सजदा करने में ज़ख्म बहता है या खड़े होने में कतरा आता है या चौथाई सत्र खुलता है या क़िरात से मजबूरे महज़ हो जाता है । यूँही खड़ा हो सकता है मगर उससे मर्ज़ में ज्यादती होती या देर में अच्छा होगा या नाकाबिले बर्दाश्त तकलीफ होगी तो बैठ कर पढ़े ।*_
_*📖मसअ्ला.23: - अगर लाठी या ख़ादिम या दीवार पर टेक लगाकर खड़ा हो सकता है तो फर्ज है कि खड़ा होकर पढ़े ।*_
_*📖मसअ्ला.24: - अगर कुछ देर भी खड़ा हो सकता है अगर्चें इतना ही कि खड़ा होकर अल्लाहु अकबर कह ले तो फ़र्ज़ है कि खड़ा होकर इतना कह ले फिर बैठ जाये ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 60*_
_*📍तम्बीहे ज़रूरी : - आजकल उमूमन यह बात देखी जाती है कि जहाँ ज़रा बुखार आया या ख़फीफ सी तकलीफ हुई बैठकर नमाज़ शुरू कर दी हालाँकि वही लोग उसी हालत में दस - दस पन्द्रह पन्द्रह मिनट बल्कि ज़्यादा खड़े होकर इधर उधर की बातें कर लिया करते हैं । उनको चाहिये कि इन मसाइल से आगाह हों और जितनी नमाजें बावुजूद कुदरते क़ियाम बैठकर पढ़ी हों उनका लौटाना फ़र्ज़ है । यूँही अगर वैसे खड़ा न हो सकता था मगर लाठी या दीवार या आदमी के सहारे से खड़ा होना मुमकिन था तो वह नमाज़े भी न हुई उन का फेरना फ़र्ज । अल्लाह तआला तौफीक अता फ़रमाये । (आमीन)*_
_*📖मसअ्ला.25: - कश्ती पर सवार है और वह चल रही है तो बैठकर उस पर नमाज़ पढ़ सकता है । यानी जबकि चक्कर आने का गुमान गालिब हो और किनारे पर उतर न सकता हो ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 61*_
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_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 99)*_
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_*🎙क़िरात🎙*_
_*3. क़िरात :- किरात इसका नाम है कि तमाम हुरूफ मख़ारिज से अदा किये जायें कि हर हर्फ गैर से सही तौर पर मुमताज़ हो जाये (मतलब यह है कि हर हर्फ को उनके सही मख़ारिज से पढ़े)और आहिस्ता पढ़ने में भी इतना होना ज़रूरी है कि खुद सुने अगर हुरूफ को तसहीह तो की मगर इस कद्र आहिस्ता कि खुद न सुना और कोई बात ऐसी भी नहीं जो सुनने में रूकावट होती मसलन शोर गुल तो नमाज़ न होगी।*_
_*📖मसअ्ला.26:- यूँही जिस जगह कुछ पढ़ना या कहना मुकर्रर किया गया है उससे यही मक़्सद है कि कम से कम इतना हो कि खुद सुन सके मसलन तलाक देने, आज़ाद करने, जानवर ज़िबह करने में।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 61*_
_*📖मसअ्ला.27:- मुतलक़न एक एक आयत पढ़ना फ़र्ज़ की दो रकअतों में और वित्र व नवाफ़िल की हर रक़अ् में इमाम व मुनफरिद पर फर्ज़ है और मुक़तदी को किसी नमाज में किरात जाइज नहीं न फातिहा न आयत न आहिस्ता की नमाज़ में न जहर (बलन्द आवाज़ से पढ़ना) की नमाज में इमाम की क़िरात मुक़तदी के लिये भी काफी है।*_
_*📖मसअ्ला.28:- फ़र्ज़ की किसी रक़अ्त में क़िरात न की या फकत एक में की, नमाज फासिद हो गई।*_
_*📖मसअ्ला.29:- छोटी आयत जिस में दो या दो से जाइद कलिमात हों पढ़ लेने से फर्ज अदा हो जायेगी अगर एक ही हर्फ की आयत हो जैसे :- صٓ، نٓ، قٓ، कि बाज़ क़िरातों में इनको आयत माना । तो इस के पढ़ने से फर्ज़ अदा न होगा अगर्चे इस की तकरार करे । रही एक कलिमे की आयत مُدْهَآمَّتٰنِۚ इस में इख्तलाफ़ है और बचने में एहतियात।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 61/62*_
_*📖मसअ्ला.30:- सूरतों के शुरू में (بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ) एक पूरी आयत है मगर सिर्फ इस के पढ़ने से फ़र्ज़ अदा न होगा।*_
_*📖मसअ्ला.31:- क़िराते शाज़्ज़ह यानी मशहूर क़िरात के अलावा क़िरात से फ़र्ज़ अदा न होगा। यही बजाय किरात आयत की हिज्जे की नमाज़ न होगी।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 62*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 100)*_
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_*📖 रूकू 📖*_
_*💫 इतना झुकना कि हाथ बढ़ाये तो घुटनों को पहुँच जाये यह रूकू का अदना दर्जा है। {दुरे मुख्तार वगैरा 1-300} और पूरा यह कि पीठ सीधी बिछा दे।*_
_*📜मसअ्ला : - कुबड़ा शख्स कि उस का कुबड़ हदे रुकू को पहुँच गया हो, रुकू के लिये सर से इशारा करे।*_
_*📕 आलमगीरी*_
_*📖 सुजूद 📖*_
_*📚 हदीस में है सब से ज्यादा कुर्ब बन्दा को खुदा से उस हालत में है कि सजदा में हो। लिहाजा दुआ ज्यादा करो। इस हदीस को मुस्लिम ने अबू हुरैरा (रदियल्लाहू तआ़ला अन्हु) से रिवायात किया। पेशानी का ज़मीन पर जमना सजदे की हक़ीक़त है और पाँव की एक उंगली का पेट लगना शर्त तो अगर किसी ने इस तरह सजदा किया कि दोनों पाँव जमीन से उठे रहे नमाज न हुई बल्कि अगर सिर्फ उंगली की नोक जमीन से लगी जब भी न हुई इस मसले से बहुत लोग गाफिल हैं।*_
_*📕 दुर्रेमुख्तार, 1-336*_
_*📕 फतावाए रज़विया*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 62*_
_*📜मसअ्ला : - अगर किसी उज़्र के सबब पेशानी जमीन पर नहीं लगा सकता तो सिर्फ नाक से सजदा करे फिर भी फ़क़त नाक की नोक लगना काफी नहीं बल्कि नाक की हड्डी ज़मीन पर लगना जरूरी है।*_
_*📕 आलमगीरी 1-65*_
_*📜मसअ्ला : - रुख्सार (गाल) या ठोड़ी ज़मीन पर लगाने से सजदा न होगा ख़्वाह उज़्र के सबब हो या बिना उज़्र अगर उज़्र हो तो इशारे का हुक़्म है।*_
_*📕 आलमगीरी 1-65*_
_*📜मसअ्ला : - हर रकअ्त में दो बार सजदा फर्ज है।*_
_*📜मसअ्ला : - किसी नर्म चीज मसलन घास, रुई, कालीन वगैरा पर सजदा किया तो अगर पेशानी जम गई यानी इतनी दबी कि अब दबाने से न दबे तो जाइज़ है वरना नहीं (आलमगीरी) बाज़ जगह जाड़ों में मस्जिद में प्याल बिछाते हैं उन लोगों को सजदा करने में इसका लिहाज बहुत जरूरी है कि अगर पेशानी खूब न दबी तो नमाज़ न हुई और नाक हड्डी तक न दबी तो मकरूहे तहरीमी वाजिबुल इआ़दा हुई। कमानी दार गद्दे जैसे आजकल स्पंचदार गद्दे पर सजदे में पेशानी खूब नहीं दबती। लिहाजा नमाज़ न होगी। रेल के बाज़ दर्जो में बाज़ गाड़ियों में इस किस्म के गद्दे होते हैं। उस गद्दे से उतर कर नमाज पढ़नी चाहिये।*_
_*📜मसअ्ला - दोपहिया यक्का वगैरा पर सजदा किया तो अगर उसका जुवा या बम बैल और घोडे पर है सजदा न हुआ और जमीन पर रखा है तो हो गया (आलमगीरी 1-65) बहली का खटोला अगर बानों से बुना हुआ हो और इतना सख्त बुना हो कि सर ठहर जाये दबाने से अब न दबे तो नमाज़ हो जाएगी वरना न होगी।*_
_*📜मसअ्ला - ज्वार बाजरा वगैरा छोटे दानों जिन पर पेशानी न जमें सजदा न होगा अलबत्ता अगर बोरी वगैरा में खूब कस कर भर दिये गये कि पेशानी जमने में रुकावट न हो तो हो जायेगी।*_
_*📕 आलमगीरी 1-66*_
_*📜मसअ्ला : - अगर किसी उज़्र मसलन भीड़ की वजह से अपनी रान पर सजदा किया जाइज है और बिला उज़्र बातिल और घुटने पर उज़्र व बिला उज़्र किसी हालत में नहीं हो सकता।*_
_*📕 दुर्रे मुख्तार 1-337*_
_*📕 आलमगीरी 1-66*_
_*📜मसअ्ला : - भीड़-भाड़ की वजह से दूसरे की पीठ पर सजदा किया और वह नमाज़ ही में इसका शरीक है तो जाइज है वरना नाजाइज ख़्वाह वह नमाज ही में न हो या नमाज में तो हो मगर इसका शरीक न हो यानी दोनों अपनी अपनी पढते हों।*_
_*📕 आलमगीरी वगैरा*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 63*_
_*📜मसअ्ला : - हथेली या आस्तीन या इमामे के पेच या किसी और कपड़े पर जिसे पहने हुए है सजदा किया और नीचे की जगह नापाक है तो सजदा न हुआ हाँ इन सब सूरतों में जब कि फिर पाक जगह पर सजदा कर लिया तो हो गया।*_
_*📕 मुनिया 121*_
_*📕 दुर्रे मुख्तार 1-337*_
_*📜मसअ्ला - इमामे के पेच पर सजदा किया अगर माथा खूब जम गया सजदा हो गया और माथा न जमा बल्कि फ़क़त छू गया कि दबाने से दबेगा या सर का कोई हिस्सा लगा तो न हुआ।*_
_*📕 दुर्रे मुख्तार*_
_*📜मसअ्ला :- ऐसी जगह सजदा किया कि क़दम की बनिस्बत बारह उँगल से ज्यादा ऊँचा है सजदा न हुआ वरना हो गया।*_
_*📕 दुर्रे मुख्तार 1-338*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 63*_
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