Sunday, November 1, 2020

🅰️ गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह 🅰️

🅰️ गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह 🅰️
【POST 01】आज कि अहिम पोस्ट हमारी माँ बहनो के लिए गौर करे और इबरत हासिल करे।*
🖋 *"आइब्रो"*
*मुसलमान औरतों का या लड़कियों का आइब्रो बनवाना यानी अपनी भँवो के बाल नुचवाना शरीअत के नज़दीक क्या है.. ?*
*नाजाइज़ और हराम है.*
🖊 हुज़ूर रहमतें आलम मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने भवें बनवाने वाली औरतों पर लअनत फ़रमाई है और इसे क़यामत की निशानियों में शुमार फ़रमाया है कि आख़री ज़माने में औरतें अपने भँवो के बाल नुचवायेगी और ये आज हो रहा है...
*ये वबाल तेज़ी से मुसलमानों में बढ़ रहा है औरत तो औरत नाबालिग़ बच्चियां इस हराम फ़ेल में मुब्तिला है और उनके बाप-भाई दययुस बन कर ख़ामोशी अख्तियार किये हुवे हैं उसका वबाल इनके सर भी पड़ेगा....बढ़ी माज़रत के साथ कहना पड़ रहा है कि बहुत सारी बहने ऐसे जुमले सुनकर नाराज़ हो जाती है...उन्हें सोचना चाहिए कि किस पर ग़ुस्सा कर रही है अगर हम पर तो हमारा फ़रीज़ा है अल्लाह और उसके रसूल का फरमान आप तक पहुंचाने का.... यहां ये याद रखे कि कोई बहन की भवें ऐसी हो कि अगर न बनवाई जाए तो चहरा बदनुमा महसूस हो और उसकी बिना पर रिश्तों पर फ़र्क़ पढ़े की रिश्ते नही हो पा रहे है या शोहर की बेरहमती का सबब बन जाये तो ऐसी सूरत में बक़दरे ज़ुरूरत वो भवे की तराश कर सकती है ताकि चहरा कुछ बहतर हो सके...जैसा कि कुछ बहनों के होंट के ऊपर या दाढ़ी में बाल निकल आते है तो सिर्फ़ उन्हें इजाज़त है वो भी कुछ -कुछ...*
📝 कुछ बहने कहती है कि जी हमारे शौहर ने इजाज़त दे रखी है तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फ़रमान याद रखे कि :- अल्लाह तआला के अहकाम के मुआमले में मख़लूक़ की इताअत नही की जाएगी यानी उनका कहा नही माना जायेगा...बात वाज़ेह है लिहाज़ा शौहर का इस मुआमले में कहना नही माना जायेगा...और न शौहर हज़रात अपनी जौज़ा को ऐसी आज़माइश में डालें की सिर्फ़ चहरा खूबसूरत देखने के लिए एक गुनाह करवाले तो मैदाने महशर में अल्लाह की बरगाह में जवाब देना बढ़ा मुश्किल हो जाएगा...
📖 *ये हदीस बुख़ारी शरीफ़ की है और इसकी शरह अल्लामा बदरुद्दीन अयनी रहमतुल्लाहि अलैह ने अपनी किताब उम्मदतुल क़ारी में बयान फ़रमाई है...*
📚:- *(किताब बुख़ारी शरीफ़/अहकामे शरीअत,मुफ़्ती मुहम्मद अकमल साहब)*
*Note- हमारी मा बहने इसको ज़रूर पढ़े कही ऐसा तो नही वह खसारे मे हो


【POST 02】अल्लाह को ऊपर बाला कहना*
*अल जबाब*
(1) कुछ लोग अल्लाह तआला को नाम लेने के बजाऐ उसको ऊपर वाला बोलते हैं। यह निहायत गलत बात है। बल्कि अगर यह अकीदा रख कर यह लफ्ज बोले कि अल्लाह तआला ऊपर है। तो यह कुफ्र है। क्योंकि अल्लाह की जात ऊपर नीचे आगे पीछे दाहिने बायें तमाम सम्तों हर मकान और हर जमान से पाक है। बरतर व बाला हैं। इन सब दिशाऔ पूरब पच्छिम उत्तर दक्खिन ऊपर नीचे दाहिने आगे पीछे ज़मान व मकान को उसी ने पैदा किया है। तो अल्लाह तआला के लिऐ यह नही बोला जा सकता कि वह ऊपर है। या नीचे है।पूरब मे है। या पच्छिम मे है। क्यूंकि जब उसने इन चीजो को पैदा नही किया था बह तब भी था कहाँ था और क्या था इसकी हकीक़त को उसके अलावा कोई नही जानता अगर कोई कहे अल्लाह तआला अर्श पर है। तो उससे पूछा जाऐ जब उसने अर्श को पैदा नही किया था तब वह कहा था यूँही अगर कोई कहे कि अल्लाह तआला ऊपर है तो उससे पूछा जाऐ ऊपर को पैदा करने से पहले बह कहा था ?
*हाँ अगर कोई अल्लाह तआला को ऊपर बाला इस ख्याल से कहे कि वह सबसे बुलन्द व बाला है और उसका मर्तबा सबसे ऊपर है तो यह कुफ्र नही है। लेकिन फिर भी अल्लाह तको ऐशे अल्फाज से बोलना सही नही जिन से कुफ्र का शुबहा हो और अल्लाह तआला को ऊपर बाला कहना बहर हाल मना है। जिससे बचना जरूरी है।*
कुछ लोग अल्लाह तआला को *मालिक* कहते हैं। कि *मालिक* ने चाहा तो ऐसा हो जाएगा या *मालिक* जो करेगा वह होगा वगैरा वगैरा । यह भी अच्छा तरीका नही है। सब से ज्यादा सीधी सच्ची और अच्छी बात यह है कि अल्लाह को अल्लाह ही कहा जाऐ क्यूकि उसका नाम लेना सबसे अच्छी इबादत है। और उसका जिक्र करना ही इन्सान का सबसे बड़ा मकसद और मुसलमान की पहचान ही यह है। कि उसको अल्लाह का नाम लेने और सुनने मे मजा आने लगे।
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 12 13*



【POST 03】बोल चाल मे कुफ्री अल्फाज*
*आम लोग बातचीत मे कुफ्र के शब्द बोल कर इस्लाम से खारिज हो जाते है। और ईमान से हाथ धो बैठते है इसका ख्याल रखना निहायत जरूरी है क्यूकि हर गुनाह की बख्शिश है लेकिन अगर कुफ्र बक कर ईमान खो दिया तो बख्शिश और जन्नत मे जाने की कोई सूरत नही बल्कि सब दिन जहन्नम मे जलना लाजिमी है।*
हदीश शरीफ मे है कि हुजूर सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम ने फरमाया कि शाम को आदमी मोमिन होगा तो सबेरे को काफिर और सुबह को मोमिन होगा तो शाम को काफिर।
*कालिमात कुफ्र कितने है और किस किस बात से कुफ्र लाजिम आता है इसकी तफसील बयान करना दुश्वार है लेकिन हम अवाम भाईयो के लिऐ चन्द हिदायते लिखे देते है। इन्शा अल्लाह ईमान सलामत रहेगा।*
(1) आप बा-अदब हो जाइये अल्लाह तआला उसके रसूल फरिश्ते खानऐ काबा मसाजिद कुर्आने करीम दीनी किताबे बुजुर्गाने दीन उलमाऐ किराम वालिदैन इन सब का अदब ताजीम और मुहब्बत दिल मे बिठा लीजिए बा-अदब इन्सान का दिल एक खरे खोटे को परखने की तराजू हो जाता है कि न खुद उसके मुंह से गलत बात निकलती हैं और कोई बके तो उसको नागवार गुजरती है। इसीलिऐ अनपढ़ बा-अदब अच्छा है। पढे लिखे बे अदब से। खुदाए तआला फरमाता है।
📖 *तर्जमा : जो अल्लाह की निशानियो की ताजीम करे तो यह दिलो की परेहजगारी है।*
(2) हंसी मजाक तफरीह व दिललगी की आदत मत बनाईये और कभी हो तो उसमे दीनी मजहबी बातो को मत लाइये। खुदा तआला उसकी जात व शिफात अम्बियाए किराम फरिश्ते जन्नत दोजख अजाब सबाब नमाज रोजा वगैरह अहकामे शरअ का जिक्र हंसी तफरीह मे कभी न लाइये वरना ईमान के लिऐ खतरा पैदा हो सकता है। शआइरे इलाहिय्यह (अल्लाह की निशानियो) के साथ मजाक कुफ्र है।
*(3) बाज लोग इस किस्म की बातें सब को खुश खुश करने के लिऐ बोल देते है। जिनका बोलना और खुशी के साथ सुनना कुफ्र है। उन लोगो और ऐसी बातें करने बालो से दूर रहना जरूरी है।*
मसलन सब धरम समान है,खिदमते खल्क ही धर्म है,देश पहले है धर्म बाद मे है,हम पहले फला मुल्क के वासी हैं और मुसलमान बाद मे,राम रहीम दोनो एक है,वेद व कुर्आन मे कोई फर्क नही,मस्जिद व मन्दिर दोनो खुदा के घर है या दोनो जगह खुदा मिलता है, नमाज पढ़ना बेकार आदमियो का काम है, रोजा वह रखे जिसको खाना न मिले, नभाज पढ़ना या न पढ़ना सब बराबर है, हम ने बहुत पढली कुछ नही होता है, यह सब कलिमात खालिश कुफ्र गैर इस्लामी है काफिरो की बोलियाँ हैं जिनको बोलने से आदमी काफिर इस्लाम से खारिज हो जाता हो जाता है।
*सियासी लोग इस किस्म की बाते गैर मुस्लिमों को खुश करने करने उनके वोट लेने के लिऐ बकते है हालाकि देखा यह गया है कि वह उनसे खुश भी नही होते और गैर मुस्लिम अपने ही धर्म वालो को आमतौर से वोट देते है। इस तरह इन नेताओ को न दुनिया मिलती है न दीन और जिन गैर मुस्लिमों के वोट आपको मिलना हैं वह अपना दीन इमान बचा कर भी मिल सकते है। फिर चन्द रोज दुनियाके इक्तिदार नोटो और वोटो की खातिर क्या अपना इमान बेचा जाएगा?*
(4) मुसलमानो मे जो नए फिरके राइज हुए हैं उन से दूर रहना निहायत जरूरी है यह ईमान व अकीदे के लिऐ सब से बड़ा खतरा है। मजहबे अहलेसुन्नत बुजुर्गों की रविश पर काइम रहना ईमान व अकीदे की हिफाज़त के लिए निहायत लाजिम हैं और मजहबे अहले सुन्नत की सही तर्जुमानी इस दौर मे *आला हजरत मौलाना अहमद रजा खाँ बरेलवी अलैहिर्रहमतु वर्रिदवान ने फरमाई है। उनकी तालीमात ऐन इस्लाम है।*
जिसको आज तन्हा हमारे हुजूर ताजुश्शरीया मजबूती से थामे हुए है।
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 13 14 15.*


【POST 04】फिल्मी गानो मे कुफ्रियात*
आज कल हिन्दुस्तान मे फिल्मी मनाजिर और उनके गानो के जरिए भी मुसलमानो को काफिर बनाने और उनके इमान व अकीदे को तबाह करने की मुनज्जम साजिश चल रही है फिल्म की मजेदारियो और उसकी लज़्ज़त और गानो की लुत्फ़ अन्दोजी के सहारे ऐसे कड़वे घूंट मुस्लिम नस्लो की घाटी उतारे जा रहे हैं।जिनसे कभी बह बहुत दूर भागते थे और मुसलमान उन्हे बड़ी आसानी से अब हजम करते चले जा रहे हैं। बल्की सही बात यह है।कि आजकल फिल्मों टेलीवीजनो के जरिए काफिर अपने धर्मो का प्रचार कर रहे है। आगे हम चन्द गानो के वह शेर लिख रहे है। जिन का कुफ्र होना इतना जाहिर है। कि उसके लिए किसी आलिम मोलाना से पूछने की कतई जरूरत नही है बल्कि हर आदमी जान सकता है। कि यह खालिस काफिराना बकवासे है।
*खुदा भी आसमां से जब जमीन पर देखता होगा।*
*मेरे महबूब को किसने बनाया सोचता होगा।*
अब आगे जो भी हो अन्जाम देखा जाएगा
खुदा तराश लिया और बन्दगी करली
*रबने मुझ पर सितम किया है।*
*सारे जहा का गम मुझे दे दिया है।*
*(अस्तगफिरूल्लाह)*
एसे बहुत से गाने है। जिसमे कुफ्र के अलावा कुछ बया नही होता है। इन गानो का जायजा लिजिए और देखिए अल्लाह तआला के बारे मे यह अकीदा रखना कि वह आसमान से जब देखता होंगा हालांकि मुसलमानो का अकीदा यह है की अल्लाह रब्बुल इज्जत हर चीज को हमेशा से देखता है।और हमेशा देखेगा खुदाए तआला के बारे मे यह बकवास या मेरे महबूब को बनाने वाले के बारे वह सोचता होगा हालाकि हर चीज का बनाने बाला सिर्फ खुदाए तआला ही है। और उस परबर दिगारे आलम के बारें मे यह बकना कि बह सोचता होगा हालाकि उसका इल्म सोचने से पाक है। यह सब खुले कुफ्र है। इसी तरह दूसरे गाने खुदा तराश लिया और बन्दगी करली कितना बड़ा कुफ्र है। इस्लाम से मजाक और कुर्आन कलीम से ठट्ठा किया गया है। जिसके खुले कुफ्र होने मे जाहिल को भी शक नही है।
*तीसरे गाने परबरदिगार आलम को सितम गर बताना उससे सिकवा करना उसकी नाशुक्री करना कि ऊसने सारे जहान का गम मुझे दे दिया है। यह सब वह कुफ्रियात हैं। जो कितने मूसलमानो से बुलवा कर कहला कर गानो के जरिए उनके ईमान खराब कर दिये हैं और इसालामी हदो से बाहर लाकर खड़ा कर दिया गया है।*
अल्लाह के रसूल ने जिसका देखना और सुनना दोनो हराम करदिया हो उसको त कयामत कोई अदना जायज नही कर सकता है। चाहे वो किसी भी ख़ानक़ाह से क्यूँ न हो लेकिन आजके टी वी बाले बाबा कहते है। आज के दोर के हिसाब से टी वी देखना जायज है। और बायसे बरकत भी है। जिससे जन्नत मिलेगी *अस्तगफिरूल्लाह* एसे अकीदा रखने बालो पर अल्लाह की लानत होगी जो नबी की सुन्नत को तर्क करके उसे जायज करदे अरे जो नबी की सुन्नत पर अमल नही कर सकता बो हमे जन्नत कहा से दिलायगा जन्नत जिसको दिलानी है। बो मदीने के ताजदार हे। कोई बप्पा बहरूपिया नही है। जो खुद अपनी बात पर अचल न रह पाए बो हमे क्या जन्नत दिलाएगा जन्नत अगर खरीदनी है। तो गौस पाक के सच्चे दिवाने हो जाओ सरकार अजमेरी के सच्चे दिवाने हो जाओ इनके दिवाने तब होगे जब सरकार आला हजरत के सच्चे वफादार हो जाओ तबही जन्नत के हकदार हो जाओगे इन्शा अल्लाह अज्जबल
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 15 16*



【POST 05】इमान व अकीदे से ज्यादा अमल को अहमियत देना*
हमारे काफी अवाम भाई किसी की जाहिर दारी नेकी और कोई अच्छा काम देखकर उसकी तारीफ करने लगते हैं और उससे मुतासिर (प्रभावित) हो जाते जबकी इस्लामी नुक्ताए नजर से कोई नेकी उस वक्त तक कार आमद नही है। जब तक कि उसका ईमान व अकीदा दुरूस्त न हो।
*रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम ने जब ऐलाने नबुव्वत फरमाया था तो पहले नमाज, जकात, रोजा, हज और अहकामव अमाल का हुक्म नही दिया था बल्की यह फरमाया था कि अल्लाह को एक मानो बुतो की पूजा व परस्तिस से बाज आओ और मुझको अल्लाह का रसूल मानो। आज जब किसी गैर मुस्लिम को मुसलमान करते है। तो सबसे पहले उसे नमाज रोजे अदा करने अच्छाइयाँ करने और बुराईयां छोड़ने का हुक्म नही दिया जाता है बल्की पहले कलमा पढ़ाकर मुसलमान किया जाता है फिर बाद मे अच्छाई बुराई और अहकाम ए इस्लाम से उसको आगाह किया जाता है।*
📖 _हदीश शरीफ मे है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम ने फरमाया कि अगर कोई शख्स उहद पहाड़ के बराबर भी सोना राहे खुदा मे खर्च करे खुदाए तआला कबूल नही फरमाएगा जब तक कि वह तकदीर पर ईमान न लाये।_
📗 *(मिश्कात शरीफ सफा 23)*
*इस हदीश से खूब वाजेह हो गया कि जो इस्लाम के लिऐ जरूरी अकाइद न रखता हो उसकी कोई नेकी, नेकी नही।*
कुर्आन करीम मे भी फरमाने खुदावन्दी है यह कुर्आन हिदायत है मुत्तकीन (तकवे वालो) के लिऐ जो बगैर देखे ईमान लाये है और नमाज अदा करते और हमारे दिये हुए माल मे से (हमारी राह में) खर्च करते है।
📖 *(पारा 9 रूकूअ 9)*
इस आयते करीमा मे भी अल्लाह तआला ने नमाज और राहे खुदा मे खर्च से पहले ईमान का ज़िक्र फरमाया है।
*खुलासा यह है। कि जिस शख्स का ईमान व अकीदा दुरूस्त न हो या वह गैर इस्लामी ख्यालात व अकाइद रखता हो उससे कभी मुतास्सिर (प्रभावित) नही होना चाहिए न उसकी तारीफ करना चाहिए चाहे वह कितने ही अच्छे काम करे।*
📖 _कुर्आन करीम मे गैर इस्लामी अकाइद रखने वालो कि नेकियो और उनके कारनामो को बेकार व फूजूल फरमाया गया है और इसकी मिसाल उस गुबार से दी गई है जो किसी चट्टान पर लग जाती हैं फिर उसे बारिश धोकर बहा देती है और उसका नाम व निशान तक बाकी नही रहता।_
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 16 17 18.*



POST 06】लैटरीन में किब्ले की तरफ मुँह या पीठ करना*
*हदीश शरीफ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम ने इरशाद फरमाया, जब तुम मे से कोई रफए हाजत करे तो किब्ले की तरफ न मुँह करे और न पीठ*
📚 *(मिश्कात सफा-42)*
_इसके बरखिलाफ अवाम तो अवाम बाज खवास अहले इल्म तक मे इस बात का ख्याल नही रखा जाता है और पखाना पैशाब के वक्त आम तौर से लोग किब्ले की जानिब मुँह या पीठ कर लेते है। घरो मे लैटरीन बनाते वक्त मुसलमानो को ख़ास तौर से इस बात ख्याल रखना चाहिए कि बैठने की सीट इस तरह लगाई जाऐ कि इस्तिन्जा करने वाले का न मुँह काबे की तरफ हो और न पीठ। हिन्दुस्तान मे लेटरीन की सीटे उत्तर-दक्खिन रखी जाये, पूरब और पश्चिम न रखी जाये। अखर किसी के यहा गलती से लैटरीन की सीट पूरब पश्चिम लगी हो तो हजार या पांच सौ रुपयों के खर्च की फिक्र न करे। फौरन उसे उखडवा कर उत्तर-दक्खिन कराऐ । हो सकता है अल्लाह को उसकी यह नेकी पसंद आ जाए और उसकी बख्शिश हो जाऐ। दर असल अदब बेहद जरूरी है।बे अदबी से महरूमी आती है। खैर व बरकत उठ जाती हैं नहूसत इन्सान को घेर लेती हैं। और अदब से खैर व बरकत आती हैं रहमत बरसती हैं जिन्दगी पुर सूकून और बा रौनक हो जाती है।_
📝 *नोट:- लिहाजा जब भी अपने घरमे लैटरीन बनबाऐ सबसे पहले अपने नजदीक के उल्माऔ या मस्जिद के इमाम के पास जाऐ और उनहे घर लाकर लेटरीन की सीट को सही जगह लगाने की इस्लाह कर वाऐ एसी सूरत मे आप भी गुनाह से बचेगे और आप के परिवार बाले भी गुनाह से बचेगे अल्लाह हम सबको कहने सुनने से पहले अमल की तौपीक दे।*
*_आमीन सुम्मा आमीन_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 18.*



POST 07】नमाज़े जनाजा के बाद उसी वुज़ू से दूसरी नमाज पढ़ना कैसा है?*
*कुछ जगहो पर लोग समझते है। कि जिस वुज़ू से नमाज जनाजा पढ़ी हो उससे दूसरी नमाज नही पढ़ी जा सकती हालाकि यह गलत और बे अस्ल बात है। बल्कि इसी वुज़ू से फर्ज हो या सुन्नत व नफ्ल हर नमाज पढ़ना ठीक है।*
ऐसी ही मसले है। जिसको हर मुसलमान का जानना जरूरी है। जिस की बजह से होने बाली गलतियो से बचते रहना बहुत जरूरी है। आज के दौर मे हर कोई अपने आपको बहतर समझने की सोचता है। लेकिन अशल बात से महरूम रह जाता है। अल्लाह और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम और नाएबे रसूल यानी हमारे उल्माऔ से बहतर हमारी इस्लाह कोई जाहिल या आम इन्सान नही कर सकता है। कुछ जाहिलो की बात मे आकर हमारे भोले भाले मुसलमान सही व गलत का फर्क नही समझ पाते है। और गलतियो पे गलतियाँ करते चले जाते है। जिसका नुकसान उनहे अपने घर से देना पड़ता है। लेकिन समझ नही पाते है। के यह सब तकलीफ हमे किस बजह से मिल रही है। अल्लाह तआला से दुआ है। हमे अशल मायनो मे सही गलत का फर्क करने की तौफीक अता फरमाए और मसलके आला हजरत पर रहने की तोफीक अता फरमाऐ।
*आमीन सुम्मा आमीन*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,19*



【POST 08】मय्यत को गुस्ल देने के बाद गुस्ल करना जरूरी है या नही*
मय्यत को गुस्ल देने के बाद गुस्ल करना अच्छा है लेकिन जरूरी नही कि जिस ने मय्यत को गुस्ल दिया हो वह बाद मे खुद गुस्ल करे इसको जरूरी ख्याल करना या समझना गलत है।
*आम तौर पर कई जगह खास कर छोटे कस्बो मे देखा गया है। जहा इल्म की कमी होने की बजह से लोग गुमराही का रास्ता पकड़ लेते है। और कहते है। किसी रस्म रिवाज का इस्लाम मे मना होने के बाद भी वह लोग उसे ब खूबी मनाते है। अगर उनको मना किया जाए यह सब गलत है। तो जबाब मे सुनने को मिलता है। हमारे बाप दादाओ ने यह किया तो हम भी करेगे बाप दादाओ की तो जल्दी सुनने को तैयार रहते है। पर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम के बताए रास्ते को छोड़ देते है। लेकिन जिस रिवाज को मनाते है। उसकी जड़ तक नही जाते है। अगर उस जड़ तक जाएगे तो सही है गलत का फर्क भी पता हो जाएगा इसकी एक बजह यह भी है। उल्माऔ से मस्जिद के इमामो से दूर होना अगर किसी गाँव मे एक मस्जिद है। और उसमे इमाम साहब नमाज पड़ाते है। वह इमाम साहब उनकी जाहिलयत के चलते उनही मे ढल जाते है। मिसाल के तोर पर एक कहानी बताता हू।*
किसी गाँव मे सादी थी एक बड़े जमीदार के यहा बड़ी जोरो से शादी की तैयारी चल रही थी शादी के दिन नजदीक थे सब लोग अपने अपने काम मे मसगूल थे अब किसी ने कहा हाफिज साहब को फातहा के लिए बुला के लाऔ हाफिज साहब फोरन बुलाने पर अ गये घर मे एक बूढ़ी दादी थी उनको एक कमरे को देखने की जिम्मेदारी दि गई थी देखा होगा आपने भी हम अपने बडो को देखने बाला काम बता देते है। अराम से बेठे रहे। इसी तरह बह दादी अम्मा को एक कमरा तकने के लिए कहा था जिसमे खाने पीने का सामान रखा हुआ था साथ ही साथ दूध और मिठाई भी रखी थी एक बिल्ली परेशान कर रही थी दादी उससे परेशान हो गई इतने मे उनहे भोले भाले हाफिज साहब दिखाई दिए तेज अवाज मे बुलाते हुए हाफिज साहड फातहा बाद मे होगी पहले इस बिल्ली को टुकनिया के नीचे बन्द करदो हाफिज साहब बिचारे बिल्ली को बड़ी मुस्किल से पकड़ा और बन्द किया फिर फातहा दिए और चले गए।
*इसी तरह कुछ महीनो बाद उस घर मे एक और सादी हुई हाफिज साहब को फिर फातहा के लिए बुलाया गया फिर बही दादी अम्मा बहा मोजूद थी और बह बिल्ली भी मोजूद थी दादी अम्मा फिर तेज अवाज मे फातहा बाद मे होगी पहले बिल्ली बंद हाफिज साहब बिल्ली को पकड़े और बंद किए बंद करने के बाद दादी से कहे फातहा कहा से देनी है। दादी अम्मा तब तक खिसकली यानी इन्तकाल हो गया जेसे तेसे शादी तो हो गई अब इसके बाद कुछ ही साल मे उस घर मे फिर से शादी हुई हाफिज साहब को फातहा के लिए बुलाया वेसे ही एक नई दादी अम्मा यानी उस घर की बहु बोली हाफिज साहब फातहा बाद मे होगी पहले बिल्ली बन्द होगी मेरी दादी अम्मा कराती थी अब हाफिज साहब का दिमाग खराब बिल्ली कहा से लाए बडी उलझन मे डाल दिया ।*
*इस कहानी से हमे क्या नसीहत मिली इसका जबाब आप हजरात बताए गे।*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 19*



POST 09】क्या सतर खुल जाने से वुज़ू टूट जाता है*
_अवाम मे जो मशहूर है कि घुटना और सतर अपना या पराया देखने से वुज़ू जाता रहता है। यह एक बे-अस्ल बात है। घुटनाया रान वगैरा सतर खुलने से वुज़ू नही टूटता। हाँ बग़ैर जरूरत सतर खुला रहना मना है। और दूसरो के सामने सतर खोलना हराम है।_
📚 *(बहारे शरीयत,हिस्सा 2,सफा 28)*
*आज कल आम तोर पर देखा जाता है। मर्द जब घर पर रहते है। तो बगैर परदा किए अपने घर बालो के सामने बेठे रहते है। या अराम करने लगते है। उनका पूरा बदन दिखाई देता है। घुटनो से ऊपर का हिस्सा दिखाना इस्लाम मे हराम बताया है। लेकिन इस्लाम के बताने के बाद भी हम अमल करते नजर नही आते है। और घर मे हमारी जवान बहन बेटियो के सामने अपना नंगा बदन दिखाते है। यही बो अस्ल बजह है।जिसका सिला हमे मिलता है। हमारी माँ बहिनो बेटियो से जो आय दिन बजारो मे अपने आपको बे पर्दा दिखाने मे मसगूल रहती है।*
आपको एक मसला बताता चलू इस्लाम मे खत्ना कराना सुन्नते इब्राहीम अलहिस्सलाम है। जिसको हम आप अदा भी करते है। लेकिन कब कराना बहतर है। जब 4 साल से लेकर 7 या 8 साल तक बहतर तरीका यही है। लेकिन बच्चे को तकलीफ का अहसास उसके होस रहते न हो तो उसकी खत्ना माँ बाप 1 या 2 साल की उम्र मे करा देते है बहर हाल यह भी सही है। लेकिन जब बच्चा बालिग हो जाता है। और इस सुन्नत से महरूम रहता है। तो उसकी खत्ना कोई दूसरा मर्द नही कर सकता है। क्यूँ कि किसी दूसरे मर्द को अपनी सतल दिखाना इस्लाम मे नजायज व हराम है।
*इस हाल मे उस बच्चे को या तो अपने हाथ से खत्ना करनी होगी या उसकी शादी होने के बाद उसकी बीबी उसकी खत्ना कर सकती है। या फिर यू कहले किसी गेर मुस्लिम ने कलमा पढ़कर इस्लाम कुबूल किया अब उसकी खत्ना नही है। तो क्या वह मुसलमान नही कहलाए गा या उसकी नमाज रोजे कबूल नही होगे अल्लाह नमाज रोजे कूबूल होगे या नही बह बहतर जानने बाला है। लेकिन इस्लाम के मुताबिक उसकी नमाज भी जायज है। और रोजे भी क्यूँ कि खत्ना कराना सुन्नत है। और नमाज रोजा इस्लाम मे फर्ज है। हा अगर वो चाहे है। तो अपने हाथ से अपनी खतना कर सकता है। या बह शादी सुदा है। तो अपनी बीबी से करवा सकता है। अगर कोई परेशानी न हो तो कराना भी जरूरी है।*
अब सोचने बाली बात यह है। इस्लाम मे खत्ना कराना मुसलमान का अहिम हिस्सा है। लेकिन बालिग होने के बाद इसपे भी पबन्दी लगाई है। किसी दूसरे को अपनी सतर दिखाना हराम है। और बगैर जरूरत खुद देखना भी सही नही है। इसलिए आप तमामी हजरात इस गुनाह से बचे और अपने घरवालो को भी बचाए अपनी माँ बहनो बेटियो को परदे मे रहने की नसीहत दे जिसकी बजह से हम सर उठाकर दचल सके।
*अल्लाह रब्बुल इज्जत अपने हबीब सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम के सदके मे हमे इस्लाम का सही मायनो मे पाबन्द बनाए*
आमीन सुम्मा आमीन
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 19*



【POST 10】लोटे या गिलाश को पाँच उँगलियो से पकड़ने का मसला*
*पानी से भरे लोटे या बरतन को पाँच उँगलियो से पकड़ने को बुरा जाना जाता है। और मकरूह ख्याल किया जाता है। हालांकि यह एक जाहिलाना ख्याल है। पाँच उँगलियो से अगर लोटे को पकड़ लिया जाए तो उससे पानी मे कोई खराबी नही आती ।*
आज कल कम इल्म रखने बाले लोग इसको गलत समझते है। और पानी को बे बजह बरबाद कर देते है। ऐसा करना मना है। बे बजह पानी बरबाद करना इस्लाम मे मना किया गया है। और हमे इससे बचना भी चाहिए हमारा इस्लाम तो हमे वुज़ू के लिए कम पानी इस्तमाल करने के लिए कहता है। लेकिन हम आज कल पानी को इतना ज्यादा फ्जूल खर्च कर रहे है। जिसका अन्दाजा लगाना मुश्किल है। जिसका सिला हमे खुद भुगतना पड़ता है। इसका नतीजा कई जगह सामने भी अ गया है। और कई जगह आने बाला है। कोशो दूर जब पानी लेने जाना पड़ता है। तब वह दिन याद आते है।
*काश हमने इतना पानी बरबाद न किया होता तो आज यह दिन नही देखते अरे भाई यह सब कोन सिखा रहा है। हमारा इस्लाम हमे इसकी तालीम दे रहा कोई और मजहब नही कुरबान जाओ प्यारे आका सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम पर जिसकी उम्मत मे हमे रबने पैदा किया इस्लाम ने हमे हर बात की तालीम दी है। इन्शा अल्लाह आगे हर बात आप तक पहुँचाई जाइगी आप हजरात से गुजारिश है। पानी की कीमत को समझे बे बजह पानी बरबाद न करे बे बजह पानी न बहाऐ क्योंकि इस्लाम हमे इसकी इजाजत नही देता है।*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 20*




POST 11】दूध पीते बच्चे का पेशाब पाक है या नापाक*
*कुछ लोग समझते है। कि दूध पीते बच्चो का पेशाब पाक है। हालांकि ऐसा नही। इन्सान का पेशाब मुतलकन नापाक है। चाहे वह दूध पीते बच्चो का हो या बड़ो का.*
📚 *(फतावा रजविया जिल्द 2 सफहा 146)*
आज कल आम तौर पर देखा जाता है। हम सुन्नी सहीउल अकीदा मुसलमान ज्यातर नापाक रहते है। इतना ही नही बलके खड़े होकर ही पेशाब करते नजर आते है। खड़े होकर पेशाब करने से जो पेरो पर छींटे आते है। बह छींटे जहन्नम मे जाने का रास्ता बनाते है। जिससे हम बचते नही है। नबी करीम सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम ने इरसाद फरमाये पेशाब के छींटो से बचो उची जगह बेठकर पेशाब किया करो क्यो कि यह गैर मुस्लिम का तरीका है। और जो छींटे हमारे पेरो पर आते है। उन छींटो की बजह से हमे तरह तरह की बीमारिया होती है। बह बीमारी जल्द ठीक भी नही होती है।
*दूसरी बात हम एसा करने से नापाक ही रहेगे अल्लाह न करे हमे इसी हालत मे मौत आ जाए। अब बताए क्या ऐसा किसी मुसलमान को गवारा होगा उसकी मौत नापाकी की हालत मे हुई है। उस इन्सान को अल्लाह भी न पसन्द करता है। जो हमेशा नापाक रहता है। और खड़े खड़े पैशाब करता है। मुसलमान नाम रख लेने से हम मुसलमान नही होगे हमे अपने मुसलमान होने की असल जिन्दगी को पहचान ना होगा तभी हम इस दुनिया मे और बाद मरने के कामयाब होगे।*
अगर हम मुसलमान पाक रहने की 24 घंटे आदत बना तो इसका फायदा भी हमे होगा हमेशा अगर पाक रहेगे तो अल्लाह के घर से जो हय्याअलशसलाह की आवाज आती है। एक दिन हमे हमारी पाकी की बजह से मस्जिद तक जरूर खीचके ले जाएगी इन्शा अल्लाह। हर मेरे मोमिन भाई से मेरी गुजारिश है। साफ रहे पाक रहे और अपने रब को अपनी पाकी से राजी करे क्यूकि हर मोमिन मुसलमान की सबसे बड़ी ताकत उसकी पाकी है।
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 20*



POST 12】हलाल जानवरो के पेशाब की छींटो का मसला*
बहुत लोग हलाल जानवरो के पेशाब की छींटे अगर बदन या कपड़े पर लग जायें तो वह खुद को नापाक ख्याल कर लेते हैं। यहाँ तक कि धोने या कपड़े बदलने का मौका न मिले तो नमाज छोड़ देते है।
*आला हजरत रदीअल्लाहो ताला अनहु फरमाते है।*
"बैलों का गोबर पेशाब नजासत खफीफा है। जब तक चहारूम (चौथाई) कपड़ा न भर जाए या कुल मिला कर इतनी पड़ी हो कि जमा करने से चहारूम कपड़े की मिकदार हो जाए, कपड़े नजासत का हुक्म न देंगे और उससे नमाज जाइज होगी और बिलफर्ज उससे से ज्यादा भी धब्बे हो और धोने से सच्ची मजबूरी यानी हरजे शदीद हो तो नमाज जाइज है।
📚 *(फतावा रजविया जिल्द 2 सफहा 169)*
📖 *हदीश शरीफ मे है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम ने फरमाया:*
*" जिसका गोश्त खाया जाता है। उसके पेशाब मे जायादा हरज नही। यानी उसका पेशाब ज्यादा सख़्त नापाक नही।*
📚 *(मिश्कात बाब तत्हीरिन्नजासत, सफहा53)*
खुलासा यह कि हलाल जानवरो मसलन गाय भैंस बैल घोड़ा ऊँट बकरी का पेशाब नजासते खफीफा (हल्की नापाकी) है। कपड़े या बदन के किसी उज्व *(part)* का जब तक चौथाई हिस्सा उसमें मुलव्विस न हो नमाज पढ़ी जा सकती है। और मामूली छींटे जो आम तौर पर किसानो के कपड़ो और बदन पर आ जाती है। जिन से बचना निहायत मुश्किल है उनके साथ तो बिला कराहत नमाज जाइज है और नमाज छोड़ने का हुक्म तो किसी सूरत मे नही चाहे ब-हालते मजबूरी गन्दगी कैसी ही और कितनी ही हो और धोने और बदलने की कोई सूरत न हो तो यूँही नमाज पढ़ी जाएगी नापाकी बहुत ज्यादा हो या कपड़े न हो तो नंगे बदन नमाज पढ़ी जाएगी यह जो जाहिल लोग मामूली मामूली बातो पर कह देते है कि ऐसी नमाज पढ़ने से तो न पढ़ना अच्छा। यह उनकी जहालत व गुमराही है। सही बात यह है। कि मजबूरी के वक़्त नमाज छोड़ने से हर हाल मे और हर तरफ नमाज पढ़ना अच्छा है।
*आपको फिर बता दू नमाज किसी भी हाल मे माफ नही है। कोई भी मजबूरी नमाज से बढ़कर नही हो सकती है। नमाज कायम करो इससे पहले हमारी और आपकी नमाज हो जाए अल्लाह तआला कहने सुनने से ज्यादा अमल की तोफीक अता फरमाए*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 20 21*



POST 13】परिन्दो की बीट (पाखाने) का मसला*
*जो परिन्दे ऊँचे नही उड़ते जमीन पर रहते हैं जैसे मुर्गी और बतख उनकी बीट या पाखाना इन्सान के पाखाने और पेशाब की तरह नजासते गलीजा यानी सख्त किस्म की नापाकी है। और जो परिन्दे ऊपर उड़ते हैं उनमे जो हलाल हैं उनकी बीट पाक है जैसे कबूतर फाख्ता मुर्गाबी मैना घरेलू चिड़िया गुलगुचिया वगैरा। जो परिन्दे हराम है। जैसे कौआ चील शिकरा बाज उनकी बीट खफीफा यानी (हल्की नापाकी) है। उसका वही हुक्म है जो हलाल जानवरो के पेशाब का है*
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हमे इस बात से यह समझना बहूत अहिम है। के हम थोड़ी सी नजासत लगने से कहने लगते है। कपड़े नपाक है नमाज नही पड पाएगे ऐसा कहना भी मुतलन गलत है। और गुनाह भी है हम आम तौर पर देखते है। हमने या हमसे किसी ने नमाज के लिए कहा तो हम साफ जबाब देते है। हम नही जा पाएगे तुम पड़ आऔ ऐसा कहना गुनाह है। शक्त मना है। हा अगर आपका इरादा नही है नमाज मे जाने का तो सामने बाले से ऐसा मत बोलो बल्की इस तरह से कह दो जिससे गुनाह भी न हो और सामने बाला आपके जबाब से मुतमइन हो जाए
*जेसे किसी ने हमसे नमाज को कहा तो उससे कहिए आप चले हम आते है। इन्शा अल्लाह अगर आपने इन्शा अल्लाह लगा दिया तो इतने समझदार आप भी इन्शा अल्लाह का मायना क्या होता है। लेकिन आपको यह बात बता दी तो इसका मतलब यह नही है। के अब ऐसा ही करा करेगे और गुनाह से भी बचेगे तो ऐसा सोचना भी गलत है। नमाज हर सूरत मे पड़ना ही पड़ेगी नमाज किसी भी सूरत मे माफ नही है। अल्लाह से मेरी दुआ है। हर मेरे मुसलमान भाई को सच्चा पक्का पंच वक्ता नमाजी बनाए और अपने रब को राजी करने की तोफीक अता फरमाए।*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 22*



POST 14】हैज व निफास वाली औरतो को मनहूस समझना*
*ज़च्चा पन और महावारी मे औरतो के साथ खाने पीने और उनका झूटा खाने मे हरज नही। हिन्दुस्तान मे जो बाज़ जगह उनके बरतन अलग कर दिये जाते है। उनके साथ खाने पीने को बुरा जाना जाता है या उनके बरतनो को नापाक ख्याल किया जाता है। यह हिन्दुओं की रस्मे है ऐसी बेहूदा रस्मो से बचना जरूरी है। अलबत्ता इस हालत मे मर्द का अपनी बीबी से हम बिस्तरी करना हराम है जिससे बचना हमे बहुत जरूरी है।*
मेने करीना ए जिन्दगी की लगभग 40 से ऊपर पोस्ट किया है। जिसमे शोहर बीबी की शोहबत करने के तरीके बयान किए है। अपनी बीबी के साथ इस्लामी कानून के तहित शोहबत करना इबादत मे सुमार होता है। यह लज्जत जन्नत की लज्जतो मे सुमार हे कुछ मुसलमान ऐसे होते है। जिन्हे दीन का इल्म नही होता है। यहा तक के बह शराब जेसी हराम चीज को पीकर अपनी बीबी के साथ शौहबत करते है। उनहे इससे कुछ मतलब नही रहता बीबी हैज से या नही उनहे अपनी ख्वाहिश हफस पूरी करने के लिए बीबी के साथ शोहबत करना है
*चाहे बीबी इसके लिए तैयार हो या न हो उन लोगो को बता दू इस तरीके से शोहबत करना गुनाह मे सुमार होता है और इसका असर हमारी औलाद पर पड़ता है जिससे अक्सर देखा जाता है। कही किसी का बच्चा कुपोसित पैदा हुआ किसी का पेर से अपाहिज हाथ से लूला आंख से अन्धा या शरीर मे कोई न कोई कमी जरूर होती है। या दिमागी संतुलन खराब रहता है। इस लिए हमे इस चीज से बचना चाहिए जब तक बीबी अपने हैज के दिन पार न करले तब तक शोहबत नही करनी चाहिऐ अल्लाह हमे इस गुनाह से बचने की तोफीक अता फरमाऐ ज्यादा बारीकी से जानने के लिए जो मेने करीना ए जिन्दगी की पोस्ट की है उन्हे पडिऐ इन्शा अल्लाह हर बात आपके समझ मे आ जाइगी।*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 22*



【POST 15】निफास की मुद्दत*
*अक्सर औरतो मे यह रिवाज है। कि बच्चा पैदा होने के बाद जब तक चिल्ला पूरा न हो। चाहे खून आना बन्द हो गया हो न नमाज पढ़े न रोज़ा रखें और न अपने को नमाज के लायक जाने यह महज जहालत है। जब निफास यानी खून आना बन्द हो जाए उसी वक़्त से नहा कर नमाज शुरू करदे। और अगर नहाना नुकसान करे तो तयम्मुम करके नमाज पढ़े। यानी निफास की मुद्दत चालीस दिन जरूरी ख़्याल करना गलतफहमी है। जब तक ख़ून आए तभी तक औरत निफास मे मानी जाएगी ख्वाह चन्द दिन ही हुए हो। हां अगर चालीस दिन गुजरने के बाद भी ख़ून आना बन्द न हो तो चालीस दिन के बाद नहा कर नमाज पढ़ेगी और जिन दिनो मे उस पर नमाज रोजा फ़र्ज है उन दिनों मे शौहर और बीवी का हमबिस्तर होना भी जाइज है।*
खुलाशा यह है। खास कर कम इल्म बाले लोग ऐसी हरकत करने से बाज नही आते है। आज के दौर भे बेसे भी देखा जाता है। मर्द हो चाहे औरत सबने नमाज को तर्क कर दिया है। जेसे तेसे हमारी कुछ बहिने नमाज को पढ़ना फर्जेएन समझती है। तो कुछ कम इल्म वाले उनको इस मुद्दत मे नमाजे तर्क करवाने मे नही चूकते नजर आते है। आपको बता दू नमाज किसी भी हाल मे माफ नही है। अगर खुद नमाज की अहिमयत नही समझती तो कम से कम अपनी बेटी और बहू को तो मत रोको हो सके तो उनको देख कर खुद भी अल्लाह की बारगाह मे हाथ फैलाना चालू करदो इससे पहले की तुम्हारी या हमारी नमाज पढ़ी जाए
*दुआ है। रब तबारक तआला से हम सबको दीन की सही समझ अता फरमा और हम सबको हमारी माँ बहनो को सच्चा पक्का नमाजी बनाए*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 22 23



POST 16】क्या बच्चे को दूध पिलानेसे औरत का वुज़ू टूट जाता है*
*बाज जगह जाहिलो मे यह मशहूर हो गया है। कि औरत अगर बच्चे को दूध पिलाए और बावुज़ू हो तो उसका वुज़ू टूट जाता है। यह महज़ गलत है। बच्चे को दूध पिलाना हरगिज़ वुज़ू नही तोड़ता और उसके बाद वुज़ू फिर से किये बगैर नमाज़ पढ़ सकती है। दोबारा वुज़ू करने कि हाजत नहीं।*
*📚गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 23*
बहुत सी छोटी बाते है। जो हमारी माँ बहनो को मालूम नही रहती जिसके चलते वो नमाज़ो को तर्क कर दिया करती है। और उसका गुनाह अपने सर पर लाद लेती है।
*आज कल हमारी माँ बहनो को ज्यादा तर देखी जाती है। जो फ़र्ज नमाजो को ज्यादा तवज्जो न देकर कई ऐसे कामो मे अपने आपको मशरूफ कर लेती है। जिससे उन्हें लगता है। इस काम को करने के बाद मेरी हर मुराद पूरी हो जाएगी जेसे सोलह सैय्यदो के रोजे कहानी यह और नूर नामा दस बीबियो की कहानी यह सब करना नजायज व हराम है। पर हमारी माँ बहने इनको करने मे इतना सबाब समझती है। अगर इनके नजदीक अजान भी हो रही हो तो इन्हे नमाज़ से फिर कोई वास्ता नही रहता इतनी मसगूल हो जाती है।*
इन किताबो को पढ़ने मे के फ़र्ज को भी तर्क करने मे इन्हे देर नही लगती मेरी बहनो अल्लाह रब्बुल इज्जत इसकी भी पकड़ करेगा फिर किस मुँह से अल्लाह के सामने जबाब दोगी के *खातूने जन्नत* की कनीज हूँ कह पाओगी अपने आपको नही कह पाओगी बल्की सर्म से अपनी नजरो को झुका लोगी अभी वक़्त है। मेरी बहनो इस्लाम की सच्चाई को सही तरीके से पहचानो इस्लाम हमे फर्ज नमाज़ो को अदा करने के बाद नफ्ल नमाजो का हुक्म देता है।
*दुआ है। रब तबारक तआला से हमे और हमारी माँ बहनो को अमल की तौफीक अता फरमाए और मसलके आला हजरत का पाबंद बनाए*
*आमीन सुम्मा आमीन या रब्बुल आलमीन*



POST 17】हर नापाकी पर गुस्ल करना जरूरी नही है।*
*अक्सर देखा गया है। कि लोगों से पूँछा आपने नमाज क्यू नही पढ़ी तो वह जबाब मे कहते है। हम नहाऐ हुऐ नही हैं।और होता यह है कि उन्होंने या तो पेशाब करने के बाद ढेले या पानी से इस्तिन्जा नही किया है। या कीचड़ वगैरा या कोई गन्दगी लग गई है और वह यह ख्याल ख्याल करते है इन सूरतो मे गुस्ल करना है।और नहाना जरूरी है। और बिला बजह नमाज छोड़ कर बड़े गुनहगार होते है।*
हालांकि इन सब सूरतो मे नहाने की जरूरत नही बल्कि बदन या कपड़े के जिस हिस्से पर नापाकी लगी हो उसको धोना या किसी तरह उस नापाकी को दूर कर देना काफ़ी है। या जिस कपड़े पर नापाकी है उस कपड़े को बदल दिया जाए। यह भी उस सूरत मे है। जब कि नापाकी दूर करने या उसको धोने पर कादिर हो वरना ऐसे ही नापाक कपड़ों मे पढ़ी जाऐ और अगर तीन चौथाई से ज्यादा कपड़ा नापाक हो तो नंगे बदन नमाज पढ़े और अगर एक चौथाई पाक है बाकी नापाक तो वाजिब है। कि उसी कपड़े से नमाज पढ़े।
📚 *(बहारे शरीअत,हिस्सा 3 सफहा 46)*
*मगर यह सब उसी वक्त है जब कि नापाकी को दूर करने या धोने की कोई सूरत न हो और बदन छुपाने को कोई और कपड़ा न हो*
इन मसाइल की तफसील जानने के लिए फतावा आलमगिरी,फतावा रजविया,बहारे शरीअत,कानूने शरीअत,निजामे शरीअत,वगैरा किताबें पढ़ना चाहिऐ।
*खुलासा यह है। कि नमाज किसी भी सूरत मे छोड़ने की इजाजत नहीं है और हर नापाकी पर नहाना फर्ज नही। गुस्ल फर्ज होने कि तो चन्द सूरते है। जैसे मर्द औरत के साथ हमबिस्तर होना दोनो मे से किसी एक को एहतिलाम होना या जोश और झटको के साथ मनी का खारिज होना औरतो को हैज व निफास आना तफसील के लिए दीनी किताबे पढ़े।*
नमाज किसी भी सूरत मे माफ नही है। नमाज पढ़ो नमाज कायम करो इससे पहले कि हमारी नमाज न पढ़ जाए
*लगालो अपने माथो पर नमाजो की वह निशानी क्यूकि*
*अन्धेरी कब्र मे हम सबको उजाले की जरूरत है।*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 23 24*



POST 18】नींद से वुज़ू कब टूटता है*?
अक्सर देखा गया है कि मस्जिद के अन्दर नमाज के इन्तजार मे लोग बैठे हैं और उन्हें नींद की झपकी आ गई या ऊँघने लगे तो वह समझते हैं हमारा वुज़ू टूट गया और वह अज खुद या किसी के टोकने से वुज़ू करने लगते हैं यह ग़लत है।
*_मसअला यह है कि ऊँघने या बैठे बैठे झोंक लेने से वुज़ू नही जाता ।_*
📗 *(बहारे शरीअत हिस्सा दोम सफहा 27)*
तिर्मिजी और अबू दाऊद की हदीस मे है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम के सहाबए किराम मस्जिद शरीफ मे नमाजे इशा के इन्तजार मे बैठे बैठे सोने लगते थे यहाँ तक कि उनके सर नींद की बजह से झुक झुक जाते थे फिर वह दोबाराबगैरवुज़ूकिये नमाज पढ़ लेते थे।
📕 *(मिश्कात मायूजिबुल वुज़ू सफहा 41)*
नींदसे वुज़ूतब टूटता है जब ये दोनो शर्ते पाई जाये।
*(1) दोनो सुरीन उस वक्त खूब जमे न हो।*
*(2) सोने की हालत गाफिल होकर सोने से मानेअ न हो।*
📗 *(फतावा रजविया जिल्द 1 सफहा 71)*
चित या पट या करवट से लेट कर सोने से वुज़ूटूट जाता है। उकङू बैठा हो और टेक लगा कर सो गया तो वुज़ू टूट जाएगा। पाँव फैला कर बैठे बैठे सोने से वुज़ू नही टूटता चाहे टेक लगाए हुए हो खड़े खड़े या चलते हुए या नमाज की हालत मे कयाम मे या रूकू मे या दो जानू सीधे बैठ कर या सज्दे मे जो तरीका मर्दो के लिए सुन्नत है उस पर सो गया तो वुज़ू नही जाएगा हाँ अगर नमाज मे नींद की वजह से गिर पड़ा अगर फौरन आंख खुल गईतो ठीक वरना वुज़ू जाता रहा बैठे हुए ऊँघने और झपकी लेने से वुज़ू नही जाता हैं।
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 24 25*



POST 19】क्या बीबी से हमबिस्तरी करने से सारे कपड़े नापाक हो जाते हैं।*
*काफी लोग यह समझते है। कि शौहर बीबी के हमबिस्तर होने से उनके कपड़े नापाक हो जाते हैं यह गलत है। बल्कि जिस कपड़े के जिस कपड़े के जिस हिस्से पर नापाकी लगी हो सिर्फ वही नापाक है। बाकी पाक है। कपड़े के नापाक हिस्से को तीन बार धो दिया जाए और हर बार धोकर खूब निचोड़ लिया जाए तो फिर उस कपड़े से नमाज पड सकते है। और जिस कपड़े पर नापाकी मसलन मर्द या औरत की मनी न लगी हो वह बगैर धोए पाक है।*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 25 26*
*_आपको पहले भी बताया गया बीबी के साथ जायज तरीके से शोहबत करना इबादत है। लेकिन न जायज तरीका अपनाने से गुनाह होगा है। जेसे खुले मे शोहबत करना यह तरीका जानवरो का है। अगर इस्लामिक कानून की तहित आपने अगर शोहबत की तो आपकी आने बाली नस्ल भी नेक शौहले पैदा होगी अल्लाह तबारक तआला से दुआ है। हम गुनहगारो को सही मायनो मे इस्लाम का पाबंद बना दे_*



POST 20】कुत्ते का बदन या कपड़े से छू जाने का मसअला*
*_कुछ लोग समझते है। कि कुत्ते का जिस्म अगर इन्सान के जिस्म या कपड़े से लग जाये तो वह नापाक हो जाता है। यह उनकी गलतफहमी है। कुत्ते का सिर्फ छू जाना नापाकी नही लाता हाँ अगर कुत्ते के जिस्म पर कोई नापाकी लगी हो और आप जानते है। कि वह नापाक चीज है। और वह उसके जिस्म से आपके लग गई तो जहाँ लगी वह जगह नापाक है। यूँही कुत्ते का पसीना और उसके मुँह की राल और थूक भी नापाक है। ये चीजें जहा लगी होगी उसे भी नापाक कर देगी। और ऐसी कोई सूरत न हो तो सिर्फ़ छू जाना और बदन से लग जाना नापाकी के लिए काफी नही है। और इस तरह सिर्फ छू जाने से कपड़ा और बदन नापाक नही होगा ।_*
_अलबत्ता कुत्ता पालना इस्लाम मे मना है। अगर शिकार या हिफाजत के लिए वाकई जरूरत हो शौकिया और बगैर ख़ास जरूरत के न हो तो इजाजत है। तफसील के लिऐ देखिये_
📗 *फतावा रजविया जिल्द 10 किस्त 1 सफा 196*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 26*



POST 21】क्या मिट्टी के ढीले से इस्तिन्जा करने के बाद पानी से धोना जरूरी है?*
*कुछ लोग समझते हैं कि ढीले से इस्तिन्जा करने के बाद अगर पानी से भी इस्तिन्जा नही किया और यू ही वुज़ू करके नमाज पढ़ ली तो नमाज नहीं होगी । हालाँकि ढीले से इस्तिन्जा करने बाद पानी से धोना जरूरी नही हाँ दोनो को जमा करना अफजल है। अगर सिर्फ ढीले से इस्तिन्जा करले काफी है। और सिर्फ पानी से करले तब भी काफी और दोनो को जमा करना बहतर व अफजल और यह हुक्म दोनो सूरतो के लिऐ है। चाहे पाखाना किया हो या पेशाब ।*
📖 *_हदीस मे है। एक मरतबा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम ने पेशाब फरमाया हजरत उमर फारूके आजम रदीअल्लाहो ताला अनहो एक बरतन मे पानी लेकर पीछे खड़े हो गये हूजूर ने पूँछा यह क्या है? अर्ज किया इस्तिन्जे के लिए पानी है। आपने इरशाद फरमाया मुझ पर यह वाजिब नही किया गया कि हर पेशाब के बाद पानी से पाकी हासिल करूँ।_*
📕 *(मिश्कात सफ़ा 44 सुनने अबू दाऊद जिल्द 1 सफ़ा 7)*
*खुलाशा यह है। कि पाखाना या पेशाब करने के बाद सिर्फ मिट्टी के ढेलों या पत्थरों वगैरह किसी भी नजासत को दूर या खुश्क करने वाली चीज से इस्तिन्जा कर लेना तहारत के लिए काफी है। पानी से धोना जरूरी नही हाँ अफजल व बेहतर है या अगर नजासत इस्तिन्जे की जगह से एक रूपया भर बदन के हिस्से पर फैल गई हो तो पानी से धोना जरूरी है।*
*इस मसअले को तफसील से जानने के लिए देखिए*
📗 *फतावा रजविया जिल्द 2 सफ़ा 165*
📍 *नोट:- जो लोग सफर मे रहते है। वह अपने साथ इस मकसद के लिए कोई पुराना कपड़ा रख लिया करे। यह पानी न मिलने की सूरत में तहारत के लिए बहुत काम आता है।*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 27 28*


POST 22】नमाज मे दाहिने पैर का अंगूठा सरकने का मसअला*
*_आमतौर से देहातों मे या छोटे कस्बो मे जहा कम इल्मी पायी जाती हो इस को बहुत बुरा जानते है। यहाँ तक कि नमाज मे दाहिने पैर का अंगूठा अगर थोड़ा सरक जाए तो नमाज न होने का फतवा लगा देते हैं।_*
*कुछ लोग इस अँगूठे को नमाज की किलिया या खूंटा कहते भी सुने गए है। यह सब जाहिलाना बातें है। किसी भी पैर का अँगूठा सरक जाने से नमाज मे कोई खराबी नही आती। हां बिला बजहा जानबूझ कर कोई हरकत करना ख्वाह जिस्म के किसी हिस्से से हो गलत व मकरूह है।*
*_हजरत अल्लामा मुफ्ती जलालुद्दीन साहब किब्ला अमजदी फरमाते है।_*
*दाहिने पैर का अँगूठा अपनी जगह से हट गया तो कोई हरज नही। हां मुकतदी का अँगूठा दाहिने या बाये या आगे या पीछे इतना हटा कि जिस से सफ मे कुशादगी पैदा हो या सीना सफ से बाहर निकले तो मकरूह है।*
📗 *(फतावा फैजुर्रसूल ज़िल्द 1 सफहा 370)*
*_खुलासा यह कि अवाम मे जो मशहूर है। कि नमाज़ में दाहिने पैर का अंगूठा अगर अपनी जगह से थोड़ा सा भी सरक जाए तो नमाज़ नही होतीयह उनकी जहालत और गलत फहमी है।_*
📍 *नोट:- इस गुनहगार ने अभी तक जितनी पोस्ट की है। सारी पोस्टो को पड़ने के बाद एक ही सबक मिलता है। नमाज कायम करो नमाज़ किसी भी हाल मे माफ नही है।*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 28*



POST 23】सज्दे में पैर की उंगलियों का पेट ज़मीन पर न लगना*
_इस मसअले से काफ़ी लोग ग़ाफ़िल है। और पैर की उंगलियों के सिर्फ़ सिरे जमीन से लग जाने को सज्दा समझते है। और कुछ का तो सिर्फ़ अंगूठे का सिरा ही जमीन से लगता है। और बाकी उंगलियाँ ज़मीन को छूती भी नही इस सूरत मे न सज्दा होता है। न नमाज़ ।_
*_सज्दे मे पैर की उंगलियों के सिर्फ़ सिरे नहीं बल्कि उंगलियों पर जोर दे कर किंब्ले की तरफ़ उंगलियों का पेट जमीन से लगाना चाहिए।_*
📚 *फ़तावा रजविया शरीफ़ जिल्द 1 सफ़हा 556 पर है।*
_सज्दे मे कम अज़ कम एक उँगली का पेट ज़मीन से लगा होना फ़र्ज है। और पाँव की अक्सर उंगलियों का पेट ज़मीन जमा होना वाजिब।._
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 29*
*ख़ुलासा:- यही है। नमाज़ एक अहिम इबादत है। जिसका करना हर मुसलमान मर्द औरत पर फ़र्ज है। लेकिन हम अपने कामो मे मसरूफ रहने के चक्कर मे इतनी जल्दबाजी से नमाज़ अदा करते है । के सुन्नत तो ठीक फ़र्ज को भी सही तरीके से अदा नही करते है। ऐसे नमाज़ियो के चाहिए नमाज़ अहिस्ता अदा करे यानी जल्दबाजी न करे और नमाज़ मे जितने फ़र्ज है। उनके साथ नमाज़ अदा करे अगर एक भी फ़र्ज छूट गया तो आपकी नमाज़ न हुई। और नमाज़ को फिरसे दोहराना होंगा अगर हम यह सोचे के हमने पीछे इस इमाम के कह दिया तो अब चाहें जेसी पढ़े इमाम जाने तो यह उन लोगों की ग़लतफहमी है।*
_इमाम के आमाल इमाम के साथ होगे और तुम्हारे आमाल तुम्हारे साथ होगे फिर इमाम नही आएगा तुम्हारी मग्फिरत करवाने तुम्हे खुद अपना हिसाब देना होंगा अभी भी वक़्त है। मुसलमानों सभल जाओ और अपनी पहचान को पहचानो औल सच्चे दिल से तौबा करलो और नमाज़ को सही मायनो मे सीखो क्यूँ कि पहला सबाल सिर्फ नमाज़ का ही होंगा अगर नमाज़ सही है। तो फिर आमाल नामा देखा जाएगा। अपने उल्माओ के पास जाकर थोड़ा वक़्त बिताया करों वह तुमसे कुछ मांग ते नही पर वह अपनी बातो से तुम्हारी जिन्दगींयो को जरूर सबारते है। इमामो का अदब करो और उनकी सोहबत मे भी रहा करो।_
*अल्लाह रब्बुल इज्जत हम सब मुसलमानो को सही मायनो मे नमाज़े पंच वक़्ता सही मायनो मे अदा करने की तौफीक अता फरमाए।*
*आमीन सुम्मा आमीन या रब्बुल आलमीन*



POST 24】अजान के वक़्त बातें करना*
*अज़ान के वक़्त बातों मे मशगूल रहना एक आम बात हो गई है। अवाम तो अवाम बाज़ खवास अहले इल्म तक इसका ख़्याल नही रखते जब कि हदीस शरीफ मे है।*
जो अज़ान के वक़्त बातों मे मशगूल रहे उस पर खात्मा बुरा होने का खौफ है।
*मसअला यह है। कि जब अज़ान हो तो उतनी देर के लिए न सलाम करे न सलाम का जबाब दे न कोई और बात करे यहाँ तक की कुर्आन मजीद की तिलावत मे अगर अज़ान कि आवाज़ आए तो तिलावत रोक दे और अज़ान गौर से सुने और जबाब दे रास्ता चलने अगर अज़ान की आवाज़ आए तो उतनी देर खड़ा हो जाए सुने और जबाब दे अगर चन्द अजाने सुने तो सिर्फ़ पहली का जबाब देना सुन्नत है। और सबका देना भी बहतर है।*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 29*
खुलासा यही है। अगर अज़ान हो तो बहतर यही है। खमोसी से उसका जबाब दिया जाए अगर अजान के वक़्त बन्दा बातो मे मसगूल रहता है। तो अल्लाह उसको अजाब देता है। यहा तक हदीसो मे आया है। जो अज़ान को जान बूझकर न सुनता होगा उसको मरते वक्त कलमा नसीब नही होगा जब अल्लाह तआला अज़ान के वक़्त कुर्आन की तिलावत बन्द करने का हुक्म देता है।
*तो अए इन्सान तुम्हारी बाते कुर्आन कि तिलावत से भी बड़ी हो गई क्या अरे अज़ान कि अहमियत तो वह है। जब अज़ान सुरू हो जाए तो तवाफे काबा भी रूक जाए अए इन्सान तू अपने दो कदम रक कर अल्लाह के कलाम को नही सुन सकता अज़ान का मकाम क्या है। यह हमे मालूम होना चाहिऐ बहतर यही है। जब भी अज़ान सुनो अपने हर काम को रोक दो चाहे कितना भी बड़ा काम हो अज़ान से बढ़कर नही हो सकता है। ब गौर सुनकर जबाब भी दिजिए। और सबाब के मुस्तहब बने।*



POST 25】तकबीर खड़े होकर सुनना*
जब तकबीर कहने बाला *हय्या अलस्साह* और *हय्या अललफलाह* कहे इमाम और मुकतदी जो वहाँ मौजूद है। उनको उसी वक़्त खड़ा होना चाहिए। मगर कुछ जगह शुरू तकबीर से खड़े होने का रिवाज पड़ गया है। और वह लोग इस रिवाज पर इतने अड़ जाते है। कि हदीसो और फिक्ही किताबो की परवाह नही करते और मनमानी ज़िद और हटधर्मी से काम लेते है।
फतावा आलमगीरी जो बादशाह औरंगजेब आलमगीर रहमतुल्लाह तआला अलैह के हुक्म से तकरीबन साढ़े तीन सौ साल पहले उस दौर के तकरीबन सभी बड़े बड़े उलमा ने मसवरे के साथ लिखीं उसमे है।
*मोअज्जिन जिस वक़्त हय्या अललफलाह कहे तब इमाम और मुकतदियो को खड़ा होना चाहिए यही सही तरीका है।*
📗 *(फतावा आलमगिरी ज़िल्द 1 सफहा 58)*
जहा शरीअत हो वहा तरीकत नही काम आती यही कानून है। इस्लाम का जो कानून बना है। उसे त कयामत तक कोई भी पोस्ट नहीं मिटा सकता और जो मिटाने कि नमुमकिन कोसिस करेगा वह खुद तवाह हो जाएगा इसलिए इस्लाम मे इल्म सीखना फर्ज है। जब तक दीन की सही जानकारी नही होगी तब तक हम गुमराही और गुनाह करते नजर आते रहेगे
*अल्लाह हमे सही मायनो मै दीन की समझ अता फरमाए*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 30*



POST 26】जुमे की दूसरी अज़ान मस्जिद के अन्दर देना*
*फिक्हे हनफी की तकरीबन सारी किताबों मे यह बात साफ़ लिखी हुई है। कि अज़ान मस्जिद मे न दी जाए। खुद हदीस शरीफ से भी यह साबित है। और किसी हदीस और किसी इस्लामी मीतबर व मुसतनद किताब मे यह नही है। कि कोई अज़ान मस्जिद के अन्दर दि जाए। मगर फिर भी कुछ जगह कुछ लोग जुमे कि दूसरी अज़ान मस्जिद के अन्दर इमाम के सामने खड़े होकर पढ़ते हैं। और सुन्नत पर अमल करने से महरूम रहते है।और महज़ ज़िद और हटधर्मी की बुनियाद पर रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम की प्यारी सुन्नत छोड़ देते है*
और कुछ मक़ामात पर पर तो लाउडस्पीकर मस्जिद के अन्दर रख कर पाँचों वक़्त अज़ान पढ़ते है। इस तरह अजान देने वाले और दिलवाने बाले सब गुनहगार है।
*फतावा आलमगीरी मे है।*
"मस्जिद मे कोई अज़ान न दी जाए"।
📗 *(आलमगीरी बाबुल अज़ान फस्ल 2 सफहा 55)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,30 31*
खुलासा यही है। मस्जिद के अन्दर कोई भी अज़ान न दी जाए जो ऐसा करता है। या करवाता है। वह दोनो गुनहगार होगे अल्लाह से दुआ है। कहने सुनने से ज्यादा हम सबको अमल की तौफीक अता फरमाए
*आमीन सुम्मा आमीन या रब्बुल आलमीन*



POST 27】क्या दाहिनी जानिब से इकामत कहना जरूरी है।*
आज कल यह जरूरी ख़्याल किया जाता है। कि इकामत या तकबीर जो जमाअत क़ाइम करने से पहले मुअज्जिन लोग पढ़ते है उस मे पढ़ने वाला इमाम के पीछे या दाहिनी ओर हो और बायें जानिब खड़े होकर तकबीर पढ़ने को ममनूअ ख़्याल करते है। हालाकि तकबीर बायी तरफ से पढ़ना भी मना नही है।
*सय्यिदी आला हजरत फरमाते है।*
*"और इकामत की निसबत भी तअय्युने जेहत कि दाहिनी तरफ हो या बाई तरफ़ फ़कीर की नजर से न गुजरी-------- हाँ इस कदर कह सकते हैं। कि मुहाजात इमाम फिर जानिबे रास्त मुनासिब तर है।*
📗 *(फतावा रजविया जिल्द 2 सफहा 465)*
खुलासा यह कि इमाम के पीछे या दाहिनी तरफ़ से पढ़ना ज्यादा बहतर है। लेकिन बाई तरफ़ से पढ़ना भी जाइज़ है। और इससे नमाज मे कोई कमी नही आती और दाहिनी तरफ़ को जरूरी ख़्याल करना गलतफहमी है।
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 31*
📍 *नोट :- आप हजरात के पास अभी तक जितनी भी पोस्ट पेश कि गई है। सब पोस्टो मे तकरीबन नमाज* से जुड़ी हुई है। आप तमामी हजरात से मेरी मोअदबाना गुजारिस है। नमाज किसी भी हाल मे माफ नही है। नमाज पढ़ो नमाज पढ़ो इससे पहले हमारी नमाज़ पढ़ी जाए अल्लाह हम सबको कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक अता फरमाए
*आमीन सुम्मा आमीन या रब्बुल आलमीन*



POST 28】नमाजी के सामने से गुजरना मना है हटना गुनाह नहीं*
आमतौर से मस्जिदों में देखा गया है। कि दो शख्स आगे पीछे नमाज पढ़ते हैं यानी एक पिछली सफ मे और दूसरा उसके सामने अगली सफ में नमाज़ पढ़ने वाला पीछे वाले से पहले फारिग हो जाता है। और फिर उसकी नमाज़ ख़त्म होने का इन्तजार करता रहता है। कि वह सलाम फेरे तब यह वहाँ से हटे और इससे पहले हटने को नमाजी के सामने से गुजरना ख़्याल किया जाता है। हालांकि ऐसा नही है।आगे नमाज़ पढ़ने वाला अपनी नमाज़ पढ़ कर हट जाए तो उस पर गुजरने का गुनाह नही है।
*खुलासा यह कि नमाजी के सामने से गुजरना मना है। हटना मना नही है। सदरूश्शरीआं हजरत मौलाना अमजद अली साहब आज़मी अलैहिर्रहमह फरमाते है।*
" अगर दो शख्स नमाजी के सामने से गुजरना गुजरना चाहते हों और सुतरह को कोई चीज़ नही तो उन मे से एक नमाजी के सामने उसकी तरफ़ पीठ करके खड़ा हो जाए और दूसरा उसकी आड़ पकड़ के गुजर जाए। फिर वह दूसरा उसकी पीठ के पीछे नमाजी की तरफ पुश्त करके खड़ा हो जाए और गुजर जाए वह दूसरा जिधर से आया उसी तरफ हट जाए" ।
📗 *(आलमगीरी, रद्दुलमुहतार, बहारे शरीअत, हिस्सा सोम सफहा 159)*
*इससे जाहिर है। कि गुजरने और हटने मे फर्क है। और गुजरने का मतलब यह है। कि नमाजी के सामने एक तरफ से आए और दूसरी तरफ़ निकल जाए यह यकीनन नाजाइज व गुनाह है। और आखर नमाज़ी के सामने बैठा है। और किसी तरफ़ हट जाए तो यह गुजरना नही है। और इससे कोई गुनाह नही।*
अगर नमाजी के सामने से गुजरने का गुनाह इन्सान को पता चल जाए तो उसकी रूह काप जाए अक्सर जुमआ कि नमाज के लिए मस्जिदों मे देखा जाते है। लोग आते है। और पीछे की शफ मे बैठ जाते है। जिनकी बजह से आगे बाली सफे खाली रहती है। फिर बाद मे आने बाले लोग उन्हें नाक कर आगे की तरफ जाते है। यह भी गुनाह है। बल्कि मस्जिद मे जो शख्स सबसे पहले आता है। अल्लाह के फरिश्ते उसकी सबसे पहले आने की बात को लिख लिया करते है। और उसका सबाब उसे अता किया जाता है। जो दूसरे तीसरे चौथे बारी-बारी आते जाते है। अल्लाह के फरिश्ते लिखते जाते है। फलाह शख्स इतने नम्बर पर फला शख्स इतने नम्बर पर इसका सबाब अल्लाह उन्हें अता करता है। जो शख्स सबसे पहली सफ मे आकर बैठता है। अल्लाह उसे एक ऊँट करबानी करने ह का सबाब अता करता है। और जो दूसरी सफ मे बैठ ता है। उसे एक भैंस का सबाब और जो तीसरी शफ मे बैठता है। उसे एक बकरे का सबाब इसी तरह बारी बारी सबाब कमता जाता है। जेसे ही खुतवा यानी दूसरी अजान का टाइम हो जाता है। बेसे ही फरिश्ते लिखना बन्द कर देते है। और ब अदब खुतबा सुनते है। क्यूँ कि खुतवा सुनना वाजिब है। आपने देखा खुतवा को फरिश्ते भी अदब के साथ बैठ कर सुनते है। लेकिन हम लोग खुतवे के दौरान बातो मे मसगूल रहते है। जो शख्स खुतवा नही सुनता है। वह अल्लाह की रहमत से महरूम रहता है। और गुनहगार होता है।
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 32*
*अल्लाह रब्बुल इज्जत अपने हबीब सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम के सदके कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक अता फरमाए*



POST 29】नमाज मे इमाम के लिए लाउडस्पीकर का इस्तमाल*
*नमाज़े बाजमाअत मे इमाम के लिए लाउडस्पीकर के इस्तेमाल का रिवाज आम होता जा रहा है। और लोगो ने नमाज़े बाजमाअत मे इमाम लिए जबाब के पहलू भी तैयार कर लिये और बहस व मुबाहिसे के जरिए अपने आराम का रास्ता ढूंढ लिया। और यह भी न सोचा कि नमाज़ का इस्लाम मे क्या मकाम है। बेशक नमाज़ इस्लाम की पहचान है। बेशक नमाज़ जाने इस्लाम रूहे इस्लाम अलामते अहले इमान है। बेशक नमाज़ पैगम्बरे। इस्लाम की आँखो की ठन्डक है और उनके मुबारक दिल का आराम है। तो कम से कम इस अहम इस्लामी फरीजे और ऐसी इबादत को जिसमे बन्दा हर हाल से ज्यादा अपने रब से करीब होता है। साइन्सी ईजादात और जदीद टेक्नालॉजी के हवाले न करके उस अन्दाज़ पर रहने दीजिये जैसा कि जमानए पाके रसूले गिरामी वकार अलैहिस्सलातु वस्सलाम मे होती थी मगर अफसोस सद अफसोस नमाज़ मे लोगो ने लाउडस्पीकर का इस्तमाल करके जमानए नबवी की यादो को भुला दिया। लम्बी लम्बी कतारों मे मुकब्बिरो की गूंजती हुई अल्लाहु अकबर की सदाओ को ख्वाबे देरीना बना दिया।*
_जदीद तहकीकात सै भी यह बात खूब जाहिर हो चुकी है। लाउडस्पीकर से निकलने वाली आवाज़ इमाम की अस्ल आवाज़ नही होती। तो जाहिर है। कि जो लोग उस ख़ारिजी आवाज़ पर इक्तिदा करते हैं। उन सब की नमाज़ ख़राब हो जाती है। कभी कभी दरमियान मे लाउडस्पीकर बन्द हो जाता है। और उसी पर भरोसा करके उसके आशिकों ने मुकब्बिरो का इन्तजाम भी किया होता है। तो नमाज के साथ खिलवाड़ हो कर रह जाता है। मगर माइक्रोफोन के दीवानों को इस सबसे क्या मतलब उनके नजदीक ज्यादा लोगो को नमाज़ पढ़ाने के लिए सेवाएं लाउडस्पीकर के और कोई ज़रिया ही नही रह गया है।_
*_सही बात यह है कि जिन उलमा ने नमाज़ मे लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को नाजाइज करार दिया उन्होने नमाज़ की शान को बाक़ी रखा उसके मकाम को समझा और जिन्होंने छूट दे दी उन्होंने नमाज़ की अहमियत को ही नही समझा और वह मौलवी होकर भी नमाज़ की लज्जत से नाआशना और उसकी बरकतो हिकमतो से महरूम रहे।_*
📚 *(गलत फहमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 33 34)*



POST 30】मगरिब और इशा की नमाज़ कब तक पढ़ी जा सकती है?*
*काफी लोग थोड़ा सा अंधेरा होते ही यह ख़्याल करते हैं की मग़रिब की नमाज का वक़्त निकल गया अब नमाज कज़ा हो गई और बे बजह नमाज़ छोड़ देते है। या कज़ा की नियत से पढ़ते है मग़रिब की नमाज़ का वक़्त सूरज डूबने के बाद से लेकर शफ़क़ तक है और शफ़क़़ उस सफेदी का नाम है जो पश्चिम की तरफ़ सुर्खी डूबने के बाद उत्तर दक्खिन सुब्हे सादिक की तरह फैलती है।*
हाँ मग़रिब की नमाज़ जल्दी पढ़ना मुस्तहब है और बिला उज्र दो रकअतो की मिकदार देर लगाना मकरूहे तनजीही यानी खिलाफे औला है। और बिला उज्र इतनी देर लगाना जिस में कसरत से सितारे जाहिर हो जायें मकरूहे तहरीमी और गुनाह है।
📗 *(अहकामे शरीअत सफहा 137)*
*हाँ अगर न पढ़ी हो तो पढ़े और जब तक इशा का वक़्त शुरू नही हुआ है। अदा ही होगी कज़ा नही और यह वक़्त सूरज डूबने के बाद कम से कम एक घंटा अट्ठारह मिनट और ज्यादा से ज्यादा एक घंटा पैतीश मिनिट है। जो मौसम के लिहाज से घटता बढ़ता रहता है। यानी एक घंटे के ऊपर 18 से 35 मिनट के दरमियान घूमता रहता है। इशा कि नमाज़ के बारे भे भी कुछ लोग समझते हैं कि उसका वक़्त 12 बजे तक रहता है। यह भी गलत है। इशा की नमाज का वक़्त फज्रे सादिक तुलूअ होने यानी सहरी का वक़्त खत्म होने तक रहता है। हाँ बिला बजह तिहाई रात से ज़्यादा देर करना मकरूह है।*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 34 35*
खुलासा यही है। नमाज किसी भी सूरत मे माफ नही है। नमाज पढ़ो नमाज़ कायम करो इससे पहले हमारी तुम्हारी नमाज़ पढ़ी जाए अल्लाह हम सबको कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक अता फरमाए
*आमीन सुम्मा आमीन या रब्बुल आलमीन*



POST 31】मस्जिद मे भीख मांगना*
आज कल मस्जिदों में सबाल करने और भीख मांगने का रिवाज बहुत बढ़ता जा रहा है। अमूमन देखा जाता है कि इधर इमाम साहब ने सलाम फेरा उधर किसी न किसी ने और बाज़ औकात कई-कई लोगों ने अपनी अपनी आपबीती सुनाना और मदद करो भाईयो कि पुकार लगाना चालू कर दिया हालांकि यह निहायत गलत तरीका है। ऐसे लोगो को इस हरकत से बाज़ रखा जाए और मस्जिदों मे भीख मांगने को सख्ती से रोका जाए।
*सदरूश्शरीआं हजरत मौलाना अमजद अली साहब अलैहिर्रहमह फरमाते है।*
"मस्जिद मे सबाल करना हराम है। और उस साइल को देना भी मना है।
📗 *(बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफहा 184)*
*इसका तरीका यह होना चाहिए कि ऐसे लोग या तो बाहर दरवाज़े पर सबाल करे या इमामे मस्जिद वगैरह किसी से कह दे कि वह उनकी जरूरत से लोगो को आगाह करदें।*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 35*
यह हकीकत है। जो हर मस्जिदों मे आम तौर पर देखने को मिलती है। और मस्जिद के जिम्मेदार लोग इनको मना भी नबी करते है। मदद करो मदद करना अच्छा और नेक काम है। पर अल्लाह के घर मे अल्लाह से मांगो जो मालिके कुन है। कोई इन्सान या आम आमदी किसी की चाहते हुए भी परेशानी को दूर नही कर सकता इसका इख्तियार केवल अल्लाह रब्बुल इज्जत के हाथ मे तो क्यूँ न हम अपनी परेशानी अल्लाह से रोकर करे क्यूँ न हम अल्लाह के प्यारे महबूब सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम के सदके मे मागे जिनके सदके मे अल्लाह ने हमे पैदा किया है। जिनके सदके मे दुनिया को बनाया है। अरे नदान इन्सान अल्लाह रब्बुल इज्जत अपने बन्दो से सत्तर माँऔ के बराबर प्यार करता है। उसकी रहमत से कभी महरूम नही रहता कोई बस शुक्र करना सीख जाऔ इसका अज्र मिलना भी पता हो जाएगा।
*दुआ है। पाक परबर दिगार अल्लाह रब्बुल इज्जत से किसी और के आगे झुखना न शिखाए शिवाए अल्लाह के*



POST 32】पंजवक़्ता नमाज मे सुस्ती और वजीफे पढ़ना*
काफी लोग देखे गए वह नमाजो का ख्याल नहीं रखते और पढ़ते भी है। तो वक़्त निकाल कर जल्दी जल्दी या बे जमाअत के। और वजीफा और तस्बीहो मे लगे रहते है। उनके वजीफे उनके मुँह पर मार दिये जाएगे क्यूंकि जिसकी फर्ज पूरी न हो उसका कोई नफ्ल कबूल नही। इस्लाम मे सबसे बड़ा वजीफा और अमल नमाज़े बाजमाअत की अदाएगी है।
*(आला हजरत फरमाते है।)*
"जब तक फर्ज जिम्मे बाक़ी रहता है। कोई नफ्ल कबूल नही किया जाता।
📕 *(अलमलफूज, हिस्सा अव्वल, सफहा 77)*
हदीश शरीफ मे है। कि *हजरते उमर रदीअल्लाहो ताला अनहु* एक दिन फज्र की जमाअत मे *हजरते सुलेमान बिन अबी हसमा रदीअल्लाहो ताला अनहु* को नही पाया दिन मे बाज़ार जाते वक़्त उनके घर के पास से गुजरे तो उनकी माँ से पूँछा कि आज *सुलेमान* जमाअत मे क्यूँ नही थे। उनकी वालिदा हजरते शिफा ने अर्ज किया कि रात भर जाग कर इबादत करते रहे फज्र की जमाअत के वक़्त नींद आ गई और जमाअत मे शरीक होने से रह गए। *अमीरूल मोमनीन हजरत उमर फ़ारूखे आजम रदीअल्लाहो ताला अनहु* ने फरमाया कि मेरे नजदीक सारी रात जाग कर इबादत करने से फज्र की जमाअत मे शरीक होना ज्यादा अच्छा है।
📗 *(मिश्कात बाबुल जमाअत सफहा 97)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 36*
*खुलासा :-* यही है। आज कल कुछ लोग फ़र्ज से ज़्यादा नफ़्ल को अहिमयत देते है। और वजीफात कलमात मे ज़्यादा रूज़ू देते है। उन अपने इस्लामी भाईयो से कहना चाहूँगा पहले अपने फ़र्ज के अरकान को पूरा करे फिल नफ़्ल नमाज़ो और कलिमात और वजीफात पढ़ा करे लेकिन बहतर यही है। नफ़्ल नमाज़ अपने घर मे पढ़ी जाए तो अफजल है। मस्जिद मे नफ़्ल ईबादत न ही करे तो बहतर है। हा अगर एतिकाफ़ पर है। तो मस्जिद मे ही करे। लेकिन फ़र्ज नमाज़ो से ज़्यादा नफ़्ल नमाज़ो को अहिमयत देना उनकी सबसे बड़ी ग़लतफ़हमी है। क्यूँ कि जब तक फ़र्ज नमाज़ आपकी मुकम्मल न होंगी तब तक नफ़्ल नमाजे आपकी कोई काम न आएगी।
*अल्लाह रब्बुल इज्जत हम गुनहगारो को इस माहे मुबारक महीने का सदका अता फरमा*
*आमीन सुम्मा आमीन या रब्बुल आलमीन*



POST 33】जुमे के खुतबे मे उर्दू अशआर पढ़ना*
*जुमे का खुतबा सिर्फ अरबी ज़बान मे पढ़ना सुन्नत है। किसी और ज़बान मे खिलाफे सुन्नत। उर्दू अशआर अगर पढ़ना हो तो वह अजाने खुतबा से पहले पढ़ लिये जायें। दूसरी अज़ान के बाद जो खुतबा पढ़ा जाता है। यह अरबी के अलावा और किसी जबान मे पढ़ना सुन्नत के खिलाफ है।*
📗 *(फ़तावा रजविया जिल्द 3 सफहा 751)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 37*
_आप सभी हजरात बखूबी जानते है। खुतवा को सुनना बाजिब है। जो खुतवे के दौरान बातो मे मसगूल रहता है। अल्लाह तआला की बारगाह मे ऐसे शख्स की शख्त पकड़ होगी बाज़ धो तो यहा तक देखे जाते है। अगर खुत्बे की अज़ान हो जाती है। और इमाम खुतबा पढ़ना सुरू कर देता है। इसके बाद भी लोग सुन्नतो को पढ़ने मे मसगूल रहते है। जो मना फरमाया है। खुतबे का अदब करना खुतबे को ब गौर सुनना दो जानू बैठना यह खुतबा सुनने के आदाब है। जिससे हम जेसे कम इल्म बाले लोग महरूम रह जाते है। और गुनाह मे मुबतला हो जाते है।_
*अल्लाह तआला से दुआ है। हमे सही मायनो भे शरीअत का पाबंद बनाए आमीन सुम्मा आमीन या रब्बुल आलमीन*



POST 34】इमाम का मेहराब में या दो सुतूनों के दरमियांन खड़ा होना*
कहीं कहीं देखने मे आता है। कि इमाम मेहराब मे अन्दर है। और मुक़तदी बाहर यह खिलाफे सुन्नत और मकरूह है। *सदरूश्शरीआं हजरत मौलाना अमजद अली साहब अलैहिर्रहमह* फरमाते है।
इमाम को तन्हा मेहराब मे खड़ा होना मकरूह है। और अगर बाहर खड़ा हो सिर्फ सज्दा मेहराब मे किया या वह तन्हा न हो बल्कि उसके साथ कुछ मुक़तदी भी मेहराब मे साथ हों तो कुछ हर्ज नही, यूँ ही अगर मुक़तदीयो पर मस्जिद तंग हो तो भी मेहराब मे खड़ा होना भी मकरूह है।
📗 *(बहारे शरीअत हिस्सा सोम सफ़ा 174 बहवाला दुर्रे मुख़्तार व आलमगीरी)*
इसका तरीका यह है। कि इमाम का मुसल्ला थोड़ा पीछे हटा दिया जाये और बह थोड़ा पीछे हट कर इस तरह खड़ा हो कि देखने मे महसूस हो कि वह मेहराब या दरो में अन्दर नही है। बल्कि बाहर खड़ा है। फिर चाहे सज्दा अन्दर हो, नमाज़ दुरूस्त हो जायेगी।
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 37*



【POST 35】नसबन्दी कराने वाले की इमामत का हुक्म?*
*नसबन्दी कराना इस्लाम मे हराम है। लेकिन कुछ लोग ख़्याल करते है। कि जिसने नसबन्दी करा ली अब वह जिन्दगी भर नमाज़ नही पढ़ा सकता। हालांकि ऐसा नही है। बल्कि इस्लाम मे जिस तरह और गुनाहों की तौबा है। उसी तरह इस गुनाह की भी तौबा है।*
यानी जिस की नसबन्दी हो चुकी है अगर वह सच्चे दिल से एलानिया तौबा करे और हराम कारियों से रूके तो उसके पीछे नमाज़ पढ़ी जा सकती है।
📕 *(फतावा फैजुर्रसूल जिल्द 1 सफहा 277)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 38*
*खुलासा यही है। चाहे मस्जिद के इमाम हो या हमारे इस्लामी भाई इस्लाम मे नसबन्दी को हराम कहा तो हराम है।*
एक वक़्त हम मुसलमानो पर ऐसा आया जब सरकार ने नसबन्दी करने का ओर्डर दे दिया मर्दो की नसबन्दी का ऐलान शियासते हाजरा ने कर दिया जिसमे उस टाइम के हमारे बड़े बड़े उल्माऔ की कलम रूक गई लेकिन कुर्बान जाऔ हमारे *मुफ्ती ए आजम हिन्द सैय्यदी सरकार मुस्तफा रजा खान अलहिर्रहमा* जिन कलम उढी तो अच्छे अच्छो की कलमे छूटती नजर आई और एलान कर दिया अए शियासते हाजरा नसबन्दी इस्लाम मे हराम हराम है। जिसको तु तो क्या त कयामत तक कोई नही बदल सकता यह बरेली है बरेली यहा सरकारे तो बदल दी जाती है। पर शरीअत का कानून नही बदलता आप हजरात ने सुना भी होगा और जो उस टाइम मे हयात थे उन्होने देखा भी होगा यह सान थी हमारे *मुफ्ती ए आजम हिन्द* की



POST 36】क्या जिससे जाती रन्जिश हो उसके पीछे नमाज़ नही होंगी*
अकसर ऐसा होता है। कि इमाम और मुक़तदी के दरमियां कोई दुनियावी इख्तिलाफ हो जाता है। जैसे आज कल के सियासी समाजी खानदानों और बिरादरियों के इख्तिलाफात और झगड़े तो इन वुजूहात पर लोग उस इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ना छोड़ देते है। कि जिससे दिल मिला हुआ न हो उसके पीछे नमाज़ नही होगी यह उनकी ग़लतफहमी है। और वो लोग धोके मे है।
*सही बात यह है। कि जो इमाम शरई तौर पर सही हो उसके पीछे नमाज़ दुरूस्त है। चाहे उससे आपका दुनियाबी झगड़ा ही क्यूँ न चलता हो बातचीत दुआ सलाम सब हो फिर भी आप उसके पीछे नमाज़ पढ़ सकते है। नमाज़ की दुरूस्तगी के लिए जरूरी नही है। कि दुनियाबी एतवार से मुक़तदी का दिल इमाम से मिला हुआ हो हां तीन दिन से ज़्यादा एक मुसलमान के लिए दूसरे मुसलमान से बुराई रखना और मेलजोल न करना शरीअत मे सख़्त नापसन्दीदा है।*
📖 _हदीस मे है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम ने फरमाया:_
*मुसलमान के लिए हलाल नही कि अपने भाई को तीन दिन से ज़्यादा छोड़ रखे। जब उससे मुलाक़ात हो तो तीन मरतबा सलाम करले अगर उसने जबाब नही दिया तो इसका गुनाह भी उसके जिम्मे है।*
📕 *(अबू दाऊद किताबुल अदब जिल्द 2 सफ़ा 673)*
लेकिन इसका नमाज़ व इमामत से कोई तअल्लुक नही रन्जिश और बुराई मे भी इमाम के पीछे नमाज़ हो जायेगी और जो लोग जायी रन्जिशों के बिना पर अपने नफ्स और जात की खातिर इमामो के पीछे नमाज़ पढ़ना छोड़ देते हैं ये खुदा के घरो को वीरान करने वाले और दीने इसालाम को नुकसान पहुंचाने वाले है। इन्हें खुदाए तआला से डरना चाहिए। मरने के बाद की फिक्र करना चाहिए। कब्र की एक एक घड़ी और कियामत का एक एक लम्हाबड़ा भारी पड़ेगा।
*आला हजरत इमामे अहले सुन्नत रदीअल्लाहो ताला अनहु फरमाते है।*
जो लोग बराहे नफ्सानियत इमाम के पीछे नमाज़ न पढ़े और जमाअत होती रहे और शामिल न हों वो सख़्त गुनहगार है।
📗 *(फ़तावा रजविया जिल्द 3 सफ़ा 221)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 38 39*



POST 37】मुक़तदी के सर पर इमामा और इमाम के सर पर न हो*
*अगर मुक़तदी सर पर इमामा जिसे साफ़ा और पगड़ी भी कहते हैं। बाँध कर नमाज़ पढें और इमाम के सर पर पगड़ी न हो तो इसको कुछ लोग बहुत बुरा जानते हैं। बल्कि कुछ यह समझते है कि इस सूरत मे मुक़तदी की नमाज दुरूस्त नही हुई यह ग़लत बात है।*
अगर इमाम के सर पर पगड़ी न हो और मुक़तदी के सर पर हो तो मुक़तदी की नमाज़ दुरूस्त और सही हो जायेगी *आला हजरत इमाम अहमद रजा खांन रदीअल्लाहो ताला अनहु* से यह मसअला मालूम किया गया तो आपने फरमाया बिला तकल्लुफ दुरूस्त है।
📗 *फ़तावा रज़विया जिल्द 3 सफ़ा 273 इरफ़ाने शरीअत शफा 4*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 40*



POST 38】इमाम के लिए मुक़र्रिर होना कितना जरूरी है*
*आज कल काफ़ी जगह अवाम मस्जिद मे किसी को इमामत के लिए रखते है। तो उस से तकरीर कराते हें अगर वह धूम धड़ाके से ख़ूब कूद फांद कर हाथ पांव फेंक कर जोशीले अन्दाज़ मे जज़्बाती तकरीर कर दे तो बड़े खुश होते है। और उसको इमामत के लिए पसन्द करते हैं।यहां तक कि बाज़ जगह तो खुश इलहानी और अच्छी आवाज़ से नाते और नज्में पढ़ दे तो उसको बहुत बढ़िया इमाम ख़्याल करते है। इस बात की तरफ़ तवज्जोंह नसी देते कि उसका कुर्आन शरीफ गलत या सही । उसको मसाइल दीनिया से बकद्रे जरूरत वाक़फियत है या नही। और उसका किरदार व अमल मनसबे इमामत के लिए मुनासिब है या नही।*
अगरचे तकरीर व बयान व ख़िताबत अगर उसूल व शराइत के साथ हो तो उससे दीन को तक़वियतहासिल होती है। और हुई है। लेकिन इसमे भी कोई शक नही कि दीनदारी तक़वा शिआरी और खौफे खुदा अमूमन कम सुखन और सन्जीदा मिजाज लोगो मे ज़्यादा मिलता है। ज़बान जोर और मुँह के मज़बूत लोग सब काम मुँह और ज़बान से ही चलाना चाहते है। और इस्लाम गुफ्तार से ज़्यादा किरदार से फैला है। और आजकल के ज़्यादातर मौलवियो और इमामो के लिए बजाए तकरीर व खितावत के जिम्मेदार उलमाए अहलेसुन्नत की आम फहम अन्दाज़ मे लिखीं हुई किताबें पढ़ कर अवाम को सुनाना ज़्यादा मुनासिब और बेहतर है। खुलासा यह कि आज कल बाज़ जगह लोग जो इमाम के लिए मुक़र्रिर होना जरूरी ख़्याल करते है यह लोग गलती पर है।
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 40 41*



POST 39】इमाम का मुक़तदियो से ऊंची जगह खड़ा होना*
*_कई जगह देखा गया है। कि नमाज़ मे इमाम मुक़तदियो से ऊंची जगह खड़ा होता है। मसलन मस्जिद मे अन्दर की कुर्सी ऊँची है। और बाहर के हिस्से कि नीची है। और इमाम का मुसल्ला अन्दर के फर्श पर है। मुक़तदी बाहर या दोनो अन्दर है। लेकिन इमाम के मुसल्ले के लिए फर्श ऊँचा कर दिया गया है। तो यह मकरूह है। और इस तरह नमाज़ पढ़ने मे नमाज़ मे कमी आती है।_*
*मसअला यह है कि इमाम का अकेले बुलन्द और ऊँची जगह खड़ा होना मकरूह है। और ऊँचाई का मतलब यह है। कि देखने से अन्दाज़ा हो जाये कि इमाम ऊँचा है। और मुक़तदी नीचे और यह फर्क मामूली हो तो मकरूहे तनजीही और अगर ज़्यादा हो तो तहरीमी है। हाँ अगर पहली सफ़ इमाम के साथ और बराबर मे हो बाक़ी सफ़े नीची हो तो कुछ हर्ज नही यह जाईज है। इस मसअले की तफसील जानने के लिए फ़तावा रज़विया जिल्द 3 सफ़ा 415 देखना चाहिए। इस मसअले का ख़ास ध्यान रखना चाहिए क्यूंकि खुद हदीस शरीफ मे भी इससे मुताल्लिक मरवी है।*
हदीस :- *हजरते हुजैफा रदियल्लाहु तआला अन्हु* से मरवी है कि *रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* ने फरमाया कि जब इमाम नमाज़ पढ़ाये तो मुक़तदियो से ऊँची जगह खड़ा न हो।.
📘 *(अबू दाऊद जिल्द 1 सफ़ा 88)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 41 42*



POST 40】 नमाज़ में नफ़्लो को फ़र्ज़ व वाजिब समझना*
*नमाज़े ज़ुहर नमाज़े मगरिब और नमाज़े इशा के आखिर मे और इशा में वित्रों से पहले दो रकअत नफ्ल पढने का रिवाज़ है और उनको पढने में हिकमत व सवाब है । लिहाजा पढ लेना ही मुनासिब है लेकिन इन नफ्लो को फर्ज व वाजिब व जरूरी ख्याल करना न पढने वालों को टोकना और उन पर मलामत करना और बुरा भला कहना गलत है, इस्लाम में ज्यादती और शरई हदों से आगे बढना है । इस्लाम में नफ़्ल व मुस्तहब उसे कहते हैं जिस के करने पर सवाब हो और न करने पर कोई गुनाह व अज़ाब न हो तो आपको भी इस पर मलामत करने और बुरा भला कहने का कोई हक़ नहीं और जब खुदाए तआला नफ़्ल छोड़ने पर नाराज़ नहीं तो आप टोकने वाले कौन हुए ?*
_इस्लाम मे अल्लाह तआला ने अपने बन्दो को जो रिआयते और आसानियां दी है लोगों तक पहुँचाना जरूरी है। अगर आप ऐसा नहीं कर रहे हैं। तो आप इस्लाम को बजाए नफा के नुकसान पहुंचा रहे हैं और लोग यह खयाल कर बैठेंगे कि हम इस्लाम पर ही चल ही नहीं सकते क्योंकि वह एक मुश्किल मज़हब है लिहाज़ा उसकी इशाअत में कमी आएगी । आज कितने ऐसे लोग हैं जो सिर्फ इसलिए नमाज़ नहीं पढ़ते कि वह समझते हैं हम नमाज़ पढ़ ही नहीं सकते और मसाइल नमाज़ व तहारत पाकी व नापाकी से पूरी तरह वाकफियत न होने और खुदा व रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की अता फरमाई हुई बाज़ रिआयतों और आसानियों पर आगाह न होने की बिना पर वह नमाज़ छोड़ना गवारा कर लेते हैं और इन रिआयतों से नफा नहीं उठाते हालांकि एक वक़्त की नमाज़ भी क़सदन छोड़ देना इस्लाम में कुफ्र व शिर्क के बाद सब से बड़ा गुनाह है।_
*उलमा व मस्जिदों के इमामो से मेरी गुज़ारिश है कि वह अवाम का ख़ौफ़ न करके उन्हें इस्लामी अहकाम पर अमल करने में मौका ब मौका छूट दी गई तो जो आसानियां है उन्हें ज़रूर बताये ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग इस्लाम और इस्लामियत को अपनायें। उन्हें नफ़्लो के बारे में देखा गया है कि अगर कोई शख्स उन्हें न पढ़े तो कुछ अनपढ़ उस पर इल्ज़ाम लगाते हुए यह तक कह देते हैं कि नमाज़ पढ़े तो पूरी इस से न पढ़ना अच्छा । यह एक बडी जहालत की बात है जो वह कहते हैं हालांकि सही बात यह है कि नफ़्ल तो नफ़्ल अगर कोई शख्स सुन्नते भी छोड़ दे सिर्फ फ़र्ज़ पढ़ ले तो वह नमाज़ को जान बुझ कर बिल्कुल छोड़ देने वालों से बहुत बेहतर है और उसे बे नमाज़ी नहीं कहा जा सकता। हाँ सुन्नतें छोड़ने की वजह से गुनाहगार ज़रूर है क्योंकि सुन्नतों को छोड़ने की इजाज़त नहीं और उन्हें जानबूझकर छोड़ने की आदत डालना गुनाह है।*
_हाँ अगर उलझन व परेशानी और जल्दी में कोई मौका है कि आप सुन्नतों के साथ मुकम्मल नमाज़ नहीं पढ़ सकते तो सिर्फ फ़र्ज़ और वित्र पढ लेने में कोई हरज व गुनाह नही है मसलन वक़्त तंग है पूरी नमाज नही पढी जा सकती तो सिर्फ फ़र्ज़ पढ़ लेना काफी है l खुलासा यह कि जुहर व मगरिब व इशा में जो नफ़्ल अदा किये जाते हैं उन्हे अदा करना बहुत अच्छा हैं मुनासिब व बेहतर है और पढना चाहिए लेकिन उन्हें फ़र्ज़ व वाजिब व जरूरी समझना और न अदा करने वालो को टोकना उन्हें छोडने पर भला बुरा कहना गलत है जिसकी इस्लाह जरूरी हैं ।_
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 42 43 44*
📍 *नोट :-* _अगर कोई भी नफ़्ल न पढे नमाज़ हो जाएगी लेकिन हमारी राय यह है कि वैसे भी हम लोग दिन भर में कितने गुनाह करते हैं और अगर नफ़्ल पढ़ ले तो हमारी नेकिया बढ़ेगी कम न होगी हमकों पूरी नमाज़ ही पढ़ना चाहिए फ़र्ज़ ,वाजिब सुन्नत व नफ़्ल। और रमज़ान जैसे मुबारक महीने में नफ़्ल का सवाब फ़र्ज़ के बराबर होता है। इसलिए पूरी ही नमाज़ पढ़े और ज़्यादा जानने के लिए अपने इलाके के सुन्नी सही उल अक़ीदा आलिम से राब्ता करियेगा।_



POST 41】बगैर रूमाली के पाजामे या जांघिये को पहन कर नमाज़ पढ़ना*
*यह भी कुछ लोगो मे एक आम ख़्याल है। जिसकी कोई हकीक़त नही। पाजामे या जांघिये मे रूमाली होना नमाज़ की दुरूस्तगी के लिए बिल्कुल ज़रूरी नही है। बगैर रूमाली के पाजामे और जांघिये से नमाज़ बिला कराहत जाएज़ है। हां जो लिबास और कपड़े गैर मुस्लिमों के लिए मखसूस है। उनको पहनना गुनाह है। और उनमें नमाज़ मकरूह है। अंग्रेजी पैन्ट और शर्ट मे इस ज़माने मे उलमाए किराम ने नमाज़ मकरूहे तनजीही होने का फतवा दिया है। जैसे की बरेली शरीफ से छपी हुई फ़तावा मरकजी दारूल इफ्ता सफ़ा 207 पर इसकी तफसील मौजूद है। यह इसलिए नही कि पैन्ट मे रूमाली नही होती बल्कि इसलिए है। कि अंग्रेजों का ख़ास कौमी लिबास रह चुका है। और अब भी दीनदार मुसलमान इस लिबास को अच्छा नही समझते।*
*लिहाजा अब भी अंग्रेजी पैन्ट और शर्ट में नमाज़ अदा करना मुनासिब और बहतर नही और इस लिबास से बचना ही बहतर है। लेकिन अगर पढ़ ली तो हो जाएगी।*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 44*
*अल्लाह रब्बुल इज्जत हम गुनहगारो को इस्लाम का सही मायनो मे जानने मानने बाला बना दे रिया कारी से बचने बाला बना दे गुनाहो से तोबा करने बाला बना दे अल्लाह की राह मे कामजन रहने बाला बना दे हर मुसीबत पे अल्लाह का शक्र करने बाला बना दे*
*आमीन सुम्मा आमीन या रब्बुल*



POST 42】नमाज़ मे लंगोट बांधने का मसअला*
*कुछ लोग समझते है कि पाजामा या तहबन्द के अन्दर लंगोट बाँध कर नमाज़ नही होती है। हालाँकि यह उनकी ग़लतफहमी है। लंगोट बाँध कर नमाज़ पढ़ने मे कोई कमी नही आती। अलबत्ता यह ध्यान रखें कि वह इतना कसा हुआ टाइट न हो कि नमाज़ मे रूकूअ और सज्दे और बैठने मे दिक्कत हो।*
📗 *(फ़तावा फ़ैजुर्रसूल जिल्द 1 सफ़ा 252 इरफ़ाने शरीअत सफ़ा 4)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 45*
*आज आप हजरात को एक जरूरी नसीहत करना चाह रहा हू। अगर अच्छी लगे तो इस नाचीज को अपनी हर दुआओं मे साथ रखना और मेरे हक मे भी दुआ करना।*
रमजान मुबारक का महीना आने बाला है। हमारी जिन्दगी से कई रमजान गुजर गए है। पर हमने कभी भी रमजान की सही अहिमयत नही जानी और अपने मन मुताबिक कामो को अन्जाम देते है। अल्लाह रब्बुल इज्जत ने यह महीना अपने *प्यारे महबूब सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* के सदके मे हम गुनहगार उम्मतीयो को अता किया है। और इस महीनो को *उम्मते रसूल सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* का कहा है। क़ुर्बान जाओ उस लब पर जिसने हमे इतना नएमत भरा महीना हम गुनहगारो को दिया है।
_बस हमे उसका अदब व अहितराम करना है। आज कल कुछ विडियो और ओडियो चल रही है। जिसमे अफ्तार और शहरी का मजाक बनाया जा रहा ऐसा करने बालो सुनलो अल्लाह अज्जबल के सामने इसकी भी पकड़ होगी जो तूने अपने नफ्श़ की थोड़ी सी ख़ुशी के खातिर इस पाक महीना का मजाक बनाया है। अगर अदब नही कर सकते तो तो मजाक न बनाओ रमजान मुबारक मे अल्लाह ने हर नेक काम का बदला कई नेकियो मे बदल दिया है। रोजे दार को चाहिए अपने रोजे की हिफाज़त करे नेक काम मे मुब्बतला रहें। नमाज़ पड़े तिलाबते कुर्आन करे तसबीहात पढ़े कलिमात पढ़े रोजे की हालत मे अल्लाह के जिक्र मे मसगूल रहे। न ही रोज़े की हालत मे गन्दे कामो मे मसगूल रहो अपनी निगाहों कि हिफाजत करो रोज़े की हालत मे सब्र से काम लो अल्लाह की रजा मे राज़ी हो जाओ अपनें रोजे कि ख़ुद ही हिफाजत करनी होगी बरना तुम्हारा रोजा रोजा नही फांका है। ऐसे रोजे तुम्हारे मुँह पर मार दिए जाएगे। और बे रोज़ेदार को चाहिए रोज़दारो का अहितराम करे उनके सामने न ही कुछ खाए न ही पिए ऐसा करने बालो तुम्हारी भी अल्लाह अज्जबल की बारगाह में पकड़ होगी इसलिए रोजेदार का अदब करो।_
*दुआ है। रब्बुल आलमीन से हम सबको इस माहे मुबारक का अदब और सदका नसीब फरमाऐ और हर गुनाह से बचने की तोफीक अता फरमाए*
*आमीन सुम्मा आमीन या रब्बुल आलमीन*



POST 43】पैन्ट और पाजामे की मोरी चढ़ा कर नमाज़ पढ़ना*
*कुछ लोग टखनो से नीचा हुआ पाजामा और पैन्ट पहिनते है। अगर उन्होने इसकी आदत डाल रखी है।। और तकब्बुर व घमंड के तौर पर ऐसा करते है। तो यह नाजायज गुनाह है। और इस तरह नमाज़ मकरूह लेकिन अगर इत्तेफाक से हो या बेख़्याली और बेतबज्जोही से हो तो हर्ज नही और जो लोग इससे बचने के लिए और टखने खोलने के लिए मोरी पाजामे को चढ़ाते है। वह गुनाह को घटाते नही बल्कि बढ़ाते है। और नमाज़ मे खराबी को कम नही करते बल्कि ज़्यादा करते है। यह पैन्ट और पाजामे की मोरी पायेंचे को लपेट कर चढ़ाना नमाज़ मे मकरूहे तहरीमी है।*
हदीस मे है *रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* ने फरमाया कि मुझे हुक्म दिया गया कि मे साँत हड्डियो पर सज्दा करूँ पेशानी दोनो हाथ दोनो घुटने दोनो पन्जे और यह हुक्म दिया गया नमाज़ मे कपड़े और बाल न समेटू।
📚 *(बुखारी, मुस्लिम, मिश्कात सफ़ा 93)*
*इस हदीस की रोशनी मे कपड़ा समेटना चढ़ाना नमाज़ मे मना है। लिहाजा पैन्ट और पाजामे की मोरी लपेटने और चढ़ाने बालो को इस हदीस से इबरत हासिल करनी चाहिए।*
*लेकिन इस्लाह करने वालो से भी गुजारिश है। कि नमाज़ मे इस किस्म की कोताहियाँ बरतने वालो को नरमी और मोहब्बत से समझायें मान जाए तो ठीक वरना उन्हे उनके हाल पर रहनें दे। यह और मुनासिब तरीके से इस्लाह करे। उनको डांटना झिड़कना और उनसे लड़ाई झगड़ा करना बहुत बुरा है। जिस का नतीजा यह भी हो सकता है। कि वह मस्जिद मे आना नमाज़ पड़ना ही छोड़ दे जिसका वबाल उन झिड़कने बालो पर है। क्यूंकि इसमे कोई सक नही कि बाज़ इस किस्म की खामियों के साथ नमाज़ पढ़ने बाले बेनमाजियो से हजारो दर्जा बेहतर है। और नमाज़ मे कोताहियाँ करने वालो को चाहिए अगर कोई उनकी इस्लाह करे तो बुरा मानने की बजाय उसकी बात पर अमल करे उस पर गुस्सा न करे क्यूंकि वह जो कुछ कह रहा है। आपकी भलाई के लिए कह रहा है। अगर वह तुर्शी और सख़्ती से भी कह रहा है। तो वह फेल है। आपका काम तो हक़ को सुनकर अमल करना है। झगड़ा करना नही।*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 45 46*
जो भी हो पर खुलासा यही है। नमाज़ किस भी हाल मे माफ नही है नमाज़ पढ़ना *नबी करीम सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* की आंखो की ठंडक है। *अल्लाह अज्जबल* के सबसे नजदीक नमाज़ है। जब बंदा सज्दे की हालत मे होता है। *अल्लाह अज्जबल* के सबसे ज़्यादा करीब होता है। नमाज़ पढ़ो इससे पहले हमारी नमाज़ पढ़ी जाए।



POST 44】कुर्आन पढ़ने मे सिर्फ होंट हिलाना और आवाज़ न निकालना*
*कुछ लोग़ कुर्आन की तिलावत और नमाज़ या नमाज़ के बाहर कुछ पढ़ते है। तो सिर्फ़ होंट हिलाते है। और आवाज़ बिल्कुल नही निकालते है। उनका यह पढ़ना, पढ़ना नही है। और इस तरह पढ़ने से नमाज़ नही होगी और इस तरह कुर्आन तिलावत की तो तिलावत का सबाब नही पायगे। अहिस्ता पढ़ने का मतलब यह है कि कम से कम इतनी आवाज़ जरूर निकले कि कोई रूकावट न हो तो खुद सुनले सिर्फ़ होंट होंट हिलना आवाज का बिल्कुल न निकलना पढ़ना नही है। और इस मसअले का ख़ास ध्यान रखना चाहिए।*
📘 *(फ़तावा आलमगिरी मिस्री जिल्द अव्वल सफ़ा 65 बहारे शरीअत जिल्द 3 सफ़ा 69)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 46 47*
_कुछ जगह या कहले तकरीबन तकरीबन सभी जगह कुर्आन खानी हो या किसी मरहूम के लिए इसाले सबाब करने के लिए लोग कुर्आन की तिलावत करते है। कुछ हजरात किरत करके पढ़ते है। कुछ खामोशी इख्तयार करके पढ़ते है। किरत करने बाले हजरात को चाहिए के बह भी खामोशी इख्तयार करके पढ़े जितने मे खुद के कानो तक आवाज़ पहुच सके हा अगर पढ़ने बाला तन्हा है। तो बहतर है। किरत करके ही पढ़े अगर एक साथ कई लोग कुर्आन की तिलावत कर रहे है। तो उन्हे खामोशी यानी इतनी आवाज़ हो के अपने खुद के कानो तक पहुंच सके जिससे दूसरे पढ़ने बालो को भी खलल न हो_



POST 45】क्या जमाअत से नमाज़ पढ़ने वाले को इमाम के साथ दुआ मांगना भी जरूरी है*
*हर नमाज़ सलाम फेर ने पर मुकम्मल हो जाती है। उसके बाद जो दुआ माँगी जाती है। यह नमाज़ मे दाखिल नही। अगर कोई शख़्स नमाज़ पढ़ने यानी सलाम फेरने के बाद बिल्कुल दुआ न मांगे तब भी उसकी नमाज़ मे कमी नही। अलबत्ता एक फजीलत हे मेहरूमी और सुन्नत के खिलाफ वर्जी है। कुछ जगह देखा गया इमाम लोग बहुत लम्बी लम्बी दुआऐ पढ़ते है। और मुकतदी कुछ ख़ुशी के साथ और कुछ बे रगबती से मजबूरन उनका साथ निभाते है। और कोई बग़ैर दुआ मागे या थोड़ी दुआ मांग कर इमाम साहब का पूरा साथ दिये बग़ैर चला जाए तो उसपर ऐतराज करते है। और बुरा जानते है। यह सब उनकी ग़लतफ़मियाँ हैं। इमाम के साथ दुआ मांगना मुक़तदी के ऊपर हरगिज़ लाजिम व जरूरी नही वह नमाज़ पूरी होने के बाद फौरन मुखतसर दुआ मांग कर भी जा सकता है। और कभी किसी मजबूरी और उज्र की बिना पर बग़ैर दुआ मांगे चला जाए तब भी नमाज़ मे कमी नही आती हवाले के*
📗 *(फ़तावा रज़विया जिल्द सोम सफ़हा 278 देखे)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 47*



POST 46】नमाज़ मे कुहनियाँ खुलीं रखना*
*बिला मज़बूरी कुहनियाँ खोल कर जैसे आजकल आधी आस्तीन की शर्ट पहिन कर कुछ लोग नमाज़ अदा करते है। यह मकरूह है और ऐसी नमाज़ को लौटाने का हुक्म है।*
📕 *(फ़तावा रजविया जिल्द 3 सफ़ा 416)*
*और जो लोग आस्तीन चढ़ाकर और कुहनियाँ खोल कर नमाज़ अदा करते है। उन पर दो गुनाह होते है। एक कपड़ा समेटने चढ़ाने का और दूसरा कुहनियाँ खुली रखने का क्यूंकि नमाज़ मे कपड़ा चढ़ाना मना है। जैसे कुछ लोग सज्दे मे जाते वक़्त दोनो हाथो से पाजामे के पायेंचे को पकड़ कर चढ़ाते है। यह भी नाजाइज व गुनाह है। इस किस्म के नमाज़ियो को प्यार मोहब्बत से समझाते रहना चाहिए या बजाय एक एक को टोकने और रोकने के सबको इकट्ठा करके मसअला बता दिया जाये ताकि कोई अपनी तौहीन महसूस नशकरे क्यूकि आजकल दीनी बातों पर टोका जाये तो लोगो मे तौहीन महसूस करने की बीमारी पैदा हो गई है।*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 48*
*_आज कल हर जगह ऐसे बाज़ लोग पाये जाते है। उन्हें कितना ही समझाओ पर उनको इससे कुछ मतलब नही रहता अपनी हट धर्मी मे रहते है। ऐसे लोग शिवाए गुनाह के और कुछ हासिल नही करते है। लेकिन हमारे कुछ भाई जो थोड़ा इल्म रखते है। उनके समझाने का तरीका भी बहुत तकव्वर भरा रहता है। उन्हे भी चाहिए इस्लाह करने बालो को प्यार मोहब्बत से समझायें न की उनके सामने अपने आपको सबसे बहतर होने का सबूत दे यह ़रिया कारी है। यह गुनाह भी है। जो अल्लाह तआला को बिल्कुल भी पसन्द नही है। इसलिए बहतर तरीका यही है। समझाने बाले को सरमिन्दगी महसूस भी न हो और उसकी इस्लाह हो जाए ऐसा रास्ता निकाले।_*



POST 47】कमसिन बच्चों को मस्जिद मे लाना*
*_ज़्यादा छोटे ना समझ कमसिन बच्चों का मस्जिद मे आना या उन्हें लाना शरअन नापसन्दीदा नाजाइज व मकरूह है। कुछ लौग औलाद से बे जा मुहब्बत करने वाले नमाज़ के लिए। मस्जिद मे आते है। तो अपने साथ कमसिन नासमझ बच्चों को भी लाये है। यहाँ तक कि बाज़ लोग उन्हें आगली सफो मे अपने बराबर नमाज़ मे खड़ा कर लेते है। यह तो निहायत ग़लत बात है। और इससे पिछली सफो के सारे नमाज़ियों की नमाज़ मकरूह होती है। और उसका गुनाह उस लाने और बराबर मे खड़ा करने वाले पर है। और उन पर जो उससे हत्तल मक़दूर मना न करें हाँ जो समझदार होशियार बच्चे हो नमाज़ के आदाब से वाकिफ़ पाकी और नापाकी को जानते हो उनको आना चाहिए और उनकी सफ़ मस्जिद मे बालिग मर्दों से पीछे होना चाहिए। और ज़्यादा छोटे जो नमाज़ को भी एक तरह काखेल समझते और मस्जिद मे शोर मचाते ख़ुद भी नहीं पढ़ते अंर दूसरों की नमाज़ भी खराब करते है। एसे बच्चों को सख़्ती के साथ मस्जिद में आने से रोकना ज़रूरी है।_*
📖 *हदीस मे है। फरमाया रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम ने*
*_"अपनी मस्जिदों को बचाओ बच्चों से पागलों से खरीदने और बेचने से और झगड़े करने से और ज़ोर ज़ोर से बोलने से।_*
📘 *(इब्ने माजा,बाबा मा यकरहु फ़िल मस्जिद सफ़ा 55)*
*_यानी यह सब बाते मस्जिद मे नाजाइज व गुनाह है।_*
*सदरूश्शरीआं हजरत मौलाना अमजद अली साहब आज़मी अलैहिर्रहमह लिखते है।*
*_"बच्चे और पागल को जिन से नजासत का गुमान हो मस्जिद मे ले जाना हराम है। वरना मकरूह।_*
📗 *(बहारे शरीअत हिस्सा सोम सफ़ा 182)*
*कुछ लोग कहते हॅ। कि बच्चे मस्जिद मे नही आयेंगे तो नमाज़ सीखेगे केसे तो भाईयों समझदार बच्चों के सीखने के लिए मस्जिद है। और नासमझ ज़्यादा छोटे बच्चों के लिए घर और मदरसे है। और हदीसे रसूल के आगे अपनी नहीं चलाना चाहिए।*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 48 49*



POST 48】मस्जिदों को सजाना इमामों को सताना*
*आजकल काफ़ी देखा गया है कि लोग मस्जिदों को सजाने सँवारने में खूब पैसा खर्च करते हैं और इमामों, मौलवियों को सताते, उन्हें तंग और परेशान रखते हैं, और कम से कम पैसों में काम चलाना चाहते हैं। जिसकी वजह से वह सजीसँवरी खूबसूरत मस्जिदें कभी कभी वीरान सी हो जाती हैं और उनमें वक्त पर अज़ान व नमाज़ नहीं हो पाती।_*
*इस बयान से हमारा मकसद यह नहीं है कि मस्जिदों को सजाना और खूबसूरत बनाना मना है। बल्कि यह बताना है कि किसी भी मस्जिद की असली खूबसूरती यह है कि उसमें दीनदार, खुदाए तआला का ख़ौफ़ रखने वाला, लोगों को हुस्न व खूबी और हिकमत व दानाई के साथ दीन की बातें बताने वाला आलिमे दीन इमामत करता हो चाहे वह मस्जिद कच्ची और सादा सी इमारत हो। किसी मस्जिद के लिए अगर नेक और सही इमाम मिल जाये तो लोगों को चाहिए कि उसको हर तरह खुश रखेंउसका खूब ख्याल रखें । बल्कि पीरों से भी ज़्यादा आलिमों, मौलवियों, इमामों और मुदर्रेसीन का ख्याल रखा जाये क्यूंकि दीन की बका और इस्लाम की हिफ़ाज़त इल्म वालों से है। अगर इमामों और मौलवियों को परेशान रखा गया तो वो दिन दूर नहीं कि मस्जिदें और मदरसे या तो वीरान हो जायेंगे या उनमें सबसे घटिया किस्म के लोग इमामतें करेंगे और बच्चों को पढ़ायेंगे। अच्छे घरानों और अच्छे ज़हन व फिक्र रखने वाले लोग इस लाइन से दूर हो जायेंगे।*
*_खुलासा यह कि आलिमों और मौलवियों को चाहिए वो पैसे और माल व दौलत का लालच किये बगैर दीन की खिदमत करें और कौम को चाहिए कि वह अपने आलिमों, मौलवियों और दीन की ख़िदमत करने वालों को खुशहाल रखे। उन्हें तंगदस्त और परेशान न होने दे और हमारी राय में आजकल शादीशुदा बैरूनी (बाहर के) इमामों के लिए रिहाइशी मकानों का बन्दोबरत कर देना निहायत जरूरी है ताकि उन्हें बार बार घर न भागना पड़े और वो नमाजों को पढ़ाने में पाबन्दी कर सकें और अंगुश्तनुमाईयों, बदरगुमानियों से महफूज रहें।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 50 51*
📍 *Note :- जब भी मस्जिद जाए और मस्जिद के अन्दर क़दम रखे पहले दाखिले मस्जिद होने की दुआ पढ़े और एतकाफ की नियत करे।*



POST 49】ईदगाह में नमाज़े जनाजा पढ़ने का मसअला*
_मस्जिद में जनाजे की नमाज़ पढ़ना मकरूह व नाजाइज़ है।_
📖 *_हदीस शरीफ़ में है_*
*हज़रत अबू हुरैरह रदियल्लाह तआला अन्हो* से मरवी है कि *रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* ने फरमाया जो मस्जिद में नमाज़े जनाज़ा पढ़े उसके लिए कुछ सवाब नहीं
📘 *(अबूदाऊदकिताबुल जनाइज़ बाबुस्सलात अलल जनाज़ा फ़िल मस्जिदसफ़हा 454)*
हाँ सख़्त बारिश आंधी तूफ़ान वगैरा किसी मजबूरी के वक्त मस्जिद में भी पढ़ना जाइज़ है जब कि ईदगाह मदरसा, मुसाफिर खाना वगैरा कोई और जगह न हो। *हज़रत अल्लामा सय्यिद अहमद तहतावी रहमतुल्लाह तआला अलैह* फरमाते हैं।
_''जो मस्जिद सिर्फ नमाजे जनाज़ा ही पढ़ने को लिए बनाई गई हो वहाँ यह नमाज मकरूह नही यानी जाइज़ है। यूही मदरसे और ईदगाह में नमाजे जनाज़ा पढ़ना जाइज है।_
📕 *(तहतावी अला मराक़िल फ्लाह मतबूआ कुतुन्तिया, सफ़हा 326)*
और *मौलाना मुफ्ती जलालुद्दीन साहब अमजदी* फरमाते हैं। ‘नमाजे जनाज़ा ईदगाह के इहाते और मदरसे में भी पढ़ी जा सकती है।
📗 *(फतावा फैजुर्रसूल, जिल्द 1, सफ़हा 446)*
_लिहाज़ा जो लोग ईदगाह में नमाजे जनाज़ा पढ़ते हुए झिझक महसूस करते हैं वह बिला ख़ौफ़ बे झिझक वहाँ नमाजे जनाजा पढ़ा करें।_
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 51*
📍 *Note :- आप हजरात जब भी किसी की मैय्यत की खबर सुने उसके जनाज़े मे शिर्कत जरूर करे*



POST 50】मस्जिदों में आवाज़ करने वाले पंखो कूलरों का मसअला*
*आजकल कितने लोग हैं जो मस्जिदों में आते हैं तो उन्हें नमाज से ज्यादा अपने आराम, चैन व सुकून गर्मी और ठन्डक की फ़िक्र रहती है अपनी दुकानों, मकानों खेतों और खलिहानों, कामधन्धों में बड़ी बड़ी परेशानियाँ उठा लेने वाले मशक्कतें झेलने वाले जब मस्जिदों में दस पन्द्रह मिनट के लिए नमाज़ पढ़ने आते हैं। और जरा सी परेशानी हो जाए, थोड़ी सी गर्मी या ठन्डक लग जाए। तो बौखला जाते हैं, गोया कि आज लोगों ने मस्जिदों को आरामगाह और मकामे ऐश व इशरत समझ लिया है। जहाँ तक शरीअते इस्लामिया ने इजाजत दी है वहाँ तक आराम उठाने से रोका तो नहीं जा सकता लेकिन कुछ जगह यह देख कर सख्त तकलीफ़ होती है*
_कि मस्जिदों को आवाज़ करने वाले बिजली के पंखोंशोर मचाने वाले कूलरों से सजा देते हैं और जब वह सारे पंखे और कूलर चलते हैं तो मस्जिद में एक शोर व हंगामा होता है। और कभी कभी इमाम की किर्अत व तकबीरात तक साफ़ सुनाई नहीं देती या इमाम को उन पंखों और कूलरों की वजह से चीख़ कर किर्अत व तकबीर की आवाज निकालना पड़ती है। बाज जगह तो यह भी देखा गया है कि मस्जिदों में अपने ऐश व आराम की खातिर भारी आवाज वाले जनरेटर तक रख दिये जाते हैं जो सरासर आदावे मस्जिद के खिलाफ है। जहाँ तक बिजली के पंखों और कूलरों का सवाल है तो शुरू में अकाबिर उलमा ने इनको मस्जिद में लगाने को मुतलकन ममनू व मकरूह फरभाया था। जैसा कि_
📘 *(फतावा रजविया जिल्द 6 सय्हा 384)*
पर खुद *आलाहजरत इमामे अहलेसुन्नत मौलाना शाह अहमद रज़ा खाँ साहब अलैहिर्रहमतु वर्रिदवान* के कलम से इसकी तसरीह मौजूद है। अब बाद में जदीद तहकीकात और इब्तिलाए आम की बिना पर अगरचे इनकी इजाजत दे दी गई लेकिन आवाज़ करने वाले, शोर मचा कर मस्जिदों में एक हंगामा खड़ा कर देने वाले कूलरों और पंखों को लगाना आदावे मस्जिद और खुजू व खुशू के यकीनन ख़िलाफ़ है। उनकी इजाज़त हरगिज नहीं दी जा सकती। निहायत हल्की आवाज वाले हाथ के पंखों ही से काम चलाया जाए। कूलरों से मस्जिदों को बचा लेना ही अच्छा है क्यूंकि उसमें आमतौर से आवाज ज्यादा होती है न कि दर्जनों पंखे और कूलर लगा कर मस्जिदों में शोर मचाया जाए।
भाईयो खुदाए तआला का ख़ौफ़ रखो। ख़ानए खुदा को ऐश व इशरत का मकाम न बनाओ वह नमाज़ व इबादत और तिलावते कुर्आन के लिए है जिस्म परवरी के लिए नहीं। नफ्स को मारने के लिए है नफ्स को पालने के लिए नहीं। मस्जिदों में आवाज करने वाले बिजली के पंखों का हुक्म बयान फ़रमाते हुए *आलाहजरत रदीअल्लाहो तआला अन्हु* फरमाते हैं।
"बेशक मस्जिदों में ऐसी चीज का एहदास ममनू बल्कि
ऐसी जगह नमाज़ पढ़ना मकरूह है।
📗 *(फातवा रजविया जिल्द 6, सऊहा 386)*
इस जगह आलाहजरत ने दुर्रेमुख्तार की यह इबारत भी नकल फ़रमाई है अगर खाना मौजूद हो और उसकी तरफ़ रगवत व ख्वाहिश हो तो ऐसे वक़्त में नमाज पढ़ना मकरूह है ऐसे ही हर वह चीज जो नमाज की तरफ से दिल को फेरे और खुशू में खलल डाले।
मजीद फरमाते हैं ‘‘चक्की के पास नमाज मकरूह है।""
*रद्दुलमुख्तार में है शायद इसकी वजह यह है कि चक्की की आवाज दिल को नमाज़ से हटाती है।"*
_वह पंखे जो खराब और पुराने हो जाने की वजह से आवाज करने लगते हैं उनको दुरुस्त करा लेना चाहिए या मस्जिद से हटा देना चाहिए_
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 52 53*
*Note- हमे अपने कल्बी सुकून की खातिर मस्जिद के अहितराम को न भूलना चाहिए बल्की अपनी नफ्स को फना कर देने मे ही सहूलियत और अल्लाह तआला की खुशनूदगी है।*





POST 51】नमाज़े जनाज़ा मे तकबीर के वक़्त आसमान की तरफ मुँह उठाना*
_आजकल काफ़ी लोग ऐसा करते हुए देखे गए हैं कि जब_
*नमाजे जनाज़ा में तकबीर कही जाती है तो हर तकबीर के वक़्त ऊपर की जानिब मुंह उठाते हैं हालांकि इसकी कोई अस्ल नहीं।*
बल्कि नमाज में आसमान की तरफ मुंह उठाना मकरूहे तहरीमी है। *(बहारे शरीअत)* और हदीस शरीफ में है। *रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* ने
*फ़रमाया ‘‘क्या हाल है उन लोगों का जो नमाज़ में आसमान कीतरफ़ आखे उठाते है इससे बाज़ रहें या उनकी आंखें उचक ली जायेंगी।*
📘 *(मिश्कात बहवाला सहीह मुस्लिम सफहा 90)*
खुलासा यह कि नमाजे जनाज़ा हो या कोई और नमाज़ कसदन आसमान की तरफ़ नज़र उठाना मकरूह है और नमाजे जनाज़ा में तकवीर के वक्त ऊपर को नजर उठाने का जो रिवाज पड़ गया है यह ग़लत है, वे अस्ल है।
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 54*
📍 *Note- इमाम अहमद बिन हम्बल रदीअल्लाहो ताला अनहो ने फरमाया हमारे जनाज़े फैसला करेगे हक पर कौन है। जेसा की आप हजरात ने देखा तकरीबन कुछ दिन पहले बरेली की मुकद्दश ज़मी पर चारो तरफ लाखो नहीँ करोडों की तादात मे कई अफराद वहा पहुँचे और सरकार ताजोहश्शरिया अलहिर्रहमा की नमाज़े जनाज़े मे शिर्कत की यह फकीर कादरी भी मोजूद था वहा पर मेने अपनी आँखो से देखा इतनी तादात मे हाजरीन। हजरत की तदफीन मे पहुँचे और किसी को खरोंच भी न आई यह बरेली के ताज़े शरीअत की करामत ही तो है। बरना आप लोगो ने कई मर्तबा सुना होगा जहाँ लाखों अफराद एक साथ मोजूद होते है कोई न कोई हादसा ज़रूर होता है लेकिन देखने बालो ने देखा सुनने बालो ने सुना इतनी तादात होने के बाद भी किसी को कुछ न हुआ ऐसी सोच रखने बाले उन पिलपिले सुलहकुल्लियो से कहूँगा अरे यह तो कुछ भी नही अगर इससे 10 गुना तादात और होती तब भी कुछ न होता किसी का।*
*एक और बात शरीअत की जहाँ इतनी तादात होने के बाद भी माइक पर नमाज़ न हुई और शरीअत का हक अदा किया इसको बरेली कहते है बरेली जहाँ तबीयत परस्ती के लिए शरीयत से खिलवाड़ नही किया जाता*



POST 52】मय्यत का खाना*
मय्यत के तीजे, दसवें या चालीसवें वगैरहा के मौके पर दावत करके खाना खिलाने का जो रिवाज है यह भी महज़ ग़लत है। और ख़िलाफ़ शरअ है। हाँ ग़रीबों और फ़क़ीरों को बुला कर खिलाने में हरज नहीं। *आलाहज़रत* फ़रमाते हैं मुर्दे का खाना सिर्फ फ़क़ीरों के लिए है आम दावत के तौर पर जो करते हैं यह मना है, ग़नी न खाए।
📘 *(अहकामे शरीअत हिस्सा दोम, सफहा 16)*
और फरमाते हैं मौत में दावत बे मअना है, फ़तहुल कदीर में इसे बिदअते मुसतकुबहा फ़रमाया।
📙 *(फ़तावा रजविया, जिल्द 4, सफ़हा 221)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 54*
📍 *Note :- आज कल देखा जाता है अगर किसी के यहा कोई मर जाता है। तो इस तरह से 10वा 20वा 40वा कराते है। जेसे कोई शादी का फन्शन करा रहे हो अगर कोई गरीब इन्शान अपनी गरीबी की खातिर न करा सके तो उस पर पडोशी और आवाम के लोग तंज कसते है। और कई किस्म की बाते भी सुनाते है। यह तरीका सरासर गलत है। जब शरीअत ने इस खाने से गनी को रोक रखा है तो क्यूँ हम यह रस्म शादी की तरह करते है। गलती हमारी है हमे ही इन सब का बायकाट करना चाहिए और आगे आकर आवाम को आगाह करना चाहिएं अगर आपको अपने घर बालो के लिए इसाले सबाब के लिए इतना ख़र्च करना ही है तो किसी गरीब लड़की का घर बसाने मे करो कसम खुदा की यह काम आपका दुनिया व आखरत दोनो शवार देगा। मेरे प्यारे भाईयो अगर आप मेरी बात से सहमत है। तो आज से ही अपने जहिन को बदले और *अल्लाह तआला और उसके रसूल सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम की रज़ा पर अमल जरूर करे।*



POST 53】शौहर का बीबी के जनाज़े को उठाना*
*अवाम में यह ग़लत मशहूर है कि शौहर बीवी के मरने के बाद न देख सकता है न उसके जनाज़े को हाँथ लगा सकता है। और न कान्धा दे सकता है।*
_सही बात यह है कि शौहर के लिए अपनी बीवी को मरने के बाद देखना भी जाइज़ है और उसके जनाज़े को उठाना और कान्धा देनां, क़ब्र में उतारना भी जाइज़ है_
📘 *(फतावा रजविया, जिल्द 4, सफ़हा 91)*
📚 *(गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 55)*
📍 *Note- आजकल आवाम मे नयी नयी रश्मे ईजाद हो रही है। जो शरीअतन गलत और महज़ गुमराही है। जिनका रोकना और मना करना दुरूस्त व सही है। कुछ नाम निहाद लोग ऐसे होते है। जिनको कितना ही समझाओ उनको समझ नही आता और अपनी हट धर्मी पर अड़े रहते है। ऐसो लोगो को बड़े प्यार से समझाना चाहिए अपनी बात सीधी उनके दिल मे घर कर जाए। न की उनको चिल्लाकर डाटकर समजाओ ऐसा करना भी गलत है। मोहब्बत से जो काम हो जाएगा वह गुस्से मे न होंगा लिहाजा हम सभी को चाहिए अपने मोमिन भाई की इस्लाह बड़े प्यार से करनी चाहिए। अल्लाह तआला हम सबको अमल की तौफीक अता फरमाए।*
*आमीन सुम्मा आमीन या रब्बुल आलमीन*



POST 54】फ़ातिहा में खाना पानीं सामने रखने का मसअला*
_इस बारे में दो किस्म के लोग पाए जाते हैं कुछ तो वह हैं। कि अगर खाना सामने रख कर सूरए फातिहा वगैरा आयाते कुर्आनिया पढ़ दी जायें तो उन्हें उस खाने से चिढ़ हो जाती है और यह उस खाने के दुश्मन हो जाते हैं और उसे हराम ख्याल करते हैं। यह वह लोग हैं जिनके दिलों में बीमारी है। तो खुदाए तआला ने उनकी बीमारी को और बढ़ा दिया। कसीर अहादीस और अक़वाले अइम्मा और मामूलाते बुजुर्गाने दीन से मुंह मोड़ कर अपनी चलाते और ख़्वाहम ख़्वाह मुसलमनो को मुशरिक और बिदअती बताते हैं।_
*दूसरे हमारे कुछ वह मुसलमान भाई हैं जो अपनी जिहालत और वहम परस्ती की बुनियाद पर यह समझते हैं कि जब खाना सामने न हो कुर्आन की तिलावत व ईसाले सवाब मना है।*
कुछ जगह देखा गया है मीलाद शरीफ़ पढ़ने के बाद इन्तिज़ार करते हैं कि मिठाई आ जाए तब तिलावत शुरू करें यहाँ तक कि मिठाई आने में अगर देर हो तो गिलास में पानी ला कर रखा जाता है कि उनके लिए उनके जाहिलाना ख्याल में फातिहा पढ़ना जाइज हो जाए कभी ऐसा होता है कि इमाम साहब आकर बैठ गए हैं और मुसल्ले पर बैठे इन्तज़ार कर रहे हैं अगर खाना आए तो कुर्आन पढ़ें यह सब वहम परस्तियां हैं। हकीकत यह है कि फातिहा में खाना सामने होना जरूरी नहीं अगर आयतें और सूरतें पढ़ कर खाना या शीरीनी बगैर सामने लाए यूही तकसीम कर दी जाए तब भी ईसाले सवाब हो जाएगा और फातिहा में कोई कमी नहीं आएगी।
*(सय्यिदी आलाहजरत मौलाना अहमद रजा खाँ बरेलवी)* फ़रमाते हैं "फातिहा व ईसाले सवाब के लिए खाने का सामने होना ज़रूरी नहीं।
📕 *(फ़तावा रजविया, जिल्द 4, सफ़हा 225)*
और दूसरी जगह फरमाते हैं "अगर किसी शख्स का यह एतिकाद हो कि जब तक खाना सामने न किया जाए सवाब न पहुँचेगा तो यह गुमान उसका महज गलत है।"
📗 *(फतावा रजविया,जिल्द 4, सफ़हा 195)*
*_खुलासा यह कि खाने पीने की चीजें सामने रख कर फातिहा। पढ़ने में कोई हरज नहीं बल्कि हदीसों से उसकी असल साबित है और फातिहा में खाना सामने रखने को जरूरी ख्याल करना कि उसके बगैर फातिहा नहीं होगी यह भी इस्लाम में ज्यादती, वहमपरस्ती और ख़्याले ख़ाम है। जिसको मिटाना मुसलमानों पर जरूरी है_*
*हजरत मौलाना मुफ्ती मुहम्मद खलील खाँ साहब मारहरवी फरमाते हैं।*
"तुम ने नियाज़, दुरूद व फातिहा में दिन या तारीख़ मुकर्ररा के बारे में यह समझ रखा है कि उन्हीं दिनों में सवाब मिलेगा आगे पीछे नहीं तो यह समझना हुक्मे शरई के ख़िलाफ़ है।
यूंही फातिहा व ईसाले सवाब के लिए खाने का सामने होना कुछ जरूरी नहीं या *हजरते फ़ातिमा खातूने जन्नत रदीअल्लाहो ताला अनहा* की नियाज का खाना पर्दे में रखना और मर्दो को न खाने देना औरतों की जिहालते हैं वे सबूत और गढ़ी हुई बातें हैं मर्दो को चाहिए कि इन ख्यालात को मिटायें और औरतों को सही रास्ते और हुक्मे शरई पर चलायें।
📙 *(तौजीह व तशरीह फैसला हफ़्त मसअला, सफहा 142)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,55 56 57*



POST 55】बच्चा पैदा होने की वज़ह से जो औरत मर जाये उसको बदनसीब समझना*
कुछ जगहों पर कुछ लोग ऐसी औरत को जो बच्चा पैदा होने की वजह से मर जाये उसको बुरा ख़्याल करते हैं और कहते हैं कि वह नापाकी में मरी है, लिहाज़ा बदनसीब और मनहूस है। यहाँ तक सुना गया है कि कुछ लोग कहते हैं कि वह मर कर चुडैल बनेगी। यह सब जाहिलाना बकवासे और निरी खुराफातें हैं। हदीस शरीफ़ में इस हाल में मरने वाली औरत को शहादत का मरतबा पाने वाली फ़रमाया गया और यह इस्लाम में बहुत बड़ा मरतबा है। रही उसकी नापाकी तो वह उसकी मजबूरी है। जिसका उस पर कोई गुनाह नहीं और मोमिन का बातिन कभी नापाक नहीं, और यह नापाकी भी खून आने से होती है खून न आया हो तो ज़ाहिर से भी वह पाक है।
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 57*
*Note- कई जगह देखां जाता है। बाज़ लोग़ बाज़ औरते इनको बदनसीब और मनहूस कहती है। यह सरारसर गलत है। ऐसी औरत को अल्लाह रब्बुल इज्जत ने शहीद के दर्जे से नवाज़ा है। और बाज़ लोग इन्हे मनहूस और बदनसीब कहते है। अल्लाह अल्लाह ऐसो लोगों और औरतो को अल्लाह के खोंफ से रोना चाहिए। हर आशिके रसूल यही चाहेगा अल्लाह तआला मुझे शहीदो मे मरने बाला बनाए। पर अफसोस है। जो ऐसी सोंच मे मुब्तिला रहते है।*
*अल्लाह तआला अपनें हबीब सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम के सदके हमारी हर परेशानियों को दूर फरमाए*



POST 56】फ़र्ज़ी क़ब़्रें और मज़ार बनाना*
*आजकल ऐसा काफी हो रहा है कि पहले वहाँ कुछ नहीं था, अब बगैर किसी मुर्दे को दफ़न किये कब्र व मज़ार बना दिया गया। और पूछो तो कहते हैं कि ख्वाब में बशारत हुई है। फलाँ मियाँ ने ख्वाब में आकर बताया है कि यहाँ हम दफ्न हैं, हमारा मजार बनाओ। सही बात यह है कि इस तरह कब्र व मजार बनाना, उन पर हाजिरी देना, फातिहा पढ़ना, उर्स करना और चादर चढ़ाना। सब हराम है। मुसलामनों को धोका देना और इस्लाम को बदनाम करना और ख़्वाब में मज़ार बनाने की बशारत शरअन कोई चीज नहीं और जिन लोगों ने ऐसे मज़ारात बना लिये हैं उनको उखाड़ देना और नाम व निशान ख़त्म कर देना बहुत जरूरी है।*
_कुछ जगह देखा गया है कि किसी बुजुर्ग की छड़ी, पगड़ी वगैरा कोई उनसे मनसूब चीज दफ्न करके मज़ार बनाते हैं और कहीं किसी बुजुर्ग के मज़ार की मिट्टी दूसरी जगह ले जाकर दफन करके मज़ार बनाते हैं। यह सब नाजाइज व गुनाह है। *सय्यिदी आला हज़रत* फरमाते हैं। फ़र्जी मजार बनाना और उसके साथ। अस्ल का सा मुआमला करना नाजाइज व बिदअत है और ख़्वाब की बात खिलाफ़े शरअ उमूर में मसमूअ मकबूल नहीं हो सकती।_
📗 *(फतावा रजविया जिल्द 4 सफहा 115)*
*और जिस जगह किसी बुजुर्ग का मज़ार होने न होने में शक हो वहाँ भी नहीं जाना चाहिए और शक की जगह फातिहा भी नहीं पढ़ना चाहिए। कुछ जगह मज़ारात के नाम लोगों ने पतंग शाह बाबा, कुत्तेशाह बाबा, कुल्हाड़ापीर बाबा, झाड़झूड़ा शाह वगैरह रख लिए हैं। अगर वाकई वो अल्लाह वालों के मजार हैं।*
_तो उनको इन बेढंगे नामों से याद करना, उनकी शान में बेअदबी और गुस्ताखी है, जिससे बचना जरूरी है। और हमारी राय में इस्लामी बुजुर्गों को ‘बाबा' कहना भी अच्छा नहीं है क्यूंकि इसमें हिन्दुओं की बोलियों से मुशावहत है कभी यह भी हो सकता है कि वो इन मज़ारों पर कब्ज़ा कर लें और कहें कि ये हमारे पूर्वज हैं। क्यूंकि बाबा तो हिन्दू धर्मात्माओं को कहा जाता है।_
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 58 59*
*Note- कमी हमारे अंदर ही है। जो सब जानते हुऐ भी छुप रहते याद रखना मुसलमानो अगर सच्चाई मालूम होने के बाद भी चुप रहने बाले की अल्लाह तआला की बारगाह मे शक्त पकड़ होंगी*



POST 57】औरत का कफ़न मैके वालों के जिम्मे लाजिम समझना*
_यह एक गलत रिवाज है। यहाँ तक कि कुछ जगह मैके वाले अगर नादार व ग़रीब हों तब भी औरत का कफ़न उनको देना ज़रूरी ख़्याल किया जाता है और उनसे जबरदस्ती लिया जाता है और उन्हें ख्वामख्वाह सताया जाता है हालाँकि इस्लाम में ऐसा कुछ नहीं है।_
*मसअला यह है कि मय्यत का कफ़न अगर मय्यत ने माल न छोड़ा हो तो ज़िन्दगी में जिसके जिम्मे उसका नान व नफ़का था वह कफ़न दे और औरत के बारे में ख़ास तौर से यह है कि उसने अगरचे माल छोड़ा भी हो तो तब भी उसका कफ़न शौहर के जिम्मे है।*
📗 *(बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफ़ा 139)*
खुलासा यह है कि औरत का कफन या दूसरे खर्चे मैके वालों के जिम्मे ही लाज़िम ख़्याल करना और बहरहाल उनसे दिलवाना, एक गलत रिवाज है, जिसको मिटाना ज़रूरी है।
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 59*
*Note- अक्सर देखा जाता है। बाज़ लोग़ हट धर्मी की हद पार करते है। वो थोड़ा सा भी नही सोंच ते यह मरी हुई औरत हमारी शरीके हयात थी जब से निकाह मे आई तब से उसकी छोटी से लेकर बड़ी जरूरतों को पूरा किया आज वह इस मकाम पर है जहाँ से वह कुछ बोल भी नही सकती है। मे उन लोगों से कहना चाहूँगा जो ऐसी हट धर्मी मे लगें रहते है। कभी अपनी बीबी षे हयात ए जिन्दगी मे एक मर्तबा पूँछ कर देखना तुम्हारे मरने के बाद तुम्हारा कफन मैके बाले ही लायगे फिर उस वक़्त का मंजर देखना जो तुम्हे बरदास्त न होंगा उस औरत के पैर तले से जमीन खिसक जाएगी जब तुम उससे ऐसे अल्फाज बोलोंगे। मेरे भाईयों जिन्दगी भर इतना किया बाद मरने के भी अपनी बीबी के लिए उसके कफन से महरूम न रखना बरना बाद मरने के अल्लाह तआला की बारगाह मे सर को उठा न पओगे अगर ऐसी सोंच रखोगे।*



POST 58】मय्यत के बाद और बच्चे की पैदाइश के बाद पूरे घर की पुताई सफ़ाई को ज़रूरी समझना*
कुछ लोग घर में मय्यत हो जाने या बच्चा पैदा होने के बाद घर की पुताई कराते हैं और समझते हैं कि घर नापाक हो गया उसकी धुलाई सफ़ाई और पुताई कराना जरूरी है। हालांकि यह उनकी ग़लतफ़हमी है और इस्लाम में ज्यादती है। पुताई सफ़ाई अच्छी चीज़ है, जब ज़रूरत समझे करायें लेकिन बच्चा पैदा होने या मय्यत हो जाने की वजह से उसको कराना और लाजिम जानना जाहिलों वाली बातें हैं, जिन्हें समाज से दूर करना ज़रूरी है।
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 60*
*Note- हम हर जगह नई-नई बाते ईजाद हुए सुनते और देखते पर उनकी जाहिलयत की वजह से उनको रोक नही पाते अगर रोके भी तो मुँह की खानी पढ़ती है। इसलिए अपनी बेइज्जती के डर से खमोश रहते है। लेकिन मे अपने भाईयो-बहनो से कहूँगा गैर शरअ काम होते हुए देखो तो उसको रोको ज़रूर बरना इसकी सज़ा और अल्लाह तआला की बारगाह मे इसकी शक्त पकड़ तुम्हारी भी होंगी।*
*अल्लाह तआला से दुआ है अपने हबीब सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम के सदके हमे दीन दुनिया की समझ अता फरमाए।*
*आमीन सुम्मा आमीन या रब्बुल आलमीन*



POST 59】मय्यत के सर में कंघी करना*
कुछ जगह मय्यत को गुस्ल देने के बाद तजहीज़ व तकफ़ीन के वक़्त उसके बालों में कंघी करने लगते हैं, यह मना है। हदीस में है कि *हज़रते सय्यदना आइशा सिद्दीक़ा रदीअल्लाहु तआला अन्हा* से मय्यत के सर में कंघी करने के बारे में सवाल किया गया तो आपने मना फ़रमाया कि क्यूँ अपनी मय्यत को तकलीफ पहुंचाते हो।
📗 *(फतावा रजविया जिल्द 4 सफ़ा 33, बहवाला किताब उल आसार इमाम मुहम्मद)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 60*
*Note- बिला बज़ा कोई ऐसा काम न करे जो शरीअत मे मना हो अक्सर कुछ जगह बाज़ औरते जब कोई औरत सुहागन मरती है। उनको कंघी भी करती है माँग भी भरती है। यह शरीअत गलत है। और ऐसा करना गुनाह है।*




POST 60】क्या औरत फ़ातिहा नही पढ़ सकती?*
*फातिहा व ईसाले सवाब जिस तरह मर्दो के लिए जाइज़ है उसी तरह बिला शक औरतों के लिए भी जाइज़ है। लेकिन बाज़ औरतें बिला वजह परेशान होती हैं और फातिहा के लिए बच्चों को इधर उधर दौड़ाती हैं। हालांकि वह खुद भी फातिहा पढ़ सकती हैं। कम अज़ कम अल्हम्दो शरीफ़ और कुल हुवल्लाह शरीफ़ अक्सर औरतों को याद होती हैं। इसको पढ़कर खुदाए तआला से दुआ करें कि या अल्लाह इसका सवाब और जो कुछ खाना या शीरीनी है उसको खिलाने और बाँटने का सवाब फलां फलां और फलाँ जिसको सवाब पहुँचाना हो, उसका नाम लेकर कहें उसकी रूह को अता फ़रमा दे। यह फातिहा हो गई और बिल्कुल दुरुस्त और सही होगी।*
_बाज़ औरतें और लड़कियाँ कुछ जाहिल मर्दों और कठमुल्लाओं से ज़्यादा पढ़ी लिखी और नेक पारसा होती हैं। ये अगर उन जाहिलों के बजाय खुद ही कुर्आन पढ़कर ईसाले सवाब करें तो बेहतर है।_
*कुछ औरतें किसी बुजुर्ग की फातिहा दिलाने के लिए खाना वगैरह कोने में रखकर थोड़ी देर में उठा लेती हैं और कहती हैं । कि उन्होंने अपनी फातिहा खुद ही पढ़ ली। ये सब बेकार की बातें हैं जो जहालत की पैदावार हैं। इन ख्वाम ख्वाह की बातों की बजाय उन्हें कुर्आन की जो भी आयत याद हो, उसको पढ़कर ईसाले सवाब कर दें तो यही बेहतर है और यह बाक़ाइदे फातिहा है।*
_हाँ इस बात का ख्याल रखें कि मर्द हो या औरत उतना ही कुर्आन पढ़े जितना सही याद हो और सही मख़ारिज से पढ़ें ग़लत पढ़ना हराम है और ग़लत पढ़ने का सवाब न मिलेगा और जब सवाब मिला ही नहीं तो फिर बख़्शा क्या जाएगा। आजकल इस मसअले से अवाम तो अवाम बाज़ ख़वास भी लापरवाही बरतते हैं।_
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 60 61*




POST 61】जिन्दगी में कब्र व मज़ार बनवाना*
_कुछ लोग अपनी जिन्दगी में कब्र तय्यार कराते हैं, यह मुनासिब नहीं। अल्लाह तआला फरमाता है :_
*_तर्जमा : कोई नहीं जानता कि वह कहीं मरेगा।_*
कब्र तय्यार रखने का शरअन हुक्म नहीं अलबत्ता कफन सिलवा कर रख सकता है कि जहाँ कहीं जाये अपने साथ ले जाये। और तब हमराह (साथ) नहीं जा सकती
📘 *(अलमलफूज़ हिस्सा अव्वल सफा 69)*
*"कुछ खानकाहियों को देखा कि वह जिन्दगी में पक्का मज़ार बनवा लेते हैं। यह रियाकारी है गोया कि उनको यह यकीन है कि वह अल्लाह के वली और बुजुर्ग व बेहतर बन्दे हैं और इस मरतबे को पहुंचे हुए हैं कि आम लोगों की तरह कच्ची कहें नहीं बल्कि उन्हें खूबसूरत मजार में दफन होना चाहिए। हालाँकि सच्चे वलियों का तरीका यह रहा है कि वह खुद को गुनाहगार ख्याल करते थे, जो खुद को वली ख्याल करते और अपनी विलायत के ऐलान करते फिरते हैं, ये लोग औलियाए किराम की रविश पर नहीं हैं।*
*पीराने पीर सय्यिदिना गौसे आजम शेख अब्दुल कादिर जीलानी रदिल्लाहु तआला अन्हु* _से बड़ा बुजुर्ग व वली हजार साल में न कोई हुआ और न कियामत तक होगा। उनके बारे में हजरते सूफी जमाँ शैख मुसलेहुद्दीन सअदी शीराज़ी नक़ल करते हैं कि उनको हरमे कअबा में लोगों ने देखा कि कंकरियों पर सर रख कर खुदाए तआला की बारगाह में अर्ज कर रहे थे।_
*"ऐ परवरदिगार अगर मैं सजा का मुस्तहक हूँ तो तु मुझको कियामत के रोज अन्धा करके उठाना ताकि नेक आदमियों के सामने मुझको शर्मिन्दगी न हो।”*
📗 *(गुलिस्ताँ बाब 2 सफ़ा 67)*
_बाज सहाबए किराम के बारे में आया है कि वह यह दुआ करते थे ‘‘ऐ अल्लाह मुझे जब मौत आये तो या जगल का कोई दरिन्दा मुझे फाड़ कर खा जाये या कहीं समुद्र में डूब कर मर जाऊँ और मछलियों की गिज़ा हो जाऊँ।"_
*यआनी वह शोहरत से बचना चाहते थे और नाम व नमूद के बिल्कुल रवादार न थे और यही अस्ल फकीरी व दुरवेशी है, और आजकल के फकीरों को अपने मज़ारों की फिक्र पड़ी है*
_साहिबो! चाहने मानने वाले मुरीदीन व मोअतक़दीन (अकीदत रखने वाले) बनाने और बढ़ाने और मज़ार व कर्मी को उम्दा व खूबसूरत बनाने या बनवाने से ज्यादा आख़िरत की फिक्र करो। खुदा व रसूल को राज़ी करो। मुरीदीन व मुअतक़दीन की कसरत और मज़ार की उम्दगी और संगेमरमर की टुकड़ियाँ अजाबे इलाही और कब्र की पिटाई से बचा नहीं सकेंगी अगर आप केकारनामों और दंगों से खुदा व *रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* नाराज़ हैं।_
*ऐसी फ़क़ीरी व सज्जादगी से भी क्या फ़ाइदा कि कब्र के अन्दर आपकी बदअमलियों या बदएतकादियों और रियाकारियों की वजह से पिटाई होती हो और मज़ार पर मुरीदीन चादरें चढ़ाते फूल बरसाते और धूम धाम से उर्स मनाते हों।*
_कोशिश इस बात की करो कि मुरीद हों या न हों, मज़ार बने या न बने चादरें चढ़े या न चढ़े उर्स हो या न हो लेकिन कब्र में आपको राहत मिलती हो और जन्नत की खिड़की खुलती हो ख्वाह ऊपर से कर कच्ची हो और यह नेमत हासिल होगी, खुदा व रसूल के हुक्म पर चलने से_
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 62,63*




POST 62】मज़ारात पर हाज़िरी का तरीक़ा*
*औरतों को तो मज़ारात पर जाने की इजाज़त नहीं मर्दो के लिए इजाजत है मगर वह भी चन्द उसूल के साथ :*
*_(1) पेशानी ज़मीन पर रखने को सज्दा कहते हैं यह अल्लाह तआला के अलावा किसी के लिए हलाल नहीं किसी बुजुर्ग को उसकी ज़िन्दगी में या मौत के बाद सज्दा करना हराम है। कुछ लोग मज़ारात पर नाक और पेशानी रगड़ते हैं यह बिल्कुल हराम है।_*
*_(2) मज़ारात का तवाफ़ करना यानी उसके गिर्द ख़ानाए काबा की तरह चक्कर लगाना भी नाजाइज़ है।_*
*_(3) अज़ रूए अदब कम से कम चार हाथ के फासले पर खड़ा होकर फातिहा पढ़े चूमना और छूना भी मुनासिब नहीं।_*
📙 *(अहकामे शरीअत सफ़हा 234)*
*(4) मज़ामीर के साथ कव्वाली सुनना हराम है तफ़सील के लिए देखिये।*
📗 *(फ़तावा रजविया, जिल्द 10, सफहा 54 से 56)*
_कुछ लोग समझते हैं कि सज्दा बगैर नियत और काबे की तरफ़ मुतवज्जेह हुए नहीं होता। यह भी जाहिलाना ख्याल है सज्दे में जिसकी ताज़ीम या इबादत की नियत होगी उसको सज्दा माना जाएगा। और जो सज्दा अल्लाह की इबादत की नियत से किया जाएगा वह अल्लाह तआला के लिए होगा और जो मज़ारात पर या किसी भी गैरे खुदा के सामने किया जाए वह उसी के लिए होगा। खुलासा यह कि ज़मीन पर किसी बन्दे के सामने सर रखना हराम है। यूंही बक़दरे रूकूअ झुकना भी मना है हाँ हाथ बाँध कर खड़ा होना जाइज़ है।_
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 64*
*Note- आज कल देखा जाता है हमारे कुछ बाज़ लोग कम इल्मी के बजह से मजारात पर सज्दा करते है तवाफ़ करते नज़र आते जिनकी बजह से गैरो को हम पर तोहमत लगाने का मौक़ा मिल जाता है। इसलिए इस्लाम मे इल्म दीन शीखने को फ़र्ज कहा है। हमारे भोले भाले मुसलमान कम इल्म की वजह से खिलाफे शरअ काम करते नज़र आते है। मे उनसे यही कहूँगा इल्म हासिल करो इसके लिए चाहें तुम्हे कही भी जाना पढ़े।*



POST 63】क़ब्रिस्तानों मे चिराग़ व मोमबत्ती जलाने और अगरबत्ती या लोबान सुलगाने का मसअला*
*_शबे बरात वगैरा के मौके पर कब्रिस्तानों में चिराग बत्तियां की जाती हैं। इस बारे में यह जान लेना जरूरी है कि बिल्कुल ख़ास कब्र के ऊपर चिराग व मोमबत्ती जलाना लोबान व अगरबत्ती सुलगाना मना है। कब्र से अलाहिदा किसी जगह एसा करना जाइज़ है जबकि इन चीजों से वहाँ आने जाने और कुर्आन शरीफ़ और फातिहा वगैरा पढ़ने वालों को या राहगीरों को नफ़ा पहुँचने की उम्मीद हो। यह ख्याल करना कि इस की रोशनी और खुशबू कब्र में जो दफ़न हैं उनको पहुंचेगी जहालत नादानी, नावाकिफ़ी और गलतफहमी है। दुनिया की रोशनि यां सजावटें और डेकोरेशन वरा जो कब्रिस्तानों में करते हैं और यह खुशबूएं मुर्दो को नहीं पहुँचती, मुर्दों को सिर्फ सवाब ही पहुँचता है। मुर्दा अगर जन्नती है तो उसके लिए जन्नत की खुशबू और रौशनी काफी है। और जहन्नमी के लिए कोई रोशनी है न ख़ुशबू_*
📗 *(सही मुस्लिम जिल्द 1, सफ़हा 76, फतावा रजविया, जिल्द 4, सफ़हा 141)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 65*



POST 64】मज़ार पर चादर चढ़ाना कब जाइज़ है।?*
अल्लाह तआला के नेक और खास बन्दे जिन्हें औलियाए किराम कहा जाता है। उनके इन्तिकाल के बाद उनकी मुकद्दस कब्रों पर चादर डाल देना जाएज है। इस चादर चढ़ाने में एक मसलिहत यह है कि इस तरह उनकी मुबारक कब्रों की पहचान हो जाती है कि यह किसी अल्लाह वाले की कब्र है और अल्लाह के। नेक बन्दों की इज्जत करना जिस तरह उनकी दुनयवी जिन्दगी में जरूरी है उनके विसाल के बाद भी उनका अदब व इहतिराम जरूरी है और मज़ारात पर चादर चढ़ाना भी अदब व इहतिराम है
*और दूसरों से अलग उनकी पहचान बनाना है जो लोग औलियाए किराम के मजारात पर चादर चढ़ाने को नाजाइज व गुनाह कहते हैं वह गलती पर हैं। लेकिन इस बारे में मसअला यह है कि एक चादर जो मजार पर पड़ी हो जब तक वह पुरानी और ख़राब न हो जाए दूसरी चादर न डाली जाए मगर आजकल अकसर जगह मजारों पर इसके ख़िलाफ़ हो रहा है। फटी पुरानी और ख़राब तो दूर की बात है मैली तक नहीं होने देते और दूसरी चादर डाल देते हैं। कुछ जगह तो दो चार मिनट भी चादर मज़ार पर नहीं रह पाती। इधर डाली और उधर उतरी यह गलत है और अहले सुन्नत के मजहब के ख़िलाफ़ है।*
_इस तरह चादर चढ़ाने के बजाए उस चादर की कीमत से मुहताजों व मिस्कीनों को खाना खिला दे या कपड़ा पहना दे या किसी गरीब मरीज का इलाज करा दे किसी जरूरतमन्द का काम चला दे किसी मस्जिद या मदरसे की जरूरत में खर्च कर दे, कहीं मस्जिद न हो तो वहाँ मस्जिद बनवा दे और इन सब कामों में उन्हीं बुर्जुग के ईसाले सवाब की नियत कर ले जिनके मजार पर चादर चढ़ाना थी तो यह उस चादर चढ़ाने से बेहतर है। हाँ अगर यह मालूम हो कि मजार पर चढ़ाई हुई। चादर उतरने के बाद गरीबों मिस्कीनों और मुहताजों के काम में आती है तो मजार पर चादर चढ़ाने में भी कुछ हर्ज नहीं क्यूंकि यह भी एक तरह का सदका और खैरात है। लेकिन आजकल शायद ही कोई ऐसा मजार होगा जिसकी चादरें गरीबों और मिस्कीनों के काम में आती हों बल्कि मुजावरीन और सज्जादगान उन पर कब्ज़ा कर लेते हैं और यह सब अकसर मालदार होते हैं_
खुलासा यह है कि आजकल मज़ारात पर जब एक चादर पड़ी हो तो वहाँ दूसरी चादर चढ़ाने से बुजुर्गों के ईसाले सबाब के लिए सदका व खैरात करना गरीबों मिस्कीनों और मुहताजा के काम चलाना अच्छा है और यही मजहबे अहले सुन्नत और उलामाए अहले सुन्नत का फतवा है।
*आलाहजरत इमाम अहले सुन्नत मौलाना अहमद रजा खाँ बरेलवी अलैहिर्रहमा फरमाते हैं*
'और जब चादर मौजूद हो और वह अभी पुरानी या खराब न हुई कि बदलने की हाजत हो तो चादर चढ़ाना फुजूल है। बल्कि जो दाम इसमें खर्च करें वली अल्लाह की रूहे मुबारक को ईसाले सवाब के लिए मोहताज को दें। हाँ जहाँ मअमूल हो कि चढ़ाई हुई चादर जब हाजत से जाएद हो खुद्दाम मसाकीन हाजतमन्द ले लेते हैं और इस नियत से डाले तो कोई बात नहीं कि यह भी सदका हो गया।
📘 *(अहकामे शरीअत हिस्सा अव्वल सफ़ा 72)*
*Note- और अगर ऐसी जगह जहाँ पहले से चादर मौजूद हो और वह बोसीदा और ख़राब न हुई हो चादर चढ़ाने की मन्नत मानी हो तो उस मन्नत को पूरा करना जरूरी नहीं। और ऐसी मन्नत मानना भी नहीं चाहिए*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 65,66 67*



POST 65】एतिकाफ़ मे चुप रहना*
_कुछ लो एतिकाफ़ मे चुपचाप बैठे रहने को ज़रूरी समझते हैं हालाँकि एतिकाफ़ मे चुप रहना न ज़रूरी न महज ख़ामोशी कोई इबादत बल्कि चुप रहने को सबाब की बात समझना मकरूहे तहरीमी है।_
📗 *(बहारे शरीअत हिस्सा 5 सफ़हा 153)*
*अल्बत्ता बुरी बातों से चुप रहना ज़रूरी है। खुलासा यह कि एतिकाफ़ की हालत मे कुर्आन मजीद की तिलावत करे तसवीह व दुरूद का विर्द करे नफ़्ल पढ़े दीनी किताबों का मुताअला करें दीन की बाते सीखने और सिखाने मे कोई हरज नही बल्कि इबादत है। ज़रूरत के वक़्त कोई दुनिया की जाइज़ बात भी की जा सकती है। इससे एतिकाफ़ फ़ासिद नही होगा । हाँ ज़्यादा दुनियावी बातचीत से एतिकाफ़ बेनूर हो जाता है। और सबैब कम होता है।*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 67*
*_एतिकाफ़ पर बैठना यह भी एक सुन्नत है। जिसको हर इन्सान को अगर हर साल न कर सके तो ज़िन्दगी मे एक मर्तबा एतिकाफ़ पर बैठना चाहिए एतिकाफ़ एक ऐसी इबादत है। किसी एक बैठने से पूरी बस्ती को अजाब से निजात मिलतीं है। माशा अल्लाह किसी एक शख्श के बेठने से पूरी बस्ती का अजाब उठा लिया जाता है। अगर पूरी बस्ती मे 4-5 मस्जिद हो और हर मस्जिद मे एतिकाफ़ पर कई हजरात बैठें हो अल्लाह हुअकबर उस बस्ती पर अल्लाह अपनी रहमतो को नुजूल बरसाता होगा कुर्बान जाओ लब पर जिसने हम गुनहगारों को इतना सब दिया लेकिन हम उसका भी गलत फायदा उठाते है।_*
_आजकल ज्यादा देखा जाता है। मस्जिदों मे कम उम्र बाले ज़्यादा और हमारे बुजुर्ग कम बैठते है। अल्लाह पाक सबको बैठने की तोफीक दे बहिर हाल मेरे कहने का मकसद यह है। जो हमारी आज की जनरेशन है। एतिकाफ़ पर बैठती है। उनके साथ उनके कई दोस्त यार एक दूसरे को देख कर बेठते है। लेकिन हम अपने उन नोजवान भाईयों से इतना कहना चाहता हू। अए मेरे भाई *अल्लाह ने अपने हबीब सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* के सदके मे यह रातें हमे दी है। इनकी कद्र करो अक्सर देखा जाता है। हमारे नौजवान भाई पूरी रात जागते है। पर इबादत मे नही फ़ोन मे बिजी रहते है। या बातो मे मसगूल रहते है। मे उनसे इतना पूँछना चाहूँगा क्या *अल्लाह तआला* तुम्हारे एतकाफ हो कुबूल करेगा या नही सोचो मेरे नौजवान भाईयों अगर तुमने एतिकाफ़ की नियत की है। उसे सही तरीके से निभाओ जिससे *अल्लाह और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* राजी हो जाए।_
_दुआ है। रब तबारक तआला से हमे सही मायनो मे शरीयत का पाबंद बना दे।_
*आमीन सुम्मा आमीन या रब्बुल आलमीन*



POST 66】रेडियो, तार, टेलीफोन, की ख़बर पर बगैर शरई सबूत के चाँद मान लेना?*
*पार्ट-1*
_आजकल काफी लोग सिर्फ रेडियो, तार, टेलीफोन की ख़बर पर बगैर चाँद देखे या बगैर शरई सुबूत के ईद मना लेते हैं या रमज़ान शरीफ का चाँद हो तो रोज़ा रख लेते हैं, यह गलत है। अगर आसमान पर धुन्ध गुबार या बादल हो तो रमज़ान के चाँद के लिए एक और ईद के चाँद के लिए दो बा शरअ दीनदार भले मर्दों की गवाही ज़रूरी है। आसमान साफ हो तो बहुत से लोगों का चांद देखना जरूरी है एक दो की गवाही काफी नहीं महज रेडियो, तार व टेलीफोन की ख़बर पर न रोजा रखें न ईद मनायें जब तक कि आप की बस्ती में शरई तौर पर चाँद का। सबूत न हो या दूसरी बस्ती में चाँद देखा गया हो और शरई तौर पर इस की इत्तिला आप तक न आ गई हो। रेडियो, टेलीफोन पर ईद मनाई जाए तो आजकल पूरी दुनिया में एक ही दिन ईद होना चाहिए और हमेशा ईद का चाँद 29 दिन का ही होना चाहिए। क्यूंकि दुनिया में ईद का चाँद कहीं न कहीं 29 का जरूरी हर साल मान लिया जाता है और आजकल पूरी दुनिया में इसकी खबर हो जाना बज़रिए रेडियो, टेलीफोन एक आम व आसान सी बात है तो रोजे कभी 39 हो ही नहीं सकते।_
*सऊदी अरब मे भी अमूमन हिन्दुस्तान से हमेशा एक दिन पहले ईद मनाई जाती है तो रेडियो, टेलीफ़ोन पर अकीदा रखने वाले वहाँ के ऐलान पर ईद क्यूं नहीं मनाते? देहली के ऐलान पर क्यूं मनाते हैं? इस्लामाबाद, कराची, लाहौर, ढाका और रंगून की इत्तिलाआत क्यूं नजर अन्दाज कर दी जाती हैं?*
_अगर कोई यह कहे वह दूसरे मुल्क हैं तो हम पूछते हैं यह। मुल्कों के तक्सीम और बटवारे क्या कुरआन व हदीस की रू से हैं? क्या खुदा व रसूल ने कर दिये हैं या आजकल की मौजूदा सियासत और अक़वामे मुत्तहिदा की तरफ़ से हैं? और अकवाने मुत्तहिदा की तकसीम की शरीअते इस्लामिया में क्या कोई हैसियत है? यह भी तो हो सकता है कि कोई कौमी हुकमरा खुदाए तआला पैदा फ़रमाये और वह इन सब मुल्कों को फतेह करके सब को एक ही मुल्क बना डाले और ऐसा हुआ भी है।_
*और अगर जवाबन कोई कहे कि मुल्क दूसरा और दूरी ज्यादा होने की बिना पर मतलअन अलग अलग है तो ख्याल रहे। कि इख्तिलाफे मताअले मोतबर नहीं और अगर बिल फर्ज मान भी लीजिये तो हिन्दुस्तान के वह शहर और इलाके जो अपने मुल्क के शहरों देहली मुम्बई और कलकत्ता वोरा से दूर हैं और दूसरे मुल्कों पाकिस्तान, बंगलादेश, बर्मा, चीन, तिब्बत, लंका, नेपाल के बाज शहरों से करीब हैं तो उन्हें आप चाँद के मामले में कहाँ की पैरवी करने का मशवरा देंगे अपने मुल्क की या जिन मुल्कों और शहरों से वह करीब हैं वहाँ की? और वह मतलअ के बारे में देहली, मुम्बई और कलकत्ता की मुवाफिक़त करेंगे या दूसरे मुल्कों के अपने से करीब इलाकों की?*
_खुलासा यह कि बगैर शरई सुबूत के महज रेडियो, तार व टेलीफोन की खबरों पर चाँद के मामले में एतिबार करना इस्लाम व कुरआन व हदीस के मुतलक़न ख़िलाफ़ है_
📘 *(फतावा आलम गीरी मिसरी जिल्द 3 सफहा 357 में है।)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 68 69*



POST 67】रेडियों, तार, टेलीफ़ोन की ख़बर पर बग़ैर शरई सुबूत के चाँद मान लेना?*
*पार्ट-2*
_‘‘पर्दे के पीछे से अगर कोई शख्स गवाही दे तो उसकी गवाही मोतबर नहीं क्यूंकि एक आवाज़ दूसरी आवाज़ की तरह होती है।"_
*तो रेडियो और टेलीफ़ोन पर बोलने वाला तो हज़ारों लाखों पर्दों आड़ों के पीछे है उसकी गवाही क्यूं मोतबर होगी?*
_फिर यह कि अगर आप की बस्ती में 29 का चाँद न हुआ। और किसी जगह हो गया और आप तक शरअन इत्तिला न आई आपने रोज़ा न रखा या ईद का चाँद है और ईद न मनाई बल्कि रोज़ा रखा तो आप पर हरगिज़ कोई गुनाह व अज़ाब नहीं क्यूंकि अजाब व सवाब की कुंजी अल्लाह तआला के दस्ते कुदरत में है।_
*लिहाज़ा आप वह कीजिये जिसका उसने हुक्म दिया है और उतना कीजिये जितना उसने फरमाया है। हदों से आगे मत बढ़िये और रेडियो टेलीफोन सुन सुन कर शोर मत मचाइये, कूद फॉद मत कीजिये। जाने दीजिये पूरी दुनिया में ईद हो जाए अगर आप तक शरई इत्तिला नहीं है आप रोज़ा रखिये आप से बरोजे कियामत कोई पुरसिश न होगी फिर फ़िक्र की क्या जरूरत है। फिक्र तो उसकी कीजिये जिसके बारे में कम व हश्र में सवाल होगा।*
_हदीस शरीफ़ में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि महीना कभी 29 का हो जाता है तो जब तक चाँद न देखो रोज़ा न रखो और अगर तुम्हारे सामने अब्र या गुबार आ जाए तो 30 दिन की गिनती पूरी करो।_
📘 *(बुख़ारी व मुस्लिम मिश्कात, सफहा 174)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 69,70*
📍 *Note- गौर करने का मकाम है कि मौजूदा दौर की कचहरियों में भी जज और हाकिम गवाहों को सामने बुला कर गवाही लेते हैं अगर कोई घर बैठे टेलीफ़ोनों के ज़रिए गवाही दे दे तो हरगिज़ न मानेगे तो शरई अहकाम और शहादतों की आख़िर आपकी निगाह में कोई अहमियत है या नहीं, जिन्हें आप तार, टेलीफोन और रेडियो के हवाले किये दे रहे हैं। खुदाए तआला का खौफ खाइये और आप दीनदार बनने की कोशिश कीजिये दीन का ठेकेदार बनने की कोशिश मत कीजिये। वह जिस का है। काम उस पर छोड़ दीजिये और अपनी अपनी बस्ती के उलमा और इमाम जो अहले हक हों उनकी बात पर अमल कीजिये।*



POST 68】क्या इन्जेक्शन लगवाने से रोज़ा टूट जाता है।?*
*इन्जेक्शन चाहे गोश्त मे लगवाया जाये या रग मे इससे रोज़ा नही टूटता है। अलबत्ता उलेमाए किराम ने रोज़े मे इन्जेक्शन लगवाने को मकरूह फ़रमाता।*
लिहाज़ा जब तक खास ज़रूरत न हो न लगवायें इस मसअले की तफ़सील व तहक़ीक जानने के लिए देखिऐ :-
📗 *(फ़तावा फ़ैजुर्रसूल जिल्द 1 सफ़ा 517)*
📘 *(फ़तावा मरकज़ी दारूल इफ्ता सफ़ा 359)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 71*
_आम तोर पर देखा जाता है। एक तो हमारे भाई रोजे से नही रहते अगर रहते भी है। तो जेसे बो किसी पर अहसान करते हो ऐसे ज़ोरदारों का रोज़ा उनके मुँह पर मार दिया जाएगा जो रोजे की हालत मे अपने किसी भाई को तकलीफ पहुँचाए या उसके साथ बुरा बरताव करे अए मेरे रोजेदार भाईयों रोजा तो सब्र का नाम है। रोज़ा अल्लाह की इबादत का नाम है। जो हम जेसे गुनहगारो को *अल्लाह ने अपने हबीब सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* के सदके मे हमे अता किए है।_
_हमारे कुछ भाई रोजे से तो रहते है। पर रोज़े की हालत मे गलत कामो मे मसगूल रहते है। चोराहो पर आकर बद्निगाही करते है। अपने मुँह से कहते है। अगर हमारा रोजा न होता तो हम फलां काम ऐसा कर देते बेसा कर देते जो अपने रोज़े की सरे आम नुमाइस करे उनका रोज़ा उनके मुँह पर मार दिया जाएगा नेक अमाल तो ऐसे है। जो अल्लाह और उसका करने बाला बन्दा बहतर जाने उसको कहते नेक काम करना रियाकारी करके तुम्हारा कोई नेक अमाल अल्लाह की बारगाह मे कुबूल न होंगा अए रोजेदारों अगर आख रत सुधारनी है। तो सच्चे दिल से अल्लाह की बारगाह मे ऱूज़ू करना सीख जाओ मे दावे के साथ कहता हू। अगर तुम्हारे किसी नेक काम मे दिखावा न होगा तो दुनिया भी सबर जाएगी आखिरत भी सबर जाएगी।_
*दुआ है पाक परबरदिगार से हम सब मुसलमानो को सही मायनो मे नमाज़ रोज़े का पाबंद बना दे इस माहे मुबारक का सदका अता फरमाऐ*
*आमीन सुम्मा आमीन या रब्बुल आलमीन*



POST 69】क्या रमज़ान की रातों में शौहर और बीवी का हमबिस्तर होना गुनाह हैं।*
_अवाम मे कुछ लोग ऐसा ख़्याल करते है। हालाँकि यह उनकी ग़लतफहमी है। माहे रमज़ान मे इफ़्तार के वक़्त से ख़त्मे शहरी तक रात मे जिस तरह खाना पीना जाइज़ है। उसी तरह बीवी और शौहर का हमबिस्तर होना और सुबहत व मुजामअत बिला शक जाइज़ है। और और बकसरत अहादीस से साबित है। बल्कि कुर्आन शरीफ़ मे ख़ास इसकी इजाज़त के लिए आयते करीमा नाजिल़ फरमाई गई।_
*इरशादे बारी तआला है :-*
_*तर्जमा :-* तुम्हारे लिऐ रोजे की रातों मे औरतो से सुबहत हलाल की गई वो तुम्हारे लिए लिबास हैं तुम उनके लिए लिबास।_
📖 *(पारा 2 रूकूअ 7)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 71*
_खुलाशा यही है। कुछ जाहिलाना लोग इसको गलत समझते है। लेकिन ऐसा कुछ नही अल्लाह ने जेसे आम रातो मे बीवी के साथ सुबहत जाइज़ की है। इसी तरह रमज़ान की रातो मे बिला शक जाइज़ है। ख़्याल रहे रातो मे रोज़े की हालत मे दिन में नहीं खासकर रोज़दार को अपने रोज़े की हिफाजत ख़ुद करनी होती है। वो इसलिए रोज़ेदार का रोज़ा अल्लाह और उसके बन्दे के दरमियांन का होतां जिसको अल्लाह और अल्लाह के बन्दो के शिवा तीसरा कोई नही जानता है। अब जरा सोचो मुसलमानो रोज़दार अपने रब के कितने करीब न होंगा कुर्आन बान जाओ *प्यारे आका सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* जिनके सदके मे अल्लाह तआला ने यह महीना हम गुनहगारो को अता किया है। रोज़ा भूख प्यास नमाज़े पढ़ने का नाम नहीं रोज़ा तो वह है। जिससे रखनें के बाद अल्लाह और अल्लाह के *महबूब सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* के शिवा कोई दुनियाँवी खराबी मे मसगूल न हो ऐसा रोज़ेदार का रोज़ा बिला शक अल्लाह तआला की बारगाह मे मक़बूल है।_
*कुछ रोज़ेदार रोज़े की हालत मे रहकर इतना थूखते है। जिसकी कोई हद नही है। और दूसरे को अहसास कराते है। हम रोज़े से है। यह ़रिया कारी होंगी ़रिया कारी करने बालो का रोज़ा अल्लाह पसन्द नही करता है। और दूसरी बात अगर बह हद से ज्यादा थूकेगा तो जल्द ही उसे प्यास की सिद्दत महसूश होने लगेगी जिससे रोज़ेदार की हालत कमजोर होतीं है। मे अपने उन भाई बहनो माँ से कहना चाहता हू। थूक को गुटकने से रोज़ा नही जाता है। यह भी गलतफहमी आवाम मे मशहूर है। हा मुँह भरकर थूक को अन्दर निगलने से रोज़ा मकरूह होता है। पर टूटता नही है। मुँह भर के थूक गुटकना आम दिनो मे भी मकरूह है। लेकिन थोड़ा थूक अगर आप अन्दर निगलते है। तो उससे रोज़ा नही जाता है। इस बात का खास ख़्याल रखे।*



POST 70】क्या नापाक रहनें से रोज़ा टूट जाता है।*
अगर कोई शख़्स रोज़ा रखकर दिन मे नापाक रहें और इस नापाकी की वजह से उसकी नमाज़ छूटती है। तो उसके ऊपर नमाज़ छोड़ने का गुनाहे अज़ीम होगा क्यूँकी फ़र्ज नमाज़ छोड़कर इस्लाम मे बड़ा गुनाह है। अंर जहन्नम का रास्ता है।
लेकिन इस नापाकी का उसके रोज़े पर कोई असर नहीं पड़ेगा यअनी रोज़ा हो जायेगा। यह ख़्याल करना कि नापाकी की हालत मे रोज़ा नही होंगा, ग़लतफहमी है। पाक रहना नमाज़ के लिए शर्त है। रोज़े के लिए नही चाहे दिन भर नापाक रहे तब भी रोज़ा बाक़ी रहेंगा लेकिन यह नापाक रहना मोमिन की शान नहीं क्यूँकी इस तरह नमाज़े क़ज़ा होंगी।
अहादीश करीमा की रोशनी मे इस मसअले की तहक़ीक व तफ़सील जिसे देखना हो वह
📗 *(फ़तावा रज़विया जिल्द 4 सफ़हा 615 को देखे)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 72*
खुलासा यही है। नापाक रहने से भी रोज़ा मे कोई फर्क नही होंगा लेकिन मोमिन की यह शान नही के वह नापाक रह कर रोज़े रखे मुसलमान थो और इस्लाम तो पाकी का नाम है। जिसको देख कर गैर क़ौम भी हमसे इबरत हासिल करती है। हमारी पाकी का डंका तो पूले जहान मे बजता है। फिर क्यूँ हम इतने पाक मुकद्दश महीने के रोज़ो को नापाक रहकर रखें।
*रोजे रखना हर मुसलमान मर्द औरत बालिग बच्चों पर फ़र्ज है। लेकिन कुछ हमारे भाई माँ बहिने मज़बूरी के चलते रोज़ा छोड़ देते है। उनकों यह मालूम होना चाहिएं यह रोज़े अल्लाह ने हम पर फ़र्ज किए है। अगर मज़बूरी मे हमने रोज़े को छोड़ा है। तो इसका कफ्फारा भी करना होगा रमज़ान के बाद इसके रोज़ो का कफ्फारा करने के लिए अपने पास के उलमा से ऱूज़ू करे और सही तरीके रोज़े का कफ्फारा अदा करे।*
मोमनो शहरी खाया करो चाहे एक लुक्मा क्यूँ ना खाओ यह *प्यारे आक़ा सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* की सुन्नत मुबारका है। इससे महरूम मत रहा करों कुछ हमारे भाई है। जो बगैर शहरी का रोज़ा रहकर चारो तरफ सुनाते है। आज हम बगैर शहरी का रोज़ा है। ऐसा करनें बालो इबरत हासिल करना चाहिए एक तो *अल्लाह* अपने *प्यारे महबूब सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* की अज़ीम सुन्नत से महरूम किया उनको सोचना चाहिएं *अल्लाह* हमने ऐसी कोंन सी खता या ग़लती हुई जिसकी बजह से *परबरदिगार* ने हमे इतनी अनमोल और कीमती सुन्नत से महरूम रखा उस ग़लती के लिए *अल्लाह तआला* से सिद्के दिल से तौबा करे और माफ़ी तलब करे *अल्लाह तआला* को तौबा करने बाला बहुत पसंद है। दूसरी ग़लती जो सुनाता फिरता है। मेने शहरी नही की बह अपने रोज़े की नुमाइस करता है। और रिंया कारी करता है। जो *अल्लाह तआला* को सबसे ज्यादा न पसन्द है। फेसला आपके हाथ मे *अल्लाह तआला* रजा मे राज़ी होना है। या अपने दिखाबे मे खुश होना है। करलो तौबा अभी रहमत बरसती है। माँग लो रों कर ख़ुदा से अपनी निज़ात मग़फिरत अल्लाह आपने बन्दो को महरूम न करेगा।
*आप सभी हजरात इस गुनाहगार को अपनी ख़ास दुआओं मे याद रखें अल्लाह तआला आपकी हर नेक दुआओं को आपके रोज़ा नमाज़ो को अपनी बारगाह मे कुबूल करें।*
*आमीन सुम्मा आमीन या रब्बुल आलमीन*



POST 71】रोट बोट का रोज़ा*
*_कुछ जगहों पर रजब की 17 तारीख़ को रोज़ा रखते है। और उसे रोट बोट का रोज़ा कहते है। ख़ास तौर से इस दिन रोज़ा रखने का शरीअते इस्लामिया मे कोई हुक्म नही नफ़्ल रोज़ा साल मे मननूअ दिनो को छोड़ कर कभी भी रखा जा सकता है।17 रजब को रोज़े के लिए मख़सूस वज़न की छोटी बड़ी दो रोटियाँ और बोटियाँ पकाना छोटी फातिहा पढ़ने वाले को और बड़ी रोज़ेदार को खिलाना बे अस्ल और गढ़ी हुई बातें है।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 72*
_खुलासा यही है किसी के नाम के रोजे रखना शरीअत मे शक्त मना है। अल्लाह के शिवा किसी पर रोज़ा रखना जायज़ नही है।_
*_माहे रमज़ान का मुबारक महीना शुरू हो गया है। मेरे अजीज भाई माँ बहिनो से गुजारिश है। इस पाक महीने मे जितना हो सके अल्लाह की इबादत मे मसगूल रहो मोबाईल को अपने पास ज्यादा मत रखों यह भी शैतान का काम कर रहा है। कुर्आन की तिलावत करो तसबीह कलिमात पढ़ो अगर इस माह मे अपने रब को राजी नही किया तो फिर न कर पाओगे अए मुसलमानो मना लो करलो राज़ी रब को रोकर रोज़े रखकर नमाज़े पढ़कर अल्लाह हमे सही मायनो इस माह की कद्र करने तोफीक अता फरमाए।_*
*आमीन सुम्मा आमीन या रब्बुल आलमीन*



POST 72】हज़रत अली मुश्किल कुशा और सोलह सय्यिदों का रोज़ा*
_कुछ जगह औरतें *अली मुश्किल कुशा रदिअलाहो तआला अन्हुमा* का रोज़ा रखती हैं। तो रोज़ा हो या कोई इबादत सब अल्लाह तआला के लिए ही होती है। हाँ अगर यह नियत कर ली जाए कि इस का सवाब *हज़रते अली रदीअल्लाहो तआला अन्हुमा* की रूहें पाक को पहुँचे तो यह अच्छी बात है। लेकिन इस रोज़े में इफ़्तार आधी रात में करतीं हैं और घर का दरवाज़ा खोल कर दुआ मांगती हैं। यह सब खुराफात और वाहियात और वहमपरस्ती की बातें हैं।_
📙 *(फ़तावा रजविया, जिल्द 4, सफ़हा 660)*
_यूं ही 16 रजब को सोलह सय्यिदों को रोज़ा रखा जाता है। उसमें जो कहानी पढ़ी जाती है, वह गढ़ी हुई है।_
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 73*
*Note :- हदीस शरीफ हज़रत अबू हुरैरा रज़ी अल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है के रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने फ़रमाया:📖*
_सब रोज़ों में अफ़ज़ल रोज़ा रमज़ान का रोज़ा है और उसके बाद *मुहर्रम* का रोज़ा है।_
📗 *(सहीह मुस्लिम हदीस 2755)*
*-अक्सर लोग इसमें कन्फ्यूज़ होते हैं के कितने रोज़े रखने हैं? तो जितना आप रख सकते हैं रखें जितना रखें उतना फायदा है। लेकिन 9/10 या 10/11 मुहर्रम के रोज़े ज़रूर रखें ये सुन्नत है। कुछ बाज़ औरते और आदमी मोहर्रम मे मछली खाने से परहेज़ करते है। यह सब उनकी गलतफहमी है। इस्लाम मे ऐसी बातों की कोई अस्ल नही है। मछली खाना जाइज़ है और उस पर फातहा भी हो सकती है। चाहे रमज़ान मुबारक का महीना हो या माहे मोहर्रमुल हराम का महीना हो।*



【POST 73】ज़क़ात से मुतअल्लिक़ कुछ ग़लतफ़मियाँ*
*_कुछ लोग फ़क़ीरों म मस्जिदों, मदरसों को यूँही देते रहते है। और बाक़ाइदा ज़कात नही निकालते उनसे कहा जाता है। कि आप जकात निकालिये तो कह देते है। कि हम वैसे ही राहे खुदा मे काफी खर्च करते रहते है। यह उनकी सख़्त गलतफहमी है। आप हजार राहे खुदा मे खर्च करदे लेकिन जब तक हिसाब करके नियते ज़कात से ज़कात अदा न करेगे आप के इख़राजात जो राहे खुदा ही मे किये है। यह ज़कात न निकालने के अज़ाब व बबाल से आपको बचा नही सकेंगे।_*
हदीश शरीफ़ मे है। कि जिसको अल्लाह तआला माल दे और वह उसकी ज़कात अदा न करे तो क़ियामत के दिन वह माल गंजे सांप की शक्ल मे कर दिया जाएगा जिसके सर पर दो चोटियां होंगी वह सांप उनके गले मे तौक बना कर डाल दिया जाएगा। फिर उसकी बांछें पकड़ेगा और कहेगा मै तेरा माल हूँ मै तेरा ख़जाना हूँ। ख़ुलासा यह कि राहे ख़ुदा मे ख़र्च करने के जितने तरीक़े है। उनमे सबसे अव्वल ज़कात है। नियाज़ नज़्र और फ़ातिहायें वगैरा भी उसी माल से की जाये जिसकी ज़कात अदा की गई हो। वरना वह क़ाबिले क़बूल नहीं। अपनी ज़कात खुद खाते रहना और राहे ख़ुदा मे ख़र्च करने वाले बनना बहुत बड़ी ग़लतफहमी है। और शैतान का धोखा है। इस मसअले की ख़ूब तहक़ीक और तफसील देखना हो तो *आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा ख़ाँ रहमतुल्लाह तआला अलैह* बरेलवी की तसनीफ *"अअज़्जुल इकतिनाह"* का मुतालआ कीजिये। ज़कात सिर्फ़ साल मे एक बार निकलती है। और वह एक हज़ार मे 25 रूपये है। लह जो कि साहिबे निसाब पर निकालना फ़र्ज है। मसाइले ज़कात उलमा से मालूम किये जायें और बाक़ाइदा ज़कात निकाली जाए। ताकि नियाज़ व नज्र और सदका व खैरात भी क़ुबूल हो सके।
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 73 74*
*आज यौमे बिलादत इमाम हसन रदीअल्लाहो ताला अनहो आप सभी हजरात को मुबारक हो अल्लाह रब्बुल इज्जत अपने हबीब सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम के लाड़ले नवाशो के सदके मे हम सब रोज़ दारो को प्यास की सिद्दत से महफ़ूज रखे और माहे रमज़ान का सदका नसीब फरमाए।*
*आमीन सुम्मा आमीन या रब्बुल आलमीन*



POST 74】तीन तलाक़ों का रिवाज़*
_आजकल अज रूए जहालत व नादानी अपनी औरतों को तीन या उससे ज्यादा तलाकें दे डालते हैं या कागजों में लिखवा देते हैं और फिर कभी बात को दोबारा बनाने के लिए उसकी सजा यानी हलाले से बचने के लिए , सच बोलते और मुफ्तियाने किराम और उलमाए दीन को परेशान करते हैं।_
*काश यह लोग तलाक से पहले ही उलमा से मशवरा कर लें तो यह नौबत ही न आए तीन तलाकें एक वक्त देना गुनाह है। तलाक का मकसद सिर्फ यह है कि बीवी को अपने निकाह से बाहर करके दूसरे के लिए हलाल करना कि इदत के बाद वह किसी और से निकाह कर सके यह मकसद सिर्फ एक तलाक या दो से भी हासिल हो जाता है। एक तलाक देकर उसको इद्दत गुजारने के लिए छोड़ दिया जाए और इद्दत के अन्दर उसको एक अजनबी व गैर औरत की तरह रखा जाए और जबान से भी रजअत न की जाए तो इद्दत के बाद वह दूसरे से भी निकाह कर सकती है*
_और पहले शौहर के निकाह में भी सिर्फ निकाह करने से, बगैर हलाले के वापस आ सकती है। और तीन तलाकों के गुनाह व वबाल से भी बचा जा सकता है। जरूरत के वक़्त तलाक इस्लाम में मशरूअ है क्यूंकि मियां बीवी का रिश्ता कोई पैदाइशी खूनी और फ़ितरी रिश्ता नहीं होता बल्कि यह ताअल्लुक अमूमन जवानी में क्राइम होता है। तो यह जरूरी नहीं कि यह मोहब्बत काइम हो ही जाए बल्कि मिजाज अपने अपने आदतें अपनी अपनी तौर तरीके अपने अपने ख्यालात व रुजहानात अलग अलग होने की सूरत में बजाए मोहब्बत के नफरत पैदा हो जाती है_
*और एक दूसरे के साथ जिन्दगी गुजारना निहायत मुश्किल बल्कि कभी कभी नामुमकिन हो जाता है। और नौबत रात दिन के झगड़ों, मारपीट यहाँ तक कि कभी कत्ल व खूंरेजी तक आ जाती है। बीवी शौहर एक दूसरे के लिए जानी दुश्मन बन जाते हैं तो इन हालात के पेशे नज़र इस्लाम में तलाक रखी गई कि लड़ाईयों, झगड़ों नफ़रतों और मारका आराईयों के बजाए सुलह व सफाई और हुस्न व खूबी के साथ अपना अपना रास्ता अलग अलग कर लिया जाए।*
_इसी लिए जिन मजहबों और धर्मों में तलाक नहीं है यानी जिसके साथ जो बध गया वह हमेशा के लिए बंध गया जान छुड़ाने का कोई रास्ता नहीं। उनमें औरतों के क़त्ल तक कर दिये जाते हैं या जिन्दगी चैन व सुकून के बजाए अजाब बनी रहती है। आज औरतों की हमदर्दी के नाम पर कुछ इस्लाम दुश्मन ताकतें ऐसे कानून बना रही हैं जिनकी रू से तलाक का बुजूद मिट जाए और कोई तलाक न दे सके यह लोग औरतों के हमदर्द नहीं बल्कि उनका कत्ल कर रहे हैं। आज मिट्टी के तेल बदन पर डाल कर औरतों को जलाने, पानी में डुबोने, जहर खिला कर उनको मारने वगैरा ईजारसानी के ख़ौफ़नाक वाकिआत के जिम्मेदार वही लोग हैं जो किसी भी सूरते हाल में तलाक के रवादार नहीं और जब से हर हाल में तलाक को ऐब और बुरा जानने का रिवाज बढ़ा तभी से ऐसे दर्दनाक वाकिआत की तादाद बढ़ गई।_
*Note- हम पूछते हैं क्या किसी औरत को मारना, जलाना, डुबोना, बेरहमी से पीटना बेहतर है या उसको महर की रकम देकर साथ इज्जत के तलाक दे देना और किसी औरत के लिए अपने शौहर को किसी तरह राजी करके उस से तलाक हासिल कर लेना और अपनी आजादी कराके किसी और से निकाह कर लेना बेहतर है। या यारों, दोस्तों, आशनाओं से मिल कर शौहर को क़त्ल कराना। आज इस किस्म के वाकिआत व हादसात की ज्यादती है जिनका अन्दाजा अख़बारात का मुतालआ करने से होता है और अगर मुआशरे को बरकरार रखने के लिए इस्लाम ने शौहर और बीवी के जो हुकूक़ बताए हैं उन पर अमल किया जाए तो यह नौबतें न आयें और लड़ाई झगड़े और तलाक तक बात ही न पहुँचे।*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 74,75,76*



POST 75】शरअ पयम्बरी महर मुक़र्रर करना*
_कभी कभी कुछ जगहों पर निकाह में महर शरअ पयम्बरी मुकर्रर किया जाता और उस से उनकी मुराद चौंसठ रुपए और दस आने होती है या कोई और रकम। हालांकि यह सब वे अस्ल बातें हैं, *शरीअते पैगम्बरे आज़म ﷺ * ने महर में ज़्यादती की कोई हद मुक़र्रर नहीं है जितने पर दोनों फरीक मुत्तफ़िक हो जायें वही महर शरए पयम्बरी है हाँ कम से कम महर की मिकदार दस दिरहम यानी तकरीबन दो तोले तेरह आने भर चांदी है उस से कम महर सही नहीं अगर बाँधा गया तो महरे मिस्ल लाजिम आएगा। और बाज़ लोग महर शरअ पयम्बरी से *सय्यिदतुना फ़ातिमा रदियल्लाह तआला अन्हा* के अक़दे मुबारक का महर ख्याल करते हैं हालांकि ख़ातूने जन्नत के निकाहे मुबारक का महर चार सौ मिस्काल यानी डेढ़ सौ तोले चांदी था।_
*_खुलासा यह कि शरअ की तरफ से महर की कोई रकम मुकर्रर नहीं की गई। हाँ यह ज़रूर है कि दस दिरहम यानी दो तोले तेरह आने भर चांदी से कम कीमत में न हो।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,76,77*
*Note- नबी करीम सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम ने इरशाद फरमाया जिसने किसी उल्मा से मुसआफा किया गोया उसने मुझसे मुसआफा किया आप सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम ने उल्मा को नाएबे रसूल बताया है। आपने जो कहा जो किया वह हम सुन्नी मुसलमानो के लिए त कयामत तक हक हो गया यही हम सुन्नियो का अक़ीदा भी अल्हमदो लिल्लाह लेकिन बाज़ लोग़ जाने अंजाने उल्मा को गाली गलोज करते है। और फिर तोबा भी नही करते है



POST 76】निकाह पढ़ाने मे ईजाब व क़बूल के बाद खुतबा पढ़ना*
यह रिवाज भी ग़लत है। सुन्नत यह है। कि खुतबए निकाह ईजाब व क़बूल से पहले पढ़ा जाए।
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 77*
*इमामे हुसैन रदियल्लाहो तआला अन्हो की शहादत के बाद मुसलसल (लगातार) कितने महीनों तक आसमान के किनारे सुर्ख़ (लाल) रहे ?*
*👉🏻6 महीनें तक*
*मुजद्दीद इमाम जलालुद्दीन सुयूती अश-शाफ़ई लिखतें है*
*"इमाम हुसैन रदिअल्लाहो तआला अन्हो* की शहादत का वाक़या बहुत तवील और दिल-गुदाज़ (दिल को नरम करने वाला) है। जिसको लिखने और सुनने की दिल मे ताक़त नही है आपकी शहादत के बाद 7 दिन तक अंधेरा रहा, दीवारों पर धूप का रंग ज़र्द पढ़ गया था और बहुत से सितारे भी टुटे आपकी शहादत 10 मुहर्रम सन 61 हिजरी को वाक़ए हुई आपकी शहादत के दिन सूरज गहन में आ गया था और मुसलसल 6 महीनों तक आसमान के किनारे सुर्ख़ यानी लाल रहे उसके बाद में रफ़्ता-रफ़्ता वह सुर्खी जाती रही अलबत्ता जो सुर्खी सूरज निकलते और डूबते वक़्त नमूदार होती है कहा जाता है आज तक वही सुर्खी मौजूद है जो शहादते हुसैन से पहले मौजूद न थी
📗 *(इमाम सुयूती शाफ़ई,तारीख़ उल खुलफ़ा-पेज-304)*
*Note- किसी यतीम के सर पर हाथ फेर दीजियेगा उसके बालों के बराबर सवाब मिलेगा*



POST 77】क्या तलाक़ के लिए औरत का सामने होना या सुनना ज़रूरी है?*
कुछ लोग समझते हैं कि शौहर अगर बीवी को तलाक दे तो तलाक के अलफाज का औरत के लिए सुनना और औरत का तलाक के वक़्त सामने होना ज़रूरी है। यह गलतफहमी है। औरत अगर न सुने और वहाँ मौजूद भी न हो तब भी शौहर के तलाक देने से तलाक हो जायेगी चाहे शौहर और बीवी में हज़ारों मील का फ़ासिला हो।
*आलाहजरत इमाम अहले सुन्नत सय्यिदी शाह अहमद रज़ा खाँ साहब रदियल्लाहु तआला अन्हु* इरशाद फरमाते हैं।
*‘तलाक के लिए औरत का वहाँ हाज़िर होना कोई शर्त नहीं।*
📗 *(फ़तावा रजविया जिल्द 5 सफ़ा 618)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,77*
*Note- अलहमदो लिल्लाह कल मेरे अखलाक भरे लहजे मे जो पोस्ट के जरिए मेने अपनी बात पहुँचाई थी अल्लाह तआला के फज्ल से उन अल्फाज़ो को मेरे सामने बाले के पर दिल पर अशर हुआ और रूज़ू भी किया तौबा भी कि और अल्लाह तआला के फ़ज्ल से उन्होने अहिद भी लिया आइंदा किसी आलिम के लिए गलत अल्फाज़ नही बोलेगे अल्लाह तआला उनकी तौबा को अपनी बारगाह मे क़ुबूल फरमाए है। और हम गुनहगारों को अपने उल्माओ का अहितराम करने की तौफीक अता फरमाए।*
*आमीन सुम्मा आमीन या रब्बुल आलमीन*



POST 78】क्या हालत- ए- हमल मे तलाक़ नहीं होतीं?*
हमल की हालत में तलाक वाकेअ हो जाती है। यह जो कुछ लोग समझते हैं कि औरत हमल से हो और उस हालत में शौहर तलाक़ दे तो तलाक वाक़ेअ नहीं होती, यह उनकी गलतफहमी है।
*सय्यिदी आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत इरशाद फरमाते*
*(रदिअल्लाहो तआला अन्हुमा)*
*_‘‘जाइज़ व हलाल है अगरचे अय्यामे हमल में दी गई हो।’’_*
📗 *(फतावा रजविया जिल्द 5 सफ़ा 625)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा 78*
*Note- बाज़ लोग हालात ए हमल मे तलाक़ को वाकेअ नही समझते यह उनकी गुमराही जहालत है। बल्की ऐसी सूरत मे तलाक़ वाक़ेअ हो जाता है। मेरा ऐसे मर्द और औरत को मसवरा अल्लाह तआला को हालाल काम मे सबसे ज्यादा न पंसन्दीदा चीज तलाक़ है। क्या बगैर कोई उज्र के ऐसा काम सही है। जो अल्लाह तआला को भी पसन्द न हो अपनी शादी शुदा जिन्दगी को शीरत ए मुस्ताफा का दर्श दो शीरत ए अम्बिया का दर्श दो शीरत ए सहाबा का दर्श दो शीरत ए ओलिया का दर्श दो फिर देखना तुम्हारी जिन्दगी भे अल्लाह तआला कितनी खुशियाँ अता करेगा बे वज़ह की लड़ाई झगड़ो से बचने का एक आशान तरीका गल्ती किसी की भी हो पर सबसे पहलें मनाने बाला ही सबसे ताक़त बर है। और बहादुर है।*
*_क्या हाशिल होगा अपनी मै मे अगर आप रहेगे आपकी ज़िन्दगी जहन्नम बनती नजर आएगी एक बार ही अपने प्यारे आका सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम का तसव्वुर कर लिया करे हमारे आका को हमारी माँ हजरते सैय्यदना आयशा रदिअल्लाहो तआला अन्हा से किस कदर मोहब्बत थीं क्या हम ज़र्रा बराबर भी इस किरदार को नही अपना सकतें है। यकीन जानो अगर शीरत ए मुस्ताफा की एक जर्रा बराबर बात पर अमल किया तो ज़िन्दगी आसान हो जाएगी। बरना इस दौर मे परेशानिया हर किसी को है। कोई चैन और सुकून मे नही है। वज़ह हमने इस्लाम के कानून को समझना ही बन्द कर दिया है। अगर समझा होता तो मज़ाल क्या किसी शियासत की जो उँगली उठाती और हमे चेलेन्ज करती अभी भी वक़्त है। अपने आपको समझो और पहचानो अल्लाह तआला का शुक्र व अहशान मानो कितना प्यारा मजहब अता किया।_



POST 79】समधन, चच्ची और मुमानी से निकाह?*
कुछ लोग समधन चच्ची और मुमानी से निकाह को हराम जानते हैं हालांकि समधन से निकाह बिला शक जाइज़ है, यूँ ही चच्ची और मुमानी से भी निकाह में कोई हर्ज नहीं जबकि उनके शौहरों ने उन्हें तलाक दे दी हो या वो मर चुके हों तो इद्दत के बाद समधन, चच्ची और मुमानी से निकाह जाइज़ है। जो लोग इन निकाहों को हराम जानते हैं, वो जाहिल हैं।
*(हवाले के लिए देखिए)*
*(मलफूज़ाते आला हजरत अलैहिर्रहमह जिल्द सोएम सफा 10 और दूतावा अफ्रीका सफ़ा 100)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,78*
*Note- अल्लाह अल्लाह आज हमारी गैरत हमी को धिक्कार ती है। आज हम अपने इस्लाम से कितने दूर हो गए है। जिसका खामियाज़ा हमे अपने शरीअत के क़ानून से खिलवाड़ करने पर उठाना पड़ रहा है। आज हम सोचने पर मजबूर हो जाते है। क्या हमी वह 313 उहद की जमात है। क्या हमी कर्बला के 82 जा निसार है। मुसलमानो ऊहद के मैदान मे कोई और नही हमारे प्यारे आक़ा सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम और सहाबा इकराम थे जिनको देखकर लाखों का लश्कर लरज ता था। वज़ह कभी किसी को सताया नही कभी किसी का हक दबाया नही सबसे बड़ी बात मैदाने ऊहद मे भी नमाज़ कज़ा न हुई। यही दर्श हमे कर्बला के मैदान मे हमारे इमाम हुसैन रदीअल्लाहो तआला अन्हुमा ने दिया है। अफसोश आज हमे फिक्र नही नमाज़ की और कहते है हम परेशान है। हमे सताया जा रहा है। वज़ह खुद हम है। और इल्जाम दूसरो पर डालते है।*
*किसी शायर ने क्या खूब कहा है।?*
*न समझोगे तो मिट जाओगे अए हिन्दी मुसलमानो*
*तुम्हारी दास्ताँ तक न होगी दास्ताँनो मे*
*कहने का मकसद सिर्फ़ इतना है। नमाज़ पढ़ो शरीअत को समझो अपने उल्माऔ की बात मानों कसम ख़ुदा की जिस दिन हमारी मसाजिद पाँच वक़्त जुमा जितनी भरी नज़र आने लगेंगी उस दिन दुश्मनों को सोचने पर मजबूर कर देगें इन्शा अल्लाह तआला नमाज़ क़ायम करो*



POST 80】क्या शौहर के लिए बीवी को हाथ लगाने से पहले महर माफ़ कराना ज़रूरी है?*
_काफ़ी लोग यह ख़्याल करते हैं कि शौहर के लिए ज़रूरी है कि निकाह के बाद पहली मुलाक़ात में अपनी बीवी से पहले महर माफ़ कराये फिर उसके जिस्म को हाथ लगाये। यह एक गलत ख़्याल है, इस्लाम में ऐसा कुछ नहीं। महर माफ कराने की कोई ज़रूरत नहीं। आजकल जो महर राइज है, उसे 'गैर मुअज्जल’ कहते हैं, जो या तो तलाक देने पर या फिर दोनों में से किसी एक की मौत पर देना वाजिब होता है। इससे पहले देना वाजिब नहीं, हाँ अगर पहले दे दे तो कोई हर्ज नहीं बल्कि निहायत उम्दा बात है। माफ़ कराने की कोई ज़रूरत नहीं और महर माफ कराने के लिए नहीं बांधा जाता है। अब दे या फिर दे, वह देने के लिए है, माफ कराने के लिए नही।_
*_हाँ अगर महर मुअज्जल’ हो यअनी निकाह के वक़्त नकद देना तय कर लिया गया हो तो बीवी को इख्तियार है कि वह अगर चाहे तो बगैर महर वसूल किये खुद को उसके काबू में न दे और उसको हाथ न लगाने दे और चाहे तो बगैर महर लिये भी उसको यह सब करने दे, माफ कराने का यहाँ भी कोई मतलब नहीं।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,79*
*Note- आज हम कितनी गफ़लत मे है। अल्लाह तआला हमे बख्श देगा यकीनन अल्लाह तआला की जात व बरकात रहमत बाली है। जिसमे ज़र्रा बराबर भी इनकार करना कुफ़्र होंगा और खारिजे इस्लाम होंगा अल्लाह तआला जिसे चाहे बख्श दे जिसे चाहे सज़ा दे यह अल्लाह तआला के इख्तियार मे है। लेकिन ज़रा सोचो मुसलमानो हम किस नबी करीम सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम की उम्मत मे पैदा है। जिस उम्मत मे पैदा होंने के लिए कई नबी अलेहिस्सलाम ने दुआ ए कि लेकिन हमारे नबी सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम ने हर वक़्त अपनी उम्मत के लिए दुआ की या अल्लाह तआला मेरी उम्मत अल्लाह अल्लाह हमारे आका सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम कितने बड़े सखी है। लेकिन आज हम अपनी गुलामी का सबूत सिर्फ़ नाम के मुसलमान होने से दे रहें हमे आज नाम से मुसलमान होना जाना जाता है। कभी आमाल से पहचान करके देखना दिल की गहराई से सोंचना क्या ऐसे मुसलमान होते अगर लगे हा हम खसारे मे है। तो अपनी मस्जिदो को आबाद करना बस मेरी हर मोमिन मुसलमान से इतनी गुजारिश है। पाक रहना सीखलो हर वक़्त मेरा दावा है। यही पाकी तुम्हें अपनी मस्जिद के करीब कर देंगी इन्शा अल्लाह तआला*
*नमाज़ पढ़ो नमाज़ कायम करो अपने इमामो के साथ खुलूस और अख्लाक से पैस आओ*



POST 81】जिस औरत के ज़िना का हमल हो उससे निकाह जाइज़ है।?*
_ज़ानिया हामिला यअनी वह औरत जो बिना निकाह किए ही गर्भवती हो गई उससे निकाह को कुछ लोग नाजाइज़ समझते हैं हालाकि वह जाइज़ है। जिना इस्लाम में बहुत बड़ा गुनाह है और इसकी सज़ा बहुत सख्त है लेकिन अगर किसी औरत से जिनाकारी सरजद़ हुई, उससे निकाह किया जाये तो निकाह सही हो जायेगा, ख़्वाह वह ज़िना से हामिला हो गई हो जबकि वह औरत शौहर बाली न हो और निकाह अगर उसी शख्स से हो जिसका हमल है तो निकाह के बाद वह दोनों साथ रह सकते हैं. सुहबत व हमबिस्तरी भी कर सकते हैं और किसी दूसरे से निकाह हो तो जब तक बच्चा पैदा न हो जाये दोनों लोगों को अलग रखा जाये।और उनके लिए हमबिस्तरी जाइज़ नहीं।_
*इमामे अहले सुन्नत सय्यिदी आलाहज़रत फरमाते हैं।*
जो औरत *माज़अल्लाह* ज़िना से हामिला हो उससे निकाह सही है ख्वाह उस ज़ानी से हो या गैर से फर्क इतना है अगर जानी से से निकाह हो तो वह बाद निकाह उससे कुर्बत भी कर सकता है और ग़ैर ज़ानी से हो तो वज़ए हमल तक (बच्चा पैदा होने तक) .कुर्बत न करे।
📗 *(फतावा रजविया जिल्द 5 सफहा 199, फ़तावा अफ्रीका सफ़ा 15)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 80*
*Note- मेरे प्यारे इस्लामी भाईयों ज़िना बहुत बड़ा गुनाह है। जिसके करने से अल्लाह तआला हमारी दुआ भी कुबूल नहीं करता है। और अपने कुर्ब खड़ा करना भी पंसद नही करता है। जरा सोचो मुसलमानों ज़िना कितना बड़ा गुनाह अल्लाह हुम्मा कबीरन कबीरा जिस शख्स और औरत ने जिना किया हो उसे रब तआला पसन्द न फरमाए फिर भी हमे ख़ौफ ए खुदा नही रहाइतना याद रखना मुसलमानों ज़िना एक ऐसा गुनाह है। जिसका खामयाजा तुम्हे अपने घर से देना होगा। अल्लाह हुअकबर अल्लाह हुअकबर खुदा की कसम जब भी तुम्हारे कदम इस गुनाह की तरफ बड़े अपने दिल मे एक ही ख़्याल रखना अगर दुनियाँ बाले नही देख रहे लेकिन मेरा अल्लाह तआला मुझें देख रहा है। यकीन जानो अगर तुम्हारे कदम ख़ौफ ए खुदा मे रूक गए तो आख़िरत सबर जाएँगी इन्शा अल्लाह तआला।*
*कल से दो तीन दिन पोस्ट न कर सकूँगा सफर मे रहूँगा इन्शा अल्लाह तआला वापिश आते ही पोस्ट चालू कर दूँगा दुआ की गुजारिश*



POST 82】क्या औरत के बीस बच्चे हो जायें तो उसका निकाह टूट जाता है।?*
_औरत के बीस बच्चे हो जायें तो उसका निकाह टूट जाता है, यह एक आमियाना और ख़ालिस जाहिलाना ख्याल है। सही बात यह है कि बच्चे बीस हो जाये या इससे भी ज़्यादा, उसके निकाह पर कोई फर्क नहीं पड़ता और पहला निकाह बाक़ी रहता है। दोबारा निकाह की कोई ज़रूरत नहीं है।_
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,80*
*_Note :- अल्लाह तआला का शुक्र है। मे घर खैरिअत से पहुँचा गया था। वक़्त मुनासिब नही था जिसकी बजह कल पोस्ट नही कर पाया इसके लिए आप तमाम हजरात से माजरत चाहूँगा। मे ऐसी जगह गया था जहाँ पर चौबीस नम्बर का गढ़ कहा जाता है। यानी बहाबी देवबंदी का गढ़ भोपाल मध्य प्रदेश को लेकिन अल्हमदो लिल्लाह जब तक मेरे ताजोहश्शरिया अलहिर्रहमा की भोपाल मे आमद आमद नही हुई थी तब तक बहा बताते है। लोग 365 मस्जिद इससे भी ज़्यादा उनमे सिर्फ़ एक मस्जिद सुन्नियो की थी लेकिन मेरे ताजेशरीअत की आमद के बाद कई लोग़ आप के हाथ पर हाथ देकर दाखिले इस्लाम हुए और आज बहा 7 8 मस्जिद सुन्नियो की है। मे जहा पर रूका हुआ था मेरे अजीज और गुलामे ताजोहश्शरिया शायरे इस्लाम जनाब शोएब रजा कादरी साहब जो झाँसी के है। पर इस वक़्त भोपाल मे रहते है। अल्हमदो लिल्लाह शोएब भाई ने बहुत इज्जत दी और बहुत अच्छी तरीके से महमान नवाजी की अल्लाह तआला उन्हे हर मकाम पर कामयाबी अता फरमाए। वह इलाका और एरिया देख कर इतनी खुशी हुईँ वहा के लोगों ने गुमराह लोगों से बचने के लिए मस्जिद की तामीर करवाई जिसका नाम सकलैन मस्जिद है। आशोक गार्डन मे और अपनी सहूलियत के लिए अपने एरिया मे सुन्नी कसाई का इन्तजाम भी किया है।_*
*मेरे कहने का फक़त इतना मतलब है। अगर इन्सान अपने इमान बचाने की सोच ले तो हर काम आसान हो जाए जेसा मेने अभी ऊपर बयान किया है। यहाँ के लोग अपने इमान बचाने के लिए हर काम करने को तैयार है। लेकिन बातिल के आगे सर झुकाने को नही मेरा ऐसे लोगों को तहे दिल से सलाम है। सबसे अहिम बात वहा के एक शख्स से मुझे कलमें का मतलब इतनी डिटेल से समझाया जो मेरे दिल मे घर कर गया हकीकत है। अगर मुसलमान ने पहले कलमे को समझ लिया तो दुनिया की ताकत अल्लाह तआला और उसके रसूल सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम से कभी ज़ुदा नही कर सकती है।*
*दुआ है। अल्लाह तआला से हम सब सुन्नियो को अपने हबीब सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम का सच्चा बफादार बनाए।*



POST 83】इद्दत के लिए औरत को मायके में लाना*
_आजकल अगर किसी औरत को तलाक हो जाये तो माएके वाले उसको फौरन अपने घर ले आते हैं बल्कि इस पर फक्र किया जाता है और अगर वह शौहर के घर में रहे तो कुछ लोग उसके माँ बाप और भाईयों को गैरत दिलाते हैं कि तलाक़ के बाद भी लड़की को शौहर के घर छोड़ दिया है। यह सब गलत बातें है।_
*_मसअला यह है कि तलाक के बाद भी औरत शौहर के घर में ही इद्दत गुजारे और शौहर के ऊपर इद्दत का नान व नफ़का और रहने के लिए मकान देना लाजिम है।_*
📖 *कुर्आन करीम में पारा 28 सूरह तलाक का तर्जमा यह है।*
_"तलाक वाली औरतों को उनके घर से न निकालो न वह खुद निकलें मगर जब कि वह खुली हुई बेहयाई करें।"_
*_हाँ यह ज़रूर है कि वो दोनों अजनबी और एक दूसरे के गैर होकर रहें और बेहतर यह है कि उनके दरमियान कोई बूढ़ी औरत रहे और उनकी देखभाल रखे और यह भी हो सकता है कि शौहर घर में न रहे ख़ास कर रात को कहीं और सोये। औरत के हाथ का पका हुआ खाना खाने में कोई हर्ज नहीं है। शौहर के कपड़े वगैरा धोना भी तलाक के बाद कोई गुनाह नहीं है क्यूंकि बाद तलाक वह अगरचे बीवी नहीं मगर एक मुसलमान औरत है। और शरई हुदूद की पाबन्दी के साथ एक मुसलमान का दूसरे मुसलमान के काम में आ जाना हुस्ने अख़लाक है और अच्छी बात है।_*
_यह जो कुछ जगह लोग इतनी सख्ती करते हैं कि बाद तलाक इद्दत में अगर शौहर बीवी के हाथ का पका हुआ खाना भी खा ले तो हुक्का पानी बन्द कर देते हैं, यह गलत है। जब तक खूब यकीन से मालूम न हो कि वो मियाँ बीवी की तरह मखसूस मुआमलात करते हैं सिर्फ़ शुकूक की वजह से उन्हें तंग न किया जाये और बदगुमानी इस्लाम में गुनाह है।_
*_हाँ अगर तलाक ए मुग़ल्लज़ा या बाइना की इद्दत हो और शौहर फासिक़, बदकार हो और कोई वहाँ ऐसा न हो कि अगर शौहर की नियत ख़राब हो तो उसको रोक सके तो औरत के लिए उस घर को छोड़ देने का हुक्म है।_*
📗 *(फ़तावा फैजुर्रसूल जिल्द 2 सफ़हा 290)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,81 82*
*Note :- मेरे मुसलमान भाईयो अपने अखलाक को ऐसा बना लो यह दिन देखना न पढ़े अपनी जिन्दगी को अपने बुजुर्गों के कुब्र करदो अपनी सब परेशानी अल्लाह रब्बुल इज्ज़त के दस्ते कुदरत करदो फिर देखना जिन्दगी कितनी खुस गवार गुजरे गी बस सर्त यह है। अपना दिल और सर मस्जिदो मे झुखाना चालू करदो दुनियाँ खुद व खुद तुम्हारे कदमो मे झुखती नज़र आएंगी इन्शा अल्लाह तआला*



POST 84】मुतलक़्क़ा की इद्दत कितने दिन है।?*
*_काफी लोग यह ख्याल करते हैं कि मुतलक्का (जिसे तलाक दी गई हो) की इद्दत तीन महीने या तीन महीने तेहरा दिन में पूरी हो जाती है यह गलत है। तलाकशुदा औरत की इद्दत यह है कि अगर वह हामिला (गर्भवती) न हो तो तलाक के बाद उसको तीन माहवारी (मासिकधर्म ,हैज़ ,पीरियड) हो जाये, ख्वाह तीन माहवारियाँ तीन महीने से कम में हो जाये या उससे ज्यादा में ख्वाह साल गुज़र जाये अगर तीन बार उसको माहवारी नही हुई तो इद्दत पूरी नहीं होगी। हाँ अगर वह पचपन (55) साल की हो गई हो और महीना आना बंद हो गया हो या नाबालिग हो कि अभी महीना शुरू ही नहीं हुआ या उसको कभी महीना किसी मर्ज़ की वजह से आया ही न हो तो उसकी इद्दत तीन माह है और हामिला की इद्दत बच्चा पैदा होने जाना है ख्वाह तलाक़ के बाद फ़ौरन बच्चा पैदा हो जाये इद्दत हो जायेगी।_*
*खुलासा यह है कि आम तौर से तलाक की इद्दत 3 महीने या 3 महीने 13 दिन समझना गलत है। सही बात वह है जो हमने ऊपर बयान कर दी।*
📚 *(गलत फहमियां और उनकी इस्लाह, पेज 82)*



POST 85】लड़को की शादी में बजाए वलीमे के मंढिया करना*
_लड़के की शादी मे जुफ़ाफ़ यानी बीवी और शौहर के जमा होने के बाद सुबह को अपनी बिसात के मुताबिक़ मुसलमानों को खाना खिलाया जाए उसे वलीमा' कहते हैं और यह *सय्यिदे आलम सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* की मुबारक सुन्नत है। काफी हदीसों में इसका जिक्र है। सरकार ने खुद वलीमे किये और सहाबए किराम को भी उस का हुक्म दिया मगर आज कल काफ़ी लोग शादी से पहले दावतें करके खाना खिलाते हैं जिसको मंढिया कहा जाता है।_
_वलीमा न करना उसकी जगह मंढिया करना ख़िलाफ़ सुन्नत है। मगर लोग रस्म व रिवाज पर अड़े हुए हैं और अपनी ज़िद और हटधर्मी या नावाक़िफ़ी की बुनियाद पर *रसूले करीम सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* की इस मुबारक और प्यारी सुन्नत को छोड़ देते हैं। इस्लाम के इस तरीके में एक बड़ी हिकमत यह है कि अगर निकाह से पहले ही खाना खिला दिया तो हो सकता है किसी वजह से निकाह न होने पाए और अक्सर ऐसा हो भी जाता है तो इस सूरत में वह निकाह से पहले के तमाम इख़राजात बे मक़सद और बोझ बन कर रह जाते हैं।_
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,83*
*Note :- आप को बता दू मंढिया उसे कहते है। जो लड़को की शादी यानी निकाह होने से पहले आवाम बिरादरी को दावत देकर खाना खिलाया जाता है। यह खिलाफ़े शरअ है। लेकिन बाज़ लोगों ने इसका मामूल बना लिया है। एक और बात अगर लोग़ व़लीमा करते है तो इतना दिखावा इतना ख़र्च करते है। जो शरासर ग़लत और खिलाफ़े शरअ भी है। इस्लाम ने फ्जूल ख़र्च के लिए मना किया है। जिसका हिसाब हमे देना होंगा लेकिन आवाम इसको समझने का नाम नही लेती है। जो हम फ्ज़ूल ख़र्च करते है इसकी बजाह हम यही पैसा किसी ग़रीब लड़की कि शादी निकाह करने मे लगादे जो मुफलिसी के चलते अपने घर मे बैठी है*
*_सोचो मुसलमानो कहा गई तुम्हारी ग़ैरत क्या जरा भी तुम्हे अल्लाह तआला और उसके रसूल सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम की रज़ा की फ़िक्र नही देती है। ऊपर से अपने आपको गुलामे रसूल कहते हो सिर्फ़ कहने से गुलाम नही हो सकते उसकी रज़ा अगर चाहनी है तो अपने किरदार को बदलना होंगा कसम ख़ुदा की अल्लाह तआला की रज़ा के लिए तुमने अपनी कमाई का एक पैसा भी ख़र्च कर दिया बरोज क़यामत अल्लाह तआला इसका अज्र जरूर देगा यकीन जानो ज़रा सोचो मेरे भाईयों आज यह पैसा हमारी रहती दुनिया तक साथ देगा बाद मरने के हमारे हाँथ खाली रह जाएंगे इसी के लिए शायर कुछ इस तरह कहता।_*
*_सज़ा लो अपने दामन मे दरूदे पाक के जुगनू_*
*_अंधेरी कब्र मे हम सबको उजाले की ज़रूरत है।_*
*जब हमे अंधेरी कब्र मे रहना ही है तो क्यूँ न नेक काम करके अपनी कब्र को रोशन करें फक़त मेरा कहना इतना है दुनिया भी देखों लेकिन कुछ ऐसा कर जाओ जिससे दुनियाँ मे भी नाम हो आखिरत मे भी इसका अज्र मिले अगर मेरी पोस्ट से किसी एक ने भी नसीहत ली यकीन जानो मेरी बख्शिस का जरिया वह शख्स होंगा इन्शा अल्लाह तआला*



POST 86】ज़वान लड़के लड़कियों की शादी में देर करना*
_आजकल जवान लड़के लड़कियों को घर में बिठाये रखना। और उनकी शादी में ताख़ीर करना आम हो गया है। इस्लामी नुक्तए नज़र से यह एक गलत बात है। हदीस पाक में है। *रसूलल्लाह सल्लाह तआला अलैहि वसल्लम* इरशाद फरमाते हैं।_
*_जिसकी लड़की 12 बरस की उम्र को पहुंचे और वह उसका निकाह न करे फिर वह लड़की गुनाह में मुब्तिला हो तो वह गुनाह उस शख्स पर है। ऐसी ही हदीस लड़कों के बारे में भी आई है।_*
📗 *(मिश्कात शरीफ़ सफ़ा 271)*
_आजकल की फ़ुजूल रस्मों और बेजा खर्चों ने भी शादियों को मुश्किल कर दिया है जिसकी वजह से भी बहुत सी जवान लड़कियां अपने घरों में बैठी हुई और लड़के मालदारों की लड़कियों की तलाश में बूढ़े हुए जा रहे हैं। इन खर्चों पर कन्ट्रोल करने के लिए जगह जगह तहरीकें चलाने और तन्ज़ीमें बनाने की जरूरत है चाहे वह अपनी अपनी बिरादरी की सतह पर ही काम किया जाये तो कोई हर्ज नहीं। भाईयो दौर काम करने का है। सिर्फ बातें मिलाने या नारे लगाने और मुशाएरे सुनने से कुछ हासिल न होगा। शादी ब्याह को कम से कम खर्च से करने का माहौल बनाओ ताकि ज्यादा से ज्यादा मर्दं और औरतें शादी शुदा रहें।_
*_कुछ लोग आला तालीम हासिल कराने के लिए लड़कियों की उम्र ज़्यादा कर देते हैं और उन्हें गैर शादी शुदा रहने पर मजबूर कर देते हैं। यह भी निरी हिमाकत और बेवकूफी है।_*
_आज मुसलमानों में कुछ बदमजहब और बातिल फ़िरके जवान लड़कियों की आला तालीम के लिए मदारिस और स्कूल खोलने में बहुत कोशिश कर रहे हैं। उनका मकसद अपने बातिल और मखसूस गैर इस्लामी अकाइद मुसलमानों में फैलाने और घरों में पहुँचाने के अलावा और कुछ नहीं है और इधर लोगों में आजकल औलाद से मोहब्बत इस कद्र बढ़ गई है कि हर शख्स इस कोशिश में है कि मेरी लड़की और मेरा लड़का पता नहीं क्या क्या बन जाये और आला तालीम के नशे सवार हैं और बनता तो कोई कुछ नहीं लेकिन अक्सर बुरे दिन देखने को मिलते हैं। लड़के ज्यादा पढ़कर बाप बन रहे हैं और लड़कियाँ माँ बन रही_
*_हो सकता है कि हमारी इन बातों से कुछ लोगों को इख्तिलाक हो मगर हमारा मशवरा यही है लड़कियों को आला तालीम से बाज रखा जाये खासकर जब कि यह तालीम शादी की राह में रुकावट हो और पढ़ने पढ़ाने के चक्कर में अधेड़ कर दिया जाता हो और ख़ासकर गरीब तबके के लोगों में क्यूंकि उनके लिए पढ़ी लिखी लड़कियाँ बोझ बन जाती हैं क्यूंकि उनके लिए शौहर भी ए क्लास और आला घर के होना चाहिए और वह मिल नहीं पाते और कोई मिलता भी है तो वह जहेज में मारूती कार या मोटर साइकिल का तालिब है बल्कि बारात से पहले एक दो लाख रुपये का सवाल करता है_*
_हिन्दुस्तान गवर्नमेंट जो बच्चों को ऊंची तालीम दिलाने पर ज़ोर दे रही है, उसके लिए मेरा मशविरा है कि वह तालीमयाफ्ता बच्चों की नौकरी व मुलाजिमत की जिम्मेदारी ले या उनके वजीफ़े मुतय्यन करे। खाली पढ़ा पढ़ा कर छोड़ देना, न घर का रखा न बाहर का, न खेत का न दफ़्तर का यह गरीबों के साथ जुल्म है और समाज की बरबादी है।_
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफ़हा,83,84,85*



POST 87】बेवा औरतों के निकाह को बुरा समझना*
*_बेवा औरतों के लिए इस्लाम में निकाह जायज है और लोगों की बदनियती, बदनिगाही और फ़ासिद इरादों और बदकारी से बचने के की नीयत से हो तो बिला शुबहा बाइसे अज्र व सवाब हैं और निकाह करने पर बिला वजह किसी औरत पर लअन-तअन करना उसको बुरा भला कहना या बेवा औरत को मनहूस ख्याल करना सब गुनाह है।_*
_आजकल के माहौल में बदकारो ,ज़िनाकारों ,अय्याशों, होटलों, क्लब घरों और रन्डी खानों में अय्याशी व ज़िनाकारी करने वाले मर्दोंऔर औरतों की कसरत के बावजूद उन्हें कोई कुछ नहीं कहता बल्कि वह नेता काइद और बड़े आदमी कहलाए जा रहे हैं और कोई बेवा औरत निकाह करे या अधेड़ उम्र का मर्द या कोई मर्द एक से ज़्यादा निकाह करे तो उसको लोग बुरा जानते हैं और मलामत करते हैं यह सब जहालत और इस्लाम से दूरी के नतीजे हैं ।_
*_निकाह शरई जितने ज्यादा हो उतना बेहतर क्योंकि निकाह बदकारी को मिटाता है ज़िनाकारी और ज़िनाकारों के रास्ते बंद करता है। आजकल लेने देने ,लम्बी बारातो ,जहेज़ की ज़्यादती और रुसूम व रिवाज़ की कसरतों से निकाह शादियां मुश्किल हो गई है इसीलिए बदकारी व ज़िनाकारी बढ़ रही है निकाह को आसान करो ताकि बदकारी मिट जाए।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 85,86*



POST 88】कुतुब सितारे की तरफ़ पैर करके न सोना?*
*_यह मसअला अवाम में काफी मशहूर हो गया है और हिन्दुस्तान में काफ़ी लोग यह ख्याल करते हैं कि उत्तर की सम्त पैर फैलाना मना है क्यूंकि उधर कुतुब है यहाँ तक कि अगर कोई उत्तर की जानिब पाँव करके लेटे या सोए तो उसको निहायत बुरा जानते हैं और मकानों में चारपाईयां डालने में इस बात का ख़ास ख्याल रखते हैं कि सरहाना या तो पच्छिम की तरफ़ हो या उत्तर की जानिब।_*
_शरअन किब्ले की जानिब पाँव फैलाना तो यकीनन बेअदबी व महरूमी है इसके अलावा बाकी तमाम सम्ते इस्लाम में बराबर हैं किसी को किसी पर कोई बरतरी व फ़जीलत नहीं।_
*आला हजरत मौलाना शाह अहमद रज़ा खाँ साहब रहमतुल्लाहि तआला अलैह इरशाद फरमाते हैं।*
_‘यह मसअला जोहला (जाहिलों) में बहुत मशहूर है, कुतुब अवाम में एक सितारे का नाम है तो तारे तो चारों तरफ हैं किसी तरफ पैर न करे।"_
📗 *(फतावा रजविया, जिल्द 10, किस्त 2 मतबूआ बीसलपुर, सफ़हा 158 - अलमलफूज जिल्द 2, सफ़हा 57)*
*_यानी अगर कुतुब सितारे की वजह से उत्तर की तरफ पैर करके सोना मना हो जाए तो सितारे चारों तरफ़ हैं किसी जानिब पैर फैलाना जाइज नहीं होगा।_*
_आजकल अगर लोग इस रिवाज को मिटाने और ग़लतफ़हमी को दूर करने के लिए चारपाईयों की पाइती उत्तर की जानिब रखें तो वह अज्र के मुसतहिक़ होंगे और उन्हें एक ग़लत रिवाज को मिटाने का सवाब मिलेगा।_
*_कुछ लोग कहते हैं कि मय्यत को कब्र में लिटाते वक्त उसका सर कुतुब यानी उत्तर की जानिब क्यूं किया जाता है। तो बात यह है कि मय्यत का सर उत्तर की तरफ करने या कब्र में उसे दाहिनी करवट लिटाने का मामूल इसलिए है ताकि उसका चेहरा किब्ले की तरफ़ हो जाए। और सोने या लेटने में किब्ले की तरफ़ मुँह रखने का कोई हुक्म नहीं और सोने और लेटने वाला एक करवट नहीं रह सकता। लिहाज़ा उसका चेहरा क़िब्ले की तरफ़ नहीं रह पाता वह करवटें बदलता है मुर्दे में यह सब नहीं और सोते वक्त भी अगर कोई किब्ले की तरफ चेहरा कर ले तो अच्छी नियत की वजह से यह अमल भी अच्छा ही है लेकिन शरअन जरूरी नहीं। और जो लोग उत्तर की तरफ पैर करके सोने को मना करते हैं उनका मकसद तो कुतुब की तालीम करना होता है न कि चेहरे को क़िब्ले की तरफ़ करना और कुतुब सितारे की तालीम का हुक्म अगर इस्लाम में कहीं आया हो तो हमें भी बतायें या लिख कर भेजें।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,86,87*



POST 89】मुरीद होना कितना ज़रूरी?*
_आजकल जो बैअत राइज है उसे बैअते तबर्रुक कहते हैं। जो न फर्ज है न वाजिब और न ऐसा कोई हुक्मे शरई कि जिसको न करने पर गुनाह या आख़िरत में मुदाख़िज़ा हो।_
*_हाँ अगर कोई सही पीर मिल जाए तो उसके हाथ में हाथ। देकर उसका मुरीद होना यकीनन एक अच्छा काम और बाइसे खैर व बरकत है और इसमें बेशुमार दीनी व दुनियावी फ़ाइदे हैं।_*
_लेकिन इसके बावुजूद अगर कोई शख्स अकाइद दुरुस्त रखता हो, बुजुर्गाने दीन और उलामए किराम से महब्बत रखता हो और किसी खास पीर का मुरीद न हो तो उसके लिए यह अकाइद ईमान की दुरुस्तगी, औलियाए किराम व उलमाए ज़विल एहतिराम से मुहब्बत ही काफी है। और किसी खास पीर का मुरीद न होकर हरगिज वह कोई शरई मुजरिम या गुनाहगार नहीं है। मगर आजकल गाँव, देहातों में कुछ जाहिल वे शर पीर यह प्रोपेगंडा करते हैं कि जो मुरीद न होगा उसे जन्नत नहीं मिलेगी। यहाँ तक कि कुछ नाख्वान्दा पेशेवर मुकर्रिर जिनको तकरीर करने की फुरसत है मगर किताबें देखने का वक्त उनके पास नहीं। जलसों में उन जाहिल पीरों को खुश करने के लिए यह तक कह देते हैं_
*_कि जिसका कोई पीर नहीं उसका पीर शैतान है और कुछ नाख्वान्दे इसको हुजूर ﷺ का फरमान बताते हैं। और इससे आज की पीरी मुरीदी मुराद लेते हैं। अव्वलन तो यह कोई हदीस नहीं। हाँ कुछ बुजुगों से जरूरी मनकूल है कि जिसका कोई शैख नहीं उसका शैख शैतान है। तो उस शैख से मुराद मुरशिदे आम है न कि मुरशिदे ख़ास। और मुरशिदे आम कलामुल्लाह व कलामे अइम्मा शरीअत व तरीकत व कलामे उलमाए ज़ाहिर व बातिन है। इस सिलसिलए सहीहा पर कि अवाम का हादी कलामे उलमा और उलमा का रहनुमा अइम्मा और अइम्मा का मुरशिद कलाम रसूल और रसूल का पेशवा कलामुल्लाह_*
*सय्यिदी व सनदी आलाहजरत अलैहिर्रहमतु वर्रिदवान फ़रमाते*
_सुन्नी सहीहुल अकीदा कि अइम्मए हुदा को मानता, तकलीदे अइम्मा को ज़रूरी जानता, औलियाए किराम का सच्चा मुअतकिद, तमाम अकाइद में राहें हक पर मुस्तकीम वह हरगिज वे पीर नहीं, वह चारों मुरशिदाने पाक यानी *कलामे खुदा और रसूल ﷺ * व अइम्मा व उलमाए जाहिर व बातिन उसके पीर हैं अगरचे व-जाहिर किसी ख़ास बन्दए खुदा के दस्ते मुबारक पर शरफ़े बैअत से मुशर्रफ़ न हुआ हो।_
📗 *(निकाउस्सलाफ़ह फिल अहकामिल बैअते वल ख़िलाफ़ह सफ़हा 40)*
*_और फरमाते हैं।_*
_रस्तगारी (जहन्नम से नजात और छुटकारे) के लिए नबी को मुरशिद जानना काफ़ी है।_
📙 *(फतावा अफ्रीका, सफहा 136)*
_इस सिलसिले में मजीद तहकीक व तफ़सील के लिए *आलाहजरत अलैहिर्रहमह* की तसनीफ़ात में *फ़तावा अफ्रीका,* बैअत क्या है और *निकाउस्सलाफ़ह* वगैरा किताबों का मुतालआ । करना चाहिए_
*_खुलासा यह कि अगर जाअ शराइत मुत्तबेअ श पीर मिले मुरीद हो जाए कि बाइसे दंर व बरकत और दरजात की बलदी का सबब है। और ऐसा लाइक व अहल पीर न मिले तो ख्याही न ख्वाही गाँव गाँव फेरी करने वाले जाहिल वे शर, उलमा की बुराई करने वाले नाम निहाद पीरों के हाथ में हाथ हरगिज न दे। ऐसे लोगों से मुरीद होना ईमान की मौत है।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,88,89*
📍 *Note- आप तमामी हजरात को जुमआ तुल करीम बहुँत बहुँत मुबारक हो आप सभी जिम्मेदार हजरात से मेरी छोटी सी इल्तिजा है। अपनी मस्जिदों मे अपनें इमामो से अपनी माँ बहनों की हिफाज़त और नसीहत के लिए ब्यान करवाए और गैर मुस्लिम के मन्सूबो को नाकाम होनी की पूरी कोशिश करे। अल्लाह तआला जब तक उस कौम की मदद नही करता जब तक बह कौम हक के लिए आवाज़ न उठाएँ दुआ है। अल्लाह तआला से हमारी माँ बहनों की हिफाज़त फरमाए और उन्हे अक्ले सलीम अता फरमाऐ।*
*इस गुनहगार को अपनी ख़ास दुआ मे याद रखना*



POST 90】क्या पीर के लिए सय्यिद होना ज़रूरी?*
_आजकल यह प्रोपेगंडा भी क्या जाता है कि मुरीद करने का हक सिर्फ सय्यिदों को है। ऐसा प्रोपेगन्डा करने वालों में ज़्यादातर वह लोग हैं जो सय्यिद न होकर खुद को आले रसूल और सय्यिद कहलाते हैं। सादाते किराम से मुहब्बत और उनकी ताज़ीम अहले ईमान की पहचान है। निहायत बदबख़्त व बदनसीब है जिसको आले रसूल से महब्बत न हो। लेकिन पीर के लिए सय्यिद होना जरूरी नहीं *कुर्आंने करीम* में है।_
*_तर्जमा :- तुम में अल्लाह के हुजूर शराफत व इज़्ज़त वाले तकवा व परहेज़गारी वाले हैं।_*
_*हज़रत सय्यिदना गौसे समदानी शेख अब्दुल कादिर जीलानी रदीअल्लाहो तआला अन्हुमा* खुद नजीबुत्तरफ़ैन हसनी हुसैनी सय्यिद हैं लेकिन हुजूर के पीर व *मुरिशद शेख़ अबू सईद मख़ज़ूमी रहमतुल्लाह अलैह* और उनके *शैख़ अबुल हसन हक्कारी रहमतुल्लाह अलैह* और उनके *मुरशिद शेख़ अबुल फ़रह तरतूसी रहमतुल्लाह अलैह* यूँही सिलसिला ब सिलसिला *शेख अब्दुल वाहिद तमीमी, रहमतुल्लाह अलैह शेख़ अबूबक्र शिबली रहमतुल्लाह अलैह ज़ुनैद बग़दादी, रहमतुल्लाह अलैह शैख सिर्रीं सक़ती रहमतुल्लाह अलैह शैख मअरूफ़ करख़ी रदियलाहु तआला अन्हुमा* में से कोई भी सय्यिद व आले रसूल नहीं।_
_*सुल्तानुल हिन्द ख्वाजा मुईनुद्दीन अलैहिर्रहमतु वर्रिद़वान* के पीर व *मुरशिद हज़रत शैख़ ख़्वाजा उस्माने हारूनी रहमतुल्लाह अलैह* भी सय्यिद नहीं थे। फिर भी यह कहना कि पीर के लिए सय्यिद होना ज़रूरी है। यह बहुत बड़ी जहालत व हिमाकत है।_
*_आला हज़रत अलहिर्रहमा फ़रमाते हैं पीर के लिए सय्यिद होने की शर्त ठहराना तमाम सलासिल को बातिल करना है सिलसिलए आलिया कादिरिया में सय्यिदना इमाम अली रज़ा और हुजूर गौसे आजम रदीअल्लाहो तआला अन्हुमा के दरमियान जितने हज़रात हैं सादाते किराम से नहीं और सिलसिलए आलिया चिश्तिया में तो सय्यिदना मौला अली के बाद ही इमामे हसन बसरी रहमतुल्लाह अलैह हैं जो न सय्यिद हैं न कुरैशी और न अरबी और सिलसिलए आलिया नक़्शबन्दिया का ख़ास आग़ाज़ ही सय्यिदना सिद्दीके अकबर रदियल्लाह तआला अन्हु से है।_*
📗 *(फ़तावा रजविया, जिल्द 9,सफ़हा 114 मतबूआ बीसलपुर)*
_और *हुजूर ﷺ के सहाबा ﺭﺿﻲ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻨﻪ * जिनकी तादाद एक लाख से भी ज़्यादा है उन में चन्द को छोड़ कर कोई सय्यिद और आले रसूल नहीं। लेकिन उनके मरतबे को क़ियामत तक कोई नहीं पहुँच सकता चाहे सय्यिद हो या गैरे सय्यिद।._
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 90,91*
📍 *Note- अल्लाह अल्लाह क्या मरतबा हैं। सहाबा ﺭﺿﻲ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻨﻪ का जिसके मर्तबे को त क़ियामत तक कोई नहीं पहुँच सकता मेंरे अजीजो आले रसूल से मुहब्बत करों मे भी सैय्यद हूँ मुझ पर भी आले रसूल की ताजीम लाजिम है। लेकिन उनका अदबो अहितराम भी हम पर लाजिम है। जो अल्लाह तआला की और उसके रसूल ﷺ की बारगाह मे मक़बूल है। चाहें बह ग़ैर सैय्यद क्यूँ न हों अपनी नफ्सी ख्वाहिसात के लिए उनको बुरा कहना उनसे बुग्ज रखना उनकीं आल पर तोहमत लगाना कहाँ तक दुरूस्त है। इस पुर फतन दौर मे हमारे ईमान को बचाय रखना सबके बस की बात नहीं है। जब भी हमारे शरीअत पे आँच आई या गैरो ने उँगली उठाई सब जानते है। जबाब बरेली ने दिय़ा अल्हमदो लिल्लाह इश्के नबी ﷺ मे यह घराना इस क़दर डूबा हुआ है।*
*_इन्के नाम से दुश्माने इस्लाम के कलेजे जल ज़ाया करते है। और बाज़ लोग़ बरेली पर ताना कसते है। खुदाया अपनी हरकतों से बाज अ जाओ तुम्हारी यह ज़बान दराजी तुम्हे अल्लाह तआला की बारगाह मे रूस्वा न करदे प्यारे आका ﷺ की बारगाह मे रूस्वा न करदे फिर किस मुँह से कहोगे हम आले रसूल है। मेरे सैय्यद जादो बरेली और बरेली के इमाम अहमद रज़ा ख़ान अलहिर्रहमा के अहसान को न भूलों आज जो हमारी ताजीम हो रहीं है। बरेली के इमाम सरकार आला हजरत अलहिर्रहमा की मुहब्बत है। मत भूलों बरेली के अहसान को अगर सच्चे हसनी हुसैनी सैय्यद हो रज़ा से मुहब्बत करों रज़ा की आल से मुहब्बत करो_*
*कसम ख़ुदा की यही निज़ात का रास्ता बन जाएंगा अरे जब रज़ा से मुहब्बत करोगे तभी तो ख्वाज़ा गरीब नमाज़ रहमतुल्लाह अलैह से मुहब्बत करोगे तभी तो गौस ए आज़म रदीअल्लाहो तआला अन्हुमा से मोहब्बत करना सीखोगे जब इनकी मुहब्बत दिल मे बस जाइगी तभी प्यारे आका ﷺ की सफाअत मिलेंगी तुमने अल्लाह तआला के किसी वल़ी से बुग्ज रखा तो यक़ीन जानो तुम खसारे मे हो हदीश मुबारका है अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है। जिसने मेरे एक वल़ी से दुश्मनी की मे उससे जंग का एलान करता हूँ। अल्लाह हुअकबर अल्लाह हुअकबर बाज़ आ जाओ मेरे सुन्नी मुसलमानों सब ख़ानक़ाह के बुजुर्ग हमारे है। हमे सबसे निस्बत है। कहने बाले ने क्या खूब कहा है।*
*_मिली जो इश्क की रोटी हमे बरेली से_*
*_फिर क्यूँ न मुँह का निवाला बोलें रज़ा रज़ा_*




POST 91】काफिरों को मुरीद करना*
*_कुछ जाहिल नाम निहाद पीर काफ़िरों को मुरीद कर लेते है जब की काफ़िरों को जब तक वो कुफ़्र और उसके लवाज़िमात से तौबा करके और कलमा पढ़ कर मुसलमान न बने उनको मुरीद करना उनके लिए मुरीद का लफ़्ज़ बोलना जहालत है। अजब बात है महादेव की पूजा कर रात दिन ,बूतों के सामने दंडवत करें और मुरीद आप का कहलाए। जो खुदा और रसूल का नहीं वो आपका कैसे हो गया?_*
_सही बात यह है कि वह आपका मुरीद न हुआ बल्कि उसकी मालदारी देख कर आप उसके मुरीद हो गए हैं।_
*_सय्यिदी आला हज़रत रदियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं ।_*
_कोई काफ़िर ख्वाह मुशरिक हो या मुवहहिद हरगिज़ न दाख़िले सिलसिला हो सकता है और न बे इस्लाम उसकी बैअत मुअतबर न कल्बे इस्लाम उसकी बैअत मुअतबर अगरचे बाद को मुसलमान हो जाए कि बैअत हो या कोई और अमल सब के लिए पहली शर्त इस्लाम है।_
📗 *_(फतावा रज़विया ,जिल्द 9, सफहा 157)_*
*_काफ़िरों को मुरीद करने वाले कुछ पीर कहते है की हम ने उसे इसलिए मुरीद कर लिया है की वो हमारी मुहब्बत में मुसलमान हो जाए। ठीक है आपकी ये नियत है तो उसके साथ अच्छे अख़लाक़ और किरदार से पेश आइये लेकिन जब तक मुसलमान न हो उसे मुरीद न कहिये । और ज़रा यह भी बताइए कि अब तक आपने मुरीद करके कितने काफिर मुसलमान बनाए हैं आज तो वह ज़माना है कि ग़ैर मुस्लिमों से वही दोस्ती और यारी रखने वाले मुसलमान ही काफ़िर या उनकी तरह हो रहे हैं । और मिसाल में उन बुजुर्गों के अखलाख व किरदार को पेश करते हैं जिन्होंने एक एक सफर में 90 90 हज़ार काफिरों को कलमा पढ़ाया ख्याल रहे कि तुममें और उनमें बड़ा फर्क है वह काफिरों को मुसलमान करते थे और तुम ताल्लुकात रखकर खुद उनकी तरह होते जा रहे हो पहले के बुजुर्गों के बारे में तारीख में ऐसी कोई मिसाल नहीं कि उन्होंने पहले मुरीद कर लिया हो और बाद में वह मुसलमान हुआ हो बल्कि पहले मुसलमान करते फिर मुरीद। तुम में हिम्मत हो तो ऐसा ही करो_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 91 92*



POST 92】अगर सही पीर न मिले तो क्या करना चाहिए?*
_अकाइदे सहीहा पर काइम रहे अहकमे शरीअत पर अमल करे और तमाम औलिया किराम और उलमाए ज़विल एहतिराम से मुहब्बत करे। *हुजूर पुरनूर सय्यिदना गौसे आजम रदियल्लाहु तआला अन्हु* से अर्ज की गई कि अगर कोई शख्स हुजूर का नाम लेवा हो और उसने न हुजूर के दस्ते मुबारक पर बैअत की हो न हुजूर का ख़िरक़ा पहना हो क्या वह हुजूर के मुरीदों में है तो फ़रमाया : ‘‘जो अपने आप को मेरी तरफ़ मनसूब करे और अपना नाम मेरे गुलामों में शामिल करे अल्लाह उसे कबूल फरमाएगा और वह मेरे मुरीदों के जुमरे में है।”_
📖 *(ब हवाला फतावा अफ्रीका, सफ़हा 140)*
_इसके अलावा *सय्यिदना शेख अब्दुल हक मुहद्दिस देहलवी अलैहिर्रहमह* ने फरमाया कि जिसको पीरे कामिल जामेअ शराइत न मिले वह हुजूर पर कसरत से दुरूद शरीफ़ पढ़े।_
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,92,93*
POST 93】पीर से पर्दा?*
_यह बात काफी मशहूर है कि पीर से पर्दा नहीं है हालांकि असलियत यह है कि पर्दे के मामले में पीरों या आलिमों, इमामों का अलाहिदा से कोई हुक्म नहीं। *सय्यिदी आलाहज़रत रदियल्लाहु तआला अन्हु* फरमाते हैं :_
_‘'पर्दे के मामले में पीर व गैरे पीर हर अजनबी का हुक्म यकसाँ है जवान औरत को चेहरा खोल कर भी सामने आना मना और बुढ़िया के लिए जिससे एहतिमाल फितना न हो मुज़ाइका *(हरज)* नहीं।’_
📗 *(फ़तावा रज़विया जिल्द 10 सफ़हा 102)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,93*



POST 94】मालदार होने के लिए मुरीद होना?*
*_आजकल ज्यादातर लोग इसलिए मुरीद होते हैं कि हम मालदार हो जायेंगे या दुनयवी नुक़सानात से महफूज़ रहेंगे। कितने लोग यह कहते सुने जाते हैं कि हम फलां पीर साहब से मुरीद हो कर खुशहाल और मालदार हो गए अफ़सोस का मक़ाम है कि जो पीरी मुरीदी कभी रुश्द व हिदायत ईमान की हिफ़ाज़त और शफाअत और जन्नत हासिल करने का ज़रिआ ख्याल की जाती थी आज वह हुसूले दौलत व इमारत या सिर्फ नक्श व तावीज़ पढ़ना और फ़ूकना बन कर रह गई। अब शायद ही कोई होगा जो अहले इल्म व फ़ज़्ल उलमा, सुलहा या मज़ाराते मुकद्दसा पर इस नियत से हाजिरी देता हो कि उनसे गुनाहों की मगफिरत और ख़ात्मा अलल ईमान की दुआ करायेंगे।_*
_इस्लाम में दुनिया को महज एक खेल तमाशा कहा गया और आख़िरत को बाकी रहने वाली, लेकिन जिसका पता नहीं कब साथ छोड़ जाए उसको संवारने, बनाने में लग गए और जहाँ सब दिन रहना है उसको भुला बैठे। हदीसे पाक में अल्लाह के *रसूल ﷺ * ए ने इरशाद फ़रमाया :_
*_‘‘जब तुम किसी बन्दे को देखो कि अल्लाह उसको गुनाहों के बावुजूद दुनिया दे रहा है जो भी वह बन्दा चाहता है तो यह ढील है यानी अगर कोई बन्दा गुनाह करता रहे मगर हक तआला की तरफ से बजाए पकड़ के नेमतें मिल रही हैं तो यह नेमतें नहीं बल्कि अज़ाब है। रात दिन दौलत कमाने में लगे रहने वाले अब मस्जिदों खानकाहों में भी कभी आते हैं तो सिर्फ दौलते दुनिया और ऐश व आराम की फिक्र लेकर किस कद्र महरूमी है। खुदाए तआला आख़िरत की फिक्र करने की तौफ़ीक अता फरमाए।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,93,94*



POST 95】बुजुर्गों की तसवीरें घरों मे रखना?*
*_आजकल बुजुर्गाने दीन की तसवीरें और उनके फोटो घरों दुकानों में रखने का भी रिवाज हो गया है। यहाँ तक कि कुछ लोग पीरों वलियों की तसवीरें फ्रेम में लगा कर घरों में सजा लेते हैं और उन पर मालायें डालते अगरबत्तियां सुलगाते यहाँ तक कि कुछ जाहिल अनपढ़ उनके सामने मुशरिकों, काफ़िरों बुतपरस्तों की तरह हाथ बांध कर खड़े हो जाते हैं। ये बातें सख्त तरीन हराम, यहाँ तक कि कुफ्र अन्जाम हैं बल्कि यह हाथ बांध कर सामने खड़ा होना उन पर फूल मालायें डालना यह काफ़िरों का काम है।_*
_सय्यिदी आला हज़रत मौलाना शाह अहमद रज़ा खाँ साहब अलैहिर्रहमाह* इरशाद फरमाते हैं । :_
*_‘‘अल्लाह अज़्ज़वजल इबलीस के मक्र से पनाह दे। दुनिया में बुत परस्ती की इब्तिदा यूंही हुई कि अच्छे और नेक लोगों की मुहब्बत में उनकी तसवीरें बना कर घरों और मस्जिदों में तबर्रुकन रख ली। धीरे धीरे वही मअबूद हो गई।_*
📗 *(फ़तावा रजविया, जिल्द 10, किस्त 2, मतबूआ बीसलपुर सफ़हा 47)*
_*बुखारी शरीफ़* और *मुस्लिम शरीफ़* की हदीस में है कि , सुवा, यगूस, यऊक और नसर जो मुशरिकीन के मअबूद और उनके बुत थे जिनकी वह परसतिश करते थे जिनका जिक्र *कुर्आने करीम* में भी आया है। यह सब कौमे नूह के नेक लोग थे उनके विसाल हो जाने के बाद कौम ने उनके मुजसमे बना कर अपने घरों में रख लिये उस वक्त सिर्फ मुहब्बत में ऐसा किया गया था। लेकिन बाद के लोगों ने उनकी इबादत और परसतिश शुरू कर दी। इस किस्म की हदीसें कसरत से हदीस की किताबों में आई हैं।_
*_खुलासा यह कि तसवीर फोटो इस्लाम में हराम हैं। और पीरों वलियों, अल्लाह वालों के फोटो और उनकी तसवीरें और ज़्यादा हराम हैं। काफ़िरों इस्लाम दुश्मन ताकतों की साज़िशें चल रही हैं वह चाहते हैं कि तुमको अपनी तरह बनायें और तुम से कुफ्र करायें खुद भी जहन्नम में जायें और तुमको भी जहन्नम में ले जायें।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,94,95*

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🅱️ बहारे शरीअत ( हिस्सा- 03 )🅱️

_____________________________________   _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 089)*_ ―――――――――――――――――――――             _*🕌नमाज़ पढ़ने का तरीक...