Monday, November 2, 2020

📕 मख्जन -ए- मालूमात 📗

1️⃣अंबियाऐ किराम के जाती कामों का बयान
‎ بسم الله الرحمن الرحيم‎
الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ

सवाल- हजरत आदम अलैहिस्सलाम ने कौन से काम किये? 
जवाब- आपने खेती बाडी की है और कपड़े भी बुने हैं।
(तफ़सीरे अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 170/अलबिदाया वन्निहाया जिल्द 1 सफ़्हा 80)

सवाल- अल्लाह तआला ने हजरत आदम अलैहिस्सलाम को कितने कारोबार करने की तालीम दी?
जवाब- 1000 कारोबार कि तालीम दी।
(रूहुल बयान जिल्द 1 सफ़्हा 69)

सवाल- हजरत इदरीस अलैहिस्सलाम से कौन से काम किये हैं? 
जवाब- आपने कपड़े सीने का काम किया है।
(तफसीरे अज़ीज़ी सूरऐ बक़र 170)

सवाल- हजरत नूह अलैहिस्सलाम क्या काम करते थे? 
जवाब- लकड़ी का काम।
(तफसीरे अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 170)

सवाल- हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने कौन से काम किये है? 
जवाब- खेती बाड़ी और कपड़े की तिजारत।
(तफसीरे अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 170/अलजुवैरतुलमोनीफह सफ़्हा 17)

सवाल- हजरत हूद अलैहिस्सलाम और हजरत सालेह अलैहिस्सलाम ने कौन से काम किये है? 
जवाब- तिजारत की है।
(तफसीर अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 170)

सवाल- हजरत लूत अलैहिस्सलाम क्या काम करते थे? 
जवाब- खेती बाड़ी।
(तफसीरे अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 170)

सवाल- हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम क्या काम करते थे? 
जवाब- तीर कमान से हलाल जानवरों का शिकार।
(तफसीरे अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 402)

सवाल- हजरत इसहाक अलैहिस्सलाम क्या काम करते थे? 
जवाब- चोबानी। 
(आईनए तारीख सफ़्हा 84)

सवाल- हजरत शुऐब अलैहिस्सलाम क्या काम करते थे? 
जवाब- मवेशी पालते थे।
(तफसीरे अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 170)

सवाल- हजरत मूसा अलैहिस्सलाम ने कौन से काम किये है? 
जवाब- कुछ दिनो हजरत शुऐब अलैहिस्सलाम के यहाँ बकरियाँ चराई।
(तफसीरे अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 170)

सवाल- हजरत दाऊद अलैहिस्सलाम क्या काम करते थे? 
जवाब- ज़िरह(जंगी लिबास) बनाते थे।
(तफसीरे अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 170)

सवाल- हजरत सुलैमान अलैहिस्सलाम क्या काम करते थे? 
जवाब- दरख्तों के पत्तों से जंबील चटाई पन्खे बनाते थे।
(तफसीरे अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 170)

सवाल- हजरत ज़करया अलैहिस्सलाम क्या काम करते थे? 
जवाब- लकड़ी का काम करते थे।
(अलबिदाया वन्निहाया जिल्द 2 सफ़्हा 49)

सवाल- हजरत ईसा अलैहिस्सलाम क्या काम करते थे? 
जवाब- सय्याही(सैर)।
(तफसीरे अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 170)

सवाल- हुजूरे अनवर सल्ललाहु अलैहे वसल्लम ने कौन से काम किये है? 
जवाब- पहले तिजारत और फिर जिहाद।
(तफसीरे अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 170)



2️⃣ज़िना का मुख्तसर बयान
‎ 'بسم الله الرحمن الرحيم‎'
"तर्जुमा" *अल्लाह के नाम से शुरू जो बड़ा मेहरवान निहायत रेहम वाला है*
      'الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ اللهﷺ'

अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है।
तर्जुमा क़ुराने पाक◆ *जो शख्स ज़िना करता है उससे असाम में डाला जाएगा।*
(क़ुराने मजीद पारा19सूरए फुरकान आयत68)

वज़ाहत° *असाम के बारे में उलमा ऐ किराम ने कहा है कि यह वोह जहन्नम का एक गार है जब उसका मुँह खोला जाएगा तो उसकी बदबू से तमाम जहन्नमी चीख़ उठेंगे।*
(मुक़शेफतुल कुलुब सफ़्हा167)

हदीस शरीफ में है● *के अल्लाह के रसूलﷺने इरशाद फ़रमाया की शिर्क के बाद अल्लाह के नज़दीक इस गुनाह से बड़ा कोई गुनाह नही के एक शख़्स किसी ऐसी औरत से सोहबत करे जो उसकी बीबी नही।*
(करीना-ए-ज़िन्दगी सफ़्हा132)

हदीसे पाक में है●● *कि रसूलﷺने फ़रमाया जब कोई मर्द और औरत ज़िना करता है तो ईमान उनके सीने से निकल कर सर पर साए की तरह ठहर जाता है।*
(मुक़सफहातुल कुलूब सफ़्हा168)

हदीसे पाक में है●● *ज़िना करने वाले शादी शुदा होतो खुले मैदान में पत्थरों से मार डाला जाए और गैर शादी शुदा होतो सौ दुर्रे(चाबुक जिस के सिरे पर नोकिला किला हो उससे)मरे जाए।*
(बुख़ारी शरीफ़ ज़िल्द3 सफ़्हा615से625हदीस नम्बर1715)

हदीस शरीफ●● *हज़रत इकरेमा ने हज़रते अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास(रदियल्लाहोतआला अन्हुमा)से पुछा ईमान किस तरह निकल जाता है हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास ने फ़रमाया इस तरफ और आपने एक हाथ की ऊँगलियाँ दूसरे हाथ की ऊँगलीयों में डाली और फिर निकाल ली और फ़रमाया देखो इस तरफ।*
(बुख़ारी शरीफ ज़िल्द3 सफ़्हा614हदीस नम्बर1713)

वाकिया●● *हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रादियल्लाहु तआला अन्हुमा घर से बाहर बैठे थे की एक हसीन लकड़ा(अम्रद)आता हुआ नजर आया आप दौड़ कर घर में घुस गए और दरवाज़ा बन्द कर लिया कुछ देर बाद पूछा की फितना चलागया या नही लोगों ने कहा चला चलागया तब आप बाहर तशरीफ़ लाए और फ़रमाया फरमाने नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम है इनकी तरफ देखना गुफ़्तुगू करना और इनके पास बैठना हराम है।*
(मुकाशफतुल कुलुब सफ़्हा158से159)

*हज़रते क़ाज़ी इमाम रहमतुल्लाही तआला अलैह का कौल है मैने बाज़ मशाइख़ से सुना है कि औरत के साथ एक शैतान और हसीन लड़के के साथ अठ्ठारह शैतान होंते हैं रिवायत है जिसने शहवत के साथ जिसने शहवत के सात किसी लड़के को बोसा दिया वह पाँन सौ साल जहन्नम में जालेगा,और जिसने किसी औरत को बोसा दिया उसने गोया सत्तर बदकिरा औरतों से ज़िना किया और किसी ने किसी बदकिरा औरत से ज़िना किया उसने गोया सत्तर हज़ार शादी शुदा औरतों से ज़िना किया।*
(मकाशफतुल कुलुब सफ़्हा159)
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अवाम में तो आज कल यह बात आम हो गही है ख़ुसूसन नॉजवानो में की जिसकी गर्ल फ्रैंड नही है उसका जीना ही बेकार है आजकल लोग ज़िना को करते है और आशिके रसूल(सल्लाल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) होने का सच्चा पक्का दावा करते हैं आप लोग खुद गोर की गिये की कितना बड़ा गुनाह है ज़िना।




3️⃣दुरूद शरीफ़ का बयान
بسم الله الرحمن الرحيم‎
الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ

सवाल- हुज़ूर अनवर सल्लल्लाहु तआला अलैहे वसल्लम पर दुरूद शरीफ़ पढ़ने की कितनी सूरतें हैं?
जवाब- छः सूरतें हैं, (1)फ़र्ज़ (2)वाजिब (3)सुन्नत (4)मुस्तहब (5)मकरूह (6)हराम।
(ताहतावी सफ़्हा 157)

सवाल- किस सूरत में दुरूद पढ़ना फ़र्ज़ है?
जवाब- पूरी ज़िन्दगी में एक बार पढ़ना फ़र्ज़ है।
(ताहतावी सफ़्हा 157)

सवाल- किस सूरत में दुरूद पढ़ना वाजिब है?
जवाब- अल्लामा तहावी के नज़दीक जब-जब हुजूर(सल्लल्लाहु तआला अलैहे वसल्लम)का नाम लिया जाए हर बार पढ़ना वाजिब है लेकिन सही कौल यह है कि एक बार वाजिब और हर बार मुस्तहब है।
(ताहतावी सफ़्हा 157/दुर्रे मुख्तार मअ रददुल मुहतार जिल्द 1 सफ़्हा 363)

सवाल- क्या पूरा दुरूद शरीफ़ पढ़ना वाजिब है?
जवाब- नहीं सिर्फ "अल्लाहुम-म-सल्लि अला मुहम्मद" तक वाजिब है इस पर ज़्यादा करना सुन्नत है।
(ख़ाज़िन जिल्द 5 सफ़्हा 225)

सवाल- किन सूरतों में दुरूद पढ़ना सुन्नत है?
जवाब- नमाज़ के आख़री क़ायदे में और नमाज़-जनाज़ा की दूसरी तकबीर के बाद दुरूद शरीफ़ पढ़ना सुन्नत है।
ताहतावी सफ़्हा 157/रददुल मुहतार जिल्द 1 सफ़्हा 363)

सवाल- किन सूरतों में दुरूद पढ़ना मुस्तहब है?
जवाब- रात और दिन में जब-जब मौका मिले पढ़ना मुस्तहब है इसी तरह जुमे के दिन और रात में मस्जिद में जाते वक़्त या मस्जिद से निकलते वक़्त दुआऐ कुनूत के बाद वुजु करते वक़्त दुरूद शरीफ़ पढ़ना मुस्तहब है।
(रददुल मुहतार जिल्द 1 सफ़्हा 363)

सवाल- किन सूरतों में दुरूद पढ़ना मकरूह है?
जवाब- आख़री क़ायदे और दुआए कुनूत के इलावा नमाज़ के किसी रूक्न में दुरूद पढ़ना मकरूह है इसी तरह ताजिर का ख़रीदार को सामान दिखाते वक़्त इस गर्ज़ से दुरूद शरीफ़ पढ़ना कि उस चीज़ की अच्छाई ख़रीदार पर ज़ाहिर हो दुरूद पढ़ना मकरूह है।
(ताहतावी सफ़्हा 157)

सवाल- क्या हुजूरे अनवर सल्लल्लाहु तआला अलैहे वसल्लम को भी अपने ऊपर दुरूद भेजना वाजिब था?
जवाब- नहीं था।
(ताहतावी सफ़्हा 158)

सवाल- तमाम दुरूदों में अफ़ज़ल कौनसा दुरूद है?
जवाब- सब दुरूदों में अफ़ज़ल दुरूद वह है जिसे नमाज़ में मुक़र्रर किया गया है यानी दुरूदे इब्राहिम।
(फ़तावा रिज़विया जिल्द 3 सफ़्हा 84)

सवाल- दुरूद शरीफ़ की जगह आधे-अधूरे(स,अ,व)लफ्ज लिखना कैसा है?
जवाब- नाजायज़ व सख़्त हराम है इमाम जलालुदूदीन सयूती रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं पहला वह शख़्स जिसने दुरूद शरीफ़ का ऐसा इख्तेसार किया उसका हाथ काटा गया।
(फ़तावा अफ़रीक़ा सफ़्हा 45)




4️⃣सिदरतुल मन्तहा और वैतेमामूर का बयान
‎ بسم الله الرحمن الرحيم‎
الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ

सवाल- सिदरतुल मन्तहा क्या चीज है?   
जवाब- एक दरख़्त है जिनकी जड़ छटे आसमान में और उसकी शाखें सातवे आसमान में फैली हुई है ओर बुलन्दी सातवें आसमान से भी ज्यादा है उसके फल मटके की तरह और पत्ते हाथी के कान की तरह है उसमें रंग बिरंगे फल हैं उस पर निहायत खूबसूरत सजावट है उसका एक पत्ता अगर जमीन पर रख दिया जाऐ तो पूरे एहले जमीन को रौशन कर दे और उसके हर पत्ते पर एक फ़रिश्ता है। 
(ख़ाज़िन व मालिम जिल्द 6 सफ़्हा 215/अशिअअतुल लमआत जिल्द 4 सफ़्हा 418) 

सवाल- सिदरतुल मुन्तहा कितना बढा दरख़्त है? 
जवाब- इतना बड़ा दरख़्त है कि सवार उसकी टहनी के साए में सौ बरस तक चले या उसका साया एक लाख सवारों को किफायत करें । 
(ख़ाज़िन व मआलिम जिल्द 6 पेज 215)   

सवाल- उसको सिदरतुल मन्तहा क्यो कहते है?   
जवाब- इसलिए कहते है कि बन्दो के अमल और मख़लूक के इल्म वहाँ तक मुन्तहा(आखिरी मन्जिल)हो जाते है जो चीज ऊपर से उतरती है उसकी भी मुन्तहा (आखिरी हद)है और फरिश्ते भी यहीं ठहर जाते है इसलिये सिदरतुल मन्तहा कहते है । 
(मवाहिब लदिन्नया 2 सफ़्हा 25/ख़ाज़िन व मआलिम जिल्द 6 सफ़्हा 215) 

सवाल- क्या इससे ऊपर कोई जा सकता है? 
जवाब- हमारे हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम के इलावा कोई न जा सका
(मवाहिब लदिन्नया जिल्द 2 सफ़्हा 25)

सवाल- ज़मीन से सिदरतुल मुन्तहा तक कितनी दूरी है 
जवाब- पच्चीस हजार बरस की राह ।
(अलमलफूज जिल्द 4 सफ़्हा 9)

सवाल- बैते मामूर कहाँ है ?   
जवाब- सातवें आसमान में अर्श आज़म के सामना काबा शरीफ के ठीक ऊपर फरिशतो की मख्सूस इबादत गाह और उनका किबला है हर रोज उसमें ऐसे सत्तर हजार फ़रिश्ते तवाफ व नमाज के लिए हाजिर होते है कि फिर उन्हें दोबारा नमाज व तवाफ का मौका नही मिलता ।   
(उम्दतुल क़ारी जिल्द 2 सफ़्हा 201/ख़ाज़िन व मआलिम जिल्द 6 सफ़्हा 206)     

सवाल- क्या फरिश्ते उसमे अजान व जमाअत के साथ नमाज पढ़ते हैं ?     
जवाब- हाँ हजरत इसराफील अलैहिस्सलाम अजान देते है जिनकी आवाज सातों आसमान और सातों जमीन के फ़रिश्ते सुन लेते हैं और हजरत मीकाईल अलैहिस्सलाम सबके इमाम होते हैं । 
(तफसीर अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 310)   

सवाल- क्या बेते मामूर में फरिशतो के इलावा भी किसी ने नमाज पढ़ी है?     
जवाब- हाँ शबे मेराज में तमाम नबियों और उम्मते मरहूमा ने हुजूर सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम के पीछे नमाज पढ़ी और आपने सबकी इमारत फरमाई।
(अलमलफूज जिल्द 4 सफ़्हा 47)



5️⃣आसमान का बयान
بسم الله الرحمن الرحيم‎
الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ

सवाल- आसमान कितने हैं?
*जवाब- सात हैं।*
(कुराने मुकद्दस सूरऐ तलाक़)

सवाल- उनके ऊपर क्या हैं?
*जवाब- उनके ऊपर कुर्सी और कुर्सी के ऊपर अर्शे आज़म हैं।*
(ख़जाइन सफ़्हा 63)

सवाल- हर आसमान की मोटाई कितनी हैं?
*जवाब- पाँच सौ बरस की राह।*
(शरह शिफा जिल्द 1 सफ़्हा 132)

सवाल- क्या हर दो आसमान के बीच मैं फ़ासला हैं या एक दूसरे से आपस मैं मिले हुऐ हैं?
*जवाब- नहीं एक दूसरे से अलहदा हैं और हर एक के दरमीयान पाँच सौ बरस की दूरी हैं।*
(शरह शिफा जिल्द 1 सफ़्हा 132)

सवाल- आसमान की शक़्ल कैसी हैं?
*जवाब- नील गूँ कुब्बे (गुम्बद) की तरह।*
(इस्लाम और चाँद का सफ़र सफ़्हा 75)

सवाल- क्या आसमान मुतहरिंक (हिलने वाला) हैं?
*जवाब- नहीं आसमान व ज़मीन दौनों साकिन ठहरे हुए हैं उनमें से कोई भी मुतहरिंक हैं।*
(कुरान ए मुकद्दस)

सवाल- जमीन और आसमान के दरमीयान कितना फ़ासला हैं?
*जवाब- पाँच सौ बरस की दूरी का फ़ासला हैं।*
(उम्दतुल क़ारी जिल्द 2 सफ़्हा 200)

सवाल- क्या ज़मीन की तरह आसमान मैं भी रात होती हैं?
*जवाब- नहीं रात का आना ज़मीन वालों के साथ ख़ास हैं।*
(फ़तावा हदीसीया सफ़्हा 19)

सवाल- आसमान को किस चीज़ से बनाया गया?
*जवाब- बाज़ रिवायत मैं हैं कि आसमान को पैदा होने से पहले पानी मौजूद था और हवा ही हवा पानी से टकराई जिससे पानी मैं धुआँ ज़ाहिर हुआ और वह धुआँ ऊपर की तरफ़ उठा तो यही आसमान का माददा बना और इसी से सातों आसमान बनाऐ गये।*
(तफसीरे अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 136)

सवाल- क्या यह सातों आसमान नाम और बनावट के एतेबार से मुख़तलिफ़ हैं?
*जवाब- हाँ मुख़तलिफ़ हैं*
*पहले आसमान का नाम रक़ी हैं जो सब्ज ज़मुर्रद का है,*
*दूसरे का नाम अरक़लून हैं जो सफेद चाँदी का है,*
*तीसरे का नाम कैदूम हैं जो सुर्ख़ याकूत का है,*
*चौथे का नाम माऊन हैं जो सफेद मोतियों का है,*
*पाँचवे का नाम वबक़ा हैं जो सुर्ख सोने का है,*
*छटे का नाम वफ़्ना हैं जो ज़रद याकूत का है,*
*सातवें का नाम अरूबा हैं जो नूर से चमक रहा है।*
(रूहुल बयान जिल्द 1 सफ़्हा 62)

सवाल- बिजली क्या चीज़ हैं?
*जवाब- अल्लाह तआला ने बादलों के चलाने पर एक फ़रिश्ता मुक़र्रर फ़रमाया हैं जिसका नाम रअद हैं उसका क़द बहुत छोटा हैं और उसके हाथ मैं बहुत बड़ा कोड़ा हैं जब वह कोड़ा बादल को मारता हैं तो उसकी तर्री से आग झड़ती हैं उस आग का नाम बिजली हैं।*
(फ़तावा रिज़विया जिल्द 12 सफ़्हा 189)

सवाल- बादल कैसे बनता है?
*जवाब- बादल बुख़रात से बनते हैं जब रतूबत मैं हरारत अमल करती है भाप पैदा होती हैं अल्लाह तआला हवा को भेजता हैं कि वह उसको जमा करती हैं फिर तह-ब-तह उसके बादल बनाती है उसे ले जाती हैं और हुक्म मैं इलाही हरारत के अमल से वह पिघल कर पानी हो गिरती हैं।*
(फ़तावा रिज़विया जिल्द 12 सफ़्हा 193)



6️⃣अज़ान का बयान
بسم الله الرحمن الرحيم‎
الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ

सवाल- अज़ान की मशरूइयत कहाँ हुई?
जवाब- हिजरत के बाद मदीना मुनव्वरा में।
(रददुल मुहतार जिल्द 1 सफ़्हा 268)

सवाल- मशरूईयत किस तरह हुई?
जवाब- मशहूर यह है कि तअय्युन के सिलसिले में हुजूरे अनवर सल्लल्लाहु तआला अलैह वसल्लम ने सहाबए किराम से मशवरा फरमाया कि कोई सूरत इख्तियार की जाऐ कि लोग नमाज़ के लिये जमा हो जाऐ किसी ने कहा कि नाकूस बजाया जाऐ किसी ने कहा संख फूंका जाऐ किसी ने कहा बुलन्द जगह आग रौशन की जाऐ अभी सहाबए किराम किसी राए पर मुत्तफिक भी न होने पाये थे कि हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने जैद़ ने ख़्वाब में देखा कि एक मर्द आसमान से नीचे आया उसके हाथ में नाकूस है अब्दुल्लाह इब्ने जैद ने कहा कि ऐ बन्दऐ खुदा क्या तुम इस नाकूस को फरोख्त करोगे उसने कहा तुम ख़रीदकर क्या करोगे उन्होंने जवाब दिया इससे लोगों को नमाज़ के लिये बुलाऊँगा उसने कहा में तुमको इससे बेहतर चीज़ सिखाता हूँ कि जब नमाज़ का वक़्त हो जाऐ तो इन कलमात को अदा करो बस उसने आख़ीर तक अज़ान एक मखसूस कैफियत के साथ सिखाई फिर थोड़ी देर बाद इकामत का तरीका बताया जब सुबह हुई तो अब्दुल्लाह बिन ज़ैद ने अपना ख़्वाब हुजूरे अनवर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम से बयान किया आपने सुनकर फरमाया यह ख्वाब हक है जाओ हज़रत बिलाल को बताओ हज़रत अब्दुल्लाह बिन ज़ैद कहते है कि हम हज़रत बिलाल को बता रहे थे और वह बुलन्द आवाज़ से अज़ान दे रहे थे हज़रत उमर फारुके आज़म रदियल्लाहु तआलाअन्हु ने जब अज़ान की आवाज़ सुनी तो फौरन अपनी चादर घसीटते हुऐ बारगाहे मुस्तफा में हाज़िर हुऐ और अर्ज किया या रसूलअल्लाह (सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम) मैंने भी यही ख्वाब देखा है जो उन्होंने कहा उसपर हुजूरे अनवर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम ने फरमाया फ़लिल्लाहिल हम्द, बाज़ रिवायत में है कि इस सिलसिले में आप पर वही भी आगई थी।
(मदरिजुन्नुबुव्वत जिल्द 1 सफ़्हा 397/अबु दाऊद शरीफ जिल्द 1 सफ़्हा 72)

सवाल- इस्लाम में सबसे पहले अज़ान किसने पढ़ी?
जवाब- हज़रत बिलाल हब्शी रदियल्लाहु तआला अन्हु ने।
(अलजवाहिरूल मुज़िय्या जिल्द 1 सफ़्हा 23)

सवाल- क्या इससे पहले भी किसी ने अज़ान पढ़ी?
जवाब- हाँ हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने पढ़ी हदीस शरीफ में है कि जब हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ज़मीने हिन्द में उतरे तो आप तन्हाई की वज़ह से वहशत तारी हुई तो अल्लाह तआला के हुक्म से हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम तशरीफ़ लाऐ और अज़ान पढ़ी जिससे आपकी वहशत दूर हो गई।
(मवाहिब लदुन्निया जिल्द 2 सफ़्हा 47/तफ़सीर अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 170)

सवाल- क्या हुजूर अनवर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम ने भी कभी अज़ान पढ़ी?
जवाब- हाँ एक बार सफ़र की हालत में जुहर की अज़ान पढ़ी और आपने "अशहदु अनन मुहम्मदर्रसूलुल्लाह" की जगह "अश्हदु इन्नी रसूलुल्लाह" पढ़ा।
(दुर्रे मुख्तार मअ रददुल मुहतार जिल्द 1 सफ़्हा 280/जददुल मुम्तार अला रदिदल मोहतार जिल्द 1 सफ़्हा 212)

सवाल- अज़ान के लिये सबसे पहले मिनारह किसने बनवाया?
जवाब- हज़रत अमीर मआविया रदियल्लाहु तआला अन्हु ने।
(रददुल मोहतार जिल्द 1 सफ़्हा 271)

सवाल- मिनारह पर सबसे पहले अज़ान किसने दी?
जवाब- शुर हबील बिन हसना ने।
(रददुल मोहतार जिल्द 1 सफ़्हा 271)

सवाल- अज़ान के बाद तसवीब यानी अस्सलातु वस्सलाम अलैका या रसूलल्लाह पढ़ना कब से राइज़ हुआ?
जवाब- रबीउल अख़िर के महीने में 781 हिजरी से राइज हुआ।
(दुर्रे मुख्तार मअ रददुल मुहतार जिल्द 1 सफ़्हा 273)

सवाल- अज़ान देना कब सुन्नत है?
जवाब- नमाज़ पंजगाना व जुमे के लिये जब जमाअत मुस्तहब्बा के साथ मस्जिद में वक़्त पर अदा की जाऐ तो उनके लिये अज़ान देना सुन्नते मुअकिक़दा है।
(बहारे शरीअत जिल्द 3 सफ़्हा 31)

सवाल- किन सूरतों में अज़ान कहना मुस्तहब है?
जवाब- बच्चे और ग़म वाले के कान में और मिर्गी वाले और ग़ज़बनाक व बदमिज़ाज़ आदमी या जानवर के कान में इसी तरह जंग करने के बाद और जिन्नों की सर्कशी के वक़्त मुसाफिर के पीछे और जंगल में जब रास्ता भूल जाऐ और कोई बताने वाला न हो इसी तरह वबा के ज़माने में अज़ान कहना मुस्तहब है।
(बहारे शरीअत जिल्द 3 सफ़्हा 31)

सवाल- नबी-ए-करीम सल्ललाहु तआला अलैह वसल्लम के मखसूस मुअज़्जिन कितने थे?
जवाब- चार थे। (1)हज़रत बिलाल हब्शी (2)हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मकतूम मदीना मुनव्वरा में मस्जिदे नब्वी के मुअज़्जिन थे (3)हज़रत सअद बिन आइज़ मस्जिदे कुबा के मुअज़्जिन (4)हज़रत अबु मह़जूरह मक्का मुकर्रमा में मस्जिदे हराम के मुअज़्जिन थे।
(ज़रक़ानी जिल्द 3 सफ़्हा 369से371/नुरूल अबसार सफ़्हा 49)

सवाल- क्या अज़ान व इक़ामत का हुक्म सिर्फ इसी उम्मत के साथ ख़ास है?
जवाब- हाँ इसी उम्मत के साथ ख़ास है।
(ज़रक़ानी जिल्द 5 सफ़्हा 370)



7️⃣ज़कात का बयान
‎ بسم الله الرحمن الرحيم‎
الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ

सवाल- ज़कात किसे कहते हैं?
जवाब- माल के एक मखसूस हिस्से का जो शरीअत ने मुक़र्रर किया हैं अल्लाह के लिये किसी मुसलमान फ़किर को मालिक बना देना बशरते के वह फ़किर हाशमी न हो जकात कहलाता है।
(दुर्रे मुख्तार मअ रददुल मुहतार जिल्द 2 सफ़्हा 3)

सवाल- ज़कात किस सन् में फ़र्ज़ हुई?
जवाब- सन् 2 हिजरी में फ़र्ज़ हुई।
(ताहतावी अला मराकियुल फ़लाह सफ़्हा 414/दुर्रे मुख्तार मअ रददुल मुहतार जिल्द 2 सफ़्हा 2)

सवाल- ज़कात किन पर फ़र्ज है?
जवाब- चन्द शतो के साथ मालदार मुसलमान पर फ़र्ज़ है।
(आम्मऐ कुतूब)

सवाल- वह चन्द शर्ते क्या हैं?
जवाब- (1)बालिग़ होना,(2)आक़िल होना,(3)आज़ाद होना
(4)निसाब का मालिक होना,(5)निसाब का कर्ज़ से फ़ारिग़ होना,
(6)निसाब का अपनी असली जरूरत से ज्यादा होना,
(7)माल का बढ़ने वाला होना (8)माल पर साल गुजरना।
(दुर्रे मुख्तार मअ रददुल मुहतार जिल्द 2 सफ़्हा 4से6)

सवाल- साहिबे निसाब कौन है?
जवाब- जौ आदमी साढ़े बावन तोला चाँदी या साढ़े सात तोला सोना या इन कि क़ीमत के बराबर रूपया पैसा या सामाने तिजारत का मालिक हो वह साहिबे निसाब है।
(दुर्रे मुख्तार मअ रददुल मुहतार जिल्द 2 सफ़्हा 29से31)

सवाल- क्या अम्बियाऐ किराम पर भी ज़कात फ़र्ज़ हैं?
जवाब- अम्बियाए किराम पर ज़कात बिलइजमाअ फ़र्ज़ नहीं।
(दुर्रे मुख्तार मअ रददुल मुहतार जिल्द 2 सफ़्हा 2)

सवाल- अम्बियाए किराम के माल पर ज़कात फ़र्ज़ क्यो नहीं?
जवाब- अम्बियाए किराम के पास जो कुछ होता है वह माल अमानत है और माले अमानत में ज़कात फ़र्ज़ नहीं दूसरी वजह यह है कि ज़कात के माना हैं साहिबे, इन्सानों का गुनाहों से पाक होना और अम्बियाए किराम गुनाहों से पाक होते हैं इसलिये उनपर ज़कात फ़र्ज़ नहीं।
(रददुल मुहतार जिल्द 2 सफ़्हा 2/ताहतावी सफ़्हा 414)




8️⃣हैज़, निफ़ास और जनाबत का बयान
‎ بسم الله الرحمن الرحيم‎
*बिस्मिल्लाहहिर्रहमानिर्रिहीम*

الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ
*अस्सालातु वसल्लामु अलैहका या रसूलउल्लाह सल्ललाहो अलैह वसल्लम*
____🕋🕋____________
सवाल- हैज़ और निफ़ास किसे कहते हैं?
*जवाब- वालीग औरत के आगे के मक़ाम से जो खून आदी तोर पर निकलता है और बीमारी या बच्चा पैदा होने के सब्ब से न हो तो उससे हैज़ कहते हैं, उसकी उद्दत कम से कम तीन दिन और ज्यादा से ज्यादा दस दिन है इससे कम या ज्यादा हो तो बीमारी यानी इसतिहाज़ा है और बच्चा पैदा होने के बाद जो जो खून आता है उससे निफ़ास कहते हैं निफ़ास में कामी की जानिब कोही मुद्दत मुक़र्रर नही, और ज्यादा से ज्यादा चालीस दिन है चालीस दिन के बाद जो खून आए वह इसतिहाज़ा है।*
(अनवारे शरीअत सफ़्हा40)

सवाल- हैज़ व निफ़ास का क्या हुक़्म है?
*जवाब- हैज़ व निफ़ास की हालत में रोज़ा रखना और नमाज़ पढ़ना हराम है उन दिनों में नमाज़े मुआफ़ हैं उनकी क़ज़ा भी नही मगर रोज़ो की क़ज़ा और दिनों में रखना फ़र्ज़ है और हैज़ व निफ़ास वाली औरत को क़ुरान मजीद पढ़ना हराम है देख कर पढ़े या जुवानी उसका छूना अगरचे उसकी ज़िल्द या हाशिया को हाथ या उनली की नोक या बदन का कोई हिस्सा लगे सब हराम है हां जुजदान में क़ुरान मजीद हो तो उससे जुजदान के छूने में हर्ज़ नहीं,किसी औरत को हर महीने सात दिन हैज़ आता हो इस बार दस दिन आया तो ये हैज़ है और अगर बारह दिन खून आया तो दिन हैज़ के और पाँच दिन इस्तिहाज़ा के हुए।*
(अनवारे शरीअत सफ़्हा41)

सवाल- जिसे एहतिलाम हुआ और ऐसे मर्द व औरत की जिन पर ग़ुस्ल फ़र्ज़ है उनके लिये क्या हुक़्म है?
*जवाब- ऐसे लोगो को ग़ुस्ल किए बगैर नमाज़ पढ़ना क़ुरान मजीद देख कर या जुबानी पढ़ना उसका छूना और मस्जिद में जाना हराम(उस हिस्से में जाना हराम है जिसमे नमाज़ी नमाज़ अदा करते हों यानी वहा नमाज़ी नमाज़ अदा करते हो उस जगह जाना हराम है)है।*
(अनवारे शरीअत सफ़्हा41)

सवाल- दो हैज़ों या निफ़ास के दरमियान कम से कम कितने दिनों का फ़ासिला जरुरी है?
*जवाब- पन्दरह दिन का फ़ासिला जरुरी है हैज़ व निफ़ास ख़त्म होने के बाद अगर पन्दरह दिन पुरे ना हुऐ थे खून आ गया तो यह हैज़ व निफ़ास नही बल्कि इस्तिहाज़ा है।*
(जन्नती ज़ेवर सफ़्हा248)

सवाल- रोज़े की हालत में अगर हैज़ व निफ़ास शुरू हो गया तो क्या हुक़्म है?
*जवाब- रोज़े की हालत में अगर हैज़ व निफ़ास शुरू हो गया तो रोज़ा जाता रहा अगर रोज़ा फ़र्ज़ था तो उसकी क़ज़ा फ़र्ज़ है और अगर रोज़ा नफ्ली था तो उसकी क़ज़ा वाज़िब।*
(जन्नती ज़ेवर सफ़्हा251)

सवाल- हैज़ के कितने रंग होते हैं?
*जवाब- छह रंग होते हैं,(1)सियाह(2)सुर्ख़(3)सब्ज़(4)ज़र्द(5)गदला(6)मटियाला, खालिस सफ़ेद रंग की रुतुबत हैज़ नही है।*
(जन्नती ज़ेवर सफ़्हा249)
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*हदीसे पाक में है कि इल्म फैलाने वाले के बराबर कोई आदमी सदक़ा नहीं कर सकता।*
(क़ुर्बे मुस्तफा,सफह 100)




9️⃣आदाबे रोज़ा
بسم الله الرحمن الرحيم‎
*बिस्मिल्लाहहिर्रहमानिर्रिहीम*

الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ
*अस्सालातु वसल्लामु अलैहका या रसूलउल्लाह सल्ललाहो अलैह वसल्लम*

सवाल- हदीस शरीफ है कि हज़रते अबु हुरैरा रज़ियल्लाह तआला अन्हु ने कहा कि रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की जब रमजान का महीना शुरू होता है तो आसमान के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं और एक रिवायत में है कि जन्नत के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं और जहन्नम में दरवाज़े बंद कर दिए जाते हैं और शैतान ज़ंजीरो में जकड़ दिए जाते हैं और एक रिवायत में है कि रहमत के दरवाज़े खोल दिये जाते हैं,(बुख़ारी/मुस्लिम)इस हदीस की तफ़्सीर बताए?
*जवाब- हज़रत शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्लाह तआला अलैहि इस हदीस की शरह में लिखते हैं कि आसमान के दरवाज़े खोल दिए जाने का मतलब है लगातार रहमत का भेजा जाना और बगैर किसी रुकावट के अल्लाह की बारगाह में अम्ल का पहुँचना और दुआ क़बूल होना और,जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाने का मतलब है अच्छे अमल की तौफ़ीक़ और हुस्ने कबूल अता फरमाना,और दोज़ख़ के दरवाजे बंद किए जाने का मतलब है रोज़ा दारों के नुफुस को बुरी बातो की आलूदगी से पाक करना और गुनाहों पर उभारने वाली चीज़ो से नजात पाना और दिल से लज़्ज़तों के हासिल होने की ख़्वाहिशों को तोड़ना,और शैतानों को ज़ंजीरों में जकड़ दिए जाने का मतलब है बुरे ख्यालों के रास्तों का बंद हो जाना।*
(अशिअतुल्लम्आत जिल्द2 सफ़्हा62)

सवाल- रोज़ा रख़ कर गुनाह करने वाले के वारे में हदीस मे क्या आया है?
*जवाब- हदीश शरीफ में है कि हज़रते अबु हुरैरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायात है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की जो रोज़ा रख़ कर बुरी बात कहना और उस पर अमल करना न छोड़े तो अल्लाह तआला को इस की परवा नही उसने खाना पीना छोड़ दिया है(यानी रोज़ा क़बूल ना होगा)।*
(अनवारे हदीस सफ़्हा148/बुख़ारी शरीफ)
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*हदीसे पाक में है कि इल्म फैलाने वाले के बराबर कोई आदमी सदक़ा नहीं कर सकता।*
(क़ुर्बे मुस्तफा,सफह 100)




1️⃣0️⃣वही का बयान

‎ بسم الله الرحمن الرحيم‎
*बिस्मिल्लाहहिर्रहमानिर्रिहीम*

الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ
*अस्सालातु वसल्लामु अलैहका या रसूलउल्लाह सल्ललाहो अलैह वसल्लम*

सवाल- वही किसे कहते हैं?
*जवाब- वही उस बात को कहते हैं जो किसी नबी पर अल्लाह की तरफ से आए।*
(उम्दातुल क़ारी जिल्द1 सफ़्हा47)

सवाल- वही किस जबान में नाज़िल होती थी?
*जवाब- अरबी जबान में नाज़िल होती थी,नबी कौम की जबान में तर्जुमा कर दिया करते थे।*
(अलइतकान जिल्द1 सफ़्हा45)

सवाल- हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम पर वही की इब्तिदा किस चीज़ से हुई?
*जवाब- सच्चे और अच्छे ख्वाबो से।*
(बुख़ारी शरीफ ज़िल्द1 सफ्हा2)

सवाल- आप पर वही की इब्तिदा किस तारीख से हुई?
*जवाब- बरोज़ पीर आठ या तीन रबीउलअव्वल से हुई।*
(मदारिजुन्नुव्वत जिल्द2 सफ़्हा38)

सवाल- क्या कुरान की तरह हदीस भी अल्लाह की वही है?
*जवाब- हाँ जिस तरह हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम क़ुरान लेकर नाज़िल होते थे इसी तरह हदीस भी लेकर उतरते थे।*
(मवाहिब लदुन्निया जिल्द2 सफ़्हा69)

सवाल- क्या दोनों वही में क्या फ़र्क़ है?
*जवाब- क़ुरान वाली वही,वही-ए-मतलू-व-जली यानी तिलावत किये जाने वाली वही है और हदीस वाली वही,वही-ए-गैर-मतलू-व ख़फ़ी है यानी न तिलावत की जाने वाली उससे कम दरजे की वही है।*
(मुफ़्ती हसन मन्जूर क़ादरी/बिहार)

सवाल- क्या गैर नबी की तरह भी वही हो सकती है?
*जवाब- हाँ वही इलहाम के माना और सूरत में हो सकती है,जैसा की क़ुरान मुक़द्दस में शहद की मक्खी और हज़रत मूसा अलैहिस्लाम की माँ के बारे में है कि अल्लाह तआला ने उनकी तरह वही की।*
(तक़मीलुल ईमान सफ़्हा41/उम्दातुल क़ारी ज़िल्द1 सफ़्हा47)

सवाल- वही लिखने वाले कातिब कितने हैं?
*जवाब- तेरह हैं,(1)हज़रत अबु बकर(2)हज़रत उमर खत्ताब(3)हज़रत उस्मान ग़नी(4)हज़रत अली-ए-क़रार(5)आमिर बिन फहिरा(6)अब्दुल्लाह बिन अरक़म(7)ओबय बिन कअब(8)साबित बिन कैस(9)खालिद बिन सईद(10)हन्जला बिन रबिअ(11)जैद बिन साबित(12)मआविया बिन सुफ़यान(13)शरजील बिन हसन, रादी अल्लाहु तआला अन्हो।*
(अन्नाहियह सफ़्हा15)

सवाल- वही की कितनी सूरते हैं?
*जवाब- नबियों के हक़ में वही की तीन सूरते हैं,(1)बिना फ़रिश्तो के वास्ते से बज़ात खुद अल्लाह तआला के कलाम को सुन्ना(2)फरिश्तो के वास्ते अल्लाह का कलाम आना(3)मुक़द्दस नबियों के दिलों में कलाम के माना का अल्लाह की तरफ़ से डाला जाना,फिर यह तीनों किस्मे सात सूरतों में मुनहसिर(यानी गेरा हुआ)हैं(1)वही ख्वाब में हो जैसा हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की क़ुबानी का हुक़्म हुआ(2)दिल में इलका हो(3)घन्टी की आवाज़ की सूरत में आए(4)फ़रिश्ता किसी इनसान मर्द की शक़्ल में आकर अल्लाह का कलाम पेश करे जैसा कि हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम हज़रत दहय्या कलबी की शक़्ल में हाज़िर होकर कलाम पेश करते(5)हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम अपनी मलकुती(यानी फरिश्तों वाली शक्ल) शक़्ल में हाज़िर हो कर कलामें रब्बी पेश करते(6)हज़रत इसराफिल अलैहिस्सलाम वही लेकर हाज़िर हों(7)बिना फ़रिशतों के वास्ते से अल्लाह के मुबारक कदिम कलाम को सुन्ना जैसा मैराज शरीफ़ की रात में हमारे हुज़ूर सलल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम पर और तुर पहाड़ पर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने सुना।*
(उम्दातुल क़ारी जिल्द1 सफ़्हा47/जादुल मआद ज़िल्द1 सफ़्हा18)
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*हदीसे पाक में है कि इल्म फैलाने वाले के बराबर कोई आदमी सदक़ा नहीं कर सकता।*
(क़ुर्बे मुस्तफा,सफह 100)




1️⃣1️⃣मौत का बयान
بسم الله الرحمن الرحيم‎
الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ

सवाल- क्या मौत व हयात दोनो वुजूदी हैं
*जवाब- हाँ दोनो वुजूदी हैं।*
(अलमलफूज जिल्द 4 सफ़्हा 71)

सवाल- मौत व हयात किस शक्ल में है?
*जवाब- मौत हजरत इजराईल अलैहिस्सलाम के कब्जे में एक मैढे की शक्ल मे है जिनके पास से वह गुजरता है वह मर जाता है और हयात यानी जिन्दगी हजरत जिब्राईल अलैहिस्सलाम की सवारी में एक घोड़ी की शक़्ल मे है जिस बेजान के पास से गुजरती है वह जिन्दा हो जाता है।*
(ख़ाज़िन व मआलिम जिल्द 7 सफ़्हा 103/शरहुस्सुदूर सफ़्हा 15/शरह शिफा जिल्द 1 सफ़्हा 29)

सवाल- क्या मौत को भी मौत होगी?
*जवाब- हाँ मौत को एक मैंढे की शक़्ल में जन्नत व दोज़ख़ के दरमीयान लाया जाऐगा और हजरत यहया अलैहिस्सलाम उसे हुजूरे अनवर सल्ललाहु अलैहे वसल्लम के सामने अपने हाथ से जिबह फरमाऐगे।*
(शरहुस्सुदूर सफ़्हा 15)

सवाल- क्या इन्सान की तरह फरिश्तो को भी मौत लाहिक होती है?
*जवाब- फरिशतो के लिए कयामत से पहले मौत नही है फरिश्ते उस वक़्त मरेगें जब पहला सूर फूका जाऐगा मलकुल मौत उनकी रूह क़ब्ज करेंगे फिर वह खुद भी मर जाऐगें।*
(आलहिदायतुल मुबारकह सफ़्हा 17)

सवाल- रूह को भी मौत होगी?
*जवाब- नही होगी।*
(फ़तावा रिज़विया जिल्द 9 सफ़्हा 58)

सवाल- क्या मौत के वक़्त तकलीफ होगी?
*जवाब- हाँ तकलीफ होती है उसकी कम से कम तकलीफ की मिसाल यह है कि कोई शख्स काँटे दार शाख को ऊन में डाले फिर उसे खींचे तो शाख के साथ ऊन का रेशा-रेशा निकल आऐगा यानी नजअ के वक़्त गोया हर रगे जाँ में काँटे चुभते है और उन्हीं के साथ रूह निकलती है।*
(शरहुस्सुदूर सफ़्हा 13)

सवाल- फिर क्या वजह है कि इतनी तकलीफ के बावजूद मरने वाला पुर सुकून नजर आता है?
*जवाब- फरिश्ते उसे मजबूती से बाँध देते है वरना अगर यह बात न हो तो तकलीफ की वजह से वह अपने करीब वालो को तलवार लेकर मारने लगे।*
(शरहुस्सुदूर सफ़्हा 13)

सवाल- आदमी के मरने के बाद उसे खुश्बू क्यो लगाते है?
*जवाब- एक रिवायत मे है कि जब हजरत इजराईल अलैहिस्सलाम हजरत आदम अलैहिस्सलाम की तखलीद के लिये जमीन से मिट्टी उठा कर ले गऐ तो जमीन ने अल्लाह तआला की बारगाह में शिकायत की कि ऐ अल्लाह तआला मिट्टी उठाने से तो मुझ में कमी आ गई अल्लाह तआला ने जवाब दिया घबराओ मत जब यह तुम में वापस आऐगा तो पहले से ज्यादा हसीन व जमील और खुशबूदार होगा यही वजह है कि मय्यित को इत्र व मुश्क से मुअत्तर किया जाता है।*
(रूहुल बयान जिल्द 1 सफ़्हा 68)




1️⃣2️⃣ज़बानों का बयान
بسم الله الرحمن الرحيم‎
الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ

सवाल- तमाम जुबानों में कौनसी जुबान अफ़ज़ल है?
जवाब- तमाम जुबानों में अरबी जुबान अफ़ज़ल है।
(आलमगीरी जिल्द 4 सफ़्हा 123)

सवाल- जन्नत में कौनसी जुबान बोली जाऐगी?
जवाब- अरबी जुबान बोली जाऐगी।
(आलमगीरी जिल्द 4 सफ़्हा 123)

सवाल- कितने नबियों की जुबान अरबी थी?
जवाब- सिर्फ पाँच नबियों की जुबान अरबी थी (1)हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम (2)हज़रत हूद अलैहिस्सलाम (3)हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम (4)हज़रत शुएब अलैहिस्सलाम (5)हमारे आका हुजूरे अकरम सल्ललाहु तआला अलैह वसल्लम।
(बुस्तानुल आरेफ़ीन सफ़्हा 170)

सवाल- क़ब्र में मुन्कर नकीर का सवाल किस जुबान में होगा?
जवाब- सुरयानी जुबान में होगा।
(अलइबरीज़ सफ़्हा 128/अलमलफूज जिल्द 4 सफ़्हा 14)
बाज़ लोगों ने अरबी जुबान में कहा है।
(फ़तावा हदीसिया सफ़्हा 7)

सवाल- मुर्दे किस जुबान में जवाब देगें?
जवाब- सुरयानी जुबान में ही जवाब देंगे।
(अलइबरीज़ सफ़्हा 128)

सवाल- अरबी जुबान की इब्तिदा किस से हुई?
जवाब- हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से हुई वह जन्नत में अरबी बोलते थे ज़मीन पर तशरीफ लाने के बाद सुरयानी बोलने लगे फिर कुबूले तौबा के बाद अरबी जुबान हो गई अगरचे आम तौर पर मशहूर यह है कि अरबी जुबान हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम से ज़ाहिर हुई और उन्होंने यह जुबान जुरहम और उसके भाई कतूरा से सीखी यह हज़रत अरबी बोलते थे।
(तफ़सीर अज़ीज़ी जिल्द 1 सफ़्हा 164/अलबिदाया वन्निहाया जिल्द 1 सफ़्हा 120)

सवाल- सुरयानी जुबान की इब्तिदा किस से हुई?
जवाब- हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से हुई आपकी और आपकी औलाद और ज्यादा तर नबियों की जुबान सुरयानी ही थी अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को तमाम चीजों के नाम सुरयानी जुबान ही में सिखाए थे ताकि फ़रिश्ते समझ न सकें।
(अलइबरीज सफ़्हा 127)

सवाल- अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को कितनी जबानों का इल्म दिया?
जवाब- सात लाख जबानों का इल्म दिया आप तमाम जबानें जानते थे मसलन अरबी फारसी रूमी सुरयानी युनानी वगैरह।
(रूहुल बयान जिल्द 1 सफ़्हा 69)

सवाल- तूफाने नूह के बाद फिर अरबी जबान की इब्तिदा किन से हुई?
जवाब- साम बिन नूह की औलाद ने अल्लाह तआला के इलहाम से इस जबान को ईजाद किया उन्हीं से इसकी इब्तिदा हुई।
(ज्जबुल कुलूब सफ़्हा 51)

सवाल- इबरानी जबान की इब्तिदा किस से हुई?
जवाब- हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम से हुई वाकेआ यह हुआ कि हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम की जुबान सुरयानी थी जब आप नमरूद के शर की वजह से बहुक्में इलाही दरयाऐ फुरात पार करके मुल्के शाम तशरीफ़ लाऐ तो नमरूद ने हज़रत की तलाश में सिपाही भेज दिए जो शख्स भी सुरयानी जबान में बात करता हुआ मिले उसे गिरफ्तार करलें जब नमरूद के आदमी हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम के पास पहुंचे तो अल्लाह तआला की कुदरत से आपकी जबान बदल गई और आप सुरयानी के बजाए इबरानी बोलने लगे उन्होंने जब देखा कि आप इबरानी बोल रहे हैं तो कोई बात न की हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम को इस जबान की तालीम चूँकि दरयाऐ फुरात पार करने के बाद हुई थी इसलिए इसको इबरानी कहते हैं।
(शरह शिफ़ा जिल्द 1 सफ़्हा 497/तबक़ात इब्ने सअद सफ़्हा 28)

सवाल- हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम कितनी जबाने जानते थे?
जवाब- छत्तीस सौ जबाने जानते थे नौ सौ ज़मीन की नौ सौ आसमान की नौ सौ परिन्दों की और नौ सौ कीड़ों मकोड़ों की।
(तफ़सीर नईमी पारा 12 सफ़्हा 428)

सवाल- अल्लाह तआला ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से किस जबान में कलाम फ़रमाया?
जवाब- पहले तमाम जबानों में कलाम फ़रमाया फिर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया में उन ज़बानों को नहीं समझता तब अल्लाह वसल्लम ने उनकी जबान में कलाम फरमाया।
(तफ़सीर नईमी पारा 6 सफ़्हा 98)

सवाल- हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने अपने रब से कितने कलिमात सुने?
जवाब- बारह सौ कलिमात और आपने पूरे जिस्म के साथ कान लगाकर बदन के हर-हर रूगँटे से यह कलिमात समाअत फरमाऐ।
(ख़ाज़िन जिल्द 4 सफ़्हा 214/तफ़सीर नईमी पारा 9 सफ़्हा 20)

सवाल- फ़ारसी जबान की इब्तिदा किस से हुई?
जवाब- हज़रत नूह अलैहिस्सलाम के पर पोते फारस बिन आमूर बिन याफ़िस बिन नूह अलैहिस्सलाम से इस की इब्तिदा हुई।
(उम्दतुल क़ारी जिल्द 7 सफ़्हा 105)

सवाल- तुफ़ाने नूह के बाद आपकी औलादों में कितनी जबानें बोली जाती थी?
जवाब- 72 जबानें बोली जाती थी?
(ज्जबुल कुलूब सफ़्हा 51)

सवाल- उर्दू जबान की इब्तिदा कब से हुई?
जवाब- 1027 ई से हुई लाहौर में पैदा हुई पूरानी पंजाबी जबान इसकी माँ है कुछ ने कहा है 1100 ई से हुई।
(दास्ताने जबाने उर्दू सफ़्हा 96)




1️⃣3️⃣चाँद सूरज और सितारों का बयान
بسم الله الرحمن الرحيم‎
الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ

सवाल- चाँद और सूरज कहाँ हैं?
जवाब- तहक़ीक यह है कि चाँद और सूरज ज़मीन और आसमान के दरमियान एक घेरे में है।
(तफ़सीर नसफ़ी जिल्द 3 सफ़्हा 78/इस्लाम और चाँद का सफ़र सफ़्हा 58)

सवाल- सितारे कहाँ हैं?
जवाब- ज़मीन और आसमान के बीच में नूरानी जन्ज़ीरों में लटकी हुई कन्दीलों के अन्दर हैं और यह ज़न्जीरें फ़रिश्तों के हाथों में हैं।
(तफ़सीरे कबीर जिल्द 8 सफ़्हा 338/तफ़सीर अज़ीज़ी पारा 30 सफ़्हा 61)

सवाल- क्या चाँद सूरज और सितारे मुतहरिंक हैं?
जवाब- हाँ यह तीनों मुतहरिंक है इन्सान तीनों की हरकत नस्से कतई से साबित है इरशादे रब्बानी है"कुल्लु फी फल किनयसबहून" हर एक एक घेरे में तैर रहा है यहाँ लफ़्ज़े कुल अपने उमूम के ऐतेबार से चाँद सूरज और सितारे सब शामिल है।
(जलालैन शरीफ सफ़्हा 272)

सवाल- क्या चाँद और सूरज बिज़्ज़ात रौशन हैं?
जवाब- सूरज की रौशनी तो बिज़्ज़ात है और वह बिज़्ज़ात ही रौशन है मगर चाँद की रौशनी बिज़्ज़ात नहीं बल्कि चाँद की रौशनी सूरज की रौशनी से फ़ायदा हासिल करके पैदा होती है।
(सावी जिल्द 2 सफ़्हा 152/फ़तावा रिज़विया जिल्द 4 सफ़्हा 650)

सवाल- चाँद और सूरज का रूख किस तरह है?
जवाब- रूख आसमान की तरफ और पीठ ज़मीन की तरफ है।
(ख़ाज़िन व मआलिम जिल्द 7 सफ़्हा 129)

सवाल- क्या चाँद ज़मीन से बड़ा है?
जवाब- नहीं बल्कि जमीन चाँद से चौगुनी बड़ी है।
(इस्लाम और चाँद का सफ़र सफ़्हा 55)

सवाल- क्या सूरत ज़मीन से बड़ा है?
जवाब- हाँ तक़रीबन तेरह लाख गुना बड़ा है।
(इस्लाम और चाँद का सफ़र सफ़्हा 51)

सवाल- चाँद ज़मीन से कितनी दूरी पर है?
जवाब- दो लाख मील से कुछ ज्यादा दूरी पर है।
(इस्लाम और चाँद का सफ़र सफ़्हा 54)

सवाल- सूरज ज़मीन से कितनी दूरी पर है?
जवाब- नौ करोड़ तीस खाल मील की दूरी पर है।
(इस्लाम और चाँद का सफ़र सफ़्हा51)

सवाल- सूरज का ठहरना या लौटना कितनी मर्तबा हुआ?
जवाब- सात बार हुआ चार मर्तबा हुजूरे अनवर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम के लिये और तीन बार दूसरे नबियों के लिये,
(1)हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम के लिये जब आप जिहाद के लिये घोड़ों का मुआयना फरमा रहे थे कि सूरज गुरूब हो गया और असर की नमाज़ क़जा हो गई तो आपने दुआ की तो सूरज लौट आया फिर आपने असर की नमाज़ अदा की,
(2)हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के लिये जब अल्लाह तआला ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से बनी इसराईल को साथ लेकर चलने का हुक्म दिया तो यह भी फ़रमाया था कि हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम का ताबूत साथ लेते जाना इधर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने बनी इसराईल से कह दिया कि फज्र के वक़्त निकलेंगे और ताबूत के तलाश करने में लग गऐ यहाँ तक कि फज्र तुलूअ होने के क़रीब हो गया लेकिन ताबूत का पता न चला तो आपने अल्लाह तआला की बारगाह में दुआ की ऐ अल्लाह तुलूअ आफ़ताब को मुअख्खर फ़रमादे इसलिए सूरज आपके लिये ठहरा रहा यहाँ तक कि ताबूत हासिल हो गया,
(3)हज़रत यूशअ बिन नुन के लिये जब आप बैतुल मुकद्दर के महाज़ पर कौमे जब्बारीन से जिहाद फ़रमा रहे थे जुमे का दिन था अभी जंग फ़तह होने में देर थी यहाँ तक कि सूरज डूबने लगा अगला दिन हफ्ते का था जिसमें जंग करना करना हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की शरीअत में जाइज़ नही था आपने दुआ फरमाई और सूरज आपकी दुआ से ठहर गया जब जंग फ़तह हो गई और ज़ालिमों को हार हुई तो गुरूब हो गया,
(4)जंगे-ख़न्दक के मौके पर हुजूरे अनवर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम के लिये जब आप की असर की नमाज़ क़ज़ा हो गई,
(5)हज़रत जाबिर रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हुजूरे अनवर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम ने एक बार सूरज को हुक्म दिया तो थोड़ी देर तक ठहरा रहा,
(6)मेराज की रात वापसी में आपने मक्के वालों को ख़बर दी थी कि तुम्हारा क़ाफ़िला जो तिजारत के लिये गया हुआ है सूरज निकलने से पहले पहुँचने वाला है हुस्ने इत्तेफ़ाक़ के क़ाफ़िले के पहुँचने में देर हो गई और सूरज निकलने वाला ही था कि आपने दुआ फरमाई और सूरज ठहर गया,
(7)मन्ज़िले सहबा पर हज़रत अली मुर्तजा के लिये आपके हुक्म से सूरज लौट आया।
(रूहुल बयान जिल्द 3 सफ़्हा 347/सीरत हलबी जिल्द 1 सफ़्हा 422/उम्दतुल क़ारी जिल्द 7 सफ़्हा 146/अलअम्नु वल उला सफ़्हा 103)



1️⃣4️⃣जन्नत का बयान
*بسم الله الرحمن الرحيم‎*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

सवाल- जन्नत क्या चीज़ है?
*जवाब- जन्नत एक आलीशान मकान है जिसे अल्लाह तआला ने मोमिन बन्दों के लिए तैयार किया है जिस में ऐसी नेमत और राहत व आराम की चीज़े मुहय्या है जिसकी न किसी आँख ने देखा और न किसी कान ने सुना और न किसी आदमी के दिल पर उनका खतरा गुजरा।*
(बहारे शरीअत जिल्द 1 सफ़्हा 43)

सवाल- जन्नत कहाँ है?
*जवाब- जन्नत सातवें आसमान के उपर अर्शे आज़म के नीचे है।*
तफ़सीर कबीर जिल्द 8 सफ़्हा 97/तफ़सीर अज़ीज़ी पारा 30 सफ़्हा 12)

सवाल- जन्नत व जहन्नम में पहले कौन पैदा हुआ?
*जवाब- पहले जन्नत पैदा की गई।*
(ज़रक़ानी जिल्द 1 सफ़्हा 46)

सवाल- जन्नत के तबक़ात कितने हैं?
*जवाब- आठ हैं,(1)दारूलजलाल, यह पूरा नूर ही नूर है(सुबहानअल्लाह)(2)दारूल क़रार,उसमें तमाम चीजें मरजान की हैं,(3)दारूलस्सलाम,इस में तमाम चीजें याकूते अहमर की हैं,(4)जन्नते अद्न,इसमें तमाम चीज़े जबुर जद की हैं,(5)जन्नतुल मावा,यह ख़ालिस सोने की है,(6)जन्नतुल खुल्द यह ख़ालिस चाँदी की है,(7)जन्नतुल फिरदौस यह मोती की है और उसकी दीवार की ईंटें एक सोने की और एक चाँदी और एक याकूत की और एक ज़बुरजद की है और उसका गारा ख़ालिस मुशल का है,(8)जुन्नतुन्नईम यह भी ज़बूर जद की है।*
(रूहुल बयान जिल्द 1 सफ़्हा 56)

सवाल- जन्नत के दरजात कितने हैं?
*जवाब- सौ दरजे हैं और एक दरजे से दूसरे दरजे तक ज़मीन व आसमान का का फ़ासिला है।*
(मिश्कात शरीफ जिल्द 2 सफ़्हा 334)
*एक रिवायत मे है कि कुरान-ए-मुकद्दस की आयतों के बराबर जन्नत के दरजात है और एक दरजे से दूसरे दरजे तक ज़मीनव आसमान का फ़ासला है।*
(अलइतकान जिल्द 1 सफ़्हा 67/कन्जुल उम्माल जिल्द 1 सफ़्हा 481)

सवाल- दारोगा-ए-जन्नत और दारोगा-ए-जहन्नम का नाम क्या है?
*जवाब- दारोगा-ए-जन्नत का नाम रिज़वान है और दारोगा-ए-जहन्नाम का नाम मालिक है।*
(ज़रक़ानी जिल्द 6 सफ़्हा 82)

सवाल- क्या जन्नत में दिन व रात भी होंगे?
*जवाब- नहीं बल्कि वहाँ तो रौशनी ही रौशनी होगी और जन्नतियों के पास उन वक़्तों में जिनमें वह दुनिया में नमाज़े अदा किया करते थे अजीबो ग़रीब चीज़ें पेश होती रहेंगी और फ़रिश्ते उन वक़्तों में जन्नतियों पर सलाम भेजते रहेंगे।*
(जलालैन शरीफ सफ़्हा 258)

सवाल- फिर जन्नत वाले आराम के वक़्त को कैसे पहचानेंगे?
*जवाब- परदों के लटक जाने और दरवाज़ों के बन्द हो जाने से पहचान लेंगे यानी जब आराम का वक़्त होगा तो परदे खुद व खुद लटक जाऐंगे और दरवाजें बन्द हो जाऐंगे ऐसे ही जब सैर व तफरीह का वक़्त होगा तो परदे खुद उठ जाया करेंगे और दरवाजे खुल जाऐंगे।*
(हाशिया जलालन सफ़्हा 258)

सवाल- जन्नत में उम्मते मोहम्मदिया सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम की तादाद कितनी होगी?
*जवाब- हदीस शरीफ में है कि जन्नतियों की एक सौ बीस सफें होंगी जिसमें अस्ली सफ़ों में हुजूरे अनवर सल्लल्लाहु तआला अलैह वसल्लम की उम्मत होगी और चालीस सफ़ों में तमाम अंबियाऐ किराम की उम्मत होगीं।*
(मिश्कात शरीफ जिल्द 2 सफ़्हा 498)

सवाल- जन्नती जन्नत में किस उम्र के होंगे?
*जवाब- सब तीस या तेंतीस साल के मालूम होंगे और सर के बालों पल्कों और भोओं के इलावा बदन पर कहीं बाल न होंगे।*
(मिश्कात शरीफ जिल्द 2 सफ़्हा 498/बहारे शरीअत जिल्द 1 सफ़्हा 48)

सवाल- जन्नती जन्नत में किस शक्लों सूरत में दाख़िल होगें?
*जवाब- हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की शक़्ल में दाख़िल होंगे यानी हर एक की लम्बाई साठ हाथ होगी।*
(तफ़सीर अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 147)

सवाल- जन्नत में किसी की दाढ़ी न होगी?
*जवाब- सिर्फ चार नबी के बारे में है कि उनके चेहरे पर दाढ़ी होगी,(1)हज़रत आदम अलैहिस्सलाम,(2)हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम,(3)हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम,(4)हज़रत हारून अलैहिस्सलाम।*
(फ़तावा हदीसिया सफ़्हा 6/मिरआतुल मनाज़ीह जिल्द 7 सफ़्हा 497/तफ़सीर अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 173)

सवाल- सबसे पहले जन्नत में कौनसी उम्मत दाख़िल होगी?
*जवाब- हुजूरे अनवर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम की उम्मत दाख़िल होंगी।*
(मवाहिब लदुन्निया जिल्द 2 सफ़्हा 402)

सवाल- इस उम्मत में सबसे पहले कौन जन्नत में दाख़िल होगा?
*जवाब- मर्दो में हज़रत अबु बक़र सिद्दीक रदियल्लाहु तआला अन्हो और औरतों में हज़रत फ़ातिमा जोहरा रदियल्लाहु अनहा।*
(सीरत हलबी जिल्द 1 सफ़्हा 266)

सवाल- हज़रत आदम अलैहिस्सलाम व हज़रत हव्वा में कितने दिन रहे?
*जवाब- यौमे आखिरत के आधे दिन रहे जिसकी मिक़दार दुनिया के पाँच सौ साल के बराबर है।*
(ज़रक़ानी जिल्द 1 सफ़्हा 55)

सवाल- जन्नत में जन्नतीयों को सबसे पहले कौनसा खाना पेश किया जाऐगा?
*जवाब- मछली के जिगर का वह हिस्सा जो किनारे रहता है।*
(बुखारी शरीफ जिल्द 1 सफ़्हा 469)

सवाल- क्या काफ़िरों के छोटे बच्चे भी जन्नत में जाऐंगे?
*जवाब- इस सिलसिले में मुख़तलिफ़ कौल हैं पहला कौल यह है कि अपने बाप दादा के ताबे होकर जन्नत में जाऐंगे दूसरा कौल तवक़्कुफ का है तीसरा कौल यह है कि जन्नत में जाऐंगे यही सही और मुहक्किकीन का कौल है।*
(फ़तावा हदीसिया सफ़्हा 78/खाज़िन जिल्द 2 सफ़्हा 260/उम्दतुल कारी जिल्द 4 सफ़्हा 236)

सवाल- क्या जन्नती जन्नत में कुरान शरीफ की तिलावत करेंगे?
*जवाब- हदीस शरीफ में है कि जन्नतियों के सीने से दो सूरतें यानी सूरते ताहा और सूरते यासीन के इलावा तमाम कुरान उठा लिया जाऐगा सिर्फ इन्हीं दो सूरतों की वह तिलावत करेंगे।*
(कुनूजुल हकाइक जिल्द 2 सफ़्हा 203)

सवाल- क्या जन्नती जन्नत में भी उल्मा के मुहतार होंगे?
*जवाब- हाँ मुहताज होंगे।*
(जामेऐ सग़ीर जिल्द 1 सफ़्हा 74)

सवाल- किन बातों में मुहताज होंगे?
*जवाब- जब मोमिन हर जुमे को अल्लाह तआला के दीदार से सरफ़राज होंगे तो अल्लाह तआला अपने बन्दों से फ़रमाऐगा ऐ बन्दे तमन्ना करो तुम्हारी हर तमन्ना व आरजू पूरी होगी इस पर लोग उल्मा की तरफ रूजुअ करेंगे कि अब हम अपने रब से किस चीज़ की तमन्ना करें उल्मा जवाब देने कि फलाँ-फलाँ चीज़ की तमन्ना करो।*
(जामे सग़ीर जिल्द 1 सफ़्हा 74/अलइत्तेहाक सफ़्हा 104)

सवाल- क्या दुनिया की कुछ इमारतें भी जन्नत में जाऐंगी?
*जवाब- हाँ जैसे काबऐ मुअज़्जन,तमाम मस्जिदें,रौज़ऐ अक़दस,तमाम अंबियाऐ किराम के मज़ारात।*
(अलमलफूज जिल्द 4 सफ़्हा 76)

सवाल- क्या जन्नत में दाख़िल होने के लिये मौत का मज़ा चखना ज़रूरी है?
*जवाब- हाँ जिसने दुनिया की सूरत देख ली वह बग़ैर मज़ा चले ही जन्नत में दाख़िल नही हो सकता।*
(अलमलफूज जिल्द 4 सफ़्हा 46)

सवाल- क्या कुछ आदमी ऐसे भी हैं जो मौत का मज़ा चखे बगैर जन्नत में जाऐंगे?
*जवाब- हाँ वह आदमी हैं जिन्हें अल्लाह तआला जन्नत को भरने के लिये पैदा फ़रमाऐगा यानी उन रूहों को किस दुनियाँ में नहीं भेजी गई जिस्म अता करके मकानों में बतायेगा जो खाली रहेंगे यह हज़रात बहुत आराम से रहे फज्ले खुदा से न दुनिया देखी ना कोई तकलीफ सही न मौत का मज़ा चखा और ना ही कोई अम्ल किया अल्लाह व उसके रसुल पर इमान लाऐ और हमेंशा के लिये दारूल जन्नत होगे अल्लाह तआला के फ़ज़्ल से।*
(अलमलफूज जिल्द 2 सफ़्हा 85)



1️⃣5️⃣वुज़ू का बयान
بسم الله الرحمن الرحيم‎
*बिस्मिल्लाहहिर्रहमानिर्रिहीम*

الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ
*अस्सालातु वसल्लामु अलैहका या रसूलउल्लाह सल्ललाहो अलैह वसल्लम*

सवाल- वुज़ू कहाँ फ़र्ज़ हुआ?
*जवाब- मक़्क़ा में।*
(तहतावी अला मुराकियुल फलाह सफ़्हा33)

सवाल- किन किन सूरतों में वुज़ू करना फ़र्ज़ है?
*जवाब- मुहदिस को हर किस्म की नमाज़ नमाज़े ज़नाज़ा सदाए तिलावत और क़ुराने मुक़द्दस छूने के लिये वुज़ू करना फ़र्ज़ है।*
(बहरूर्राइक जिल्द1 सफ़्हा16/फतावा रिज़विया जिल्द1 सफ़्हा206)

सवाल- किस सूरत में वुज़ू करना वाज़िब है?
*जवाब- खान-ऐ-काबा का तवाफ़ करने के लिये वुज़ू करना वाजिब है।*
(बहरूर्राइक जिल्द1 सफ़्हा16)

सवाल- किन सूरतों में वुज़ू करना वाजिब है?
*जवाब- अज़ान व इक़ामत, ख़ुत्बा ऐ जुमा व ईदैन और हुज़ूर नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के रोज़े मुबारक की ज़ियारत व बुक़ुफे अरफ़ा और सफा व मरवा के दरमयान दौड़ने वगैरह के लिये वुज़ू करना सुन्नत है।*
(बहारे शरीअत जिल्द2 सफ़्हा23)

सवाल- किन सूरतों में वुज़ू करना मुस्तहब है?
*जवाब- सोने के लिये और सोने के बाद, मय्यित को नहलाने के लिये हदीस और इल्में दीन पढ़ने और पढ़ाने के लिये हालते ज़िनाबत में खाने पीने के लिये वुज़ू करना मुस्तहब है।*
(बहारे शरीअत जिल्द2 सफ़्हा23)

सवाल- किन सूरतों में नया वुज़ू करना मुस्तहब है?
*जवाब- कहकहा लगाने,गीबत करने,चुग़ली खाने,किसी को गाली देने कोई फुहश लफ्ज़ जुबान से निकलने झूटी बात सादिक़ होने,कोई दुनयावी शेर पढ़ने गुस्सा आने,गैर महरम औरत के हुस्न पर नज़र करने, किसी काफ़िर से बदन मस होने(अगरचे वह कलमा पढ़ता हो और अपने आपको मुसलमान कहलाता हो)ज़कर(पैशाब के आले)को छू लेने से नया वुज़ू करना मुस्तहब है दर असल जाबता यह है कि जिस बात से किसी और इमाम मुजतहिद के मज़हब में वुज़ू जाता रहे उसके वाके होने से हमारे मज़हब में वुज़ू का लौटाना मुस्तहब है।*
(फतावा रिज़विया ज़िल्द1 सफ़्हा208)

सवाल- क्या वुज़ू से गुनाह सग़ीरा और कबीरा दोनों धुल जाते हैं।
*जवाब- हाँ सगीरा और कबीरा दोनों धुल जाते हैं।*
(फतावा रिज़विया जिल्द1 सफ़्हा167)

सवाल- वह कौन लोग हैं जिनकी नींद वुज़ू को नहीं तोड़ती?
*जवाब- अम्बिया किराम हैं।*
(दुर्र मुख्तार मअ रददुल मोहताज़ ज़िल्द1 सफ़्हा101)

सवाल- वुज़ू के फ़र्ज़ कितने हैं?
*जवाब- चार हैं(1)मुँह धोना(2)कुहनियों समीत दोनों धोना(3)चौथाई सर का मसह करना(4)टखनों समीत दोनों पाँव का धोना।*
(बहारे शरीअत ज़िल्द2 सफ़्हा13)

सवाल- वुज़ू में कितनी सुन्नतें हैं?
*जवाब- 15 सुन्नतें हैं(नियत करना(2)बिस्मिल्लाह से शुरू करना(3)दोनों हाथों को गट्टों तक तीन बार धोना(4)मिस्वाक करना(5)दाहने हाथ से तीन कुल्लियाँ करना(6)दाहने हाथ से तीन बार नाक में पानी चढ़ाना(7)बायें हाथ से नाक साफ़ करना(8)दाढ़ी का खिलाल करना(9)हाथ पाँव की उंगलियों का खिलाल करना(10)हर उज़्व को तीन तीन बार धोना(11)पूरे सर का एक बार मसह करना(12)कानों का मसह करना(13)तरतीब से वुज़ू करना(14)दाढ़ी के जो बाल मुँह के दायरे के नीचे हैं उनका मसह करना(15)आज़ा को पेदर पे धोना।*
(बहारे शरीअत जिल्द2 सफ़्हा16से19)

सवाल- मिस्वाक करना वुज़ू की सुन्नत है या नमाज़ की?
*जवाब- वुज़ू की सुन्नत है लिहाज़ा जो एक वुज़ू से चन्द नमाज़े पढ़े उसे हर नमाज़ के लिये मिस्वाक का मुतालबा नही जब तक मुँह में किसी वज़ह से तगय्युर न आगया हो।*
(फतावा रिज़विया जिल्द1 सफ़्हा146)
+_____📚📚____________+
*हदीसे पाक में है कि इल्म फैलाने वाले के बराबर कोई आदमी सदक़ा नहीं कर सकता।*
(क़ुर्बे मुस्तफा,सफह 100)



1️⃣6️⃣पानी का बयान
بسم الله الرحمن الرحيم‎
الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ

सवाल- दुनिया के तमाम पानियों मे अफ़ज़ल कौनसा पानी हैं?
*जवाब- वह पानी जो हुजूर अनवर सल्ललाहो अलैह वसल्लम की मुबारक उंगलियों से निकला वह पानी दुनिया के तमाम पानीयों से अफ़ज़ल हैं यहाँ तक कि आबे ज़म-ज़म आबे कौसर से भी अफ़ज़ल हैं।*
(फ़तावा रिज़विया जिल्द 1 सफ़्हा 593/अलइशबाह वन्नजाइर सफ़्हा 394)

सवाल- आबे कौसर अफ़ज़ल हैं या आबे ज़म-ज़म?
*जवाब- आबे कौसर।*
(फ़तावा रिज़विया जिल्द 1 सफ़्हा 595)

सवाल- वह कौनसा पानी हैं जिसे मुनाफ़िक कभी शिकम सैर होकर नहीं पी सकता है?
*जवाब- वह पानी आबे ज़म-ज़म हैं जिसे अल्लाह तआला ने मोमिन और मुनाफ़िक के दरमीयान निशानी करार दिया हैं कि मुनाफ़िक कभी शिकम सैर होकर नहीं पी सकता है।*
(उम्दतुल क़ारी जिल्द 4 सफ़्हा 646)

सवाल- वह कौनसा पानी हैं जिससे गन्दगी दूर करना गुनाह हैं?
*जवाब- आबे ज़म-ज़म है।*
(रददुल मुहतार जिल्द 2 सफ़्हा 263)

सवाल- वह कौनसा पानी हैं जो क़यामत के दिन नेकिँयो के पल्ले मैं तोला जाऐगा?
*जवाब- वुजू का पानी।*
(तिरमिज़ी शरीफ जिल्द 1 सफ़्हा 18)

सवाल- पानी का रंग कैसा हैं?
*जवाब- मैला माइल बयक गूना सवादे ख़फीफ़।*
(फ़तावा रिज़विया जिल्द 1 सफ़्हा 593)

सवाल- क्या अम्बियाए किराम के वुजू या गुस्ले जनाबत के पानी से पाकी हासिल करना जाइज़ हैं?
*जवाब- हाँ हमारे हक़ मैं दोनों ताहिर व मुतहहिर हैं (पाक और पाक करने वाले) इनसे वुजू और गुस्ल दोनों हो जाऐगा।*
(फ़तावा रिज़विया जिल्द 1 सफ़्हा 279)

सवाल- किस पानी को खड़े होकर पीने का हुक्म हैं?
*जवाब- आबे ज़म-ज़म शरीफ और वुजु का बचा हुआ पानी।*
(रददुल मुहतार जिल्द 1 सफ़्हा 91)

सवाल- वह कौनसा पानी हैं जो खाने की जगह खाना और दवा की जगह दवा का काम करता हैं?
*जवाब- ज़म-ज़म शरीफ़ हैं कि उसके पीने के बाद न किसी ग़िज़ा की ज़रूरत न दवा की।*
(उम्दतुल क़ारी जिल्द 4 सफ़्हा 645)

सवाल- समुन्दर कितने हैं?
*जवाब- सात समुन्दर मशहूर हैं मगर उनमें पाँच ज़्यादा बड़े हैं*
*(1)बहरे हिन्द*
*(2)बहरे औक़्यानूस*
*(3)बहरे शाम*
*(4)बहरे नीतस*
*(5)बहरे जरजान।*
(तफसीर कबीर जिल्द 2 सफ़्हा 66)

सवाल- तूफ़ाने नूह किस जगह आया था?
*जवाब- तमाम रूए ज़मीन पर।*
(तफसीर नईमी पारा 11 सफ़्हा 430)

सवाल- इस तूफ़ान मैं पानी ज़मीन की सतह से कितना ऊँचा था?
*जवाब- ज़मीन के ऊँचे पहाड़ से तीस गज़ ऊपर था।*
(अलमलफूज जिल्द 1 सफ़्हा 73)

सवाल- क्या समुन्दर के नीचे आग हैं?
*जवाब- हाँ समुन्दर के नीचे आग हैं इसलिए बग़ैर सही हाजत के समुन्दर मैं सवार होना मना हैं।*
(फ़तावा रिज़विया जिल्द 1 सफ़्हा 443)

सवाल- क्या क़यामत के दिन समुन्दर को आग बना दिया जाऐगा?
*जवाब- हाँ क़यामत के दिन अल्लाह तआला तमाम समुन्दर को आग कर देगा जिससे जहन्नम की आग मैं और भी ज़्यादती हो जाऐगी।*
(ख़जाइन सफ़्हा 757)



1️⃣7️⃣जिन्नात का बयान
بسم الله الرحمن الرحيم‎
الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ

सवाल- जिन्नात की हक़ीकत क्या हैं?
जवाब- बह आग से पैदा किये गऐ हैं उनमें से कुछ को यह त़ाकत दि गई हैं किजो शक्ल चाहें इख्तियार करले इन्सान की तरह अक्ल बाले होते रूह वाले और जिस्म वाले हैं उनमें पेदाइशा सिलसिला और नस्ल की बढ़ोतरी भी होती हैं खाते पीते मरते जीते भी हैं।
(फ़तावा हदीसीया सफ़्हा 46/बहारे शरीअत जिल्द 1 सफ़्हा 24)

सवाल- क्या उनमें मोमिन व काफिर दोनों होते हैं?
जवाब- हाँ दोनों होते हैं लेकिन काफिर की तादाद ज्यादा हैं?
(ख़ाज़िन जिल्द 6 सफ़्हा 140)

सवाल- क्या उनमें भी बहुत से मजहब के मानने वाले होते हैं?
जवाब- हाँ इन्सान की तरह इनमे भी होते हैं अलग अलग मजहब के और अलग अलग फिरके के मान ने वाले होते है।
(ख़ाज़िन जिल्द 6 सफ़्हा 140)

सवाल- क्या जिन्नात मैं भी कोई नबी हुआ?
जवाब- नहीं , नुबुव्वत सिर्फ इन्सान के लिये हैं।
(उम्दतुल क़ारी जिल्द 7 सफ़्हा 287)

सवाल- क्या इन्सान की तरह जिन्नो को भी सहाबी होने का शर्फ हासिल हैं?
जवाब- हाँ इन्सान की तरह जिन्नो को भी सहाबी होने का शर्फ हासिल हैं।
(तकमीलुल ईमान सफ़्हा 7)

सवाल- क्या जिन्नात को भी जन्नत नसीब होगी?
जवाब- इस सिलसिले मैं चन्द कौल हैं
(1)इमामे आजम फरमाते हैं कि नहीं, जन्नत सिर्फ इन्सानो के लिए है।
(शरह फिक़हे अकबर बहरूल उलूम सफ़्हा 67)
(2)सहिबैन फरमाते हैं की नसिब होगी।
(उम्दतुल क़ारी जिल्द 7 सफ़्हा 287)
(3)एक कोल यह हैं कि जिन्नात मैं से जो मोमिन हैं वह जन्नत के आस पास मकानों मैं रहेंगे जन्नत मैं सिर्फ सैर करने आया करेगें।
(उम्दतुल क़ारी जिल्द 7 सफ़्हा 287/अलमलफूज जिल्द 4 सफ़्हा 80)



1️⃣8️⃣NAMAZ KA BAYAN
‎ *بسم الله الرحمن الرحيم‎*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

सवाल- कौनसी नमाज़ किस नबी ने सबसे पहले पढ़ी?
*जवाब- सबसे पहले फज्र की नमाज़ हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने पढी,*
*जुहर की नमाज़ हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम ने पढ़ी,*
*असर की नमाज़ हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम ने पढ़ी,*
*मग़रिब की नमाज़ हज़रत याकूब अलैहिस्सलाम ने पढ़ी,*
*इशा की नमाज़ हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम ने पढ़ी।*
(सीरत हलबी जिल्द 1 सफ़्हा 458/फ़तावा रिज़विया जिल्द 2 सफ़्हा 208)

सवाल- वही नाज़िल होने के बाद हुज़ूरे अनवर सल्लल्लाहु-तआला-अलैह-वसल्लम पहली नमाज़ किस दिन पढ़ी?
*जवाब- पीर के दिन अव्वल हिस्से में पढ़ी।*
(ज़रक़ानी जिल्द 1 सफ़्हा 241/फ़तावा रिज़विया जिल्द 2 सफ़्हा 215)

सवाल- इस उम्मत में सबसे पहले नमाज़ किसने पढ़ी?
*जवाब- हज़रत ख़दीजतुल कुबरा रदियल्लाहु तआला अन्हो ने पढ़ी फिर अली मुश्किल कुशा रदियल्लाहु तआला अन ने।*
(ज़रक़ानी जिल्द 1 सफ़्हा 241)

सवाल- पाँचों वक़्त की नमाज़ फ़र्ज़ होने से पहले भी हुजूर अकरम सल्लल्लाहु-तआला-अलैह-वसल्लम और सहाबए किराम नमाज़ पढ़ते थे?
*जवाब- हाँ मेराज से पहले भी हुजूरे अनवर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम और सहाबए किराम नमाज़े पढ़ते थे रात की नमाज़ की फ़रज़ियत तो खुद सुरऐ मुज़म्मिल से साबित है और उसके सिवा वक़्तों में भी नमाज़े पढ़ना आया है आम अर्जी कि फ़र्ज़ हो या नफ़ल हदीस शरीफ में है कि नमाज़े पंजगाना की फ़रज़ियत से पहले मुसलमान चाश्त और असर पढ़ा करते थे।*
(ज़रक़ानी जिल्द 2 सफ़्हा 215/फ़तावा रिज़विया जिल्द 2 सफ़्हा 213)

सवाल- यह नमाज़ किस तरह अदा फ़रमाते थे क्या उनमें भी शराइत व अरकान का इन्तेजाम फ़रमाते थे?
*जवाब- हाँ उनमें भी शराइत व अरकान को जरूरी अदा करते थे अलबत्ता रूकूअ में इख्तेलाफ है।*
(फ़तावा रिज़विया जिल्द 2 सफ़्हा 215से216)

सवाल- क्या यह पाँच वक़्त की नमाज़ इखटठा किसी और नबी पर भी फ़र्ज़ हुई?
*जवाब- नहीं यह हुजूरे अनवर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम और आपकी उम्मत के साथ ख़ास है।*
(ताहतावी सफ़्हा 98)

सवाल- हुज़ूर अनवर सल्लल्लाहु तआला अलैह वसल्लम मक्का शरीफ में किस तरफ़ रूख़ करके नमाज़ पढ़ते थे?
*जवाब- मेराज से पहले अपने कश्फ़ से ख़ान-ए-काबा की तरफ़ रूख़ करके पढ़ते थे और मेराज के बाद जब तक मक्के में क्याम रहा बैतुल मुकद्दर की तरफ़ रूख करके इस तरह पढ़ते कि ख़ान-ए-काबा भी सामने होता।*
(तफ़सीर अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 433/ज़रक़ानी जिल्द 1 सफ़्हा 402)

सवाल- क्या नबी की इब्तेदा(पीछे)में नमाज़ पढ़ने से गुनाह कबीरा भी माफ़ हो जाते है?
*जवाब- नबी-ए-करीम सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम के पीछे नमाज़ पढ़ने से गुनाह कबीरा माफ़ हो जाता है।*
(अशिअअतुल लमआत जिल्द 1 सफ़्हा 279)

सवाल- वह कौनसी नमाज़ है कि आदमी नमाज़ से निकल जाऐ और बात चीत भी करे फिर भी नमाज़ बातिल नहीं होती है?
*जवाब- वह नमाज़ है कि नमाज़ी रसूल की पुकार का जवाब दे हाज़िर बारगाह होकर बात-चीत करे और हुक्म भी बजा लाऐ फिर भी नमाज़ बातिल नहीं होती।*
(मवाहिब लदुन्निया जिल्द 1 सफ़्हा 414/उम्दतुल कारी जिल्द 3 सफ़्हा 716)

सवाल- वह कौनसी नमाज़ है जिसमें इमाम के बाई तरफ़ खड़े होने में ज़्यादा फ़ज़ीलत है?
*जवाब- जो नमाज़ मस्जिदे नब्वी में अदा की जाऐ कि वहाँ इमाम के बाई तरफ खड़े होने में ज्यादा फ़ज़ीलत है कि आपका रौज़ऐ अक़दस बाई जानिब है।*
(अशिअअतुल लमआत जिल्द 1 सफ़्हा 476)

सवाल- क्या यह सही है कि अंम्बियाऐ किराम अपनी-अपनी कब्रों में नमाज़ पढ़ते है?
*जवाब- हाँ सभी अंम्बियाऐ किराम पढ़ते है।*
(मवाहिब लदुन्निया जिल्द 1 सफ़्हा 420)

सवाल- क्या वह नमाज़ अज़ान व इक़ामत के साथ होती है?
*जवाब- हाँ अज़ान व इक़ामत के साथ होती है यहाँ तक कि बाज सहाबए किराम ने नमाज़ के वक़्त रोजऐ अकदस से अज़ान व इक़ामत की आवाजें भी सुनी हैं।*
(मवाहिब लदुन्निया जिल्द 1 सफ़्हा 420)

सवाल- शबे मेराज बैतुल मुकद्दर में हुजूर अकरम सल्लल्लाहु-तआला-अलैह-वसल्लम ने अंम्बियाऐ किराम को कितनी रकात नमाज़ पढ़ाई?
*जवाब- दो रकात।*
(मुस्लिम शरीफ जिल्द 1 सफ़्हा 91)

सवाल- उसमें कितनी सफ़ें थी?
*जवाब- सात सफ़ें थीं तीन में रसूलाने इज़ाम और चार सफ़ों में बाक़ी अंम्बियाऐ किराम थे नबी-ए-करीम सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम की पीठ के क़रीब हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम खड़े थे और दाहनी तरफ हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम और बाई तरफ हज़रत इसहाक अलैहिस्सलाम फिर हजरत मूसा अलैहिस्सलाम फिर तमाम अंम्बियाऐ किराम व रसूलाने इज़ाम।*
(तफ़सीर जुमल जिल्द 4 सफ़्हा 88)

सवाल- दुनिया की वह कौनसी जगह है जहाँ नमाज़ पढ़ने का सवाब सबसे ज्यादा है?
*जवाब- मस्जिदे हराम है हदीस शरीफ में है कि मस्जिदे हराम में एक नमाज दूसरी मस्जिदों की लाख़ नमाजों से अफ़ज़ल है।*
(जज़बुल कुबूल सफ़्हा 19)

सवाल- क्या इसके इलावा भी कोई ऐसी जगह है जहाँ नमाज़ पढ़ना मस्जिदे हराम में नमाज़ पढ़ने से अफ़ज़ल हो?
*जवाब- हाँ अय्यामें मिना में मिना के अन्दर अरफे के दिन में अरफ़ात के अन्दर मुज़दलफे की रात में मुज़दलफे के अन्दर नमाज़ पढ़ना मस्जिदे हराम में नमाज़ पढ़ने से अफ़ज़ल है।*
(जज़बुल कुबूल सफ़्हा 19/फ़तावा हदीसिया सफ़्हा 79)

सवाल- क्या तहज्जुद की नमाज़ पहले सब पर फ़र्ज थी?
*जवाब- हाँ सब पर फ़र्ज़ थी बाद में उम्मत से उसकी फ़रज़ियत मन्सूख हो गई और नबी-ए-करीम सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम पर आख़िर उम्र तक फ़र्ज़ रही।*
(अशिअअतुल लमआत जिल्द 1 सफ़्हा 506)

सवाल- किसी नमाज़ में दो रकात किसी में तीन किसी में चार फ़र्ज़ होने कि क्या हिकमत है?
*जवाब- उसकी पूरी हिकमत तो अल्लाह तआला जाने अल्बत्ता बाज़ रिवायत में आता है कि हुजूरे अनवर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम ने मेराज की रात बाज़ फ़रिश्तों को देखा कि बाज़ दों पर(परों) बाज़ के तीन पर और बाज़ के चार पर वाले है तो अल्लाह तआला ने उनकी हैरत को नमाज़ की शक़्ल में ज़ाहिर फरमा दिया ताकि नमाज़ी भी उनके ज़रीऐ फ़रिश्तों की तरह हो जाऐ और बुलन्द दरजों की तरफ़ परवाज़ करके अल्लाह का कुर्ब हासिल करें।*
(रूहुल बयान जिल्द 1 सफ़्हा 24)

सवाल- क्या पहले नबियों की उम्मत पर भी जुमा फ़र्ज़ था?
*जवाब- नहीं जुमे की फ़रज़ियत इस उम्मत के साथ ख़ास है।*
(मवाहिब लदुन्निया जिल्द 1 सफ़्हा 428)

सवाल- क्या कुछ सहाबा किराम जुमा फ़र्ज होने से पहले भी जुमा पढ़ते थे?
*जवाब- हाँ जैसे हज़रत असअद बिन जरारह वगैरह अन्सार एहले मदीना रदियल्लाहु तआला अन्हुम का जुमा फ़र्ज होने से पहले जुमा पढ़ना साबित है।*
(फ़तावा रिज़विया जिल्द 4 सफ़्हा 39)

सवाल- किन लोगों के लिये जमाअत में ताख़ीर करना जाइज़ है?
*जवाब- इमामे मुअय्यन,आलिमे दीन,हाकिमे इस्लाम,पाबन्दे जमाअत,अगर बाज़ वक़्त उज़्र की की वज़ह से ताख़ीर हो जाऐ,सर बर आवुरदह शर पसन्द जिसका इन्तेज़ाम न करने से तक़लीफ पहुँच ने का खौफ़ हो।*
(फ़तावा रिज़विया जिल्द 2 सफ़्हा 433)

सवाल- सज्दा-ऐ-मशरूआ की कितनी किस्में है?
*जवाब- चार किस्में हैं,(1)सज्दा-ऐ-नमाज़,(2)सज्दा-ऐ-तिलावत,(3)सज्दा-ऐ-शुक्र,(4)सज्दा-ऐ-सहू।*
(अलमलफूज जिल्द 1 सफ़्हा 89)

सवाल- कौनसा सज्दा हराम और कौनसा सज्दा कुफ्र है?
*जवाब- सज्दा-ऐ-इबादत गैरे खुदा के लिये कुफ्र है और सज्दा-ऐ-ताज़ीमी हराम व गुनाहे कबीरा है।*
(फ़तावा रिज़विया जिल्द 12 सफ़्हा 292)



1️⃣9️⃣रूहों का बयान
‎ بسم الله الرحمن الرحيم‎
الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ

सवाल- रूह क्या चीज है?
*जवाब- उसकी पूरी हकीकत तो अल्लाह तआला को मालूम अलबत्ता किताबों मे रूह एक लतीफ जिस्म है जो कसीफ जिस्मों के साथ इस तरह मिली हुई है जैसे हरी लकड़ी में पानी।*
(शरहुस्सुदूर सफ़्हा 133)

सवाल- रूहें कब पैदा की गई?
*जवाब- मुखतलिफ रिवायते हैं जिस्म से दो हजार साल पहले,*
(फ़तावा रिज़विया जिल्द 9 पेज 65)
*चार हजार साल पहले,*
(ख़ाज़िन 1 पेज 277)
*पाँच हजार साल पहले।*
(शरह फिक़हे अकबर बहरूल उलूम सफ़्हा 25)

सवाल- क्या नफ़्स और रूह दोनो एक ही चीज है?
*जवाब- नही अस्ल मे तीनो चीजे अलहदा-अलहदा हैं।(1)नफ्स,(2)रूह,(3)क़ल्ब यानी दिल, रूह बादशाह की जगह है और नफ्स और दिल उसके दो वजीर हैं, नफ्स का मर्कज है और नाफ के नीचे है और कल्ब का मर्कज वह गोश्त का टुकड़ा है जो सिने के बाई तरफ है।*
(अलमलफूज जिल्द 3 सफ़्हा 63)

सवाल- माँ के पेट में नुतफा ठहरने के कितने दिन बाद उसमें रूह फूँकी जाती है?
*जवाब- चार महीने के बाद ही रूह फूँक दी जाती है।*
(सावी जिल्द 3 सफ़्हा 78)

सवाल- इन्सान के जिस्मो मे कितनी बार रूह दाखिल हुई और होगी?
*जवाब- 6 बार,(1)मीसाक के दिन में दाखिल हुई जब अल्लाह तआला ने हजरत आदम अलैहिस्सलाम की पुश्त मे उनकी जुरियत निकाली और सब से अपनी रूबूबियत का इकरार लिया,(2)जब हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने खानऐ काबा की तामीर की तो रब्बुल इज्जत ने हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम से फरमाया कि ऐ इब्राहिम(अलैहिस्सलाम)मकामे इब्राहिम में खड़े होकर आवाज दो कि तुम्हारे रब का घर तैयार हो गया है इस घर की जियारत और तवाफ के लिए चले आओ हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने आवाज दी तो अल्लाह तआला ने हजरत इब्राहिम की उस आवाज को सारे के लोगो तक पहुचा दिया। और जो माँ के पेटों और बाप की पुश्तो मे थे उनमें भी रूह डाल कर ये आवाज पहुँचाई गई,(3)जब हजरत मूसा अलैहिस्सलाम ने तौरेत शरीफ मे उम्मते मोहम्मदिया सल्ललाहो अलैह वसल्लम की फजीलत और कमाल का जिक्र पाया तो हजरत मूसा अलैहिस्सलाम ने अल्लाह तआला से ख़्वाहिश जाहिर की तो कि मुझे उम्मते मोहम्मदिया सल्ललाहो अलैह वसल्लम का दीदार और उनकी आवाज सुनवाई जाऐ तो अल्लाह तआला ने उम्मते मोहम्मदिया की आवाज को उनके बापो की पुस्त में रूह डाल कर सुनवाया,(4) माँ के पेट में दाखिल होती है फिर मौत के वक़्त निकाली जाती है,(5)कब्र में मुनकर नकीर के सवालात जवाबात के वक़्त दाखिल होती है,(6)मैदाने महशर मे जमा करने के लिए हजरत इसराफील अलैहिस्सलाम के सूर फूक ने के बाद दाखिल की जाऐगी।*
(फ़तावा हदीसीया सफ़्हा 89/ तफसीर अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 407/ तफसीर नईमी पारा 9 सफ़्हा 386)

सवाल- क्या हालते नींद में रूह निकाली जाती है?
*जवाब- इस बारे मे मुखतलिफ कौल हैं,(1)हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास से मरवी है कि इन्सान में नफ्स और रूह दोनों है और उनका ताल्लुक आपस मे ऐसा है जैसे आफताब और सूरज का अपनी किरनो से नींद मे अल्लाह तआला पाक नफ्स को कब्ज कर लेता है और रूह को छोड़ देता है फिर जब अल्लाह तआला उसकी मौत का इरादा करता है तो नफ्स के साथ रूह को भी कब्ज फरमा लेता है,(2)बाज हजरात फरमाते है कि हर इन्सान मे दो रूहें होती है एक रूह यक्जा यानी वह कि जब वह जिस्म मे होती है तो आदतन इन्सान बेदार रहता है जब वह निकल जाती है तो इन्सान सो जाता है और ख्वाब देखने लगता है दूसरी रूह हयात कि जब वह जिस्म मे होती है तो इन्सान जिन्दा रहता है जब वह निकाल ली जाती है तो इन्सान मर जाता है बस नींद मे रूह यक्जा निकाल ली जाती है और मौत के वक़्त दोनो निकाल ली जाती है।*
(शरहुस्सुदूर सफ़्हा 133/सावी जिल्द 2 सफ़्हा 18)

सवाल- क्या सब की रूह हजरत इजराईल अलैहिस्सलाम कब्ज फरमाते है?
*जवाब- हक़ीकते हाल तो खुदा को मालूम अलबत्ता कुछ लोगों के बारे में है कि उनकी रूह खुद रब तआला कब्ज फरमाया है।*
(शरहुस्सुदूर सफ़्हा 21)

सवाल- वह कौन लोग है जिनकी रुह खुद अल्लाह तआला अपने दस्ते कुदरत से कब्ज फरमाता है?
*जवाब- शुहदाऐ बहर है जिनकी रुह खुद अल्लाह तआला अपने दस्ते कुदरत से कब्ज फरमाता है।*
(शरहुस्सुदूर सफ़्हा 21/कुनूजुलहकाइक जिल्द 1 सफ़्हा 18)

सवाल- क्या इनके अलावा भी कोई शख्स है जिसकी रूह खुद अल्लाह तआला ने कब्ज फरमाई?
*जवाब- हजरत फातिमा जोहरा रदियल्लाहु अनहा है कि खुद अल्लाह तआला ने उनकी रूह निकाली उनकी तरफ कोई फ़रिश्ता नही भेजा गया ।*
(तफसीर नईमी जिल्द 7 सफ़्हा 537)

सवाल- मरने के बाद रूहे कहा रहती है?
*जवाब-मुसलमानो मे कुछ की रूह कब्र पर रहती है कुछ की चाहे जम-जम मे कुछ की रूह आसमान व ज़मीन के बीच लटकी रहती है और कुछ की आला इल्लिय्यीत में और कुछ की सब्ज परिन्दो की शक़्ल मे अर्श के नीचे नूर की किन्दीलों में और कुछ की सब्ज परिन्दो की शक़्ल में जन्नत मे सैर करती है और कुछ की रूहे जन्नत में रहती है जैसे नबियों और शहीदो की रूह और मोमेनीन की रूह जन्नत मे हजरत इब्राहिम और हजरत सारा के साथरानी में है और काफिरो मे कुछ की रूह वादिये(बरहूत)के कुऐ में और कुछ की जमीन में अव्वल,दोम सातवीं तक और कुछ की सिज्जीन में और कुछ की हजर मौत मे।*
(शरहुस्सुदूर सफ़्हा 98से101/फ़तावा रिज़विया जिल्द 4 सफ़्हा 125)




2️⃣0️⃣नमाज़-ऐ-जऩाजा का बयान
بسم الله الرحمن الرحيم‎
الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ

सवाल- नमाजे जऩाजा की इब्तिदा कब से हुई?
*जवाब- हजरत आदम अलैहिस्सलाम के जमाने से है।*
(फ़तावा रिज़विया जिल्द 2 सफ़्हा 467)

सवाल- हजरत आदम अलैहिस्सलाम की नमाज़-ए-जऩाजा किसने पढ़ी?
*जवाब- हजरत जिब्राईल अलैहिस्सलाम।*
(तफसीर अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 172)

सवाल- इस्लाम में सबसे पहले नमाज़-ए-जऩाजा किसकी पढ़ी गई?
*जवाब- हजरत असद बिन जुरारह की खुद हुजूरे अनवर सल्ललाहु अलैहे वसल्लम ने नमाज़-ए-जऩाजा पढ़ी।*
(फ़तावा रिज़विया जिल्द 2 सफ़्हा 468)

सवाल- नमाज़-ए-जऩाजा में किस सैफ में खड़ा होना ज्यादा अफ़ज़ल है?
*जवाब- आखिरी सफ में खड़ा होना ज्यादा अफ़ज़ल है।*
(दुर्र मुख़्तार व रदृदूल मोहताज जिल्द 1 सफ़्हा 611)

सवाल- इस्लाम में नमाज़-ए-जऩाजा की मशरूइयत कब और कहाँ हुई?
*जवाब- मदीना ए मुनव्वरा में हिजरत के तकरीबन नवें महीने में हुई।*
(फ़तावा रिज़विया जिल्द 2 सफहा 468)

सवाल- वह कौन लोग है जिनकी नमाज़-ए-जऩाजा नहीं पढ़ी जाती है?
*जवाब- (1)बाग़ी जो इमामे बरहक़ पर ना हक़ खुरूज का(बग़वत)और उसी बग़वत में मारा जाऐ,*
*(2)डाकु कि डाका ज़नी में मारा जाऐ,*
*(3)जो लौग नाहक पासदारी से लड़ें,*
*(4)जो शख्स कई आदमियों को गला घोंट कर मार डाले,*
*(5)जो शख्स शहर में रात को हथियार लेकर लूट मार करें और इसी हालत में मर जाऐ,*
*(6)जो अपने माँ बाप को मार डाले,*
*(7)जो किसी का सामान छीन रहा था और उसी हालत मे मर गया।*
(आलमगीरी जिल्द 1 सफ़्हा 83/दुर्र मुख्तार व रदृदूल मोहताज जिल्द 1 सफ़्हा 609)

सवाल- हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम की नमाज़-ए-जऩाजा सबसे पहले किसने पढ़ी?
*जवाब- हजरत जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने फिर हजरत इसराफील अलैहिस्सलाम ने फिर हजरत मीकाईल अलैहिस्सलाम ने फिर हजरत इजराईल अलैहिस्सलाम ने फरिश्तो के लश्कर के साथ पढ़ी उसके बाद सहाबऐ किराम और दूसरे लोगों ने पढ़ी।*
(ज़रक़ानी जिल्द 8 सफ़्हा 270/खसाइसुल कुबर जिल्द 2 सफ़्हा 73)

सवाल- क्या आपकी नमाज़-ए-जऩाजा में कोई इमाम न था सबने अलहदा-अलहदा पढ़ी?
*जवाब- इस बारे मे उलाम मुखतलिफ है कुछ के नजदीक यह नमाज मारूफ नहीं हुई बल्कि लोग गिरोह दर गिरो हाजिर आते और आप पर सलातो सलाम अर्ज़ करते और बहुत से उलाम यही नमाज मारूफ मानते है हजरत सिद्दीके अकबर रदियल्लाहु अन्हु फितनों को दूर करते और उम्मत के इन्तेजाम में मशगूल जब तक उनके दस्ते हक परस्त पर बैअत न हुई लोग जमाअत दर जमाअत आते और जनाजऐ अकदस पर नमाज पढते जाते जब बैअत हो गई और हजरत सिद्दीके अकबर रदियल्लाहु अन्हु वली-ए-शरई हो गऐ उन्होंने जनाजऐ मुकद्दस पर नमाज पढ़ ली उसके बाद फिर किसी ने न पढ़ी कि बाद नमाजे वली फिर नमाज लौटाने का इख्तियार नहीं।*
(फ़तावा रिज़विया जिल्द 4 सफ़्हा 54)



2️⃣1️⃣हज़ का बयान
بسم الله الرحمن الرحيم‎
*बिस्मिल्लाहहिर्रहमानिर्रिहीम*

الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ
*अस्सालातु वसल्लामु अलैहका या रसूलउल्लाह सल्ललाहो अलैह वसल्लम*

सवाल- हज़ किस सन् में फ़र्ज़ हुआ?
*जवाब- सन्9 हिज़री के आख़िर में फ़र्ज़ हुआ।*
(दुर्रे मुख़्तार व रददुल मोहताज़ ज़िल्द2 सफ़्हा143)

सवाल- ‎नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने किस सन् में हज़ अदा फ़रमाया?
*जवाब- सन्10 हिज़री में अदा फ़रमाया।*
(दुर्रे मुख़्तार व रददुल मोहताज़ ज़िल्द2 सफ़्हा143)

सवाल- नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने कितनी बार हज़ अदा फ़रमाया?
*जवाब- हिज़रत से पहले दो या तीन हज़ अदा फरमाऐ और हिज़रत के बाद मदीना मुनव्वरा से सिर्फ एक हज़ अदा फ़रमाया बो हज़्ज़तुल वदाअ के नाम से मशहूर है हज़ के इलावा आपने चार उमरे भी अदा किये।*
(इरशादुस्सारा सफ़्हा11)

सवाल- क्या हज़ की फ़ज़ीलत इसी उम्मत के सात खास है?
*जवाब- हाँ इसी उम्मत के साथ ख़ास है किसी और नबी की उम्मत पर हज़ फ़र्ज़ नहीं हुआ।*
(सीरत हलबी जिल्द1 सफ़्हा190/शरह अल्मसलकुल मुतकस्सीत सफ़्हा3)

सवाल- क्या पिछले अंबिया किराम को भी हज़ करना फ़र्ज़ था?
*जवाब- मुल्ला अली क़ारी की किताब"शरह अल्मसलकुल मुतकस्सीत"और अल्लामा हलबी की किताब सीरत हलबी की जाहिर इबारत से पता चलता है कि आम्बिया किराम पर भी हज़ फ़र्ज़ था।*
(शरह अल्मसलकुल मुतकस्सीत सफ़्हा3/सीरत हलबी जिल्द1 सफ़्हा190)
*लेकिन आला हजरत फाज़िले बरेलवी फरमाते हैं कि फरज़ियत का हाल तो अल्लाह तआला बेहतर जाने अलबत्ता आम्बिया किराम हज़ करते रहे।*
(अल्मलफुज़ जिल्द1 सफ़्हा74)

सवाल- क्या हुज़ूर नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम पर भी हज़ करना फ़र्ज़ था?
*जवाब- हक़ीक़ते हाल तो खुदा को मालूम अलबत्ता अल्लामा शामी और मुल्ला अली क़ारी की जाहरी इबारत से मालूम होता है कि आप पर भी हज़ की फरज़ियत नाज़िल हुई।*
(रददुल मोहताज़ जिल्द2 सफ़्हा143/शरह अल्मसलकुल मुतकस्सीत सफ़्हा3)

सवाल- किसी को एक हज़ या चन्द हज़ मयस्सर होते हैं और किसी को बिलकुल नहीं इसकी वज़ह क्या है?
*जवाब- हक़ीक़त हाल का इल्म तो अल्लाह तआला को है अलबत्ता रिवायत में है कि जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने खान ए काबा की फरमाई तो रब्बुल इज़्ज़त ने हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम से फ़रमाया की ऐ इब्राहीम आवाज़ दो की तुम्हारे रब का घर तैयार हो गया है इस घर की ज़ियारत व तवाफ़ के लिये चले आओ हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की आवाज़ को सारे जहान के लोगों तक और जो नस्लें क़यामत तक माँ के पेटों में और बाप की रीड़ की हड्डियों में थीं उनमें भी रूह डाल कर आवाज़ पहुँचाई गई इस आवाज़ पर जिसने जितनी बार लब्बैक कहा उसको उतने ही हज़ मयस्सर हुऐ किसी ने एक मर्तबा किसी ने दो बार किसी ने तीन बार कहा इसी तरह और ज्यादा और जिसने बिलकुल नहीं कहा उसको कोई हज़ मयस्सर नहीं हुआ।*
(तफ़्सीर अज़ीज़ी सूरए बक़र सफ़्हा407/उम्दातुल क़ारी ज़िल्द4 सफ़्हा485)

सवाल- हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की आवाज़ पर सबसे पहले लबबेक किन लोगों ने कहा?
*जवाब- एहले यमन ने कहा।*
(सावी जिल्द3 सफ़्हा83)

सवाल- हज़ वाज़िब होने के लिये कितनी शर्त हैं?
*जवाब- आठ शर्ते हैं(1)इस्लाम(2)दारुल हरब में हो तो यह भी जरुरी है कि जानता हो कि हज़ इस्लाम में फ़राइज़ में से है(3)बालिग़ होना(4)अक्लमंद होना(5)आज़ाद होना(6)तन्दरुस्त हो कि हज़ को जा सके अअज़ा सलामत हों अँख्यारा हो अपाहिज और फालिज वाले जिसके पाँव कटे हों और बूढ़े पर कि सवारी पर खुद न बेठ सकता हो हज़ फ़र्ज़ नहीं(7)सफ़र ख़र्च का मालिक हो(8)वक़्त यानी हज़ के महीने में तमाम शर्ते पाई जाए।*
(बहारे शरीअत जिल्द6 सफ़्हा8से13)

सवाल- हज़ में कितनी चीजें फ़र्ज़ हैं?
*जवाब- सात चीज़े फ़र्ज़ हैं(1)एहराम बाँधना(2)वुक़ूफे अरफ़ा यानी जिज़हिज़्ज़ा की नवीं तारीख़ के सूरज ढलने से दसवीं की सुबह सादिक़ से पहले किसी वक़्त अरफ़ात में ठहरना(3)तवाफ़े ज़ियारत का ज्यादा हिस्सा यानी चार फेरे(4)नियत(5)तरतीब यानी पहले एहराम बाँधना फिर वुक़ूफ़ फिर तवाफ़(6)हर फ़र्ज़ का अपने वक़्त पर होना(7)मकान यानी वुक़ूफ़(ठहरना)ज़मीने आरफात में होना और तवाफ़ का मस्जिदें हराम से होना।*
(बहारे शरीअत6 सफ़्हा15)
+_____📚📚____________+
*हदीसे पाक में है कि इल्म फैलाने वाले के बराबर कोई आदमी सदक़ा नहीं कर सकता।*
(क़ुर्बे मुस्तफा,सफह 100)



2️⃣2️⃣अंबियाऐ किराम की उम्र और उनके मज़ारों का बयान
‎ بسم الله الرحمن الرحيم‎
الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول الله ﷺ

सवाल- हजरत आदम अलैहिस्सलाम की उम्र कितनी थी?
जवाब- एक हजार साल।
(ज़रक़ानी जिल्द 1 सफ़्हा 64/तबक़ात इब्ने सअद जिल्द 1 सफ़्हा 10)

सवाल- आपका मज़ारे पाक कहाँ है?
जवाब- इसमें इख्तेलाफ है,
(1) मिना में मस्जिदे खैफ से मिला हुआ,
(तफसीर अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 172)
(2) अबु कुबैस के पहाड़ में सरान्दीप में
(ज़रक़ानी जिल्द 1 सफ़्हा 65)
(3) या फिर बैतूल मुकद्दस में।
(तबक़ात इब्ने सअद जिल्द 1 सफ़्हा 24)

सवाल- हजरत नूह अलैहिस्सलाम की उम्र कितनी थी?
जवाब- 1600 एक हजार छः सौ बरस।
(उम्दतुल क़ारी जिल्द 7 सफ़्हा 320/अलमलफूज जिल्द 1 सफ़्हा 74)

सवाल- आपका मज़ार शरीफ कहाँ है?
जवाब- मक्के शरीफ में या मुल्के शाम के मकान बकरक में।
(रूहुल बयान जिल्द 2 सफ़्हा 968)

सवाल- हजरत शीश अलैहिस्सलाम की उम्र कितनी थी?
जवाब- 912 साल।
(ज़रक़ानी जिल्द 1 सफ़्हा 65)

सवाल- आपका मज़ार शरीफ कहाँ है?
जवाब- (1)जबले अबी कुबैस में,
(ज़रक़ानी जिल्द 1 सफ़्हा 65)
(2)कुछ लोग हिन्दुस्तान के शहर अयोध्या में बताते हैं।
(तफसीर नईमी पारा 3 सफ़्हा 664)

सवाल- हजरत इदरीस अलैहिस्सलाम किस उम्र में आसमान पर उठाऐ गऐ?
जवाब- 450 साल की उम्र में।
(सावी जिल्द 3 सफ़्हा 73)

सवाल- हजरत हूद अलैहिस्सलाम की उम्र कितनी थी?
जवाब- 464 साल।
(सावी जिल्द 2 सफ़्हा 72)

सवाल- आपका मज़ार शरीफ कहाँ है?
जवाब- हज़र मौत में या मकामें इब्राहिम और ज़म-ज़म शरीफ के दरमीयान।
(ख़ाज़िन जिल्द 2 सफ़्हा 207)

सवाल- हजरत सालेह अलैहिस्सलाम की उम्र कितनी थी?
जवाब- (1)58या,
(ख़ाज़िन जिल्द 2 सफ़्हा 213)
(2)280 साल।
(सावी जिल्द 2 सफ़्हा 73)

सवाल- आपका मज़ार शरीफ कहाँ है?
जवाब- मकामें इब्राहिम और ज़म-ज़म शरीफ के दरमीयान।
(ख़ाज़िन जिल्द 2 सफ़्हा 207)

सवाल- हजरे असवद(सन्गे असवद)और ज़म-ज़म शरीफ के बीच कितने नबियों के मज़ार हैं?
जवाब- 70 नबीयों के मज़ार शरीफ हैं।
(फ़तावा रिज़विया जिल्द 2 सफ़्हा 453)

सवाल- हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम की उम्र कितनी थी?
जवाब- 175साल या 200साल।
(सावी जिल्द 2 सफ़्हा 27/उम्दतुल क़ारी जिल्द 7 सफ़्हा 345)

सवाल- आपका मज़ार कहा है?
जवाब- हिबरून में जो मुल्के फिलिस्तीन में है।
(उम्दतुल क़ारी जिल्द 7 सफ़्हा 345)

सवाल- हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम की उम्र कितनी थी?
जवाब- 130 साल।
(सावी जिल्द 2 सफ़्हा 27)

सवाल- आपका मज़ारे पाक कहाँ है?
जवाब- सर ज़मीने मक्का में मीजाबे रहमत के नीचे।
(फ़तावा रिज़विया जिल्द 2 सफ़्हा 453)

सवाल- हजरत इसहाक अलैहिस्सलाम की उम्र कितनी थी?
जवाब- 180 साल।
(सावी जिल्द 2 सफ़्हा 27)

सवाल- आपका मज़ार शरीफ कहाँ है?
जवाब- हिबरून में अपने वालिद के करीब।
(उम्दतुल क़ारी जिल्द 7 सफ़्हा 373)

सवाल- हजरत याकूब अलैहिस्सलाम की उम्र कितनी थी?
जवाब- 145 साल।
(ख़जाइन सफ़्हा 358)

सवाल- आपका मज़ार शरीफ कहाँ है?
जवाब- अपने वालिद के करीब।
(अलबिदाया वन्निहाया जिल्द 1 सफ़्हा 175)

सवाल- हजरत यूसुफ अलैहिस्सलाम की उम्र कितनी थी?
जवाब- 120 साल।
(सावी जिल्द 2 सफ़्हा 27)

सवाल- आपका मज़ार शरीफ कहाँ है?
जवाब- हजरत याकूब अलैहिस्सलाम के पहलू में।
(ख़जाइन सफ़्हा 358)

सवाल- पहले आपको कहाँ दफ्न किया गया था?
जवाब- आपके इन्तिकाल के बाद बनी इस्राईल कबीलों में इख्तेलाफ पैदा हो गया था हर क़बीला चाहता था कि उसके मुहल्ले में में दफ्न हो ताकि आप से फैज मिलता रहे आखिर इस इख्तेलाफ का हल यह निकाला गया कि दरयाऐ नील में दफनाऐ जाऐं ताकि उसके पानी से सब फैज पाते रहें उन लोगों ने सगे मर-मर के सन्दूक में रखकर दरयाऐ नील में दफ्न कर दिया फिर हजरत मूसा अलैहिस्सलाम ने तकरीबन चार सौ साल बाद वहाँ से उठाकर आपके वालिद के बग़ल में दफ्न किया।
(ख़जाइन सफ़्हा 358)

सवाल- हजरत अय्यूब अलैहिस्सलाम की उम्र कितनी थी?
जवाब- 63 साल या 93 साल थी।
(सावी जिल्द 2 सफ़्हा 27/(2)/उम्दतुल क़ारी जिल्द 2 सफ़्हा 51)

सवाल- आपका मज़ार शरीफ कहाँ है?
जवाब- मुल्के शाम के एक गाँव में है।
(उम्दतुल क़ारी जिल्द 2 सफ़्हा 51)

सवाल- हजरत शुऐब अलैहिस्सलाम की उम्र कितनी थी?
जवाब- 140 साल।
(उम्दतुल क़ारी जिल्द 7 सफ़्हा 415)

सवाल- आपका मज़ार शरीफ कहाँ है?
जवाब- मक्का मुकर्रमा में।
(उम्दतुल क़ारी 7 सफ़्हा 415)

सवाल- हजरत मूसा अलैहिस्सलाम की उम्र कितनी थी?
जवाब- 120 साल।
(सावी जिल्द 1 सफ़्हा 29)

सवाल- आपका मज़ार शरीफ कहाँ है?
जवाब- मैदाने तीह में जो मुल्के फिलिस्तीन में है।
(उम्दतुल क़ारी जिल्द 4 सफ़्हा 166)

सवाल- हजरत हारून अलैहिस्सलाम की उम्र कितनी थी?
जवाब- तकरीबन 124 साल थी।
(तफसीर जुमल जिल्द 3 सफ़्हा 67)

सवाल- आपका मज़ारे पाक कहाँ है?
जवाब- मैदाने तीह में।
(ज़रक़ानी जिल्द 2 सफ़्हा 19)
(2) उहद पहाड़ में।
(जज़बुल कुबूल सफ़्हा 55)

सवाल- हजरत यूशअ अलैहिस्सलाम की उम्र कितनी थी?
जवाब- एक सो छब्बीस साल।
(सावी जिल्द 1 सफ़्हा 242)

सवाल- आपका मज़ार शरीफ कहाँ है?
जवाब- जबले इब्राहिम (इब्राहिम पहाड़) में।
(सावी जिल्द 1 सफ़्हा 242)

सवाल- हजरत दाऊद अलैहिस्सलाम की उम्र कितनी थी?
जवाब- 100 साल।
(सावी जिल्द 2 सफ़्हा 267)

सवाल- आपका मज़ार शरीफ कहाँ है?
जवाब- बैतूल मुकद्दस में।
(किसासुल अंबिया सफ़्हा 267)

सवाल- हजरत सुलैमान अलैहिस्सलाम की उम्र कितनी थी?
जवाब- 53 साल।
(ख़ाज़िन व मआलिम जिल्द 5 सफ़्हा 235)

सवाल- हजरत यूनुस अलैहिस्सलाम का मज़ार शरीफ कहाँ है?
जवाब- मकामें नैनवा में।
(आईनए तारीख सफ़्हा 123)

सवाल- हजरत उज़ैर अलैहिस्सलाम का मज़ारे पाक कहाँ है?
जवाब- दमिश्क में।
(आईनए तारीख सफ़्हा 136)

सवाल- हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो तआला अलैह वसल्लम का मज़ार कहाँ है?
जवाब- मदिने में गुम्बदे खज़रा के नीचे।
(आम कियाबे)



2️⃣3️⃣अज़ाबे क़ब्र का बयान
بسم الله الرحمن الرحيم‎
الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ

सवाल- क़ब्र का अज़ाब किन लोगों के लिये हैं?
जवाब- तमाम काफिरों और कुछ गुनहगार मुसलमानों के लिये हैं।
(शरहुस्सुदूर पेज 76)

सवाल- क्या फिर मोमिन गुनहगार मुसलमान से अज़ाब क़ब्र उठा लिया जाता हैं?
जवाब- बाज़ से नहीं उठाया जाता हैं और बाज़ से उनके गुनाहों के मुताबिक अज़ाब होने के बाद उठा लिया जाता हैं और बाज़ से मुक़र्ररा अज़ाब से पहले ही किसी की दुआ या ईसाले सबाब या सदक़ऐ जारिया वग़ैरा की वजह से उठा लिया जाता हैं और एक रिवायत मैं यह भी हैं की मोमिन गुनहगार पर अज़ाबे क़र्ब जुमे की रात आने तक रहता हैं उसके आंते ही उठा लिया जाता हैं?
(शरहुस्सुदूर सफ़्हा 76/बहारे शरीअत जिल्द 1 सफ़्हा 27)

सवाल- वह कौनसा दिन या कौनसा महीना हैं जिसमें मरने के बाद गुनहगार बन्दा भी क़ब्र के अज़ाब से महफूज़ रहता हैं?
जवाब- जुमा या जुमे की रात या रमज़ान शरीफ़ का महीना हैं।
(शरहुस्सुदूर सफ़्हा 62/फ़तावा रिज़विया जिल्द 4 सफ़्हा 124)

सवाल- तो क्या फिर मोमिन गुनहगार पर जुमा या जुमे की रात या रमज़ान शरीफ़ के महीने के गुज़रने के बाद अज़ाबे क़र्ब लौट जाता हैं?
जवाब- नहीं लौटता और न क़यामत तक लौटेगा इन्शाअल्लाह तआला अल्लाह की रहमत से यही यहीं उम्मीद हैं
(शरह इश्बाह वन्नजाइर सफ़्हा 565/शरहुस्सुदूर सफ़्हा 76)

सवाल- क्या किसी दिन काफिर से भी अज़ाबे क़ब्र उठा लिया जाता हैं?
जवाब- हाँ जुमा और जुमे की रात और रमज़ान शरीफ़ के महीने मैं उससे अज़ाबे क़ब्र उठा लिया जाता हैं यह सदका है नबी सल्ललाहो अलैह वसल्लम का फिर जुमा व जुमे रात या रमज़ान शरीफ़ के महीने के गुज़रने के बाद दोबारा अज़ाब उस पर लौट जाता हैं।
(शरह इश्बाह वन्न ज़ाइर सफ़्हा 564/शरहुस्सुदूर सफ़्हा 76)


2️⃣4️⃣रोज़े का बयान
‎ بسم الله الرحمن الرحيم‎
الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ

सवाल- रमज़ान शरीफ का रोज़ा किस सन् मे फ़र्ज़ हुआ?
जवाब- दस शव्वाल सन् 2 हिजरी में फ़र्ज़ हुआ।
(ख़ज़ाइन सफ़्हा 42)

सवाल - इस उम्मत पर सबसे पहले कौनसा रोज़ा फ़र्ज़ हुआ?
जवाब- यौमे आशूरा का रोज़ा फ़र्ज़ हुआ। फिर उसकी फ़रज़ियत अय्यामे बैज़ के रोज़े की फ़रज़ियत से मन्सूख़ हो गई। फिर जब रमज़ान का रोज़ा फ़र्ज़ हुआ तो उसकी फ़रज़ियत ने अय्यामे बैज़ के रोज़े की फ़रज़ियत को खत्म कर दिया।
(तफसीर अहमदी सफ़्हा 57)

सवाल- क्या पिछले अम्बियाए किराम भी रोज़े रखते थे?
जवाब- हाँ हर नबी का रोज़ा मुख़्तलिफ दिनों मै था।
(1)हजरत आदम अलैहिस्सलाम अय्यामे बैज़ का रोज़ा और हजरत मूसा अलैहिस्सलाम आशूरे का रोज़ा रखते थे । हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम हमेशा रोज़ा रखते थे।
(तफ़सीर अहमदी सफ़्हा 57/ख़ाज़िन जिल्द 4 सफ़्हा 230)
(2)हज़रत नूह अलैहिस्सलाम यौमे फ़ित्र ( ईद का दिन ) और यौमे अज़हा ( कुर्बानी के दिन रोज़ा रखते और एक दिन इफ़्तार करते थे ।
और हजरत इब्राहीम अलैहिस्सालाम हर महीने मे तीन दिन रोजा रखते थे
(अलबिदाया वन्निहाया जिल्द 1 सफ़्हा 118)
(3)हजरत जुलकिफ़्ल अलैहिस्सालाम तमाम दिन रोजा और पूरी रात इबादत करते थे।
(जुमल जिल्द 3 सफ़्हा 19)
(4)हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम हर महीने के शुरू मे तीन दीन और बीच के तीन दीन और आख़िर में तीन दीन रोज़ा रखते थे। हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम हमेशा रोज़ा दार रहते थे।
(अलबिदाया वन्निहाया 2 सफ़्हा 19)

सवाल- रोज़े की कितनी किसमें है?
जवाब- रोज़े की आठ किसमें है।
(1)फ़र्ज़े मुअय्यन जैसे रमज़ान के अदा रोज़े,
(2)फ़र्ज़े गैर मुअय्यन जैसे रमज़ान के कज़ा रोज़े,
(3)वाजिब मुअय्यन जैसे नज़रे मुअय्यन के रोज़े,
(4)वाजिब गैर मुअय्यन जैसे नज़रे मुतलक के रोज़े,
(5)नफ़ले मसनून जैसे नवीं तारीख़ के साथ आशूरे का रोज़ा,
(6)नफ़्ले मुस्तहब जैसे बैज़ ओर अरफे के दिन का रोज़ा,
(7)मकरूह तन्ज़ीही जैसे हफ़्ते के दिन का रोज़ा या सौ मे दहर या सौ मे विसाल के रोज़ा रखकर इफ़्तार न करे फिर दूसरे दिन रखे
(8)मकरूह तहरीमी जैसे ईद और अय्यामे तशरीक़ के रोज़े।
(दुर्रे मुख़्तार व रददूल मोहतार जिल्द 2 सफ़्हा 85,86)

सवाल- तमाम नफ़ली रोज़ों में कौनसा रोज़ा सबसे बेहतर है?
जवाब- अरफ़े के दिन का रोज़ा।
(फ़तावा रिज़विया 8 पेज 442)



2️⃣5️⃣बिस्मिल्लाह शरीफ़ का बयान
‎ بسم الله الرحمن الرحيم‎
الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ

सवाल- बिस्मिल्लाह पढ़ना कब फ़र्ज है?
जवाब- जानवर ज़िबह करते वक़्त बिस्मिल्लाह पढ़ना फ़र्ज है अगरचे लफ्ज़"अर्रहमानिर्रहीम" पढ़ना फ़र्ज़ नहीं।
(ताहतावी सफ़्हा 2)

सवाल- बिस्मिल्लाह पढ़ना कब सुन्नत है?
जवाब- वुजु के शुरू में और नमाज़ के बाहर किसी सूरत की तिलावत शुरू करते वक़्त और हर अहम काम करते वक़्त जैसे खाने-पीने और बीवी से हम बिस्तरी करते वक़्त शुरू में बिस्मिल्लाह पढ़ना सुन्नत है इसी तरह नमाज़ की हर रकअत के शुरू में बिस्मिल्लाह पढ़ना सुन्नत है।
(ताहतावी सफ़्हा 3/बहारे शरीअत जिल्द 3 सफ़्हा 101)

सवाल- बिस्मिल्लाह पढ़ना कब मुस्तहब है?
जवाब- नमाज़ के बाहर दरम्यान सूरत से तिलावत की इब्तिदा के वक़्त बिस्मिल्लाह पढ़ना मुस्तहब है।
(बहारे शरीअत जिल्द 3 सफ़्हा 101)

सवाल- बिस्मिल्लाह पढ़ना कब कुफ्र है?
जवाब- शराब पीने,ज़िना करने,चोरी करने,जुआ खेलने,के वक़्त बिस्मिल्लाह पढ़ना कुफ्र है जब कि पढ़ने को हलाल समझे।
(आलमगीरी जिल्द 2 सफ़्हा 286/शरह फ़िक़हे अकबर लिअली क़ारी सफ़्हा 169)

सवाल- बिस्मिल्लाह पढ़ना कब हराम है?
जवाब- हराम कतई को करते और चोरी वगैरह का नाजायज़ माल इस्तेमाल करने के वक़्त बिस्मिल्लाह पढ़ना हराम है इसी तरह ज़िना करते वक़्त और शराब पीने और हैज़ वाली औरत से हम बिस्तरी करते वक़्त बिस्मिल्लाह पढ़ना हराम है जब कि पढ़ने को हलाल न समझे वरना काफ़िर हो जाऐगा।
(ताहतावी सफ़्हा 3)

सवाल- बिस्मिल्लाह पढ़ना कब मकरूह है?
जवाब- सूरऐ बरात के शुरू में बिस्मिल्लाह पढ़ना मकरूह है जबकि सूरत अनफ़ाल से मिलाकर पढ़े इसी तरह हुक्का बीड़ी सिग्रेट पीने और लहसुन व प्याज जैसी चीज़े खाने के वक़्त नापाकी की जगहों में और शर्म गाह खोलते वक़्त बिस्मिल्लाह पढ़ना मकरूह है।
(ताहतावी सफ़्हा 3 रददुल मुहतार जिल्द 1 सफ़्हा 7)

सवाल- बिस्मिल्लाह पढ़ना कब जाइज़ व मुस्तहसन है?
जवाब- उठते बैठते और नमाज़ में सूरऐ फ़ातिहा और सूरत के दरमियान बिस्मिल्लाह पढ़ना जाइज़ व मुस्तहसन है।
(ताहतावी सफ़्हा 3)

सवाल- बिस्मिल्लाह शरीफ़ सबसे पहले किस नबी पर नाज़िल हुई?
जवाब- हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम पर नाज़िल हुई।
(कन्जुल उम्माल जिल्द 1 सफ़्हा 493)

सवाल- क्या हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम के इलावा और किसी नबी पर नाज़िल नहीं हुई?
जवाब- हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम के इलावा किसी नबी पर नाज़िल नहीं हुई फिर बाद में हमारे आका हुजूरे अनवर सल्लल्लाहु तआला अलैह वसल्लम पर नाज़िल हुई।
(कन्जुल उम्माल जिल्द 1 सफ़्हा 556)

सवाल- इस्लाम में " बिस्मिल्लाहहिर्रहमानिर्रिहीम" लिखने का दस्तूर कब से शुरू हुआ?
जवाब- इस्लाम के शुरू ज़माने में हमारे आका हुजूरे अनवर सल्लल्लाहु तआला अलैह वसल्लम कुरैश के मुताबिक "बिइस्रमिक अल्लाहुम-म" लिखते थे जब कुरान की आयत(وَقَالَ ٱرْكَبُوا۟ فِيهَا بِسْمِ ٱللَّهِ مَجْر۪ىٰهَا وَمُرْسَىٰهَآ ۚ إِنَّ رَبِّى لَغَفُورٌ رَّحِيمٌ
اور بولا اس میں سوار ہو اللہ کے نام پر اس کا چلنا اور اس کا ٹھہرنا بیشک میرا رب ضرور بخشنے والا مہربان ہے،
11-हुद: 41)नाज़िल हुई तो आपने "बिस्मिल्लाह लिखना शुरू कर दिया" फिर जब आयत (قُلِ ٱدْعُوا۟ ٱللَّهَ أَوِ ٱدْعُوا۟ ٱلرَّحْمَٰنَ ۖ أَيًّا مَّا تَدْعُوا۟ فَلَهُ ٱلْأَسْمَآءُ ٱلْحُسْنَىٰ ۚ وَلَا تَجْهَرْ بِصَلَاتِكَ وَلَا تُخَافِتْ بِهَا وَٱبْتَغِ بَيْنَ ذَٰلِكَ سَبِيلًا
تم فرماؤ اللہ کہہ کر پکارو رحمان کہہ کر، جو کہہ کر پکارو سب اسی کے اچھے نام ہیں اور اپنی نماز نہ بہت آواز سے پڑھو نہ بالکل آہستہ اور ان دنوں کے بیچ میں راستہ چاہو
17-Al-Isra : 110) नाज़िल हुई तो आपने "बिस्मिल्लाहहिर्रहमान" लिखना शुरू किया फिर जब आयत(إِنَّهُۥ مِن سُلَيْمَٰنَ وَإِنَّهُۥ بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
بیشک وہ سلیمان کی طرف سے ہے اور بیشک وہ اللہ کے نام سے ہے نہایت مہربان رحم والا،
27-An-Naml : 30)नाज़िल हुई तो आपने "बिस्मिल्लाहहिर्रहमानिर्रिहीम" लिखना शुरू किया।
(तबक़ात इब्ने सअद जिल्द 2 सफ़्हा 28)



2️⃣6️⃣लौहे महफ़ूज और कलम का बयान
بسم الله الرحمن الرحيم‎
الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ

सवाल- लौहे महफ़ूज किस चीज़ का है?
जवाब- सफ़ेद मोती का है उसके दोनों किनारे मोती और याकूत के है और दोनों तरफ़ सुर्ख याकूत के हैं।
(ख़ाज़िन व मआलिम जिल्द 7 सफ़्हा 183)

सवाल- लौहे महफ़ूज कहाँ है?
जवाब- अर्शे आज़म का दाहनी तरफ, ऊपर का हिस्सा अर्शे आज़म से मिला हुआ है और नीचे का हिस्सा एक फ़रिश्ते की गोद में है।
(ख़ाज़िन व मआलिम जिल्द 7 सफ़्हा 193)

सवाल- लौहे महफ़ूज कितना बड़ा है?
जवाब- इतना बड़ा है जितना ज़मीन व आसमान के दरमियान फ़ासला है यानी पाँच सौ बरस की दूरी के बराबर और उसका अर्ज़ इस कद़र है जितना मश़्रिक व मग़रिब के दरमियान फ़ासला है।
(ख़ाज़िन व मआलिम जिल्द 7 सफ़्हा 193)

सवाल- लौहे महफ़ूज को लौहे महफ़ूज क्यों कहा जाता है?
जवाब- इसलिये कहते है कि ज़्यादती व नुक़सान और शैतानी तसर्रुफ़ात(दख़ल)से पाक है।
(ख़ाज़िन व मआलिम जिल्द 7 सफ़्हा 193)

सवाल- लौहे महफ़ूज में क्या लिखा है?
जवाब- उसके शुरू में लिखा है "लाइला-ह-इल्लल्लाहु वहदहु दीनुहुल इस्लाम व मुहम्मदुन अब्दुहु वरसूलुहु फ़मन आम-न-बिल्लाहि अज़्ज व जल-ल व सद्दक बि-वअदिही व इत्तब-अ रसूलुहू अदख़लहुल जन्नता अल्लाह " तर्जुमा " वहदहु के सिवा कोई मआबूद नहीं अल्लाह का दीन इस्लाम है और मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैह वसल्लम उसके ख़ास बन्दें और रसूल हैं तो जो अल्लाह अज़्ज़ व जल्ल पर ईमान लाऐगा और उसके वअदे की तसदीक़ और उसके रसूलों की पैरवी करेगा तो अल्लाह तआला उसको जन्नत में दाख़िल फ़रमाऐगा।
(ख़ाज़िन व मआलिम जिल्द 7 सफ़्हा 193/तफ़सीर अज़ीज़ी पारा 30 सफ़्हा 133)

सवाल- इसके इलावा और उसमें क्या लिखा है?
जवाब- उसमें सारी मख़लूकात का हाल है हर शै की तफ़सील है हर छोटी बड़ी चीज़ लिखी हुई है पैदाइश की शुरूआत से लेकर क़यामत तक जो कुछ हो गया और जो कुछ हो रहा है और जो कुछ होने वाला है सब ज़मीन और आसमान के पैदा होने से पहले लिख दिया गया है।
(ख़ाज़िन जिल्द 2 सफ़्हा 195'व'जिल्द 3 सफ़्हा 73/जुमल जिल्द 2 सफ़्हा 39)

सवाल- क्या लौहे महफ़ूज की लिखी हुई बातों में तग़य्यर और रद्दो बदल मुमकिन है?
जवाब- सही यह है कि लौहे महफ़ूज तग़य्युर से महफ़ूज है तग़य्यूर सिर्फ दफ़तैन और सुहुफ़े मलाइका में है।
(अहकामे शरीअत जिल्द 3 सफ़्हा 254)

सवाल- क्या लौहे महफ़ूज का इल्म खुदा के सिवा और किसी को भी हासिल है?
जवाब- हाँ अल्लाह तआला की तालीम और इत्तेलाअ से ग़ैरे खुदा को भी हासिल है जैसे नबी-ए-करीम सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम और दुसरे अम्बियाऐ किराम और मलाइका मुकर्रबीन को हासिल है बल्कि लौहे व क़लम के तमाम इल्म माकान वमा यकून हुजूरे अनवर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम के उलूमे बे मिसाल कायम एक क़तरा है।
(अलमलफूज जिल्द 1 सफ़्हा 66)

सवाल- क्या लौहे महफ़ूज का इल्म औलियाए किराम को भी हासिल है?
जवाब- हाँ औलियाए किराम को भी अता किया जाता है हज़रत ग़ौसे आज़म फ़रमाते है (ऐनी फ़िल्लौहिल महफ़ूज) मेरी आँख लौहे महफ़ूज में लगी रहती है मौलाना रूम फ़रमाते है लौहे महफ़ूज अस्त पेशे औलिया हरचे महफ़ूज अस्त महफ़ूज अज़ ख़ता।
(बहजतुल असरार सफ़्हा 22)

सवाल- क़लम किस चीज़ का है?
जवाब- नूर का है।
(ख़ाज़िन व मआलिम जिल्द 7 सफ़्हा 107)

सवाल- कलम की लम्बाई कितनी है?
जवाब- जितना जमीन व आसमान के दरमियान फ़ासला है।
(ख़ाज़िन व मआलिम जिल्द 7 सफ़्हा 107)

सवाल- क़लम ने सबसे पहले क्या लिखा?
जवाब- बिस्मिल्लाह शरीफ।
(रूहुल बयान जिल्द 1 सफ़्हा 5)

सवाल- किस चीज़ पर लिखा?
जवाब- लौहे महफ़ूज पर।
(अलइत्तेहाक़ सफ़्हा 105)

सवाल- फिर क़लम ने क्या लिखा?
जवाब- अल्लाह तआला का जिक्र और उसकी तौहीद को लिखा और क़यामत तक जो कुछ होने वाला है सब कुछ तफ़सील के साथ लिख दिया हदीस शरीफ में है कि जब अल्लाह तआला ने क़लम को पैदा किया तो उसको हुक्म दिया लिख क़लम इस ख़िताब की हैबत से हज़ार बरस तक कांपता रहा(अल्लाहुअकबर) फिर अर्ज़ किया कि ऐ परवरदिगार में क्या लिखूं रब ने फरमाया कि मेरी तौहीद लिख क़लम ने लौहे महफ़ूज पे "लाइला-ह-इल्लल्लाह" लिखा फिर इरशाद हुआ कि क़यामत तक जो कुछ होने वाला है हर एक की मिक़दार लिख दे।
(ख़ाज़िन व मआलिम जिल्द 7 सफ़्हा 107/मवाहिब लदुन्निया जिल्द 2 सफ़्हा 28/अलकलामुल औज़ह सफ़्हा 77/अलइत्तेहाफ़ सफ़्हा 106)

सवाल- क्या दुनिया की तरह लौह व क़लम और अर्शे आज़म व कुर्शी सब फ़ना हो जाऐंगे?
जवाब- नहीं सात चीज़ें है जिन्हें फना नहीं होना है अर्शे आज़म,कुर्शी,लौहे,महफ़ूज,क़लम,रूह,जन्नत और उसमें रहने वाले,दोज़ख और उसमें रहने वाले यह सब चीज़े कुल्लु शैइन हालिकुन से अगल है।
(शरह फ़िक़हे अकबर बहरूउलूम सफ़्हा 76/शरहुस्सुदूर सफ़्हा 133



2️⃣7️⃣अर्श व कुर्शी का बयान
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सवाल- क्या अर्शे आज़म कोई जिस्म है?
जवाब- हाँ मख़लूकात में सबसे बड़ा जिस्म है जो हरकत व सुकून कुबूल करता है।
(मवाहिब लदुन्निया जिल्द 1 सफ़्हा 118)

सवाल- अर्शे आज़म की लम्बाई चौड़ाई कितनी है?
जवाब- हदीस शरीफ में है कि सातों आसमान और ज़मीन कुर्सी के आगे इस तरह है जैसे एक चटयल मैदान में एक छल्ला पड़ा हो और कुर्शी अर्शे आज़म के किनारे ऐसी है जैसे एक चटयल मैदान में एक छल्ला पड़ा हो।
(ख़ाज़िन जिल्द 1 सफ़्हा 228/अलमलफूज जिल्द 4 सफ़्हा 64)

सवाल- क्या अर्शे भी अल्लाह तआला से खौफ़ खाता है?
जवाब- हाँ तमाम मख़लूकात से ज्यादा खौफ़ खाता है यहाँ तक कि जब अल्लाह तआला ने उसको पैदा किया तो उसकी अज़मत व जलाल से कांपता था(अल्लाहुअकबर) फिर जब कुदरत ने उसपर "लाईलाह इल्लल्लाह" लिख दिया तो इस नाम शरीफ़ की हैबत से और ज्यादा लरज़ने लगा(अल्लाहुअकबर) फिर जब उसपर "मुहम्मदु र्रसूललुल्लाह" लिखा तो इस नाम पाक की बरकत से उसको सुकून हासिल हुआ और लरज़ना बन्द हो गया।
(मवाहिब लदुन्निया जिल्द 2 सफ़्हा 34)

सवाल- अर्शे आज़म की क्या शान है(आया रखा हुआ है या उससे कोई उठाए हुऐ हैं?
जवाब- इस वक़्त तो चार फ़रिश्ते उसको काँछों पर उठाऐ हुऐ हैं और क़यामत के दिन आठ फ़रिश्ते उठाऐंगे।
(ज़रक़ानी जिल्द 6 सफ़्हा 86/अलमलफूज जिल्द 4 सफ़्हा 64)
दूसरी रिवायत में है कि इस वक़्त आठ फ़रिश्ते उठाऐं हुऐ है।
(ख़ाज़िन जिल्द 7 सफ़्हा 120)

सवाल- अर्शे आज़म के उठाने वाले फ़रिश्ते कैसे हैं?
जवाब- पहाड़ी बकरों की शक़्ल में है उनके पाँव के नीचे से घुटनों तक पाँच सौ बरस की राह है एक रिवायत में है कि कान की एक लौ और काँधों के बीच सात सौ बरस की दूरी है बाज रिवायत में है कि कोई इन्सान की शक़्ल कोई गिध्द की शक़्ल कोई बैल की शक़्ल और कोई शेर की शक़्ल में है।
(ख़ाज़िन जिल्द 7 सफ़्हा 120)

सवाल- कुर्शी क्या है?
जवाब- कुर्शी से मुराद या तो इल्म व कुदरत है या खुद नफ्स कुर्शी जो सातवें आसमान के उपर है जिसे चार फ़रिश्ते उठाए हुऐ हैं।
(सावी जिल्द 1 सफ़्हा 107)

सवाल- कुर्शी के उपर क्या है?
जवाब- अर्शे आज़म।
(ख़जाइन सफ़्हा 63)

सवाल- सातवें आसमान से कुर्शी तक कितना फ़ासला है?
जवाब- पाँच सौ बरस की राह।
(ख़ाज़िन जिल्द 7 सफ़्हा 120)

सवाल- अर्शे आज़म व कुर्शी के दरमियान किस कदर फासला है?
जवाब- अर्शे आज़म के उठाने वाले फ़रिश्तों और कुर्शी के उठाने वाले फ़रिश्तों के दरमियान में सत्तर हिजाबात (परदे) तारीकी के और सत्तर हिजाबात नूर के हैं और हर हिजाब की मोटाई पाँच सौ बरस की राह है और अगर इस कदर फासला न होता तो कुर्शी के उठाने वाले फ़रिश्ते अर्शे आज़म के उठाने वाले फ़रिश्तों के नूर से जल जाते।
(ख़ाज़िन जिल्द 1 सफ़्हा 228)

सवाल- कुर्शी के उठाने वाले फ़रिश्ते कैसे हैं?
जवाब- उन फ़रिश्तों में से हर एक के चार मूँह हैं और उनके कदम उस पत्थर पर हैं जो सातवीं जमीन के नीचे है एक फ़रिश्ता हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की शक़्ल में है वह एक साल से दूसरे साल तक आदम की औलाद के लिये रिज़्क और बारिश का सवाल करता है और एक फ़रिश्ता गिध्द की शक़्ल में है जो परिन्दों के लिये एक साल से दूसरे साल तक रिज़्क का सवाल करता है और एक फ़रिश्ता बैल की शक़्ल में है जो चौपायों के लिये एक साल से दूसरे साल तक तक रिज़्क का सवाल करता है और फ़रिश्ता शेर की तरह है वह वसशियों के लिये एक साल से दूसरे साल तक रिज़्क का सवाल करता है।
(ख़ाज़िन जिल्द 1 सफ़्हा 228)



2️⃣8️⃣शयातीन का बयान
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सवाल- शयातीन की हकीकत क्या है?
जवाब- वह आग से पैदा किये गऐ हैं उनको अल्लाह तआला ने यह ताकत दी है कि जो शक़्ल चाहें इख्तियार करले,शरीर जिन्नों को शयातीन कहते हैं।
(ख़ाज़िन जिल्द 2 सफ़्हा 176)

सवाल- क्या इब्लीस कौमें जिन्न में से है?
जवाब- हाँ यही मशहूर और हक़ है।
(कुरान-ए-मुकद्दस/तक़मीलूल ईमान सफ़्हा 10)

सवाल- इब्लीस का अस्ल नाम क्या है?
जवाब- पहले आसमान में उसका नाम आबिद,दूसरे में ज़ाहिद,तीसरे में आरिफ़,चौथे में वली,पांचवे में तक़ी,छटे में ख़ाज़िन,सातवें में अज़ाज़ील,और लौहे महफ़ूज में इब्लीस है।
(सावी जिल्द 1 सफ़्हा 22)

सवाल- इब्लीस जन्नत में ख़ज़ानची कितने साल रहा?
जवाब- चालीस हजार साल।
(सावी जिल्द 1 सफ़्हा 22)

सवाल- इब्लीस ने अर्शे आज़म का तवाफ़ कितने साल तक किया?
जवाब- चौदह हज़ार साल तक।
(सावी जिल्द 1 सफ़्हा 22)

सवाल- इब्लीस फ़रिश्तों के साथ कितने दिनों तक रहा?
जवाब- अस्सी हजार साल और बीस हज़ार साल तक फ़रिशतों को वाज व नसीहत करता रहा और तीस हजार साल तक कर्रोबीन फ़रिश्तों का सरदार रहा और एक हज़ार साल तक रूहानीन फ़रिशतों का सरदार रहा।
(सावी जिल्द 1 सफ़्हा 22)

सवाल- फिर इब्लीस मरदूदे बारगाह क्यों हुआ जबकि वह मुआल्लिमुल मलकूत(फ़रिशतों का उस्ताद)था?
जवाब- हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को सज्दा न करने की वजह से।
(ख़ाज़िन जिल्द 2 सफ़्हा 176)

सवाल- इब्लीस ने मरदूद बारगाह होने से पहले कितने दिनों तक अल्लाह की इबादत व रियाज़त की?
जवाब- पचास हजार साल तक यहाँ तक कि अगर उसके सजदों को फैला दिया जाऐ तो जमीन आसमान में कोई जगह बाक़ी न रहे।
(ज़रक़ानी जिल्द 1 सफ़्हा 59)

सवाल- क्या इब्लीस की तौबा कुबूल हो सकती है?
जवाब- हाँ अगर हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को सज्दा करले रिवायत में है कि एक दिन इब्लीस हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के पास आकर कहने लगा कि हुजूर में बहुत बड़ा गुनाहगार हूँ अल्लाह तआला ने आपको कलीम बनाया है मैं चाहता हूँ कि खुदा की बारगाह में तौबा कर लूँ आप मेरे लिये खुदा की बारगाह में सिफ़ारिश करें ताकि अल्लाह तआला मेरी तौबा कुबूल फरमाले हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने दुआ की तो हक़ तआला की तरफ़ से आवाज़ आई ऐ मूसा इब्लीस की तौबा तुम्हारी सिफ़ारिश से कुबूल करूगाँ लेकिन शर्त यह है कि इब्लीस (हज़रत)आदम(अलैहिस्सलाम) की क़ब्र को सज्दा कर ले इब्लीस ने सुन कर कहा जब (हज़रत)आदम(अलैहिस्सलाम) की जिन्दगी में सज्दा न किया तो अब मरने के बाद क्या सज्दा करूँ,दुसरी रिवायत में है कि इब्लीस के एक लाख साल तक दोज़ख में जलने के बाद अल्लाह तआला उसको दोज़ख से निकालेगा और मैदाने क़यामत में हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के सामने खड़ा करेगा और उससे कहा जाऐगा कि हज़रत आदम(अलैहिस्सलाम) को सज्दा करले तेरी ख़ता माफ़ है तब भी वह सज्दा करने से इन्कार करेगा फिर अल्लाह तआला उसको हमेशा हमेशा के लिये दोज़ख में डाल देगा।
(तफ़सीर अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 158/रूहुल बयान जिल्द 1 सफ़्हा 72)

सवाल- क्या शयातीन अब भी आसमान पर जाते हैं?
जवाब- नहीं पहले शयातीन आसमानों में दाख़िल हो जाते थे और वहाँ की ख़बरें नजूमियों काहिनों के पास पहुँचाते थे जब हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम पैदा हुऐ तो तीन आसमानों पर जाने से रोक दिया गया फिर जब हुजूरे अनवर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम की पैदाइश हुई तो सारे आसमानों पर जाने से रोक दिये गये।
(मवाहिब लदुन्निया जिल्द 1 सफ़्हा 398)

सवाल- क्या शयातीन आपस में शादी बयाह करते हैं?
जवाब- हाँ शादी बियाह करते हैं और उनमें औलाद पैदा होने और नस्ल बढ़ने का सिलसिला भी जारी है।
(ख़ाज़िन जिल्द 4 सफ़्हा 176/उम्दतुल क़ारी जिल्द 7 सफ़्हा 271)



2️⃣9️⃣ख़तना का बयान
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सवाल- ख़तना करना कैसा है?
जवाब- ख़तना करना सुन्नत है और शिआरे(निशानी)इस्लाम है।
(दुर्रे मुख्तार मअ रददुल मुहतार जिल्द 5 सफ़्हा 495)

सवाल- ख़तना का मुसतहब(अच्छा) वक़्त क्या है?
जवाब- सात साल से बारह साल तक बाज़ हज़रात पैदाइश के सातवें दिन सुन्नत कहते हैं।
(आलमगीरी जिल्द 4 सफ़्हा 112/अलकलामुल औज़ह सफ़्हा 138)

सवाल- सबसे पहले ख़तना किसने किया?
जवाब- हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने किया फिर हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने हज़रत इसहाक़ अलैहिस्सलाम का उनकी पैदाइश के सातवें दिन और हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम का तेरहवीं बरस में ख़तना किया इसी तरह हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैह वसल्लम ने हजरत हसनैन क़ारीमैन का उनकी पैदाइश के सातवें दिन ख़तना किया।
(तफ़सीर अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 373/खाज़िन जिल्द 1 सफ़्हा 89)

सवाल- हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने किस उम्र में अपना ख़तना किया?
जवाब- अस्सी साल की उम्र में।
(ख़ाज़िन जिल्द 1 सफ़्हा 89)

सवाल- क्या इससे पहले ख़तना का हुक्म नहीं था?
जवाब- नहीं।
(ख़ाज़िन जिल्द 1 सफ़्हा 89/तफ़सीर इब्ने जरीर जिल्द 1 सफ़्हा 441)

सवाल- तो क्या हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम से पहले अम्बियाए किराम बिना ख़तना रहे?
जवाब- नहीं वह ख़तना किये हुए पैदा हुऐ थे।
(सीरत हलबी जिल्द 1 सफ़्हा 63/तफ़सीर अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 373)

सवाल- कितने नबी ख़तना किये हुए पैदा हुऐ?
जवाब- 17 नबी ख़तना किये हुऐ पैदा हुऐ,
(1)हज़रत आदम अलैहिस्सलाम,
(2)हज़रत शीश अलैहिस्सलाम,
(3)हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम,
(4)हज़रत नूह अलैहिस्सलाम,
(5)हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम,
(6)हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम,
(7)हज़रत शुएब अलैहिस्सलाम,
(8)हज़रत जक़रीया अलैहिस्सलाम,
(9)हज़रत यहया अलैहिस्सलाम,
(10)हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम,
(11)हज़रत लूत अलैहिस्सलाम,
(12)हज़रत हूद अलैहिस्सलाम,
(13)हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम,
(14)हज़रत हन्ज़ला अलैहिस्सलाम,
(15)हज़रत साम अलैहिस्सलाम,
(16)हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम,
(17)हमारे आका हुजूरे अनवर सल्लल्लाहु तआला अलैह वसल्लम।
(ज़रक़ानी जिल्द 1 सफ़्हा 126/दुर्रे मुख्तार मअ रददुल मुहतार जिल्द 5 सफ़्हा 496/सीरत हलबी जिल्द 1 सफ़्हा 63)



3️⃣0️⃣मस्जिदों-का-बयान
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सवाल- दुनिया की तमाम मस्जिदों में सबसे अफ़ज़ल कौनसी मस्जिद है?
जवाब- सब मस्जिदों से अफ़ज़ल मस्जिदे हराम है, फिर मस्जिदे नबवी फिर मस्जिदे अक़सा फिर मस्जिदे कुबा फिर मस्जिदे जामा फिर मस्जिदे मुहल्ला फिर मस्जिदे शारेअ ।
(दुर्र मुख़्तार व रदृदूल मोहताज जिल्द 1 सफहा 462) 

सवाल- मस्जिदे हराम मस्जिदे नबवी मस्जिदे अक़सा मे नमाज पढ़ने का कितना सवाब है? 
जवाब- मस्जिदे हराम में एक नमाज लाख नमाजों के बराबर और मस्जिदे नबवी मे एक नमाज हजार नमाजों के बराबर और मस्जिदे अक़सा मे एक नमाज पांन सौ नमाजों के बराबर है
(जज़बुल कुबूल पेज 128)

सवाल- सबसे पहले रूहे जमीन पर किस मस्जिद की तामीर हुई? 
जवाब- मस्जिदे हराम की। 
(बुखारी शरीफ जिल्द 1 सफहा 477) 

सवाल- फिर उसके बाद किस मस्जिद की तामीर हुई? 
जवाब- मस्जिदे अक़सा की ।
(बुखारी शरीफ जिल्द 1 सफहा 477) 

सवाल- मस्जिदे हराम की तामीर किसने की? 
जवाब- फरिशतो ने या हजरत आदम अलैहिस्सलाम ने । 
(उम्दतुल क़ारी 1 पेज 615/ तफसीर अज़ीज़ी सूरऐ बक़र पेज 398) 

सवाल- मस्जिदे अक़सा की तामीर किसने की? 
जवाब- बुन्याद हजरत दाऊद अलैहिस्सलाम ने रखी फिर उसकी तकमील हजरत सुलैमान अलैहिस्सलाम ने फरमाई ।
(जज़बुल कुबूल पेज 115) 

सवाल- इस्लाम में सबसे पहले किस मस्जिद की तामीर हुई?     
जवाब- मस्जिदे कुबा की।
(मवाहिब लदिन्नया 1 पेज 67)   

सवाल- वह कौनसी मस्जिदें हैं जिनमें नमाज़ पढ़ने के लिए सफ़र करना जाइज़ है?
जवाब- तीन मस्जिदे हैं (1) मस्जिदे हराम (2)मस्जिदे नबवी (3)मस्जिदे अक़सा ।
(बुखारी शरीफ जिल्द 1 सफहा 215) 



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🅱️ बहारे शरीअत ( हिस्सा- 03 )🅱️

_____________________________________   _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 089)*_ ―――――――――――――――――――――             _*🕌नमाज़ पढ़ने का तरीक...