Monday, November 2, 2020

☪ फिक़्ह हनफी मसाईल ☪


 *(फिक़्ह हनफी) पोस्ट-1*

*ये टॉपिक भी काफी लम्बा चलने वाला है लिहाज़ा मैसेज को सेव करते चलें ताकि आगे चलकर कोई बात अगर ना समझ में आये तो पिछले हिस्से को उठाकर देख सकें,तो चलिये शुरू से शुरू करता हूं*

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम पर क़ुर्आन व हदीस वही की सूरत में उतरा करता जिसे आप सहाबये किराम को बताते और वो अपने इज्तिहाद यानि अपनी अक्ल से उस पर अमल करते,अमल करने का तरीका कभी कभार सबका अलग अलग हो जाया करता मगर चुंकि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम सबके दर्मियान थे और वो सब मुजतहिद थे तो सब हक़ पर ही रहे,फिर जब उनका ज़माना गुज़रने लगा तो बाद वालों को किसी की पैरवी करने की ज़रूरत पड़ी क्योंकि अब ना तो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की ज़ाहिरी हयात थी और ना सहाबये किराम का दौर,तो ऐसे में बाद वालों ने सहाबये किराम से तल्मीज़ इमामों की इत्तेबा शुरू की,दूसरी सदी हिजरी से पहले मसायल के बहुत से इमाम गुज़रे मगर उनका मज़हब कुछ ही आगे बढ़कर खत्म हो गया और दूसरी सदी के बाद पूरी उम्मते मुस्लिमा ने 4 इमाम पर ही इक़्तिफा कर लिया 1.इमामे आज़म जिनके मानने वाले हनफी 2.इमामे शाफई जिनके मानने वाले शाफई 3.इमाम मालिक जिनके मानने वाले मालिकी 4.इमाम अहमद बिन हम्बल जिनके मानने वाले हंबली कहलाते हैं*

*📚फतावा रज़वियह,जिल्द 3,सफह 321*

*अक़ायद यानि जिन बातों का ज़बान से इकरार करना और दिल से मानना ज़रूरी है उसको अक़ीदा कहते हैं,अक़ायद के 2 इमाम हैं पहले हज़रत सय्यदना अबू मंसूर मातुरीदी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि इनके मानने वालों को मातुरीदिया और दूसरे हज़रत अबुल हसन अशअरी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि और इनके मानने वालो को अशअरी कहते हैं,ये दोनों ही हक़ पर हैं अलबत्ता इख्तिलाफ फुरू यानि अस्ल से निकली हुई बातो में है अहले सुन्नत व जमाअत अक़ायद में इन्हीं दोनों की पैरवी करते हैं तो अब जो इनके खिलाफ कोई अक़ीदा रखेगा अगर वो कुफ्र की हद तक पहुंच गया तो काफिर है वरना गुमराह है*

*📚मज़हबे इस्लाम,सफह 4*
*📚निबरास,सफह 229*

*हनफी-शाफई-मालिकी व हंबली अब दीन इन्ही चारों में से किसी एक की पैरवी करने का नाम है,अगर चे इनके आपस में फुरुई इख्तिलाफ बहुत हैं मगर अक़ायद में सब एक हैं इसीलिए ये चारों ही हक़ पर हैं,सो इस वक़्त इन 4 के सिवा किसी की पैरवी जायज़ नहीं यानि आदमी अब या तो हनफी होगा या शाफई या मालिकी होगा या हंबली और जो इन चारों से खारिज है वो गुमराह व बे दीन है जैसे कि ग़ैर मुक़ल्लिद यानि बराये नाम अहले हदीस*

*📚तहतावी,जिल्द 4,सफह 153*
*📚तफसीरे सावी,जिल्द 3,सफह 9*

*अब इख्तिलाफ होने के बाद भी चारों हक़ पर कैसे हैं तो इसको युं समझिये कि शरीयत एक बाग़ है और बाग़ हर तरह के फूलों से बनता है कहीं गुलाब है तो कहीं जूही कहीं चंपा है तो कहीं चमेली,उसी तरह इमामों का इख्तिलाफ भी बाग़ के फूलों की तरह है और इसी इख्तिलाफ को मेरे आक़ा सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम "इख़्तिलाफु उम्मती रहमतुन" फरमाते हैं यानि मेरी उम्मत का इख्तिलाफ रहमत है,फरुई इख्तिलाफ में रास्ते अगर चे मुक्तलिफ यानि अलग अलग होते हैं मगर मक़सद सबका एक ही होता है,ये हदीसे पाक पढ़िये इन शा अल्लाह समझ में आ जायेगा*

*बनी क़ुरैज़ा पर जल्द पहुंचने की गर्ज़ से हुज़ूर सल्लललाहो अलैहि वसल्लम ने अपने सहाबियों में ये ऐलान करवाया कि हम अस्र की नमाज़ बनी क़ुरैज़ा पहुंचकर पढेंगे,सभी हज़रात ज़ुहर पढ़कर निकले और सफर करते रहे यहां तक कि अस्र का वक़्त बहुत थोड़ा सा रह गया,तो कुछ सहाबये किराम ने नमाज़ पढ़नी चाही तो कुछ सहाबा ने मना किया कि हुज़ूर का कहना था कि नमाज़ हम बनी क़ुरैज़ा पहुंचकर पढ़ेंगे तो रास्ते में नमाज़ ना पढ़ी जाये,इस पर वो सहाबा कहने लगे कि हुज़ूर का कहना बिल्कुल हक़ है मगर उन्होंने ये भी तो नहीं कहा था कि नमाज़ क़ज़ा कर देना तो उन सहाबये किराम ने नमाज़ पढ़ी और कुछ ने नहीं पढ़ी,जब हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम बनी क़ुरैज़ा पहुंच गए तो नमाज़े अस्र क़ज़ा जमाअत से पढ़ी गई,फिर हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के सामने उन सहाबियों का तज़किरा हुआ तो आपने दोनो को हक़ फरमाया*

*📚 बुखारी,जिल्द 1,सफह 119*

*देखिये यहां नमाज़ अदा करने पर भी सवाब मिल रहा है और क़ज़ा करने पर भी सवाब मिल रहा है क्यों,क्योंकि मक़सद सबका एक ही है हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की इताअत करना मगर मसअला समझने में अपने इज्तिहाद के मुआफिक़ जिसने जैसा फैसला किया उसे वैसा सवाब मिला मगर गुनाह नहीं मिला,तो बस इसी तरह चारों इमाम मुज्तहिद थे उन सबके सामने हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की हदीस थी अब जिसने सही मसअला अपने हिसाब से निकाला तो उसे दो गुना सवाब मिलेगा और जिसने मसअला समझने में खता की तो उस खता पर भी उसे एक गुना सवाब ही मिलना है गुनाह नहीं होगा क्योंकि मुज्तहिद की खता मुआफ है*

जारी रहेगा....



🕋✭ ﺑِﺴْــــــــــــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّحْمٰنِﺍلرَّﺣِﻴﻢ ✭🕌
*(फिक़्ह हनफी)पोस्ट-2*

*अब आपको ये बताता हूं कि तक़लीद क्यों ज़रूरी है,फुक़्हा फरमाते हैं कि ये ज़रूरी नहीं कि हर अरबी जानने वाला भी क़ुर्आनो हदीस के सही मफहूम को समझ सके,उसके लिए ये हदीस पढ़िये*

*हदीस* - सहरी के ताल्लुक से मौला तआला क़ुर्आन में इरशाद फरमाता है कि خيط ابيض وخيط اسود लुग़त के ऐतबार से इसका माने बनता है सफेद धागा और काला धागा,तो एक सहाबी अपने तकिये के नीचे 2 धागा एक काला और एक सफेद रखकर सो गये ताकि फर्क कर सकूं कि सहरी का वक़्त कब तक है मगर पूरी रात उसे देखते रहे और उसमे तमीज़ ना कर सके,आखिर में हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में हाज़िर हुए और पूरी बात बताई,ये सुनकर हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम मुस्कुरा दिये और फरमाया कि यहां सफेद धागा और काला धागा मुराद नहीं है बल्कि जब रात की स्याही में सफेदी दाखिल होने लगे ये मुराद है

*📚अहले-हदीस का नया दीन,सफह 22*

*अब ज़रा सोचिये कि वो सहाबी हमारी तरह गैर अरबी नहीं थे कि 10-20 साल पढ़कर अरबी बने हों बल्कि उनकी पैदाईश उनकी ज़बान ही अरबी थी जब ये कलाम उनकी समझ में नहीं आया तो हम और आप किस गिनती में हैं,लिहाज़ा पूरी क़ुर्आन उठाकर देख ली जाये कि सैकड़ों नहीं बल्कि हज़ारों ऐसे मसले उसमे दर्ज हैं जिनके लिए हदीस का सहारा लेना पड़ेगा वरना वो हमारी अक़्लो फहम में भी नहीं आयेंगे फिर उसी तरह हज़ारों नहीं लाखों हदीसें हैं जिनकी इस्लाह बाद के फुक़्हा फरमाते हैं कि किस पर अमल करना है और किस पर नहीं क्योंकि हर हदीस पर अमल करना ज़माने के हिसाब से हरगिज़ नहीं हो सकता लिहाज़ा तक़लीद की ज़रूरत पड़ेगी,क़ुर्आनो हदीस व इज्माअ पर मैं तक़लीद के नाम से पोस्ट कर चुका हूं पूरी तफसील उसी पोस्ट से हासिल करें यहां सिर्फ एक आयत पेश करता हूं मगर इन शा अल्लाह इसी एक आयत से क़ुर्आनो हदीस और फुक़्हा की अहमियत पता चल जायेगा,मौला तआला इरशाद फरमाता है कि*

*कन्ज़ुल ईमान* - ऐ ईमान वालो हुक्म मानो अल्लाह का (यानि क़ुर्आन) और हुक्म मानो रसूल का (यानि हदीस) और उनका जो तुममे हुकूमत वाले हैं (यानि उल्मा)

*📚पारा 5,सूरह निसा,आयत 59*

*अगर चे ज़ाहिरन यहां हुकूमत वाले यानि बादशाह कहा गया है मगर हक़ीक़त में यहां उल्मा ही मुराद हैं क्योंकि मुसलमान बादशाह हमेशा ही अपने दरबार में उल्मा का हुजूम रखते थे और उन्हीं से पूछकर ही सज़ा या जज़ा का हुक्म सादिर फरमाते थे लिहाज़ा यहां उल्मा का ही हुक्म मानने को कहा जा रहा है,लेकिन अगर कोई हठधर्मी कहे कि यहां उल्मा नहीं लिखा है बल्कि अम्र वाले यानि बादशाहो का हुक्म मानने की ही बात है तो जब भी हम अहले सुन्नत व जमाअत का अक़ीदा इससे सही साबित होता है कि बादशाह भी अल्लाह व रसूल नहीं और उनका हुक्म क़ुर्आनो हदीस नहीं लिहाज़ा यहां किसी तीसरे की इत्तेबा करने का हुक्म तो मौला दे ही रहा है,अब क़यास की दलील मुलाहज़ा फरमायें*

*हदीस* - हज़रत माअज़ बिन जबल रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को जब हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने यमन का क़ाज़ी बनाकर भेजा तो आपसे पूछा कि ऐ माअज़ जब लोगों का फैसला करोगे तो किस तरह करोगे तो हज़रत माअज़ फरमाते हैं कि अल्लाह की किताब से फिर हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने पूछा कि अगर उसमे ना पाओ तो तो हज़रते माअज़ फरमाते हैं कि फिर मैं हदीसे पाक से फैसला करूंगा फिर हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने पूछा कि अगर उसमे भी ना पाओ तो तब हज़रते माअज़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि फिर मैं उन दोनों को सामने रखकर अपने इज्तिहाद से फैसला करूंगा ये सुनकर हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने उनके सीने पर हाथ मारा और फरमाया कि ऐ माअज़ तुमको इल्म मुबारक हो

*📚तिर्मिज़ी,जिल्द 3,हदीस 1327*
*📚अबु दाऊद,जिल्द 3,हदीस 3592*
*📚मिश्कात,जिल्द 2,सफह 204*

*हदीस* - हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं क जब हाकिम अपने इज्तिहाद से फैसला करे तो अगर उसका फैसला सही होगा तो उसको दुगना अज्र मिलेगा और अगर उसका फैसला गलत होगा तब उसे एक गुना अज्र मिलेगा

*📚बुखारी,हदीस 7352*
*📚मुस्लिम,जिल्द 6,हदीस 1716*
*📚इब्ने माजा,जिल्द 3,हदीस 2314*
*📚अबु दाऊद,जिल्द 3,हदीस 3574*
*📚मिश्कात,जिल्द 2,सफह 203*

*ये है क़यास की दलील कि खुद हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने अपने सामने क़ुर्आनो हदीस के अलावा अपने इज्तिहाद से फैसला फरमाने का हुक्म दिया,लिहाज़ा आज जो अपने आपको बराये नाम अहले हदीस कहते हैं वो पहले खुद तो देख लें कि उनका अमल हदीसों पर है भी कि नहीं*

*जारी रहेगा.....*



🕋✭ ﺑِﺴْــــــــــــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّحْمٰنِﺍلرَّﺣِﻴﻢ ✭🕌
*(फिक़्ह हनफी) पोस्ट-3*

_*चुंकि पहली 2 पोस्ट में मैं हदीसो फिक़ह व क़यास की ज़रूरत की दलील दे आया हूं अब अक़लन भी कुछ समझ लीजिये,लोग कहते हैं कि क़ुर्आन में सब कुछ है तो हमें किसी और किताब की ज़रूरत ही क्या है हमारे लिए क़ुर्आन ही काफी है तो बेशक क़ुर्आन में सब कुछ है ये हर मुसलमान और हर नाम निहाद मुसलमान भी मानता है मगर क्या सिर्फ क़ुर्आन से ही एक आम मुसलमान हर मसला हल कर सकता है यक़ीनन नहीं,मिसाल के तौर पर क़ुर्आन में तक़रीबन 700 से ज़्यादा बार नमाज़ का हुक्म आया है कि नमाज़ क़ायम करो नमाज़ क़ायम करो नमाज़ क़ायम करो मगर पूरी क़ुर्आन उठाकर पढ़ लीजिए कहीं भी नमाज़ पढ़ने का तरीक़ा नहीं लिखा है कि पहले नियत बांधो फिर क़याम करो फिर रुकू करो फिर सज्दा करो क़ायदा अव्वल क़ायदा अखीरा फिर सलाम फेरकर नमाज़ खत्म करो,ये तरीका हमें कहां से पता चला ज़ाहिर है कि हदीस से पता चला और हदीस हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के क़ौले मुबारक को कहते हैं,क़ुर्आन वहिये जली है यानि तिलावत करने वाली है और हदीस वहिये खफी है यानि तिलावत ना करने वाली है मगर है दोनों ही खुदा के हुक्म से जैसा कि खुद मौला तआला क़ुर्आन में इरशाद फरमाता है कि*_

*कंज़ुल ईमान* - और वो कोई बात अपनी ख्वाहिश से नहीं करते.वो तो नहीं मगर वही जो उन्हें की जाती है

*📚पारा 27,सूरह वन्नज्म,आयत 3-4*

_*तो मानना पड़ेगा कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का क़ौल भी दर असल खुदा का ही हुक्म होता है और इससे ये भी पता चलता है कि क़ुर्आन के जितने भी छुपे हुए राज़ हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने हमें बताये हैं वो खुद क़ुर्आन में मौजूद हैं इसका भी तज़किरा क़ुर्आन से ही सुन लीजिए*_

*कंज़ुल ईमान* - रहमान.ने अपने महबूब को क़ुर्आन सिखाया.इंसानियत की जान मुहम्मद को पैदा किया.मा कान व मा यकून का बयान उन्हें सिखाया

*📚पारा 27,सूरह रहमान,आयत 1-4*

_*सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम,इस आयत को देखिये कि जब अल्लाह ने क़ुर्आन में ही फरमा दिया है कि इस किताब में हर चीज़ का बयान दर्ज है तो फिर अलग से हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को बयान सिखाने की क्या ज़रूरत थी जबकि पहली आयत में तो खुद ही फरमा रहा है कि मैंने उनको क़ुर्आन सिखा दिया,इसका मतलब साफ है कि क़ुर्आन का पढ़ना और है और क़ुर्आन का बयान और है और हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को दोनों का इल्म है यानि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम क़ुर्आन तो जानते ही हैं और क़ुर्आन का बयान यानि उसमें छिपे हुए राज़ को भी जानते हैं,तो अब वो लोग जो रटटू तोते की तरह ये रटते रहते हैं कि हमें क़ुर्आन काफी है हमें क़ुर्आन काफी है क्या वो सिर्फ क़ुर्आन पढ़कर उसमें छिपे हुए उसके मानी और मक़ासिद को भी समझ लेंगे नहीं नहीं और हरगिज़ नहीं,क़ुर्आन को समझाने के लिए कोई ना कोई चाहिए ही चाहिए वरना जिनको लगता है कि वो खुद क़ुर्आन पढ़कर खुद ही उसका माअनी भी समझ लेंगे तो वो क़ुर्आन की ही ये आयत पढ़ लें जिसमे मौला तआला इरशाद फरमाता है कि*_

*कंज़ुल ईमान* - अल्लाह बहुतेरों को इससे गुमराह करता है और बहुतेरों को हिदायत अता फरमाता है

*📚पारा 1,सूरह बक़र,आयत 26*

*अब इसका मतलब इस मिसाल से समझिये,दुनिया जानती है कि मोती समन्दर की तह में होता है तो अगर हमें या आपको मोती की ज़रूरत पड़ जाए तो क्या करेंगे क्या समंदर में डुबकी लगाकर उसकी तह से मोती निकाल लायेंगे या जाकर बाज़ार से खरीद लेंगे ज़ाहिर सी बात है कि बाज़ार से ही खरीदेंगे,क्योंकि समंदर में डुबकी लगाकर मोती निकालना ये आम इंसान का काम नहीं है बल्कि इसके लिए एक गोताखोर की ज़रूरत पड़ती है जिसे इस काम का खूब तजुर्बा होता है वो ही समन्दर से मोती निकालता है और उसका निकाला हुआ मोती बाज़ार से खरीदना पड़ता है,अब कोई अहमक़ ये कहे कि नहीं मैं भी समंदर से मोती निकालकर लाऊंगा क्योंकि मोती तो समन्दर में ही है तो मैं बाज़ार से क्यों खरीदूं तो उसका अंजाम क्या होगा ये बताने की ज़रूरत नहीं,तो जब दुनिया के समन्दर से दुनियावी मोती हासिल करना हर इंसान के बस में नहीं कि जान का खतरा हो सकता है तो फिर क़ुर्आन के अज़ीम समंदर से मसायल के मोती निकाल लाना ये भी आम इंसान का काम नहीं है अगर वहां जान का खतरा है तो यहां ईमान का खतरा है,इसके लिए भी अल्लाह ने बेहतरीन गोताखोर पैदा किये हैं जैसे इमामे आज़म इमाम शाफई इमाम मालिक इमाम अहमद बिन हम्बल व ढ़ेरो फुक़्हा व मुज्तहिद हैं जो क़ुर्आन के समंदर में गर्क होकर वहां से मसअले निकाल लाते हैं और हमें वही मसअले उनसे सीखने पड़ते हैं यही तक़लीद कहलाती है और इसकी दलील से क़ुर्आन और हदीस भरे हुए हैं,क़ुर्आन पढ़ना और फिर बगैर किसी आलिम के बताये खुद से उसका मानी समझ लेना इसकी एक मिसाल समझ लीजिये कि क़ुर्आन पढ़कर लोग गुमराह कैसे होते हैं,मौला तआला इरशाद फरमाता है कि*

*कंज़ुल ईमान* _तो फरमाओ ज़ाहिर सूरत बशरी में तो मैं तुम जैसा हूँ_

*📚पारा 16,सूरह कहफ,आयत 110*

*जारी रहेगा.....*




🕋✭ ﺑِﺴْــــــــــــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّحْمٰنِﺍلرَّﺣِﻴﻢ ✭🕌
*(फिक़्ह हनफी) पोस्ट-4*

_*क़ुर्आन पढ़कर लोग गुमराह कैसे होते हैं आईये इसकी एक मिसाल समझ लीजिये मौला तआला इरशाद फरमाता है कि*_

*कंज़ुल ईमान* - तो फरमाओ ज़ाहिर सूरत बशरी में तो मैं तुम जैसा हूं

*📚पारा 16,सूरह कहफ,आयत 110*

_*अल्लाह ने अपने महबूब की ज़बान से कहलवाया कि ऐ महबूब आप फरमा दीजिये कि मैं भी तुम जैसा इंसान हूं तो जब महबूब ने कह दिया तो फिर क्या था कुछ अक़ल के कोढ़ियों ने अपनी कोढ़ी अक़ल से उसका ये माअनी गढ़ा कि अब हुज़ूर हमारी ही तरह बशर हो गये और इसको युं अपनी नापाक किताबों में लिखा गया*_

*वहाबी* - इस्माईल देहलवी ने लिखा कि "अल्लाह के जितने बन्दे हैं ख्वाह वो अम्बिया हों या औलिया वो सब अल्लाह के बेबस बन्दे हैं और हमारे भाई हैं सो उनकी ताज़ीम बड़े भाई की तरह करो"

*📚तक़वियातुल ईमान,सफह 77*

*वहाबी* - और इसी की ताईद एक और खबीस मलऊन रशीद अहमद गंगोही इस तरह करता है और लिखता है कि "पस किसी ने अगर बवजहये आदम होने के आपको भाई कहा तो क्या गलत कहा वो तो खुद नस के मुआफिक़ ही कहता है"

*📚बराहीने कातिया,सफह 12*

_*बेशक हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इंसान हैं बशर हैं मगर हम जैसे हैं बड़े भाई की तरह हैं ये कहां से साबित हुआ,सबसे पहले तो क़ुर्आन की कुछ आयतें पेश करता हूं जिससे ये मालूम हो जाये कि अम्बिया को बशर या अपनी तरह कहना कैसा है फिर उस आयत का मफहूम बताता हूं कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने अपने आपको बशर क्यों कहा,मौला तआला इरशाद फरमाता है कि*_

*कंज़ुल ईमान* - बोला मुझे ज़ेब नहीं देता कि बशर को सज्दा करूं

*📚 पारा 14,सूरह हजर,आयत 33*

*कंज़ुल ईमान* - बोला मैं इससे बेहतर हूं तूने मुझे आग से बनाया और इसे मिटटी से (बशर)

*📚 पारा 8,सूरह एराफ,आयत 12*

_*ये पहला मलऊन इब्लीस था जिसने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को बशर और अपने आपको उनसे बेहतर कहा और फिर उसका क्या अंजाम हुआ ये सारी दुनिया जानती है*_

*कंज़ुल ईमान* - तो उसकी (हज़रत नूह अलैहिस्सलाम) क़ौम के जिन सरदारों ने कुफ्र किया बोले कि ये तो नहीं मगर तुम जैसा आदमी

*📚 पारा 18,सूरह मोमेनून,आयत 23*

*कंज़ुल ईमान* - (फिरऔनी बोले) क्या हम ईमान ले आयें अपने जैसे 2 आदमियों पर (यानि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम व हज़रत हारून अलैहिस्सलाम)

*📚पारा 18,सूरह मोमेनून,आयत 47*

*कंज़ुल ईमान* - उनके रसूल रौशन दलील लाते तो बोले कि क्या आदमी हमें राह बतायेंगे तो काफ़िर हुए

*📚पारा 28,सूरह तग़ाबुन,आयत 6*

*कंज़ुल ईमान* - तुम तो हम जैसे आदमी हो (यानि हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम)

*📚 पारा 19,सूरह शोअरा,आयत 154*

_*ये क़ुर्आन की चन्द आयतें थीं जिनसे साफ साफ ज़ाहिर होता है कि अगर चे अम्बिया अलैहिस्सलाम ज़ाहिर सूरत बशरी लेकर दुनिया में आयें मगर उनको बशर कहना या अपनी तरह कहना या उनकी तौहीन करना कुफ्र है और क़ुर्आन से साबित है,अब एक हदीसे पाक पढ़ लीजिये इन शा अल्लाह तआला सारा शक़ दूर हो जायेगा*_

*हदीस* - हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने अपने सहाबियों को विसाल के रोज़े (यानि बगैर सहरी किये और बगैर अफ्तार किये रोज़े पर रोज़ा) रखने को मना फरमाया तो सहाबा ने अर्ज़ की कि या रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम आप तो सोमो विसाल रखते हैं तो आप सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि *तुममे से मेरी मिस्ल कौन है*

*📚 बुखारी,जिल्द 1,सफह 745*

_*अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर,सोचिये जब सिद्दीके अकबर उनके मिस्ल नहीं हैं फारूक़े आज़म उनके मिस्ल नहीं हैं ज़ुन्नूरैन उनके मिस्ल नहीं हैं फातहे खैबर उनके मिस्ल नहीं हैं अरे जब ये सब उनके मिस्ल नहीं हैं तो दुनिया में कौन उनकी मिस्ल बन सकता है,अल्लाह कहता है कि अम्बिया को अपनी तरह बशर कहने वाला काफिर है हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम खुद अपनी ज़बानी फरमाते हैं कि तुममें से कोई मेरी तरह नहीं है मगर ये वहाबी कहता है कि हुज़ूर हमारी तरह हैं मआज़ अल्लाह,अब आप खुद फैसला करें कि एक मुसलमान अल्लाह की माने उसके रसूल की माने या इन बदबख्त वहाबियों की माने,हालांकि जिन्होंने हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को तो अपनी तरह बशर कहा मगर उन्ही कमज़र्फों को अपने इमाम और पेशवा को इंसान मानने में तकलीफ हो रही है,ये नबी से दुश्मनी नहीं है तो और क्या है खुद पढ़ लीजिये*_

*वहाबी* - ये (हुसैन अहमद टांडवी) इंसान हैं या कोई फरिश्ता,नहीं नहीं मेरा ज़िद्दी क़ल्ब इसको भी तस्लीम करने पर आमादा ना हुआ कि वो अनवारे क़ुदसिया का सर चश्मा फरिश्ता हो सकता है तो फिर आखिर वो हैं क्या

*📚नज़रे अक़ीदत,सफह 5*

*ये हैं इन बे ईमानो का दीनों मज़हब जहां सारे जहां की रहमत नबियों के नबी हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को तो अपनी तरह बशर कह सकते हैं मगर एक खबीस टांडवी को फरिश्ता मानने में भी शक हो रहा है क्योंकि वो तो फरिश्तों से भी बढ़कर है मआज़ अल्लाह,खैर वापस लौटते हैं*_

*कंज़ुल ईमान* - तो फरमाओ ज़ाहिर सूरत बशरी में तो मैं तुम जैसा हूं

*📚पारा 16,सूरह कहफ,आयत 110*

*तो फिर इसका क्या मतलब है*

*जारी रहेगा.....*



🕋✭ ﺑِﺴْــــــــــــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّحْمٰنِﺍلرَّﺣِﻴﻢ ✭🕌
*(फिक़्ह हनफी) पोस्ट-5*

*कंज़ुल ईमान* - तो फरमाओ ज़ाहिर सूरत बशरी में तो मैं तुम जैसा हूं

*📚पारा 16,सूरह कहफ,आयत 110*

*इसकी कई शरहें हैं 2 का ज़िक्र यहां करता हूं*

1. पहली तो ये कि हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को मौला ने चन्द मोजज़े अता फरमाये थे जैसे कि 1. आपका गहवारे में बोलना 2.नुज़ूले दस्तर ख्वान 3. दस्ते शिफा 4.मिटटी के परिन्द बनाकर उसमे फूंक मारकर जिंदा करके उसे उड़ा देना,इन्ही चंद मोजज़ों को देखकर आपके मानने वाली क़ौम गुमराह हो गई और आपको इब्नुल्लाह यानि खुदा का बेटा कहने लगी मआज़ अल्लाह हालांकि आप अल्लाह के नबी हैं ये बात उनको हमेशा बताते रहे मगर उन जाहिलों की समझ में नहीं आया,अब ज़रा गौर कीजिये की चंद मोजज़े देखकर जिन इंसानों का ये हाल हो गया हो अगर वो हुज़ूर के मोजज़ों की तादाद को मुलाहज़ा करते तो क्या करते,सिर्फ क़ुर्आन मुक़द्दस आपका तन्हा वो मोजज़ा है जिसके बारे में अल्लामा काज़ी अयाज़ रहमतुल्लाहि तआला अलैही फरमाते हैं कि

कलाम उल्लाह में बा ऐतबारे बलाग़त 7000 से कुछ ज़्यादा मोजज़े हैं

*📚मोजज़ाते रसूले करीम,सफह 23*

_*और ज़ाहिर है कि क़ुर्आन आपका मोजज़ये अज़ीम है फिर आप तो सर से लेकर पैर तक मोजज़ा ही मोजज़ा हैं और आपकी ज़ात से तो ला महदूद मोजज़े साबित हैं पर कुछ ऐसे बड़े मोजज़े सादिर हुये जैसे कि शक़्क़ुल क़मर और वाक़िया मेराज इन्हें देखकर कोई भी इंसान आपकी ज़ात में नुबूवत से आगे बढ़ सकता था जिसकी बिना पर मौला तआला ने आपकी ज़बाने तर्जुमान से खुद कहलवाया कि "ऐ महबूब आप फरमा दो कि मैं इंसान हूं" यानि जो इंसान होगा वो ज़ाहिर है कि खुदा नहीं हो सकता लिहाज़ा यहां इस बात का रद्द करने के लिए कहलवाया गया कि आप खुदा नहीं बल्कि इंसान हैं,ना कि आपने ये कहा कि अब मुझे भी अपनी तरह इंसान कहा करो मआज़ अल्लाह इसका जवाब मैं पिछली पोस्ट में दे आया कि आप खुद फरमाते हैं कि "तुममें कोई मेरी तरह नहीं है"*_

*2. कंज़ुल ईमान* - मेरा रब वो है जो मारता है और जिलाता है बोला मैं मारता और जिलाता हूं तो इब्राहीम ने फरमाया कि तो अल्लाह सूरज लाता है पूरब से तू उसको पश्चिम से ले आ

*📚पारा 2,सूरह बक़र,आयत 258*

_*वाक़िया युं है कि जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम नमरूद को समझाने की लिए उसके पास गए तो उससे बोले कि मेरा रब वो है जो मारता है और जिलाता है,इस बात का नमरूद ने गलत मतलब निकाला और कहने लगा कि ये तो मैं भी करता हूं और तब उसने दो कैदियों को बुलवाया एक को फांसी की सज़ा होने वाली थी और दूसरे को आज ही रिहाई मिलने वाली थी तो जिसको रिहाई मिलने वाली थी उसको सूली दे दी और जिसको मौत की सज़ा थी उसको रिहा कर दिया और बोला देखो मैं भी मारता हूं और जिलाता हूं,उसकी ये अहमकाना दलील सुनकर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने कहा कि मेरा रब वो है जो मशरिक से सूरज निकालता है और मग़रिब में डुबोता है अगर तू खुदा है तो मग़रिब से सूरज को निकालकर दिखा,वो सूरज को मग़रिब से ना तो निकाल सका और ना ही निकाल सकता था बात खत्म हो गयी और हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम वापस आ गये,अब सवाल यहां ये उठता है कि अगर नमरूद सूरज को पश्चिम से निकाल देता तो क्या होता क्योंकि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम तो दलील क़ायम कर चुके थे कि अगर तू खुदा है तो सूरज को पश्चिम से निकालकर दिखा,नमरूद तो नहीं निकाल सका मगर सूरज पश्चिम से निकला ज़रूर,कब निकला याद कीजिये मक़ामे सहबा में मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की गोद में सर रखकर सरकार दो आलम सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम सो रहे थे मौला अली ने अब तक अस्र की नमाज़ नहीं पढ़ी थी यहां तक कि सूरज डूब गया और आपकी नमाज़ क़ज़ा हो गयी,आपकी आंखों से चन्द क़तरात आंसुओं के मेरे सरकार के रूखे ज़ेबा पर गिरे और आपकी आंख खुली आपने उनके रोने का सबब पूछा और मामला पता होने पर आपने डूबा हुआ सूरज मग़रिब से निकाल दिया कि अली अपनी नमाज़ अदा फरमा लें,अब बताइये हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के मुताबिक खुदा वो होगा जो सूरज को पश्चिम से निकालेगा अब सूरज तो पश्चिम से निकला मगर मेरे आक़ा हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम हरगिज़ हरगिज़ हरगिज़ खुदा नहीं हैं इसीलिए मौला तआला ने उनकी ज़बान से कहलवाया कि ऐ महबूब आप फरमा दो कि "मैं बशर हूं कोई खुदा नहीं हूं" मगर जाहिलों से अपनी अक़्ल से क़ुर्आन का गलत मतलब निकाला और खुदा ना होने की नफी को अपनी तरह बशर होने की दलील समझ लिया*_

*कंज़ुल ईमान* - अल्लाह बहुतेरों को इससे गुमराह करता है और बहुतेरों को हिदायत अता फरमाता है

*📚पारा 1,सूरह बक़र,आयत 26*

_*अब शायद ये समझ में आ गया होगा कि हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अपने आपको बशर क्यों कहा और ये भी समझ में आ गया होगा कि क्यों लोग क़ुर्आन पढ़कर गुमराह हो जाते हैं,लिहाज़ा क़ुर्आन तो बेशक पढ़ा जाये मगर साथ ही साथ जिसका मतलब ना समझ में आये तो किसी सुन्नी आलिम व उल्मा से उसका मानी और मफहूम भी समझा जाये इसी को तक़लीद कहते हैं,एक अक़ीदे की वज़ाहत करता चलूं कि बेशक आक़ाये करीम सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम बशर हैं मगर हम जैसे नहीं है जो उन्हें अपने जैसा कहे या समझे वो खुद काफिरो मुर्तद है,इसी लिए मेरे आलाहज़रत फरमाते हैं कि*_

*अल्लाह की सर ता बा क़दम शान हैं ये*
*इन सा नहीं इंसान वो इंसान हैं ये*
*क़ुर्आन तो ईमान बताता है इन्हें*
*ईमान ये कहता है मेरी जान हैं ये*

*जारी रहेगा.....*



*इमामे आज़म*
*_आपका नाम नोअमान वालिद का नाम साबित और कुन्नियत अबू हनीफा है,आप 80 हिजरी में पैदा हुए_*

*📚 खैरातुल हिसान,सफह 70*

*_हज़रत शेख अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि आपका ज़िक्र तौरैत शरीफ में भी यूं मौजूद है कि "मुहम्मद सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की उम्मत में एक नूर होगा जिसकी कुन्नियत अबू हनीफा होगी_*

*📚 तआर्रुफ फिक़ह व तसव्वुफ,सफह 225*

*_खुद हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि "मेरी उम्मत में एक मर्द पैदा होगा जिसका नाम अबू हनीफा होगा वो क़यामत में मेरी उम्मत का चराग़ है_*

*📚 मनाक़िबिल मोफिक,सफह 50*

*_बुखारी व मुस्लिम शरीफ की हदीसे पाक है हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि "अगर ईमान सुरैया के पास भी होता तो फारस का एक शख्स उसे हासिल कर लेता" इस हदीस की शरह में हज़रत जलाल उद्दीन सुयूती रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि उस शख्स से मुराद इमामे आज़म अबू हनीफा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हैं_*

*📚 तबयिदुल सहीफा,सफह 7*

*सुरैया चौथे आसमान पर एक सितारे का नाम है*

*_आप ताबईन इकराम के गिरोह से हैं क्योंकि आपने कई सहाबा इकराम की ज़ियारत की है,बाज़ ने 20 सहाबी से मुलाक़ात का ज़िक्र किया और बाज़ ने 26 और भी इख्तिलाफ पाया जाता है,मगर इसमें कोई इख्तेलाफ नहीं कि आपकी सहाबियों से मुलाक़ात ना हुई हो क्योंकि खुद बराहे रास्त आपने 7 सहाबा इकराम से हदीस सुनी है जिनमे सबसे अफज़ल सय्यदना अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हैं,फिर अब्दुल्लाह बिन हारिस,जाबिर बिन अब्दुल्लाह,मअकल बिन यसार,वासला बिन यस्क़ा,अब्दुल्लाह बिन अनीस,आयशा बिन्त अजरद रिज़वानुल्लाहे तआला अलैहिम अजमईन शामिल हैं_*

*📚 बे बहाये इमामे आज़म,सफह 62*

*_हज़रत दाता गंज बख्श लाहौरी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु लिखते हैं कि एक मर्तबा आपने गोशा नशीन होने का इरादा फरमा लिया था,रात को हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ख्वाब में तशरीफ लाये और फरमाया कि "ऐ अबू हनीफा तेरी ज़िन्दगी अहयाये सुन्नत के लिए है तू गोशा नशीनी का इरादा तर्क कर दे" तो आपने ये इरादा तर्क कर दिया_*

*📚 कशफुल महजूब,सफह 162*

*_क़ुरान मुक़द्दस को 1 रकात में पढ़ने वाले 4 हज़रात हैं जिनमे हज़रत उसमान ग़नी हज़रत तमीम दारी हज़रत सईद बिन जुबैर और हमारे इमाम इमामे आज़म रिज़वानुल्लाहे तआला अलैहिम अजमईन हैं_*

*📚 क्या आप जानते हैं,सफह 211*

*_इमाम ज़हबी रहमतुल्लाह तआला अलैही फरमाते हैं कि आपका पूरी रात इबादत करना तवातर से साबित है और 30 सालों तक 1 रकात में क़ुरान पढ़ते रहे और 40 सालों तक ईशा के वुज़ू से फज्र अदा की,आप रमज़ान में 61 कलाम पाक खत्म किया करते थे एक दिन में एक रात में और एक पूरे महीने की तरावीह में,आपने 55 हज किये_*

*📚 इमामे आज़म,सफह 75*

*_आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि अगर रूए ज़मीन के आधे इंसानो के साथ इमामे आज़म की अक़्ल को तौला जाए तो इमामे आज़म की अक़्ल भारी होगी_*

*📚 फतावा रज़वियह,जिल्द 1,सफह 123*

*_आप जब भी रौज़ए अनवर पर हाज़िरी देते और सलाम पेश करते तो जाली मुबारक से आवाज़ आती व अलैकुम अस्सलाम या इमामुल मुस्लेमीन_*

*📚 तज़किरातुल औलिया,सफह 165*

*_फिक़ह हनफी पर ऐतराज़ करने वालों और हर बात में बुखारी बुखारी की रट लगाने वालो देखो कि इमाम बुखारी ने इल्म किससे सीखा,इमाम बुखारी के उस्ताज़ हैं इमाम अहमद बिन हम्बल उनके उस्ताज़ हैं इमाम शाफई उनके उस्ताज़ हैं इमाम मुहम्मद उनके उस्ताज़ हैं इमाम अबू यूसुफ और आप के उस्ताज़ हैं इमामुल अइम्मा इमामे आज़म रिज़वानुल्लाहे तआला अलैहिम अजमईन_*

*📚 इमामे आज़म,सफह 195*

*आपसे बेशुमार करामतें ज़ाहिर है और बेशुमार वाक़ियात किताबों में मौजूद है,कभी करामत के टापिक में बयान करूंगा इन शा अल्लाह*

*_आपका विसाल 2 शाबान 150 हिजरी में हुआ,6 बार आपकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ी गयी और क़ब्र पर तो 20 दिन तक नमाज़ होती रही,आपके विसाल पर जिन्नात भी रो पड़े थे_*

*📚 इमामे आज़म,सफह 132*





*_मुताफर्रिक़ात_* *पोस्ट-1*
*मच्छर को रब ने बड़े बड़े मग़रूर बादशाहों का ग़ुरूर तोड़ने के लिए पैदा किया है,नमरूद ने हज़रत इब्राहीम खलील उल्लाह को आग में डालने के लिए जो आग जलवाई थी उसकी लपटें कई 100 फीट ऊपर तक जाती थी,उसी आग की तपिश से 1 मच्छर के पर व पैर जल गए,इस मच्छर ने रब की बारगाह में दुआ कि तो मौला ने फरमाया कि ग़म ना कर मैं तेरे ज़रिये ही नमरूद को हलाक करवाऊंगा,ये मच्छर 1 दिन नमरूद की नाक के जरिए उसके दिमाग़ में घुस गया और@ उसको अन्दर ही अन्दर काटना शुरू किया,जब वो काटता तो नमरूद अपने सर पर चप्पलों से मारा करता,वो मच्छर 400 साल तक नमरूद के दिमाग़ में घुसा रहा और उसको इसी तरह तड़पा तड़पाकर मार डाला*

*📚 तफसीरे नईमी,जिल्द 3,सफह 68*

*कुछ लोग ऐसे हैं जिनसे क़ब्र में सवाल जवाब नही होगा 1.अम्बिया 2.सिद्दीक़ीन 3.शुहदा 4.मुजाहिद 5.मोमिन के छोटे बच्चे 6.जो रोज़ाना रात में सूरह मुल्क पढ़े 7.जुमे की रात या दिन मे मरने वाला 8.जो मर्ज़े मौत मे सूरह इख्लास पढ़े 9.रमज़ान मे मरने वाला 10.ताऊन के ज़माने में मरने वाला*

*📚 दुर्रे मुख्तार,जिल्द 1,सफह 596*

*तंदरुस्त कमाने वाले शख्स को भीख देना हराम है गुनाह है*

*📚 फतावा रज़वियह,जिल्द 4,सफह 468*

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि ग़ीबत ज़िना से बदतर है और इसका कफ्फारह ये है कि जिसकी ग़ीबत की उसके लिए युं अस्तग्फ़ार करे अल्लाहुम्मग़ फिर लना वलाहु*

*📚 बहारे शरियत,हिस्सा 16,सफह 145*

*अल्लाह तआला ने उन औरतों पर लानत फरमाई जो मर्दों की शक्ल इख्तियार करती हैं और उन मर्दों पर लानत फरमाई जो औरतों की शक्ल इख्तियार करते हैं*

*📚 बुखारी शरीफ,जिल्द 2,सफह 874*
*📚 तिर्मिज़ी शरीफ,जिल्द 2,सफह 102*
*📚 कंज़ुल उम्माल,जिल्द 16,सफह 384*
*📚 अत्तर्ग़ीब वत्तर्हीब,जिल्द 3,सफह 104*

*_इस हदीसे पाक से वो औरतें सबक़ लें जो मर्दों की तरह जींस,शर्ट,टी शर्ट और जूते पहनती हैं मर्दों की तरह ही तंग कपड़े पहनती हैं और उन्ही की तरह छोटे छोटे बाल रखती हैं चाल ढ़ाल भी मर्दों की तरह ही इख्तियार करती हैं,और वो मर्द भी सबक़ लें जो औरतों की तरह कान मे बालियां हाथों मे कड़ा (breslet) पहनते हैं औरतों की तरह ही लम्बे लम्बे बाल रखते हैं और चाल ढ़ाल भी औरतों सी इख्तियार करते हैं,य वो मर्द जो पूरी तरह हिजड़े बनकर घूमते हैं,ऐसे तमाम मर्द व औरत पर अल्लाह व उसके रसूल सलल्ललाहो तआला अलैहि वसल्लम की लानत है_*



*_मुताफर्रिक़ात_* *पोस्ट-2*
*वैसे तो नमाज़े जनाज़ा की इब्तिदा हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के ज़माने से है जैसा कि रिवायत में है कि आपकी नमाज़े जनाज़ा फरिश्तों ने पढ़ी और इमाम हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम हुए मगर इस्लाम में इसकी मशरूईयत हिजरत के तक़रीबन 9 महीने बाद हुई और सबसे पहला जनाज़ा सहाबिये रसूल हज़रत असद बिन जुरारह का पढ़ा गया जिसको खुद हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने पढ़ाया*

📚 फतावा रज़विया,जिल्द 2,सफह 467

*मौत व हयात दोनों वुजूदी हैं जब सारे जन्नती जन्नत में और सारे जहन्नमी जहन्नम में जा चुके होंगे कि अब कोई जहन्नम से बाहर निकलने वाला ना होगा तो मौत को मेंढे की शक्ल में जन्नत व दोज़ख के दरमियान लाया जायेगा और उसे हज़रत यहया अलैहिस्सलाम अपने हाथों से ज़िबह फरमायेंगे फिर उसके बाद कोई भी नहीं मरेगा*

📚 शराहुस्सुदूर,सफह 15

*अज़ान के बाद तसवीब यानि सलात पढ़ना 781 हिजरी से रायज हुआ*

📚 दुर्रे मुख्तार,जिल्द 1,सफह 273

*ज़मीन का वो हिस्सा जो मेरे आक़ा सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के जिस्म से मिला हुआ है यानि रौज़ए अनवर वो काबा मुअज़्ज़मा बल्कि अर्शे आज़म से भी अफज़ल है*

📚 ज़रक़ानी,जिल्द 1,सफह 324

*रिवायत में आता है कि हिसाब किताब शुरू होने से पहले मौला निदा करवायेगा कि वो लोग अलग हो जायें जो रातों को अपनी करवटें बिस्तर से अलग रखते थे यानि तहज्जुद पढ़ने वाले,जब वो लोग अलग हो जायेंगे तो उनसे कहा जायेगा कि तुम लोग जन्नत में चले जाओ फिर उसके बाद सबका हिसाब किताब शुरू होगा,ये तादाद में 4 अरब 90 करोड़ लोग होंगे उनके साथ मौला 3 जमाअत और भेजेगा जिसकी तदाद अल्लाह और उसका रसूल सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ही जाने*

📚 बहारे शरीयत,हिस्सा 1,सफह 39

*चांद ज़मीन से 4 गुना छोटा है और 3.5 लाख किलोमीटर से भी ज़्यादा दूरी पर है और सूरज ज़मीन से तकरीबन 13 लाख गुना बड़ा है और 15 करोड़ किलोमीटर से भी ज़्यादा दूरी पर है*

📚 इस्लाम और चांद का सफर,सफह 51-55

*समंदल नाम का एक कीड़ा है जो कि आग में ही पैदा होता है तुर्की में उसके ऊन की तौलिया वगैरह बनाई जाती है जो कि गन्दी होने पर आग में डाल कर ही साफ की जाती है*

📚 खज़ाएनुल इरफान,पारा 15,6

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि दुनिया मोमिन के लिए कैदखाना और काफिर के लिए जन्नत है*

📚 अनवारुल हदीस,सफह 432

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम ने फरमाया कि ग़ीबत ज़िना से बदतर है और इसका कफ्फारह ये है कि जिसकी ग़ीबत की उसके लिए युं अस्तग्फ़ार करे 'अल्लाहुम्मग़ फिर लना वलाहु' اللهم اغفر لنا وله*

📚 बहारे शरियत,हिस्सा 16,सफ़ह 145

*जो शख्स नमाज़ ना पढ़े और अलग अलग कामों के लिये वज़ीफा पढ़ता रहे तो क़यामत के दिन उसका वज़ीफा उसके मुंह पर मार दिया जायेगा*

📚 फतावा रज़वियह,जिल्द 3,सफ़ह 82

*किसी ने छिपकर गुनाह किया लोगों ने उससे पूछा तो वो इनकार कर सकता है,कि गुनाह को ज़ाहिर करना भी गुनाह है,इसी तरह ये किसी मुसलमान का ऐब जानता है अगर कोई पूछे तो इंकार कर सकता है ये झूट नहीं होगा*

📚 बहारे शरियत,हिस्सा 16,सफ़ह 137

*बन्दा जब कोई नेकी करता है तो नेकी लिखने वाला फ़रिशता उसे फौरन लिख लेता है मगर जब बन्दा गुनाह करता है उसे 6 घंटो तक नही लिखा जाता कि शायद वो अपने गुनाह से तौबा करले या कोई नेकी ही करले जो उसके गुनाह को मिटा दे मगर जब 6 घंटो तक बन्दा न तो कोई नेकी ही करता है और ना ही तौबा,तब फ़रिश्ते उस गुनाह को लिख देते है मगर जब कभी भी बन्दा उस गुनाह से तौबा कर लेता है तो वो गुनाह मिटा दिया जाता है*

📚 तफ़सीरे अज़ीज़ी,पारा 30,सफ़ह 88



*मुताफर्रिकात* *पोस्ट-3*
*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि ज़मीन का वो टुकड़ा जो मेरी कोठरी और मेंबर के दरमियान है वो जन्नत के बागों में से एक बाग़ है*

*📚 बुखारी,जिल्द 1,सफह 253*

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि उस मुसलमान को जहन्नम की आग नहीं छू सकेगी जिसने ईमान की हालत में मुझे देखा या मुझे देखने वालों को देखा*

*📚 मिश्कात,जिल्द 2,सफह 554*

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि सिरका बेहतरीन सालन है*

*📚 मिश्कात,जिल्द 2,सफह 366*

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि उहद पहाड़ हमसे मुहब्बत करता है और हम उहद पहाड़ से मुहब्बत करते हैं*

*📚 बुखारी,जिल्द 1,सफह 404*

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जो नेक औलाद अपने वालिदैन को मुहब्बत भरी नज़र से देखेगा तो उसे 1 हज मक़बूल का सवाब मिलेगा,तो लोगों ने अर्ज़ किया कि या रसूल अल्लाह ﷺ अगर कोई 100 मर्तबा देखे तो तो हुज़ूर फरमाते हैं कि अल्लाह बहुत बड़ा है अल्लाह बहुत पाक है यानि बेशक अल्लाह के खज़ाने में कोई कमी नहीं है उसको 100 हज का सवाब अता करेगा*

*📚 जवाहिरुल हदीस,सफह 62*

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जिस चीज़ की कसरत नशा पैदा करे उसका ज़र्रा बराबर भी इस्तेमाल हराम है*

*📚 अत्तम्हीद,जिल्द 1,सफह 252*

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जो शख्स जानबूझकर नमाज़ छोड़ दे तो वो अल्लाह के अमान से निकल गया*

*📚 अलइतहाफ,जिल्द 6,सफह 392*

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जन्नत में जाने वाले ज़्यादातर गरीब लोग होंगे और जहन्नम में ज़्यादातर औरतें होंगी*

*📚 मुस्लिम,हदीस 6833*

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जब कसम खाने की ज़रूरत पड़े तो अल्लाह की कसम खाओ वरना चुप रहो*

*📚 तिर्मिज़ी,हदीस 1534*

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि काला खिज़ाब लगाना हराम है जो ऐसा करेगा वो जन्नत की महक भी ना पायेगा*

*📚 मुसनद अहमद,जिल्द 1,सफह 273*

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि सबदे बेहतरीन रिज़्क़ अपने हाथ से कमाकर खाना है और सच्चा व ईमानदार ताजिर क़यामत के दिन शहीद के साथ होगा*

*📚 इब्ने माजा,जिल्द 1,सफह 594*




*मुताफर्रिकात* *पोस्ट-4*
*इब्लीस* - पहले आसमान पर इब्लीस का नाम आबिद दूसरे पर ज़ाहिद तीसरे पर आरिफ चौथे पर वली पांचवे पर तक़ी छठे पर खाज़िन सातवे पर अज़ाज़ील और लौहे महफूज़ में इब्लीस था,ये 40000 साल तक जन्नत का खज़ांची रहा,14000 साल तक अर्शे आज़म का तवाफ करता रहा,80000 साल तक फरिश्तो के साथ रहा जिसमे से 20000 साल तक फरिश्तो का वाज़ो नसीहत करता रहा और 30000 साल कर्रोबीन फरिश्तो का सरदार रहा और 1000 साल रूहानीन फरिश्तो का सरदार रहा,इब्लीस ने 50000 साल तक अल्लाह की इबादत की यहां तक कि अगर उसके सजदों को जमीन पर बिछाया जाए तो तो एक बालिश्त जगह भी खाली ना बचे,मुअल्लमुल मलाकूत होने और लाखों बरस इबादत करने के बावजूद सिर्फ एक सज्दा हज़रते आदम अलैहिस्सलाम को ना करने की बिना पर उसको रांदये बरगाह कर दिया गया सोचिये कि जब लाखों बरस इबादत करने वाला हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की तौहीन करने की बनिस्बत लाअनती हो गया तो जो लोग नबियों के सरदार हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम की तौहीन कर रहे हैं उनका क्या होगा,हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को उसके एक सजदा ना करने में 4 कुफ्र थे मुलाहज़ा फरमाये

1. उसने कहा कि तूने मुझे आग से बनाया और इसको मिटटी से मैं इससे बेहतर हूं,इसमें मलऊन का मक़सद ये था कि तू बेहतर को अदना के आगे झुकने का हुक्म दे रहा है जो कि ज़ुल्म है,और उसने ये ज़ुल्म की निस्बत खुदा की तरफ की जो कि कुफ्र है

2. एक नबी को हिकारत से देखा,और नबी को बनज़रे हिक़ारत देखना कुफ्र है

3. नस के होते हुए भी अपना फलसफा झाड़ा,मतलब ये कि जब हुक्मे खुदा हो गया कि सज्दा कर तो उस पर अपना क़ौल लाना कि मैं आग से हूं ये मिटटी से है ये भी कुफ्र है

4. इज्माअ की मुखालिफत की,यानि जब सारे के सारे फरिश्ते झुक गए तो इसको भी झुक जाना चाहिए था चाहे बात समझ में आये या नहीं क्योंकि इज्माअ की मुखालिफत भी कुफ्र है

📚 तफसीरे सावी,जिल्द 1,सफह 22
📚 तफसीरे जमल,जिल्द 1,सफह 50
📚 ज़रकानी,जिल्द 1,सफह 59
📚 नुज़हतुल मजालिस,जिल्द 2,सफह 34

*नमरूद* - अब तक 4 ऐसे बादशाह गुज़रे हैं जिन्होंने पूरी दुनिया पर हुक़ूमत की है 2 मोमिन हज़रत सिकंदर ज़ुलक़रनैन और हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम और 2 काफ़िर नमरूद और बख्ते नस्र,और अनक़रीब पांचवे बादशाह हज़रत इमाम मेंहदी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु होंगे जो पूरी दुनिया पर हुक़ूमत करेंगे,नमरूद ने 400 साल हुक़ूमत की,नमरूद के पास कुछ तिलिस्माती चीजें थी जिसकी बिना पर उसने खुदाई का दावा किया

1. तांबे का एक बुत था,जब भी कोई चोर या जासूस शहर में दाखिल होता तो उस बुत से आवाज़ आती जिससे वो पकड़ा जाता

2. एक नक़्क़ारा था,जब किसी की कोई चीज़ ग़ुम हो जाती तो उस पर चोब मारा जाता तो वो गुमशुदा चीज़ का पता बताती

3. एक आईना था,अगर कोई शख्स ग़ुम हो जाता तो उसमे नज़र आ जाता कि इस वक़्त कहां पर है

4. एक दरख़्त था,जिसके साए में लोग बैठते और उसका साया बढ़ता जाता यहां तक कि 1 लाख लोग बैठ जाते थे मगर जैसे ही 1 लाख से 1 भी ज़्यादा होता तो साया हट जाता और सब धूप में आ जाते

5. एक हौज़ था,जिससे मुकदमे का फैसला होता युं कि मुद्दई और मुद्दआ अलैह दोनों को उस हौज़ में उतारा जाता जो सच्चा होता उसके नाफ़ से नीचे पानी रहता और झूठा उसमे डुबकी खाता

📚 अलइतक़ान,जिल्द 2,सफह 178
📚 तफ़सीरे नईमी,जिल्द 1,सफह 677

*औज बिन अनक़* - औज इसका नाम था और अनक़ इसकी मां का नाम जो कि हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की बेटी थीं,ये हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की हयात में ही पैदा हुआ और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के ज़माने तक रहा,इसकी उम्र 3600 साल हुई,इसका क़द 20300 गज़ था यानि तक़रीबन 60900 फिट लम्बा बादल इसके सर से लगता था,इसकी उंगलियों की लंबाई 9 फिट और चौड़ाई 6 फिट,तूफाने नूह का पानी ज़मीन के सबसे ऊंचे पहाड़ से भी 40 गज़ ऊपर था मगर वही पानी इसके घुटनो तक भी नहीं पहुंचा था,ये समंदर में हाथ डालकर मछलियां पकड़ता और उन्हें सूरज की गर्मी में सेंक कर खाता,जब अपने शहर वालों से खफा होता तो उनपर पेशाब कर देता जिससे वो डूब जाते थे,मूसा अलैहिस्सलाम ने इसको इस तरह क़त्ल किया कि आपके हाथ में जो असा था वो 10 हाथ लम्बा था खुद आपका क़द मुबारक भी 10 हाथ था और आपने 10 हाथ ऊपर उछल कर उसको असा मारा जो कि उसके टखनों में लगा और वो मर गया

📚 माअ़रेजुन नुबुव्वत,जिल्द 1,सफह 73
📚 क्या आप जानते हैं,सफह 80



_*मुताफर्रिकात*_*पोस्ट-5*
_*कंज़ुल ईमान - और वादा पूरा करो कि बेशक क़यामत के दिन वादे की पूछ होगी*_

_*📚 पारा 15, सूरह असरा, आयत 34*_

_*कंज़ुल ईमान - झूट और बोहतान वही बांधते हैं जो अल्लाह की आयतों पर ईमान नहीं रखते*_

_*📚 पारा 14, सूरह नहल, आयत 105*_

_*कंज़ुल ईमान - ऐ ईमान वालो अपने बाप और अपने भाइयों को दोस्त ना रखो अगर वो ईमान पर कुफ्र पसंद करें और फिर जो तुममें से उनसे दोस्ती रखेगा तो वही लोग सितमगर हैं*_

_*📚 पारा 10, सूरह तौबा, आयत 23*_

_*कंज़ुल ईमान - ऐ ईमान वालो अपने घरों के सिवा और घरों में ना जाओ जब तक कि इजाज़त न ले लो और उन्हें सलाम ना कर लो*_

_*📚 पारा 18, सूरह नूर, आयत 27*_

_*कंज़ुल ईमान - ज़िना के पास ना जाओ यक़ीनन वो बे हयाई और बहुत बुरी राह है*_

_*📚 पारा 15, बनी इस्राइल, आयत 32*_

_*कंज़ुल ईमान - ऐ ईमान वालों तुम्हें हलाल नहीं कि औरतों के वारिस बन जाओ ज़बरदस्ती.......... और उनसे अच्छा बर्ताव करो फिर अगर वो तुम्हें पसंद ना आयें तो क़रीब है कि कोई चीज़ तुम्हें पसंद ना हो और अल्लाह उसमे बहुत भलाई रखे*_

_*📚 पारा 5, सूरह निसा, आयत 19*_

_*कंज़ुल ईमान - अगर ज़मीन में जितने पेड़ हैं सब कलमें हो जायें और समन्दर उसकी स्याही हो उसके पीछे 7 समन्दर और हों तो अल्लाह की बातें खत्म ना होगी, बेशक अल्लाह इज़्ज़तो हिकमत वाला है*_

_*📚 पारा 21, सूरह लुक़मान, आयत 27*_

_*कंज़ुल ईमान - हक़ मान मेरा और अपने मां बाप का*_

_*📚 पारा 21, सूरह लुक़मान, आयत 14*_

_*कंज़ुल ईमान - ऐ लोगों इल्म वालों से पूछो अगर तुम्हे इल्म ना हो*_

_*📚 पारा 17, सूरह अम्बिया, आयत 7*_

_*कंज़ुल ईमान - ऐ ईमान वालो ना मर्द मर्दों से हंसे अजब नहीं कि वो उन हंसने वालों से बेहतर हों और ना औरतें औरतों से दूर नहीं कि वो उन हंसने वालों से बेहतर हों, और आपस में तअना ना करो और एक दूसरे के बुरे नाम ना रखो, क्या ही बुरा नाम है मुसलमान होकर फासिक़ कहलाना, और जो तौबा ना करे तो वही ज़ालिम है*_

_*📚 पारा 26, सूरह हुजरात, आयत 11*_

_*कंज़ुल ईमान - मुसलमान मर्दों को हुक्म दो कि अपनी निगाहें कुछ नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें ये उनके लिए बहुत सुथरा है. बेशक अल्लाह को उनके कामों की खबर है और मुसलमान औरतों को हुक्म दो कि अपनी निगाहें कुछ नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें और अपने दुपट्टे अपने गिरेहबानों पर डाले रहें और अपना श्रंगार ज़ाहिर ना करें मगर अपने शौहरों पर या अपने बाप पर या शौहरों के बाप या अपने बेटे या शौहरों के बेटे या अपने भाई या अपने भतीजे या अपने भांजे या दीन की औरतें या अपनी कनीज़ें जो अपने हाथ की मिल्क हो या वो नौकर जो शहवत वाले ना हों या वो बच्चे जिन्हें औरतों के शर्म की चीज़ों की खबर नहीं, और औरतें ज़मीन पर ज़ोर से पांव ना रखें कि उनका छिपा हुआ श्रंगार जान लिया जाए*_

_*📚 पारा 18, सूरह नूर, आयत 30-31*_

_*कंज़ुल ईमान - अल्लाह की शान ये नहीं है कि ऐ आम लोगों तुम्हे ग़ैब का इल्म दे हाँ अल्लाह चुन लेता है अपने रसूलों में से जिसे चाहे*_

_*📚 पारा 4, सूरह आले इमरान, आयत 179*_

_*कंज़ुल ईमान - खराबी है उन नमाज़ियों के लिये जो अपनी नमाज़ से बे ख़बर है वक़्त गुज़ार कर पढ़ने उठते हैं*_

_*📚 पारा 30, सूरह माऊन, आयत 4*_

_*कंज़ुल ईमान - और तुम्हें जो मुसीबत पहुंची वो इसके सबब से है जो तुम्हारे हाथों ने कमाया और बहुत कुछ तो वो माफ फरमा देता है*_

_*📚 पारा 25, सूरह शूरा, आयत 30*_




*वसीला*
_*वस्ले मौला चाहते हो तो वसीला ढुंड लो*_
_*बे वसीला नज्दीयों वहाबीयों हरगीज़ खुदा मिलता नही*_

*अत्तारिफात सफह 225 पर वसीला का मायने ये बयान किया गया है कि "जिस के ज़रिये रब का क़ुर्ब व नज़दीकी हासिल की जाये उसे वसीला कहते हैं" बेशक अम्बिया व औलिया का वसीला लगाना उनकी ज़िन्दगी में भी और बाद वफात भी बिला शुबह जायज़ है और क़ुर्आनो हदीस में बेशुमार दलायल मौजूद हैं,मुलाहज़ा फरमायें मौला तआला क़ुर्आन मुक़द्दस में इरशाद फरमाता है कि*

*कंज़ुल ईमान* - ऐ ईमान वालो अल्लाह से डरो और उसकी तरफ वसीला ढूंढो

*📚 पारा 6,सूरह मायदा,आयत 35*

*वसीले के ताल्लुक़ से इससे ज़्यादा साफ और सरीह हुक्म शायद ही क़ुर्आन में मौजूद हो मगर फिर भी कुछ अन्धो को ये आयतें नहीं सूझती,खैर आगे बढ़ते हैं फिर मौला इरशाद फरमाता है कि*

*कंज़ुल ईमान* - ऐ ईमान वालो सब्र और नमाज़ से मदद चाहो

*📚 पारा 2,सूरह बक़र,आयत 153*

*इस आयत में सब्र और नमाज़ को वसीला बनाने का हुक्म है,और पढ़िये*

*कंज़ुल ईमान* - और जब वो अपनी जानो पर ज़ुल्म कर लें तो ऐ महबूब तुम्हारे हुज़ूर हाज़िर हों फिर अल्लाह से माफी चाहें और रसूल उनकी शफाअत फरमायें तो ज़रूर अल्लाह को बहुत तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान पायें

*📚 पारा 5,सूरह निसा,आयत 64*

*इस आयत को बार बार पढ़िये और इसका मफहूम समझिये,नमाज़ ना पढ़ी रोज़ा ना रखे हज ना किया ज़कात नहीं दी शराब पी चोरी की ज़िना किया झूट बोला सूद खाया रिशवत ली गर्ज़ कि कोई भी गुनाह किया मगर की तो मौला की ही नाफरमानी,तो जब तौबा करनी होगी तो डायरेक्ट अल्लाह की बारगाह में तौबा कर लेंगे फिर ये हुज़ूर की बारगाह में भेजने का क्या मतलब,मतलब साफ है कि गुनाह छोटा हो या बड़ा 1 हो या 1 करोड़ अगर माफी मिलेगी तो हुज़ूर के सदक़े में ही मिलेगी वरना बिना हुज़ूर के तवस्सुल से अगर माफी चाहता है तो सर पटक पटक कर मर जाये फिर भी मौला माफ नहीं करेगा,इस आयत की पूरी तशरीह आगे करता हूं मगर अब जबकि बात में बात निकल आई है तो पहले इसकी दलील मुलाहज़ा फरमा लें मौला तआला क़ुर्आन में फरमाता है कि*

*कंज़ुल ईमान* - फिर सीख लिए आदम ने अपने रब से कुछ कल्मे तो अल्लाह ने उसकी तौबा क़ुबूल की

*📚 पारा 1,सूरह बक़र,आयत 37*

*तफसीर* - तिब्रानी हाकिम अबु नुऐम व बैहकी ने मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि जब हज़रत आदम अलैहिस्सलाम जन्नत से दुनिया में आये तो आप अपनी खताये इज्तेहादी पर 300 साल तक नादिम होकर रोते रहे मगर आपकी तौबा क़ुबूल ना हुई,अचानक एक दिन अल्लाह ने आपके दिल में ये इल्क़अ फरमाया कि वक़्ते पैदाईश मैंने जन्नत के महलों पर उसके सुतूनों पर दरख्तों और उसके पत्तों पर हूरों के सीनो पर गुल्मां की पेशानियों पर ला इलाहा इल्लललाह मुहम्मदुर रसूल अल्लाह जल्ला शानहु व सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम लिखा देखा है,ज़रूर ये कोई बुज़ुर्ग हस्ती है जिसका नाम अल्लाह ने अपने नाम के साथ लिखा हुआ है तो आपने युं अर्ज़ की *अल्लाहुम्मा असअलोका बिहक्क़े मुहम्मदिन अन तग़फिरली यानि ऐ अल्लाह मैं तुझसे हज़रत मुहम्मद सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के सदक़े से मगफिरत चाहता हूं* तब अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने उनकी तौबा क़ुबूल फरमाई

*📚 खज़ाएनुल इरफान,सफह 7*

*सोचिये जब सारी दुनिया के बाप हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को मेरे आक़ा हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के वसीले की ज़रूरत है तो फिर हम और आप की औकात ही क्या है कि हम बिना हुज़ूर का वसीला लिए मौला से कुछ ले सकें या अपनी मग़फिरत करा सकें,इसीलिए तो मेरे आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि*

*ला वरब्बिल अर्श जिसको जो मिला उनसे मिला*
*बटती है कौनैन में नेअमत रसूल अल्लाह की*
*वो जहन्नम में गया जो उनसे मुस्तग़नी हुआ*
*है खलील उल्लाह को हाजत रसूल अल्लाह की*

सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम

*कंज़ुल ईमान* - और अगर जब वो अपनी जानों पर ज़ुल्म करें तो ऐ महबूब तुम्हारे हुज़ूर हाज़िर हों फिर अल्लाह से माफी चाहें और रसूल उनकी शफाअत फरमायें तो ज़रूर अल्लाह को बहुत तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान पायें

*📚 पारा 5,सूरह निसा,आयत 64*

*तफसीर* - आपकी वफाते अक़दस के बाद एक आराबी आपकी मज़ार पर हाज़िर हुआ और रौज़ये अनवर की खाक अपने सर पर डालकर यही आयत पढ़ी और बोला कि या रसूल अल्लाह सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम मैंने अपनी जान पर ज़ुल्म किया अब मैं आपके हुज़ूर अल्लाह से माफी चाहता हूं मेरी शफाअत कराईये तो रौज़ये अनवर से आवाज़ आई कि जा तेरी बख्शिश हो गयी

*📚 खज़ाएनुल इरफान,सफह 105*

*इतना तो बद अक़ीदा भी मानता ही है कि क़ुर्आन का हुक्म सिर्फ हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के ज़माने मुबारक तक ही महदूद नहीं था बल्कि वो क़यामत तक के लिए है तो जब क़यामत तक के लिए उसका हर कानून माना जायेगा तो ये क्यों नहीं कि हुज़ूर से शफाअत कराई जाये,क्या माज़ अल्लाह खुदा ने क़ुर्आन में ये कहा है कि मेरे महबूब की ज़िन्दगी तक ही उनकी बारगाह में जाना बाद विसाल ना जाना बिल्कुल नहीं तो जब रब ने ऐसा कोई हुक्म नहीं दिया तो फिर अपनी तरफ से दीन में हद से आगे बढ़ने की इजाज़त इनको कहां से मिली,खैर मौला हिदायत अता फरमाये अब देखिये इससे बहुत सारे मसले हल हुए*

1.सालेहीन का वसीला लेना जायज़ है

2.उनसे शफाअत की उम्मीद रखना जायज़ है

3.बाद विसाल उनकी मज़ार पर जाना जायज है

4.उन्हें लफ्ज़े *या* के साथ पुकारना जायज़ है

5.वो अपनी मज़ार में ज़िंदा हैं

6.और सबसे बड़ी बात कि वो बाद वफात भी मदद करने की क़ुदरत रखते हैं

*हदीस* - हज़रत उस्मान बिन हुनैफ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि एक अंधा आदमी हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में हाज़िर हुआ और अर्ज़ किया कि आप अल्लाह से दुआ करें कि वो मुझे आंख वाला कर दे तो आप सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि तु चाहे मैं दुआ करूं या तु चाहे तो सब्र कर कि ये तेरे लिए ज़्यादा बेहतर है,इस पर उसने दुआ करने के लिए कहा तो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि अच्छा अब वुज़ू कर 2 रकात नमाज़ पढ़ और युं दुआ कर *ऐ अल्लाह मैं तुझसे मांगता हूं और तेरी तरफ मुहम्मद सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के वसीले से तवज्जह करता हूं जो नबीये रहमत हैं और या रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम मैं हुज़ूर के वसीले से रब की तरफ इस हाजत में उम्मीद करता हूं कि मेरी हाजत पूरी हो या अल्लाह मेरे हक़ में हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की शफाअत कुबूल फरमा* वो शख्स गया और नमाज़ पढ़ी दुआ की जब वो वापस आया तो आंख वाला हो चुका था

*📚 तिर्मिज़ी,जिल्द 2,सफह 197*

*इमाम तिर्मिज़ी फरमाते हैं कि ये हदीस सही है यही हदीस निसाई इब्ने माजा हाकिम बैहकी तिब्रानी वगैरह में भी मिल जायेगी,अब मोअतरिज़ कहेगा कि नबियों का वसीला तो फिर भी लिया जा सकता है मगर औलिया का वसीला लेना जायज़ नहीं तो उसकी भी दलील मुलाहज़ा फरमायें*

*हदीस* - हज़रत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि जब जब हम पर कहत का ज़माना आता तो हज़रते उमर फारूक़े आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हज़रते अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का वसीला लगाते और युं दुआ करते कि *ऐ अल्लाह हम तेरी बारगाह नबी को वसीला बनाया करते थे तू हमें सैराब फरमाता था अब हम तेरी बारगाह में नबी के चचा को वसीला बनाते हैं* हज़रते अनस फरमाते हैं कि हर बार पानी बरसता

*📚 बुखारी,जिल्द 1,सफह 137*

*अब फुक़्हा के कुछ क़ौल और खुद वहाबियों देवबंदियों की किताब से वसीले का सबूत पेश है,इमामुल अइम्मा हज़रते इमामे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में युं नज़्र फरमाते हैं कि*

*फुक़्हा* - आप वो हैं कि जिनका वसीला लेकर हज़रत आदम अलैहिस्सलाम कामयाब हुए हालांकि वो आपके बाप हैं

*📚 क़सीदये नोमानिआ,सफह 12*

*हज़रत इमाम मालिक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु बनी अब्बास के दूसरे खलीफा अबू जाफर मंसूर से फरमाते हैं कि*

*फुक़्हा* - तुम अपना मुंह हुज़ूर की जाली की तरफ करके ही उनके वसीले से दुआ करो और उनसे मुंह ना फेरो क्योंकि हुज़ूर हमारे और तुम्हारे बाप हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के लिए भी वसीला हैं

*📚 शिफा शरीफ,सफह 33*

*हज़रत इमाम शाफ़ई रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हज़रते इमामे आज़म रज़ियल्लाहु ताला अन्हु की मज़ारे अक़दस के बारे में फरमाते हैं की*

*फुक़्हा* - हज़रते इमामे आज़म की मज़ार क़ुबूलियते दुआ के लिए तिर्याक है

*📚 तारीखे बग़दाद,जिल्द 1,सफह 123*

*हज़रते इमाम अहमद बिन हम्बल रज़ियल्लाहु तआला अन्हु अपने बेटे हज़रत अब्दुल्लाह से हज़रत इमाम शाफई रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के बारे में फरमाते हैं कि*

*फुक़्हा* - हज़रत इमाम शाफई रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ऐसे हैं जैसे कि लोगों के लिए सूरज इसलिए मैं उनसे तवस्सुल करता हूं

*📚 शवाहिदुल हक़,सफह 166*

*हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि*

*फुक़्हा* - जब तुम अल्लाह से कुछ तलब करो तो मेरे वसीले से मांगो

*📚 बेहिज्जतुल असरार,सफह 23*

*ये तो हुई हमारे फुक़्हा की बातें अब वहाबियों के भी कुछ क़ौल मुलाहज़ा फरमायें,अशरफ अली थानवी ने लिखा कि*

*वहाबी* - तवस्सुल दुआ में मक़बूलाने हक़ का ख्वाह वो ज़िंदा हो या वफात शुदा बेशक दुरुस्त है

 *📚 फतावा रहीमिया,जिल्द 3,सफह 6*

*रशीद अहमद गंगोही ने लिखा कि*

*वहाबी* - हुज़ूर को निदा करना और ये समझना कि अल्लाह आप पर इंकेशाफ फरमा देता है हरगिज़ शिर्क नहीं

*📚 फतावा रशीदिया,सफह 40*

*हुसैन अहमद टांडवी ने लिखा कि*

*वहाबी* - आप सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम से तवस्सुल ना सिर्फ वजूदे ज़ाहिरी में बल्कि विसाल के बाद भी किया जाना चाहिय

*📚 मकतूबाते शेखुल इस्लाम,जिल्द 1,सफह 120*

*क़ासिम नानोतवी ने लिखा कि*

*वहाबी* - मदद कर ऐ करमे अहमदी कि तेरे सिवा
              नहीं है क़ासिम बेकस का कोई हामीकार

*📚 शिहाबुस साक़िब,सफह 48*

*सब कुछ आपने पढ़ लिया कि अल्लाह खुद वसीला लगाने का हुक्म देता है खुद हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने सहाबियों को वसीले की तालीम दी फुक़्हाये किराम ने वसीला लगाया और तो और खुद वहाबियों ने भी माना कि दुआ में औलिया अल्लाह का वसीला लगाना बिल्कुल जायज़ व दुरुस्त है तो फिर क्यों अपने ही मौलवियों की बात ना मानते हुये ये जाहिल वहाबी हम सुन्नी मुसलमानों को क़बर पुजवा कहकर शिर्क और बिदअत का फतवा लगाते फिरते हैं,सबसे पहले तो वहाबियों को ये करना चाहिए कि अपना स्टेटस क्लियर करें कि आखिर वो हैं क्या,कोई उनके यहां फातिहा करना हराम कहता है तो जायज़ कोई सलाम पढ़ने को शिर्क बताता है तो कोई खुद पढ़ता है कोई मज़ार पर जाने को मना करता है तो कोई खुद ही मज़ार पर पहुंच जाता है आखिर कब तक ये वहाबी इस दोगली पालिसी से मुसलमानों में तफरका डालकर उनको गुमराह व बेदीन बनाते रहेंगे इसका जवाब कौन देगा*




*_पीर से पर्दा_*
*_आजकल कुछ नफ़्स परस्त जाहिल पीर औरतों को बेहिजाब मुरीद करते हैं बल्कि उनसे पैर तक दबवाया करते हैं और हल्के में बिठाकर ज़िक्र करते करवाते हैं माज़ अल्लाह,ये खुले आम हरामकारी है मगर इन शैतान के चेलों ने उसे अपने लिए जायज़ किया हुआ है,औरतों को ग़ैर महरम से पर्दा करना फ़र्ज़ है फिर चाहे वो पीर ही क्यों ना हो मौला तआला क़ुरान मजीद में इरशाद फरमाता है कि_*

*_मुसलमान मर्दों को हुक्म दो कि अपनी निगाहें कुछ नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें ये उनके लिए बहुत सुथरा है.बेशक अल्लाह को उनके कामों की खबर है और मुसलमान औरतों को हुक्म दो कि अपनी निगाहें कुछ नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें और अपने दुपट्टे अपने गिरेहबानों पर डाले रहें और अपना श्रंगार ज़ाहिर न करें मगर अपने शौहरों पर या अपने बाप पर या शौहरों के बाप या अपने बेटे या शौहरों के बेटे या अपने भाई या अपने भतीजे या अपने भांजे या दीन की औरतें या अपनी कनीज़ें जो अपने हाथ की मिल्क हो या वो नौकर जो शहवत वाले ना हों या वो बच्चे जिन्हें औरतों के शर्म की चीज़ों की खबर नहीं,और औरतें ज़मीन पर ज़ोर से पांव ना रखें कि उनका छिपा हुआ श्रंगार जान लिया जाए_*

*📚 पारा 18,सूरह नूर,आयत 30-31*

*_अब अगर इन महरम में से ही कोई पीर है जब तो उनके सामने बे हिजाब आने में कोई हर्ज नहीं वरना हराम हराम हराम है और माज़ अल्लाह अगर इंकार करे जब तो काफ़िर है कि क़ुरान का मुनकिर हुआ,और अगर युंही औरतें बे हिजाब सड़कों,बाज़ारों,मेलों-ठेलों,मज़ारों या कहीं भी घूमती फिरती हैं जब तो अशद गुनाहगार हैं उन पर तौबा वाजिब है और ऐसे पीर पर भी जो बे हिजाब औरतों को मुरीद करते हैं,दूसरी जगह मौला इरशाद फरमाता है कि_*

*_ऐ महबूब अपनी बीवियों और अपनी साहबज़ादिओं और मुसलमान औरतों से फरमा दो कि वो अपनी चादरों का एक टुकड़ा अपने मुंह पर डाले रहें,ये उनके लिए बेहतर है कि ना वो पहचानी जाएं और ना सताई जाएं और अल्लाह बख्शने वाला मेहरबान है_*

*📚 पारा 22,सूरह अहज़ाब,आयत 59*

*_इसका शाने नुज़ूल ये है कि कुछ मुनाफ़िक़ मुसलमान औरतों को रास्ते में छेड़ा करते थे जिस पर ये आयत उतरी कि मौला ने साफ फरमा दिया कि अपनी पहचान छिपाकर चलेंगी तो ना पहचान होगी और ना कोई उन्हें छेड़ेगा,अब आईये आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त का एक फतवा भी मुलाहज़ा फरमा लें जो ऐसे जाहिल पीरों के ताल्लुक़ से है फरमाते हैं_*

*_पीर से पर्दा वाजिब है जबकि महरम ना हो और उन्हें मर्दों के साथ बिठाकर ज़िक़्र करना ऐसा कि उनकी आवाज़ तक मर्दों में सुनाई देती हो तो ये ख़िलाफ़े शरअ और ख़िलाफ़े हया है ऐसे पीर से बैयत ना चाहिये_*

*📚 अहकामे शरीयत,हिस्सा 2,सफह 181*

*_अब पीर कैसा होना चाहिए उसके अन्दर किन शर्तों का पाया जाना ज़रूरी है ये भी समझ लीजिये_*

*_पीर के अन्दर 4 शर्तें होनी चाहिये_*

*_! सुन्नी सहीयुल अक़ीदा हो यानि कि सुन्नियत पर सख्ती से क़ायम हो हर तरह की गुमराही व बद अमली से दूर रहे तमाम बद मज़हब फ़िर्कों से दूर रहे उनके साथ उठना बैठना,खाना पीना,सलाम कलाम,रिश्ता नाता,कुछ ना रखे ना उनके साथ नमाज़ पढ़े ना उनके पीछे नमाज़ पढ़े और ना उनकी जनाज़े की नमाज़ पढ़े_*

*_! आलिम हो यानि कि अक़ायद व गुस्ल तहारत नमाज़ रोज़ा व ज़रुरत के तमाम मसायल का पूरा इल्म रखता हो और अपनी ज़रुरत के तमाम मसायल किताब से निकाल सके बग़ैर किसी की मदद के_*

*_! फ़ासिक ना हो यानि कि हद्दे शरह तक दाढ़ी रखे पंज वक़्ता नमाज़ी हो और हर गुनाह मस्लन झूट,ग़ीबत,चुगली,फ़रेब,फ़हश कलामी,बद नज़री,सूद,रिश्वत का लेन देन,तस्वीर साज़ी,गाने बाजे तमाशो से,ना महरम से पर्दा,गर्ज़ की कोई भी खिलाफ़े शरअ काम ना करता हो_*

*_! उसका सिलसिला नबी तक मुत्तसिल हो यानि कि जिस सिलसिले मे ये मुरीद करता हो उसके पीर की खिलाफ़त उसके पास हो_*

*_जिसके अन्दर ये 4 शर्तें पाई जायेंगी वो पीरे कामिल है और अगर किसी के अन्दर 1 भी शर्ते ना पाई गई तो वो पीर नहीं बल्कि शैतान का मसखरा है_*

*📚 सबा सनाबिल शरीफ़,सफ़ह 110*

*_पीर के अन्दर क्या शर्ते होनी चाहिये आपने पढ़ लिया अब अगर किसी के पीर के अन्दर ये शर्ते नहीं पाई जाती तो ख़ुदारा पीर परस्ती ना करके शरह को मुक़द्दम रखें और फौरन उसे छोड़कर किसी बा-शरह पीर का दामन थाम लें कि इसी में ईमान की सलामती है,मौला ताआला हम सबके ईमान की हिफाज़त करे और मसलके आलाहज़रत पर सख्ती से क़ायम रखे-आमीन आमीन आमीन या रब्बुल आलमीन बिजाहिस सय्यदिल मुरसलीन सल्लललहो तआला अलैहि वसल्लम_*




*वली की पहचान*
*_हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि क़यामत के दिन अल्लाह के कुछ बन्दे ऐसे होंगे जो ना नबी होंगे और ना शुहदा मगर उनके मक़ाम और बुलंदी को देखकर बाज़ अम्बिया और शुहदा भी रश्क करेंगे_*

*📚 अबू दाऊद,जिल्द 3,सफह 288*

*_अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान मुक़द्दस में इरशाद फरमाता है कि "बेशक अल्लाह के वली मुत्तक़ी ही होते हैं"_*

*📚 पारा 9,सूरह इंफाल,आयत 34*

*_और तक़वा परहेज़गारी खशीयत बग़ैर इल्म के नामुमकिन है जैसा कि मौला क़ुरान में इरशाद फरमाता है कि "अल्लाह से उसके बन्दों में वही डरते हैं जो इल्म वाले हैं"_*

*📚 पारा 22,सूरह फातिर,आयत 28*

*_हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि तसव्वुफ़ सिर्फ गुफ्तुगू नहीं बल्कि अमल है और फरमाते हैं कि जिस हक़ीक़त की गवाही शरीयत ना दे वो गुमराही है_*

*📚 फुतुहूल ग़ैब,सफह 82*

*_हज़रत मुजद्दिद उल्फ सानी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि जो शरीयत के खिलाफ हो वो मरदूद है_*

*📚 मकतूबाते इमाम रब्बानी,हि 1,मकतूब 36*

*_हज़रत शहाब उद्दीन सहरवर्दी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि जिसको शरीयत रद्द फरमाये वो हक़ीक़त नहीं बेदीनी है_*

*📚 अवारेफुल मआरिफ,जिल्द 1,सफह 43*

*_हज़रत इमाम गज़ाली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि जिस हक़ीक़त को शरीयत बातिल बताये वो हक़ीक़त नहीं बल्कि कुफ्र है_*

*📚 तजल्लियाते शेख मुस्तफा रज़ा,सफह 149*

*_हज़रत बायज़ीद बुस्तामी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि अगर तुम किसी को देखो कि वो हवा में उड़ता है पानी पर चलता है ग़ैब की खबरें बताता है मगर शरीयत की इत्तेबा नहीं करता तो समझलो कि वो मुल्हिद व गुमराह है_*

*📚 सबा सनाबिल शरीफ,सफह 186*

*_एक शख्स हज़रत जुनैद बग़दादी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से ये सोचकर मुरीद होने के लिए आया कि हज़रत से कोई करामात देखूंगा तो मुरीद हो जाऊंगा,वो आया और आकर आस्ताने में रहने लगा इस तरह पूरे 10 साल गुज़र गए और 10 सालों के बाद वो नामुराद होकर वापस जाने लगा,हज़रत ने उसे बुलवाया और कहा कि तुम 10 साल पहले आये यहां रहे और अब बिना बताए जा रहे हो क्यों,तो कहने लगा कि मैंने आपकी बड़ी तारीफ सुनी थी कि आप बा करामत बुज़ुर्ग हैं इसलिए आया था कि आपसे कोई करामात देखूंगा तो आपका मुरीद हो जाऊंगा मगर पिछले 10 सालों में मैंने आपसे एक भी करामात सादिर होते हुए नहीं देखी इसलिए जा रहा हूं,हज़रत जुनैद बग़दादी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि ऐ जाने वाले तूने पिछले 10 सालों में मेरा खाना पीना,सोना जागना,उठना बैठना सब कुछ देखा मगर क्या कभी ऐसा कोई खिलाफे शरह काम भी होते देखा,इसपर वो कहने लगा कि नहीं मैंने आपसे कभी कोई खिलाफे शरह काम होते नहीं देखा,तो आप फरमाते हैं कि ऐ शख़्स क्या इससे बड़ी भी कोई करामात हो सकती है कि 10 सालों के तवील अरसे में एक इंसान से कोई खिलाफे शरह काम ही ना हो_*

*📚 तारीखुल औलिया,जिल्द 1,सफह 67*

*_हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि मैं एक जंगल में था भूख और प्यास का सख्त गल्बा था,अचानक मेरे सामने एक रौशनी छा गयी और एक आवाज़ आई कि ऐ अब्दुल कादिर मैं तेरा रब हूं और तुझसे बहुत खुश हूं इसलिए आजसे मैंने तुमपर हर हराम चीज़ें हलाल फरमा दी और तुम पर से नमाज़ भी माफ फरमा दी,ये सुनते ही मैंने लाहौल शरीफ पढ़ा तो फौरन वो रौशनी गायब हो गयी और एक धुवां सा रह गया फिर आवाज़ आई कि ऐ अब्दुल कादिर मैं शैतान हूं तुझसे पहले इसी जगह पर मैंने 70 औलिया इकराम को गुमराह किया है मगर तुझे तेरे इल्म ने बचा लिया,इसपर हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि ऐ मरदूद मुझे मेरे इल्म ने नहीं बल्कि रब के फज़्ल ने बचाया है,ये सुनते ही इब्लीस फरार हो गया_*

*📚 बेहिज्जतुल असरार,सफह 120*

*इन सब बातों का निचोड़ ये है कि*

*! अगर हवा में उड़ना विलायत होती तो इब्लीस लईन सबसे बड़ा वली होता कि सातवीं ज़मीन के भी नीचे तहतुस्सरा में ठहरता है मगर जैसे ही नाम लिया पास आकर बैठ जाता है कि 3500 साल से भी ज़्यादा का सफर वो पल भर में तय कर लेता है,मगर वो वली नहीं*

*! अगर पानी पे चलना विलायत होती तो काफिर भी अपने जादू से पानी पर चला करते हैं,मगर वो वली नहीं*

*! अगर ग़ैब की खबर देना विलायत होती तो कभी कभार नुजूमी यानि स्ट्रोलोजर भी सही भविष्यवाणी कर दिया करते हैं,मगर वो वली नहीं*

*! नमाज़ छोड़ने वाला,दाढ़ी मुंडाने वाला,फोटो खींचने खिंचाने वाला,म्यूजिक सुनने वाला,ना महरम औरतों की सोहबत में बैठने वाला,झूठ बोलने वाला फासिक़ है हरगिज़ वली नहीं*

*अलहासिल जो इल्म वाला होगा वही तक़वे वाला होगा और जो तक़वे वाला होगा वही अल्लाह का वली होगा लिहाज़ा वली को उसके तक़वे से पहचाने करामात से नहीं,अब अगर तक़वा और परहेज़गारी देखना हो तो बरैली शरीफ चला जाये और जाकर मेरे पीरो मुर्शिद हुज़ूर ताजुश्शरिया दामत बरकातोहुमुल आलिया का एक बार अपनी आंखों से दीदार कर आये खुद बखुद समझ जायेगा कि वली कैसा होता है उन्हें देखते ही हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की वो हदीस याद आ जायेगी कि आप फरमाते हैं "वली वो है जिसको देखकर तुम्हें खुदा की याद आ जाये*

*📚 तिर्मिज़ी,जिल्द 2,सफह 39*

*खत्म,,,,,,*




*_कुछ कुफ्रियात_*
*भारत माता की जय बोलना कुफ्र है!*

*(📚 फ़तावा शारेह बुखारी, जिल्द 2, सफह 598)*

*जय हिन्द बोलना भी जायज़ नहीं है कि शियारे हिनूद है, हिंदुस्तान जिंदाबाद कहें!*

*(📚 फतावा शारेह बुखारी, जिल्द 2, सफह 463)*

*वन्दे मातरम गाने वाला काफिर है!*

*(📚 फ़तावा शारेह बुखारी, जिल्द 2, सफह 590)*

*गैर मुस्लिम यानी काफिरों को शहीद कहना कुफ्र है!*

 *(📚 फतावा शारेह बुखारी, जिल्द 2, सफह 588)*

*जो ये कहे कि मौलवी से अच्छे तो पंडित हैं वो काफिर है!*
 *(📚 फतावा शारेह बुखारी, जिल्द 2, सफह 587)*

*जिसने मज़ाक़ में भी ये कहा के सोचता हूं के मैं हिन्दू या ईसाई हो जाऊं या किसी भी काफिरो मुर्तद फिरके का नाम लिया तो फौरन काफिर हो गया!*

*(📚 अहकामे शरीयत, हिस्सा 2, सफह 24)*

*किसी काफिर को महातमा कहना कुफ्र है!*

*(📚 फतावा शारेह बुखारी, जिल्द 2, सफह 589)*

*मुसलमान अगर जय श्री राम, जय हनुमान,हर हर महादेव, जय श्री गणेश,जय भीम,हरे रामा हरे कृष्णा या मैरी क्रिस्मस या इस तरह का कोई भी मज़हबी नारा जो काफिरों में मशहूर है लगायेगा तो काफिर हो जायेगा!*

 *(📚 फतावा शारेह बुखारी, जिल्द 2, सफह 550)*

*हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई आपस में हैं भाई भाई जो ये नारा लगाये काफिर है!*

 *(📚 फतावा शारेह बुखारी, जिल्द 2, सफह 552)*

*युंही नमस्ते नमस्कार प्रणाम वगैरह कहना भी नाजाइज़ और हराम है





*टी.वी-तस्वीर या आईना*
*पोस्ट बड़ी है मगर बहुत इल्मी है पूरी पढ़ लीजिएगा इन शा अल्लाह इल्म में बहुत इज़ाफा होगा*

 *बेशक निहायत सख़्त अज़ाब क़यामत के दिन तस्वीर बनाने वालों पर होगा*

 *📚 मुस्लिम,जिल्द 2,सफह 201*

 *बेशक जो तस्वीर बनाते हैं क़यामत के दिन उनसे कहा जायेगा कि जो कुछ तुमने बनाया उसमें जान डालो और वो हरगिज़ ऐसा ना कर सकेगा*

 *📚 मुस्लिम,जिल्द 2,सफह 209*

 *उस घर में रहमत के फरिश्ते दाखिल नहीं होते जिसमे कुत्ता तस्वीर या कोई जुनुब (जिसपर ग़ुस्ल फर्ज़) हो*

 *📚 अबू दाऊद,जिल्द 2,सफह 218*

 *अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान मुक़द्दस में इरशाद फरमाता है कि "वो लोग जो रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को ईज़ा देते हैं अल्लाह ने उनपर दुनिया और आखिरत में लानत फरमाई और उनके लिए ज़िल्लत का अज़ाब तैयार कर रखा है*

 *हज़रते अकरमा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि ये आयत तस्वीर बनाने वालों के हक़ में नाज़िल हुई*

 *📚 पारा 22,सूरह अहज़ाब,आयत 57*
 *📚 किताबुल कबायेर,सफह 303*

 *आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि "हदीस इस बारे में हद्दे तवातर पर हैं जिसका क़सदन इंकार करने वाले कम से कम गुमराह व बद्दीन है*

 *📚 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह 143*

मगर टीवी के मसले पर बहुत सारे नाम निहाद 'उल्मा' गुमराही के गढ़े में गिरे हुए हैं जो इस पर दिखने वाली इमेज को तस्वीर नहीं मानते और इसको जायज़ करने के लिए ये 3 दलीलें पेश करते हैं

*1- टीवी मिस्ल आइना है*

*2- टीवी में तस्वीर नहीं बल्कि शुआयें यानि rase किरण हैं,जो कि तस्वीर नहीं*

*3- उमूमे बलवा यानि हालते ज़माना को देखते हुए इसे जायज़ कर दिया जाए*

आईये चलते हैं इन सारी बातों का पोस्ट मार्टम करने के लिए,सबसे पहले हिन्दुस्तान में इस खुराफात को जिसने जायज़ किया वो बदमज़हब फिरका जमाते इस्लामी का बानी अबुल आला मौदूदी था जिसके मानने वालों को मौदूदवी भी कहा जाता है,फिर इसी मौदूदवी तहरीक को आगे बढ़ाया मौलवी मदनी मियां साहब कछौछवी ने,जिस पर हुज़ूर ताजुश्शरिया ने उनकी शरई गिरफ़्त फरमाई और उनकी ग़लत तहक़ीक़ पर 25 सवाल क़ायम फरमाये जिसका जवाब मदनी मियां साहब ने कुछ का कुछ दिया,हालांकि उनके दिए गए जवाबात गलत थे मगर फिर भी हुज़ूर ताजुश्शरिया ने उन पर भी कुछ सवाल क़ायम किये जिनका जवाब आज तक उनकी या उनके मानने वालों की जानिब से नहीं दिया गया,मगर जैसा कि उल्टा चोर कोतवाल को डांटे वाली कहावत यहां सटीक बैठती है कि जवाब तो दिया नहीं गया उल्टा अपने स्टेजों से उनके ग्रुप के लोगों ने मसलन हाशमी मियां कछौछवी,उबैद उल्लाह खान आज़मी,मौलवी ज़हीर उद्दीन वग़ैरह ने खुले आम हुज़ूर ताजुश्शरिया व आलाहज़रत की शान में गुस्ताखियां की बल्कि कुछ सहाबा इकराम को भी निशाना बना डाला,जो हज़रात वो आडियो सुनना चाहते हों वो www.benaqabchehre.com पर विज़िट करें,फिर इसी कड़ी में एक और नाम जुड़ा पाकिस्तान के एक ग़ुमराह मौलवी ताहिरुल क़ादरी का जिसके ऊपर सिर्फ हिंदुस्तान के ही नहीं बल्कि पाकिस्तान के भी सवा सौ से भी ज़्यादा उलेमा इकराम ने हुक्मे कुफ़्र लगाया,फिर इन्ही गुमराह मौलवियों की शह पाकर पाकिस्तान की बदनाम ज़माना तहरीक दावते इस्लामी भी चल पड़ी,जो शुरू शुरू में अपनी जमात को फरोग़ देने के लिए खूब मसलके आलाहज़रत का नारा बुलंद करती थी,यहां पर मैं टीवी को जायज़ करने की उन 3 दलीलों पर कुछ अर्ज़ करता हूं

*पहला ये कि टीवी मिस्ल आइना है*

बिलकुल ग़लत है,जैसा कि मेरे आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि "बिला शुबह आईने में जो अपनी सूरत देखते हो तो क्या उसमें ( आईने में ) कोई सूरत है,नहीं बल्कि आंखों का नूर आईने पर पड़कर वापस आता है तो वो अपने आपको देखता है लिहाज़ा दाहिना बायां नज़र आता है और बायां दहिना नज़र आता है

 *📚 अलमलफ़ूज़,हिस्सा 1,सफह 50*

इसी उसूल पर उलमाये इकराम के बनाये हुए कुछ कानून मुलाहज़ा करें

1. जिस कोण से आंखों का नूर आईने पर पड़ेगा वो नूर कोण बनाता हुआ वापस लौटेगा,मसलन आइने को सामने रखकर बीच से देखें तो अपनी सूरत नज़र आती है मगर जब आईने के दाईं तरफ से देखें तो खुद की सूरत नज़र नहीं आती बल्कि बायीं तरफ़ की तमाम चीज़ें आईने में नज़र आती है,अगर टीवी आइना है तो क्या टीवी में भी ऐसा होता है क्या टीवी के दाएं बाएं जाने से टीवी का scene यानि पोज़ चेंज होता है,यक़ीनन नहीं तो फिर टीवी आईने के मिस्ल कैसे हुआ

2. टीवी के पिक्चर ट्यूब में कुछ ख़ास किस्म के बल्ब होते हैं जो शुवाओं को टीवी के अन्दर की तरफ़ की स्क्रीन पर डालते हैं तो वो शुआअें बाहर की तरफ से नज़र आती है पलटकर वापस नहीं जाती जबकि आईने में rase पलटती हैं तो फिर टीवी आईने के मिस्ल कैसे हुआ

3. टीवी का पिक्चर ट्यूब खुद rase यानि किरणें पैदा करता है इसके बर अक्स आइना कोई नूर या किरण नहीं बनाता बल्कि जो जिस तरह उस तक पहुंचता है उसे वैसे ही लौटा देता है तो फिर टीवी आईने के मिस्ल कैसे हुआ

4. टीवी का पिक्चर ट्यूब rase यानि किरणों में तसर्रुफ़ यानि बदलाव करता है मसलन आईने के सामने जब हम दायां हाथ उठाते हैं तो गोया लगता है कि बायां हाथ उठा लेकिन यही पोज़ जब हम टीवी में देखते हैं तो दहिना ही नज़र आता है मतलब साफ़ है कि आइना आये हुए नूर को युंहि लौटा देता है जबकि टीवी में गयी किरण को वो डायरेक्शन चेंज करके दिखाता है तो जब आईना तसर्रुफ़ नहीं करता और टीवी तसर्रुफ़ करता है तो फिर टीवी आईने के मिस्ल कैसे हुआ

5. आईने में नज़र आने वाली सूरत को एक जगह रोका नहीं जा सकता जबकि टीवी में नज़र आने वाली तस्वीर को pause का बटन दबाते ही बड़ी आसानी से रोका जा सकता है ये इस बात की दलील है कि आईने में कोई तस्वीर नहीं है जबकि टीवी में तस्वीर मौजूद है तो फिर टीवी आईने के मिस्ल कैसे हुआ

इसको इस तरह से समझाता हूं,आपने शायद सिनेमा हाल मे चलने वाली फिल्म की रील देखी होगी,अब तो फिल्मे satelite के ज़रिये चलती है मगर पहले रील यानी नेगेटिव के ज़रिये चलती थी,जब मूवी चल रही होती है तो क्या ज़रा भी ये महसूस होता है कि ये still images यानि ठहरी हुई photos की next by next range है,नहीं बिल्कुल नहीं,बल्कि सब कुछ चलता फिरता नज़र आता है,मगर जहां कुछ खराबी आई फ़ौरन एक जगह इमेज ठहर जाती है यानि जिसको आज वीडियो ग्राफी कहकर जायज़ किया जा रहा है दर असल वो भी स्टिल फोटोग्राफी ही है,आज की इस हाई टेक्नोलॉजी के दौर में अब रील में स्टिल इमेज रखने की भी ज़रूरत नहीं है बल्कि वो डेटा की शक्ल में मेमोरी कार्ड,पेन ड्राइव,कैमरे की हार्ड डिस्क में भी सेव करके रखा जा सकता है,मगर है ये भी तस्वीर ही

6. क्या पूरी दुनिया में कोई भी क़ौम आईने की पूजा करती है,नहीं मगर टीवी पर हिन्दू पूजा किया करते हैं इस काम के लिए बहुत सारी कम्पनियां पूजा की सीडी या डीवीडी बनाती और बेचती हैं,और अब तो जाहिलों ने दीदारे अत्तार की भी सीडियां बना रखी है,लिहाज़ा इतने सारे फर्क होने के बावजूद ये कहना कि टीवी मिस्ल आइना है सरासर जिहालत और हठधर्मी है

*दूसरा ये कहना कि टीवी में शुआयें हैं तस्वीर नहीं*

ये भी बिलकुल गलत तहक़ीक़ है कि कैमरा की शुवाओं में भी तस्वीर होती है और कैमरा उन तस्वीरों को शुवाओं की शक्ल में सेव करके रख सकता है,अगर कैमरा की किरणों में तस्वीरें न होती तो सामने बैठे हुए आदमी की तस्वीर किस तरह बनती,और अगर ये तस्वीर नहीं है तो फिर इन शुवाओं को कैमरा या मोबाइल में रिकॉर्ड करने का क्या मक़सद है,ज़ाहिर सी बात है इन शुवाई तस्वीरों का भी वही मक़सद है जो हाथ की तस्वीरों का होता है यानि इन्हें भी कागज़ या स्क्रीन पर उतारा जाएगा,और जब ये शुआयें स्क्रीन पर आएगी तो यक़ीनन तस्वीर होगी और उस पर हुरमत साबित होगी,इसको यूं समझिये कि एक आर्टिस्ट कई दिन में रंग ब्रश और केनवास पर किसी की तस्वीर बनाता है मगर आज की इस मॉडर्न टेक्नोलॉजी में वही शख्स शुवाओं का रंग लेकर कैमरा या मोबाइल के ब्रश से स्क्रीन के कैनवास पर चन्द सेकंड में तस्वीर बना देता है,क्या हाथ की बनी हुई तस्वीर में और टीवी या मोबाइल की स्क्रीन पर दिखती हुई तस्वीर में कोई फर्क होता है,क्या टीवी में दिखने वाली शुवाई तस्वीरों के मुंह नाक कान आंख नहीं होते,तो क्यों आख़िर ये तस्वीर नहीं है अगर चे बनाने का तरीक़ा अलग है मगर है तो तस्वीर ही,क्या सुअर के गोश्त को मुर्गा कहकर खाने से वो हलाल हो जाएगा क्या शराब को शरबत कहकर पीने से वो जायज़ हो जाएगा,नहीं और हरगिज़ नहीं,तो फिर ये उल्टी मन्तिक़ तस्वीर के मौज़ू पर क्युं,क्या ये सरासर शरीयत के साथ खिलवाड़ नहीं है,यक़ीनन है

*तीसरा ये कि हालते ज़माना को देखते हुए टीवी को जायज़ कहना*

दलील के तौर पर हज़रत फ़क़ीह अबुल लैस समरकंदी अलैहिर्रहमा के 3 मसायल में रुजू करने की बात कहते हैं तो ऐसे लोग खूब अच्छी तरह समझ लें कि उनकी दलीलों को ढ़ाल बनाकर हरगिज़ टीवी जैसी खुराफ़ात को जायज़ नहीं किया जा सकता और उनका रुजू फरमाना आज के नाम निहाद मौलवियों की तरह नाम,शोहरत और पैसा कमाना नहीं था बल्कि दीन बचाना था उनका एक मसला दर्ज करता हूं,शरीयत ने इल्म के बदले में क़ीमत वसूल करना नाजायज़ फ़रमाया,शुरू इस्लाम से ही उलमाये इकराम को सल्तनते इस्लामी के ज़रिये एक मुस्तक़िल वज़ीफा मिला करता था जिससे उनकी माली इमदाद और गुज़र बसर हो जाया करती थी और वो उलमा दीन की इशाअत में मसरूफ रहा करते थे,मगर ज्युं ज्युं इस्लामी हुक़ूमत ख़त्म होना शुरू हुई तो उलमा को दिए जाने वाले वज़ीफ़े बंद होते गए,इससे उनका घर संभालना निहायत दुश्वार हो गया,दूसरा कोई रास्ता न देख हज़ारों उल्मा इकराम ने दर्सो तदरीस छोड़कर दूसरा काम धंधा शुरू कर दिया और जो मोअतबर उलमा बचे थे वो भी दुनिया की तरफ़ जाने का मन बना चुके थे,जब उलेमा इकराम मज़बूरी में अपना और अपने घर वालों की खातिर दीन की इशाअत छोड़कर दूसरे किसी काम को ढूंढ रहे रहे थे तब ऐसे नाज़ुक वक़्त में जब कि दीन मिटता हुआ नज़र आने लगा तो हज़रत समरकंदी अलैहिर्रहमा ने दर्सो तदरीस पर तनख्वाह लेने का फतवा दिया,अब उस मसअले को टीवी पर जायज़ करने के लिये दलील बनाना आप बताइए क्या सही है,वहां मज़बूरी थी क्या आज टीवी के मामले मे मज़बूरी है,क्या उस मसले का टीवी से कोई जोड़-तोड़ है,उस वक़्त दीन खतरे में पड़ गया था क्या आज बग़ैर टीवी के दीन खतरे में है,क्या बग़ैर टीवी के दीन मिट जाएगा

! क्या बग़ैर टीवी के इमाम नमाज़ नहीं पढ़ा पाएगा
! क्या बग़ैर टीवी के बच्चे इल्म हासिल नहीं कर पाएंगे
! क्या मदरसों में ताले लगवा दिए जाएं
! क्या दीनी किताबें छपवानी बंद करके लाइब्रेरी में टीवी घुसा दिया जाए
! क्या जलसों में मस्जिदों में मुक़र्रर की जगह टीवी रखकर तक़रीर कराई जाए (दावते इस्लामी वालों की तरह माज़ अल्लाह)

 *तो मानना पड़ेगा कि दीन का काम टीवी पर मौक़ूफ़ नहीं है,लिहाज़ा ये नाम निहाद मौलवी अपनी गुमराही को अवाम में फैलाना बंद करें,अब एक मसअला खूब क़ायदे से समझ लें कि वोटर कार्ड,राशन कार्ड,ड्राइविंग लाइसेंस,एडमिशन फॉर्म,पासपोर्ट या जिस जगह भी फोटो मांगी जाती है वहां पर सिर्फ उस ज़रूरत के लिए तस्वीर खिंचवाने की रुखसत है मतलब छूट है यानि शरई मुआखज़ा ना होगा इसका ये मतलब हर्गिज़ नहीं कि तस्वीर जायज़ हो गई,मतलब ये कि जैसे इज़तरार की हालत में किसी की भूख से या प्यास से जान जा रही हो तो उसे शराब और सुअर खाकर भी अपनी जान बचाने की इजाज़त है,ये नहीं है कि शराब और सुअर हलाल हो गया,ठीक उसी तरह ज़रूरत से ही फोटो खिंचवाने की इजाज़त है ये नहीं कि खूब फोटो खिंचाओ खूब मूवी बनवाओ खूब टीवी देखो सब जायज़ हो गया,याद रखिये जो मुसलमान किसी हराम काम को हराम जानकार करेगा तो वो फ़ासिक़ होगा मगर अल्हम्दु लिल्लाह मुसलमान रहेगा मगर किसी ने हराम को हलाल समझ लिया तो कम से कम इस मसअले में गुमराह तो हो ही जायेगा*

*अगर यहां तक की बात समझ में आ गयी हो तो ये आखिरी बात भी समझ लीजिए कि आप इस्लामी ग्रुप में हैं और इल्मे दीन हासिल करने की गर्ज़ से हैं तो इल्म उसी वक़्त फायदा पहुंचाता है जब कि उसकी इज़्ज़त की जाए और इल्म की इज़्ज़त ये होती है कि उसको क़ुबूल करे यानि उसपर अमल करे नाकि एक कान से सुने और दूसरे से उड़ा दें,तो मेहरबानी करके अपनी अपनी D.P से जानदार की फोटो हटाई जाए वरना बरौज़े महशर आप खुद अपनी हलाक़त के ज़िम्मेदार होंगे*

 *📚 टीवी और वीडियो का ऑपरेशन*
 *📚 शुवाई पैकर का हुक्म*





*सलातो सलाम*
कंज़ुल ईमान:- *_बेशक अल्लाह और उसके फरिश्ते दुरूद भेजते हैं उस ग़ैब बताने वाले नबी पर,ऐ ईमान वालों उन पर दुरूद और खूब सलाम भेजो_*

तर्जुमा थानवी:- *_बेशक अल्लाह और उसके फरिश्ते रहमत भेजते हैं इन पैगम्बर पर,ऐ ईमान वालों तुम भी आप पर रहमत भेजा करो और खूब सलाम भेजा करो_*

*📚 पारा 22, सूरह अहज़ाब, आयत 56*

*और हज़रत यहया अलैहिस्सलाम की विलादत पर रब तआला फरमाता है*

कंज़ुल ईमान:- *_और सलामती है उस पर जिस दिन पैदा हुआ और जिस दिन मरेगा और जिस दिन ज़िंदा उठाया जायेगा_*

*📚 पारा 16, सूरह मरियम, आयत 15*

*और हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने तो खुद अपने ऊपर सलाम पढ़ा*

कंज़ुल ईमान:- *_और सलामती है मुझ पर जिस दिन मैं पैदा हुआ और जिस दिन मरूं और जिस दिन ज़िंदा उठाया जाऊं_*

*📚 पारा 16, सूरह मरियम, आयत 33*

कंज़ुल ईमान:- *_नूह पर सलाम हो जहां वालों में_*

*📚 पारा 23, सूरह साफ़्फ़ात, आयत 79*

कंज़ुल ईमान:- *_सलाम हो इब्राहीम पर_*

*📚 पारा 23, सूरह साफ़्फ़ात, आयत 109*

कंज़ुल ईमान:- *_सलाम हो मूसा और हारून पर_*

*📚 पारा 23, सूरह साफ़्फ़ात, आयत 120*

कंज़ुल ईमान:- *_सलाम हो इल्यास पर_*

*📚 पारा 23, सूरह साफ़्फ़ात, आयत 130*

कंज़ुल ईमान:- *_और सलाम है पैगम्बरों पर_*

*📚 पारा 23, सूरह साफ़्फ़ात, आयत 181*

*खुद रब्बे ज़ुल्जलाल ने तो सारे अम्बिया पर ही सलाम पढ़ डाला मगर पता नहीं कि अन्धे और कोढियों की कौन सी क़ुर्आन है जिसमें सलाम पढ़ने को हराम और शिर्क लिखा गया है,बात तो यहीं पर खत्म हो जानी चाहिए थी मगर अब जब शुरू किया है तो पूरी कर ही दूं*

हदीस:- *_हज़रते मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने फरमाया कि मैं नबीये करीम सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम के हमराह मक्का में था,फिर सरकारे अक़दस और मैं मक्का शरीफ के गिर्द अंवाह में गये तो जिस पहाड़ और दरख़्त का भी सामना होता तो वो बा आवाज़ बुलन्द अर्ज़ करता ,अस्सलामु अलैका या रसूल अल्लाह!, सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम_*

*📚 तिर्मिज़ी, जिल्द 2, सफ़ह 203*

*और अब मुनकिर ये कहेगा कि सलाम पढ़ना तो फिर भी ठीक है मगर क़यामे ताज़ीमी हराम है,तो ग़ैरुल्लाह की ताज़ीम यानि क़याम पर भी दलील मुलाहज़ा करें*

हदीस:- *_जब हज़रत सअद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु मस्जिदे नबवी शरीफ में दाखिल हुए तो हुज़ूर सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने अनसार को हुक्म दिया कि,क़ूमू इला सय्येदिकुम!, यानि अपने सरदार के लिए खड़े हो जाओ_*

*📚 मिश्कात, जिल्द 1, बाबुल जिहाद*

हदीस:- *_खातूने जन्नत हज़रत फातिमा ज़ुहरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा के आने पर नबी करीम सल्ल्ललाहु तआला अलैही वसल्लम फौरन खड़े हो जाते और आपकी पेशानी चूमकर अपनी मसनद पर बिठाते_*

*📚 मिश्कात, किताबुल अदब, बाबुल मुसाफा*

*अगर क़यामे ताज़ीमी हराम होता तो क्यों नबी अपने सहाबियों को खड़ा होने का हुक्म देते और क्यों खुद अपनी बेटी के आने पर उसकी ताज़ीम करते,ज़ाहिर सी बात है कि या तो वहाबियों ने क़ुर्आनो हदीस पढ़ी ही नहीं और अगर पढ़ी है तो उसका मतलब समझने से कासिर रह गये,और अगर किसी की ताज़ीम के लिये खड़ा होना अगर शिर्क होता तो दुनिया के तमाम इन्सान मुश्रिक हो जाते मदर्से के तल्बा मुदर्रिस के आने पर खड़े हो जाते हैं तो स्कूल के बच्चे टीचर के आने पर और दुनियादारों की तो बात ही क्या करना मजिस्ट्रेट आ जाये तो खड़े हो जाओ कमिश्नर आ जाये तो खड़े हो जाओ M.L.A आ जाये तो खड़े हो जाओ C.M आ जाये तो खड़े हो जाओ P.M आ जाये तो खड़े हो जाओ और खुद वहाबी अपने इमामो पेश्वा के लिये खड़े होते है मगर नबी की ताज़ीम को जैसे ही सुन्नी ने खड़े होकर सलाम पढ़ा कुछ दोगलों के मज़हब में हराम और शिर्क हो गया,इसी लिए मेरे आलाहज़रत फरमाते हैं कि*

*शिर्क जिसमे होवे ताज़ीमे हबीब*
*उस बुरे मज़हब पे लअनत कीजिये*

*रब जिस पर दुरूद भेजे,शजरो हजर जिस पर सलाम पढ़ें,जानवर जिनको सज्दा करें,हम अपने उसी नबी की बारगाह में ''मुस्तफा जाने रहमत पे लाखों सलाम'' पढ़ लें तो इतनी क़यामत कि अल्लाह अल्लाह,क्या क़ुर्आन में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने सलाम पढ़ने पर कोई क़ैद लगाई है कि ऐसे पढ़ो और ऐसे ना पढ़ो या तन्हा पढ़ो मगर भीड़ में ना पढ़ो तो जब उसने कह दिया पढ़ो तो जो जिस ज़बान में और जैसे भी पढ़ेगा उसी का हुक्म अदा करेगा,अब ज़रा चलते चलते इन मुनाफिकों के इमाम का भी एक क़ौल मुलाहज़ा कर लें रशीद अहमद गंगोही ने एक सवाल के जवाब में लिखा*

वहाबी:- *_ताज़ीमे दीनदार को खड़ा होना दुरुस्त है_*

*📚 फ़तावा रशीदिया, जिल्द 1, सफ़ह 54*

*और अशरफ अली थानवी के पीरो मुर्शिद हाजी इम्दाद उल्लाह मुहाजिर मक्की रहमतुल्लाहि तआला अलैहि लिखते हैं*

फुक़्हा:- *_मशरब फक़ीर का ये है कि महफिले मिलाद में शरीक होता हूं बल्कि ज़रियये बरकात समझ कर हर साल मुनक़्क़िद करता हूं और क़याम में लुत्फो लज़्ज़त पाता हूं_*

*📚 फैसला हफ्त मसला, सफ़ह 111*

*पीर को तो सलाम पढ़ने में लुत्फ मिल रहा है और मुरीद हराम और शिर्क का फतवा दे रहा है,अल्लाह ही जाने वहाबियों के यहां दीन किस चीज़ का नाम है*






*कुफ्र की किस्में*
कुफ्र की किस्में:- *_इसकी 2 किस्में हैं असली व मुर्तद_*

1-असली:- *_वो जो शुरू से काफिर और कल्मए इस्लाम का मुनकिर है,इसकी भी 2 किस्में हैं मुजाहिर व मुनाफिक़,मुजाहिर की भी 4 किस्में हैं_*

दहरिया:- *_ये खुदा का ही मुनकिर है_*

मुशरिक:- *_अल्लाह के सिवा बुतों को अपना मअबूद समझना और किसी और की इबादत करना जैसे हिन्दू व आर्य वग़ैरह_*

मजूसी:- *_आग की पूजा करने वाले_*

किताबी:- *_यहूद व नसारा_*

*_दहरिया व मुश्रिक व मजूसी का ज़बीहा हराम और उनकी औरतों से निकाह बातिल जबकि किताबी से निकाह हो जायेगा मगर मना है_*

2-मुर्तद:- *_वो जो मुसलमान होकर कुफ्र करे इसकी भी 2 किस्में हैं,मुजाहिर व मुनाफिक़_*

मुर्तद मुजाहिर:- *_वो जो मुसलमान था मगर अलल ऐलान इस्लाम से फिर कर काफिर हो गया यानि दहरिया या मुश्रिक या मजूसी या किताबी हो गया_*

मुर्तद मुनाफिक़:- *_वो जो अब भी कल्मा पढ़ता है और अपने आपको मुसलमान कहता है मगर खुदा व रसूल की शान में गुस्ताखी करता है और ज़रूरियाते दीन का इन्कार करता है जैसे कि वहाबी,देवबंदी,क़ादियानी,खारिजी,राफजी यानि शिया,अहले हदीस,जमाते इस्लामी यानि मौदूदवी और भी बदमज़हब फिरके हैं,हुक्मे दुनिया में सबसे बदतर मुर्तद हैं इनसे जुज़िया नहीं लिया जा सकता इनका निकाह दुनिया में किसी से नहीं हो सकता ना मुसलमान से ना काफिर से ना मुर्तद से ना इनके हम मज़हब गर्ज़ कि किसी हैवान से भी नहीं हो सकता जिससे भी होगा ज़िना खालिस होगा,ये काफिर की सबसे बदतर किस्म है इसकी सोहबत हज़ार काफिरों की सोहबत से भी ज़्यादा खतरनाक है क्योंकि ये मुसलमान बनकर कुफ्र सिखाता है_*

*📚 अहकामे शरीअत, हिस्सा 1, सफह 111*

*वैसे तो क़ुर्आन में मुनाफिक़ों के बारे में बेशुमार आयतें नाज़िल हुई हैं मगर सबका ज़िक्र ना करके सिर्फ उन आयतों को पेश करता हूं जिनमें उनकी इबादत उनके एहकाम और उनका हश्र बयान हुआ हो,मुलाहज़ा फरमायें*

कंज़ुल ईमान:- *_और वो जो खर्च करते हैं उनका क़ुबूल होना बन्द ना हुआ मगर इसलिये कि वो अल्लाह और रसूल से मुनकिर हुए और नमाज़ को नहीं आते मगर जी हारे और खर्च नहीं करते मगर ना गवारी से_*

*📚 पारा 10, सूरह तौबा, आयत 54*

*आज जो लोग बद अक़ीदों की नमाज़ और उनके सदक़ात और उनकी मिसाल देकर लोगों को समझाया करते हैं कि देखो ये लोग कितने मुत्तक़ी हैं तो वो इस आयत को बग़ौर पढ़ें,इसमें मौला तआला ने साफ फरमा दिया कि कुछ लोग नमाज़ तो पढ़ते हैं मगर दिल से नहीं बल्कि दिखावे के तौर पर पढ़ते हैं और जो खर्च करते हैं यानि ज़कातो फित्रा वगैरह वो भी मजबूरी और नागवारी से खर्च करते हैं और उनकी कोई इबादत हरगिज़ क़ुबूल नहीं*

कंज़ुल ईमान:- *_और वो जिन्होंने मस्जिद बनाई नुक्सान पहुंचाने को और कुफ्र के सबब और मुसलमानों में तफरक़ा डालने को और उसके इंतेज़ार में जो पहले से अल्लाह और उसके रसूल का मुखालिफ है,और वो ज़रूर कसमें खायेंगे हमने तो भलाई चाही और अल्लाह गवाह है कि वो बेशक झूठे हैं.उस मस्जिद में तुम कभी खड़े ना होना_*

*📚 पारा 11, सूरह तौबा, आयत 107-108*

*आँख खोलकर इस आयत को पढ़िये और बताइये कि क्या हर मस्जिद खुदा का घर है अगर होती तो मौला तआला खुद उस मस्जिद में अपने महबूब को जाने से क्यों मना करता,ये मस्जिदे दर्रार थी जिसको खुदा का हुक्म आने पर हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अपने सहाबा को भेजकर आग लगवा दी थी मगर उन मुनाफिक़ों की औलादें आज तक मुसलमानों की मस्जिदों और उनके नमाज़ियों में तफरक़ा डालने के लिए हर जगह अपनी मस्जिदें बनाते नज़र आते हैं और उनकी मस्जिदें हरगिज़ खुदा का घर नहीं और ना मुसलमान को उसमे जाने की इजाज़त है,क्यों इजाज़त नहीं है खुद ही पढ़ लीजिये*

कंज़ुल ईमान:- *_और कहते हैं हम ईमान लाये अल्लाह और रसूल पर और हुक्म माना फिर कुछ उन में के उसके बाद फिर जाते हैं और वो मुसलमान नहीं_*

*📚 पारा 18, सूरह नूर, आयत 47*

*यानि जो खुदा व रसूल से दुश्मनी करे और जो ज़रूरियाते दीन का मुनकिर है उसमे और काफिर में क्या फर्क रहा वो भी उन्हीं की तरह काफिर हुआ और काफिरों के पीछे नमाज़ नहीं पढ़ी जाती इसीलिए ना उनकी मस्जिदों में मुसलमान को जाने की इजाज़त है और ना उनके पीछे नमाज़ पढ़ने की*

कंज़ुल ईमान:- *_और उनमें से किसी की मय्यत पर कभी नमाज़ ना पढ़ना और ना उनकी क़ब्र पर खड़े होना,बेशक वो अल्लाह और रसूल से मुनकिर हुए और फिस्क़ ही में मर गये_*

*📚 पारा 10, सूरह तौबा, आयत 84*

*अल्लाह अल्लाह,मौला तो ये फरमा रहा है कि उनकी मस्जिदें मस्जिदें नहीं,उनकी नमाज़ नमाज़ नहीं,उनके रोज़ रोज़े नहीं,उनकी इबादतें इबादतें नहीं,वो हरगिज़ मुसलमान नहीं उनकी मय्यत पर जाना नहीं और आज का जाहिल मुसलमान है कि कहता है सब अल्लाह के बन्दे हैं हर मस्जिद खुदा का घर है वो भी मुसलमान हैं मआज़ अल्लाह,अगर बद मज़हब मुसलमान होता तो क्या मौला ये फरमाता,पढ़िये*

कंज़ुल ईमान:- *_बेशक अल्लाह मुनाफिक़ों और काफिरों सबको जहन्नम में इकट्ठा करेगा..........बेशक मुनाफिक़ दोज़ख के सबसे नीचे तबके में हैं_*

*📚 पारा 5, सूरह निसा, आयत 140/145*

*अब अगर अपने ईमान की खैर चाहते हैं तो वहाबियों,देवबंदियों,क़ादियानियों,खारजियों,राफजियों,अहले हदीसों,मौदूदवियों और भी दीगर बद मज़हब फिरकों के मानने वालो को मुसलमान समझना छोड़ दीजिये और उनसे दूरी बना लीजिए वरना मौला क़यामत के दिन उन्हीं के साथ उठाकर उन्ही सा हश्र करके उन्हीं के साथ हमेशा के लिए जहन्नम में डाल देगा,ये मैं नहीं कह रहा बल्कि मौला तआला खुद फरमा रहा है,पढ़ लीजिये*

कंज़ुल ईमान:- *_ऐ ईमान वालों अपने बाप और अपने भाईयों को दोस्त ना बनाओ अगर वो ईमान पर कुफ्र पसंद करें और फिर जो तुममें से उनसे दोस्ती रखे तो वही लोग सितमगार हैं..........वो जो रसूल अल्लाह को ईज़ा देते हैं उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है_*

*📚 पारा 10, सूरह तौबा, आयत 23/61*

*जो मेरे आक़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताखी करता है वो तो जहन्नमी है ही मगर वो भी जहन्नमी है जो उनसे दोस्ती या रिश्तेदारी रखेगा ग़ौर कीजिये कि जब सगा बाप और सगा भाई मुर्तद हो जाये तो उनसे रिश्ता तोड़ देने का हुक्म है तो जो लोग पड़ोसियों और रिश्तेदारों और दीगर अज़ीज़ो का हवाला देते हैं क्या उन बद मज़हबो से रिश्ता रखना जायज़ होगा हरगिज़ नहीं,लिहाज़ा जिस तरह बद मज़हबो से परहेज़ किया जाये उसी तरह उन दोगले सुन्नियों से भी परहेज़ किया जाये जो बद मज़हब को बद मज़हब नहीं जानते,मौला तआला सुन्नियों को ऐसे लोगों से दूरी बनाये रखने की तौफीक़ अता फरमाये और मसलके आलाहज़रत पर सख्ती से क़ायम व दायम रहने की तौफीक़ अता फरमाये,आमीन बिजाहिस सय्यदिल मुरसलीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम*




अमीर मुआविया
*_सवाल------ अमीर मुआविया जिनहोंने ह़ज़रते मौला अली से जंग की थी इस बिना पर उनकी तारीफ की जाए या उनकी बुराई की जाए,_*

*_जवाब------ सबसे पहले तो ये जान लीजिए कि ह़ज़रते अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु तआला अन्हु कौन हैं और उनका मरतबा किया है,_*

*_1. उनकी बहन ह़ज़रते उम्मे ह़बीबा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की बीवी हैं,_*

*_2.खुद हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उनके लिए हिदायत याफ्ता होने और हिदायत देने वाला होने की दुआ की,_*

*_3. उनको हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने वह़ी किताबत का काम सौंपा,_*

*_4. ह़ज़रते उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु जो कि पहली सदी हिजरी के मुजद्दिद और खिलाफते राशिदा के 5 वें इमाम हैं उनको इमामुल हुदा भी कहा जाता है और उनकी ज़ियारत करने को खुद ह़ज़रते खिज्र अलैहिस्सलाम अक्सर तशरीफ लाया करते थे,ऐसा अज़ीम पेशवा खुद फरमाता है कि हज़रते अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के घोड़े की नाल में जो गरदो गुबार रहता है मेरा मरतबा उस गुबार तक नहीं पहूंचता अल्लाहू अकबर, तो फिर अन्दाज़ा लगायें कि ह़ज़रते अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का किया मरतबा होगा,_*

*_5. ह़ज़रते अल्लामा शहाबुद्दीन खफ्फाजी अपनी किताब नसीमुर रियाज़ में लिखते हैं कि जो कोई ह़ज़रते अमीर मुआविया पर लअन तअन करे वो जहन्नम के कुत्तों में से एक कुत्ता है,_*

*_6. रईसुल मुफस्सिरीन ह़ज़रते अब्दुल्ला इबने अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हु खुद उनको मुजतहिद जानते थे,_*

*_7. बड़े बड़े सहाबीये इकराम ने उनसे ह़दीसें रिवायत की हैं_*

*_8. ह़ज़रते उमर फारुक़े आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने आपको दमिश्क में ह़ाकिम बनाया और आखिरी उमर तक उनको माज़ूल ना फरमाया जबकि आप ज़रा ज़रा सी बात पर लोगों को उनके मनसब से हटा दिया करते थे यहाँ तक कि ह़ज़रते खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु जैसी ज़ात को भी आपने नहीं बखशा और माज़ूल फरमाया,इससे साफ पता चलता है कि आपसे कभी कोई लगज़िश नहीं हुई वरना आप अपने मनसब पर ना रहते,_*

*_9. आप हमैशा अहले बैते अतहर पर दिल खोलकर खर्च किया करते थे, एक मरतबा आपने 4,00000 दरहम ह़ज़रते इमाम हसन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को पेश किया जिसे उन्होंने क़ुबूल फरमाया,_*

*_10. आप एक बा करामत सहाबी हुए हैं,_*

*_अब रही बात सहाबी ऐ इकराम के आपसी तअल्लुक़ात की तो अगर चेह किसी की किसी से ना बनती रही हो फिर भी हमें उनके बीच बोलने का कोई हक़ नहीं पहुंचता,हम और आप उनके मुआमले में बोलने वाले होते कौन हैं हमारी औक़ात किया है,अरे जब अल्लाह तआला खुद क़ुरआन में फरमा चुका है कि'',,मैं उन सबसे राज़ी हूँ,, तो क्या इस आयत से हजरते अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को अलग कर देंगे,मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मुहब्बत रखें ज़रूर रखें मगर यूँ नहीं कि उनकी मुहब्बत में दूसरे सहाबी को गाली देने लगें अगर कोई ऐसा करेगा तो यक़ीनन यक़ीनन अपना ठीकाना जहन्नम में बनायेगा,और आखिरी बात अगर सवाल यही है कि ह़ज़रते अमीर मुआविया ने मौला अली से जंग की तो अब ह़ज़रते अमीर मुआविया को बुरा कहा जाऐ,माज़ अल्लाह तब तो यही हुक्म खुद मौला अली पर भी आयद हो रहा है कि आप भी महबूबये महबूब रब्बुल आलमीन उम्मुल मोमीनीन ह़ज़रत सय्यदना आईशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु त आला अन्हा के खिलाफ हो गये थे,और उन से जंग पर आमादा हो गये थे अगर चेह खता किसी की भी रही हो मगर हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का क़ौल तो यही की मेरी बीवीयां तुम्हारी माँ ऐं हैं तो जो औलाद अपनी माँ के खिलाफ तलवार उठा ले उसे क्या कहेंगे,इसीलिए कहता हूँ कि बड़ो के आपसी मुआमलात में बोलने का हक़ हम जैसों को हरगिज़ नहीं है खामोश रहेंगे तो निजात पायेंगे,_*

*📚खुतबाते मुहर्रम सफह 329/364*





*_सवाल ------ जब चारों इमाम में इख्तिलाफ है तो चारों हक़ पर कैसे हैं,_*
*_जवाब -------- पहले आप समझ लें कि मसायल के 4 इमाम हैं,हज़रते इमामे आज़म हज़रते इमाम शाफयी,हज़रते इमाम मालिक और हज़रते इमाम अहमद बिन ह़म्बल,ये चारों ही अक़ायद पर मुत्तफिक़ हैं इख्तिलाफ है तो फुरु में,इस ज़माने में हक़ इन्हीं चारों में से किसी एक की पैरवी में है और जो इन से अलग हुआ वो गुमराह बे दीन है,_*

*_आपके सवाल का जवाब ये है कि चारों ही इख्तिलाफ के बावजूद हक़ पर कैसे हैं,इसके लिए ये ह़दीसे पाक पढ़ीये बनी क़ुरैज़ा पर जल्द पहुंचने की गर्ज़ से हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अपने सहाबियों में ये ऐलान करवाया कि हम असर की नमाज़ बनी क़ुरैज़ा पहुँच कर पढ़ेंगे,सभी ह़ज़रात जुहर पढ़कर निकले और सफर करते रहे यहाँ तक कि असर का वक्त बहुत थोड़ा रह गया,तो कुछ सहाबा ऐ इकराम ने नमाज़ पढ़नी चाही तो कुछ नें मना किया कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का कहना है कि नमाज़ वहीं पहुँच कर पढ़ेंगे इसपर वो सहाबा कहने लगे कि हुज़ूर का कहना बिलकुल हक़ है मगर उनहोंने ये नहीं कहा कि अगर नमाज़ का वक्त निकल जाये तब भी मत पढ़ना तो वो सहाबा नमाज़ पढ़े और कुछ नहीं पढ़े जब हुज़ूर बनी क़ुरैज़ा पहुँच गए तो नमाज़े क़ज़ा पढ़ी गयी फिर हुज़ूर के सामने उन सहाबियों का तज़किरा हुआ तो आपने फरमाया की जिनहोंने पहले पढ़ ली उनको सवाब और जिनहोंने अब मेरे साथ पढ़ी उनको दो गुना सवाब,देखिये यहाँ नमाज़ अदा करने पर भी सवाब मिल रहा है और क़ज़ा करने पर भी सवाब मिल रहा है तो बस इसी तरह चारों इमाम मुजतहिद थे जिसने सही मस्अला अपने हिसाब से निकाला तो उसे दो गुना सवाब और जिसने मस्अला समझने में गलती की तो उस गलती पर भी एक गुना सवाब,कियोंकि मुजतहिद की खता माफ है,_*

*_और ये इख्तिलाफ उम्मत के लिए रह़मत इस तरह है कि किसी को दीन की किसी बात पर अमल करने का मौक़ा मिल रहा है किसी को किसी दूसरी बात पर कियोंकि शरीयत एक चमन है और चमन हर तरह के फूलों से बनता है कहीं गुलाब तो कहीं चमेली कहीं कहीं जूही तो कहीं नरगिस,और अवाम को इख्तिलाफ में पडने को इसलिए मना किया जाता है कि वो इल्म तो रखते नहीं हैं तो वो किसी बात का इंकार कर बैठेंगे जो उनकी आखिरत खराब कर देगा,लिहाज़ा यही कहा जाता है कि अपने इमाम की पैरवी करो और इख्तिलाफ में ना पड़ो,_*

*📕बुखारी शरीफ जिल्द 1 किताबुल जिहाद*
*📕मुस्लिम शरीफ जिल्द 2 सफह 95*




_*पाखाने में थूकना कैसा है.?*_
_*हुज़ूर आलाहज़रत इमाम अहमद रज़ा खान अलैहिर्रमा तहरीर फरमाते हैं.!*_

_*पाखाने में थूकने की मुमानिअ़त है (यानी मना है) कि मुसलमान का मुँह क़ुरआन-ए करीम का रास्ता है,*_

_*इससे यह ज़िक्र-ए इलाही करता है तो उसका लुआ़ब (थूक) नापाक जगह नहीं होना चाहिए,*_

_*अल्बत्ता वहाँ की दीवार वगैरह जहाँ नजासत ना हो थूकने में हर्ज नहीं!*_

_*📕 फ़तावा रज़वियाह जिल्द 2 सफ़ा 157*_
B
 *(फिक़्ह हनफी) पोस्ट-1*

*ये टॉपिक भी काफी लम्बा चलने वाला है लिहाज़ा मैसेज को सेव करते चलें ताकि आगे चलकर कोई बात अगर ना समझ में आये तो पिछले हिस्से को उठाकर देख सकें,तो चलिये शुरू से शुरू करता हूं*

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम पर क़ुर्आन व हदीस वही की सूरत में उतरा करता जिसे आप सहाबये किराम को बताते और वो अपने इज्तिहाद यानि अपनी अक्ल से उस पर अमल करते,अमल करने का तरीका कभी कभार सबका अलग अलग हो जाया करता मगर चुंकि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम सबके दर्मियान थे और वो सब मुजतहिद थे तो सब हक़ पर ही रहे,फिर जब उनका ज़माना गुज़रने लगा तो बाद वालों को किसी की पैरवी करने की ज़रूरत पड़ी क्योंकि अब ना तो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की ज़ाहिरी हयात थी और ना सहाबये किराम का दौर,तो ऐसे में बाद वालों ने सहाबये किराम से तल्मीज़ इमामों की इत्तेबा शुरू की,दूसरी सदी हिजरी से पहले मसायल के बहुत से इमाम गुज़रे मगर उनका मज़हब कुछ ही आगे बढ़कर खत्म हो गया और दूसरी सदी के बाद पूरी उम्मते मुस्लिमा ने 4 इमाम पर ही इक़्तिफा कर लिया 1.इमामे आज़म जिनके मानने वाले हनफी 2.इमामे शाफई जिनके मानने वाले शाफई 3.इमाम मालिक जिनके मानने वाले मालिकी 4.इमाम अहमद बिन हम्बल जिनके मानने वाले हंबली कहलाते हैं*

*📚फतावा रज़वियह,जिल्द 3,सफह 321*

*अक़ायद यानि जिन बातों का ज़बान से इकरार करना और दिल से मानना ज़रूरी है उसको अक़ीदा कहते हैं,अक़ायद के 2 इमाम हैं पहले हज़रत सय्यदना अबू मंसूर मातुरीदी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि इनके मानने वालों को मातुरीदिया और दूसरे हज़रत अबुल हसन अशअरी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि और इनके मानने वालो को अशअरी कहते हैं,ये दोनों ही हक़ पर हैं अलबत्ता इख्तिलाफ फुरू यानि अस्ल से निकली हुई बातो में है अहले सुन्नत व जमाअत अक़ायद में इन्हीं दोनों की पैरवी करते हैं तो अब जो इनके खिलाफ कोई अक़ीदा रखेगा अगर वो कुफ्र की हद तक पहुंच गया तो काफिर है वरना गुमराह है*

*📚मज़हबे इस्लाम,सफह 4*
*📚निबरास,सफह 229*

*हनफी-शाफई-मालिकी व हंबली अब दीन इन्ही चारों में से किसी एक की पैरवी करने का नाम है,अगर चे इनके आपस में फुरुई इख्तिलाफ बहुत हैं मगर अक़ायद में सब एक हैं इसीलिए ये चारों ही हक़ पर हैं,सो इस वक़्त इन 4 के सिवा किसी की पैरवी जायज़ नहीं यानि आदमी अब या तो हनफी होगा या शाफई या मालिकी होगा या हंबली और जो इन चारों से खारिज है वो गुमराह व बे दीन है जैसे कि ग़ैर मुक़ल्लिद यानि बराये नाम अहले हदीस*

*📚तहतावी,जिल्द 4,सफह 153*
*📚तफसीरे सावी,जिल्द 3,सफह 9*

*अब इख्तिलाफ होने के बाद भी चारों हक़ पर कैसे हैं तो इसको युं समझिये कि शरीयत एक बाग़ है और बाग़ हर तरह के फूलों से बनता है कहीं गुलाब है तो कहीं जूही कहीं चंपा है तो कहीं चमेली,उसी तरह इमामों का इख्तिलाफ भी बाग़ के फूलों की तरह है और इसी इख्तिलाफ को मेरे आक़ा सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम "इख़्तिलाफु उम्मती रहमतुन" फरमाते हैं यानि मेरी उम्मत का इख्तिलाफ रहमत है,फरुई इख्तिलाफ में रास्ते अगर चे मुक्तलिफ यानि अलग अलग होते हैं मगर मक़सद सबका एक ही होता है,ये हदीसे पाक पढ़िये इन शा अल्लाह समझ में आ जायेगा*

*बनी क़ुरैज़ा पर जल्द पहुंचने की गर्ज़ से हुज़ूर सल्लललाहो अलैहि वसल्लम ने अपने सहाबियों में ये ऐलान करवाया कि हम अस्र की नमाज़ बनी क़ुरैज़ा पहुंचकर पढेंगे,सभी हज़रात ज़ुहर पढ़कर निकले और सफर करते रहे यहां तक कि अस्र का वक़्त बहुत थोड़ा सा रह गया,तो कुछ सहाबये किराम ने नमाज़ पढ़नी चाही तो कुछ सहाबा ने मना किया कि हुज़ूर का कहना था कि नमाज़ हम बनी क़ुरैज़ा पहुंचकर पढ़ेंगे तो रास्ते में नमाज़ ना पढ़ी जाये,इस पर वो सहाबा कहने लगे कि हुज़ूर का कहना बिल्कुल हक़ है मगर उन्होंने ये भी तो नहीं कहा था कि नमाज़ क़ज़ा कर देना तो उन सहाबये किराम ने नमाज़ पढ़ी और कुछ ने नहीं पढ़ी,जब हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम बनी क़ुरैज़ा पहुंच गए तो नमाज़े अस्र क़ज़ा जमाअत से पढ़ी गई,फिर हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के सामने उन सहाबियों का तज़किरा हुआ तो आपने दोनो को हक़ फरमाया*

*📚 बुखारी,जिल्द 1,सफह 119*

*देखिये यहां नमाज़ अदा करने पर भी सवाब मिल रहा है और क़ज़ा करने पर भी सवाब मिल रहा है क्यों,क्योंकि मक़सद सबका एक ही है हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की इताअत करना मगर मसअला समझने में अपने इज्तिहाद के मुआफिक़ जिसने जैसा फैसला किया उसे वैसा सवाब मिला मगर गुनाह नहीं मिला,तो बस इसी तरह चारों इमाम मुज्तहिद थे उन सबके सामने हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की हदीस थी अब जिसने सही मसअला अपने हिसाब से निकाला तो उसे दो गुना सवाब मिलेगा और जिसने मसअला समझने में खता की तो उस खता पर भी उसे एक गुना सवाब ही मिलना है गुनाह नहीं होगा क्योंकि मुज्तहिद की खता मुआफ है*

जारी रहेगा....



🕋✭ ﺑِﺴْــــــــــــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّحْمٰنِﺍلرَّﺣِﻴﻢ ✭🕌
*(फिक़्ह हनफी)पोस्ट-2*

*अब आपको ये बताता हूं कि तक़लीद क्यों ज़रूरी है,फुक़्हा फरमाते हैं कि ये ज़रूरी नहीं कि हर अरबी जानने वाला भी क़ुर्आनो हदीस के सही मफहूम को समझ सके,उसके लिए ये हदीस पढ़िये*

*हदीस* - सहरी के ताल्लुक से मौला तआला क़ुर्आन में इरशाद फरमाता है कि خيط ابيض وخيط اسود लुग़त के ऐतबार से इसका माने बनता है सफेद धागा और काला धागा,तो एक सहाबी अपने तकिये के नीचे 2 धागा एक काला और एक सफेद रखकर सो गये ताकि फर्क कर सकूं कि सहरी का वक़्त कब तक है मगर पूरी रात उसे देखते रहे और उसमे तमीज़ ना कर सके,आखिर में हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में हाज़िर हुए और पूरी बात बताई,ये सुनकर हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम मुस्कुरा दिये और फरमाया कि यहां सफेद धागा और काला धागा मुराद नहीं है बल्कि जब रात की स्याही में सफेदी दाखिल होने लगे ये मुराद है

*📚अहले-हदीस का नया दीन,सफह 22*

*अब ज़रा सोचिये कि वो सहाबी हमारी तरह गैर अरबी नहीं थे कि 10-20 साल पढ़कर अरबी बने हों बल्कि उनकी पैदाईश उनकी ज़बान ही अरबी थी जब ये कलाम उनकी समझ में नहीं आया तो हम और आप किस गिनती में हैं,लिहाज़ा पूरी क़ुर्आन उठाकर देख ली जाये कि सैकड़ों नहीं बल्कि हज़ारों ऐसे मसले उसमे दर्ज हैं जिनके लिए हदीस का सहारा लेना पड़ेगा वरना वो हमारी अक़्लो फहम में भी नहीं आयेंगे फिर उसी तरह हज़ारों नहीं लाखों हदीसें हैं जिनकी इस्लाह बाद के फुक़्हा फरमाते हैं कि किस पर अमल करना है और किस पर नहीं क्योंकि हर हदीस पर अमल करना ज़माने के हिसाब से हरगिज़ नहीं हो सकता लिहाज़ा तक़लीद की ज़रूरत पड़ेगी,क़ुर्आनो हदीस व इज्माअ पर मैं तक़लीद के नाम से पोस्ट कर चुका हूं पूरी तफसील उसी पोस्ट से हासिल करें यहां सिर्फ एक आयत पेश करता हूं मगर इन शा अल्लाह इसी एक आयत से क़ुर्आनो हदीस और फुक़्हा की अहमियत पता चल जायेगा,मौला तआला इरशाद फरमाता है कि*

*कन्ज़ुल ईमान* - ऐ ईमान वालो हुक्म मानो अल्लाह का (यानि क़ुर्आन) और हुक्म मानो रसूल का (यानि हदीस) और उनका जो तुममे हुकूमत वाले हैं (यानि उल्मा)

*📚पारा 5,सूरह निसा,आयत 59*

*अगर चे ज़ाहिरन यहां हुकूमत वाले यानि बादशाह कहा गया है मगर हक़ीक़त में यहां उल्मा ही मुराद हैं क्योंकि मुसलमान बादशाह हमेशा ही अपने दरबार में उल्मा का हुजूम रखते थे और उन्हीं से पूछकर ही सज़ा या जज़ा का हुक्म सादिर फरमाते थे लिहाज़ा यहां उल्मा का ही हुक्म मानने को कहा जा रहा है,लेकिन अगर कोई हठधर्मी कहे कि यहां उल्मा नहीं लिखा है बल्कि अम्र वाले यानि बादशाहो का हुक्म मानने की ही बात है तो जब भी हम अहले सुन्नत व जमाअत का अक़ीदा इससे सही साबित होता है कि बादशाह भी अल्लाह व रसूल नहीं और उनका हुक्म क़ुर्आनो हदीस नहीं लिहाज़ा यहां किसी तीसरे की इत्तेबा करने का हुक्म तो मौला दे ही रहा है,अब क़यास की दलील मुलाहज़ा फरमायें*

*हदीस* - हज़रत माअज़ बिन जबल रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को जब हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने यमन का क़ाज़ी बनाकर भेजा तो आपसे पूछा कि ऐ माअज़ जब लोगों का फैसला करोगे तो किस तरह करोगे तो हज़रत माअज़ फरमाते हैं कि अल्लाह की किताब से फिर हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने पूछा कि अगर उसमे ना पाओ तो तो हज़रते माअज़ फरमाते हैं कि फिर मैं हदीसे पाक से फैसला करूंगा फिर हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने पूछा कि अगर उसमे भी ना पाओ तो तब हज़रते माअज़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि फिर मैं उन दोनों को सामने रखकर अपने इज्तिहाद से फैसला करूंगा ये सुनकर हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने उनके सीने पर हाथ मारा और फरमाया कि ऐ माअज़ तुमको इल्म मुबारक हो

*📚तिर्मिज़ी,जिल्द 3,हदीस 1327*
*📚अबु दाऊद,जिल्द 3,हदीस 3592*
*📚मिश्कात,जिल्द 2,सफह 204*

*हदीस* - हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं क जब हाकिम अपने इज्तिहाद से फैसला करे तो अगर उसका फैसला सही होगा तो उसको दुगना अज्र मिलेगा और अगर उसका फैसला गलत होगा तब उसे एक गुना अज्र मिलेगा

*📚बुखारी,हदीस 7352*
*📚मुस्लिम,जिल्द 6,हदीस 1716*
*📚इब्ने माजा,जिल्द 3,हदीस 2314*
*📚अबु दाऊद,जिल्द 3,हदीस 3574*
*📚मिश्कात,जिल्द 2,सफह 203*

*ये है क़यास की दलील कि खुद हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने अपने सामने क़ुर्आनो हदीस के अलावा अपने इज्तिहाद से फैसला फरमाने का हुक्म दिया,लिहाज़ा आज जो अपने आपको बराये नाम अहले हदीस कहते हैं वो पहले खुद तो देख लें कि उनका अमल हदीसों पर है भी कि नहीं*

*जारी रहेगा.....*



🕋✭ ﺑِﺴْــــــــــــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّحْمٰنِﺍلرَّﺣِﻴﻢ ✭🕌
*(फिक़्ह हनफी) पोस्ट-3*

_*चुंकि पहली 2 पोस्ट में मैं हदीसो फिक़ह व क़यास की ज़रूरत की दलील दे आया हूं अब अक़लन भी कुछ समझ लीजिये,लोग कहते हैं कि क़ुर्आन में सब कुछ है तो हमें किसी और किताब की ज़रूरत ही क्या है हमारे लिए क़ुर्आन ही काफी है तो बेशक क़ुर्आन में सब कुछ है ये हर मुसलमान और हर नाम निहाद मुसलमान भी मानता है मगर क्या सिर्फ क़ुर्आन से ही एक आम मुसलमान हर मसला हल कर सकता है यक़ीनन नहीं,मिसाल के तौर पर क़ुर्आन में तक़रीबन 700 से ज़्यादा बार नमाज़ का हुक्म आया है कि नमाज़ क़ायम करो नमाज़ क़ायम करो नमाज़ क़ायम करो मगर पूरी क़ुर्आन उठाकर पढ़ लीजिए कहीं भी नमाज़ पढ़ने का तरीक़ा नहीं लिखा है कि पहले नियत बांधो फिर क़याम करो फिर रुकू करो फिर सज्दा करो क़ायदा अव्वल क़ायदा अखीरा फिर सलाम फेरकर नमाज़ खत्म करो,ये तरीका हमें कहां से पता चला ज़ाहिर है कि हदीस से पता चला और हदीस हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के क़ौले मुबारक को कहते हैं,क़ुर्आन वहिये जली है यानि तिलावत करने वाली है और हदीस वहिये खफी है यानि तिलावत ना करने वाली है मगर है दोनों ही खुदा के हुक्म से जैसा कि खुद मौला तआला क़ुर्आन में इरशाद फरमाता है कि*_

*कंज़ुल ईमान* - और वो कोई बात अपनी ख्वाहिश से नहीं करते.वो तो नहीं मगर वही जो उन्हें की जाती है

*📚पारा 27,सूरह वन्नज्म,आयत 3-4*

_*तो मानना पड़ेगा कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का क़ौल भी दर असल खुदा का ही हुक्म होता है और इससे ये भी पता चलता है कि क़ुर्आन के जितने भी छुपे हुए राज़ हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने हमें बताये हैं वो खुद क़ुर्आन में मौजूद हैं इसका भी तज़किरा क़ुर्आन से ही सुन लीजिए*_

*कंज़ुल ईमान* - रहमान.ने अपने महबूब को क़ुर्आन सिखाया.इंसानियत की जान मुहम्मद को पैदा किया.मा कान व मा यकून का बयान उन्हें सिखाया

*📚पारा 27,सूरह रहमान,आयत 1-4*

_*सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम,इस आयत को देखिये कि जब अल्लाह ने क़ुर्आन में ही फरमा दिया है कि इस किताब में हर चीज़ का बयान दर्ज है तो फिर अलग से हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को बयान सिखाने की क्या ज़रूरत थी जबकि पहली आयत में तो खुद ही फरमा रहा है कि मैंने उनको क़ुर्आन सिखा दिया,इसका मतलब साफ है कि क़ुर्आन का पढ़ना और है और क़ुर्आन का बयान और है और हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को दोनों का इल्म है यानि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम क़ुर्आन तो जानते ही हैं और क़ुर्आन का बयान यानि उसमें छिपे हुए राज़ को भी जानते हैं,तो अब वो लोग जो रटटू तोते की तरह ये रटते रहते हैं कि हमें क़ुर्आन काफी है हमें क़ुर्आन काफी है क्या वो सिर्फ क़ुर्आन पढ़कर उसमें छिपे हुए उसके मानी और मक़ासिद को भी समझ लेंगे नहीं नहीं और हरगिज़ नहीं,क़ुर्आन को समझाने के लिए कोई ना कोई चाहिए ही चाहिए वरना जिनको लगता है कि वो खुद क़ुर्आन पढ़कर खुद ही उसका माअनी भी समझ लेंगे तो वो क़ुर्आन की ही ये आयत पढ़ लें जिसमे मौला तआला इरशाद फरमाता है कि*_

*कंज़ुल ईमान* - अल्लाह बहुतेरों को इससे गुमराह करता है और बहुतेरों को हिदायत अता फरमाता है

*📚पारा 1,सूरह बक़र,आयत 26*

*अब इसका मतलब इस मिसाल से समझिये,दुनिया जानती है कि मोती समन्दर की तह में होता है तो अगर हमें या आपको मोती की ज़रूरत पड़ जाए तो क्या करेंगे क्या समंदर में डुबकी लगाकर उसकी तह से मोती निकाल लायेंगे या जाकर बाज़ार से खरीद लेंगे ज़ाहिर सी बात है कि बाज़ार से ही खरीदेंगे,क्योंकि समंदर में डुबकी लगाकर मोती निकालना ये आम इंसान का काम नहीं है बल्कि इसके लिए एक गोताखोर की ज़रूरत पड़ती है जिसे इस काम का खूब तजुर्बा होता है वो ही समन्दर से मोती निकालता है और उसका निकाला हुआ मोती बाज़ार से खरीदना पड़ता है,अब कोई अहमक़ ये कहे कि नहीं मैं भी समंदर से मोती निकालकर लाऊंगा क्योंकि मोती तो समन्दर में ही है तो मैं बाज़ार से क्यों खरीदूं तो उसका अंजाम क्या होगा ये बताने की ज़रूरत नहीं,तो जब दुनिया के समन्दर से दुनियावी मोती हासिल करना हर इंसान के बस में नहीं कि जान का खतरा हो सकता है तो फिर क़ुर्आन के अज़ीम समंदर से मसायल के मोती निकाल लाना ये भी आम इंसान का काम नहीं है अगर वहां जान का खतरा है तो यहां ईमान का खतरा है,इसके लिए भी अल्लाह ने बेहतरीन गोताखोर पैदा किये हैं जैसे इमामे आज़म इमाम शाफई इमाम मालिक इमाम अहमद बिन हम्बल व ढ़ेरो फुक़्हा व मुज्तहिद हैं जो क़ुर्आन के समंदर में गर्क होकर वहां से मसअले निकाल लाते हैं और हमें वही मसअले उनसे सीखने पड़ते हैं यही तक़लीद कहलाती है और इसकी दलील से क़ुर्आन और हदीस भरे हुए हैं,क़ुर्आन पढ़ना और फिर बगैर किसी आलिम के बताये खुद से उसका मानी समझ लेना इसकी एक मिसाल समझ लीजिये कि क़ुर्आन पढ़कर लोग गुमराह कैसे होते हैं,मौला तआला इरशाद फरमाता है कि*

*कंज़ुल ईमान* _तो फरमाओ ज़ाहिर सूरत बशरी में तो मैं तुम जैसा हूँ_

*📚पारा 16,सूरह कहफ,आयत 110*

*जारी रहेगा.....*




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*(फिक़्ह हनफी) पोस्ट-4*

_*क़ुर्आन पढ़कर लोग गुमराह कैसे होते हैं आईये इसकी एक मिसाल समझ लीजिये मौला तआला इरशाद फरमाता है कि*_

*कंज़ुल ईमान* - तो फरमाओ ज़ाहिर सूरत बशरी में तो मैं तुम जैसा हूं

*📚पारा 16,सूरह कहफ,आयत 110*

_*अल्लाह ने अपने महबूब की ज़बान से कहलवाया कि ऐ महबूब आप फरमा दीजिये कि मैं भी तुम जैसा इंसान हूं तो जब महबूब ने कह दिया तो फिर क्या था कुछ अक़ल के कोढ़ियों ने अपनी कोढ़ी अक़ल से उसका ये माअनी गढ़ा कि अब हुज़ूर हमारी ही तरह बशर हो गये और इसको युं अपनी नापाक किताबों में लिखा गया*_

*वहाबी* - इस्माईल देहलवी ने लिखा कि "अल्लाह के जितने बन्दे हैं ख्वाह वो अम्बिया हों या औलिया वो सब अल्लाह के बेबस बन्दे हैं और हमारे भाई हैं सो उनकी ताज़ीम बड़े भाई की तरह करो"

*📚तक़वियातुल ईमान,सफह 77*

*वहाबी* - और इसी की ताईद एक और खबीस मलऊन रशीद अहमद गंगोही इस तरह करता है और लिखता है कि "पस किसी ने अगर बवजहये आदम होने के आपको भाई कहा तो क्या गलत कहा वो तो खुद नस के मुआफिक़ ही कहता है"

*📚बराहीने कातिया,सफह 12*

_*बेशक हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इंसान हैं बशर हैं मगर हम जैसे हैं बड़े भाई की तरह हैं ये कहां से साबित हुआ,सबसे पहले तो क़ुर्आन की कुछ आयतें पेश करता हूं जिससे ये मालूम हो जाये कि अम्बिया को बशर या अपनी तरह कहना कैसा है फिर उस आयत का मफहूम बताता हूं कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने अपने आपको बशर क्यों कहा,मौला तआला इरशाद फरमाता है कि*_

*कंज़ुल ईमान* - बोला मुझे ज़ेब नहीं देता कि बशर को सज्दा करूं

*📚 पारा 14,सूरह हजर,आयत 33*

*कंज़ुल ईमान* - बोला मैं इससे बेहतर हूं तूने मुझे आग से बनाया और इसे मिटटी से (बशर)

*📚 पारा 8,सूरह एराफ,आयत 12*

_*ये पहला मलऊन इब्लीस था जिसने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को बशर और अपने आपको उनसे बेहतर कहा और फिर उसका क्या अंजाम हुआ ये सारी दुनिया जानती है*_

*कंज़ुल ईमान* - तो उसकी (हज़रत नूह अलैहिस्सलाम) क़ौम के जिन सरदारों ने कुफ्र किया बोले कि ये तो नहीं मगर तुम जैसा आदमी

*📚 पारा 18,सूरह मोमेनून,आयत 23*

*कंज़ुल ईमान* - (फिरऔनी बोले) क्या हम ईमान ले आयें अपने जैसे 2 आदमियों पर (यानि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम व हज़रत हारून अलैहिस्सलाम)

*📚पारा 18,सूरह मोमेनून,आयत 47*

*कंज़ुल ईमान* - उनके रसूल रौशन दलील लाते तो बोले कि क्या आदमी हमें राह बतायेंगे तो काफ़िर हुए

*📚पारा 28,सूरह तग़ाबुन,आयत 6*

*कंज़ुल ईमान* - तुम तो हम जैसे आदमी हो (यानि हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम)

*📚 पारा 19,सूरह शोअरा,आयत 154*

_*ये क़ुर्आन की चन्द आयतें थीं जिनसे साफ साफ ज़ाहिर होता है कि अगर चे अम्बिया अलैहिस्सलाम ज़ाहिर सूरत बशरी लेकर दुनिया में आयें मगर उनको बशर कहना या अपनी तरह कहना या उनकी तौहीन करना कुफ्र है और क़ुर्आन से साबित है,अब एक हदीसे पाक पढ़ लीजिये इन शा अल्लाह तआला सारा शक़ दूर हो जायेगा*_

*हदीस* - हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने अपने सहाबियों को विसाल के रोज़े (यानि बगैर सहरी किये और बगैर अफ्तार किये रोज़े पर रोज़ा) रखने को मना फरमाया तो सहाबा ने अर्ज़ की कि या रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम आप तो सोमो विसाल रखते हैं तो आप सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि *तुममे से मेरी मिस्ल कौन है*

*📚 बुखारी,जिल्द 1,सफह 745*

_*अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर,सोचिये जब सिद्दीके अकबर उनके मिस्ल नहीं हैं फारूक़े आज़म उनके मिस्ल नहीं हैं ज़ुन्नूरैन उनके मिस्ल नहीं हैं फातहे खैबर उनके मिस्ल नहीं हैं अरे जब ये सब उनके मिस्ल नहीं हैं तो दुनिया में कौन उनकी मिस्ल बन सकता है,अल्लाह कहता है कि अम्बिया को अपनी तरह बशर कहने वाला काफिर है हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम खुद अपनी ज़बानी फरमाते हैं कि तुममें से कोई मेरी तरह नहीं है मगर ये वहाबी कहता है कि हुज़ूर हमारी तरह हैं मआज़ अल्लाह,अब आप खुद फैसला करें कि एक मुसलमान अल्लाह की माने उसके रसूल की माने या इन बदबख्त वहाबियों की माने,हालांकि जिन्होंने हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को तो अपनी तरह बशर कहा मगर उन्ही कमज़र्फों को अपने इमाम और पेशवा को इंसान मानने में तकलीफ हो रही है,ये नबी से दुश्मनी नहीं है तो और क्या है खुद पढ़ लीजिये*_

*वहाबी* - ये (हुसैन अहमद टांडवी) इंसान हैं या कोई फरिश्ता,नहीं नहीं मेरा ज़िद्दी क़ल्ब इसको भी तस्लीम करने पर आमादा ना हुआ कि वो अनवारे क़ुदसिया का सर चश्मा फरिश्ता हो सकता है तो फिर आखिर वो हैं क्या

*📚नज़रे अक़ीदत,सफह 5*

*ये हैं इन बे ईमानो का दीनों मज़हब जहां सारे जहां की रहमत नबियों के नबी हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को तो अपनी तरह बशर कह सकते हैं मगर एक खबीस टांडवी को फरिश्ता मानने में भी शक हो रहा है क्योंकि वो तो फरिश्तों से भी बढ़कर है मआज़ अल्लाह,खैर वापस लौटते हैं*_

*कंज़ुल ईमान* - तो फरमाओ ज़ाहिर सूरत बशरी में तो मैं तुम जैसा हूं

*📚पारा 16,सूरह कहफ,आयत 110*

*तो फिर इसका क्या मतलब है*

*जारी रहेगा.....*



🕋✭ ﺑِﺴْــــــــــــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّحْمٰنِﺍلرَّﺣِﻴﻢ ✭🕌
*(फिक़्ह हनफी) पोस्ट-5*

*कंज़ुल ईमान* - तो फरमाओ ज़ाहिर सूरत बशरी में तो मैं तुम जैसा हूं

*📚पारा 16,सूरह कहफ,आयत 110*

*इसकी कई शरहें हैं 2 का ज़िक्र यहां करता हूं*

1. पहली तो ये कि हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को मौला ने चन्द मोजज़े अता फरमाये थे जैसे कि 1. आपका गहवारे में बोलना 2.नुज़ूले दस्तर ख्वान 3. दस्ते शिफा 4.मिटटी के परिन्द बनाकर उसमे फूंक मारकर जिंदा करके उसे उड़ा देना,इन्ही चंद मोजज़ों को देखकर आपके मानने वाली क़ौम गुमराह हो गई और आपको इब्नुल्लाह यानि खुदा का बेटा कहने लगी मआज़ अल्लाह हालांकि आप अल्लाह के नबी हैं ये बात उनको हमेशा बताते रहे मगर उन जाहिलों की समझ में नहीं आया,अब ज़रा गौर कीजिये की चंद मोजज़े देखकर जिन इंसानों का ये हाल हो गया हो अगर वो हुज़ूर के मोजज़ों की तादाद को मुलाहज़ा करते तो क्या करते,सिर्फ क़ुर्आन मुक़द्दस आपका तन्हा वो मोजज़ा है जिसके बारे में अल्लामा काज़ी अयाज़ रहमतुल्लाहि तआला अलैही फरमाते हैं कि

कलाम उल्लाह में बा ऐतबारे बलाग़त 7000 से कुछ ज़्यादा मोजज़े हैं

*📚मोजज़ाते रसूले करीम,सफह 23*

_*और ज़ाहिर है कि क़ुर्आन आपका मोजज़ये अज़ीम है फिर आप तो सर से लेकर पैर तक मोजज़ा ही मोजज़ा हैं और आपकी ज़ात से तो ला महदूद मोजज़े साबित हैं पर कुछ ऐसे बड़े मोजज़े सादिर हुये जैसे कि शक़्क़ुल क़मर और वाक़िया मेराज इन्हें देखकर कोई भी इंसान आपकी ज़ात में नुबूवत से आगे बढ़ सकता था जिसकी बिना पर मौला तआला ने आपकी ज़बाने तर्जुमान से खुद कहलवाया कि "ऐ महबूब आप फरमा दो कि मैं इंसान हूं" यानि जो इंसान होगा वो ज़ाहिर है कि खुदा नहीं हो सकता लिहाज़ा यहां इस बात का रद्द करने के लिए कहलवाया गया कि आप खुदा नहीं बल्कि इंसान हैं,ना कि आपने ये कहा कि अब मुझे भी अपनी तरह इंसान कहा करो मआज़ अल्लाह इसका जवाब मैं पिछली पोस्ट में दे आया कि आप खुद फरमाते हैं कि "तुममें कोई मेरी तरह नहीं है"*_

*2. कंज़ुल ईमान* - मेरा रब वो है जो मारता है और जिलाता है बोला मैं मारता और जिलाता हूं तो इब्राहीम ने फरमाया कि तो अल्लाह सूरज लाता है पूरब से तू उसको पश्चिम से ले आ

*📚पारा 2,सूरह बक़र,आयत 258*

_*वाक़िया युं है कि जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम नमरूद को समझाने की लिए उसके पास गए तो उससे बोले कि मेरा रब वो है जो मारता है और जिलाता है,इस बात का नमरूद ने गलत मतलब निकाला और कहने लगा कि ये तो मैं भी करता हूं और तब उसने दो कैदियों को बुलवाया एक को फांसी की सज़ा होने वाली थी और दूसरे को आज ही रिहाई मिलने वाली थी तो जिसको रिहाई मिलने वाली थी उसको सूली दे दी और जिसको मौत की सज़ा थी उसको रिहा कर दिया और बोला देखो मैं भी मारता हूं और जिलाता हूं,उसकी ये अहमकाना दलील सुनकर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने कहा कि मेरा रब वो है जो मशरिक से सूरज निकालता है और मग़रिब में डुबोता है अगर तू खुदा है तो मग़रिब से सूरज को निकालकर दिखा,वो सूरज को मग़रिब से ना तो निकाल सका और ना ही निकाल सकता था बात खत्म हो गयी और हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम वापस आ गये,अब सवाल यहां ये उठता है कि अगर नमरूद सूरज को पश्चिम से निकाल देता तो क्या होता क्योंकि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम तो दलील क़ायम कर चुके थे कि अगर तू खुदा है तो सूरज को पश्चिम से निकालकर दिखा,नमरूद तो नहीं निकाल सका मगर सूरज पश्चिम से निकला ज़रूर,कब निकला याद कीजिये मक़ामे सहबा में मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की गोद में सर रखकर सरकार दो आलम सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम सो रहे थे मौला अली ने अब तक अस्र की नमाज़ नहीं पढ़ी थी यहां तक कि सूरज डूब गया और आपकी नमाज़ क़ज़ा हो गयी,आपकी आंखों से चन्द क़तरात आंसुओं के मेरे सरकार के रूखे ज़ेबा पर गिरे और आपकी आंख खुली आपने उनके रोने का सबब पूछा और मामला पता होने पर आपने डूबा हुआ सूरज मग़रिब से निकाल दिया कि अली अपनी नमाज़ अदा फरमा लें,अब बताइये हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के मुताबिक खुदा वो होगा जो सूरज को पश्चिम से निकालेगा अब सूरज तो पश्चिम से निकला मगर मेरे आक़ा हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम हरगिज़ हरगिज़ हरगिज़ खुदा नहीं हैं इसीलिए मौला तआला ने उनकी ज़बान से कहलवाया कि ऐ महबूब आप फरमा दो कि "मैं बशर हूं कोई खुदा नहीं हूं" मगर जाहिलों से अपनी अक़्ल से क़ुर्आन का गलत मतलब निकाला और खुदा ना होने की नफी को अपनी तरह बशर होने की दलील समझ लिया*_

*कंज़ुल ईमान* - अल्लाह बहुतेरों को इससे गुमराह करता है और बहुतेरों को हिदायत अता फरमाता है

*📚पारा 1,सूरह बक़र,आयत 26*

_*अब शायद ये समझ में आ गया होगा कि हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अपने आपको बशर क्यों कहा और ये भी समझ में आ गया होगा कि क्यों लोग क़ुर्आन पढ़कर गुमराह हो जाते हैं,लिहाज़ा क़ुर्आन तो बेशक पढ़ा जाये मगर साथ ही साथ जिसका मतलब ना समझ में आये तो किसी सुन्नी आलिम व उल्मा से उसका मानी और मफहूम भी समझा जाये इसी को तक़लीद कहते हैं,एक अक़ीदे की वज़ाहत करता चलूं कि बेशक आक़ाये करीम सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम बशर हैं मगर हम जैसे नहीं है जो उन्हें अपने जैसा कहे या समझे वो खुद काफिरो मुर्तद है,इसी लिए मेरे आलाहज़रत फरमाते हैं कि*_

*अल्लाह की सर ता बा क़दम शान हैं ये*
*इन सा नहीं इंसान वो इंसान हैं ये*
*क़ुर्आन तो ईमान बताता है इन्हें*
*ईमान ये कहता है मेरी जान हैं ये*

*जारी रहेगा.....*



*इमामे आज़म*
*_आपका नाम नोअमान वालिद का नाम साबित और कुन्नियत अबू हनीफा है,आप 80 हिजरी में पैदा हुए_*

*📚 खैरातुल हिसान,सफह 70*

*_हज़रत शेख अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि आपका ज़िक्र तौरैत शरीफ में भी यूं मौजूद है कि "मुहम्मद सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की उम्मत में एक नूर होगा जिसकी कुन्नियत अबू हनीफा होगी_*

*📚 तआर्रुफ फिक़ह व तसव्वुफ,सफह 225*

*_खुद हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि "मेरी उम्मत में एक मर्द पैदा होगा जिसका नाम अबू हनीफा होगा वो क़यामत में मेरी उम्मत का चराग़ है_*

*📚 मनाक़िबिल मोफिक,सफह 50*

*_बुखारी व मुस्लिम शरीफ की हदीसे पाक है हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि "अगर ईमान सुरैया के पास भी होता तो फारस का एक शख्स उसे हासिल कर लेता" इस हदीस की शरह में हज़रत जलाल उद्दीन सुयूती रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि उस शख्स से मुराद इमामे आज़म अबू हनीफा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हैं_*

*📚 तबयिदुल सहीफा,सफह 7*

*सुरैया चौथे आसमान पर एक सितारे का नाम है*

*_आप ताबईन इकराम के गिरोह से हैं क्योंकि आपने कई सहाबा इकराम की ज़ियारत की है,बाज़ ने 20 सहाबी से मुलाक़ात का ज़िक्र किया और बाज़ ने 26 और भी इख्तिलाफ पाया जाता है,मगर इसमें कोई इख्तेलाफ नहीं कि आपकी सहाबियों से मुलाक़ात ना हुई हो क्योंकि खुद बराहे रास्त आपने 7 सहाबा इकराम से हदीस सुनी है जिनमे सबसे अफज़ल सय्यदना अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हैं,फिर अब्दुल्लाह बिन हारिस,जाबिर बिन अब्दुल्लाह,मअकल बिन यसार,वासला बिन यस्क़ा,अब्दुल्लाह बिन अनीस,आयशा बिन्त अजरद रिज़वानुल्लाहे तआला अलैहिम अजमईन शामिल हैं_*

*📚 बे बहाये इमामे आज़म,सफह 62*

*_हज़रत दाता गंज बख्श लाहौरी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु लिखते हैं कि एक मर्तबा आपने गोशा नशीन होने का इरादा फरमा लिया था,रात को हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ख्वाब में तशरीफ लाये और फरमाया कि "ऐ अबू हनीफा तेरी ज़िन्दगी अहयाये सुन्नत के लिए है तू गोशा नशीनी का इरादा तर्क कर दे" तो आपने ये इरादा तर्क कर दिया_*

*📚 कशफुल महजूब,सफह 162*

*_क़ुरान मुक़द्दस को 1 रकात में पढ़ने वाले 4 हज़रात हैं जिनमे हज़रत उसमान ग़नी हज़रत तमीम दारी हज़रत सईद बिन जुबैर और हमारे इमाम इमामे आज़म रिज़वानुल्लाहे तआला अलैहिम अजमईन हैं_*

*📚 क्या आप जानते हैं,सफह 211*

*_इमाम ज़हबी रहमतुल्लाह तआला अलैही फरमाते हैं कि आपका पूरी रात इबादत करना तवातर से साबित है और 30 सालों तक 1 रकात में क़ुरान पढ़ते रहे और 40 सालों तक ईशा के वुज़ू से फज्र अदा की,आप रमज़ान में 61 कलाम पाक खत्म किया करते थे एक दिन में एक रात में और एक पूरे महीने की तरावीह में,आपने 55 हज किये_*

*📚 इमामे आज़म,सफह 75*

*_आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि अगर रूए ज़मीन के आधे इंसानो के साथ इमामे आज़म की अक़्ल को तौला जाए तो इमामे आज़म की अक़्ल भारी होगी_*

*📚 फतावा रज़वियह,जिल्द 1,सफह 123*

*_आप जब भी रौज़ए अनवर पर हाज़िरी देते और सलाम पेश करते तो जाली मुबारक से आवाज़ आती व अलैकुम अस्सलाम या इमामुल मुस्लेमीन_*

*📚 तज़किरातुल औलिया,सफह 165*

*_फिक़ह हनफी पर ऐतराज़ करने वालों और हर बात में बुखारी बुखारी की रट लगाने वालो देखो कि इमाम बुखारी ने इल्म किससे सीखा,इमाम बुखारी के उस्ताज़ हैं इमाम अहमद बिन हम्बल उनके उस्ताज़ हैं इमाम शाफई उनके उस्ताज़ हैं इमाम मुहम्मद उनके उस्ताज़ हैं इमाम अबू यूसुफ और आप के उस्ताज़ हैं इमामुल अइम्मा इमामे आज़म रिज़वानुल्लाहे तआला अलैहिम अजमईन_*

*📚 इमामे आज़म,सफह 195*

*आपसे बेशुमार करामतें ज़ाहिर है और बेशुमार वाक़ियात किताबों में मौजूद है,कभी करामत के टापिक में बयान करूंगा इन शा अल्लाह*

*_आपका विसाल 2 शाबान 150 हिजरी में हुआ,6 बार आपकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ी गयी और क़ब्र पर तो 20 दिन तक नमाज़ होती रही,आपके विसाल पर जिन्नात भी रो पड़े थे_*

*📚 इमामे आज़म,सफह 132*





*_मुताफर्रिक़ात_* *पोस्ट-1*
*मच्छर को रब ने बड़े बड़े मग़रूर बादशाहों का ग़ुरूर तोड़ने के लिए पैदा किया है,नमरूद ने हज़रत इब्राहीम खलील उल्लाह को आग में डालने के लिए जो आग जलवाई थी उसकी लपटें कई 100 फीट ऊपर तक जाती थी,उसी आग की तपिश से 1 मच्छर के पर व पैर जल गए,इस मच्छर ने रब की बारगाह में दुआ कि तो मौला ने फरमाया कि ग़म ना कर मैं तेरे ज़रिये ही नमरूद को हलाक करवाऊंगा,ये मच्छर 1 दिन नमरूद की नाक के जरिए उसके दिमाग़ में घुस गया और@ उसको अन्दर ही अन्दर काटना शुरू किया,जब वो काटता तो नमरूद अपने सर पर चप्पलों से मारा करता,वो मच्छर 400 साल तक नमरूद के दिमाग़ में घुसा रहा और उसको इसी तरह तड़पा तड़पाकर मार डाला*

*📚 तफसीरे नईमी,जिल्द 3,सफह 68*

*कुछ लोग ऐसे हैं जिनसे क़ब्र में सवाल जवाब नही होगा 1.अम्बिया 2.सिद्दीक़ीन 3.शुहदा 4.मुजाहिद 5.मोमिन के छोटे बच्चे 6.जो रोज़ाना रात में सूरह मुल्क पढ़े 7.जुमे की रात या दिन मे मरने वाला 8.जो मर्ज़े मौत मे सूरह इख्लास पढ़े 9.रमज़ान मे मरने वाला 10.ताऊन के ज़माने में मरने वाला*

*📚 दुर्रे मुख्तार,जिल्द 1,सफह 596*

*तंदरुस्त कमाने वाले शख्स को भीख देना हराम है गुनाह है*

*📚 फतावा रज़वियह,जिल्द 4,सफह 468*

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि ग़ीबत ज़िना से बदतर है और इसका कफ्फारह ये है कि जिसकी ग़ीबत की उसके लिए युं अस्तग्फ़ार करे अल्लाहुम्मग़ फिर लना वलाहु*

*📚 बहारे शरियत,हिस्सा 16,सफह 145*

*अल्लाह तआला ने उन औरतों पर लानत फरमाई जो मर्दों की शक्ल इख्तियार करती हैं और उन मर्दों पर लानत फरमाई जो औरतों की शक्ल इख्तियार करते हैं*

*📚 बुखारी शरीफ,जिल्द 2,सफह 874*
*📚 तिर्मिज़ी शरीफ,जिल्द 2,सफह 102*
*📚 कंज़ुल उम्माल,जिल्द 16,सफह 384*
*📚 अत्तर्ग़ीब वत्तर्हीब,जिल्द 3,सफह 104*

*_इस हदीसे पाक से वो औरतें सबक़ लें जो मर्दों की तरह जींस,शर्ट,टी शर्ट और जूते पहनती हैं मर्दों की तरह ही तंग कपड़े पहनती हैं और उन्ही की तरह छोटे छोटे बाल रखती हैं चाल ढ़ाल भी मर्दों की तरह ही इख्तियार करती हैं,और वो मर्द भी सबक़ लें जो औरतों की तरह कान मे बालियां हाथों मे कड़ा (breslet) पहनते हैं औरतों की तरह ही लम्बे लम्बे बाल रखते हैं और चाल ढ़ाल भी औरतों सी इख्तियार करते हैं,य वो मर्द जो पूरी तरह हिजड़े बनकर घूमते हैं,ऐसे तमाम मर्द व औरत पर अल्लाह व उसके रसूल सलल्ललाहो तआला अलैहि वसल्लम की लानत है_*



*_मुताफर्रिक़ात_* *पोस्ट-2*
*वैसे तो नमाज़े जनाज़ा की इब्तिदा हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के ज़माने से है जैसा कि रिवायत में है कि आपकी नमाज़े जनाज़ा फरिश्तों ने पढ़ी और इमाम हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम हुए मगर इस्लाम में इसकी मशरूईयत हिजरत के तक़रीबन 9 महीने बाद हुई और सबसे पहला जनाज़ा सहाबिये रसूल हज़रत असद बिन जुरारह का पढ़ा गया जिसको खुद हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने पढ़ाया*

📚 फतावा रज़विया,जिल्द 2,सफह 467

*मौत व हयात दोनों वुजूदी हैं जब सारे जन्नती जन्नत में और सारे जहन्नमी जहन्नम में जा चुके होंगे कि अब कोई जहन्नम से बाहर निकलने वाला ना होगा तो मौत को मेंढे की शक्ल में जन्नत व दोज़ख के दरमियान लाया जायेगा और उसे हज़रत यहया अलैहिस्सलाम अपने हाथों से ज़िबह फरमायेंगे फिर उसके बाद कोई भी नहीं मरेगा*

📚 शराहुस्सुदूर,सफह 15

*अज़ान के बाद तसवीब यानि सलात पढ़ना 781 हिजरी से रायज हुआ*

📚 दुर्रे मुख्तार,जिल्द 1,सफह 273

*ज़मीन का वो हिस्सा जो मेरे आक़ा सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के जिस्म से मिला हुआ है यानि रौज़ए अनवर वो काबा मुअज़्ज़मा बल्कि अर्शे आज़म से भी अफज़ल है*

📚 ज़रक़ानी,जिल्द 1,सफह 324

*रिवायत में आता है कि हिसाब किताब शुरू होने से पहले मौला निदा करवायेगा कि वो लोग अलग हो जायें जो रातों को अपनी करवटें बिस्तर से अलग रखते थे यानि तहज्जुद पढ़ने वाले,जब वो लोग अलग हो जायेंगे तो उनसे कहा जायेगा कि तुम लोग जन्नत में चले जाओ फिर उसके बाद सबका हिसाब किताब शुरू होगा,ये तादाद में 4 अरब 90 करोड़ लोग होंगे उनके साथ मौला 3 जमाअत और भेजेगा जिसकी तदाद अल्लाह और उसका रसूल सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ही जाने*

📚 बहारे शरीयत,हिस्सा 1,सफह 39

*चांद ज़मीन से 4 गुना छोटा है और 3.5 लाख किलोमीटर से भी ज़्यादा दूरी पर है और सूरज ज़मीन से तकरीबन 13 लाख गुना बड़ा है और 15 करोड़ किलोमीटर से भी ज़्यादा दूरी पर है*

📚 इस्लाम और चांद का सफर,सफह 51-55

*समंदल नाम का एक कीड़ा है जो कि आग में ही पैदा होता है तुर्की में उसके ऊन की तौलिया वगैरह बनाई जाती है जो कि गन्दी होने पर आग में डाल कर ही साफ की जाती है*

📚 खज़ाएनुल इरफान,पारा 15,6

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि दुनिया मोमिन के लिए कैदखाना और काफिर के लिए जन्नत है*

📚 अनवारुल हदीस,सफह 432

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम ने फरमाया कि ग़ीबत ज़िना से बदतर है और इसका कफ्फारह ये है कि जिसकी ग़ीबत की उसके लिए युं अस्तग्फ़ार करे 'अल्लाहुम्मग़ फिर लना वलाहु' اللهم اغفر لنا وله*

📚 बहारे शरियत,हिस्सा 16,सफ़ह 145

*जो शख्स नमाज़ ना पढ़े और अलग अलग कामों के लिये वज़ीफा पढ़ता रहे तो क़यामत के दिन उसका वज़ीफा उसके मुंह पर मार दिया जायेगा*

📚 फतावा रज़वियह,जिल्द 3,सफ़ह 82

*किसी ने छिपकर गुनाह किया लोगों ने उससे पूछा तो वो इनकार कर सकता है,कि गुनाह को ज़ाहिर करना भी गुनाह है,इसी तरह ये किसी मुसलमान का ऐब जानता है अगर कोई पूछे तो इंकार कर सकता है ये झूट नहीं होगा*

📚 बहारे शरियत,हिस्सा 16,सफ़ह 137

*बन्दा जब कोई नेकी करता है तो नेकी लिखने वाला फ़रिशता उसे फौरन लिख लेता है मगर जब बन्दा गुनाह करता है उसे 6 घंटो तक नही लिखा जाता कि शायद वो अपने गुनाह से तौबा करले या कोई नेकी ही करले जो उसके गुनाह को मिटा दे मगर जब 6 घंटो तक बन्दा न तो कोई नेकी ही करता है और ना ही तौबा,तब फ़रिश्ते उस गुनाह को लिख देते है मगर जब कभी भी बन्दा उस गुनाह से तौबा कर लेता है तो वो गुनाह मिटा दिया जाता है*

📚 तफ़सीरे अज़ीज़ी,पारा 30,सफ़ह 88



*मुताफर्रिकात* *पोस्ट-3*
*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि ज़मीन का वो टुकड़ा जो मेरी कोठरी और मेंबर के दरमियान है वो जन्नत के बागों में से एक बाग़ है*

*📚 बुखारी,जिल्द 1,सफह 253*

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि उस मुसलमान को जहन्नम की आग नहीं छू सकेगी जिसने ईमान की हालत में मुझे देखा या मुझे देखने वालों को देखा*

*📚 मिश्कात,जिल्द 2,सफह 554*

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि सिरका बेहतरीन सालन है*

*📚 मिश्कात,जिल्द 2,सफह 366*

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि उहद पहाड़ हमसे मुहब्बत करता है और हम उहद पहाड़ से मुहब्बत करते हैं*

*📚 बुखारी,जिल्द 1,सफह 404*

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जो नेक औलाद अपने वालिदैन को मुहब्बत भरी नज़र से देखेगा तो उसे 1 हज मक़बूल का सवाब मिलेगा,तो लोगों ने अर्ज़ किया कि या रसूल अल्लाह ﷺ अगर कोई 100 मर्तबा देखे तो तो हुज़ूर फरमाते हैं कि अल्लाह बहुत बड़ा है अल्लाह बहुत पाक है यानि बेशक अल्लाह के खज़ाने में कोई कमी नहीं है उसको 100 हज का सवाब अता करेगा*

*📚 जवाहिरुल हदीस,सफह 62*

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जिस चीज़ की कसरत नशा पैदा करे उसका ज़र्रा बराबर भी इस्तेमाल हराम है*

*📚 अत्तम्हीद,जिल्द 1,सफह 252*

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जो शख्स जानबूझकर नमाज़ छोड़ दे तो वो अल्लाह के अमान से निकल गया*

*📚 अलइतहाफ,जिल्द 6,सफह 392*

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जन्नत में जाने वाले ज़्यादातर गरीब लोग होंगे और जहन्नम में ज़्यादातर औरतें होंगी*

*📚 मुस्लिम,हदीस 6833*

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जब कसम खाने की ज़रूरत पड़े तो अल्लाह की कसम खाओ वरना चुप रहो*

*📚 तिर्मिज़ी,हदीस 1534*

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि काला खिज़ाब लगाना हराम है जो ऐसा करेगा वो जन्नत की महक भी ना पायेगा*

*📚 मुसनद अहमद,जिल्द 1,सफह 273*

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि सबदे बेहतरीन रिज़्क़ अपने हाथ से कमाकर खाना है और सच्चा व ईमानदार ताजिर क़यामत के दिन शहीद के साथ होगा*

*📚 इब्ने माजा,जिल्द 1,सफह 594*




*मुताफर्रिकात* *पोस्ट-4*
*इब्लीस* - पहले आसमान पर इब्लीस का नाम आबिद दूसरे पर ज़ाहिद तीसरे पर आरिफ चौथे पर वली पांचवे पर तक़ी छठे पर खाज़िन सातवे पर अज़ाज़ील और लौहे महफूज़ में इब्लीस था,ये 40000 साल तक जन्नत का खज़ांची रहा,14000 साल तक अर्शे आज़म का तवाफ करता रहा,80000 साल तक फरिश्तो के साथ रहा जिसमे से 20000 साल तक फरिश्तो का वाज़ो नसीहत करता रहा और 30000 साल कर्रोबीन फरिश्तो का सरदार रहा और 1000 साल रूहानीन फरिश्तो का सरदार रहा,इब्लीस ने 50000 साल तक अल्लाह की इबादत की यहां तक कि अगर उसके सजदों को जमीन पर बिछाया जाए तो तो एक बालिश्त जगह भी खाली ना बचे,मुअल्लमुल मलाकूत होने और लाखों बरस इबादत करने के बावजूद सिर्फ एक सज्दा हज़रते आदम अलैहिस्सलाम को ना करने की बिना पर उसको रांदये बरगाह कर दिया गया सोचिये कि जब लाखों बरस इबादत करने वाला हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की तौहीन करने की बनिस्बत लाअनती हो गया तो जो लोग नबियों के सरदार हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम की तौहीन कर रहे हैं उनका क्या होगा,हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को उसके एक सजदा ना करने में 4 कुफ्र थे मुलाहज़ा फरमाये

1. उसने कहा कि तूने मुझे आग से बनाया और इसको मिटटी से मैं इससे बेहतर हूं,इसमें मलऊन का मक़सद ये था कि तू बेहतर को अदना के आगे झुकने का हुक्म दे रहा है जो कि ज़ुल्म है,और उसने ये ज़ुल्म की निस्बत खुदा की तरफ की जो कि कुफ्र है

2. एक नबी को हिकारत से देखा,और नबी को बनज़रे हिक़ारत देखना कुफ्र है

3. नस के होते हुए भी अपना फलसफा झाड़ा,मतलब ये कि जब हुक्मे खुदा हो गया कि सज्दा कर तो उस पर अपना क़ौल लाना कि मैं आग से हूं ये मिटटी से है ये भी कुफ्र है

4. इज्माअ की मुखालिफत की,यानि जब सारे के सारे फरिश्ते झुक गए तो इसको भी झुक जाना चाहिए था चाहे बात समझ में आये या नहीं क्योंकि इज्माअ की मुखालिफत भी कुफ्र है

📚 तफसीरे सावी,जिल्द 1,सफह 22
📚 तफसीरे जमल,जिल्द 1,सफह 50
📚 ज़रकानी,जिल्द 1,सफह 59
📚 नुज़हतुल मजालिस,जिल्द 2,सफह 34

*नमरूद* - अब तक 4 ऐसे बादशाह गुज़रे हैं जिन्होंने पूरी दुनिया पर हुक़ूमत की है 2 मोमिन हज़रत सिकंदर ज़ुलक़रनैन और हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम और 2 काफ़िर नमरूद और बख्ते नस्र,और अनक़रीब पांचवे बादशाह हज़रत इमाम मेंहदी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु होंगे जो पूरी दुनिया पर हुक़ूमत करेंगे,नमरूद ने 400 साल हुक़ूमत की,नमरूद के पास कुछ तिलिस्माती चीजें थी जिसकी बिना पर उसने खुदाई का दावा किया

1. तांबे का एक बुत था,जब भी कोई चोर या जासूस शहर में दाखिल होता तो उस बुत से आवाज़ आती जिससे वो पकड़ा जाता

2. एक नक़्क़ारा था,जब किसी की कोई चीज़ ग़ुम हो जाती तो उस पर चोब मारा जाता तो वो गुमशुदा चीज़ का पता बताती

3. एक आईना था,अगर कोई शख्स ग़ुम हो जाता तो उसमे नज़र आ जाता कि इस वक़्त कहां पर है

4. एक दरख़्त था,जिसके साए में लोग बैठते और उसका साया बढ़ता जाता यहां तक कि 1 लाख लोग बैठ जाते थे मगर जैसे ही 1 लाख से 1 भी ज़्यादा होता तो साया हट जाता और सब धूप में आ जाते

5. एक हौज़ था,जिससे मुकदमे का फैसला होता युं कि मुद्दई और मुद्दआ अलैह दोनों को उस हौज़ में उतारा जाता जो सच्चा होता उसके नाफ़ से नीचे पानी रहता और झूठा उसमे डुबकी खाता

📚 अलइतक़ान,जिल्द 2,सफह 178
📚 तफ़सीरे नईमी,जिल्द 1,सफह 677

*औज बिन अनक़* - औज इसका नाम था और अनक़ इसकी मां का नाम जो कि हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की बेटी थीं,ये हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की हयात में ही पैदा हुआ और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के ज़माने तक रहा,इसकी उम्र 3600 साल हुई,इसका क़द 20300 गज़ था यानि तक़रीबन 60900 फिट लम्बा बादल इसके सर से लगता था,इसकी उंगलियों की लंबाई 9 फिट और चौड़ाई 6 फिट,तूफाने नूह का पानी ज़मीन के सबसे ऊंचे पहाड़ से भी 40 गज़ ऊपर था मगर वही पानी इसके घुटनो तक भी नहीं पहुंचा था,ये समंदर में हाथ डालकर मछलियां पकड़ता और उन्हें सूरज की गर्मी में सेंक कर खाता,जब अपने शहर वालों से खफा होता तो उनपर पेशाब कर देता जिससे वो डूब जाते थे,मूसा अलैहिस्सलाम ने इसको इस तरह क़त्ल किया कि आपके हाथ में जो असा था वो 10 हाथ लम्बा था खुद आपका क़द मुबारक भी 10 हाथ था और आपने 10 हाथ ऊपर उछल कर उसको असा मारा जो कि उसके टखनों में लगा और वो मर गया

📚 माअ़रेजुन नुबुव्वत,जिल्द 1,सफह 73
📚 क्या आप जानते हैं,सफह 80



_*मुताफर्रिकात*_*पोस्ट-5*
_*कंज़ुल ईमान - और वादा पूरा करो कि बेशक क़यामत के दिन वादे की पूछ होगी*_

_*📚 पारा 15, सूरह असरा, आयत 34*_

_*कंज़ुल ईमान - झूट और बोहतान वही बांधते हैं जो अल्लाह की आयतों पर ईमान नहीं रखते*_

_*📚 पारा 14, सूरह नहल, आयत 105*_

_*कंज़ुल ईमान - ऐ ईमान वालो अपने बाप और अपने भाइयों को दोस्त ना रखो अगर वो ईमान पर कुफ्र पसंद करें और फिर जो तुममें से उनसे दोस्ती रखेगा तो वही लोग सितमगर हैं*_

_*📚 पारा 10, सूरह तौबा, आयत 23*_

_*कंज़ुल ईमान - ऐ ईमान वालो अपने घरों के सिवा और घरों में ना जाओ जब तक कि इजाज़त न ले लो और उन्हें सलाम ना कर लो*_

_*📚 पारा 18, सूरह नूर, आयत 27*_

_*कंज़ुल ईमान - ज़िना के पास ना जाओ यक़ीनन वो बे हयाई और बहुत बुरी राह है*_

_*📚 पारा 15, बनी इस्राइल, आयत 32*_

_*कंज़ुल ईमान - ऐ ईमान वालों तुम्हें हलाल नहीं कि औरतों के वारिस बन जाओ ज़बरदस्ती.......... और उनसे अच्छा बर्ताव करो फिर अगर वो तुम्हें पसंद ना आयें तो क़रीब है कि कोई चीज़ तुम्हें पसंद ना हो और अल्लाह उसमे बहुत भलाई रखे*_

_*📚 पारा 5, सूरह निसा, आयत 19*_

_*कंज़ुल ईमान - अगर ज़मीन में जितने पेड़ हैं सब कलमें हो जायें और समन्दर उसकी स्याही हो उसके पीछे 7 समन्दर और हों तो अल्लाह की बातें खत्म ना होगी, बेशक अल्लाह इज़्ज़तो हिकमत वाला है*_

_*📚 पारा 21, सूरह लुक़मान, आयत 27*_

_*कंज़ुल ईमान - हक़ मान मेरा और अपने मां बाप का*_

_*📚 पारा 21, सूरह लुक़मान, आयत 14*_

_*कंज़ुल ईमान - ऐ लोगों इल्म वालों से पूछो अगर तुम्हे इल्म ना हो*_

_*📚 पारा 17, सूरह अम्बिया, आयत 7*_

_*कंज़ुल ईमान - ऐ ईमान वालो ना मर्द मर्दों से हंसे अजब नहीं कि वो उन हंसने वालों से बेहतर हों और ना औरतें औरतों से दूर नहीं कि वो उन हंसने वालों से बेहतर हों, और आपस में तअना ना करो और एक दूसरे के बुरे नाम ना रखो, क्या ही बुरा नाम है मुसलमान होकर फासिक़ कहलाना, और जो तौबा ना करे तो वही ज़ालिम है*_

_*📚 पारा 26, सूरह हुजरात, आयत 11*_

_*कंज़ुल ईमान - मुसलमान मर्दों को हुक्म दो कि अपनी निगाहें कुछ नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें ये उनके लिए बहुत सुथरा है. बेशक अल्लाह को उनके कामों की खबर है और मुसलमान औरतों को हुक्म दो कि अपनी निगाहें कुछ नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें और अपने दुपट्टे अपने गिरेहबानों पर डाले रहें और अपना श्रंगार ज़ाहिर ना करें मगर अपने शौहरों पर या अपने बाप पर या शौहरों के बाप या अपने बेटे या शौहरों के बेटे या अपने भाई या अपने भतीजे या अपने भांजे या दीन की औरतें या अपनी कनीज़ें जो अपने हाथ की मिल्क हो या वो नौकर जो शहवत वाले ना हों या वो बच्चे जिन्हें औरतों के शर्म की चीज़ों की खबर नहीं, और औरतें ज़मीन पर ज़ोर से पांव ना रखें कि उनका छिपा हुआ श्रंगार जान लिया जाए*_

_*📚 पारा 18, सूरह नूर, आयत 30-31*_

_*कंज़ुल ईमान - अल्लाह की शान ये नहीं है कि ऐ आम लोगों तुम्हे ग़ैब का इल्म दे हाँ अल्लाह चुन लेता है अपने रसूलों में से जिसे चाहे*_

_*📚 पारा 4, सूरह आले इमरान, आयत 179*_

_*कंज़ुल ईमान - खराबी है उन नमाज़ियों के लिये जो अपनी नमाज़ से बे ख़बर है वक़्त गुज़ार कर पढ़ने उठते हैं*_

_*📚 पारा 30, सूरह माऊन, आयत 4*_

_*कंज़ुल ईमान - और तुम्हें जो मुसीबत पहुंची वो इसके सबब से है जो तुम्हारे हाथों ने कमाया और बहुत कुछ तो वो माफ फरमा देता है*_

_*📚 पारा 25, सूरह शूरा, आयत 30*_




*वसीला*
_*वस्ले मौला चाहते हो तो वसीला ढुंड लो*_
_*बे वसीला नज्दीयों वहाबीयों हरगीज़ खुदा मिलता नही*_

*अत्तारिफात सफह 225 पर वसीला का मायने ये बयान किया गया है कि "जिस के ज़रिये रब का क़ुर्ब व नज़दीकी हासिल की जाये उसे वसीला कहते हैं" बेशक अम्बिया व औलिया का वसीला लगाना उनकी ज़िन्दगी में भी और बाद वफात भी बिला शुबह जायज़ है और क़ुर्आनो हदीस में बेशुमार दलायल मौजूद हैं,मुलाहज़ा फरमायें मौला तआला क़ुर्आन मुक़द्दस में इरशाद फरमाता है कि*

*कंज़ुल ईमान* - ऐ ईमान वालो अल्लाह से डरो और उसकी तरफ वसीला ढूंढो

*📚 पारा 6,सूरह मायदा,आयत 35*

*वसीले के ताल्लुक़ से इससे ज़्यादा साफ और सरीह हुक्म शायद ही क़ुर्आन में मौजूद हो मगर फिर भी कुछ अन्धो को ये आयतें नहीं सूझती,खैर आगे बढ़ते हैं फिर मौला इरशाद फरमाता है कि*

*कंज़ुल ईमान* - ऐ ईमान वालो सब्र और नमाज़ से मदद चाहो

*📚 पारा 2,सूरह बक़र,आयत 153*

*इस आयत में सब्र और नमाज़ को वसीला बनाने का हुक्म है,और पढ़िये*

*कंज़ुल ईमान* - और जब वो अपनी जानो पर ज़ुल्म कर लें तो ऐ महबूब तुम्हारे हुज़ूर हाज़िर हों फिर अल्लाह से माफी चाहें और रसूल उनकी शफाअत फरमायें तो ज़रूर अल्लाह को बहुत तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान पायें

*📚 पारा 5,सूरह निसा,आयत 64*

*इस आयत को बार बार पढ़िये और इसका मफहूम समझिये,नमाज़ ना पढ़ी रोज़ा ना रखे हज ना किया ज़कात नहीं दी शराब पी चोरी की ज़िना किया झूट बोला सूद खाया रिशवत ली गर्ज़ कि कोई भी गुनाह किया मगर की तो मौला की ही नाफरमानी,तो जब तौबा करनी होगी तो डायरेक्ट अल्लाह की बारगाह में तौबा कर लेंगे फिर ये हुज़ूर की बारगाह में भेजने का क्या मतलब,मतलब साफ है कि गुनाह छोटा हो या बड़ा 1 हो या 1 करोड़ अगर माफी मिलेगी तो हुज़ूर के सदक़े में ही मिलेगी वरना बिना हुज़ूर के तवस्सुल से अगर माफी चाहता है तो सर पटक पटक कर मर जाये फिर भी मौला माफ नहीं करेगा,इस आयत की पूरी तशरीह आगे करता हूं मगर अब जबकि बात में बात निकल आई है तो पहले इसकी दलील मुलाहज़ा फरमा लें मौला तआला क़ुर्आन में फरमाता है कि*

*कंज़ुल ईमान* - फिर सीख लिए आदम ने अपने रब से कुछ कल्मे तो अल्लाह ने उसकी तौबा क़ुबूल की

*📚 पारा 1,सूरह बक़र,आयत 37*

*तफसीर* - तिब्रानी हाकिम अबु नुऐम व बैहकी ने मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि जब हज़रत आदम अलैहिस्सलाम जन्नत से दुनिया में आये तो आप अपनी खताये इज्तेहादी पर 300 साल तक नादिम होकर रोते रहे मगर आपकी तौबा क़ुबूल ना हुई,अचानक एक दिन अल्लाह ने आपके दिल में ये इल्क़अ फरमाया कि वक़्ते पैदाईश मैंने जन्नत के महलों पर उसके सुतूनों पर दरख्तों और उसके पत्तों पर हूरों के सीनो पर गुल्मां की पेशानियों पर ला इलाहा इल्लललाह मुहम्मदुर रसूल अल्लाह जल्ला शानहु व सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम लिखा देखा है,ज़रूर ये कोई बुज़ुर्ग हस्ती है जिसका नाम अल्लाह ने अपने नाम के साथ लिखा हुआ है तो आपने युं अर्ज़ की *अल्लाहुम्मा असअलोका बिहक्क़े मुहम्मदिन अन तग़फिरली यानि ऐ अल्लाह मैं तुझसे हज़रत मुहम्मद सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के सदक़े से मगफिरत चाहता हूं* तब अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने उनकी तौबा क़ुबूल फरमाई

*📚 खज़ाएनुल इरफान,सफह 7*

*सोचिये जब सारी दुनिया के बाप हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को मेरे आक़ा हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के वसीले की ज़रूरत है तो फिर हम और आप की औकात ही क्या है कि हम बिना हुज़ूर का वसीला लिए मौला से कुछ ले सकें या अपनी मग़फिरत करा सकें,इसीलिए तो मेरे आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि*

*ला वरब्बिल अर्श जिसको जो मिला उनसे मिला*
*बटती है कौनैन में नेअमत रसूल अल्लाह की*
*वो जहन्नम में गया जो उनसे मुस्तग़नी हुआ*
*है खलील उल्लाह को हाजत रसूल अल्लाह की*

सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम

*कंज़ुल ईमान* - और अगर जब वो अपनी जानों पर ज़ुल्म करें तो ऐ महबूब तुम्हारे हुज़ूर हाज़िर हों फिर अल्लाह से माफी चाहें और रसूल उनकी शफाअत फरमायें तो ज़रूर अल्लाह को बहुत तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान पायें

*📚 पारा 5,सूरह निसा,आयत 64*

*तफसीर* - आपकी वफाते अक़दस के बाद एक आराबी आपकी मज़ार पर हाज़िर हुआ और रौज़ये अनवर की खाक अपने सर पर डालकर यही आयत पढ़ी और बोला कि या रसूल अल्लाह सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम मैंने अपनी जान पर ज़ुल्म किया अब मैं आपके हुज़ूर अल्लाह से माफी चाहता हूं मेरी शफाअत कराईये तो रौज़ये अनवर से आवाज़ आई कि जा तेरी बख्शिश हो गयी

*📚 खज़ाएनुल इरफान,सफह 105*

*इतना तो बद अक़ीदा भी मानता ही है कि क़ुर्आन का हुक्म सिर्फ हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के ज़माने मुबारक तक ही महदूद नहीं था बल्कि वो क़यामत तक के लिए है तो जब क़यामत तक के लिए उसका हर कानून माना जायेगा तो ये क्यों नहीं कि हुज़ूर से शफाअत कराई जाये,क्या माज़ अल्लाह खुदा ने क़ुर्आन में ये कहा है कि मेरे महबूब की ज़िन्दगी तक ही उनकी बारगाह में जाना बाद विसाल ना जाना बिल्कुल नहीं तो जब रब ने ऐसा कोई हुक्म नहीं दिया तो फिर अपनी तरफ से दीन में हद से आगे बढ़ने की इजाज़त इनको कहां से मिली,खैर मौला हिदायत अता फरमाये अब देखिये इससे बहुत सारे मसले हल हुए*

1.सालेहीन का वसीला लेना जायज़ है

2.उनसे शफाअत की उम्मीद रखना जायज़ है

3.बाद विसाल उनकी मज़ार पर जाना जायज है

4.उन्हें लफ्ज़े *या* के साथ पुकारना जायज़ है

5.वो अपनी मज़ार में ज़िंदा हैं

6.और सबसे बड़ी बात कि वो बाद वफात भी मदद करने की क़ुदरत रखते हैं

*हदीस* - हज़रत उस्मान बिन हुनैफ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि एक अंधा आदमी हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में हाज़िर हुआ और अर्ज़ किया कि आप अल्लाह से दुआ करें कि वो मुझे आंख वाला कर दे तो आप सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि तु चाहे मैं दुआ करूं या तु चाहे तो सब्र कर कि ये तेरे लिए ज़्यादा बेहतर है,इस पर उसने दुआ करने के लिए कहा तो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि अच्छा अब वुज़ू कर 2 रकात नमाज़ पढ़ और युं दुआ कर *ऐ अल्लाह मैं तुझसे मांगता हूं और तेरी तरफ मुहम्मद सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के वसीले से तवज्जह करता हूं जो नबीये रहमत हैं और या रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम मैं हुज़ूर के वसीले से रब की तरफ इस हाजत में उम्मीद करता हूं कि मेरी हाजत पूरी हो या अल्लाह मेरे हक़ में हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की शफाअत कुबूल फरमा* वो शख्स गया और नमाज़ पढ़ी दुआ की जब वो वापस आया तो आंख वाला हो चुका था

*📚 तिर्मिज़ी,जिल्द 2,सफह 197*

*इमाम तिर्मिज़ी फरमाते हैं कि ये हदीस सही है यही हदीस निसाई इब्ने माजा हाकिम बैहकी तिब्रानी वगैरह में भी मिल जायेगी,अब मोअतरिज़ कहेगा कि नबियों का वसीला तो फिर भी लिया जा सकता है मगर औलिया का वसीला लेना जायज़ नहीं तो उसकी भी दलील मुलाहज़ा फरमायें*

*हदीस* - हज़रत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि जब जब हम पर कहत का ज़माना आता तो हज़रते उमर फारूक़े आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हज़रते अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का वसीला लगाते और युं दुआ करते कि *ऐ अल्लाह हम तेरी बारगाह नबी को वसीला बनाया करते थे तू हमें सैराब फरमाता था अब हम तेरी बारगाह में नबी के चचा को वसीला बनाते हैं* हज़रते अनस फरमाते हैं कि हर बार पानी बरसता

*📚 बुखारी,जिल्द 1,सफह 137*

*अब फुक़्हा के कुछ क़ौल और खुद वहाबियों देवबंदियों की किताब से वसीले का सबूत पेश है,इमामुल अइम्मा हज़रते इमामे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में युं नज़्र फरमाते हैं कि*

*फुक़्हा* - आप वो हैं कि जिनका वसीला लेकर हज़रत आदम अलैहिस्सलाम कामयाब हुए हालांकि वो आपके बाप हैं

*📚 क़सीदये नोमानिआ,सफह 12*

*हज़रत इमाम मालिक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु बनी अब्बास के दूसरे खलीफा अबू जाफर मंसूर से फरमाते हैं कि*

*फुक़्हा* - तुम अपना मुंह हुज़ूर की जाली की तरफ करके ही उनके वसीले से दुआ करो और उनसे मुंह ना फेरो क्योंकि हुज़ूर हमारे और तुम्हारे बाप हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के लिए भी वसीला हैं

*📚 शिफा शरीफ,सफह 33*

*हज़रत इमाम शाफ़ई रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हज़रते इमामे आज़म रज़ियल्लाहु ताला अन्हु की मज़ारे अक़दस के बारे में फरमाते हैं की*

*फुक़्हा* - हज़रते इमामे आज़म की मज़ार क़ुबूलियते दुआ के लिए तिर्याक है

*📚 तारीखे बग़दाद,जिल्द 1,सफह 123*

*हज़रते इमाम अहमद बिन हम्बल रज़ियल्लाहु तआला अन्हु अपने बेटे हज़रत अब्दुल्लाह से हज़रत इमाम शाफई रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के बारे में फरमाते हैं कि*

*फुक़्हा* - हज़रत इमाम शाफई रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ऐसे हैं जैसे कि लोगों के लिए सूरज इसलिए मैं उनसे तवस्सुल करता हूं

*📚 शवाहिदुल हक़,सफह 166*

*हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि*

*फुक़्हा* - जब तुम अल्लाह से कुछ तलब करो तो मेरे वसीले से मांगो

*📚 बेहिज्जतुल असरार,सफह 23*

*ये तो हुई हमारे फुक़्हा की बातें अब वहाबियों के भी कुछ क़ौल मुलाहज़ा फरमायें,अशरफ अली थानवी ने लिखा कि*

*वहाबी* - तवस्सुल दुआ में मक़बूलाने हक़ का ख्वाह वो ज़िंदा हो या वफात शुदा बेशक दुरुस्त है

 *📚 फतावा रहीमिया,जिल्द 3,सफह 6*

*रशीद अहमद गंगोही ने लिखा कि*

*वहाबी* - हुज़ूर को निदा करना और ये समझना कि अल्लाह आप पर इंकेशाफ फरमा देता है हरगिज़ शिर्क नहीं

*📚 फतावा रशीदिया,सफह 40*

*हुसैन अहमद टांडवी ने लिखा कि*

*वहाबी* - आप सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम से तवस्सुल ना सिर्फ वजूदे ज़ाहिरी में बल्कि विसाल के बाद भी किया जाना चाहिय

*📚 मकतूबाते शेखुल इस्लाम,जिल्द 1,सफह 120*

*क़ासिम नानोतवी ने लिखा कि*

*वहाबी* - मदद कर ऐ करमे अहमदी कि तेरे सिवा
              नहीं है क़ासिम बेकस का कोई हामीकार

*📚 शिहाबुस साक़िब,सफह 48*

*सब कुछ आपने पढ़ लिया कि अल्लाह खुद वसीला लगाने का हुक्म देता है खुद हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने सहाबियों को वसीले की तालीम दी फुक़्हाये किराम ने वसीला लगाया और तो और खुद वहाबियों ने भी माना कि दुआ में औलिया अल्लाह का वसीला लगाना बिल्कुल जायज़ व दुरुस्त है तो फिर क्यों अपने ही मौलवियों की बात ना मानते हुये ये जाहिल वहाबी हम सुन्नी मुसलमानों को क़बर पुजवा कहकर शिर्क और बिदअत का फतवा लगाते फिरते हैं,सबसे पहले तो वहाबियों को ये करना चाहिए कि अपना स्टेटस क्लियर करें कि आखिर वो हैं क्या,कोई उनके यहां फातिहा करना हराम कहता है तो जायज़ कोई सलाम पढ़ने को शिर्क बताता है तो कोई खुद पढ़ता है कोई मज़ार पर जाने को मना करता है तो कोई खुद ही मज़ार पर पहुंच जाता है आखिर कब तक ये वहाबी इस दोगली पालिसी से मुसलमानों में तफरका डालकर उनको गुमराह व बेदीन बनाते रहेंगे इसका जवाब कौन देगा*




*_पीर से पर्दा_*
*_आजकल कुछ नफ़्स परस्त जाहिल पीर औरतों को बेहिजाब मुरीद करते हैं बल्कि उनसे पैर तक दबवाया करते हैं और हल्के में बिठाकर ज़िक्र करते करवाते हैं माज़ अल्लाह,ये खुले आम हरामकारी है मगर इन शैतान के चेलों ने उसे अपने लिए जायज़ किया हुआ है,औरतों को ग़ैर महरम से पर्दा करना फ़र्ज़ है फिर चाहे वो पीर ही क्यों ना हो मौला तआला क़ुरान मजीद में इरशाद फरमाता है कि_*

*_मुसलमान मर्दों को हुक्म दो कि अपनी निगाहें कुछ नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें ये उनके लिए बहुत सुथरा है.बेशक अल्लाह को उनके कामों की खबर है और मुसलमान औरतों को हुक्म दो कि अपनी निगाहें कुछ नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें और अपने दुपट्टे अपने गिरेहबानों पर डाले रहें और अपना श्रंगार ज़ाहिर न करें मगर अपने शौहरों पर या अपने बाप पर या शौहरों के बाप या अपने बेटे या शौहरों के बेटे या अपने भाई या अपने भतीजे या अपने भांजे या दीन की औरतें या अपनी कनीज़ें जो अपने हाथ की मिल्क हो या वो नौकर जो शहवत वाले ना हों या वो बच्चे जिन्हें औरतों के शर्म की चीज़ों की खबर नहीं,और औरतें ज़मीन पर ज़ोर से पांव ना रखें कि उनका छिपा हुआ श्रंगार जान लिया जाए_*

*📚 पारा 18,सूरह नूर,आयत 30-31*

*_अब अगर इन महरम में से ही कोई पीर है जब तो उनके सामने बे हिजाब आने में कोई हर्ज नहीं वरना हराम हराम हराम है और माज़ अल्लाह अगर इंकार करे जब तो काफ़िर है कि क़ुरान का मुनकिर हुआ,और अगर युंही औरतें बे हिजाब सड़कों,बाज़ारों,मेलों-ठेलों,मज़ारों या कहीं भी घूमती फिरती हैं जब तो अशद गुनाहगार हैं उन पर तौबा वाजिब है और ऐसे पीर पर भी जो बे हिजाब औरतों को मुरीद करते हैं,दूसरी जगह मौला इरशाद फरमाता है कि_*

*_ऐ महबूब अपनी बीवियों और अपनी साहबज़ादिओं और मुसलमान औरतों से फरमा दो कि वो अपनी चादरों का एक टुकड़ा अपने मुंह पर डाले रहें,ये उनके लिए बेहतर है कि ना वो पहचानी जाएं और ना सताई जाएं और अल्लाह बख्शने वाला मेहरबान है_*

*📚 पारा 22,सूरह अहज़ाब,आयत 59*

*_इसका शाने नुज़ूल ये है कि कुछ मुनाफ़िक़ मुसलमान औरतों को रास्ते में छेड़ा करते थे जिस पर ये आयत उतरी कि मौला ने साफ फरमा दिया कि अपनी पहचान छिपाकर चलेंगी तो ना पहचान होगी और ना कोई उन्हें छेड़ेगा,अब आईये आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त का एक फतवा भी मुलाहज़ा फरमा लें जो ऐसे जाहिल पीरों के ताल्लुक़ से है फरमाते हैं_*

*_पीर से पर्दा वाजिब है जबकि महरम ना हो और उन्हें मर्दों के साथ बिठाकर ज़िक़्र करना ऐसा कि उनकी आवाज़ तक मर्दों में सुनाई देती हो तो ये ख़िलाफ़े शरअ और ख़िलाफ़े हया है ऐसे पीर से बैयत ना चाहिये_*

*📚 अहकामे शरीयत,हिस्सा 2,सफह 181*

*_अब पीर कैसा होना चाहिए उसके अन्दर किन शर्तों का पाया जाना ज़रूरी है ये भी समझ लीजिये_*

*_पीर के अन्दर 4 शर्तें होनी चाहिये_*

*_! सुन्नी सहीयुल अक़ीदा हो यानि कि सुन्नियत पर सख्ती से क़ायम हो हर तरह की गुमराही व बद अमली से दूर रहे तमाम बद मज़हब फ़िर्कों से दूर रहे उनके साथ उठना बैठना,खाना पीना,सलाम कलाम,रिश्ता नाता,कुछ ना रखे ना उनके साथ नमाज़ पढ़े ना उनके पीछे नमाज़ पढ़े और ना उनकी जनाज़े की नमाज़ पढ़े_*

*_! आलिम हो यानि कि अक़ायद व गुस्ल तहारत नमाज़ रोज़ा व ज़रुरत के तमाम मसायल का पूरा इल्म रखता हो और अपनी ज़रुरत के तमाम मसायल किताब से निकाल सके बग़ैर किसी की मदद के_*

*_! फ़ासिक ना हो यानि कि हद्दे शरह तक दाढ़ी रखे पंज वक़्ता नमाज़ी हो और हर गुनाह मस्लन झूट,ग़ीबत,चुगली,फ़रेब,फ़हश कलामी,बद नज़री,सूद,रिश्वत का लेन देन,तस्वीर साज़ी,गाने बाजे तमाशो से,ना महरम से पर्दा,गर्ज़ की कोई भी खिलाफ़े शरअ काम ना करता हो_*

*_! उसका सिलसिला नबी तक मुत्तसिल हो यानि कि जिस सिलसिले मे ये मुरीद करता हो उसके पीर की खिलाफ़त उसके पास हो_*

*_जिसके अन्दर ये 4 शर्तें पाई जायेंगी वो पीरे कामिल है और अगर किसी के अन्दर 1 भी शर्ते ना पाई गई तो वो पीर नहीं बल्कि शैतान का मसखरा है_*

*📚 सबा सनाबिल शरीफ़,सफ़ह 110*

*_पीर के अन्दर क्या शर्ते होनी चाहिये आपने पढ़ लिया अब अगर किसी के पीर के अन्दर ये शर्ते नहीं पाई जाती तो ख़ुदारा पीर परस्ती ना करके शरह को मुक़द्दम रखें और फौरन उसे छोड़कर किसी बा-शरह पीर का दामन थाम लें कि इसी में ईमान की सलामती है,मौला ताआला हम सबके ईमान की हिफाज़त करे और मसलके आलाहज़रत पर सख्ती से क़ायम रखे-आमीन आमीन आमीन या रब्बुल आलमीन बिजाहिस सय्यदिल मुरसलीन सल्लललहो तआला अलैहि वसल्लम_*




*वली की पहचान*
*_हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि क़यामत के दिन अल्लाह के कुछ बन्दे ऐसे होंगे जो ना नबी होंगे और ना शुहदा मगर उनके मक़ाम और बुलंदी को देखकर बाज़ अम्बिया और शुहदा भी रश्क करेंगे_*

*📚 अबू दाऊद,जिल्द 3,सफह 288*

*_अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान मुक़द्दस में इरशाद फरमाता है कि "बेशक अल्लाह के वली मुत्तक़ी ही होते हैं"_*

*📚 पारा 9,सूरह इंफाल,आयत 34*

*_और तक़वा परहेज़गारी खशीयत बग़ैर इल्म के नामुमकिन है जैसा कि मौला क़ुरान में इरशाद फरमाता है कि "अल्लाह से उसके बन्दों में वही डरते हैं जो इल्म वाले हैं"_*

*📚 पारा 22,सूरह फातिर,आयत 28*

*_हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि तसव्वुफ़ सिर्फ गुफ्तुगू नहीं बल्कि अमल है और फरमाते हैं कि जिस हक़ीक़त की गवाही शरीयत ना दे वो गुमराही है_*

*📚 फुतुहूल ग़ैब,सफह 82*

*_हज़रत मुजद्दिद उल्फ सानी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि जो शरीयत के खिलाफ हो वो मरदूद है_*

*📚 मकतूबाते इमाम रब्बानी,हि 1,मकतूब 36*

*_हज़रत शहाब उद्दीन सहरवर्दी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि जिसको शरीयत रद्द फरमाये वो हक़ीक़त नहीं बेदीनी है_*

*📚 अवारेफुल मआरिफ,जिल्द 1,सफह 43*

*_हज़रत इमाम गज़ाली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि जिस हक़ीक़त को शरीयत बातिल बताये वो हक़ीक़त नहीं बल्कि कुफ्र है_*

*📚 तजल्लियाते शेख मुस्तफा रज़ा,सफह 149*

*_हज़रत बायज़ीद बुस्तामी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि अगर तुम किसी को देखो कि वो हवा में उड़ता है पानी पर चलता है ग़ैब की खबरें बताता है मगर शरीयत की इत्तेबा नहीं करता तो समझलो कि वो मुल्हिद व गुमराह है_*

*📚 सबा सनाबिल शरीफ,सफह 186*

*_एक शख्स हज़रत जुनैद बग़दादी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से ये सोचकर मुरीद होने के लिए आया कि हज़रत से कोई करामात देखूंगा तो मुरीद हो जाऊंगा,वो आया और आकर आस्ताने में रहने लगा इस तरह पूरे 10 साल गुज़र गए और 10 सालों के बाद वो नामुराद होकर वापस जाने लगा,हज़रत ने उसे बुलवाया और कहा कि तुम 10 साल पहले आये यहां रहे और अब बिना बताए जा रहे हो क्यों,तो कहने लगा कि मैंने आपकी बड़ी तारीफ सुनी थी कि आप बा करामत बुज़ुर्ग हैं इसलिए आया था कि आपसे कोई करामात देखूंगा तो आपका मुरीद हो जाऊंगा मगर पिछले 10 सालों में मैंने आपसे एक भी करामात सादिर होते हुए नहीं देखी इसलिए जा रहा हूं,हज़रत जुनैद बग़दादी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि ऐ जाने वाले तूने पिछले 10 सालों में मेरा खाना पीना,सोना जागना,उठना बैठना सब कुछ देखा मगर क्या कभी ऐसा कोई खिलाफे शरह काम भी होते देखा,इसपर वो कहने लगा कि नहीं मैंने आपसे कभी कोई खिलाफे शरह काम होते नहीं देखा,तो आप फरमाते हैं कि ऐ शख़्स क्या इससे बड़ी भी कोई करामात हो सकती है कि 10 सालों के तवील अरसे में एक इंसान से कोई खिलाफे शरह काम ही ना हो_*

*📚 तारीखुल औलिया,जिल्द 1,सफह 67*

*_हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि मैं एक जंगल में था भूख और प्यास का सख्त गल्बा था,अचानक मेरे सामने एक रौशनी छा गयी और एक आवाज़ आई कि ऐ अब्दुल कादिर मैं तेरा रब हूं और तुझसे बहुत खुश हूं इसलिए आजसे मैंने तुमपर हर हराम चीज़ें हलाल फरमा दी और तुम पर से नमाज़ भी माफ फरमा दी,ये सुनते ही मैंने लाहौल शरीफ पढ़ा तो फौरन वो रौशनी गायब हो गयी और एक धुवां सा रह गया फिर आवाज़ आई कि ऐ अब्दुल कादिर मैं शैतान हूं तुझसे पहले इसी जगह पर मैंने 70 औलिया इकराम को गुमराह किया है मगर तुझे तेरे इल्म ने बचा लिया,इसपर हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि ऐ मरदूद मुझे मेरे इल्म ने नहीं बल्कि रब के फज़्ल ने बचाया है,ये सुनते ही इब्लीस फरार हो गया_*

*📚 बेहिज्जतुल असरार,सफह 120*

*इन सब बातों का निचोड़ ये है कि*

*! अगर हवा में उड़ना विलायत होती तो इब्लीस लईन सबसे बड़ा वली होता कि सातवीं ज़मीन के भी नीचे तहतुस्सरा में ठहरता है मगर जैसे ही नाम लिया पास आकर बैठ जाता है कि 3500 साल से भी ज़्यादा का सफर वो पल भर में तय कर लेता है,मगर वो वली नहीं*

*! अगर पानी पे चलना विलायत होती तो काफिर भी अपने जादू से पानी पर चला करते हैं,मगर वो वली नहीं*

*! अगर ग़ैब की खबर देना विलायत होती तो कभी कभार नुजूमी यानि स्ट्रोलोजर भी सही भविष्यवाणी कर दिया करते हैं,मगर वो वली नहीं*

*! नमाज़ छोड़ने वाला,दाढ़ी मुंडाने वाला,फोटो खींचने खिंचाने वाला,म्यूजिक सुनने वाला,ना महरम औरतों की सोहबत में बैठने वाला,झूठ बोलने वाला फासिक़ है हरगिज़ वली नहीं*

*अलहासिल जो इल्म वाला होगा वही तक़वे वाला होगा और जो तक़वे वाला होगा वही अल्लाह का वली होगा लिहाज़ा वली को उसके तक़वे से पहचाने करामात से नहीं,अब अगर तक़वा और परहेज़गारी देखना हो तो बरैली शरीफ चला जाये और जाकर मेरे पीरो मुर्शिद हुज़ूर ताजुश्शरिया दामत बरकातोहुमुल आलिया का एक बार अपनी आंखों से दीदार कर आये खुद बखुद समझ जायेगा कि वली कैसा होता है उन्हें देखते ही हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की वो हदीस याद आ जायेगी कि आप फरमाते हैं "वली वो है जिसको देखकर तुम्हें खुदा की याद आ जाये*

*📚 तिर्मिज़ी,जिल्द 2,सफह 39*

*खत्म,,,,,,*




*_कुछ कुफ्रियात_*
*भारत माता की जय बोलना कुफ्र है!*

*(📚 फ़तावा शारेह बुखारी, जिल्द 2, सफह 598)*

*जय हिन्द बोलना भी जायज़ नहीं है कि शियारे हिनूद है, हिंदुस्तान जिंदाबाद कहें!*

*(📚 फतावा शारेह बुखारी, जिल्द 2, सफह 463)*

*वन्दे मातरम गाने वाला काफिर है!*

*(📚 फ़तावा शारेह बुखारी, जिल्द 2, सफह 590)*

*गैर मुस्लिम यानी काफिरों को शहीद कहना कुफ्र है!*

 *(📚 फतावा शारेह बुखारी, जिल्द 2, सफह 588)*

*जो ये कहे कि मौलवी से अच्छे तो पंडित हैं वो काफिर है!*
 *(📚 फतावा शारेह बुखारी, जिल्द 2, सफह 587)*

*जिसने मज़ाक़ में भी ये कहा के सोचता हूं के मैं हिन्दू या ईसाई हो जाऊं या किसी भी काफिरो मुर्तद फिरके का नाम लिया तो फौरन काफिर हो गया!*

*(📚 अहकामे शरीयत, हिस्सा 2, सफह 24)*

*किसी काफिर को महातमा कहना कुफ्र है!*

*(📚 फतावा शारेह बुखारी, जिल्द 2, सफह 589)*

*मुसलमान अगर जय श्री राम, जय हनुमान,हर हर महादेव, जय श्री गणेश,जय भीम,हरे रामा हरे कृष्णा या मैरी क्रिस्मस या इस तरह का कोई भी मज़हबी नारा जो काफिरों में मशहूर है लगायेगा तो काफिर हो जायेगा!*

 *(📚 फतावा शारेह बुखारी, जिल्द 2, सफह 550)*

*हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई आपस में हैं भाई भाई जो ये नारा लगाये काफिर है!*

 *(📚 फतावा शारेह बुखारी, जिल्द 2, सफह 552)*

*युंही नमस्ते नमस्कार प्रणाम वगैरह कहना भी नाजाइज़ और हराम है





*टी.वी-तस्वीर या आईना*
*पोस्ट बड़ी है मगर बहुत इल्मी है पूरी पढ़ लीजिएगा इन शा अल्लाह इल्म में बहुत इज़ाफा होगा*

 *बेशक निहायत सख़्त अज़ाब क़यामत के दिन तस्वीर बनाने वालों पर होगा*

 *📚 मुस्लिम,जिल्द 2,सफह 201*

 *बेशक जो तस्वीर बनाते हैं क़यामत के दिन उनसे कहा जायेगा कि जो कुछ तुमने बनाया उसमें जान डालो और वो हरगिज़ ऐसा ना कर सकेगा*

 *📚 मुस्लिम,जिल्द 2,सफह 209*

 *उस घर में रहमत के फरिश्ते दाखिल नहीं होते जिसमे कुत्ता तस्वीर या कोई जुनुब (जिसपर ग़ुस्ल फर्ज़) हो*

 *📚 अबू दाऊद,जिल्द 2,सफह 218*

 *अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान मुक़द्दस में इरशाद फरमाता है कि "वो लोग जो रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को ईज़ा देते हैं अल्लाह ने उनपर दुनिया और आखिरत में लानत फरमाई और उनके लिए ज़िल्लत का अज़ाब तैयार कर रखा है*

 *हज़रते अकरमा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि ये आयत तस्वीर बनाने वालों के हक़ में नाज़िल हुई*

 *📚 पारा 22,सूरह अहज़ाब,आयत 57*
 *📚 किताबुल कबायेर,सफह 303*

 *आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि "हदीस इस बारे में हद्दे तवातर पर हैं जिसका क़सदन इंकार करने वाले कम से कम गुमराह व बद्दीन है*

 *📚 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह 143*

मगर टीवी के मसले पर बहुत सारे नाम निहाद 'उल्मा' गुमराही के गढ़े में गिरे हुए हैं जो इस पर दिखने वाली इमेज को तस्वीर नहीं मानते और इसको जायज़ करने के लिए ये 3 दलीलें पेश करते हैं

*1- टीवी मिस्ल आइना है*

*2- टीवी में तस्वीर नहीं बल्कि शुआयें यानि rase किरण हैं,जो कि तस्वीर नहीं*

*3- उमूमे बलवा यानि हालते ज़माना को देखते हुए इसे जायज़ कर दिया जाए*

आईये चलते हैं इन सारी बातों का पोस्ट मार्टम करने के लिए,सबसे पहले हिन्दुस्तान में इस खुराफात को जिसने जायज़ किया वो बदमज़हब फिरका जमाते इस्लामी का बानी अबुल आला मौदूदी था जिसके मानने वालों को मौदूदवी भी कहा जाता है,फिर इसी मौदूदवी तहरीक को आगे बढ़ाया मौलवी मदनी मियां साहब कछौछवी ने,जिस पर हुज़ूर ताजुश्शरिया ने उनकी शरई गिरफ़्त फरमाई और उनकी ग़लत तहक़ीक़ पर 25 सवाल क़ायम फरमाये जिसका जवाब मदनी मियां साहब ने कुछ का कुछ दिया,हालांकि उनके दिए गए जवाबात गलत थे मगर फिर भी हुज़ूर ताजुश्शरिया ने उन पर भी कुछ सवाल क़ायम किये जिनका जवाब आज तक उनकी या उनके मानने वालों की जानिब से नहीं दिया गया,मगर जैसा कि उल्टा चोर कोतवाल को डांटे वाली कहावत यहां सटीक बैठती है कि जवाब तो दिया नहीं गया उल्टा अपने स्टेजों से उनके ग्रुप के लोगों ने मसलन हाशमी मियां कछौछवी,उबैद उल्लाह खान आज़मी,मौलवी ज़हीर उद्दीन वग़ैरह ने खुले आम हुज़ूर ताजुश्शरिया व आलाहज़रत की शान में गुस्ताखियां की बल्कि कुछ सहाबा इकराम को भी निशाना बना डाला,जो हज़रात वो आडियो सुनना चाहते हों वो www.benaqabchehre.com पर विज़िट करें,फिर इसी कड़ी में एक और नाम जुड़ा पाकिस्तान के एक ग़ुमराह मौलवी ताहिरुल क़ादरी का जिसके ऊपर सिर्फ हिंदुस्तान के ही नहीं बल्कि पाकिस्तान के भी सवा सौ से भी ज़्यादा उलेमा इकराम ने हुक्मे कुफ़्र लगाया,फिर इन्ही गुमराह मौलवियों की शह पाकर पाकिस्तान की बदनाम ज़माना तहरीक दावते इस्लामी भी चल पड़ी,जो शुरू शुरू में अपनी जमात को फरोग़ देने के लिए खूब मसलके आलाहज़रत का नारा बुलंद करती थी,यहां पर मैं टीवी को जायज़ करने की उन 3 दलीलों पर कुछ अर्ज़ करता हूं

*पहला ये कि टीवी मिस्ल आइना है*

बिलकुल ग़लत है,जैसा कि मेरे आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि "बिला शुबह आईने में जो अपनी सूरत देखते हो तो क्या उसमें ( आईने में ) कोई सूरत है,नहीं बल्कि आंखों का नूर आईने पर पड़कर वापस आता है तो वो अपने आपको देखता है लिहाज़ा दाहिना बायां नज़र आता है और बायां दहिना नज़र आता है

 *📚 अलमलफ़ूज़,हिस्सा 1,सफह 50*

इसी उसूल पर उलमाये इकराम के बनाये हुए कुछ कानून मुलाहज़ा करें

1. जिस कोण से आंखों का नूर आईने पर पड़ेगा वो नूर कोण बनाता हुआ वापस लौटेगा,मसलन आइने को सामने रखकर बीच से देखें तो अपनी सूरत नज़र आती है मगर जब आईने के दाईं तरफ से देखें तो खुद की सूरत नज़र नहीं आती बल्कि बायीं तरफ़ की तमाम चीज़ें आईने में नज़र आती है,अगर टीवी आइना है तो क्या टीवी में भी ऐसा होता है क्या टीवी के दाएं बाएं जाने से टीवी का scene यानि पोज़ चेंज होता है,यक़ीनन नहीं तो फिर टीवी आईने के मिस्ल कैसे हुआ

2. टीवी के पिक्चर ट्यूब में कुछ ख़ास किस्म के बल्ब होते हैं जो शुवाओं को टीवी के अन्दर की तरफ़ की स्क्रीन पर डालते हैं तो वो शुआअें बाहर की तरफ से नज़र आती है पलटकर वापस नहीं जाती जबकि आईने में rase पलटती हैं तो फिर टीवी आईने के मिस्ल कैसे हुआ

3. टीवी का पिक्चर ट्यूब खुद rase यानि किरणें पैदा करता है इसके बर अक्स आइना कोई नूर या किरण नहीं बनाता बल्कि जो जिस तरह उस तक पहुंचता है उसे वैसे ही लौटा देता है तो फिर टीवी आईने के मिस्ल कैसे हुआ

4. टीवी का पिक्चर ट्यूब rase यानि किरणों में तसर्रुफ़ यानि बदलाव करता है मसलन आईने के सामने जब हम दायां हाथ उठाते हैं तो गोया लगता है कि बायां हाथ उठा लेकिन यही पोज़ जब हम टीवी में देखते हैं तो दहिना ही नज़र आता है मतलब साफ़ है कि आइना आये हुए नूर को युंहि लौटा देता है जबकि टीवी में गयी किरण को वो डायरेक्शन चेंज करके दिखाता है तो जब आईना तसर्रुफ़ नहीं करता और टीवी तसर्रुफ़ करता है तो फिर टीवी आईने के मिस्ल कैसे हुआ

5. आईने में नज़र आने वाली सूरत को एक जगह रोका नहीं जा सकता जबकि टीवी में नज़र आने वाली तस्वीर को pause का बटन दबाते ही बड़ी आसानी से रोका जा सकता है ये इस बात की दलील है कि आईने में कोई तस्वीर नहीं है जबकि टीवी में तस्वीर मौजूद है तो फिर टीवी आईने के मिस्ल कैसे हुआ

इसको इस तरह से समझाता हूं,आपने शायद सिनेमा हाल मे चलने वाली फिल्म की रील देखी होगी,अब तो फिल्मे satelite के ज़रिये चलती है मगर पहले रील यानी नेगेटिव के ज़रिये चलती थी,जब मूवी चल रही होती है तो क्या ज़रा भी ये महसूस होता है कि ये still images यानि ठहरी हुई photos की next by next range है,नहीं बिल्कुल नहीं,बल्कि सब कुछ चलता फिरता नज़र आता है,मगर जहां कुछ खराबी आई फ़ौरन एक जगह इमेज ठहर जाती है यानि जिसको आज वीडियो ग्राफी कहकर जायज़ किया जा रहा है दर असल वो भी स्टिल फोटोग्राफी ही है,आज की इस हाई टेक्नोलॉजी के दौर में अब रील में स्टिल इमेज रखने की भी ज़रूरत नहीं है बल्कि वो डेटा की शक्ल में मेमोरी कार्ड,पेन ड्राइव,कैमरे की हार्ड डिस्क में भी सेव करके रखा जा सकता है,मगर है ये भी तस्वीर ही

6. क्या पूरी दुनिया में कोई भी क़ौम आईने की पूजा करती है,नहीं मगर टीवी पर हिन्दू पूजा किया करते हैं इस काम के लिए बहुत सारी कम्पनियां पूजा की सीडी या डीवीडी बनाती और बेचती हैं,और अब तो जाहिलों ने दीदारे अत्तार की भी सीडियां बना रखी है,लिहाज़ा इतने सारे फर्क होने के बावजूद ये कहना कि टीवी मिस्ल आइना है सरासर जिहालत और हठधर्मी है

*दूसरा ये कहना कि टीवी में शुआयें हैं तस्वीर नहीं*

ये भी बिलकुल गलत तहक़ीक़ है कि कैमरा की शुवाओं में भी तस्वीर होती है और कैमरा उन तस्वीरों को शुवाओं की शक्ल में सेव करके रख सकता है,अगर कैमरा की किरणों में तस्वीरें न होती तो सामने बैठे हुए आदमी की तस्वीर किस तरह बनती,और अगर ये तस्वीर नहीं है तो फिर इन शुवाओं को कैमरा या मोबाइल में रिकॉर्ड करने का क्या मक़सद है,ज़ाहिर सी बात है इन शुवाई तस्वीरों का भी वही मक़सद है जो हाथ की तस्वीरों का होता है यानि इन्हें भी कागज़ या स्क्रीन पर उतारा जाएगा,और जब ये शुआयें स्क्रीन पर आएगी तो यक़ीनन तस्वीर होगी और उस पर हुरमत साबित होगी,इसको यूं समझिये कि एक आर्टिस्ट कई दिन में रंग ब्रश और केनवास पर किसी की तस्वीर बनाता है मगर आज की इस मॉडर्न टेक्नोलॉजी में वही शख्स शुवाओं का रंग लेकर कैमरा या मोबाइल के ब्रश से स्क्रीन के कैनवास पर चन्द सेकंड में तस्वीर बना देता है,क्या हाथ की बनी हुई तस्वीर में और टीवी या मोबाइल की स्क्रीन पर दिखती हुई तस्वीर में कोई फर्क होता है,क्या टीवी में दिखने वाली शुवाई तस्वीरों के मुंह नाक कान आंख नहीं होते,तो क्यों आख़िर ये तस्वीर नहीं है अगर चे बनाने का तरीक़ा अलग है मगर है तो तस्वीर ही,क्या सुअर के गोश्त को मुर्गा कहकर खाने से वो हलाल हो जाएगा क्या शराब को शरबत कहकर पीने से वो जायज़ हो जाएगा,नहीं और हरगिज़ नहीं,तो फिर ये उल्टी मन्तिक़ तस्वीर के मौज़ू पर क्युं,क्या ये सरासर शरीयत के साथ खिलवाड़ नहीं है,यक़ीनन है

*तीसरा ये कि हालते ज़माना को देखते हुए टीवी को जायज़ कहना*

दलील के तौर पर हज़रत फ़क़ीह अबुल लैस समरकंदी अलैहिर्रहमा के 3 मसायल में रुजू करने की बात कहते हैं तो ऐसे लोग खूब अच्छी तरह समझ लें कि उनकी दलीलों को ढ़ाल बनाकर हरगिज़ टीवी जैसी खुराफ़ात को जायज़ नहीं किया जा सकता और उनका रुजू फरमाना आज के नाम निहाद मौलवियों की तरह नाम,शोहरत और पैसा कमाना नहीं था बल्कि दीन बचाना था उनका एक मसला दर्ज करता हूं,शरीयत ने इल्म के बदले में क़ीमत वसूल करना नाजायज़ फ़रमाया,शुरू इस्लाम से ही उलमाये इकराम को सल्तनते इस्लामी के ज़रिये एक मुस्तक़िल वज़ीफा मिला करता था जिससे उनकी माली इमदाद और गुज़र बसर हो जाया करती थी और वो उलमा दीन की इशाअत में मसरूफ रहा करते थे,मगर ज्युं ज्युं इस्लामी हुक़ूमत ख़त्म होना शुरू हुई तो उलमा को दिए जाने वाले वज़ीफ़े बंद होते गए,इससे उनका घर संभालना निहायत दुश्वार हो गया,दूसरा कोई रास्ता न देख हज़ारों उल्मा इकराम ने दर्सो तदरीस छोड़कर दूसरा काम धंधा शुरू कर दिया और जो मोअतबर उलमा बचे थे वो भी दुनिया की तरफ़ जाने का मन बना चुके थे,जब उलेमा इकराम मज़बूरी में अपना और अपने घर वालों की खातिर दीन की इशाअत छोड़कर दूसरे किसी काम को ढूंढ रहे रहे थे तब ऐसे नाज़ुक वक़्त में जब कि दीन मिटता हुआ नज़र आने लगा तो हज़रत समरकंदी अलैहिर्रहमा ने दर्सो तदरीस पर तनख्वाह लेने का फतवा दिया,अब उस मसअले को टीवी पर जायज़ करने के लिये दलील बनाना आप बताइए क्या सही है,वहां मज़बूरी थी क्या आज टीवी के मामले मे मज़बूरी है,क्या उस मसले का टीवी से कोई जोड़-तोड़ है,उस वक़्त दीन खतरे में पड़ गया था क्या आज बग़ैर टीवी के दीन खतरे में है,क्या बग़ैर टीवी के दीन मिट जाएगा

! क्या बग़ैर टीवी के इमाम नमाज़ नहीं पढ़ा पाएगा
! क्या बग़ैर टीवी के बच्चे इल्म हासिल नहीं कर पाएंगे
! क्या मदरसों में ताले लगवा दिए जाएं
! क्या दीनी किताबें छपवानी बंद करके लाइब्रेरी में टीवी घुसा दिया जाए
! क्या जलसों में मस्जिदों में मुक़र्रर की जगह टीवी रखकर तक़रीर कराई जाए (दावते इस्लामी वालों की तरह माज़ अल्लाह)

 *तो मानना पड़ेगा कि दीन का काम टीवी पर मौक़ूफ़ नहीं है,लिहाज़ा ये नाम निहाद मौलवी अपनी गुमराही को अवाम में फैलाना बंद करें,अब एक मसअला खूब क़ायदे से समझ लें कि वोटर कार्ड,राशन कार्ड,ड्राइविंग लाइसेंस,एडमिशन फॉर्म,पासपोर्ट या जिस जगह भी फोटो मांगी जाती है वहां पर सिर्फ उस ज़रूरत के लिए तस्वीर खिंचवाने की रुखसत है मतलब छूट है यानि शरई मुआखज़ा ना होगा इसका ये मतलब हर्गिज़ नहीं कि तस्वीर जायज़ हो गई,मतलब ये कि जैसे इज़तरार की हालत में किसी की भूख से या प्यास से जान जा रही हो तो उसे शराब और सुअर खाकर भी अपनी जान बचाने की इजाज़त है,ये नहीं है कि शराब और सुअर हलाल हो गया,ठीक उसी तरह ज़रूरत से ही फोटो खिंचवाने की इजाज़त है ये नहीं कि खूब फोटो खिंचाओ खूब मूवी बनवाओ खूब टीवी देखो सब जायज़ हो गया,याद रखिये जो मुसलमान किसी हराम काम को हराम जानकार करेगा तो वो फ़ासिक़ होगा मगर अल्हम्दु लिल्लाह मुसलमान रहेगा मगर किसी ने हराम को हलाल समझ लिया तो कम से कम इस मसअले में गुमराह तो हो ही जायेगा*

*अगर यहां तक की बात समझ में आ गयी हो तो ये आखिरी बात भी समझ लीजिए कि आप इस्लामी ग्रुप में हैं और इल्मे दीन हासिल करने की गर्ज़ से हैं तो इल्म उसी वक़्त फायदा पहुंचाता है जब कि उसकी इज़्ज़त की जाए और इल्म की इज़्ज़त ये होती है कि उसको क़ुबूल करे यानि उसपर अमल करे नाकि एक कान से सुने और दूसरे से उड़ा दें,तो मेहरबानी करके अपनी अपनी D.P से जानदार की फोटो हटाई जाए वरना बरौज़े महशर आप खुद अपनी हलाक़त के ज़िम्मेदार होंगे*

 *📚 टीवी और वीडियो का ऑपरेशन*
 *📚 शुवाई पैकर का हुक्म*





*सलातो सलाम*
कंज़ुल ईमान:- *_बेशक अल्लाह और उसके फरिश्ते दुरूद भेजते हैं उस ग़ैब बताने वाले नबी पर,ऐ ईमान वालों उन पर दुरूद और खूब सलाम भेजो_*

तर्जुमा थानवी:- *_बेशक अल्लाह और उसके फरिश्ते रहमत भेजते हैं इन पैगम्बर पर,ऐ ईमान वालों तुम भी आप पर रहमत भेजा करो और खूब सलाम भेजा करो_*

*📚 पारा 22, सूरह अहज़ाब, आयत 56*

*और हज़रत यहया अलैहिस्सलाम की विलादत पर रब तआला फरमाता है*

कंज़ुल ईमान:- *_और सलामती है उस पर जिस दिन पैदा हुआ और जिस दिन मरेगा और जिस दिन ज़िंदा उठाया जायेगा_*

*📚 पारा 16, सूरह मरियम, आयत 15*

*और हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने तो खुद अपने ऊपर सलाम पढ़ा*

कंज़ुल ईमान:- *_और सलामती है मुझ पर जिस दिन मैं पैदा हुआ और जिस दिन मरूं और जिस दिन ज़िंदा उठाया जाऊं_*

*📚 पारा 16, सूरह मरियम, आयत 33*

कंज़ुल ईमान:- *_नूह पर सलाम हो जहां वालों में_*

*📚 पारा 23, सूरह साफ़्फ़ात, आयत 79*

कंज़ुल ईमान:- *_सलाम हो इब्राहीम पर_*

*📚 पारा 23, सूरह साफ़्फ़ात, आयत 109*

कंज़ुल ईमान:- *_सलाम हो मूसा और हारून पर_*

*📚 पारा 23, सूरह साफ़्फ़ात, आयत 120*

कंज़ुल ईमान:- *_सलाम हो इल्यास पर_*

*📚 पारा 23, सूरह साफ़्फ़ात, आयत 130*

कंज़ुल ईमान:- *_और सलाम है पैगम्बरों पर_*

*📚 पारा 23, सूरह साफ़्फ़ात, आयत 181*

*खुद रब्बे ज़ुल्जलाल ने तो सारे अम्बिया पर ही सलाम पढ़ डाला मगर पता नहीं कि अन्धे और कोढियों की कौन सी क़ुर्आन है जिसमें सलाम पढ़ने को हराम और शिर्क लिखा गया है,बात तो यहीं पर खत्म हो जानी चाहिए थी मगर अब जब शुरू किया है तो पूरी कर ही दूं*

हदीस:- *_हज़रते मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने फरमाया कि मैं नबीये करीम सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम के हमराह मक्का में था,फिर सरकारे अक़दस और मैं मक्का शरीफ के गिर्द अंवाह में गये तो जिस पहाड़ और दरख़्त का भी सामना होता तो वो बा आवाज़ बुलन्द अर्ज़ करता ,अस्सलामु अलैका या रसूल अल्लाह!, सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम_*

*📚 तिर्मिज़ी, जिल्द 2, सफ़ह 203*

*और अब मुनकिर ये कहेगा कि सलाम पढ़ना तो फिर भी ठीक है मगर क़यामे ताज़ीमी हराम है,तो ग़ैरुल्लाह की ताज़ीम यानि क़याम पर भी दलील मुलाहज़ा करें*

हदीस:- *_जब हज़रत सअद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु मस्जिदे नबवी शरीफ में दाखिल हुए तो हुज़ूर सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने अनसार को हुक्म दिया कि,क़ूमू इला सय्येदिकुम!, यानि अपने सरदार के लिए खड़े हो जाओ_*

*📚 मिश्कात, जिल्द 1, बाबुल जिहाद*

हदीस:- *_खातूने जन्नत हज़रत फातिमा ज़ुहरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा के आने पर नबी करीम सल्ल्ललाहु तआला अलैही वसल्लम फौरन खड़े हो जाते और आपकी पेशानी चूमकर अपनी मसनद पर बिठाते_*

*📚 मिश्कात, किताबुल अदब, बाबुल मुसाफा*

*अगर क़यामे ताज़ीमी हराम होता तो क्यों नबी अपने सहाबियों को खड़ा होने का हुक्म देते और क्यों खुद अपनी बेटी के आने पर उसकी ताज़ीम करते,ज़ाहिर सी बात है कि या तो वहाबियों ने क़ुर्आनो हदीस पढ़ी ही नहीं और अगर पढ़ी है तो उसका मतलब समझने से कासिर रह गये,और अगर किसी की ताज़ीम के लिये खड़ा होना अगर शिर्क होता तो दुनिया के तमाम इन्सान मुश्रिक हो जाते मदर्से के तल्बा मुदर्रिस के आने पर खड़े हो जाते हैं तो स्कूल के बच्चे टीचर के आने पर और दुनियादारों की तो बात ही क्या करना मजिस्ट्रेट आ जाये तो खड़े हो जाओ कमिश्नर आ जाये तो खड़े हो जाओ M.L.A आ जाये तो खड़े हो जाओ C.M आ जाये तो खड़े हो जाओ P.M आ जाये तो खड़े हो जाओ और खुद वहाबी अपने इमामो पेश्वा के लिये खड़े होते है मगर नबी की ताज़ीम को जैसे ही सुन्नी ने खड़े होकर सलाम पढ़ा कुछ दोगलों के मज़हब में हराम और शिर्क हो गया,इसी लिए मेरे आलाहज़रत फरमाते हैं कि*

*शिर्क जिसमे होवे ताज़ीमे हबीब*
*उस बुरे मज़हब पे लअनत कीजिये*

*रब जिस पर दुरूद भेजे,शजरो हजर जिस पर सलाम पढ़ें,जानवर जिनको सज्दा करें,हम अपने उसी नबी की बारगाह में ''मुस्तफा जाने रहमत पे लाखों सलाम'' पढ़ लें तो इतनी क़यामत कि अल्लाह अल्लाह,क्या क़ुर्आन में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने सलाम पढ़ने पर कोई क़ैद लगाई है कि ऐसे पढ़ो और ऐसे ना पढ़ो या तन्हा पढ़ो मगर भीड़ में ना पढ़ो तो जब उसने कह दिया पढ़ो तो जो जिस ज़बान में और जैसे भी पढ़ेगा उसी का हुक्म अदा करेगा,अब ज़रा चलते चलते इन मुनाफिकों के इमाम का भी एक क़ौल मुलाहज़ा कर लें रशीद अहमद गंगोही ने एक सवाल के जवाब में लिखा*

वहाबी:- *_ताज़ीमे दीनदार को खड़ा होना दुरुस्त है_*

*📚 फ़तावा रशीदिया, जिल्द 1, सफ़ह 54*

*और अशरफ अली थानवी के पीरो मुर्शिद हाजी इम्दाद उल्लाह मुहाजिर मक्की रहमतुल्लाहि तआला अलैहि लिखते हैं*

फुक़्हा:- *_मशरब फक़ीर का ये है कि महफिले मिलाद में शरीक होता हूं बल्कि ज़रियये बरकात समझ कर हर साल मुनक़्क़िद करता हूं और क़याम में लुत्फो लज़्ज़त पाता हूं_*

*📚 फैसला हफ्त मसला, सफ़ह 111*

*पीर को तो सलाम पढ़ने में लुत्फ मिल रहा है और मुरीद हराम और शिर्क का फतवा दे रहा है,अल्लाह ही जाने वहाबियों के यहां दीन किस चीज़ का नाम है*






*कुफ्र की किस्में*
कुफ्र की किस्में:- *_इसकी 2 किस्में हैं असली व मुर्तद_*

1-असली:- *_वो जो शुरू से काफिर और कल्मए इस्लाम का मुनकिर है,इसकी भी 2 किस्में हैं मुजाहिर व मुनाफिक़,मुजाहिर की भी 4 किस्में हैं_*

दहरिया:- *_ये खुदा का ही मुनकिर है_*

मुशरिक:- *_अल्लाह के सिवा बुतों को अपना मअबूद समझना और किसी और की इबादत करना जैसे हिन्दू व आर्य वग़ैरह_*

मजूसी:- *_आग की पूजा करने वाले_*

किताबी:- *_यहूद व नसारा_*

*_दहरिया व मुश्रिक व मजूसी का ज़बीहा हराम और उनकी औरतों से निकाह बातिल जबकि किताबी से निकाह हो जायेगा मगर मना है_*

2-मुर्तद:- *_वो जो मुसलमान होकर कुफ्र करे इसकी भी 2 किस्में हैं,मुजाहिर व मुनाफिक़_*

मुर्तद मुजाहिर:- *_वो जो मुसलमान था मगर अलल ऐलान इस्लाम से फिर कर काफिर हो गया यानि दहरिया या मुश्रिक या मजूसी या किताबी हो गया_*

मुर्तद मुनाफिक़:- *_वो जो अब भी कल्मा पढ़ता है और अपने आपको मुसलमान कहता है मगर खुदा व रसूल की शान में गुस्ताखी करता है और ज़रूरियाते दीन का इन्कार करता है जैसे कि वहाबी,देवबंदी,क़ादियानी,खारिजी,राफजी यानि शिया,अहले हदीस,जमाते इस्लामी यानि मौदूदवी और भी बदमज़हब फिरके हैं,हुक्मे दुनिया में सबसे बदतर मुर्तद हैं इनसे जुज़िया नहीं लिया जा सकता इनका निकाह दुनिया में किसी से नहीं हो सकता ना मुसलमान से ना काफिर से ना मुर्तद से ना इनके हम मज़हब गर्ज़ कि किसी हैवान से भी नहीं हो सकता जिससे भी होगा ज़िना खालिस होगा,ये काफिर की सबसे बदतर किस्म है इसकी सोहबत हज़ार काफिरों की सोहबत से भी ज़्यादा खतरनाक है क्योंकि ये मुसलमान बनकर कुफ्र सिखाता है_*

*📚 अहकामे शरीअत, हिस्सा 1, सफह 111*

*वैसे तो क़ुर्आन में मुनाफिक़ों के बारे में बेशुमार आयतें नाज़िल हुई हैं मगर सबका ज़िक्र ना करके सिर्फ उन आयतों को पेश करता हूं जिनमें उनकी इबादत उनके एहकाम और उनका हश्र बयान हुआ हो,मुलाहज़ा फरमायें*

कंज़ुल ईमान:- *_और वो जो खर्च करते हैं उनका क़ुबूल होना बन्द ना हुआ मगर इसलिये कि वो अल्लाह और रसूल से मुनकिर हुए और नमाज़ को नहीं आते मगर जी हारे और खर्च नहीं करते मगर ना गवारी से_*

*📚 पारा 10, सूरह तौबा, आयत 54*

*आज जो लोग बद अक़ीदों की नमाज़ और उनके सदक़ात और उनकी मिसाल देकर लोगों को समझाया करते हैं कि देखो ये लोग कितने मुत्तक़ी हैं तो वो इस आयत को बग़ौर पढ़ें,इसमें मौला तआला ने साफ फरमा दिया कि कुछ लोग नमाज़ तो पढ़ते हैं मगर दिल से नहीं बल्कि दिखावे के तौर पर पढ़ते हैं और जो खर्च करते हैं यानि ज़कातो फित्रा वगैरह वो भी मजबूरी और नागवारी से खर्च करते हैं और उनकी कोई इबादत हरगिज़ क़ुबूल नहीं*

कंज़ुल ईमान:- *_और वो जिन्होंने मस्जिद बनाई नुक्सान पहुंचाने को और कुफ्र के सबब और मुसलमानों में तफरक़ा डालने को और उसके इंतेज़ार में जो पहले से अल्लाह और उसके रसूल का मुखालिफ है,और वो ज़रूर कसमें खायेंगे हमने तो भलाई चाही और अल्लाह गवाह है कि वो बेशक झूठे हैं.उस मस्जिद में तुम कभी खड़े ना होना_*

*📚 पारा 11, सूरह तौबा, आयत 107-108*

*आँख खोलकर इस आयत को पढ़िये और बताइये कि क्या हर मस्जिद खुदा का घर है अगर होती तो मौला तआला खुद उस मस्जिद में अपने महबूब को जाने से क्यों मना करता,ये मस्जिदे दर्रार थी जिसको खुदा का हुक्म आने पर हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अपने सहाबा को भेजकर आग लगवा दी थी मगर उन मुनाफिक़ों की औलादें आज तक मुसलमानों की मस्जिदों और उनके नमाज़ियों में तफरक़ा डालने के लिए हर जगह अपनी मस्जिदें बनाते नज़र आते हैं और उनकी मस्जिदें हरगिज़ खुदा का घर नहीं और ना मुसलमान को उसमे जाने की इजाज़त है,क्यों इजाज़त नहीं है खुद ही पढ़ लीजिये*

कंज़ुल ईमान:- *_और कहते हैं हम ईमान लाये अल्लाह और रसूल पर और हुक्म माना फिर कुछ उन में के उसके बाद फिर जाते हैं और वो मुसलमान नहीं_*

*📚 पारा 18, सूरह नूर, आयत 47*

*यानि जो खुदा व रसूल से दुश्मनी करे और जो ज़रूरियाते दीन का मुनकिर है उसमे और काफिर में क्या फर्क रहा वो भी उन्हीं की तरह काफिर हुआ और काफिरों के पीछे नमाज़ नहीं पढ़ी जाती इसीलिए ना उनकी मस्जिदों में मुसलमान को जाने की इजाज़त है और ना उनके पीछे नमाज़ पढ़ने की*

कंज़ुल ईमान:- *_और उनमें से किसी की मय्यत पर कभी नमाज़ ना पढ़ना और ना उनकी क़ब्र पर खड़े होना,बेशक वो अल्लाह और रसूल से मुनकिर हुए और फिस्क़ ही में मर गये_*

*📚 पारा 10, सूरह तौबा, आयत 84*

*अल्लाह अल्लाह,मौला तो ये फरमा रहा है कि उनकी मस्जिदें मस्जिदें नहीं,उनकी नमाज़ नमाज़ नहीं,उनके रोज़ रोज़े नहीं,उनकी इबादतें इबादतें नहीं,वो हरगिज़ मुसलमान नहीं उनकी मय्यत पर जाना नहीं और आज का जाहिल मुसलमान है कि कहता है सब अल्लाह के बन्दे हैं हर मस्जिद खुदा का घर है वो भी मुसलमान हैं मआज़ अल्लाह,अगर बद मज़हब मुसलमान होता तो क्या मौला ये फरमाता,पढ़िये*

कंज़ुल ईमान:- *_बेशक अल्लाह मुनाफिक़ों और काफिरों सबको जहन्नम में इकट्ठा करेगा..........बेशक मुनाफिक़ दोज़ख के सबसे नीचे तबके में हैं_*

*📚 पारा 5, सूरह निसा, आयत 140/145*

*अब अगर अपने ईमान की खैर चाहते हैं तो वहाबियों,देवबंदियों,क़ादियानियों,खारजियों,राफजियों,अहले हदीसों,मौदूदवियों और भी दीगर बद मज़हब फिरकों के मानने वालो को मुसलमान समझना छोड़ दीजिये और उनसे दूरी बना लीजिए वरना मौला क़यामत के दिन उन्हीं के साथ उठाकर उन्ही सा हश्र करके उन्हीं के साथ हमेशा के लिए जहन्नम में डाल देगा,ये मैं नहीं कह रहा बल्कि मौला तआला खुद फरमा रहा है,पढ़ लीजिये*

कंज़ुल ईमान:- *_ऐ ईमान वालों अपने बाप और अपने भाईयों को दोस्त ना बनाओ अगर वो ईमान पर कुफ्र पसंद करें और फिर जो तुममें से उनसे दोस्ती रखे तो वही लोग सितमगार हैं..........वो जो रसूल अल्लाह को ईज़ा देते हैं उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है_*

*📚 पारा 10, सूरह तौबा, आयत 23/61*

*जो मेरे आक़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताखी करता है वो तो जहन्नमी है ही मगर वो भी जहन्नमी है जो उनसे दोस्ती या रिश्तेदारी रखेगा ग़ौर कीजिये कि जब सगा बाप और सगा भाई मुर्तद हो जाये तो उनसे रिश्ता तोड़ देने का हुक्म है तो जो लोग पड़ोसियों और रिश्तेदारों और दीगर अज़ीज़ो का हवाला देते हैं क्या उन बद मज़हबो से रिश्ता रखना जायज़ होगा हरगिज़ नहीं,लिहाज़ा जिस तरह बद मज़हबो से परहेज़ किया जाये उसी तरह उन दोगले सुन्नियों से भी परहेज़ किया जाये जो बद मज़हब को बद मज़हब नहीं जानते,मौला तआला सुन्नियों को ऐसे लोगों से दूरी बनाये रखने की तौफीक़ अता फरमाये और मसलके आलाहज़रत पर सख्ती से क़ायम व दायम रहने की तौफीक़ अता फरमाये,आमीन बिजाहिस सय्यदिल मुरसलीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम*




अमीर मुआविया
*_सवाल------ अमीर मुआविया जिनहोंने ह़ज़रते मौला अली से जंग की थी इस बिना पर उनकी तारीफ की जाए या उनकी बुराई की जाए,_*

*_जवाब------ सबसे पहले तो ये जान लीजिए कि ह़ज़रते अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु तआला अन्हु कौन हैं और उनका मरतबा किया है,_*

*_1. उनकी बहन ह़ज़रते उम्मे ह़बीबा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की बीवी हैं,_*

*_2.खुद हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उनके लिए हिदायत याफ्ता होने और हिदायत देने वाला होने की दुआ की,_*

*_3. उनको हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने वह़ी किताबत का काम सौंपा,_*

*_4. ह़ज़रते उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु जो कि पहली सदी हिजरी के मुजद्दिद और खिलाफते राशिदा के 5 वें इमाम हैं उनको इमामुल हुदा भी कहा जाता है और उनकी ज़ियारत करने को खुद ह़ज़रते खिज्र अलैहिस्सलाम अक्सर तशरीफ लाया करते थे,ऐसा अज़ीम पेशवा खुद फरमाता है कि हज़रते अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के घोड़े की नाल में जो गरदो गुबार रहता है मेरा मरतबा उस गुबार तक नहीं पहूंचता अल्लाहू अकबर, तो फिर अन्दाज़ा लगायें कि ह़ज़रते अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का किया मरतबा होगा,_*

*_5. ह़ज़रते अल्लामा शहाबुद्दीन खफ्फाजी अपनी किताब नसीमुर रियाज़ में लिखते हैं कि जो कोई ह़ज़रते अमीर मुआविया पर लअन तअन करे वो जहन्नम के कुत्तों में से एक कुत्ता है,_*

*_6. रईसुल मुफस्सिरीन ह़ज़रते अब्दुल्ला इबने अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हु खुद उनको मुजतहिद जानते थे,_*

*_7. बड़े बड़े सहाबीये इकराम ने उनसे ह़दीसें रिवायत की हैं_*

*_8. ह़ज़रते उमर फारुक़े आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने आपको दमिश्क में ह़ाकिम बनाया और आखिरी उमर तक उनको माज़ूल ना फरमाया जबकि आप ज़रा ज़रा सी बात पर लोगों को उनके मनसब से हटा दिया करते थे यहाँ तक कि ह़ज़रते खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु जैसी ज़ात को भी आपने नहीं बखशा और माज़ूल फरमाया,इससे साफ पता चलता है कि आपसे कभी कोई लगज़िश नहीं हुई वरना आप अपने मनसब पर ना रहते,_*

*_9. आप हमैशा अहले बैते अतहर पर दिल खोलकर खर्च किया करते थे, एक मरतबा आपने 4,00000 दरहम ह़ज़रते इमाम हसन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को पेश किया जिसे उन्होंने क़ुबूल फरमाया,_*

*_10. आप एक बा करामत सहाबी हुए हैं,_*

*_अब रही बात सहाबी ऐ इकराम के आपसी तअल्लुक़ात की तो अगर चेह किसी की किसी से ना बनती रही हो फिर भी हमें उनके बीच बोलने का कोई हक़ नहीं पहुंचता,हम और आप उनके मुआमले में बोलने वाले होते कौन हैं हमारी औक़ात किया है,अरे जब अल्लाह तआला खुद क़ुरआन में फरमा चुका है कि'',,मैं उन सबसे राज़ी हूँ,, तो क्या इस आयत से हजरते अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को अलग कर देंगे,मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मुहब्बत रखें ज़रूर रखें मगर यूँ नहीं कि उनकी मुहब्बत में दूसरे सहाबी को गाली देने लगें अगर कोई ऐसा करेगा तो यक़ीनन यक़ीनन अपना ठीकाना जहन्नम में बनायेगा,और आखिरी बात अगर सवाल यही है कि ह़ज़रते अमीर मुआविया ने मौला अली से जंग की तो अब ह़ज़रते अमीर मुआविया को बुरा कहा जाऐ,माज़ अल्लाह तब तो यही हुक्म खुद मौला अली पर भी आयद हो रहा है कि आप भी महबूबये महबूब रब्बुल आलमीन उम्मुल मोमीनीन ह़ज़रत सय्यदना आईशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु त आला अन्हा के खिलाफ हो गये थे,और उन से जंग पर आमादा हो गये थे अगर चेह खता किसी की भी रही हो मगर हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का क़ौल तो यही की मेरी बीवीयां तुम्हारी माँ ऐं हैं तो जो औलाद अपनी माँ के खिलाफ तलवार उठा ले उसे क्या कहेंगे,इसीलिए कहता हूँ कि बड़ो के आपसी मुआमलात में बोलने का हक़ हम जैसों को हरगिज़ नहीं है खामोश रहेंगे तो निजात पायेंगे,_*

*📚खुतबाते मुहर्रम सफह 329/364*





*_सवाल ------ जब चारों इमाम में इख्तिलाफ है तो चारों हक़ पर कैसे हैं,_*
*_जवाब -------- पहले आप समझ लें कि मसायल के 4 इमाम हैं,हज़रते इमामे आज़म हज़रते इमाम शाफयी,हज़रते इमाम मालिक और हज़रते इमाम अहमद बिन ह़म्बल,ये चारों ही अक़ायद पर मुत्तफिक़ हैं इख्तिलाफ है तो फुरु में,इस ज़माने में हक़ इन्हीं चारों में से किसी एक की पैरवी में है और जो इन से अलग हुआ वो गुमराह बे दीन है,_*

*_आपके सवाल का जवाब ये है कि चारों ही इख्तिलाफ के बावजूद हक़ पर कैसे हैं,इसके लिए ये ह़दीसे पाक पढ़ीये बनी क़ुरैज़ा पर जल्द पहुंचने की गर्ज़ से हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अपने सहाबियों में ये ऐलान करवाया कि हम असर की नमाज़ बनी क़ुरैज़ा पहुँच कर पढ़ेंगे,सभी ह़ज़रात जुहर पढ़कर निकले और सफर करते रहे यहाँ तक कि असर का वक्त बहुत थोड़ा रह गया,तो कुछ सहाबा ऐ इकराम ने नमाज़ पढ़नी चाही तो कुछ नें मना किया कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का कहना है कि नमाज़ वहीं पहुँच कर पढ़ेंगे इसपर वो सहाबा कहने लगे कि हुज़ूर का कहना बिलकुल हक़ है मगर उनहोंने ये नहीं कहा कि अगर नमाज़ का वक्त निकल जाये तब भी मत पढ़ना तो वो सहाबा नमाज़ पढ़े और कुछ नहीं पढ़े जब हुज़ूर बनी क़ुरैज़ा पहुँच गए तो नमाज़े क़ज़ा पढ़ी गयी फिर हुज़ूर के सामने उन सहाबियों का तज़किरा हुआ तो आपने फरमाया की जिनहोंने पहले पढ़ ली उनको सवाब और जिनहोंने अब मेरे साथ पढ़ी उनको दो गुना सवाब,देखिये यहाँ नमाज़ अदा करने पर भी सवाब मिल रहा है और क़ज़ा करने पर भी सवाब मिल रहा है तो बस इसी तरह चारों इमाम मुजतहिद थे जिसने सही मस्अला अपने हिसाब से निकाला तो उसे दो गुना सवाब और जिसने मस्अला समझने में गलती की तो उस गलती पर भी एक गुना सवाब,कियोंकि मुजतहिद की खता माफ है,_*

*_और ये इख्तिलाफ उम्मत के लिए रह़मत इस तरह है कि किसी को दीन की किसी बात पर अमल करने का मौक़ा मिल रहा है किसी को किसी दूसरी बात पर कियोंकि शरीयत एक चमन है और चमन हर तरह के फूलों से बनता है कहीं गुलाब तो कहीं चमेली कहीं कहीं जूही तो कहीं नरगिस,और अवाम को इख्तिलाफ में पडने को इसलिए मना किया जाता है कि वो इल्म तो रखते नहीं हैं तो वो किसी बात का इंकार कर बैठेंगे जो उनकी आखिरत खराब कर देगा,लिहाज़ा यही कहा जाता है कि अपने इमाम की पैरवी करो और इख्तिलाफ में ना पड़ो,_*

*📕बुखारी शरीफ जिल्द 1 किताबुल जिहाद*
*📕मुस्लिम शरीफ जिल्द 2 सफह 95*




_*पाखाने में थूकना कैसा है.?*_
_*हुज़ूर आलाहज़रत इमाम अहमद रज़ा खान अलैहिर्रमा तहरीर फरमाते हैं.!*_

_*पाखाने में थूकने की मुमानिअ़त है (यानी मना है) कि मुसलमान का मुँह क़ुरआन-ए करीम का रास्ता है,*_

_*इससे यह ज़िक्र-ए इलाही करता है तो उसका लुआ़ब (थूक) नापाक जगह नहीं होना चाहिए,*_

_*अल्बत्ता वहाँ की दीवार वगैरह जहाँ नजासत ना हो थूकने में हर्ज नहीं!*_

_*📕 फ़तावा रज़वियाह जिल्द 2 सफ़ा 157*_

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🅱️ बहारे शरीअत ( हिस्सा- 03 )🅱️

_____________________________________   _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 089)*_ ―――――――――――――――――――――             _*🕌नमाज़ पढ़ने का तरीक...