POST 96】शरीअत की मुखालिफत करने वाले पीर*
*_पार्ट :-01_*
_आजकल ऐसे पीरों की तादाद भी काफी है जो नमाज़ रोज़ा व दीगर अहकामे शरअ पर न खुद अमल करते हैं और न अपने मुरीदों से अमल कराते हैं बल्कि इस्लाम व कुरआन की बातों को यह कह कर टाल देते हैं कि यह मौलवी लाइन की बातें हैं हम तो फ़क़ीरी लाइन के हैं यह खुले आम शरीअत इस्लामिया का इन्कार और नमाज़ रोज़े की मुखालिफ़त करने वाले पीर तो पीर, मुसलमान तक नहीं हैं। उनका मुरीद होना ऐसा ही है जैसे किसी गैर मुस्लिम को अपना पेशवा बनाना , क्योंकि शरीअते इस्लामिया का इन्कार *(इस्लाम)* ही का इन्कार है और यह कुफ्र है।_
*_सय्यिदी आला हज़रत मौलाना शाह अहमद रज़ा खां साहब अलैहिर्रहमह इरशाद फरमाते हैं ।सराहतन शरीअते मुतह्हरह को मआज़अल्लाह मुअत्तल व मुहमल लग्व व बातिल कर देना यह सरीह कुफ्र व इरतिदाद व ज़िन्दका व इलहाद व मोजिबे लअनत व इबआद है ।_*
📖 *(मकाले उरफा , सफहा 9)*
_हक़ यह है कि अल्लाह तआला का वली और अल्लाह तआला वाला वही है जो रसूले अकरम हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम ने बताया और खुद उस पर चल कर दिखाया । उसका मुखालिफ़ हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का मुखालिफ है और हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का मुखालिफ अल्लाह तआला का मुखालिफ है और शैतान लईन का मुरीद है ।_
📖 *_क़ुरआने करीम में खुदाए तआला का फरमान है ।_*
📚 _*तर्जमा :-* ऐ महबूब तुम फरमाओ कि अगर तुम अगर अल्लाह तआला से महब्बत करते हो तो मेरा कहना मानो तुम अल्लाह तआला के प्यारे हो जाओगे और वह तुम्हारे गुनाहों को माफ फरमा देगा और अल्लाह तआला बहुत बख्शने वाला मेहरबान है ।_
📖 *_(पारा 3, रूकू 12)_*
*_इस आयते करीमा से खूब मालूम हुआ कि अल्लाह तआला तक पहुंचने के सारे रास्ते हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम ही के कदमों से गुज़रते हैं वह आलिमों मौलवियों के हो या फकीरों दुरवेशों के । हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम का रास्ता छोड़कर हरगिज़ कोई खुदाए तआला तक नहीं पहुंच सकता । और हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का रास्ता ही शरीअते इस्लामिया है और तरीकत भी इसी का एक टुकड़ा है इसको शरीअत से जुदा मानना गुमराही है ।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा 95,96*
POST 97】शरीअत की मुखालिफत करने वाले पीर*
*_पार्ट :-02_*
_कुछ गुमराह पीरों के गुमराह मुरीदों को यह कहते भी सुना गया है कि हमने अपने पीर का दीदार कर लिया यही हमारी नमाज़ व इबादत है उनका यह कौल सख्त बद दीनी है । नमाज़ इस्लाम में इतनी अहम है इसको अगर मुरीद छोड़ेंगे तो वह कब्र व हश्र में अज़ाबे इलाही का मज़ा चखेंगे और पीर छोड़ेंगे तो वह भी आख़िरत में खूब ठोंके जाएंगे और वह पीर ही नहीं । जो ना खुद अल्लाह तआला की इबादत करें ना दूसरों को करने दें।_
*_नमाज का तो इस्लाम में इतना बुलंद मकाम है कि हुज़ूर सय्यिदे आलम अहमदे मुजतबा मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जब मक्कए मुअज़्ज़मा से हिजरत फरमा कर मदीना तैय्यिबा तशरीफ़ लाए थे तो आपने अपने घर वालों के रहने के लिए हुजरे और मकानात बाद में तामीर फरमाए थे पहले खुदाए तआला की इबादत यानी नमाज़ के लिए मस्जिद शरीफ की तामीर फ़रमाई थी जो आज भी है उसका एक एक हिस्सा अहले ईमान के लिए दिल व जान से बढ़ कर है।_*
_हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि नमाज़ मेरी आंखो की ठंडक है और नमाज़ जन्नत की कुंजी है पहले जमाने के बुज़ुर्गाने मुरशिदाने किराम सूफी और दुरवेश सब के सब नमाज़ी दीनदार और निहायत दरजा हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शरीअत पर चलने वाले परहेज़गार होते थे। वह यह नहीं कहते कि हम फकीरी लाइन के हैं हम पर नमाज़ माफ है बल्कि वह औरों से ज्यादा सारी सारी रात नमाज़ पढ़ते थे । आजकल के कुछ जाहिल नाम निहाद सूफियों और पीरों ने सोचा कि पीरी भी चलती रहे और आजादी व आराम ने भी कोई कमी ना आए इसलिए वह अहकामे शरअ नमाज़ व रोज़े वगैरा की मुखालिफत करते हैं ।_
*_गौर करने की बात है कि पहले के बुजुर्गों के आस्ताने और मज़ार जहां मिलेंगे वहीं मस्जिदे भी जरूर मिलेंगी। अजमेर शरीफ मैं ख्वाजा गरीब नवाज़ मोइनुद्दीन चिश्ती का आस्ताना दिल्ली में हज़रत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी, हज़रत निज़ामुद्दीन महबूब ए इलाही, हज़रत नसीरुद्दीन चिराग देहलवी ,हजरत शैख अब्दुल हक मुहद्दिस देहलवी वगैरा की खानकाहे लाहौर में हजरत शैख दातागंज बख्श का आस्ताना , नागौर शरीफ में हजरत सूफी हमीदुद्दीन नागौरी, कछौछा में हज़रत शैख मखदूम अशरफ समनानी, पाक पटन में हज़रत फरीदुद्दीन गंज शकर, कलियर शरीफ में हज़रत शैख अलाउद्दीन साबिर कलियरी वगैरा इन सबके आस्तानों पर आपको जहां मज़ारात मिलेंगे वहाँ मस्जिदे भी मुत्तसिल बनी हुई नजर आयेगी। इस मे राज़ यह है कि यह हज़रात जहां क़ियाम फरमाते ठहरते और बिस्तर लगाते वहाँ ख़ुदा तआला का घर यानी मस्जिद बनाकर अज़ान और नमाज़ से उसको आबाद फरमाते और जब उन्होंने खुद खुदाए तआला की इबादत करके उसके घरों को आबाद किया तू खुदाए तआला ने उनके दर आबाद कर दिये।_*
_और इस्लाम इन्हीं दो चीज़ों का नाम है कि खुदाए तआला की इबादत इताअत भी होती रहे और उसके महबूब बन्दों, खासाने खुदा हज़राते अम्बिया व औलिया की ताज़ीम और उनसे महब्बत भी होती रहे। जो खुदाए तआला के अलावा किसी और की इबादत पूजा और परसतिश करें वह मुसलमान नहीं और जो खुदा वालों से महब्बत का मुतलकन इनकार करें उनकी बारगाहों में बेअदबी से पेश आए गुस्ताखी करे वह भी इस्लाम से ख़ारिज है।_
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा 97,98*
POST 98】मामूली इख़्तिलाफात को झगड़ों का सबब बनना*
_पार्ट :- 01_
*_बाज़ फुरुई और नौपैद मसाइल जिनका ज़िक्र सराहतन खुले अलफ़ाज़ में कुरआन व हदीस और फ़िक़्ह की मुस्तनद क़िताबों में नहीं मिलता, उनके मुताल्लिक कभी कभी आलिमों की राय अलग अलग हो जाती है। खास कर आज साइंस के दौर में नई नई ईजादात की बुनियाद पर ऐसे मसाइल कसरत से सामने आ रहे हैं तो कुछ लोग उलेमा के दरमियान इख्तिलाफात को लड़ाई,झगड़े, गाली गलौच ,लअन व तअन का सबब बना लेते हैं और आपस में गिरोह बन्दी कर लेते हैं, यह उनकी सख्त गलतफहमी है।_*
_फरुई मसाइल में इख़्तिलाफ़ की बुनियाद पर पार्टीबन्दी कभी नहीं करना चाहिए । एक दूसरे को बुरा भला कहना चाहिए बल्कि जो बात आपके नज़दीक हक़ व दुरुस्त है वह दूसरों को समझा देना काफी अगर मान जाये तो ठीक वरना उन्हें उनके हाल पर छोड़ देना चाहिए और उन्हें अपना मुसलमान भाई ही ख्याल करना चाहिए । मगर आजकल छोटी छोटी बातों पर आपस में लड़ाई, झगड़े, दंगे करना और पार्टियां बनाने की मुसलमान में बीमारी पैदा हो गई है । यह इसलिए भी हुआ कि आजकल लोग नमाज़ व इबादत व कुरआन की तिलावत और दीनी किताबों के पढ़ने में मशगूल नहीं रहते। खाली रहते हैं, इसलिए उन्हें खुराफात सूझती है और ख्वामखाह की बातों में लड़ते और झगड़ते है कुछ लोग इस फुरुई इख़्तिलाफ़ को उलेमाए दीन की शान में गुस्ताखी करने और उन्हें बुरा भला कहने का बहाना बना लेते हैं । ऐसे लोग गुमराह व बद्दिन हैं । इनसे दूरी बहुत जरूरी है और इनकी सुहबत ईमान की मौत है। क्योंकि उलेमा ए दीन की शान मे गुस्ताखी और मौलवियों को बुरा भला कहना बद मज़हबी है गुमराहओ की गुमराही की शुरुआत यहीं से होती है।_
*_अहले इल्म व फ़ज़्ल असहाबे दयानत व अमानत में अगर किसी बात पर इख़्तिलाफ़ हो जाये ,उस बात पर अमल करना चाहिए और खुदाए तआला से रो रो कर तौफीक खैर और सीधे रास्ते पर काइम रहने की दुआ करते रहना चाहिए।_*
📖 _*हदीस शरीफ* में है की रसूले पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जब जंगे खंदक से वापस मदीने में तशरीफ़ लाएं और फौरन यहूदियों के कबीले बनू क़ुरैज़ा पर हमले का इरादा फरमाया और सहाबा को हुक्म दिया की असर की नमाज बनू क़ुरैज़ा में चलकर पढ़ी जाए लेकिन रास्ते में वक्त हो गया यानी नमाज असर का वक्त खत्म हो जाने का अंदेशा हो गया तो कुछ सहाबा ने नमाज का वक्त जाने के खौफ से रास्ते में ही नमाज अता फरमाई और उन्होंने ख्याल किया कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का मकसद यह नहीं था कि चाहे वक़्त जाता है लेकिन नमाज़ बनू क़ुरैज़ा ही में नहीं पढ़ी जाए और कुछ लोगों ने वक़्त की परवाह न की और नमाज़ असर बनू क़ुरैज़ा ही में जाकर पढ़ी। हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के सामने जब यह जिक्र आया तो आपने दोनों ही को सही व दुरुस्त फरमाया दोनों में से किसी को बुरा नहीं कहा।_
📕 *_( सही बुखारी, जिल्द 1, सलातुल तालिब वलमतलूब, सफहा 129)_*
*_एक और हदीस शरीफ में है एक मर्तबा हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के दो सहाबा सफर को गए रास्ते में पानी ना मिलने की वजह से दोनों ने मिट्टी से तयम्मुम करके नमाज़ अदा फरमाई फिर आगे बढ़े पानी मिल गया और नमाज़ का वक़्त बाकी था। एक साहब ने वुज़ू करके नमाज़ दोहराई लेकिन दूसरे ने नहीं दोहराई । वापसी में हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाजिर होकर किस्सा बयान किया तो हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उन साहब से जिन्होंने नमाज़ नहीं दोहराई थी और तयम्मुम की नमाज़ को काफी समझा था उनसे फरमाया तुमने सुन्नत के मुताबिक काम किया और दोहराने वालों से फरमाया तुम्हारे लिए दो गुना सवाब है (निसाई ,अबूदाऊद ,मिश्क़ात बाबे तयम्मुम, सफहा 55) यानी हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने दोनों को हक व दुरुस्त फरमाया इन हदीसों से पता चलता है कि इख़्तिलाफ़ के बाद भी दो गिरोह हक पर हो सकते हैं जब कि दोनों की नीयत सही हो । इन हदीसों से तक़लीदे अइम्मा का इन्कार करने वाली नाम निहाद जमाअत अहले हदीस (गैर मुकल्लिद) को सबक लेना है जो कहते हैं कि इख़्तिलाफ़ के बावजूद चारों मसलक यानी हनफ़ी, शाफ़ई, मलिकी,हम्बली कैसे हक़ पर हो गए।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 99,100,101*
POST 99】मामूली इख़्तिलाफात को झगड़ों का सबब बनना*
_पार्ट :- 02_
*_हज़रत मौलाए कायनात सय्यिदिना व मौलाना अली मुर्तज़ा रदियल्लाहु तआला अन्हु और सय्यिदिना अमीरे मुआविया रदियल्लाहु तआला अन्हु में जंग हुई मगर दोनों का ही एहतिराम किया जाता है और दोनों में से किसी को बुरा भला कहना सख्त गुमराही और जहन्नम का रास्ता है।_*
_इसकी मिसाल यू समझना चाहिए कि जैसे मां और बाप में अगर झगड़ा हो जाए तो औलाद अगर मां को मारे पिटे या गालियां दें तब भी बदनसीब व महरूम और अगर बाप के साथ ऐसा बर्ताव करे तब भी यानी औलाद को उस झगड़े ने इजाजत ना होगी कि एक ही तरफ होकर दूसरे की शान में बेअदबी करें बल्कि दोनों का एहतेराम जरूरी होगा या किसी शागिर्द के दो उस्तादों में लड़ाई हो जाए तो शागिर्द के लिए दोनों में से किसी के साथ बेहूदगी और बदतमीजी की इजाजत ना होगी।_
*_मकसद यह है कि बड़ों के झगड़ों में छोटों को बहुत एहतियात व होशियारी की जरूरत है।_*
_इस उनवान के तहत हमने जो कुछ लिखा है उसका हासिल यह है कि जब कोई शख्स दीन की जरूरी बातों का मुनकिर और अक़ीदे में खराबी की वजह से इस मंजिल को ना पहुंच जाए कि उसको खारिजे इस्लाम और काफिर कह सकें तब तक उसके साथ नरमी का ही बर्ताव करना चाहिए और समझाने की कोशिश करते रहना चाहिए और खुदाए तआला से उसकी हिदायत की दुआ करते रहना चाहिए।_
*_हां वह लोग जो दिन की जरूरी बातों के मुन्किर हो, कुरआन व हदीस से साबित सरीह उमूर के काइल न हो,या या अल्लाह तआला और उसके महबूब सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम और दीगर अम्बिया किराम व औलियाए किराम व औलिया इज़ाम व उलेमाए ज़विल एहतिराम की शान में तौहीन और गुस्ताखी करते, या गुस्ताखाने रसूल (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) की तहरीकों और जमाआतों से कसदन जुड़े हुए हो, उनकी तारीफ करते हो, वह यकीनन इस लाइक नहीं बल्कि उनसे जितनी नफरत की जाये कम है क्यूंकि अल्लाह और अल्लाह वालों की शान में गुस्ताख़ी व बेअदबी इस्लाम में सबसे बड़ा जुर्म है, और ऐसे शख्स की सुहबत ईमान के लिए ज़हरीला नाग है।_*
_उलेमाए अहले हक़ के दरमियान फुरुई इख़्तिलाफात क़ी सूरत में दोनों जानिब का इहतिराम व अदब मलहूज़ रखने का मशविरा जो हमने दिया है यह वाकई आलिम हो फकीह व मुहद्दिस हो। वरना आजकल के अनपढ़ जो दो चार उर्दू की किताबें पढ़ कर आलिम बनते या सिर्फ तकरीरे करके स्टेजों पर अल्लामा कहलाते,कुरआन व हदीस में अटकलें लगाते हैं, मसाइल में उलेमा से टकराते है,अपनी दुकान अलग सजाते हैं ये इसमें दाखिल नहीं बल्कि ये तो उम्मते मुस्लिमा में रखना अंदाज़ी करने वाले और फितना परवर हैं।_
*_सय्यिदि आला हज़रत फरमाते हैं जहां इख़्तिलाफाते फुरुईया हो जैसे हनफ़ी और शाफ़ई फिरके अहले सुन्नत में वहाँ हरगिज़ एक दूसरे को बुरा कहना जाइज़ नही।_*
📗 *_(अलमलफूज़ हिस्सा अव्वल सफहा 51)_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 101, 102*
POST 100】ख़ानक़ाही इख़्तिलाफ़ात और इस सिलसिले में सही बात?*
_आजकल ख़ानकाही इख्तिलाफ़ात का भी ज़ोर है और एक पीर के मुरीद दूसरे के मुरीदों को और एक सिलसिले वाले दूसरे सिलसिले वालों को एक आँख नहीं भाते और उन्हें अपना दुश्मन जानते हैं। और यह इसलिए कि उन्हें इस्लाम व *कुर्आन-पाक* और *अल्लाह तआला व रसूल सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* से मुहब्बत नहीं वरना यह हर मुसलमान और *अल्लाह तआला व रसूल सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम* पर ईमान रखने वाले से मुहब्बत करते।_
*_आजकल कुछ पीर भी ऐसे हैं कि उन्हें अपने ही मुरीद भाते हैं। और अच्छे लगते हैं और दूसरों के मुरीदों को देख कर उनका खून खौलता है जबकि पीरी उस्तादी के आदाब व उसूल से है कि वह अपने शागिदों मुरीदों को जहाँ अपनी ज़ात से अकीदत व मुहब्बत सिखाये वहीं दूसरे अहले इल्म व फज़्ल मशाइख़ और सुलहा की बेअदबी व गुस्ताख़ी से बचाये। बल्कि मुरीद करने का मकसद ही उसे बेअदबी से बचाना है क्यूंकि इसमें ईमान की हिफ़ाज़त है और ईमान बचाने के लिए ही तो मुरीद किया जाता है, और ईमान अदब का ही दूसरा नाम है।_*
_जो पीर मुसलमानों को नफ़रत की तालीम दे रहे हैं और क़ौमे मुस्लिम को टुकड़ों में बाँट रहे हैं, मुरीदों को मशाइख व उलेमा का बेअदब बना रहे हैं, वो हरगिज़ पीर नहीं हैं बल्कि वो शैतान का काम कर रहे हैं और इब्लीस का लश्कर बढ़ा रहे हैं।_
*_इस बारे में हक व दुरुस्त बात यह है कि जो मुसलमान किसी भी सिलसिलए सहीहा में मुत्तसिलुस्सिलसिला पाबन्दे शरअ पीर का मुरीद है और उसके अकाइद दुरुस्त हैं, वह हमारा भाई है और मुरीद न भी हुआ हो वह भी यक़ीनन मुसलमान है। और उसकी नजात के लिए यह काफी है। मुरीद होना जरूरी नहीं, मुसलमान होना ज़रूरी है। मुरीद होना सिर्फ एक अच्छी बात है, वह भी उस वक़्त जबकि पीर सही हो।_*
_दरअरल पीरी व मुरीदी लड़ाई झगड़े और गिरोहबन्दी का सबब तब से बनी जब से यह ज़रीयए मआश और सिर्फ खाने कमाने और लम्बे लम्बे नज़रानों के हासिल करने का धन्धा बनी है। आज ज़्यादातर पीरों को इस बात की फिक्र नहीं कि मुरीद नमाज़ पढ़ता है कि नहीं, जकात निकालता है कि नहीं, सुन्नी है। कि बदअक़ीदा, मुसलमान है कि गैर मुस्लिमउ न्हें तो बस नज़राना चाहिए। जो ज़्यादा लम्बी नज़्र दे वही मियाँ के क़रीब है। वरना वह मियाँ के नज़दीक बदनसीब है।_
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,103,104*
POST 101】क्या हर दीवाना मजज़ूब वली है?*
*_अल्लाह तआला के नेक बन्दों और औलियाए किराम में एक ख़ास किस्म मजज़ूबों की भी है। ये वो लोग हैं जो खुदाए तआला की मुहब्बत और उसकी याद में इतने ग़र्क हो जाते हैं कि उन्हें अपने तन बदन का होश नहीं रहता और दुनिया वालों को पागल और दीवाने से नज़र आते हैं। लेकिन हर पागल और दीवाने को मजज़ूब नहीं ख़्याल करना चाहिए। आजकल आम लोगों में यह मर्ज पैदा हो गया है कि जिस पागल को देखते हैं, उस पर विलायत और मजज़ूबियत का हुक्म लगा देते हैं और उसके पीछे घूमने लगते हैं। और अगर कोई है भी तो उसको उसके हाल पर छोड़ दीजिए, वह जाने और उसका रब।_*
_बेहतर तरीक़ा यह है कि अगर किसी शख्स के बारे में आपको ऐसा शक हो जाये तो उसकी बुराई भी मत कीजिए और उसके पीछे भी मत घूमिए। आप तो वह करो जिसका आपको। खुदाए तआला ने हुक्म दिया है- अहकामे शरअ की पाबन्दी करें और बुरे कामों से बचें। इस्लाम में ऐसा कोई हुक्म नहीं है कि दीवानों में तलाश करो कि उनमें कौन मजज़ूब है और कौन नहीं।_
*_बाज़ जगह ऐसी सुनी सुनाई बातों पर यकीन करके कुछ लोगों को मजज़ूब करार दे दिया जाता है और फिर लाखों लाख रुपया खर्च करके उनके मरने के बाद मज़ार बना देते हैं और उर्सों के नाम पर मेले ठेले और तमाशे शुरू कर देते हैं। और उर्सों के नाम पर ये मेले और तमाशे अब दिन ब दिन बढ़ते जा रहे हैं और इस्लाम और इस्लामियत के हक में यह अच्छा नहीं हो रहा है।_*
_खुलासा यह कि अगर कोई मजज़ूब है और वह खुदाए तआला की याद में बेहोश हुआ है तो उसका सिला और बदला उसको अल्लाह तआला देने वाला है। आपके लिए तो दूरी ही बेहतर है और ये जो अहले इल्म व फज्ल औलिया व उलेमा की सुहबत इख्तियार करने की फजीलतें आई हैं, ये मजज़ूबों के लिए नहीं। मजज़ूब की सुहबत से कोई फ़ाइदा नहीं है।_
*हुजूर मुफ्ती आजम हिन्द मौलाना मुस्तफ़ा रजा खाँ अलैहिर्रहमह* _फरमाते हैं हर कस व नाकस को मजज़ूब नहीं समझ लेना चाहिए और जो मजज़ूब हो उससे भी दूर ही रहना चाहिए कि इससे नफ़ा कम और ज़रर (नुकसान) जाइद पहुँचने का अन्देशा है_
📗 *(फ़तावा मुस्तफ़विया हिस्सा 3 सफ़हा 175)*
*_कुछ दीवाने सत्र खोले नंगे पड़े रहते हैं और लोग उनके पास जाकर उनकी खिदमत करते हैं। यह गुनाह है क्यूंकि वह अगर मजज़ूब भी है तब भी ऐसी हालत देखना नाजाइज़ है क्यूंकि वह मजज़ूब है आप तो होश में हैं। मजज़ूब होने की बिना पर अगरचे उस पर गुनाह नहीं लेकिन आप उसके बदन के दो हिस्से देखेंगे जिनका छुपाना फ़र्ज है, तो आप ज़रूर गुनाहगार होंगे।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,104,105*
POST 102】बिल्ली रास्ता काट जाये तो क्या होता है*
*_कुछ जगहों पर पर देखा गया है कि कोई शख्स गली और रास्ते में जा रहा है और सामने से बिल्ली गुजर गई जिसे रास्ता काटना कहते हैं तो वह कुछ देर के लिए ठहर जाता है और फिर बाद में चलने लगता है और वह समझता है कि बिल्ली ने रास्ता काट दिया शगुन खराब हो गए अब कोई नुकसान हो सकता है हालांकि ये सब बेकार की बातें हैं और इस्लाम में ऐसा कुछ नहीं और एक मुसलमान को इस किस्म के ख्यालात कभी नहीं रखना चाहिए और यह नहीं समझना चाहिए कि बिल्ली के रास्ता काटने से कुछ होता है।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 106*
POST 103】कुछ तारीखों को शादी ब्याह के लिए मनहूस जानना*
_बाज़ लोग कुछ तारीखों में शादी ब्याह और खुशी का काम करने को मना करते हैं और खुद भी नहीं करते हैं मसलन 3, 13, 23, और 8, 18, 28 .. इन तारीखों को शादी व खुशी के लिए बुरा जाना जाता है हालाँकि ये सब बेकार बातें हैं और काफ़िरों और गैर मुस्लिमों की सी वहमपरस्तियाँ हैं। इस्लाम में ऐसा कुछ नहीं हैं।_
*_निकाह व शादी हर दिन और हर तारीख़ में जाइज है। माहे मुहर्रम में निकाह को बुरा जानना राफ़ज़ियों, शीओं का तरीका है जो बाज़ जगह अहले सुन्नत में भी फैल गया है। मुसलमानो! इस्लाम को अपनाओ और सच्चे पक्के मुसलमान बनो, वहमपरस्तियाँ छोड़ो, खुदा व रसूल की पैरवी करो मुहर्रम और सफ़र (चेहल्लम में निकाह को बुरा मत जानो।)_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 106*
POST 104】टाई बाँधना और बच्चों को बँधवाना*
*_टाई बांधना इस्लाम में सख्त मना है। यह ईसाईयों का मजहबी शिआर (पहचान) है। उनके अक़ीदे के मुताबिक हजरत ईसा अलैहिस्सलाम को यहूदियों ने फांसी दी थी। ईसाई इस फांसी के फंदे को गले में आज तक गले मे डाले हुए हैं ,जिसे टाई कहा जाता है ।_*
_लेकिन कुरआन करीम में फरमाया गया है कि हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को खुदाए तआला ने जिंदा उठा लिया और काफी हदीसों में यह बात साबित है कि अब भी हयाते ज़ाहिरी के साथ आसमानों पर तशरीफ़ फरमा है, क़ियामत के करीब ,ज़मीन पर तशरीफ़ लायेंगे और इस्लाम फैलायेंगें।लिहाज़ा इस्लामी नुक़्तए नज़र से फाँसी का वाकिया मन गढ़न्त है और गलत है जो यह अक़ीदा रखे कि ईसा अलैहिस्सलाम को फांसी दे दी गई वह मुसलमान नहीं बल्कि काफिर है क्योंकि वह क़ुरआन व हदीस का मुन्किर है।_
*_मुसलमानों! अब तो आँखें खोलो । तुमने काफिरों की नकल कि उसके अंदाज अपनाएं लेकिन मौजूदा दौर के हालात से यह खूब जाहिर हो गया है कि वह भी तुम्हारे दुश्मन ही रहे और तुम्हें मिटाने और कत्ल करने में कोई कमी नहीं कर रहे हैं।_*
_लिहाज़ा अब खुदारा अपने इस्लामी तरीके अपनाओ सच्चे पक्के मुसलमान बनो । फिर देखना खुदाए तआला व रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम भी राज़ी होंगे और दुनिया में भी इज़्ज़त व अज़मत नसीब होगी। इस मौके पर यह भी जान ले कि जो लोग छोटे बच्चों में लड़कों को लड़कियों की तरह और लड़कियों को लड़कों की तरह लिबास पहनाते हैं। इसका अज़ाब का गुनाह भी उन्हीं पहनाने वालों पर है।_
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 107, 108*
POST 105】महफ़िले मीलाद मे जिक़्रे शहादत?*
_कुछ लोग महफिले मीलाद में *हज़रत सय्यिदेना इमामे हुसैन रदिअल्लाह तआला अन्हु* और आपके भाईयों, भतीजों और भांजों की शहादत के वाकिआत बयान कर देते हैं। हालाँकि यह मुनासिब नहीं है।_
_महफिले मीलाद *रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम* की विलादत की खुशी की महफ़िल है। इसमें ऐसे वाक़िआात बयान नहीं करना चाहिए जिनको सुनकर रंज व मलाल, ग़म और दुख हो।_
*आलाहजरत इमाम अहले सुन्नत फरमाते हैं।*
*_उलेमाए किराम ने मजलिसे मीलाद शरीफ़ में ज़िक्रे शहादत से मना फ़रमाया है कि वह मजलिसे सुरूर है, ज़िक्रे हुज़्न मुनासिब नहीं।_*
📗 *(अहकामे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ा 145)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 108*
POST 106】अमानत में तसर्रूफ़*
*_आजकल अमानत में तसर्रूफ़ आम हो गया है। उमूमन ऐसा होता है कि एक शख्स ने दूसरे के पास कोई रकम ,रुपया, पैसा बतौरे अमानत रख दिया और वह उसकी इज़ाज़त के वगैर उसमें से यह सोचकर ख़र्च कर देता है या तिजारत में लगा देता है कि देने वाले को मैं अपने पास से दे दूँगा या अभी निकाल लूँ फिर बाद में पूरे कर दूँगा, यह सब गुनाह है और ऐसा करने वाले सब गुनाहगार हैं ख्वाह वह बाद में वह रकम उसे पूरी वापस कर दें क्योंकि अमानत में तसर्रुफ़ की इजाज़त नही ।_*
_मस्जिदों के मुतवल्लियों और मदरसों के मुहतमिमों में देखा गया है कि वह चंदे के पैसों को इधर से उधर करते रहते हैं । कभी खुद अपनी ज़रूरतों में खर्च कर डालते हैं और ख्याल करते हैं हैं कि बाद में पूरा कर देंगे , यह सब खुदा के यहां पकड़े जायेंगे।_
*_कुछ मुत्तक़ी , परहेज़गार व दीनदार बनने वाले तक इन बातों का ख्याल नहीं रखते और हराम को हलाल की तरह खाते हैं और अमानत में तसर्रूफ़ ही आदमी को एक दिन नियत ख़राब और खयानत करने वाला बना देता है । यह सोचकर खर्च कर लेता है कि बाद में अपने पास से पूरा कर दूंगा और फिर नियत खराब हो जाती है और फिर बड़े-बड़े परहेज़गार हरामखोर हो जाते हैं और खुदा के अज़ाब की फिक्र किये बगैर पराए माल को अपने की तरह खाने लगते हैं।_*
📖 *_फ़तावा आलमगीरी में है_*
_एक शख्स ने मस्जिद बनवाने के लिए चंदा किया उसमें से कुछ रकम अपने लिए खर्च कर ली फिर इतनी ही रकम अपने पास से मस्जिद में खर्च कर दी तो ऐसा करना उसके लिए जाइज़ नहीं।_
📚 *_(फतावा रज़विया, जिल्द 8,सफहा 29)_*
📚 *_(फतावा आलमगीरी, जिल्द 2, किताबुल वक़्फ़, बाब 13, सफहा 480)_*
*_आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत फरमाते हैं_*
_ज़रे अमानत में तसर्रुफ़ हराम है,यह उन मवाज़ेअ में है जिनमे दराहिम व दनानीर मुतअय्यिन होते हैं।उसको जाइज़ नहीं कि उस रुपये के बदले दूसरे रुपये रख दे अगरचे बेऐनेही वैसा ही हो । अगर करेगा, अमीन न रहेगा ।_
*_फिर आगे खास मदरसों के मुहतमिम हज़रात के बारे में फरमाते है मोहतमिमाने अंजुमन ने अगर सराहतन भी इजाज़त दे दी हो कि तुम जब चाहना ख़र्च कर लेना फिर उसका इवज़ दे देना, जब भी न उसको तसर्रुफ़ जाइज़ न मुहतमिमों को इजाज़त देने की इजाज़त कि मुहतमिम मालिक नहीं और क़र्ज़ तबर्रुअ है और gaire मालिक को तबर्रुअ का इख्तियार नहीं। हाँ चंदा देने वाले इजाज़त दे जायें तो हर्ज नहीं_*
📚 *_(फतावा रज़विया, जिल्द 8, सफहा 31)_*
_पहले अमानत रखने वाले मुसलमानों का तरीका था कि वह थैलियां रखते और हर अमानत अलग-अलग एक थैली में महफूज रखते और फिर जो लिया था, खास उसी को लौटा देते। भाइयों! ऐसे ही तरीके अपनाओ अगर कुछ आख़िरत की भी फिक्र है , वरना आज तसर्रूफ़ करने वाले होंगे और कल खाइन व नियत खराब क्योंकि हर नफ़्स के साथ शैतान लगा हुआ है_
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 108, 109, 110*
*【POST 105】महफ़िले मीलाद मे जिक़्रे शहादत?*
_कुछ लोग महफिले मीलाद में *हज़रत सय्यिदेना इमामे हुसैन रदिअल्लाह तआला अन्हु* और आपके भाईयों, भतीजों और भांजों की शहादत के वाकिआत बयान कर देते हैं। हालाँकि यह मुनासिब नहीं है।_
_महफिले मीलाद *रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम* की विलादत की खुशी की महफ़िल है। इसमें ऐसे वाक़िआात बयान नहीं करना चाहिए जिनको सुनकर रंज व मलाल, ग़म और दुख हो।_
*आलाहजरत इमाम अहले सुन्नत फरमाते हैं।*
*_उलेमाए किराम ने मजलिसे मीलाद शरीफ़ में ज़िक्रे शहादत से मना फ़रमाया है कि वह मजलिसे सुरूर है, ज़िक्रे हुज़्न मुनासिब नहीं।_*
📗 *(अहकामे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ा 145)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 108*
POST 107】रात को देर तक जागना और सुबह को देर से उठना*
*_आजकल रातों को जागने और दिन को सोने का माहौल बनता जा रहा है ।हालांकि क़ुरआने करीम की बाज़ आयात का मफ़हूम यह है कि हमने रात आराम के लिए बनाई और दिन काम करने के लिए। इस्लामी मिजाज़ यह है कि रात को ईशा की नमाज पढ़कर जल्दी सो जाओ और सुबह को जल्द उठ जाओ । ईशा की नमाज के बाद गैर ज़रूरी फालतू दुनियवी बातें करना मकरूह व ममनूअ है।_*
📖 *_हदीस शरीफ में है_*
_रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ईशा की नमाज से पहले सोने और ईशा की नमाज के बाद बातचीत करने को नापसंद फरमाते थे यह हदीस बुखारी में भी है और मुस्लिम में भी।_
📗 *_(मिश्क़ात बावे तअजीलूस्सलात, फ़स्ले अव्वल, सफहा 60)_*
*_बाज़ मुदर्रिसीन और तलबा को देखा गया है कि वह रात को किताबें देखते हैं और काफी काफी रात तक किताबों और उनके हाशिये में लगे रहते हैं और सुबह की फजर की नमाज कजा कर देते हैं या नमाज पढ़ते भी हैं तो इस तरह की घड़ी देखते रहते हैं जब देखा कि दो-चार मिनट रह गए हैं और पानी सर से ऊंचा हो गया तो उठे हैं और जल्दी-जल्दी वुज़ू करके नमाज़ में परिंदों की तरह चार चोंचें मारकर मुसल्ले से अलग हो जाते हैं ऐसी नमाज़ को हदीसे पाक में हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मुनाफ़िक़ की नमाज फरमाया और उनमें के वह लोग जो नमाज़े छोड़ने या बेजमाअत के तंग वक़्त में मुनाफ़िक़ की सी नमाज़ पढ़ने के आदी हो गए हैं, उनके रात रात भर के मुतालेअ और किताबें देखना ,उन्हें नमाज़ की काहिली और सुस्ती के अज़ाब से बचा न सकेंगे।_*
_दरअसल ये वह लोग हैं जो किताबें पढ़ते हैं मगर नहीं जानते कि इल्म क्या है। ये तलबीसे इब्लीस के शिकार है और शैतान ने इन्हें धोके में ले रखा है कुछ का कुछ सुझा रखा है । ऐसे ही वो वाएज़ीन व मुकररेरीन,जलसे करवाने वाले और जलसे करने वाले, तकरीरें करने वाले और सुनने और सुनाने वाले ,इस ख़याल में ना रहे हैं कि उनके जलसे उन्हें नमाज़े छोड़ने के अज़ाब से निजात दिलायेंगे । होश उड़ जायेंगे बरोज़े क़ियामत नमाजों में लापरवाही करने वालों के, और जल्दी-जल्दी मुनाफ़िक़ों की सी नमाज़ पढ़ने वालों के चाहे यह अवाम हो या खवास , मुकर्रीर हो या शाइर, मुदर्रिस हो या मुफ्ती, सज्जादा नशीन हो या किसी बड़े बाप के बेटे या बड़ी से बड़ी खानकाह के मुजाविर । और बरोज़े क़ियामत जब नमाज़ों का हिसाब लिया जाएगा तो पता चलेगा कि कौन कौन कितना बड़ा खादिमे दीन और इस्लाम का ठेकेदार था_
*_खुलासा यह कि रात को देर तक जागने और सुबह को देर से उठने की आदत अच्छी नहीं । हाँ अगर कोई शख्स इल्मे दीन के सीखने या सिखाने या इबादत व रियाज़त में रात को जागे और फज्र की नमाज़ भी एहतिमाम के साथ अदा कर ले तो वह मर्दे मुजाहिद है।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 110, 111, 112*
POST 108】क्या नक़द और उधार की अलग अलग कीमत रखना मना है*
*_अगर कोई शख्स अपना माल किसी के हाथ बेचे और यह कहे कि अगर अभी कीमत अदा कर दोगे तो इतने में और उधार खरीदोगे तो इतने पैसे होंगे। मसलन अभी 300 रुपया है और उधर खरीदोगे पैसे बाद में अदा करोगे तो 350 रुपये देना होंगे, तो यह जायज है इसको कुछ लोग नाजायज ख्याल करते हैं और सूद समझते हैं यह उनकी गलतफहमी है यह सूद नहीं है ।_*
_हाँ अगर खरीदारी के वक्त इस बात को खोला नहीं और माल 300 रुपये में फरोख्त कर दिया और रकम अदा करने में उसने देर की तो उससे पैसे बड़ा कर वसूल किये मसलन 350 रुपये लिये तो यह सूद हो जायेगा। मतलब यह है कि उधार और नकद का भाव अगर अलग अलग हो तो खरीदारी के वक़्त ही इसकी वजाहत कर दे बाद में उधार की वजह से रकम बड़ा कर लेना सूद और हराम है। ,_
📚 *(फतावा रज़विया ,जिल्द 17, सफ़हा 97,मतबूआ रज़ा फाउन्डेशन, लाहौर)*
📚 *_(फतावा फैज़ुर्रसूल, जिल्द 2 सफ़हा 380)_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,112*
POST 109】चापलूसी पसन्द मुतवल्ली और मुहतमिम*
_बाज़ जगह कुछ मस्जिदों के मुतावल्ली और और मदरसों के मुहतमिम का यह मिजाज़ बन गया है की उन्हें अच्छे भले पढ़े लिखे बासलाहियत और दीनदार इमाम और मुदर्रिस अच्छे नहीं लगते,उनसे उनकी नहीं पटती।वह अच्छे लगते हैं, जो उनकी चापलूसी करते हैं, उनकी हाँ में हाँ मिलाते हैं, जब वह तशरीफ़ लाये तो उन्हें अपनी मसनद पर बिठायें, खुद एक तरफ को खिसक जाये और कभी कभी बे ज़रूरत उनकी डाँट और फटकार भी सुन लें। ऐसे मुदर्रिस और इमाम आज के बाज़ मुतावल्लियों और मुहतमिमों को बहुत अच्छे लगते हैं ख्वाह वह कुछ जानते हों या न बच्चों को पढ़ाते हों, उन्हें इससे कोई मतलब नहीं, बस उनकी खुशआमद करते रहें।_
*_दरअसल ऐसे मुतावल्ली और मुहतमिम इस्लाम की बरबादी का सबब हैं और उन्होंने मस्जिदों को वीरान कर रखा है और मदरसों का तालीमी मेयार बिल्कुल खत्म कर दिया है और इस बरबादी की पूछ गछ उनसे क़ियामत के रोज़ बड़ी सख्ती के साथ होगी।_*
_दुआ है कि खुदाए तआला उन्हें होश अता फरमाये और ज़ात और नफ़्स से ज़्यादा उन्हें दीन और उसकी तरक्की से प्यार हो जाये, ख़्याल रहे कि इमामों, आलिमों, मौलवियों को परेशान करने वाले दुनिया व आख़िरत में ज़लीलव रूसवा होंगे।_
*_यह भी बैठकर रोने की बात है कि आज बाज़ मदरसों में चन्दा कर लेना मकबूलियत का मेयार बन गया है । जो घूम फिर कर ज्यादा से ज्यादा चन्दा लाकर जमा कर दें वह महबूब व मक़बूल हैं और भले सच्चे, पढ़े लिखे, काबिल, बासलाहियत आलिम साहब बेचारे गिरी नज़रों से देखे जा रहे हैं।_*
_हदीसें पाक में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने क़ियामत की निशानियों में से एक बात यह भी फरमाई थी कि "जब मुआमलात नाअहलों के सुपुर्द किये जाने लगें। "_
*_यह आज खूब हो रहा है।अहले इल्म व फ़ज़्ल को कोई पूछने वाला नहीं और नाअहल बेइल्म चापलूस खुशामदी बातें बनाने वाले मसाजिद व मदारिस, मराकिज़ व दफातिर पर कब्ज़ा जमाये बैठे हैं।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,113 114*
POST 110】चन्दों की ज़्यादती*
_आजकल चन्दे बहुत बढ़ते जा रहे हैं। इन पर रोक लगाना बहुत जरूरी हो गया है जहाँ तक मदरसों और मस्जिदों का मुआमला है तो ये कौम की ऐसी जरूरतों में से है कि जिनके बगैर दीन बाकी नहीं रह सकता लिहाजा उनके लिए अगर चन्दा लिया जाये तो कुछ हर्ज नहीं।_
*_अलबत्ता गाँव गाँव मौलवियत की पढ़ाई के मदारिस खोलना मुनासिब नहीं है एक जिला में आलिम व फाज़िल बनाने वाले दो चार मदारिस काफी हैं। हाँ । बासलाहियत इमाम मसाजिद में रखे जायें और वह बगैर लम्बी पूरी चन्दे की तहरीक चलाये, इमामत के साथ साथ दो तीन जमाअत तक बच्चों को मौलवियत की इब्तिदाई तालीम दें और फिर बड़े मदरसों में दाख़िल करा दें तो यह निहायत मुनासिब बात है और खाली हाफ़िज़ बनाना और उन्हें इल्मे दीन और लिखने पढ़ने से महरूम रखना और इसी में उनकी उम्र गुजार देना उनके और कौम के हक में अच्छा नहीं है।_*
_हाँ गाँव गाँव इस्लामी मकतब यअनी इस्लामी अन्दाज के प्राइमरी स्कूल काइम करना बहुत ज़रूरी है जिसमें दीन की जरूरी तालीम के साथ साथ दुनिया की भी तालीम हो।_
*_मस्जिद की जहाँ जरूरत हो वहाँ अगर कोई सेठ साहब यूँ ही बगैर दूसरों की मदद के बनवा दें तो वह यकीनन बहुत बड़े सवाब के मुस्तहिक होंगे और ऐसा न हो सके तो मस्जिद के लिए चन्दा करना और मस्जिद बनवाना निहायत बेहतर और उम्दा काम है । लेकिन मस्जिद की तज़ईन और उसकी सजावट और खूबसूरती के लिए गरीब, मजदूर और नादार मुसलमानों पर चन्दे डालना और उन पर गॉव बसती का दबाव बना कर वसूलयाबी करना हरगिज़ मुनासिब नहीं है। दुनिया भर में रसीद बुके लेकर घूमने और गरीब मजदूरों पर दबाव बना कर चन्दा वसूल करने से सादा सी मरिजद में नमाज पढ़ना बेहतर है। इस्लाम में मस्जिद का खूबसूरत होना कुछ भी जरूरी नहीं है। बल्कि पहले के उलेमा ने तो मस्जिदों को सजाने और संवारने से मना फरमाया है, बाद के उलेमा ने भी सिर्फ इजाजत दी है, लाजिम व जरूरी करार नहीं दिया है कि जिसके लिए गाँव गाँव फिरा जाये और दूर दूर के सफर किये जायें या ग़रीबों और मजदूरों को सताया जाये।_*
_यह तो रहा मस्जिदों और मदरसों का मुआमला इसके अलावा भारी भारी उर्स करने और खानकाहें और मजारात तामीर कराने के लिए चन्दे की कोई जरूरत नहीं है। आपसे जो हो सके अकीदत व महब्बत में हलाल कमाई से कीजिए। दूसरों के ज़िम्मेदार आप नहीं हैं अगर दो चार आदमी भी यौमे विसाल किसी बुजुर्ग की खानकाह में जाकर कुरआने करीम की तिलावत कर दें और थोड़ा बहुत जो मयस्सर हो वह उनके नाम पर उनकी रूह के ईसाले सवाब के खिलायें, पिलायें तो यह मुकम्मल उर्स है, जिसमें कोई कमी नहीं है।_
*_और बखुशी बुज़ुर्गाने दीन के नाम पर जो कोई कुछ करे वह यकीनन इन्हदल्लाह माज़ूर है और सवाब का मुस्तहिक़ है।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 114, 115*
POST 111】चन्दों की ज़्यादती*
_जलसे और जुलूस और कान्फ्रेन्सों के नाम पर भी चन्दों को एक मखसूस व महदूद तरीका होना चाहिए क्यूंकि आज हिन्दुस्तान में कौमे मुस्लिम बदहाली और बेरोजगारी का शिकार है। गरीबों,मजदूरों और छोटे छोटे किसानों से चन्दे के नाम पर जबरन रकम वसूल करके 10,-10, 20-20 और 50-50 लाख की हती रखने वाले पेशावर मुकर्रिरों और शाइरों को नज़राने के नाम पर लम्बी लम्बी रकमें भेंट चढ़ाना कौम के हक में कुछ बेहतर नहीं है।_
*_टैन्ट और डेकोरेशन वालों को भरने के लिए घर घर चन्दा करते घूमना अक्लमन्दी नहीं है। हॉ कीजिए और मखसूस व महदूद तरीके से एक दाइरे में रह कर कीजिए और जब जरूरत हो तब कीजिए।_*
_और आजकल तो जलसे मुशाइरे बन कर रह गये और जो मुक़र्रेरीन हैं उनमें भी अकसर वाज़ व नसीहत वाले नहीं रंग व रोगन भरने वाले ज़्यादा हैं। और यह लम्बे लम्बे नज़राने पहले से तय करने वाले मुक़र्रेरीन व शाइरों को दूर दूर से बुलाना और उनके नखरे और ठस्से उठाना, बड़े पैमाने पर लाइट व डेकोरेशन सजाना ज्यादातर नाम व नमूद के लिए हो रहा है जो रियाकारी और दिखावा मालूम होता है और रियाकारी का कोई सवाब नहीं मिलता बल्कि अज़ाब होता है।_
*_खुब पब्लिक जुटाने और मजमा बढ़ाने, मुकर्रीरो शाइरों से तारीफ़ व तौसीफ सुनने के लिए हो रहा है। और जहाँ नाम व नमूद हो, रियाकारी और दिखावा हो, वहाँ चन्दे देने और दिलाने कुछ भी सवाब नहीं है। कमेटी वालों का मकसद सिर्फ यही है कि पब्लिक खूब आ जाये ख़्वाह उन्हें कुछ हासिल हो न हो । बल्कि बाज़ बाज़ जगह तो ये जलसे कराने वाले कमेटियों सदर, सेक्रटरी खजांची ऐसे तक हैं कि कौम से चन्द करके जलसे कराते हुए उन्हें मुद्दत हो गई मगर खुद भी नमाज़ी और दीनदार नहीं बन सके हैं।_*
_शराब, जुआ, लाटरी और सिनेमा के शौक तक उनसे नहीं छूट सके बल्कि अब तो बाज जगह जलसों के नाम पर चन्दा करके और थोड़ा खर्च करके लम्बी लम्बी रकम बचाने की रिपोर्ट भी मिल रही हैं।_
*_इस सबको लिखने से हमारा मतलब यह नहीं है कि जलसे बन्द कर दिये जाये। बल्कि जलसे किये जायें मुख्लिस वाएज़ीन व मुक़र्रेरीन से तकरीरें कराई जायें। नातख्वानी के लिए कुर्ब व जवार के किसी खुशगुलू से एक दो नाते पटवाई जायें। पेशावर शाइरों और मुकर्रिरों को चन्दे करके लम्बी लम्बी रकमें न दी जायें और ये सब न हो सके तो जलसे करना कोई फर्ज वाजिब नहीं हैं। मस्जिदों में बासलाहियत इमाम रखे जायें और वह नामाज़े जुमा वगैरह में वअज़ व तकरीर करें और लोगों को उलेमाए अहले सुन्नत की किताबें पढ़ने की तरगीब दिलायें।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,116, 117*
POST 112】चन्दों की ज़्यादती*
*_लड़कियों की शादी के लिए भी चन्द करने की बीमारी आम हो गई है। हालांकि यह चन्दा गैर जरूरी इखराजात (ख़र्च) और शादी में नामवरी कमाने के लिए होता है।_*
_इस्लाम में न जहेज़ (दहेज़) वाजिब है, न बारात को खाना खिलाना। इसमें दखल लड़के वालों की ज़्यादती का भी है।_
*_खुलासा यह है कि बिल्कुल सादा निकाह भी कर दिया जाये तो यह बिला शुबह जाइज़ बल्कि आज के हालात के मुनासिब है।_*
_लड़कियों की शादी के लिए भीक मांगने वाले अगर भीक माँगने के बजाय किसी ऐसे के साथ बेटी का निकाह कर दें, जो दूसरी शादी का ख्वाहिशमन्द हो और दो औरतों का कफ़ील हो सके या तलाक दे चुका हो या उसकी बीवी मर गई हो या वह गरीब हो या उम्रसीदा हो। और अपनी इन कमज़ोरियों की वजह से शादी में इखराजात का तालिब न हो, जैसा कि आजकल माहौल है तो यह उनके लिए भीक माँगने से हजारों दर्जे बेहतर है_
*_क्यूंकि लड़की की शादी के लिए भीक माँगना गुनाह व नाजाइज़ है और जिन लोगों का अभी हमने जिक्र किया है, उनके साथ निकाह बिला शुबह जाइज़ है। हॉ बगैर सुवाल करे कोई खुद ही से किसी की मदद करे तो इसमें कोई रोक टोक नहीं। लेकिन सुवाल करना और भीक मॉगना, इस्लाम में सिवाय चन्द मखसूस सूरतों के जो अहादीस व फ़िक़्ह की किताबों में मजकूर हैं, हराम है। और जो सूरतें मजकूर हुई, उनमें शादी ब्याह के गैर ज़रूरी मरासिम अदा करना हरगिज शामिल नहीं।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 117, 118*
POST 113】हराम तरीके से कमाकर राहे खुदा में ख़र्च करना*
*_यह बीमारी भी काफी आम हो गई है। लोग कमाते वक़्त यह नहीं सोचते कि यह हराम है या हलाल झूठ ,फरेब,मक्कारी, धोकेबाजी, बेईमानी, रिश्वटखोरी सूद व व्याज और मजदूरों की मजदूरी रोक रोक कर कमाते हैं और माल जमा कर लेते हैं और फिर राहे खुदा में खर्च करने वाले सखी बनते हैं, खूब मजे से खाते हैं और यारों दोस्तों को खिलाते हैं, मस्जिद मदरसों और खानकाहों को भी देते हैं, माँगने वालों को भी दे देते हैं। यह हराम कमा कर राहे खुदा में खर्च करने वाले न हरगिज़ सखी है, न दीनदार। बल्कि बड़े बेवकूफ और निरे अहमक हैं। हदीस पाक में है, '‘हराम कमाई से सदका और खैरात कबूल नहीं।"_*
📚 *_(मिश्कात बाबुलकस्ब सफ़ा 242)_*
_यह ऐसा ही है जैसे कोई बेवजह जान बूझ कर किसी की आंख फोड़ दे और फिर पट्टी बांध कर उसे खुश करना चाहे। भाईयो! खूब याद रखो अस्ल नेकी और पहली दीनदारी नेक कामों में खर्च करना नहीं है बल्कि ईमानदारी के साथ कमाना है। जो हलाल तरीके और दयानतदारी से कमाता है और ज़्यादा राहे खुदा में खर्च नहीं कर पाता है वह उससे लाखों दर्जा बेहतर है जो बेरहमी के साथ हराम कमा कर इधर उधर बॉटता फिरता है।_
*_इन हराम कमाने वालों,रिश्वतखोरों, बेईमानों, अमानत में ख्यानत करने वालों में यह भी देखा गया है कि कोई मदीना शरीफ जा रहा है और कोई अजमेर शरीफ और कलियर शरीफ़ के चक्कर लगा रहा है, हालाँकि हदीस शरीफ में है।_*
_हजरत सय्यिदेना मआज़ इब्ने जबल रदियल्लाहु तआला अन्हु को जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने यमन का हाकिम व गवर्नर बना कर भेजा तो आप उनको रुखसत करने के लिए नसीहत फरमाते हुए उनकी सवारी के साथ साथ मदीना तय्यिबा से बाहर तक तशरीफ लाये। जब हुजूर वापस होने लगे तो फ़रमाया कि ऐ मआज़ रदियल्लाहु तआला अन्हु इस साल के बाद जब तुम वापस आओगे तो मुझको नहीं पाओगे बल्कि मेरी क़ब्र और मस्जिद को देखोगे। हज़रत मआज़ रदियल्लाहु तआला अन्हु यह सुनकर शिद्दते फिराक की वजह से रोने लगे तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया :_
*_‘‘लोगों में मेरे सबसे ज़्यादा क़रीब परहेज़गार लोग हैं, चाहें वो कोई हों और कही भी हों।"_*
📗 *_(मिश्कात सफ़ा 445)_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 118, 119*
POST 114】हराम तरीके से कमाकर राहे खुदा में ख़र्च करना*
*_यअनी हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने साफ तौर पर फरमा दिया कि अस्ल नेकी और दीनदारी और महब्बत,नज़दीकी और पास रहना और हाज़िरी नहीं है बल्कि परहेजगारी यअनी बुरे कामों से बचना, अच्छे काम करना है ख्वाह वो कहीं रह कर हों ।_*
_हज़रते उवैस करनी रदियल्लाहु तआला अन्हु हुज़ूर के ज़माने में थे लेकिन कभी मुलाकात के लिए हाज़िर न हुए मगर हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को इतने पसन्द थे कि उनसे मिलने और दुआए मगफिरत कराने की वसीयत सहाबए किराम को फ़रमाई थी।_
📗 *_(सहीह मुस्लिम जिल्द 2 सफा 311)_*
*_एक हदीस शरीफ में तो हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उनके बारे में तो यहाँ तक फ़रमा दिया कि मेरी उम्मत के एक शख्स की शफाअत से इतने लोग जन्नत में जायेंगे कि जितनी तादाद कबीलए बनू तमीम के अफ़राद से भी ज्यादा होगी।_*
📙 *_(मिश्कात बाबुलहौज़ वश्शफाअह सफ़ा 494)_*
_इस हदीस की शरह में उलेमा ने फरमाया कि *’'उस शख्स"* से मुराद हजरत सय्यिदेना उवैस करनी रदियल्लाहु तआला अन्हु है।_
📘 *_(मिरकात जिल्द 5 सफ़ा 278)_*
*_इन अहादीस से खूब वाज़ेह हो गया कि अस्ल महब्बत पास रहना नहीं, हाज़िरी व चक्कर लगाना नहीं, बल्कि वह काम करना है, जिससे महबूब राज़ी हो।_*
_खुलासा यह कि जो लोग नमाज़ और रोज़े व दीगर अहकामे शरअ के पाबन्द हैं, हरामकारियों और हराम कामों से बचते हैं, वो ख़्वाह बुजुर्गों के मज़ारात पर बार बार हाजिरी न देते हों, वो उनसे बदरजहा बेहतर और महब्बत करने वाले हैं जो खुदाए तआला व रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की नाफरमानी करते, हराम खाते और हराम खिलाते रात दिन गानों, तमाशों, जुए ,शराब और लाटरी सिनेमों में लगे रहते हैं_
*_ख़्वाह हर वक़्त मज़ार पर ही पड़े रहते हों। अलबत्ता वो लोग जो हज़राते अम्बियाएकिराम और औलियाए इज़ाम की शान में गुस्ताखियाँ करते हैं, बेअदबी से बोलते हैं और उनकी बारगाहों में हाज़िरी को शिर्क व बिदअत करार देते हैं उनके अक़ीदे इस्लामी नहीं, उनकी नमाज़ नमाज़ नहीं ,रोज़े रोज़े नहीं ,उनकी तिलावत कुआन नहीं, उनकी दीनदारी इत्तिबाए रसूले अनाम नहीं,क्यूंकि अदब ईमान की जान है और बेअदब नाम का मुसलमान है।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,119 120*
POST 115】हलाल कमाने और दीनदार बनकर रहने की तरकीब*
*_जो शख्स हलाल कमा कर और दीनदार बन कर अल्लाह तआला व रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को राज़ी करना चाहे उसको चाहिए कि फुज़ूलखर्ची से बचे आजकल लोगों ने अपने इखराजात (ख़र्चे) बढ़ा लिये हैं और बेजा शौक और अरमान पूरे करने में लग गये हैं, ये कभी दीनदार नहीं बन सकते।_*
_अगर आप सच्चे पक्के मुसलमान बनना चाहें तो आमदनी बढ़ाने से ज़्यादा फिक्र इख़राजात घटाने की रखिये क्यूंकि इखराजात की ज़्यादाती से आमदनी करने की हवस पैदा होती है और आमदनी करने की हवस इन्सान को बेरहम ज़ालिम और हरामखोर बनाती है - और जिनकी आदत आमदनी से ज्यादा खर्च करने की पड़ गई है, वो कभी चैन व सुकून से नहीं रह पाते, ज़िन्दगी भर परेशान रहते हैं और आमदनी से कम खर्च करने वालों की ज़िन्दगी बड़ी पुरसुकून और बाइज़्ज़त रहती है। और यही लोग वक़्त वे वक़्त दूसरों के भी काम आ जाते हैं।_
*_इन्हीं वुजूहात की बिना पर कुरआने करीम में खुदाए तआला ने फुजूलख़र्च करने वालों को शैतान का भाई फ़रमाया और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि सादगी आधा ईमान है। आज साइंस की जदीद ईजादात ने भी इन्सान के इखराजात और उसकी ज़रूरतों को बढ़ा दिया है। इस पर कन्ट्रोल करने की ज़रूरत है। घर गृहस्थी की ज़रूरतों में एक दरमियानी रवय्या अपनाया जाये।_*
_अफसोस कि आज हम दो चार जोड़ी कपड़ों में जिन्दगी नहीं गुज़ार सकते बल्कि जोडों पर जोड़ें बनाये चले जा रहे हैं। अफसोस कि आज मजबूत और पक्का मकान बनाकर भी चैन से नहीं रहते बल्कि उनको सजाने और सँवारने में लाखों लाख रूपया उड़ाये चले जा रहे हैं ।_
*_कुछ लोग शेख़ीख़ोरी की वजह से परेशान रहते हैं, उनकी यह आदत उन्हें ज़हनी सुकून हासिल नहीं होने देती। उन्हें हर वक़्त यह फिक्र रहती है कि अगर हम ऐसा कपड़ा पहन कर जायेंगे या ऐसा मकान नहीं बनायेंगे या ऐसा खाना नहीं खायेंगे और खिलायेंगे तो लोग क्या कहेंगे?_*
_भाईयो! लोगों के कहने को मत देखो बल्कि अपने हाल और आमदनी को देखो। अगर आप पर अभी कोई वक़्त पड़ जाये तो यही मुंह बजाने वाले पास तक नहीं आयेंगे ,क़र्ज़ तक देने को तय्यार नहीं होंगे। हदीस पाक में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया :_
*_"दुनिया में ज़िन्दगी मुसाफिर परदेसी की तरह गुज़ारो और खुद को कब्र वालों में समझो।’’_*
📗 *(मिश्कात सफ़ा 450)*
_यअनी मुसाफिर और परदेसी जिस तरह कम से कम सामाने ज़िन्दगी के साथ सफर करता है यूं ही तुम भी दुनिया में एक मुसाफिर की तरह हो।_
*_इस बयान से हमारा मतलब यह नहीं है कि खुदाए तआला हलाल कमाई से दे तो अच्छा खाना और पहनना नाजाइज़ है। बल्कि हमारा मकसद गैर ज़रूरी और फ़ालतू इखराजात से बाज़ रखना है ताकि कहीं आप कमाने की ज़्यादा फिक्र में बेईमान, ख़ाइन और हरामखोर न बन जायें और दीनदारी की ज़िन्दगी गुज़ारने के लिए इखराजात पर काबू रखना और फुज़ूलखर्चियों से बचना ज़रूरी है।_*
_और इस बारे में जाइज़ व नाजाइज़ की हुदूद जानने के लिए फिक्ह व तसव्वुफ की किताबों का मुतालआ करना चाहिए।खासकर सदरुश्शरीआ हज़रत मौलाना अमजद अली साहब अलैहिर्रहमतु वर्रिदवान की किताब ‘बहारे शरीअत का सोलहवाँ हिस्सा पढ़ लेना एक मुसलमान के लिए फ़ी ज़माना निहायत ज़रूरी है।_
*_हिन्दी पढ़ने वालों की आसानी के लिए बहारे शरीअत का सोलहवाँ हिस्सा ‘इस्लामी अख़लाक व आदाब’ के नाम से हिन्दी मे भी आ चुका है।_*
_आजकल जो बेईमानों, बेरहमी और ज़ुल्म करके कमाने वालों और पराये माल को अपना समझने वाले रिश्वतखोरों की तादाद ज़्यादा बढ़ गई है, यहाँ तक कि वो लोग जो मुआमलात के साफ सुथरे हों, उनकी गिनती अब न होने के बराबर है, इस सबकी ख़ास वजह आजकल बेजा इखराजात और फुज़ूलखर्चियाँ हैं।_
*_खुलासा यह कि हरामखोरी से बचने और दीनदार बनकर जो शख्स ज़िन्दगी गुज़ारना चाहे, उसके लिए फुज़ूलख़र्च से बचना और सादा ज़िन्दगी गुजारना आजकल ज़रूरी है।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,121, 122, 123*
POST 116】अज़ीम शख्सियतों को मनवाने का तरीका*
*_कुछ लोग जो शख्सियत परस्ती में हद से आगे बढ़े हुए हैं,वो अपनी महबूब और पसन्दीदा शख्सियतों को दूसरों से मनवाने के लिए लड़ाई झगड़ा करते हैं। और जो महब्बत उन्हें है, वो अगर दूसरा न करे तो बुरा मानते और उसे गुमराह और बद्दीन तक ख्याल कर बैठते हैं, और जबरदस्ती उससे मनवाना चाहते हैं। हालांकि महब्बत कभी भी ज़बरदस्ती नहीं पैदा की जा सकती और न सिर्फ़ फ़तवे लगाकर और न उन महबूब बन्दों और बुजुर्गों के नाम के नारे लगा कर और न जोशीली और जज्बाती तकरीरें करके।_*
_बल्कि तरीका यह है कि जो वाकई बुज़ुर्ग साहिबे किरदार अल्लाह वाले लोग हैं यअनी हकीकत में वह इस्लामी नुक़्तए नज़र से अज़ीम शख्सियत के मालिक हैं तो उनका वह किरदार और तरीकए जिन्दगी, कारनामे और दीनी ख़िदमात, खुदातरसी और नफ़्सकुशी संजीदा अन्दाज़ में समझाने के तौर पर तकरीर या तहरीर के ज़रीए लोगों के सामने लाइये और जिन बातों की बुनियाद पर आपको उस साहिबे इल्म व फ़ज़ल से महब्बत है, वो बातें दूसरों को बताइये। अगर वह भी उनका आशिक़ व दीवाना हो जाये तो ठीक और न हो तो कोशिश आपका काम, अब आप जबरदस्ती मनवाने की कोशिश न कीजिए। हाँ जो लोग आमतौर पर बुज़ुर्गों की शान में गुस्ताख़ी करते हैं या ऐसे आलिम व बुज़ुर्ग कि जिनकी बुज़ुर्ग व बरतरी पर पूरी उम्मते मुस्लिमा इत्तिफाक कर चुकी हो उनकी शान में बकवास करते हैं, वो यक़ीनन गुमराह व बददीन हैं। वो अगर समझाने से न समझे तो उनसे दूरी और बेज़ारी ज़रूरी है। और जो गुस्ताखी व बेअदबी न करता हो। लेकिन आपकी तरह अक़ीदत व महब्बत भी न रखता हो तो उसके मुआमले में खामोशी बेहतर है। और उसके ख्यालात बेहतर हैं, इस्लामी हैं तो उसको मुसलमान ही ख्याल किया जाये,और अपना इस्लामी भाई समझा जाये।_
*_इस्लामी शख्सियतों और अपने बुज़ुर्गोंपीरों या मशाइख को दूसरों से मनवाने के लिए सबसे ज़्यादा उम्दा तरीका और बेहतर ढंग आपका किरदार है। आज ऐसे लोग बहुत हैं जो हराम व हलाल में तमीज़ नहीं रखते, नमाजें छोड़ते, गाने , बजाने और तमाशों में लगे रहते हैं, उनकी नियतें ख़राब हो चुकी हैं, उनमें इस्लामी अख़लाक़ नाम की कोई चीज़ नहीं है और फिर ये बुज़ुर्गो के नाम के ठेकेदार बनते हैं, उर्स कराते, मज़ार बनवाते और उनके नाम की लम्बी लम्बी नियाज़े दिलवाते है, उनके नाम पर जलसे, जुलूस और महफ़िलों का इनइकाद करते हैं तो ये लोग कौम को बुज़ुर्गों से करीब करने के बजाय दूर कर रहे हैं और उनके ये ढंग लोगों के दिलों में अल्लाह वालों की महब्बत कभी भी पैदा न कर सकेंगे।_*
_भाईयो! अल्लाह वालों से महब्बत करने वाले और उनकी महब्बत का बीज दूसरों के दिलों में बोने वाले वो हैं जिन्हें देखकर अल्लाह वालों की याद आ जाये। और अल्लाह वाले वो हैं जिन्हें देखकर अल्लाह की याद आ जाये। वरना ये पराये माल पर नज़र रखने वाले हरामखोर बेईमान, नियतख़राब लोग खुदाए तआला के उन बन्दों की अज़मत व इज़्ज़त लोगों के दिलों में नहीं बिठा सकेंगे कि जिन्होंने सब कुछ राहे खुदा में लुटा दिया। और अपना लालच के पिटारे, करोड़पति बनने की तमन्ना रखने वाले मुकर्रेरीन ,शाइरों कव्वालों, नामनिहाद पीरों फकीरों के ज़रीए से अल्लाह वालों की अज़मत व इज़्ज़त के झन्डे नहीं गाड़े जा सकते।_
*_ज़रूरी है कि मुरीद अपने पीर का, शागिर्द अपने उस्ताद का और हर मुअतकिद अपने महबूब का नमूना हो तो तभी उससे अपने शेख और उस्ताद के कारनामे उजागर होंगे और उससे उनकी अज़मत लोगों के दिलों में बैठेगी। और जो लोग किसी बुज़ुर्ग के कारनामे और उसकी इस्लामी खिदमात अपने चाल व चलन किरदार व गुफ्तार के ज़रीए बताये बगैर ज़बरदस्ती उस बुज़ुर्ग शख्सियत को लोगों से मनवाने में लगे हैं, वो कौम में गिरोहबन्दी, तिफ़रक़ाबाजी कर रहे हैं और कौमे मुस्लिम को बिखेर रहे हैं, मुसलमानों को बांट रहे हैं।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,123, 124, 125*
POST 117】फ़िल्मी गानों की तर्ज़ पर नातें और मनक़बतें पढ़ना*
*_आजकल जलसों और मुशाइरों में शाइर व नातख्वाँ लोग फ़िल्मी गानों की तर्ज़ पर उनकी लय और सुर में हम्द, नात व मनकबत पढ़ने लगे हैं हालाँकि यह मना है। उन्हें इन हरकात से बाज़ रहना चाहिए और मुसलमानों को चाहिए कि ऐसे लोगों से हरगिज़ नज़्में न सुनें।_*
*आलाहज़रत इमामे अहले सुन्नत फरमाते हैं*
_अगर गाने की तर्ज़ पर रागिनी की रिआयत हो तो नापसन्द है कि यह अम्र ज़िक्र शरीफ़ के मुनासिब नहीं।_
📚 *_(फतावा रजविया जिल्द 10 किस्त 2 सफ़ा 185)_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 126*
POST 118】बे औलाद मर्दों और औरतों के लिए ज़रूरी हिदायात*
*_औलाद दुनिया में अल्लाह तआला की बहुत बड़ी नेमत है। लिहाज़ा जिसको अल्लाह तआला यह नेमत अता फरमाये, उसको चाहिए कि वह खुदाए तआला का शुक्र अदा करे और अगर न दे तो सब्र करे। मगर आजकल कुछ मर्द और औरतें औलाद न होने की वजह से परेशान रहते हैं और इस कमी को ज़्यादा महसूस करते हैं। हालाँकि यह अहले ईमान की शान नहीं। मोमिन को दुनिया और उसकी नेमतों के हासिल होने की ज़्यादा फिक्र नहीं करना चाहिए, ज़्यादा फिक्र व ग़म आख़िरत का होना चाहिए। अगर आपने अपनी आख़िरत सुधार ली तो दुनिया की किसी नेमत के न पाने का ज़्यादा गम नहीं करना चाहिए। औलाद अल्लाह तआला की नेमत ज़रूर है लेकिन समझ वालों के लिए यह बात भी काबिले गौर है कि माल और औलाद को अल्लाह जल्ला शानुहु ने अपने क़ुरआनमें दुनिया की रौनक फ़रमाया, आख़िरत की नहीं।_*
*अल्लाह तआला क़ुरआन करीम में इरशाद फ़रमाता है*
_*तर्जमा :-* माल और बेटे दुनियवी ज़िन्दगी का सिंगार हैं और बाकी रहने वाली अच्छी बातें हैं, उनका सवाब तुम्हारे रब के यहां बेहतर और वो उम्मीद में सबसे भली।_
📖 *_(सूरह कहफ़ पारा 16 रुकूअ 18)_*
*_कुरआने करीम में माल और औलाद को फितना यअनी आज़माइश भी कहा गया है, जिसका मतलब यह है कि इन चीजों को हासिल करके अगर खुदा व रसूल का हक भी अदा करता रहा तब तो ठीक, और माल व औलाद की महब्बत में अल्लाह तआला व रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को भूल गया ,हराम व हलाल का फर्क खो बैठा तो यह निहायत बुरी चीजें हैं। अलबत्ता नेक औलाद आख़िरत का भी सरमाया है लेकिन आने वाले जमाने में औलाद के नेक होने की उम्मीदें काफी कम हो गई हैं।_*
_खुदाए तआला के महबूब बन्दों यअनी अल्लाह वालों में भी ऐसे बहुत से लोग हुए हैं जिनके औलाद न थी। सरकारे दो आलम हज़रत रसूले पाक मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की सबसे प्यारी बीवी सय्यिदा आइशा सिद्दीका रदियल्लाहु तआला अन्हा के भी कोई औलाद न थी। बल्कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ग्यारह बीवियाँ थीं, जिनमें से आपकी औलाद सिर्फ दो से हुई। सहाबा किराम में हज़रते सय्यिदेना बिलाल हबशी रदियल्लाहु अन्हु भी बेऔलाद थे।_
*_हमारे कुछ भाई और बहनें बेऔलाद होने की वजह से हर वक़्त कुढ़ते रहते हैं और ज़िन्दगी भर दवा दारू और दुआ तावीज़ कराते रहते हैं और लूट खसोट मचाने वाले कुछ डाक्टर व हकीम और करने धरने वाले कठमुल्ले और मियाँ फ़कीर ,उनकी कमज़ोरी से खूब फाइदे उठाते,चक्कर लगवाते यहाँ तक की उन्हें बरबाद कर देते हैं ।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 126, 127, 128*
POST 119】बे औलाद मर्दों और औरतों के लिए ज़रूरी हिदायात*
*_और डाक्टर व हकीमों और करने धरने वालों में आजकल मक्कारों, फरेबकारों की तादाद बहुत बढ़ गई है। कुछ टोका टाकी करने वाली और मशविरे देने वाली बूढ़ी औरतें, उन बेचारों को चैन से नहीं बैठने देतीं। और नये नये हकीमों, डाक्टरों और करने धरने वालों के पते बताती रहती हैं। यहाँ से छूटे तो वहाँ पहुँचे और यहाँ से निकले तो वहाँ फंसे। बेचारों की इसी में कट जाती है।_*
_भाईयो! सब्र से बड़ी कोई दवा नहीं और शुक्र से बड़ा कोई तावीज़ नहीं। इससे हमारा मतलब यह नहीं है कि बेऔलाद दुआ और तावीज़ न करें। बल्कि हमारा मकसद यह बताना है कि थोड़ा बहुत इलाज भी करा लें। और अच्छे भले मौलवी, आलिमोंपीरों फकीरों से दुआ तावीज़ भी करा लें, अगर कामयाबी हो जाये तो ठीक, सुब्हानल्लाह! खुदाए तआला मुबारक फ़रमाये। और न हो तो सब्र से काम लें, खुदाए तआला की इबादत, उसका ज़िक्र और कुरआन की तिलावत में ध्यान लगायें। ज़्यादा हकीमों डाक्टरों और करने वालों के दरवाजों के चक्कर न लगायें और इसमें ज़िन्दगी की कीमती घड़ियों को न गंवायें, आखिर होना वही है, जो खुदाए तआला की मर्ज़ी है।_
*_और एक जरूरी बात यह भी है कि अब करीबे कियामत जो ज़माना आ रहा है, उसमें ज़्यादातर औलाद नअहल निकल रही है और तजुर्बा शाहिद है कि अब औलाद से लोगों को सुकून कम ही हासिल होगा ।और अब बुढ़ापे में माँ बाप को कमा कर खिलाने वाले बहुत कम ,न होने के बराबर और नोच नोच कर खाने वाले ज़्यादा पैदा होंगे। आज लाखों की तादाद में साहिबे औलाद बूढ़े और बुढ़ियें सिर्फ इसलिए भीक मांगते घूम रहे हैं कि उनकी औलाद ने जो कुछ उनके पास था, वह या तो ख़त्म कर दिया या अपने कब्ज़े में कर लिया और मां बाप को भीक मांगने के लिए छोड़ दिया। बल्कि बाज़ तो माँ बाप से भीक मंगवा कर खुद खा रहे हैं और अपने बच्चों को खिला रहे हैं। गोया कि अब माँ बाप इसलिए नहीं हैं कि बुढ़ापे में औलाद की कमाई खायें बल्कि इसलिए हैं कि मरते दम तक उन्हें कमा कर खिलायें ख्वाह इसके लिए उन्हें भीक ही क्यूं न मांगना पड़े।_*
_आज कितने लोग हैं कि उनकी ज़िन्दगी चैन व सुकून और शान के साथ कटी। लेकिन औलाद की वजह से बुरे दिन देखने को मिले। किसी को लड़के की वजह से जेल और थाने जाना पड़ा और पुलिस की खरी खोटी सुनना पड़ीं और किसी की जवान लड़की ने नाक कटवा दी और पूरे घर की इज़्ज़त खाक में मिला दी, चार आदमियों में बैठने के लाइक नहीं छोड़ा।_
*_इस सबसे हमारा मकसद यह नहीं है कि औलाद मुतलकन कोई बुरी चीज़ है या बेऔलाद औलाद हासिल करने के लिए बिल्कुल कोशिश न करें। बल्कि बात वही है जो हम लिख चुके कि खुदाए तआला नेक औलाद दे तो, मुबारक! उसका शुक्र अदा करें और न दे तब भी परेशान न हों। मामूली दवा व तदबीर के साथ साथ सब्र व शुक्र ही से काम लें ।_*
_और यह बता देना भी जरूरी है कि बदमज़हब व बददीन या अल्लाह तआला व रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम और माँ बाप की नाफरमान, बिगड़ी हुई, चोर,डकैत, शराबी, ज़िनाकार, हरामकार,अय्याश व बदमआश औलाद वाला होने से वो लोग बहुत अच्छे हैं, जिनके औलाद नहीं।_
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 128 129*
POST 120】ग़ैर मुस्लिमों से गोश्त मँगाने का मसअला*
*_ग़ैर मुस्लिम की दुकान से गोश्त ख़रीद कर खाना या किसी ग़ैर मुस्लिम से हदिया और तोहफे में कच्चा या पका हुआ गोश्त लेकर खाना हराम है ख़्वाह वह यह कहे कि मैंने जानवर मुसलमान से जुबह कराया था। यअनी मुसलमान का ज़बीहा बताये तब भी उससे गोश्त लेना, ख़रीदना और खाना सब हराम है। हाँ अगर जुबह होने से लेकर जब तक मुसलमान के पास आया हर वक़्त मुसलमान की नज़र में रहा तो यह जाइज़ है।_*
📚 *_(फतावा रजविया ज़िल्द 10 निस्फ अव्वल सफ़हा 94)_*
_हाँ अगर गोश्त किसी मुसलमान की दुकान से लाया गया लेकिन खरीद कर लाने वाला नौकर, मजदूर वगैरह कोई ग़ैर मुस्लिम हो और वह कहे कि मैंने यह गोश्त मुसलमान की दुकान से खरीदा है और आप भी जानते हैं कि यह मुसलमान की दुकान से ख़रीदकर लाया है तो उस गोश्त को खाना जाइज़ है।_
*:जामे सगीर में है :_*
📚 *_(हिदाया जिल्द 4 सफ़ा 437) बहारे शरीअत हिस्सा 16 सफ़ा 36 पर भी इसकी वजाहत मौजूद है।_*
_खुलासा यह कि मुसलमान की दुकान का गोश्त जाइज़ है ख्वाह खरीद कर लाने वाला नौकर या मज़दूर ग़ैर मुस्लिम हो और ग़ैर मुस्लिम की दुकान का गोश्त हराम है ख्वाह ख़रीद कर लाने वाला मुसलमान ही क्यूं न हो और अगर जुबह शरई से लेकर किसी वक़्त मुसलमान की नज़र से गाइब न हुआ तो यह भी जाइज़ है ।_
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 130*
POST 121】मुहर्रम व सफ़र में ब्याह शादी न करना और सोग मनाना*
_माहे मुहर्रम में कितनी रसमें बिदअतें और खुराफ़ातें आजकल मुसलमानों में राइज हो गई हैं उनका शुमार करना भी मुश्किल है। उन्हीं में से एक यह भी कि यह महीना सोग और गमी का महीना है। इस माह में ब्याह शादी न की जायें। हालांकि इस्लाम में किसी भी मय्यत का तीन दिन से ज्यादा गम मनाना नाजाइज़ है और इन अय्याम में ब्याह शादी को बुरा समझना गुनाह है। निकाह साल के किसी दिन में मना नहीं चाहे मुहर्रम हो या सफर या और कोई महीना या दिन।_
*_आलाहजरत अलैहिर्रहमतु वर्रिदवान से पूछा गया।_*
*(1) बाज़ अहलेसुन्नत व जमाअत अशरए मुहर्रम में न तो दिन भर रोटी पकाते हैं और न झाडू देते हैं कहते हैं बाद दफ़न ताजिया रोटी पकाई जाएगी।*
*_(2) दस दिन में कपड़े नहीं उतारते।_*
*(3) माहे मुहर्रम में व्याह शादी नहीं करते।*
*_(4) इन अय्याम में सिवाए इमाम हसन और इमाम हुसैन रयिलाहु तआला अन्हुमा के किसी और की नियाज व फातिहा नहीं दिलाते यह जाइज है या नाजाइज़? तो आप ने जवाब में फ़रमाया पहली तीनों बातें सोग हैं और सोग हराम और चौथी बात जहालत। हर महीने में हर तारीख में हर वली की नियाज़ हर मुसलमान की फातिहा हो सकती है।_*
📗 *(अहकामे शरीअत, हिस्सा अव्वल सफहा 127)*
_दर अस्ल मुहर्रम में गम मनाना सोंग करना फ़िरकए मलऊना शीओं और राफ़िज़ियों का काम है और खुशी मनाना मरदूद ख़ारिजियों काम का शेवा और नियाज़ व फातिहा दिलाना, नफ़्ल पढ़ना, रोजे रखना मुसलमानों का काम है।_
*_यूंही मुहर्रम में ताजियादारी करना, मसनूई करबलायें बनाना, उनमें मेले लगाना भी नाजाइज़ व गुनाह है।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 131, 132*
POST 122】मर्दों का एक से ज़्यादा अंगूठी पहनना*
*_इस्लामी नुकतए नज़र से मर्द को चांदी की सिर्फ एक अंगूठी एक नग की पहनना जाइज़ है जिसका वजन साढ़े चार माशे (4.357 ग्राम) से कम हो। इसके अलावा मर्द के लिए कोई ज़ेवर हलाल नहीं। एक से ज़्यादा अंगूठी या कोई ज़ेवर किसी भी धात का हो सब गुनाह व नाजाइज़ है ।_*
_मगर आजकल अवाम तो अवाम बाज़ जाहिल नाम निहाद सूफ़ियों और मुख़ालिफ़के इस्लाम पीरों ने ज़्यादा से ज़्यादा अंगूठी पहनने को अपने ख्याल में फ़कीरी व तसव्वुफ समझ रखा है यह एक चांदी की शरई अंगूठी से ज़्यादा अंगूठिया पहनने वाले ख्वाह वह सोने की हों या चांदी की या और किसी धात की सब के सब गुनाहगार हैं और इस लाइक नहीं कि उन्हें पीर बनाया जाए। हमारे कुछ भाई तांबे, पीतल और लोहे के छल्ले पहनते हैं और उन्हें दर्द और बीमारी की शिफा ख्याल करते हैं यह भी गलत है।और इलाज के तौर पर भी नाजाइज़ जेवरात छल्ले वगैरा पहनना जाइज़ नहीं है।_
📚 *_(फ़तावा रज़विया, जिल्द 10 , निस्फे अव्वल,सफ़हा 14)_*
*_कुछ लोग यह कहते हैं कि यह छल्ला या अंगूठी हम मक्का शरीफ,मदीना शरीफ या अजमेर शरीफ से लाए हैं। अगर वह खिलाफ शरअ है तो मक्के शरीफ, मदीने शरीफ, अजमेर शरीफ के बाज़ार में बिकने से हलाल नहीं हो जाएगी।_*
_भाईयो! आप तो आज वहाँ के बाज़ारों से लाए हैं और यह नाजाइज़ होने का हुक्म चौदा सौ साल कल्ब वहीं से आ चुका है।_
*_खुलासा यह कि मुक़द्दस शहरों में बिकने से हराम चीज़ हलाल नहीं हो जाती ।_*
_भाईयों! अल्लाह तआला से डरो और नाजाइज़ अँगूठीयां, ज़ेवरात, कड़े, छल्ले पहन कर अल्लाह तआला की नाफरमानी न करो ।_
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 132, 133*
POST 123】अमरीकन गाय का शरई हुक्म*
*_अमरीकन गाय के बारे में काफ़ी लोग शुकूक व शुबहात में मुबतला हैं जबकि इस में कोई शक नहीं कि अमरीकन गाय भी बिला शुबहा गाय है उसका खाना हलाल और उसका दूध ,घी,खाना पीना जाइज़ है।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,133*
POST 124】दवा खाने पीने से पहले बिस्मिल्लाह न पढ़ना*
*_यह भी ग़लत और एक जाहिलाना ख्याल है बल्कि दवा खाने पीने से पहले बिस्मिल्लाह ख़ास तौर से ध्यान करके ज़रूर पढ़ना चाहिए ताकि नामे खुदा से जल्द शिफ़ायाब हो क्यूंकि बीमारियां और उनकी शिफ़ा अल्लाह की तरफ से है।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 133*
POST 126】ओझड़ी खाना*
*_ओझड़ी और आतें खाना जाइज़ नहीं।_*
📖 * कुरआन करीम में है।*
_*तर्जमा :* और वह नबी गन्दी चीजें हराम फरमायेंगे।_
📚 *_(कंजूल ईमान ,पारा 9, सुरह अराफ,आयत 157)_*
_और "खबाइस" से मुराद वह चीजें हैं जिनसे सलीमुत्तबअ लोग घिन करें और ओझड़ी और आंतें खाने से भी सलीमुत्तबअ लोग घिन करते है और यह गन्दी चीजें हैं लिहाजा इनका खाना जाइज़ नहीं है।_
*_आलाहज़रत अलैहिर्रहमा ने अपने रिसाले "अलमहुल मलीहा" में इस सब को तसरीह व तफ़सील से बयान फरमाया है।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,134*
POST 127】सफ़र के महीने का आखिर बुध*
*_कुछ जगह लोग सफ़र के महीने के आख़िरी बुध के बारे में यह ख्याल करते है कि इस रोज हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के ने मर्ज़ से शिफ़ा पाई थी। लिहाज़ा इस दिन खुशी मनाते हैं। खाने, शीरीनी वगैरा खाते खिलाते हैं, जंगल की सैर को जाते हैं और कहीं पर लोग इसको मनहूस ख्याल करते हैं और बरतन तोड़ डालते हैं_*
_हालांकि सफ़र के आखिरी बुध की कोई अस्ल नहीं। न उस दिन हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के लिए मर्ज़ से सेहतयाबी का कोई सबूत। बाज़ जगह कुछ लोग इस दिन को मनहूस ख्याल करके बरतनों वगैरा को तोड़ते हैं यह भी फुज़ूलखर्ची और गुनाह है। खुलासा यह कि सफ़र के महीने के आख़िरी बुध की इस्लाम में कोई खुसूसियत नहीं।_
📚 *(फतावा रज़विया, जिल्द 10, निस्फ़े अव्वल, सफ़हा 117)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,134
POST 128】औलाद को आक़ करने का मसअला*
_बाज़ लोग अपनी औलाद के बारे में यह कह देते हैं कि मैंने इसको आक़ कर दिया और उसका मतलब यह ख्याल किया जाता है कि अब वह आक़ की हुई औलाद बाप के मरने के बाद इसकी मीरास से हिस्सा नहीं पाएगी हालांकि यह एक बेकार बात है और आक़ कर देना शरअन कोई चीज़ नहीं है और न बाप के यह लफ्ज़ बोलने से उसकी औलाद जाएदाद में हिस्से से महरूम होगी बल्कि वह बदस्तूर बाप की मौत के बाद उसके तरके में शरई हिस्से की हक़दार है।_
*हाँ माँ बाप की नाफरमानी और उनको ईज़ा देना बड़ा गुनाह है और जिसके वालिदैन उससे नाखुश हों वह दोनों जहाँ में इताब व अज़ाबे इलाही का हक़दार है और सख़्त महरूम है।*
_सय्यिदी आलाहजरत रदियल्लाहु तआला अन्हु इरशाद फरमाते हैं : *"आक कर देना शरअन कोई चीज़ नहीं न उससे विलायत ज़ाइल हो।"*_
📚 *(फतावा रज़विया,जिल्द 5,सफहा 412)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,135*
POST 129】साली और भावज से मज़ाक़ करना*
*_बाज़ लोग साली और भावज से मजाक करते बल्कि उसे अपना हक़ ख्याल करते हैं और उन्हें इस किस्म की बातों से रोका टोका जाए तो कहते हैं कि हमारा रिश्ता ही ऐसा है हालांकि इस्लाम में यह मज़ाक हराम बल्कि सख्त हराम जहन्नम का सामान है। औरतों और मर्दों के दरमियान मखसूस मामलात से मुतअल्लिक गन्दी और बेहूदा बातें ख़्वाह खुले अल्फ़ाज़ में कही जायें या इशारों किनायों में सब मज़ाक हैं और हराम है। हदीस शरीफ़ में जेठ देवर और बहनोई से पर्दा करने की सख्त ताकीद आई है। और जिस तरह मर्दों के लिए साली और भावज से मज़ाक हराम है ऐसे ही औरतों को भी देवर और बहनोई से मज़ाक़ हराम है।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,135*
POST 130】हमल रोकने न वाली दवाओं और लूप , कन्डोम वगैरा का इस्तेमाल*
_इस्लाम में नसबन्दी हराम है। नसबन्दी का मतलब यह है कि किसी अमल यानी आपरेशन वगैरा के जरिए मर्द या औरत में कुव्वत तौलीद यानी बच्चा पैदा करने की सलाहियत हमेशा के लिए ख़त्म कर देना जैसा कि हदीस शरीफ में है कि जब हज़रते अबूहुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु ने हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से बर ज़िना से बचने के लिए ख़स्सी होने की इजाज़त चाही तो हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इस सवाल पर पर उन से रू-गिरदानी फरमाई और नाराज़गी का इज़हार किया।_
*_लेकिन हमल रोकने के ख्याल से आरिज़ी ज़राए व वसाइल इख्तियार करना मसलन , लूप,निरोध वगैरा का किसी ज़रूरत से इस्तेमाल करना हराम नहीं है। दरअस्ल मज़हबे इस्लाम बड़ी हिकमतों वाला मज़हब और क़ानूने फ़ितरत है जो नसबन्दी को हराम फरमाता है क्यूंकि उसमें इन्सान के बच्चा पैदा करने की कुदरती सलाहियत व कुव्वत को ख़त्म कर दिया जाता है। कभी यह भी हो सकता है कि माँ,बाप नसबन्दी करा बैठते हैं। और जो बच्चे थे वह मर गए ऐसा हो भी जाता है तो सब दिन के लिए औलाद से महरूमी हाथ आती है। कभी ऐसा भी होता है कि औरत ने नसबन्दी कराई और उसके शौहर का इन्तिकाल हो गया या तलाक हो गई अब उस औरत ने दूसरी शादी की और दूसरा शौहर अपनी औलाद का ख्वाहिशमन्द हो। यह भी हो सकता है मर्द ने नसबन्दी कराई अब उसकी औरत फ़ौत हो गई या तलाक हो गई वह दूसरी शादी करता है अब नई बीवी औलाद की ख्वाहिशमन्द हो।_*
_खुलासा यह कि बच्चा पैदा करने की सिरे से सलाहियत खत्म कर देना किसी तरह समझ नहीं आता और इस्लाम का क़ानून बेशुमार हिक़मतों का खज़ाना है। अलबत्ता आरिज़ी तौर से बच्चों की विलादत रोकने के ज़राए व वसाइल को इस्लाम मुतलक़न हराम फ़रमाता । इस में भी बड़ी हिक़मत है क्योंकि कभी ऐसा हो जाता है कि औरत की सेहत इतनी खराब है कि बच्चा पैदा करना उसके बस की नहीं बल्कि कभी कुछ औरतों के बच्चे सिर्फ ऑपरेशन से ही हो पाते हैं और दो या तीन बच्चों की विलायत के बाद डॉक्टरों ने कह दिया कि आइन्दा ऑपरेशन में सख्त खतरा है तो आरिज़ी तौर पर हमल को रोकने के ज़राए का इस्तेमाल गुनाह नहीं है_ *हदीस शरीफ में है:-*
*_हज़रत जाबिर रदियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि हम लोग नुज़ूले कुरआन के ज़माने में "अज़्ल"करते थे यानी इन्जाल के वक़्त औरत से अलाहिदा हो जाते थे। यह हदीस बुख़ारी शरीफ व मुस्लिम शरीफ दोनों में है। मुस्लिम शरीफ में इतना और है:-_*
_यह बात हुजूर नबीए करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम तक पहुँची तो आपने मना नहीं फरमाया।_
*_अज़्ल से मुतअल्लिक और भी हदीसे हैं जिन से इसकी इज़ाजत का पता चलता है जिनकी तौज़ीह व तशरीह में उलमा का फ़तवा है कि बीवी से इसकी इज़ाजत के बगैर उसकी मर्ज़ी के खिलाफ ऐसा न करे क्यूंकि इसमें उसकी हकतल्फी है।_*
_हज़रत मौलाना मुफ्ती जलालुद्दीन अहमद अमजदी फरमाते है: "किसी जाइज़ मकसद के पेशे नज़र वक़्ती तौर पर ज़्बते तौलीद के लिए कोई दवा या रबड़ की थैली का इस्तेमाल करना जाइज़ है लेकिन किसी अमल से हमेशा के लिए बच्चा पैदा करने की सलाहियत को ख़त्म कर देना किसी तरह जाइज नहीं।"_
📚 *(फतावा फैज़ुर्रसूल, जिल्द दोम, सफ़हा 580)*
*_इस से यह भी ज़ाहिर है कि वे मकसद ख्वाहम ख़्वाह ऐसा करना भी जाइज़ नहीं।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,136, 137*
POST 131】नए साल की मुबारकबादियां देना केसा?*
_मुसलमानों में अंग्रेज़ी साल के पहले दिन पहली जनवरी को खुशी मनाने मिठाईयां बांटने मुबारकबादियां देने और भेजने का रिवाज आम हो गया है और तरह-तरह की फुज़ूल खर्चियां की जाती हैं।_
*_हालांकि पहली जनवरी हो या पहली अप्रेल (अप्रैल फूल) 25 दिसम्बर बड़ा दिन हो या गुड फ्राइडे, इन सब का इस्लाम और मुसलमानों से कोई तअल्लुक नहीं बल्कि इनको अहमियत देना या त्योहार समझना ‘ईसाईयत' है और काफ़िरों और गैर मुस्लिमों का तरीक़ए कार मुसलमानों को चाहिए इस्लामी त्योहार मनायें और इस्लामी दिनों को अहमियत दें ईसाईयत न अपनायें कहीं ऐसा न हो कि आपका हश्र ईसाईयों के साथ हो।_*
📖 _हदीस शरीफ़ में है *अल्लाह तआला* के *रसूल सय्यिदे आलम हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम* फरमाते हैं “जो जिस कौम का तरीक़ए कार अपनाए वह उन्हीं में से है।’_
_आजकल मुसलमानों में बच्चों की सालगिरह मनाने का रिवाज भी बहुत ज़ोर पकड़ गया है और इसमें गैर जरूरी अख़राजात किये जाते हैं और केक काटे जाते हैं। यह सब भी इस्लामी नुक़तए नज़र से कुछ अच्छा नहीं मालूम होता इसमें अंग्रेज़ी तहज़ीब और ईसाईयत की बू आती है।_
_*📚ग़लत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफ़हा 138📚*_
_*Note:-* लिहाजा ईमान वालों अपने आपको ऐसे हराम काम करने से दूर रखें और अपने अजीज़ो आकरिब को भी मना करे खुसूशी अपने नौजवान बच्चों को समझाए और दीन की सही मालूमात दे!_
POST 132】ग़ैर ज़रूरी जाहिलाना सवालात*
_आजकल अवाम में सवालात मालूम करने का रिवाज़ भी आम हो गया है वह भी अमल व इस्लाह की गरज़ से नहीं बल्कि उलमा को आज़िज़ करने या किसी फ़ासिद मक़सद से।_
*_एक साहब को मैंने देखा कि वह मालदार हो कर कभी कुर्बानी नहीं करते थे और मौलवी साहब से मालूम कर रहे थे हज़रते इस्माईल अलैहिस्सलाम की जगह जिबह करने के लिए जो दुम्बा लाया गया था वह नर था या मादा और उसका गोश्त किसने खाया था वहीं उन्हीं के जैसे दूसरे साहब बोले कि वह दुम्बा अन्डुआ था या खस्सी?_*
_एक साहब को नमाज़ याद नहीं थी और कुछ भी ठीक से करना नहीं जानते थे और उन्हें जो मौलाना साहब मिलते उनसे यह ज़रूर पूछते थे कि मूसा अलैहिस्सलाम की मां का क्या नाम था? और हज़रते खदीजा रदियल्लाह तआला अन्हा का निकाह किस ने पढ़ाया था?_
*_ग़रज़ कि इस किस्म के ग़ैर ज़रूरी सवालात करने का माहौल बन गया है। अवाम को चाहिए कि तारीख़ी बातों में न पड़ कर नमाज़, रोज़ा वगैरा अहकामे शरअ सीखें और इस्लामी अक़ीदे मालूम करें यही चीज़ें अस्ल इल्म हैं।_*
_और जो बात क़ुरआन व हदीस फ़िक़्ह से मालूम हो जाए तो ज़्यादा कुरेद और बारीकी में न पड़ें न बहस करें अगर अक्ल में न आए तो अक्ल का कुसूर जाने न कि मआज़ल्लाह क़ुरआन व हदीस का या फुक़हाए मुजतहिदीन का_
*_और ख़्वाहम ख़्वाह ज़्यादा सवालात करने की आदत अच्छी नहीं है। फ़ी ज़माना अमल करने का रिवाज़ बहुत कम है पूछने का ज़्यादा और अन्धा होकर बारीक राहों पर चलने में सख्त ख़तरा है।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,138 139*
POST 133】अपनी तरफ से न करके औरों के नाम से कुर्बानी करना*
*_कुछ लोग जिन पर मालदार साहिबे निसाब होने की बिना पर कुर्बानी वाजिब होती है वह कुर्बानी में ब-वक़्ते ज़िबह अपने नाम के बजाए अपने माँ, बाप या बुज़ुर्गाने दीन का नाम लेकर उनकी तरफ़ से कुर्बानी करते हैं हालांकि यह गलत है। जिस पर कुर्बानी वाजिब है वह पहले अपने नाम से करे। उसके बाद अगर मौक़ा है तो बड़े जानवर में और हिस्से लेकर या दूसरे जानवर बुज़ुर्गाने दीन या अपने ज़िन्दा या मुर्दा माँ बाप की तरफ से ज़िबह करे और हुज़ूर सय्यिदे आलम अहमद मुजतबा मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के नाम से कुर्बानी करना बड़ी फज़ीलत है लेकिन जब उस पर खुद कुर्बानी वाजिब है तो यह फज़ीलतें उसी के लिए हैं जो खुद अपनी तरफ़ से पहले करे वरना कुर्बानी न करने का गुनाह होगा।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,140*
POST 134】क्या क़व्वाली सुनना जाइज़ है?*
_पार्ट :- 01_
*_इस्लामी भाईयो ! आज कल बुज़ुर्गाने दीन के मज़ारात पर उनके उर्सों का नाम लेकर खूब मौज मस्तियां हो रही हैं और अपनी रंग रंगेलियों, बाजों, तमाशों, औरतों की छेड़छाड़ के मजे उठाने के लिए अल्लाह वालों के मज़ारों को इस्तेमाल किया जा रहा है और ऐसे लोगों को न खुदा का ख़ौफ़ है, न मौत की फिक्र और न जहन्नम का डर।_*
_आज कुफ्फार व मुशरिकीन यह कहने लगे हैं कि इस्लाम भी दूसरे मजहबों की तरह नाच, गानों, तमाशों, बाजों और बेपर्दा औरतों को स्टेजों पर लाकर बे हाई का मुज़ाहिरा करने वाला मज़हब है लिहाज़ा अहले कुफ़्र के इस्लाम कबूल करने की जो रफ्तार थी उसमें बहुत बड़ी कमी आ गई है।_
*_मज़हबे इस्लाम में बतौर लहव व लइब ढोल, बाजे और मज़ामीर हमेशा से हराम रहे हैं। बुखारी शरीफ की हदीस है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहुतआलाअलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया :_*
_"जरूर मेरी उम्मत में ऐसे लोग होने वाले हैं जो ज़िना रेशमी कपड़ों, शराब और बाजों ताशों को हलाल ठहरायेंगे।"_
📗 *_(सही बुख़ारी, जिल्द 2, किताबुल अशरिबह, सफहा 837)_*
*_दूसरी हदीस में हुज़ूर नबीए करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने कियामत की निशानियां बयान करते हुए फ़रमाया :_*
_"कियामत के करीब नाचने गाने वालियों और बाजे ताशों की कसरत हो जाएगी।"_
📘 *_(तिर्मिजी, मिश्कातबाबे अशरातुस्साअह सफ़हा 470)_*
*_फतावा आलमगीरी जो अब से साढ़े तीन सौ साल पहले बादशाहे हिन्दुस्तान मुहीयुद्दीन औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह तआला अलैह के हुक्म से उस दौर के तकरीबन सभी मुसतनद व मोतबर उलमाए किराम ने जमा होकर मुरतब फरमाई जो अरबी जबान (भाषा) में तकरीबन तीन हज़ार सफ़हात और छह जिल्दों पर फैला हुआ एक अज़ीम इस्लामी इन्साइक्लोपीडिया है। उस में लिखा है।_*
_"सिमा, कव्वाली और रक्स (नाच कूद)जो आज कल के नाम निहाद सूफियों में राइज है यह हराम है इस में शिरकत जाइज़ नही।"_
📙 *_(फतावा आलमगीरी ,जिल्द 5, किताबुल कराहियह ,बाब 17 ,सफहा 352)_*
*आलाहज़रत मौलाना शाह अहमद रज़ा खां साहब अलैहिर्रहमा का फतवा अरब व अजम में माना जा रहा है उन्होंने मज़ामीर के साथ कव्वालियों को अपनी किताबों में कई जगह हराम लिखा है। कुछ लोग कहते हैं मज़ामीर के साथ कव्वाली चिश्तिया सिलसिले में राइज और जाइज़ है। यह बुज़ुर्गाने चिश्तिया पर उनका खुला बोहतान है बल्कि उन बुजुर्गों ने भी मज़ामीर के साथ कव्वाली सुनने को हराम फरमाया है। सय्यिदना महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन देहलवी रहमतुल्लाहि तआला अलैह ने अपने ख़ास ख़लीफ़ा सय्यिदना फ़ख़रुद्दीन ज़रदारी से मसअलए कव्वाली के मुतअल्लिक एक रिसाला लिखवाया जिसका नाम ‘कश्फुल किनान अन उसूलिस्सिमा’ है। इसमें साफ लिखा है : हमारे बुज़ुर्गों का सिमा इस मज़ामीर के बोहतान से बरी है (उनका सिमा तो है) सिर्फ कव्वाल की आवाज़ अशआर के साथ हो जो कमाल सनअते इलाही की ख़बर देते हैं।*
_कुतबुल अकताब सय्यिदना फरीदुद्दीन गंज शकर रहमतुल्लाह तआला अलैह के मुरीद और सय्यिदना महबूब इलाही निज़ामुद्दीन देहलवी रहमतुल्लाह तआला अलैह के ख़लीफ़ा सय्यिदना मुहम्मद बिन मुबारक अलवी किरमानी रहमतुल्लाहि तआला अलैह अपनी मशहूर किरताब ‘सैरुल औलिया’ में तहरीर फरमाते हैं:_
*_“महबूब इलाही ख्वाजा निज़ामुद्दीन देहलवी अलैहिर्रहमतु वर्रिदवान ने फरमाया कि चन्द शराइत के साथ सिमा हलाल है_*
*(1) सुनाने वाला मर्द कामिल हो छोटा लड़का और औरत न हो।*
*(2) सुनने वाला यादे खुदा से ग़ाफ़िल न हो।*
*(3) जो कलाम पढ़ा जाएफ़हश, बेहयाई और मसखरगी न हो।*
*(4) आलए सिमाअ यानी सारंगी मज़ामीर व रुबाब से पाक हो।*
📕 *_(सैरुल औलियाबाब 9, दर सिमा, वज्द व रक्स, सफ़हा 501)_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,140, 141, 142*
POST 135】क्या क़व्वाली सुनना जाइज़ है?*
_पार्ट :- 02_
*_इसके अलावा ‘सैरुल औलियाशरीफ़' में एक और मकाम पर है कि एक शख्स ने हजरते महबूब इलाही ख्वाजा निज़ामुद्दीन रहमतुल्लाहि तआला अलैह से अर्ज किया कि इन अय्याम में बाज़ आस्तानादार दुरवेशों ने ऐसे मजमे में जहाँ चंग व रुबाब व मज़ामीर था, रक्स किया तो हज़रत ने फरमाया कि उन्होंने अच्छा काम नहीं किया जो चीज़ शरअ में नाजाइज़ है वह नापसन्दीदा है। उसके बाद किसी ने बताया कि जब यह जमाअत बाहर आई तो लोगों ने उन से पूछा कि तुम ने यह क्या किया वहीं तो मज़ामीर थे तुम ने सिमा किस तरह सुना और रक्स किया? उन्होंने कहा हम इस तरह सिमा में डूबे हुए थे कि हमें यह मालूम ही नहीं हुआ कि यहाँ मज़ामी हैं या नहीं। हज़रत सुल्तानुल मशाइख ने फरमाया यह कोई जवाब नहीं इस तरह तो हर गुनाहगार हरामकार कह सकता है।_*
📗 *(सैरुल औलिया, बाब 9 , सफ़हा 530)*
_यानी कि आदमी ज़िना करेगा और कह देगा कि मैं बेहोश था मुझको पता नहीं कि मेरी बीवी है या गैर औरत, शराबी कहेगा कि मुझे होश नहीं कि शराब पी या शरबत।_
*_इसके अलावा उन्हीं हज़रते सय्यिदना महबूब इलाही निज़ामुद्दीन हक़ वालिदैन अलैहिर्रहमतु वर्रिदवान के मलफूज़ात पर मुशतमिल उन्हीं के मुरीद व खलीफा हज़रत ख्वाजा अमीर हसन अलाई सन्जरी की तसनीफ़ ‘वाइदुल फवाद शरीफ़' में है।_*
_हज़रते महबूब इलाही की खिदमत में एक शख्स आया और बताया कि फलां जगह आपके मुरीदों ने महफ़िल की है और वहाँ मज़ामीर भी थे हज़रत महबूब इलाही ने इस बात को पसन्द नहीं फ़रमाया। और फ़रमाया कि मैंने मना किया है मज़ामीर (बाजे) हराम चीज़े वहाँ नहीं होना चाहिए इन लोगों ने जो कुछ किया अच्छा नहीं किया इस बारे में काफ़ी ज़िक्र फरमाते रहे। इसके बाद हज़रत ने फरमाया कि अगर कोई किसी मकाम से गिरे तो शरअ में गिरेगा और अगर कोई शरअ से गिरा तो कहाँ गिरेगा।_
📕 *_(फवाइदुल फवाद,जिल्द 3, मजलिस पन्जुम,सफ़हा 512, मतबूआ उर्दू अकादमी ,देहली,तर्जमा ख्वाजा हसन निज़ामी)_*
*_मुसलमानो! जरा सोचो यह हजरत ख्वाजा निज़ामुद्दीन देहलवी रदियल्लाहु तआला अन्हु का फतावा है जो तुमने ऊपर पढ़ा। इन अक़वाल के होते हुए क्या कोई कह सकता है कि खानदाने चिश्तिया में मज़ामीर के साथ कव्वाली जाइज़ है? हाँ यह बात वही लोग कहेंगे जो चिश्ती हैं, न कादरी उन्हें तो मज़ेदारियां और लुत्फ़ अन्दोज़ियां चाहिए।_*
_और अब जबकि सारे के सारे कव्वाल बे नमाज़ी और फ़ासिक व फाजिर हैं। यहाँ तक कि बाज़ शराबी तक सुनने में आए हैं। यहाँ तक कि औरतों और अमरद लड़के भी चल पड़े हैं। ऐसे माहौल में इन कव्वालियों को सिर्फ वही जाइज़ कहेगा जिसको इस्लाम व कुरआन ,दीन व ईमान से कोई महब्बत न हो और हरामकारी, बहायाई, बदकारी उसके रग व पय में सराहत कर गई हो। और कुरआन व हदीस के फ़रामीन की उसे कोई परवाह न हो। क्या इसी का नाम इस्लाम है कि मुसलमान औरतों को लाखों के मजमे में लाकर उनके गाने बजाने कराए जायें फिर उन तमाशों का नाम बुज़ुर्गों का उर्स रखा जाए। काफ़िरों के सामने मुसलमानों और मजहबे इस्लाम को जलील व बदनाम किया जाए?_
*_कुछ लोग कहते हैं कि कव्वाली अहल के लिए जाइज़ और नाअहल के लिए नाजाइज़ है। ऐसा कहने वालों से हम पूछते हैं। कि आजकल जो कव्वालियों की मजलिसों में जो लाखों लाख के मजमे होते हैं क्या यह सब अल्लाह वाले और असहाबे इसतगराक हैं? जिन्हें दुनिया व मताए दुनिया का कतअन होश नहीं? जिन्हें यादे खुदा और ज़िक्र इलाही से एक आन की फुरसत नहीं?_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,142 143 144*
POST 136】क्या क़व्वाली सुनना जाइज़ है?*
_पार्ट :- 03_
*_ख़र्राटे की नीदों और गप्पों, शप्पों में नमाज़ों को गंवा देने वाले, रात दिन नंगी फ़िल्मोंगन्दे गानों में मस्त रहने वाले, मां बाप की नाफरमानी करने और उनको सताने वाले, चोर लकोर, झूटे फ़रेबी, गिरेहकाट वगैरा क्या सब के सब थोड़ी देर के लिए कव्वालियों की मजलिस में शरीक हो कर अल्लाह वाले हो जाते और उसकी याद में महव हो जाते हैं? या पीर साहब ने अहल का बहाना तलाश करके अपनी मौज मस्तियों का सामान कर रखा है? कि पीरी भी हाथ से न जाए और दुनिया की मौज मस्तियों में भी कोई कमी न आए। याद रखो कब्र की अँधरी कोठरी में कोई हीला व बहाना न चलेगा।_*
_कुछ लोगों को यह कहते सुना गया है मज़ामीर के साथ कव्वाली नाजाइज़ होती तो दरगाहों और ख़ानकाहों में क्यूं होती?_
*_काश यह लोग जानते कि रसूले पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की हदीसों बुज़ुगाने दीन के मुकाबले में आजकल के फ़ासिक दाढ़ी मुन्डाने वाले नमाज़ों को कसदन छोड़ने वाले बाज़ ख़ानकाहियों का अमल पेश करना दीन से दूरी और सख्त नादानी है जो हदीसें हमने ऊपर लिखीं और बुज़ुर्गाने दीन के अक़वाल नक़ल किये गए उनके मुकाबिल न किसी का कौल मोतबर होगा न अमल। आजकल खानकाहों में किसी काम का होना उसके जाइज़ होने की शरई दलील नहीं है।_*
_बाज़ खानकाहों की जबानी यह भी सुना कि हम कव्वालियां इसलिए कराते हैं कि ज़्यादा लोग जमा हो जायें और उर्स भारी हो जाए। यह भी सख्त नादानी है गोया आपको अपनी नामवरी की फिक्र है आख़िरत की फिक्र नहीं। आपको कोई जानता न हो,आपके पास कोई बैठता न हो, आप गुमनाम हों और हरामकारियों से बचते हो। नमाजों के पाबन्द हों, बीवी बच्चों के लिए हलाल रोज़ी कमाने में लगे हों और आपका परवरदिगार आप से राज़ी हो यह हज़ार दर्जे बेहतर है इससे कि आप मशहूरे जमाना शख्सियत हों। आपके हज़ारों मुरीद हों, हर वक़्त हज़ारों मोअतकिदीन का झमगटटा लगा रहता हो या लाखों मजमे में बोलने वाले ख़तीब और मुकर्रिर हों। बड़े अल्लामा व मौलाना शुमार किये जाते हों लेकिन हरामकारियों में इनहिमाक, नमाज़ों से गफलत ,शोहरत व जाह तलबी,दौलत की नाजाइज़ हवस की वजह से।।मैदाने महशर में खुदाए तआला के सामने शर्मिन्दगी हो। कियामत के दिन ख़िफ़्फत उठानी पड़े। वलइयाजु बिल्लाहि तआला कहीं जहन्नम का रास्ता न देखना पड़े।_
*_मेरे भाईयो! दिल में यह तमन्ना रखे यही खुदाए कदीर से दुआ किया करो कि ख्वाह हम मशहूरे ज़माना पीर और दिलों में जगह बनाने वाले ख़तीब हों या न हों लेकिन हमारा रब हम से राज़ी हो जाए ईमान पे मौत हो जाए और जन्नत नसीब हो जाए। और खुदाए तआला हमें चाहे थोड़ों में रखे लेकिन अच्छों और सच्चों में रखे। फ़कीरी और दुरवेशी भीड़ और मजमा जुटाने का नाम नहीं है। फ़कीर तो तन्हाई पसन्द होते हैं और भीड़ से भागते हैं अकेले में यादे खुदा करते हैं।_*
उनकी याद उनका तसव्वुर है उन्हीं की बातें
कितना आबाद मेरा गोशए तन्हाई है।
_आख़ीर में एक बात यह भी बता देना ज़रूरी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि *‘‘जो कोई ख़िलाफ़ शरअ काम की बुनियाद डालते है तो उस पर अपना और सारे करने वालों को गुनाह होता है।’’* लिहाजा जो मज़ामीर के कव्वालियां कराते हैं और दूसरों को भी इसका मौका देते हैं उन पर अपना,कव्वालों और लाखों तमाशाइयों का गुनाह है मरते ही उन्हें अपनी करतूतों का अन्जाम देखने को मिल जाएगा।_
*_हमारी इस तहरीर को पढ़ कर हमारे इस्लामी भाई बुरा न मानें बल्कि ठन्डे दिल से सोचें अपनी और अपने भाईयों में इस्लाह की कोशिश करें।_*
_अल्लाह तआला प्यारे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के सदके व तुफ़ैल तौफीक बख्शे।_
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,144 145 146*
POST 137】क्या दरख्तों और ताकों में शहीद मर्द रहते हैं।*
_कुछ लोग कहते हैं कि फलां दरख्त पर शहीद मर्द रहते हैं। या फलां ताक में शहीद मर्द रहते हैं और उस दरख्त और उस ताक के पास जाकर फातिहा दिलाते हैं हार फूल खुशबू वगैरा डालते हैं लोबान अगरबत्ती सुलगाते हैं और वहाँ मुरादें मांगते हैं। यह सब खिलाफ शरअ और गलत बातें है। जो बर बिनाए जहालत अवाम मे राइज हो गई हैं इनको दूर करना निहायत ज़रूरी है। हक यह है कि ताकों, महराबों, दरख्तों वगैरा पर महबूबाने खुदा का क्रियाम करार देकर वहाँ हाज़िरी नियाज़, फातिहा, अगरबत्ती, मोमबत्ती जलाना, हार फूल डालना खुशबूयें मलना, घूमना, चाटना हरगिज़ जाइज़ नहीं।_
*_आलाहज़रत रदियल्लाहु तआला अन्हु इन बातों के मुतअल्लिक फरमाते हैं_*
_‘यह सब वाहियात व खुराफात और जाहिलाना हिमाक़ात व व बतलात हैं इनका इज़ाला लाज़िम है।"_
📕 *(अहकामे शरीअत, हिस्सा अव्वल, सफहा 32)*
*_आजकल कुछ लोग इन हरकतों से रोकने वालों को वहाबी कह देते हैं हालांकि किसी मुसलमान को वहाबी कहने में जल्दी नहीं करना चाहिए जब तक कि उसके अकाइद की खूब तहकीक न हो जाए और ख़िलाफ़ शरअ हरकतों और बिदअतों से रोकना तो अहले सुन्नत का ही काम है वहाबी तो उसको कहते हैं जो अल्लाह तआला और उसके महबूब हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम के और बुज़ुर्गाने दीन की शान में गुस्ताख़ी व बेअदबी करता हो या जानकर गुस्ताख़ों की तहरीक में शामिल हो उनको अच्छा जानता हो। वहाबी किसे कहते हैं इसको तफ़सील के साथ मैंने अपनी किताब"दरमियानी उम्मत’ में लिख दिया है यह किताब उर्दू और हिन्दी में अलग अलग छप चुकी है हासिल करके मुतालआ कर लिया जाए।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,147*
POST 138】कुछ गलत नामों की निशानदेही*
*_कुछ लोग अपने बच्चों के नाम, अहमद नबी, मुहम्मद नबी, रसूल अहमद,नबी अहमद रख देते हैं, यह ग़लत है इसके बजाय गुलाम मुहम्मद या गुलाम रसूल या गुलाम नबी कर लें या मुहम्मद नबी और अहमद नबी में नबी के आगे ‘ह’ बढ़ा कर मुहम्मद नबीह या अहमद नबीह कर लें।_*
_गफूरुद्दीन नाम रखना भी गलत है क्यूंकि गफूर के मअना मिटा देने वाले के हैं लिहाज़ा गफूरुद्दीन के माअना हुए ‘दीन को मिटाने वाला’। लाहौला वला .कुव्वता इल्ला बिल्लाह। अल्लाह जल्ला शानुहू का नाम गफूर इसलिए है कि वह गुनाहों को मिटाता है, नाम रखने से मुताल्लिक क्या जाइज़ है और क्या नाजाइज़ इसको तफसील से जानने के लिए आलाहजरत मौलाना शाह इमाम अहमद रज़ा खां अलैहिर्रहमतो वर्रिदवान की तसनीफ मुबारक अहकामे शरीअत में सफा 72 से सफा 98 तक का मुतालआ करना चाहिए।_
📍 *नोट◆- कुछ लोगों के नाम इस किस्म के होते हैं जिनमें अल्लाह तआला के मखसूस नामों के साथ ‘अब्द' लगा होता है जैसे अब्दुल्लाह, अब्दुर्रहमान,अब्दुर्रज्जाक, अब्दुल खालिक वगैरहा तो इन नाम वालों को बगैर ‘अब्द’ लगाये खाली रहमान, रज्जाक या ख़ालिक हरगिज़ नहीं कहना चाहिए और यह इस्लाम में बहुत बुरी बात है जिसका ध्यान करना निहायत ज़रूरी है। वलइयाज़ुबिल्लाहि तआला।*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,148*
POST 139】मख़लूके खुदा को सताना और दुआ तावीज़ कराना*
*_आज कितने ही लोग हैं जो लोगों पर ज़ुल्म व ज़्यादती करते हैं और फिर पीरों, फकीरों के यहाँ दुआ तावीज़ात कराते हैं और मज़ारों पर मुरादें मांगते घूमते हैं और मस्जिदों में जाकर लम्बी लम्बी दुआयें मांगते हैं।_*
_कितने शौहर हैं जो बीवियों पर जुल्म ढाते और उनका ख्याल नहीं रखते उन्हें बान्दियों और नौकरानियों से बदतर ज़िन्दगी गुजारने पर मजबूर कर देते हैं न उन्हें तलाक देते हैं और न उनका हक़ अदा करते हैं।_
*_कितनी बीवियां हैं जो अपने शौहरों का खून पीती उनके लिए घरों को जहन्नम का नमूना बना देती हैं। सासों और नन्दों के साए से जलती हैं, कितनी सास और नन्दें हैं जो अपने घरों में आने वाली दुल्हनों के लिए जीना मुश्किल कर देती हैं शौहर बीवी के दरमियान महब्बत उन्हें कांटों की तरह खटकती और कलेजे में चुभती है।_*
_कितने अमीर कबीर रईस ज़मीदार व मालदार लोग हैं जो मज़दूरों का गला घोंटते, नौकरों को मारते पीटते, झिड़कते उनकी मज़दूरियां और तनख्वाहें रोकते और खुद ऐश करते और उनके घर वाले बीवी बच्चों की बददुआयें लेते हैं। कितने ही लोग वह हैं जो जानवरों को पालते हैं लेकिन उनकी भूक, प्यास, जाड़े, गर्मी की परवाह नहीं करते उन्हें बेरहमी से मारते पीटते हैं उनकी ताकत से ज़्यादा उनसे काम लेते और बोझ लादते हैं। खास कर जिबह का पेशा करने वाले जिबह करने से पहले उन्हें भूका प्यासा रखते हैं और उन पर ऐसे ऐसे ज़ुल्म करते हैं कि जिन्हें देखा नहीं जा सकता।_
*_खुलासा यह कि कोई भी ज़ालिम अत्याचारी वे रहम हो जो अपने ऐश व आराम और मालदारी की खातिर दूसरों को सताता और उनका खून पीता है उसकी न खुद अपनी दुआ कबूल होती है न उसके हक में दूसरों की। यह मर्द हों या औरतें, यह शौहर हों या बीवियां, यह सासें और नन्दें हों या बहुएं और भावजें, यह मालदार और ज़मीदार हों या हुक्काम व अधिकारी। अगर यह ज़ालिम व बेरहम और अत्याचारी हैं तो उन्हें चाहिए कि यह लम्बी लम्बी दुआयें मांगने, पीरों फकीरों और मज़ारात पर चक्कर लगाने और दुआ तावीज़ कराने से पहले जिसको सताया है उससे माफ़ी मांग लें जिसका हक दबाया है। वह उसे लौटा दें और ज़ुल्म व ज़्यादती व बेरहमी की आदत छोड़ दें फिर आयें ये मस्जिदों में दुआओं के लिए और खानकाहों में मुरादें मांगने और मियां और मौलवियों के पास गन्डे तावीज़ कराने के लिए। जिसने किसी गरीब, कमज़ोर को सताया है और जिसके पीछे किसी मज़लूम की बददुआ लगी है उसके लिए न कोई दुआ है न तावीज़ ।_*
📖 _हदीस में है कि फ़रमाया रसुलुल्लाह (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) ने "अल्लाह तआला" उस पर रहम नहीं फरमाता जो लोगों पर रहम नहीं करता। *''और फरमाते हैं।*_
_मज़लूम की बददुआ से बचों वह अल्लाह तआला से अपना हक़ मांगता है और खुदाए तआला हक़ वाले को उसका हक़ अता फरमाता है।_
📕 *(मिश्कात सफहा 435)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,149 150*
POST 140】पढ़ने पढ़ाने से मुतअल्लिक़ कुछ गलतफ़हमियाँ*
*_आजकल कसरत से मुसलमान अपने बच्चों को ईसाईयों और बुत परस्तों मुश्रिकों के स्कूलों ,पाठशालाओं में पढ़ने भेज रहे हैं जबकि मुसलमानों को चाहिए कि वह हिन्दी,।अंग्रेज़ी,हिसाब व साइंस वगैरा की अदना (छोटी) व आला।(बड़ी) तालीम के लिए भी अपने स्कूल खोलें जिनमें दुनियवी तालीम के साथ साथ ज़रूरत के लाइक दीनी।तालीम भी हो या दीनी इस्लामी उलूम के साथ साथ ज़रूरत के लाइक दुनियवी उलूम भी पढ़ाये जायें और तालीम अगरचे दुनियवी भी हो लेकिन माहौल व तहज़ीब इस्लामी हो और गवर्नमेंट से मन्ज़ूरशुदा निसाब की किताबें भी पढ़ाई जायें लेकिन उनमें अगर कहीं कोई बात ऐसी हो जो इस्लामी नज़रियात के ख़िलाफ़ हों तो पढ़ाने वाले उस पर तम्बीह करके बच्चों के ईमान व अक़ीदे को बचायें क्यूंकि ईमान हर दौलत से बड़ी दौलत है।_*
_मगर अफ़सोस कि मुसलमानों में भी हर किस्म के लोग।मौजूद हैं, दौलतमन्दों और अमीरों की तादाद भी काफी है, अगर चाहते तो आसानी से दुनियवी तालीम के लिए भी अपने स्कूल खोल देते मगर वहाँ तो ईसाईयत और मुशरिकाना तहज़ीब का नशा सवार है। ख्याल रहे कि वक़्त अब करीब आता मालूम हो रहा है और यह नशे जल्दी ही उतर जायेंगे। अस्ल बात यह कि जिस कौम के दिन पूरे हो चुके हों, उसे कोई समझा नहीं सकता। अभी जल्दी ही एक इस्लामी मुल्क इराक में अमरीकी ईसाईयों ने कब्ज़ा कर लिया और यह इसलिए हुआ कि वहाँ के लोगों ने ईसाई तहज़ीब और कल्चर को अपना लिया था और मुसलमान जिस कौम की तहज़ीब अपनाता है, उस कौम को उस पर हाकिम बना दिया जाता है।_
*_इराकी मुसलमान गले में टाई बांधने लगे थे, इनके मर्दों औरतों ने इस्लामी लिबास छोड़कर ईसाइयों और अंग्रेजों का लिबास पहनना शुरू कर दिया था, शराब आम हो गई थी, नमाज़ रोज़ा बराए नाम रह गया था। आज लोग चीख रहे हैं कि इराक से इस्लामी हुकूमत चली गई लेकिन भाईयों चीखने से क्या फ़ायदा सही बात यह है कि पहले इस्लाम गया है, हुकूमत बाद में। अमरीकी फ़ौजें बहुत बाद में आई हैं, अमरीकी तहज़ीब पहले आ गई है।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,151 152*
POST 141】क़ुरआने करीम हिफ़्ज़ करने से मुतअल्लिक़ कुछ ज़रूरी बातें*
*_बगैर मआनी व मतलब समझे हुए सिर्फ कुरआने करीम को ज़बानी याद कर लेना यह एक फज़ीलत व बरतरी की बात है। लेकिन सिर्फ इसे ही इल्म नहीं कहा जा सकता। लिहाज़ा बच्चों को पूरा कुरआने करीम हिफ्ज़ कराने के बजाय उनको दीनी उलूम अक़ाइदे इस्लामिया और फ़िक़्ह के मसाइल सिखाये जायें तो ये ज़्यादा बेहतर है।_*
_हज़रत सदरुश्शरीअत मौलाना अमजद अली साहब अलैहिर्रहमा फरमाते हैं- *"कुछ कुरआन मजीद याद कर चुका है और उसे फुरसत है तो अफ़ज़ल यह है कि इल्मे फ़िक़्ह सीखे कि कुरआन मजीद हिफ्ज़ करना फ़र्ज़े किफ़ाया है और फ़िक्ह की ज़रूरी बातों का जानना फ़र्ज़े ऐन है।"*_
📗 *_(बहारे शरीअत ,हिस्सा 16, सफ़ा 233)_*
📍 *_नोट : फ़र्ज़े किफ़ाया वह फर्ज़ है कि शहर का एक भी मुसलमान कर ले तो सब पर से फर्ज़ उतर गया और अगर सबने छोड़ दिया तो सब गुनहगार हुए।_*
_खुलासा यह कि हर शहर और इलाके में कुछ न कुछ हाफिज़ होना भी ज़रूरी है क्यूंकि इसके ज़रिये कुरआन के अल्फ़ाज़ की हिफाज़त है लेकिन इसके साथ साथ हमारी राय यह है कि जो बच्चे ज़हीन और याददाश्त के पक्के हों उन्हें अगर कम उम्री में हिफ्ज़ कराया जा सकता है तो करा दिया जाये वरना 15 , 15 और 20 , 20 साल की उम्र तक का सारा वक़्त कुरआने करीम हिफ्ज़ कराने में खर्च करा देना ज़्यादा बेहतर नहीं है।_
*क्यूंकि आजकल उमूमन गरीबों और मुफ्लिसों के बच्चे दीनी मदारिस में आते हैं। उन्हें इस लाइक कर देना भी ज़रूरी है कि रोज़ी कमाने पर क़ादिर हों और दीनी और ज़रूरत के लाइक दुनियवी उलूम भी हासिल किये हुए हों जिन्हें पढ़ा लिखा कहा जा सके।*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,152 153*
POST 142】क्या मछली और अरहर की दाल पर फ़ातिहा नहीं होगी*
*_हमारे कुछ अवाम भाई अपनी नावाकिफ़ी की वजह से यह ख्याल करते हैं कि मछली और अरहर की दाल पर फातिहा नहीं पढ़ना चाहिए हालांकि यह उनकी गलतफहमी है । इस्लाम में जिस चीज़ को खाना हलाल और जाइज़ है तो उस पर फ़ातिहा भी पढ़ी जा सकती है। लिहाज़ा अरहर की दाल और मछली चूंकि इनका खाना हलाल व जाइज़ है तो उन पर फातिहा पढ़ने में हरगिज़ कोई बुराई नहीं हैं, बल्कि मछली तो निहायत उम्दा और महबूब गिज़ा है।_*
*जैसा कि हदीस में आया है कि जन्नत में अहले जन्नत को पहली गिज़ा मछली ही मिलेगी और जो खाना जितना उम्दा और लज़ीज़ होगा फातिहा में भी उसकी फज़ीलत ज़्यादा होगी।*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,153*
POST 143】सुअर के नाम लेने को बुरा जानना*
*_मज़हबे इस्लाम में सुअर खाना हराम है और उसका गोश्त पोस्त, खूनहड्डी, बाल, पसीना, थूक वगैरा पूरा बदन और उससे ख़ारिज होने वाली हर चीज नापाक है और इस मअना कर सुअर से नफरत करना ईमान की पहचान और मोमिन की शान है, लेकिन कुछ लोग जिहालत की वजह से इसका नाम भी जबान से निकालने को बुरा जानते हैं। यहाँ तक कि बाज़ निरे अनपढ़ गंवार यह तक कह देते हैं कि जिसने अपने मुंह से सुअर का नाम लिया चालीस दिन तक उसकी जबान नापाक रहती है। जहालत यहाँ तक बढ़ चुकी है कि एक मरतबा एक गाँव में इमाम साहब ने मस्जिद में तकरीर के वक़्त यह कह दिया कि शराब पीना ऐसा है जैसे सुअर खाना, तो लोगों ने इस पर खूब हंगामा किया कि इन्होंने मस्जिद में सुअर का नाम क्यूँ लिया यहाँ तक कि इस जुर्म में बेचारे इमाम साहब का हिसाब कर दिया गया।_*
_भाईयो! किसी बुरी से बुरी चीज़ का भी बुराई के साथ नाम लेना बुरा नहीं है। हाँ अगर कोई किसी बुरी चीज़ को अच्छा कहे हराम को हलाल कहे तो यह यकीनन गलत है बल्कि बुरी चीज़ की बुराई बगैर नाम लिए हो भी नहीं सकती। *शैतान, इबलीस ,फ़िरऔन,हामान, अबूलहब और अबूजहल का नाम भी तो लिया जाता है।* ये हों या और दूसरे खुदाए तआला व रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के दुश्मन वह सबके सब सुअर से बदरजहा बदतर हैं, बल्कि।इब्लीस,फिरऔन,हामान और अबूलहब का नाम तो कुरआन में भी है और हर कुरआन पढ़ने वाला नाम लेता।_
_खुदाए तआला और उसके महबूब सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के जितने दुश्मन हैं और उनकी बारगाहों में गुस्ताख़ी और बेअदबी करने वाले हैं, ये सब सुअर से कहीं ज़्यादा बुरे हैं। ये सब जहन्नम में जायेंगे और जानवर कोई भी हो हराम हो हलाल हो वह हरगिज़ जहन्नम में नहीं जायेगा बल्कि हिसाब व किताब के बाद फ़ना कर दिये जायेंगे।_
*_खुलासा यह है कि सुअर का नाम लेकर उसके बारे में हुक्मे शरअ से आगाह करना हरगिज़ कोई बुरा काम नहीं, ख्वाह मस्जिद में हो या गैरे मस्जिद में, वाज़ व तकरीर में हो या गुफ्तगू में। आख़िर कुरआन में भी तो उसका नाम कई जगह आया है,क्यूंकि अरबी में जिसको खिन्ज़ीर कहते हैं उसी को हिन्दुस्तान वाले सुअर कहते हैं, तो अगर नमाज़ में वही आयतें तिलावत की गई जिनमें सुअर के हराम फरमाने का ज़िक्र है तो उसका नाम नमाज़ में आयेगा और मस्जिद में भी ।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,154 155*
POST 144】क्या जो इस्लामी बातों की जानकरी न होने की वजह से अमल नही करते उनकी पकड़ न होगी?*
*_आजकल काफी लोग ऐसे हैं जो दीनी बातों, इस्लामी अकीदों, पाकी, नापाकी, नमाज़ व रोज़ा और ज़कात वगैरहा के मसाइल नहीं जानते और सीखने की कोशिश भी नहीं करते और खुदा तआला व रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने किस बात को हराम फरमाया और किसे हलाल किसे जाइज़ और किसे नाजाइज़ उन्हें इसका इल्म नहीं और न इल्म सीखने की परवाह ,और खिलाफ़े शरअ हरकतें करते हैं। गलत सलत नमाज़ अदा करते हैं, लेन देन ख़रीद व फरोख्त और रहन सहन में मज़हबे इस्लाम के ख़िलाफ़ चलते हैं और उनसे कोई कुछ कहे या उन्हें गलत बात से रोके ख़िलाफ़ शरअ पर टोके तो वो कहते हैं, हम जानते ही नहीं हैं लिहाज़ा हम से कोई मुआखज़ा और सुवाल न होगा और हम बरोज़े कियामत दिये जायेंगे।_*
_यह उन लोगों की सख्त गलतफहमी है, सही बात यह है कि अन्जान गलतकारों की डबल सजा होगी, एक इल्म हासिल न करने की और उलमा से न पूछने की और दूसरे गलत काम करने की। और जो जानते हैं लेकिन अमल नहीं करते उन्हें एक ही अजाब होगा यअनी अमल न करने का , इल्म न सीखने का गुनाह उन पर न होगा।_
*आजकल आदमी अगर कोई सामान गाड़ियाँ, कपड़े ज़ेवरात खाने पीने की चीज़ खरीदे और उसको उस चीज़ के गलत व ख़राब या उसमें धोखेबाज़ी का शुबह हो जाये तो जॉच परख करायेगा, लोगों से मशवरा करेगा, जानकारों को लाकर दिखायेगा, खूब छान फटक करेगा लेकिन इस्लाम के मुआमले में मनमानी करता रहेगा, उल्टी सीधी नमाज़ पढ़ता रहेगा। वुज़ू व , नहाने धोने में इस्लामी तरीके का ख्याल नहीं रखेगा, लेन देन और मुआमलात में हराम को हलाल और हलाल को हराम समझाता रहेगा लेकिन आलिम मौलवियों से मालूम नहीं करेगा कि मैं जो करता हूँ यह गलत है या सही?*
_यह इसलिए हुआ कि अब इन्सान को दुनिया के नुकसान की तो फिक्र है लेकिन आख़िरत के घाटे की कोई फिक्र नहीं हालाँकि वह मौत से किसी सूरत बच न सकेगा और कब्र व जहन्नम के अज़ाब से भाग निकलना उसके बस की बात न होगी।_
*दुनियवी हुकूमतों और सल्तनतों की ही मिसाल ले लीजिए अगर कोई शख्स किसी हुकूमत के किसी कानून के खिलाफ वर्ज़ी करे और फिर कह दे कि मैं जानता ही नहीं हैं तो हुक्काम और पुलिस उसकी बात नहीं सुनेंगे और उसे सज़ा दी जायेगी। मिसाल के तौर पर कोई शख्स बगैर लाइसेंस के ड्राइवरी करे या बगैर रोड टैक्स जमा करे गाड़ियाँ और मोटर चलाये और जब पकड़ा जाये तो कहे मुझको पता नहीं था कि गाड़ी चलाने के लिए ये काम करना पड़ते हैं, तो हरगिज़ उसकी बात नहीं सुनी जायेगी। ऐसे ही कोई शख्स बगैर टिकट के रेल में सफर करने लगे या पैसेन्जर का टिकट ले और एक्सप्रेस में सफर करने लगे, सेकेन्ड क्लास का टिकट लेकर फर्स्ट क्लास में बैठ जाये और जब पकड़ा जाये तो कह दे कि मैं जानता ही नहीं रेल में सफर के लिए टिकट लेना पड़ता है या यह एक्सप्रेस है*
*_मैं नहीं पहचान सका और यह फर्स्ट क्लास है मुझको नहीं मालूम तो क्या चेक करने वाले उसको छोड़ देंगे? हरगिज़ नहीं। ऐसे ही दीन के मामले में जो लोग ग़लत सलत करते हैं वो भी यह कहने से नहीं छूटेंगे कि हम जानते ही न थे और कियामत के दिन उन्हें दुहरी सज़ा होगी, एक न जानने की और दूसरी न करने की। इन सबकी तफसील व तहकीक के लिए देखिए आलाहज़रत अलैहिर्रहमा के फरमूदात अलमलफूज़ हिस्सा अव्वल सफ़ा 27 पर। इस सिलसिले में जो लोग कोई दीनी इस्लामी मालूमात हासिल करना चाहें वह हमसे खत व किताबत के ज़रिये राब्ता कर सकते हैं हमें जो मालूमात होगी, हम उन्हें बता देंगे। हमारा पता किताब के टाइटिल पर है।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,155 156 157
POST 145】घर वालों को तंगी और परेशानी में छोड़ कर नफ़्ल इबादत करना*
*_कुछ लोगों को देखा गया है कि वह इबादत व रियाज़त में लगे रहते हैं। इशराक,चाश्त,अव्वाबीन तहज्जुद की नमाज़ों को अदा करते, तस्बीह व वज़ीफे पढ़ते हैं और उनके बीवी बच्चे या बूढ़े और मुफलिस माँ बाप रोटी के टुकड़ों के लिए मुहताज और तेरा मेरा मुँह देखते नज़र आते हैं। यह ऐसे लोगों की भूल है और वह नहीं जानते बन्दगाने खुदा में से हक वालों के हक अदा करना भी खुदाए तआला की इबादत और उसकी खुशनूदी हासिल करने का ज़रीया है। नफ्ल इबादत में मशगूलियत अगर बीवी बच्चों और मुफलिस माँ बाप के ज़रूरी इख़राजात से रोकती हो तो पहले बीवी बच्चों की किफ़ालत करे फिर वक़्त पाये तो नवाफिल में मशगूल हो। अलबत्ता पाँचों वक़्त की फ़र्ज़ नमाज़ हरगिज़ किसी सूरत माफ नहीं, उसकी अदाएगी हर हाल हर एक पर निहायत लाज़िम व ज़रूरी है, ख़्वाह कैसे भी करे और कुछ भी करे।_*
_और आजकल इस दौर में अगर कोई शख्स सिर्फ फ़र्ज़ नमाजों को पाबन्दी के साथ बाजमाअत अदा करता हो, रमज़ान के रोज़े रखता हो अगर ज़कात फ़र्ज़ हो तो ज़कात निकालता हो, हज फर्ज़ हुआ हो तो ज़िन्दगी में सिर्फ एक बार हज कर चुका हो, और हराम काम मसलन शराब, जुआ, चोरी, ज़िनाकारी ,सूदखोरी, गीबत व बदकारी खयानत व बदअहदी, सिनेमा, गाने बाजे और तमाशों वगैरह से बचता हो और हत्तल इमकान यानी जहाँ तक हो सके सुन्नतों का पाबन्द हो और इसके साथ साथ जाइज़ पेशे के ज़रीए बीवी बच्चों की किफालत करता हो और ईमान व अकीदा दुरुस्त रहे तो यकीनन वह अल्लाह वाला है,अल्लाह तआला का प्यारा है और वह अल्लाह तआला का मुकद्दस नेक बन्दा है। ख्वाह वह नफ्ल नमाज़े और नफ़ली इबादत अदा न कर पाता हो, वज़ीफ़े और तस्वीह, इशराक व चाश्त व अवाबीन वगैरह में मशगूल न रहता हो।_
📖 _*हदीस पाक में है* रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया- :" *फ़र्ज़ इबादत के बाद हलाल रोज़ी की तलाश फ़र्ज़ है।"*_
📕 *(मिश्कात शरीफ़ सफ़ा 242)*
*और फरमाते हैं :-"सबसे ज्यादा उम्दा व अफज़ल वह माल है जो तुम अपने घर वालों पर खर्च करो।"*
📘 *_(मिश्कात सफा 170)_*
_सदरुश्शरिया हज़रत मौलाना अमजद अली अलैहिर्रहमह फरमाते हैं, 'इतना कमाना फर्ज़ है जो अपने लिए और अहल व अयाल के लिए और जिन का नफ़का उसके ज़िम्मे वाजिब है, उनके नफ़के के लिए और कर्ज़ अदा करने के लिए किफायत कर सके।"_
📗 *_(बहारे शरीअत हिस्सा 16 सफ़ा 218)_*
*और फरमाते हैं, "क़दरे किफायत से ज़्यादा इसलिए कमाता है कि फुकरा व मसाकीन की ख़बरगीरी कर सके या करीबी रिश्तेदारों की मदद करे तो यह मुसतहब है और यह नपल इबादत से अफ़ज़ल है।”*
📗 *_(बहारे शरीअत हिस्सा 16 सफ़ा 218)_*
_फिर फरमाते हैं जो लोग मसाजिद और खानकाहों में बैठ जाते हैं और बसर औकात (गुज़ारे) के लिए कुछ काम नहीं करते और खुद को मुतवक्किल बताते हैं हालांकि उनकी निगाहें इसकी।मुन्तज़िर रहती हैं कि कोई हमें कुछ दे जाये,वह मुतवक्किल नहीं। इससे बेहतर यह था कि वह कुछ काम करते और उससे बसर औकात यअनी गुजारा करते।_
*_इसी तरह आजकल बहुत से लोगों ने पीरी, मुरीदी को पेशा बना लिया है। सालाना मुरीदों में दौरा करते हैं और मुरीदों से तरह तरह की रकमें खसोटते हैं और उनमें कुछ ऐसे हैं कि झूट फ़रेब से भी काम लेते हैं, यह नाजइज़ है।_*
📗 *(बहारे शरीअत हिस्सा 16 सफ़ा 218)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,157 158 159*
POST 146】क्या औरतों को जानवर ज़ुबह करना नाजाइज़ है*
_औरत भी जानवर ज़ुबह(ज़िबह) कर सकती है और उसके हाथ का ज़ुबह किया हुआ जानवर हलाल है। मर्द और औरत सब उसे खा सकते हैं। *मिश्कात शरीफ़ किताबुस्सैद वलज़िबाह सफ़ा 357 पर बुख़ारी शरीफ के हवाले से इसके जाइज़ होने की साफ़ हदीस मौजूद है* जिसमें यह है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने एक लड़की के हाथ की जुबह की हुई बकरी का गोश्त खाने की इजाज़त दी।_
_मजीद तफसील के लिए देखिए सय्यिदी मुफ्ती आज़म हिन्द अलैहिर्रहमह का फतावा मस्तफ़विया जिल्द सोम सफ़ा 153 और फतावा रज़विया जिल्द 8 सफ़ा 328 और सफ़ा 332, -- खुलासा यह कि औरतों के लिए भी मर्दों की तरह हलाल जानवरों और परिन्दों को ज़ुबह करना जाइज़ है जो इसे ग़लत कहे वह खुद गलत और निरा जाहिल बल्कि शरीअत पर इफ्त्तिरा करने वाला है।_
*_समझदार बच्चे का जुबह किया हुआ जानवर भी हलाल है। और मुसलमान अगर बदकार और हरामकार हो तो ज़बीहा उसका भी जाइज़ है, नमाज़, रोज़े का पाबन्द न हो, उसके हाथ का भी ज़ुबह किया हुआ जानवर हलाल है। हाँ नमाज़ छोड़ना और हराम काम करना इस्लाम में बहुत बुरा है।_*
_दुर्रेमुख्तार में है:-ज़िबह करने वाले के लिए मुसलमान और आसमानी किताबों पर ईमान रखने वाला होना काफी है अगरचे औरत ही हो।_
📕 *(दुर्रेमुख्तार, किताबुज़्ज़बाएह , जिल्द 2,सफहा,228,मतबअ मुजतबाई)*
_आलाहज़रत मौलाना शाह अहमद रजा खाँ अलैहिर्रहमह।फरमाते हैं।:-जुबह के लिए दीने समावी (आसमानी दीन) शर्त है, आमाल शर्त नहीं।_
📗 *(फतावा रज़विया, जिल्द 8 सफ़ा 333)*
*_हाँ जो लोग काफ़िर गैर मुस्लिम हों या उनके अक़ीदे की ख़राबी या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताखी की वजह से उन्हें इस्लाम से ख़ारिज व मुरतद क़रार दिया गया है उनके का ज़बीहा हराम व मुरदार है।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,160 161*
POST 147】औरत का नामहरम मनिहारों के हाथ से चूड़ियाँ पहनना*
_यह हरामकारी काफी राइज है। औरतों को मनिहारों के हाथों में हाथ देकर चूड़ियाँ पहनना सख्त हराम है। बल्कि इसमें दो हराम हैं, एक गैर मर्द को हाथ दिखाना और दूसरा उसके हाथ में हाथ देना।_
*_हमारी इस्लामी माँ बहनों को चाहिए कि अल्लाह तआला से डरें, उसके अज़ाब से बचें और इस फ़ेले हराम को फौरन छोड़ दें। बाज़ार से चूड़ियाँ ख़रीद लिया करें और घर में या तो औरतें एक दूसरे को पहना दें या घर वालों में से किसी महरम से पहन लें या शौहर अपनी बीवी को पहना दें तो गुनाह से बच जायेंगी।_*
_जो मर्द अपनी औरतों को मनिहारों से चूड़ियाँ पहनवाते हैं। या उससे मना नहीं करते वह बहुत बड़े बेगैरत और दयूस हैं।_
*_सय्यिदी आलाहज़रत अलैहिर्रहमह इस मसअले के मुताल्लिक फरमाते हैं : -हराम हराम हराम हाथ दिखाना गैर मर्द को हराम, उसके हाथ में हाथ देना हराम ,जो मर्द अपनी औरतों के साथ उसे रवा रखते हैं दय्यूस हैं।_*
📚 *(फतावा रज़विया जिल्द 10 निस्फ़ आख़िर सफ़ा 208)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,161*
POST 148】मर्द और औरतों का एक दूसरे की मुशाबहत करना*
_आजकल मर्दों में औरतों की और औरतों में मर्दों की मुशाबहत इख्तियार करने और उनके अन्दा व लिबास व चाल ढाल अपनाने का मर्ज़ पैदा हो गया है हालाँकि हदीसे पाक में ऐसे लोगों पर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने लानत फ़रमाई है जो मर्द होकर औरतों की और औरत होकर मर्दों की वज़अ क़तअ अपनायें।_
*_एक हदीस में है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि हमारे गिरोह से नहीं वह औरत जो मर्दाना रखरखाव अपनाये और वह मर्द जो जनाना ढंग इख्तियार करे।_*
_अबू दाऊद की हदीस में है कि एक औरत के बारे में सय्यिदा आइशा सिद्दीक़ा रदियल्लाहु तआला अन्हा को बताया गया कि वह मर्दाना जूता पहनती है तो उन्होंने फरमाया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मर्दानी औरतों पर लानत फ़रमाई है।_
*_खुलासा यह है कि जो वज़अ क़तअ रखरखाव लिबास वगैरह मर्दों के साथ खास हों उनको औरतें न अपनायें और जो औरतों के साथ ख़ास हो उसको मर्द न अपनायें।_*
_आजकल कुछ औरतें मर्दों की तरह बाल कटवाने लगी हैं यह उनके लिए हराम है और यह मरने के बाद सख़्त अजाब पायेंगी।_
*_ऐसे ही कुछ मर्द औरतों की तरह बाल बढ़ाते हैं सूफी बनने के लिए लम्बी लम्बी लटें रखते हैं, चोटियाँ गूँधते और जूड़े बना लेते हैं, ये सब नाजाइज़ व ख़िलाफ़ शरअ है। तसव्वुफ और फकीरी बाल बढ़ाने और रंगे कपड़े पहनने का नाम नहीं बल्कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की सच्ची पैरवी करना और ख्वाहिशाते नफ़्सानी को मारने का नाम है।_*
📚 *(बहारे शरीअत हिस्सा 16 सफ़ा 198)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,162*
POST 149】अक़ीके का गोश्त दादा दादी और नाना नानी के लिए नाजाइज़ समझना*
*_कुछ लोग अकीके का गोश्त दादा दादी और नाना नानी के लिए खाने को नाजाइज़ ख्याल करते हैं यह बहुत बड़ी जहालत नादानी और गलतफहमी है। अकीके का गोश्त दादा दादी और नाना नानी के लिए खाना बिला शुबा जाइज़ है बल्कि जहाँ इस खाने को बुरा जानते हों वहाँ उनके लिए खाना ज़रूरी है। और वह खायेंगे तो रिवाज़ मिटाने का सवाब पायेंगे।_*
_आलाहजरत इमामे अहले सुन्नत मौलाना अहमद रजा खाँ साहब अलैहिर्रहमतु वर्रिदवान से इस बारे पूछा गया तो फ़रमाया:-सब खा सकते हैं, उकूदुददरिया में है :_
* ﺍﺣﻜﺎﻣﻬﺎ ﺍﺣﻜﺎﻡ ﺍﻻ ﺿﺤﻴﺔ *
📗 *(अलमलफूज़ हिस्सा अव्वल सफ़ा 46)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,163*
POST 150】नस्ब और बिरादरी बदलना*
*_यह बीमारी भी काफ़ी आम हो गई है कि हैं किसी कौम और बिरादरी के और खुद को दूसरी कौम व बिरादरी का ज़ाहिर कर रहे हैं और चाहते हैं कि इस जरीए से बरतरीफज़ीलत और इज़्ज़त हासिल होगी हालांकि ऐसा करने से न इज़्ज़त मिलती है न फ़ज़ीलत। इज़्ज़त व जिल्लत तो अल्लाह तआला के दस्ते कुदरत में है जिसे जो चाहता है अता फरमाता है। ये अपना नस्ब बदलने वाले बहुत बड़े बेवकूफ, अहमक, जाहिल, बेगैरत व बेशर्म हैं।_*
📖 _*हदीस शरीफ में है* कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो जानते हुए अपने बाप के सिवा दूसरे को अपना बाप बताये, उस पर जन्नत हराम है।_
📗 *(सहीह बुख़ारी जिल्द 2 सफ़ा 1001, सहीह मुस्लिम ,जिल्द 1 सफा 442)*
*और एक दूसरी हदीस में अपना नस्ब बदलने वाले और अपने बाप के अलावा किसी दूसरे को बाप बताने वालों के बारे में हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि उन पर अल्लाह तआला और फ़िरिश्तों और सारे लोगों की लानत है।*
📕 *_(सहीह मुस्लिम, जिल्द 1, सफ़ा 495)_*
_आजकल खुद को सय्यिद कहलाने और आले रसूल बनने का शौक बहुत ज़ोर पकड़ गया है। देखते ही देखते हज़ारों लाखों जो सय्यिद नहीं थे वह सय्यिद बन गये जिसकी वजह से अब सय्यिदों का इहतिराम भी मुश्किल होता जा रहा है क्यूंकि नकली सय्यिदों की भरमार है। खुद मेरी मालूमात में ऐसे काफ़ी लोग हैं। जो अब तक कुछ और थे और अब चालीस और पचास की उम्र में वह सय्यिद और।आले रसूल बन गये। ये सब बहुत बड़े वाले मक्कार और धोकेबाज़, फरेबी और जालसाज हैं जिन पर खुदाए तआला की लानत है।_
*_मुरादाबाद शहर में अभी जल्द ही एक मौलवी ने 55 साल की उम्र में खुद को आले रसूल और सय्यिद कहलवाना शुरू कर दिया है और कहता है कि मेरे पीर ने मुझे सय्यिद बना दिया गोया।कि सियादत के साथ मज़ाक हो रहा है।_*
_और इसमें काफ़ी दख़ल हमारी कौम के बाज़ अफ़राद की इस बेजा अकीदत का भी है कि उनकी नज़र में इल्म व अमल तकवा व तहारत की कोई कद्र नहीं बस जो किसी बड़े का बाप बेटा है वही कुछ है। हालाँकि इस्लामी नुक़्तए नज़र से और तो और खुद सादाते किराम, जिनका इहतिराम व अदब ईमान की पहचान है। आलिमे दीन जो तफसीर व हदीस व फ़िह का इल्म काफ़ी रखता हो वह उन सादात से अफ़ज़ल है जो आलिम न हों।_
📖 *हदीस में है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया :-*
_"जिसका अमल उसे पीछे ढकेल दे, वह नस्ब से आगे नहीं बढ़ सकता।"_
📙 *(सहीह मुस्लिम ,जिल्द 2, सफ़ा 345)*
_आलाहज़रत इमाम अहले सुन्नत मौलाना अहमद रज़ा खाँ साहब अलैहिर्रहमह फरमाते हैं, फ़ज़्ले इल्म फज्ले नस्ब से अशरफ व आज़म है। सय्यिद साहब कि आलिम न हों अगरचे सालेह हों आलिम सुन्नी सहीहुल अक़ीदा के मरतबे को नहीं पहुँच सकते।_
📚 *(फतावा रजविया, जिल्द 9, सफ़ा 59)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,163 164 165*
POST 151】बैआना (एडवान्स) ज़ब्त करना*
_आजकल अक्सर ऐसा होता है कि एक शख्स किसी से कोई माल खरीदता है और बेचने वाले को कुछ रक़म पेशगी देता है। जिसको बैआना कहते हैं। फिर किसी वजह से वह माल लेने से इन्कार कर देता है तो बेचने वाला बैचने की रकम ख़रीदार को वापस नहीं करता बल्कि ज़ब्त कर लेता है और पहले से यह तय किया जाता है कि अगर सौदा न ख़रीदी तो बैआना जब्त कर लेंगे। यह बैआना ज़ब्त करना शरअ के मुताबिक मना है और यह बैआने की रकम इस तरह उसके लिए हलाल नहीं बल्कि हराम है।_
*_आलाहज़रत अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं:- बैआना आजकल तो यूँ होता है कि अगर खरीदार बाद बैआना देने के, न ले तो बैआना ज़ब्त, और यह कतअन हराम है।_*
📗 *(अलमलफूज़ हिस्सा 3, सफ़ा 27)*
_हाँ अगर बैअ तमाम हो ली थी और बिला किसी शरई वजह के ख़रीदार ख्वामख्वाह ख़रीदने से फिरता है तो बेचने वाले को हक हासिल है कि वह बैअ को लाज़िम जाने और माल उसके हवाले करे और कीमत उससे हासिल करे ख्वाह काज़ी व हाकिम या पंचायत वगैरह की मदद से लेकिन उसको माल न देना फिर उसकी रकम वापस न करना हराम है।_
*_आलाहज़रत अलैहिर्रहमा फरमाते हैं :-बैअ न होने की हालत में बैआना ज़ब्त कर लेना जैसा कि जाहिलों में रिवाज है ज़ुल्मे सरीह है (खुला हुआ ज़ुल्म है)_*
_*मजीद फरमाते हैं :-* यह कभी न होगा कि बैअ को फस्ख (रद्द) हो जाना मानकर मबीअ (सौदा) ज़ैद को न दे और उसके रुपये इस जुर्म में कि तू क्यूं फिर गया, ज़ब्त कर ले।_
📚 *(फ़तावा रज़विया, जिल्द 7, सफ़ा 7)*
*_भाईयो! हराम खाने से बचो सुकून व चैन जिसे अल्लाह तआला देता है उसे मिलता है दौलत और पैसे से नहीं। आपने बहुत से मालदारों को बेचैन व परेशान देखा होगा।और बहुत से गरीबों को चैन व सुकून में आराम से सोते देखा होगा और असली चैन की जगह तो जन्नत है।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,165 166*
POST 152】क़ुरआने करीम गिर जाये तो उसके बराबर तोल कर अनाज ख़ैरात करना*
*_क़ुरआने करीम अगर हाथ या अलमारी से गिर जाये तो कुछ लोग उसको तोल कर बराबर वज़न का आटा,चावल वगैरा खैरात करते हैं, और उस खैरात को उसका कफ्फारा ख्याल करते हैं, यह उनकी गलतफहमी है।_*
_क़ुरआने करीम जानबूझ कर गिरा देना या फेंक देना तो।बहुत ही ज़्यादा बुरा काम है। किसी भी मुसलमान से इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह ऐसा करेगा और जो।तौहीन व तहकीर के लिए ऐसा करेगा वह तो खुला काफ़िर है। तौबा करे फिर से कलिमा पढ़े, निकाह हो गया हो तो फिर से निकाह करे।_
*_लेकिन अगर धोके से भूल में कुरआन शरीफ़ हाथ से छूट गया या अलमारी वगैरह से गिर गया तो उस पर कोई गुनाह नहीं है। भूल चूक माफ है। लेकिन फिर भी अगर बतौरे।खैरात कुछ राहे खुदा में खर्च कर दे तो अच्छी बात है और निहायत मुनासिब व बेहतर है। लेकिन क़ुरआन शरीफ़ को तोलना और उसके वज़न के बराबर कोई चीज़ खैरात करना और उस ख़ैरात को कफ्फारा समझना नासमझी और।बेइल्मी है। कुरआने करीम को तोलने और वज़न के बराबर सदका करने का इस्लाम में कोई हुक्म नहीं है।कुरआन व हदीस और फ़िक़्ह की किताबों में कहीं ऐसा हुक्म नहीं आया है। हाँ सदका व खैरात एक उम्दा काम है। लिहाज़ा जो कुछ आप से हो सके थोड़ा या ज़्यादा राहे खुदा में खर्च कर दें, सवाब मिलेगा और नहीं किया तब भी गुनाह व अज़ाब नही।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,166 167*
POST 153】जानवरों को लड़ाना*
*_कुछ लोग तफरीह व तमाशे के लिए मुर्ग,बटेर, तीतर,हाथी, मेंढे और रीछों वगैरह को लड़ाते हैं। यह जानवरों को लड़ाना इस्लाम में हराम है। हदीस में है_*
_"रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने जानवरों को लड़ाने से मना फ़रमाया।"_
📙 *(जामेअ तिर्मिज़ी ,जिल्द 1, सफ़ा 204, सुनन अबू दाऊद जिल्द 1,सफा 346)*
*_और यह जानवरों को लड़ाना, उन पर जुल्म है। आपकी तो तफ़रीह हो रही है, और उनका लड़ते लड़ते काम हुआ जा रहा है। मज़हबे इस्लाम इसका रवादार नहीं। बेज़बानों पर ज़ुल्म व ज़्यादती से इस्लाम मना फ़रमाता है। कबूतरबाज़ी भी नाजाइज़ है।_*
*आलाहजरत फरमाते हैं।*
_"तमाशे के लिए कबूतरों को भूका उड़ाना, जब उतरना चाहें, उतरने न देना और दिन भर उड़ाना, ऐसा कबूतर पालना हराम है।_
📚 *(फतावा रज़विया, जिल्द 10 ,किस्त 1, सफ़ा 195)*
_और येतमाशे देखना, इनमें शिरकत करना भी नाजाइज़ है।_
📚 *(बहारे शरीअत ,हिस्सा 16,सफा 131)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,167*
POST 154】जानवरों से उनकी ताक़त से ज़्यादा काम लेना*
*_आजकल आमतौर से लोग इस बात का ख्याल नहीं रखते। जानवरों पर उनकी ताकत से ज्यादा बोझ लाद देना और मार मार कर उन्हें चलाना, ज़ुल्म है। यूँ ही उन बेज़ुबानों के चारा पानी और गर्मी व जाड़े की फिक्र न करना भी ज़ुल्म है। दूध देने वाले जानवरों का सारा दूध खींच लेना और फिर उसके बच्चे को दिन दिन भर के लिए भूका प्यासा रखना ज़ुल्म है। ऐसा करने वाले ज़ालिम हैं और ये ज़्यादा कमाई और आमदनी के लिए ये सब करते हैं। लेकिन कमाई के बाद भी ऐसे लोग परेशान रहते हैं और उन्हें ज़िन्दगी में सुकून मयस्सर नहीं आता और हमेशा बेचैन व परेशान रहते हैं।_*
_सदरुश्शरीआ हज़रत मौलाना अमजद अली साहब अलैहिर्रहमह फरमाते हैं:-_
*_जानवर से काम लेने में ज़रूरी है कि उसकी ताकत से ज़्यादा काम न लिया जाये। बाज़ यक्का और तांगे वाले इतनी ज़्यादा सवारियाँ बिठाते हैं कि घोड़ा मुसीबत में पड़ जाता है, यह नाजाइज़ है।_*
_जानवर पर जुल्म करना, ज़िम्मी काफ़िर पर जुल्म से ज़्यादा बुरा है और ज़िम्मी काफिर पर ज़ुल्म मुसलमान पर ज़ुल्म करने से भी ज़्यादा बुरा है। क्यूंकि जानवर का कोई मुईन व मददगार अल्लाह तआला के सिवा नहीं। इस गरीब को इस ज़ुल्म से कौन बचाये।_
📚 *(बहारे शरीअत ,हिस्सा 16 सफ़ा 285)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,168*
POST 155】क्या उल्लू कोई मनहूस परिन्दा है*
*_उल्लू एक परिन्दा है जिसको लोग मनहूस ख्याल करते हैं। हालाँकि इस्लामी नुक्तए नज़र से यह एक गलत बात है। उल्लू को मनहूस ख्याल करना एक जाहिलाना अकीदा है।_*
*सहीह बुख़ारी की हदीस में है :*
_"रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:-_
*_छुआछूत कोई चीज नहीं, उल्लू में कोई नहूसत नहीं और सफ़र (चेहलम) का महीना भी मनहूस नहीं।"_*
📗 *(मिश्कात बाब उल फाल वत्तैर सफा 391)*
_सदरुश्शरीआ हज़रत मौलाना अमजद अली साहब फरमाते हैं :-_
*_‘हाम्मह' से मुराद उल्लू है। जमानए जाहिलियत में अहले अरब इसके मुतअल्लिक किस्म किस्म के ख्यालात रखते थे और अब भी लोग इसको मनहूस समझते हैं। जो कुछ भी हो हदीस ने इसके मुतअल्लिक हिदायत की कि इसका एतिबार न किया जाये। माहे सफ़र को लोग मनहूस जानते हैं, हदीस में फ़रमाया, यह कोई चीज़ नहीं।_*
📙 *(बहारे शरीअत हिस्सा 16 सफा 124)*
_खुलासा यह है कि उल्लू को मनहूस समझना गलत है। नफा नुकसान का मालिक सिर्फ अल्लाह तबारक व तआला है। जो वह चाहता है, वही होता है।_
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,169*
POST 156】धोबी के यहाँ खाना खाना जाइज़ है।*
*_कुछ लोग धोबी के यहाँ खाना खाने को बुरा जानते हैं, यह।बहुत बुरी बात है। धोबी हो या कोई मुसलमान उसके यहाँ खाना खाने में कोई हर्ज नहीं और बिला शुबह जाइज़ है। जो लोग धोबियों के यहाँ खाने को बुरा जानते हैं और उनके यहाँ के खाने को नापाक बताते हैं, वो निरे जाहिल हैं।_*
*आलाहज़रत अलैहिर्रहमह फरमाते है:-*
_धोबी के यहाँ खाना खाने में कुछ हर्ज नहीं, यह जो जाहिलों में मशहूर है कि धोबी के यहाँ का खाना नापाक है, महज़ बातिल (झूठ) है_
📚 *अलमलफूज़ ,हिस्सा अव्वल,सफ़हा 13*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,169 170*
POST 157】क्या बुराई और भलाई का तअल्लुक सितारों से भी है*
*_कुछ लोग समझते हैं कि बुराई भलाई और नफा नुकसान का तअल्लुक सितारों से है हालाँकि ऐसा कुछ नहीं है।_*
*आलाहज़रत फ़रमाते हैं :-*
_मुसलमान मुतीअ पर कोई चीज़ नहस (मनहूस) नहीं और काफिरों के लिए कुछ सअद (भलाई) नहीं। बाकी कवाकिब (सितारों) में कोई सआदत व नहूसत नहीं अगर उनको खुद मुअस्सिर जाने मुश्रिक (काफिर) है और उनसे मदद माँगे तो हराम है और उनकी रिआयत जरूर ख़िलाफे तवक्कुल है।_
📗 *(फतावा रज़विया, जिल्द 10, किस्त 2 ,सफा 265)*
*_बाज़ नुकूश व तावीजात के बारे में सितारों का हिसाब लगा कर कुछ औकात को खास किया जाता है तो उसके बारे में मुसलमान को यह अक़ीदा खना चाहिए कि खुदाए तआला ने बाज़ औकात को बाज़ कामों के लिए बाज़ दूसरे औकात के मुकाबले में पसन्द फरमाया है और किसी साअत और घड़ी को किसी दूसरे से किसी खास काम के लिए अफ़ज़ल व बेहतर बनाया है। लेकिन मनहूस किसी वक़्त को नहीं समझना चाहिए और होता वही है जो अल्लाह तआला चाहता है और खुदाए तआला व रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम पर ईमान और उनकी इताअत से बढ़कर कोई सआदत व बरकत, नफा और भलाई नहीं और उनकी नाफरमानी और कुफ़ से बढकर कोई नहूसत नहीं ---- और ऐसे ही बाज़ कामों के लिए बाज़ दिनों की फजीलत आई है जैसे सफर के लिए जुमेरात या पीर का दिन और नाखुन तरशवाने और बाल कटवाने के लिए जुमे का दिन। इसका मतलब यह नहीं कि और दिन मनहूस हैं या उनमें वह काम नाजाइज़ व गुनाह है बल्कि किसी दिन भी सफ़र करना और किसी दिन नाखून और बाल कटवाना नाजाइज़ व गुनाह नहीं है, हर दिन जाइज़ है। हाँ मखसूस और वो दिन जो ऊपर जिक्र हुए उनमें ये काम दूसरे दिनों से ज्यादा बेहतर व अफज़ल व पसन्दीदा हैं।_*
_बाज़ जगह औरतें बुध के दिन घर से निकलने और सफ़र करने को मना करती हैं। यह उनकी जहालत है। बुध के दिन की तो खास तौर पर हदीस में फजीलत आई है। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का इरशाद है :-_
*"जो काम बुध के दिन शुरू किया जाता है, पूरा होता है।"*
_यह हदीस आलाहज़रत इमामे अहले सुन्नत ने फतावा रज़विया जिल्द 12 सफा 160 पर नकल फ़रमाई है।_
*सदरुश्शरी हज़रत मौलाना अमजद अली साहब अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं :-*
_नजूम की इस किस्म की बातें जिनमें सितारों की तासीरात बताई जाती हैं कि फलाँ सितारा तुलू होगा तो फलॉ बात होगी, यह भी बेशरअ है। इसी तरह नक्षत्रों का हिसाब कि फलाँ नक्षत्र से बारिश होगी, यह भी गलत है। हदीस में इस पर सख्ती से इन्कार फरमाया है।_
📗 *(बहारे शरीअत ,हिस्सा 16 सफा 257)*
*_बहुत से लोग मंगल के दिन कोई नया काम शुरू करने को बुरा जानते हैं और औरतें इस दिन नहाने को बुरा जानती हैं,ये सब भी उनकी गैर इस्लामी और जाहिलाना बातें हैं।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,170 171*
POST 158】हाथों के डोरे और कड़े*
*_बाज़ मजारात के मुजाविर और सज्जादानशीन लोग ज़ाइरीन के हाथों में सुर्ख या पीले रंग के डोरे बाँध देते हैं। ऐसे काम हिन्दुओं के बाबा और साधू लोग करते थे, वह तीरथ यात्रियों के हाथों में लाल पीले डोरे बॉध देते हैं अब मज़ारात के मुजाविर और सज्जादों में भी इसका रिवाज़ हो गया है। यह बात मुनासिब नहीं है और मुसलमानों को गैर मुस्लिमों की नकल और उनकी मुशाबहत से बचना चाहिए और हाथों में डोरे और कड़े न डालना चाहिए और न डलवाना चाहिए।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,172*
POST 159】मुस्तहब्बत को फर्ज़ व वाजिब समझना और फराइज़ को अहमियत न देना*
*_आजकल अवाम अहले सुन्नत में एक बड़ी तादाद उन लोगों की है जिन्होंने नमाज़, रोज़ा, ज़कात वगैरह इस्लाम में ज़रूरी बातों को छोड़ कर नियाज़, नज़्र, फातिहा वगैरह बिदआते हसना को लाज़िम व ज़रूरी समझ लिया है, यह एक गलतफहमी है। इसमें कोई शक नहीं कि नियाज़,फ़ातिहा, मीलाद शरीफ़ मुरव्वजा सलात व सलाम यअनी जैसे आजकल पढ़ा जाता है, बारह रबीउलअव्वल को जुलूस निकालना, ग्यारहवीं शरीफ, 22 रजब और 14 शाबान और 10 मुहर्रम वगैरह को खाने, खिचड़े, पूड़ी, हलवे, पुलाव और मालीदे पर फ़ातिहा दिलाना, उर्स करना, बुज़ुर्गों के मज़ारात पर हाज़िरी देना, कब्र पर अज़ान देना, हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के नाम को सुनकर अँगूठे चूमना, मुर्दो के तीजे, दसवें और चालीसवें करना, ये सब अच्छे काम हैं, इन्हें करने में कोई हर्ज और गुनाह नहीं। जो इन्हें गलत कहते हैं, वो खुद गलत हैं। लेकिन जो इन्हें फर्ज़ और वाजिब (शरअन लाज़िम व ज़रुरी)।ख्याल करते हैं, वो भी भूल में हैं। इस मज़मून से हमारा मकसद सिर्फ उनकी इस्लाह करना है।_*
_सुन्नी भाईयों! नियाज़, फातिहा, उर्स, मीलाद वगैरह ऊपर ज़िक्र की हुई बातों में मुन्किरीन वहाबियों से इख्तिलाफ सिर्फ यह है कि वो इनको बुरा कहते हैं और उलेमाए अहले सुन्नत इन सब कामों को अच्छा काम बताते हैं। लेकिन फर्ज़ व वाजिब (शरअन लाज़िम व ज़रूरी) ये भी नहीं कहते। फर्ज़ और वाजिब तो इस्लाम में ये काम हैं :-_
*_पाँचों वक़्त नमाज़ बाजमाअत की सख्ती के साथ पाबन्दी करना। रमज़ान के महीने के रोज़े रखना। साहिबे निसाब को साल में एक बार ज़कात निकालना। जिसके बस की बात हो उसके लिए पूरी ज़िन्दगी में एक बार हज करना। ज़िना, शराब, जुए, सूद, झूट, गीबत, ज़ुल्म, पिक्चर, गाने, तमाशे वगैरह से।बचना। माँ बाप की फरमाबरदारी करना। जिसका आप पर जो हक है उसको अदा करना। कर्ज़ लेकर जल्द से जल्द देने की कोशिश करना। मज़दूर की मज़दूरी देने में देर न करना वगैरह। हक यह है अगरचे हक कड़वा होता है कि नियाज़ व नज़्र ,मीलाद व फातिहा, उर्स व मज़ारात की हाज़िरी का फैज़ और फाइदा सही मअनों में उन्हीं को हासिल होता है जो उन कामों पर अमल करते हैं जिनका हमने अभी ऊपर ज़िक्र किया है। जो लोग नमाज़ रोज़े को छोड़ कर हराम कमाते, हराम खाते, हराम करते और फिर बुज़ुर्गों की नियाज़ दिलाते, उनके नाम पर बड़ी बड़ी देगें पकाते, मज़ारात पर हाज़िरी देते हैं उनकी वजह से मजहब ए अहले सुन्नत बदनाम हो रहा है।_*
_यह जान लेना भी ज़रूरी है कि दूसरे फिरकों में जिन लोगों को इस्लाम से ख़ारिज और काफ़िर कहा गया है वह नियाज़ व फातिहा न दिलाने की वजह से नहीं बल्कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम और दीगर अम्बियाए इज़ाम की शान में गुस्ताखी करने की वजह से उन्हें गुमराह व बदमज़हब या काफिर वगैरहा करार दिया गया है।_
*_अलबत्ता इसमें भी कोई शक नहीं कि नियाज़ व फातिहा, उर्स व मीलाद वगैरा आजकल अहले हक की अलामत निशान और पहचान बन गई हैं लिहाज़ा इन कामों को आम तौर से छोड़ा न जाये और फर्ज़ व वाजिब भी न समझा जाये । बस अच्छे काम समझ कर शरीअते इस्लामिया के दाइरे में रह कर करते रहें। और किसी के ईसाले सवाब के लिए उसकी फातिहा को किसी ख़ास दिन के साथ लाज़िम व ज़रूरी समझना भी गलतफहमी है। बल्कि हर एक की फातिहा हर दिन और हर वक़्त हो सकती है। और किसी।निसबत से किसी दिन को खास कर लेने में भी कोई हर्ज नहीं जबकि उसको लाज़िम और ज़रूरी न समझे।_*
*आलाहज़रत फरमाते हैं :-*
_यह तअय्युनात (दिनों को फ़ातिहा के लिए खास करना) उर्फी है इनमें असलन हर्ज नहीं जबकि इन्हें शरअन लाज़िम न जाने। यह न समझे कि इन्हीं दिनों में सवाब पहुँचेगा,आगे पीछे नहीं।_
📚 *(फतावा रज़विया, जिल्द 4,सफा 219)*
*_खुलासा यह कि दिनों को तय कर लेना अपनी सुहूलत और रिवाज के तौर पर है और इसमें हर्ज नहीं मगर इसे लाज़िम न जाने कि हम दिन तय कर लेंगे तभी सवाब पहुँचेगा और दिन आगे पीछे हो जाने से सवाब न पहुँचेगा यह गलत है।_*
*और दूसरी जगह फरमाते हैं :*
_ईसाले सवाब हर दिन मुमकिन है और खुसूसियत के साथ।किसी एक तारीख का इल्तिज़ाम (पाबन्दी) जबकि उसे शरअन लाज़िम न जाने मुज़ाइका (हरज) नहीं।_
📚 *(फतावा रज़विया, जिल्द 4,सफा 224)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,172 173 174*
POST 160】छींक आ जाये तो बदशगुन मानना *
_कुछ जगहों पर बाज़ हमारे अनपढ़ मुसलमान भाई छींक आने को बुरा जानते हैं और उससे बदशगुनी लेते हैं हालांकि छींक आना इस्लाम में अच्छी बात है और छींक अल्लाह तअाला को पसन्द है। लिहाज़ा जिसको छींक आये, वह अल्लाह तआला का शुक्र करे। हदीस शरीफ में है, *हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं :-*_
*_बेशक अल्लाह तआला छींक को पसन्द और जमाही का नापसन्द फ़रमाता है तो जिसको छींक आये वह "अल्हम्दु लिल्लाह" कहे और जो दूसरा शख्स उसको सुने वह जवाब दे (यानी ‘यरहमुकल्लाह' कहे) और जमाही शैतान की तरफ से है इसका जहाँ तक बस चले न आने दे और जमाही में जो मुंह से आवाज़ निकलती है, उसको सुन कर शैतान हँसता है।_*
📚 *(बुखारी जिल्द 1, सफा 919)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,175*
POST 161】बोहनी के मुतअल्लिक गलत ख्यालात*
*_खरीद व फरोख्त के मुआमले में सवेरे को जो सबसे पहली रकम हासिल होती है, उसको ‘बोहनी' कहते हैं। आमतौर से लोग पहली सौदा न पटे और पहला ग्राहक वापस चला जाये तो इस बात को बुरा मानते हैं और कहते हैं कि बोहनी खराब हो गई और इससे सारे दिन की दुकानदारी के लिए बदशगुन लेते हैं। ये सब काफिरों और गैर मुस्लिमों की बातें और वहमपरस्तियाँ हैं, जो मुसलमानों में भी पैदा हो गई हैं। एक मुसलमान के लिए ज़रूरी है कि वह इन ख्यालात को दिल में जगह न दे और यह अकीदा रखे कि नफा नुकसान का मालिक अल्लाह तआला है जब जिसको जो चाहे अता फरमाये और बोहनी खराब होने से कुछ नहीं होता।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 175*
POST 162】क्या इस्लाम में ताजियादारी जाइज़ है*
*_कुछ लोग मुहर्रम और सफ़र के महीने में ताजिये बनाते उन्हें ढोल बाजों के साथ घुमाते और उनके साथ सीना पीटते,मातम करते हुये उन्हें नक्ली और फर्ज़ी कर्बला में ले जा कर दफन करते हैं। यह सब बातें इस्लाम में मना हैं, नाजाइज़ व गुनाह हैं। प्यारे इस्लामी भाइयो! हमारा आपका प्यारा मज़हब जो "इसलाम" है, वह एक साफ सुथरा, संजीदा और शरीफ अच्छा भला,सीधा सच्चा मज़हब है। वह खेल तमाशों, गाने बाजों,ढोल ढमाकों, नाच,कूद फांद,मातम और सीना कूबी वाला मजहब नहीं है आजकल की ताजियेदार और उसको जाइज़ बताने वाले,दुनिया को यह ज़हिन दे रहे हैं कि इस्लाम भी दूसरे धर्मों की तरह मेलों ठेलों और खेल तमाशों वाला मज़हब हैं।_*
_कुछ लोग कहते हैं कि ताजिये बनाना जाइज़ है,उसको घुमाना वगैरा नाजाइज़ है। यह बात भी एक दम दुरूस्त नहीं बल्कि आजकल जो ताजिया बनाया जाता है,उस को बनाना भी मना है क्योंकि यह हज़रत इमाम हुसैन के रौज़े और मज़ार का सही नुक्शा नहीं। बल्कि इजाज़त सिर्फ इतनी है कि हजरत इमाम हुसैन रदियल्लाहु तआला अन्हु के मज़ार पुर अन्वार का सही नक्शा किसी कागज़ वगैरा पर बना हुआ अपने पास या घर में रखे जैसे_
*_खाना-ए-काबा,गुंबदे खजरा,बगदाद शरीफ अजमेर शरीफ वगैरा के बने हुये नक्शे कलन्डरों वगैरा में और अलग से भी आते हैं और लोग बरकत हासिल करने के लिए उन्हे घरों में टांगते हैं।(हवाले और तफसील से जानने के लिए देखिये_*
📚 *फतावा रज़विया जि.10 किस्त अव्वल स.36*
_मुहर्रम के महीने की 7,12,13 तारीख को जो मेहंदी बनाई या निकाली जाती है,यह भी एक बेकार और गढ़ी हुई रस्म है ,राफ़ज़ी और शीआ मज़हब की पैदावार है, इस्लाम का इस से कोई तअल्लुक नहीं,जिहालात का नतीजा है।_
*_अहले सुन्नत वलजमाअत का मज़हब यह है कि हज़रत इमाम हुसैन और दूसरे शहीदाने करबला और बुज़ुर्गाने दीन से सच्ची मोहब्बत यह है कि उनके नक्शे क़दम पर चला जाये और उनके रास्ते तरीके,ढंग और चाल चलन को अपनाया जाये। और उसके साथ साथ उनकी रूह को सवाब पहुँचाने के लिए नफ़िल पढ़े जायें,रोज़े रखे जायें,कुरआने करीम की तिलावत की जाये या सदका खैरात कर के अहबाब दोस्तों, रिशतेदारों या गरीबों मिस्कीनों को खाना,खिचड़ा,हलवा,मलीदा जो मयस्सर हो वह खिला कर उस का सवाब उनकी पाक रूहों को पहुँचाया जाये,जिस को फ़ातिहा कहते हैं, तो यह बे शक जाइज़ उम्दा और अच्छा काम है और उस से अल्लाह तआला राज़ी होता है। और अपने रब की रज़ा हासिल करना हर मुसलमान के लिए हर ज़रूरत से ज़्यादा ज़रूरी है। और न्याज़,फातिजा,सदका,खैरात में भी यह ज़रूरी है कि अपने नाम शोहरत और दिखावे के लिए न हो। बल्कि।जो भी और जितना भी हो खालिस अल्लाह तआला की रज़ा हासिल करने और बुज़ुर्गों को सवाब पहुँचाने के लिए हो। आजकल कुछ लोग लम्बी लम्बी न्याज़े दिलाते,खूब देगें पका पका कर खिलाते है और उनका मकसद अपनी नामवरी और शौहरत होता है और वह दिखावे के लिए ऐसा करते हैं। उनकी यह नियाज़ै कबूल नहीं होंगी।_*
_यह भी सुन्ने में आया है कि कोई शख्स ताजियेदारी और उसके साथ की जाने वाली खुराफात से मना करे कुछ लोग उसे वहाबी कह देते हैं और समझते हैं। ताजियेदारी सुन्नियों का काम है और उस से मना करना वहाबियों का तरीका है। हांलाकि ऐसा नहीं बल्कि कभी किसी सही सुन्नी आलिम ने ताजियेदारी को जाइज़ नहीं कहा है बल्कि सब ने हमेशा नाजाइज़ व गुनाह लिखा और आला हज़रत मौलाना अहमद रजा खाँ फाज़िले बरेलवी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि की किताबों में तो जगह जगह उसको हराम बताया गया है और उस बारे में उनके फतावा का मजमूआ एक किताब की शक्ल में छप भी चुका है_
*_जिस का नाम रिसाला-ए-ताजिये दारी है। लिहाजा जो हमारे भाई तफ़सील से इस मसअले को पढ़ना चाहें वह सुन्नी कुतुब ख़ानों से इस रिसाले को हासिल कर के पढ़ें।_*
_और जो मौलवी ताजियेदारी को जाइज़ कहते हैं, वह ऐसा पब्लिक को खुश करने और उन से प्रोग्रामो के ज़रिए नज़राने वगैरा हासिल करने के लिए करते हैं। उन्हें चाहिए कि पब्लिक को खुश रखने के बजाये अल्लाह तआला और उस के रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को राज़ी रखने की फिक्र करे क्योंकि हराम को हलाल बताने वालों की जब क़ब्र व हश्र में पिटाई होगी तो यह पब्लिक बचाने नहीं जायेगी और उन जलसों प्रोग्रामों और नज़रानों की रकमों के ज़रीए वहाँ जान नहीं छूटेगी। बल्कि यही ताजियेदार जिन को खुश रखने के लिए यह मौलवी गलत मसअले बताते हैं,कयामत के दिन उनका दामन पकड़ेंगे।_
*_यह भी मुम्किन है कि ताजियेदारी और उस के साथ की जाने वाली खुराफातों को जाइज़ कहने वाले मौलवी वहाबियों के एजेन्ट हों और उनसे खुफिया समझौता किये हुये हों क्योंकि वहाबियत को उस ज़रिये से फायदा पहुँचता_*
_और काफी लोग अपनी जिहालत की वहज से हमारे माहौल में खिलाफे शरअ हरकात देख कर वहाबियों की तारीफ करने लगते हैं हांलाकि यह उन की भूल है और सुन्नी उलमा की किताबें न पढ़ने का नतीजा है।_
_*हाँ इतना जानना ज़रूरी है कि वहाबी ताजियेदारी को शिर्क और ताजियेदारों को मुशिरक व काफ़िर तक कह देते हैं। लेकिन सुन्नी उलमा उन्हें मुसलमान और अपना भाई ही ख्याल करते हैं। बस बात इतनी है कि वह एक गुनाह कर रहे हैं। खुदाए तआला उन्हें इस से बचने की तौफिक अता फरमाये ।* ताजियेदारी से मुतअल्लिक तफसीली मालमात हासिलकरने के लिए मेरी किताब मुहर्रम में क्या जाइज़ क्या नाजाइज़ का मुताला करें |_
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,176*
POST 163】बेवुज़ू अजान पढ़ने का मसअला*
_बेवुज़ू अज़ान नहीं पढ़ना चाहिए। लेकिन अगर कोई पढ़ दे तो अज़ान दुरूस्त हो जाती है और उस अज़ान के बाद जो नमाज़ पढ़ी जायेगी वह भी दुरूस्त है। लेकिन बेवुज़ू अज़ान पढ़ने की आदत डाल लेना मुनासिब नहीं है।_
*आला हज़रत फरमाते हैं।*
_“बेवज़ू अज़ान पढ़ना जाइज़ है,बई माना कि अज़ान हो जायेगी लेकिन चाहिए नहीं ।_
📚 *(फतावा रज़विया,जि.5,स.373 )*
*_खुलासा यह कि कभी बे वुज़ू भी अज़ान पढ़ी जा सकती है। लेकिन बेहतर और अच्छा तरीका यही है कि अज़ान बावुज़ू पढ़ी जाये।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,179*
POST 164】इस ज़माने की एक बड़ी नेकी *
*_अगर आप अपनी,अपने बेटे या भाई की शादी करना हैं। और आप के अजीजों,करीबों,रिशते दारों या अहले ना में कोई गरीब लड़की है। जिस से आपका रिशता शअन दुरूस्त है,तो उस से बगैर खर्चा कराये बगैर बारात वगैरा चढ़ाये हुये और बगैर जहेज लिए हुये और दम सादा निकाह कीजिए जैसे कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने किए थे। और उस को साथ इज़्ज़त के अपने घर में बीवी बना कर रखिये। यह ज़माने की बहुत बड़ी हमदर्दी और नेकी है। और ऐसा करने वालों को जिहाद का सवाब मिलेगा। आज लोग ख्वाम ख्वाह की हमदर्दियाँ तो दिखाते हैं। अज़ीज़ों, रिशते दारों और खान्दान वालों की तरफ से लड़ने मरने को तैयार जाते हैं।_*
_लेकिन जवान लड़कियां घरों में पल रही हैं। उनकी वजह से लोग परेशान हैं और यह उनके रिशते मन्ज़ूर नहीं करते। हमदर्दी इस का नाम है कि आप के अज़ीज़ को जो परेशानी हो वह दूर की जाये। जब्कि वह आप के बस की बात है। यह कहाँ की हमदर्दी,रिशतेदारी और कराबत है कि आप दौलत और मालदारी की वजह से इधर उधर रिशते तलाश कर रहे हैं। और आप के अज़ीज़ अपनी लड़की के लिए परेशान और दुखी हैं।_
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,179 180*
POST 165】सब से बेहतर मुसलमान *
*_आजकल कुछ लोग तो वह हैं कि दुनिया के काम धंधों में लग कर दीन को बिलकुल भुला बैठे हैं। जैसे कि उन्हें सब दिन दुनिया में रहना है। और कुछ वह हैं कि दीनदार बने तो काम धंदा छोड़ बैठे काहिल,सुस्त और आराम तल्ब हो गये या इस चक्कर में हैं कि इसी दीनदारी की नाम पर लोग हमें कुछ दे जायें। इन दोनों किस्म के लोग से इस्लाम की सही तरजुमानी नहीं होती। सब से बेहतर मुसलमान वह है जो अपना कुछ काम धंधा करता हो । साथ ही साथ नमाज़ रोज़े का पाबन्द, दीनदार मुसलमान हो,हलाल व हराम में फ़र्क रखता हो।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,180*
POST 166】इस्लाम में सब से अच्छा काम*
*_इस्लाम में सब से अच्छा काम पाँचों वक़्त की नमाज़ की पाबन्दी है और मस्जिदों को बनाना और उन्हें नमाज़ व अज़ान से आबाद करना और आबाद रखने के लिए कोशिश करना है मस्जिद के साज व सामान लौटे चटाई वज़ू का इन्तिज़ाम इस की देख भाल सफाई करने वाले अज़ान देने वाले मुअज़्ज़िनों और नमाज़ पढ़ाने वाले इमामों का ख्याल करना और उन्हें हर तरह खुश रखना,बेहतरीन काम है और इस सिलसिले में जो खर्चा हो वह बेहतरीन खर्चा है।_*
_आला हज़रत मौलाना अहमद रज़ा खाँ बरेलवी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि फ़रमाते हैं।_
*_"ईमान के बाद पहली शरीअत नमाज़ है।"_*
📗 *(फतावा रज़विया जदीद जि.5 स 83)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,181*
POST 167】गमी का चाँद गमी की ईद*
*_इस्लाम में तीन(3) दिन से ज़्यादा किसी मैयत का गम मनाना यानी जान बूझ कर ऐसे काम करना जिस से गम ज़ाहिर हो नाजाइज़ है ऐसे ही किसी के गम में चाँद को गम का चाँद या किसी महीने का गम को महीना कहना मना है।_*
_जिस घर में किसी का इन्तिकाल हो गया हो उस के बाद जब पहली ईद आती है तो इस ईद को इस घर वालों के लिए कुछ औरतें गमी की ईद कहती हैं ईद के दिन मैयत के घर की औरतों से मिल जुल कर खूब रोती हैं यह सब गैर इस्लामी बातें हैं।_
*_ईद का दिन इस्लामी त्यौहार और खशी का दिन है। न कि रोने और पीटने का दिन। उस दिन कोई गम हो भी तो इस को ज़ाहिर न करे दिल में रहने दे चेहरे पर गम व रंज के आसार ज़ाहिर न होने दे चेहरे से खुशी और हंस मुख रहे।_*
_*हदीस पाक में है* हुज़ूर पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जब मदीने तशरीफ लाये तो मदीने के लोग साल में दो मर्तबा खुशी मनाते थे। (महरगान और नीरोज़) हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने पूछा यह कौन से दिन हैं? लोगों ने कहाःज़माना-ए-जाहिलियत में हम इन दिनों में खुशी मनाते थे हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया अल्लाह तआला ने उनसे बेहतर दो (2) दिन अता फरमाये है ईदुल फित्र और ईदुज़्ज़हा।_
📗 *(अबूदाऊद बाब सलातुल ईदैन हदीस 1134 स,161)*
*_इस हदीस से खूब ज़ाहिर हो गया कि ईद का दिन खुशी मनाने का दिन है गम मनाने रोने पीटने का दिन नहीं। सदरुश्शरीआ मौलाना अमजद अली साहब आज़मी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि फ़रमाते हैं:_*
_ईद के दिन खुशी जाहिर करना मुस्तहब है।_
📗 *(बहारे शरीअत,4/781 मतबूआ मकतबतुलमदीना देहली)*
*_कुछ जगहों पर शबे बरात और मुहर्रम के चाँद को औरतें गमी का चाँद कहती हैं और नई दुल्हन के लिए ज़रूरी ख्याल किया जाता है कि वह यह चाँद सुसराल में न देखे बल्कि मैके में आकर देखे तो यह सब जाहिल औरतों की मन गढंत वहम परस्ती की बातें हैं उन से बचना ज़रूरी है।कोई भी औरत कोई सा चाँद कही भी देख सकती है हाँ जवान लड़कियों और औरतों को खुली छतों पर चाँद देखने के लिए चढना मना है ताकि बे पर्दा न हो।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,181 182*
POST 168】जूते चप्पल पर खड़े हो कर जनाज़े की नमाज़ पढ़ने का मअसला*
_जनाज़े की नमाज़ आम तौर पर खाली पडे रास्तों और खेतों मैदानों वगैरा में पढ़ी जातीहै। कुछ लोग इन ज़मीनों को नापाक ख्याल करते हुये जूते चप्पल उतार उन पर खड़े हो कर नमाज़ अदा कर लेते हैं तो ऐसा करना जाइज़ बल्कि बेहतर है और नमाज़ दुरूस्त हो जायेगी किसी चीज़ मिटटी,कपड़े,बदन ज़मीन वगैरा के पाक और नापाक होने की तीन सूरतें हैं।_
*_1- यकीन से पता है कि वह पाक है।_*
_2- यकीन से पता है कि वह नापाक है।_
*_3- इस के पाक और नापाक होने में शक है। पता नहीं कि पाक है या नापाक है।_*
_पहली सूरत में तो वह पाक है ही लेकिन तीसरी सूरत में भी जब कि उसके पाक और नापाक होने में शक हो तब भी इस को पाक माना जायेगा नापाक नहीं,नापाक तभी कहेंगे जब नापाकी का यकीन हो या गालिबे गुमान।_
*_कोई भी ज़मीन जब तक इस के नापाक होने का पता न हो वह पाक कहलायेगी आप इस पर खड़े हो कर बगैर कुछ बिछाये भी नमाज़ पढ़ सकते हैं।_*
_जूते का तला भी जब खूब पता हो कि इस पर कोई नापाक चीज़ लगी है तभी उस को नापाक कहा जायेगा। सिर्फ शक व शुब्ह की बिना पर नापाक नहीं कहा जा।सकता जूते के तला पाक हो सकता है_
*_उलमा-ए-किराम ने फरमाया कि जूते की तले पर अगर कोई नापाक चीज़ लगी भी हो, उस को पहन कर चला। घास या मिटटी पर कुछ देर चलने से जो रगढ़ पैदा हुई उस से भी जूते का तला पाक हो सकता है।_*
_अब इस सिलसिले में मसाइल की तफ़सील हस्बे ज़ैल है।_
*_ज़मीन अगर नापाक है यानी उस के नापाक होने का यकीन है उस केऊपर नंगे पैर खड़े हो कर बगैर कुछ बिछाये नमाज़ पढ़ी नमाज़ नहीं होगी। ज़मीन अगर पाक है या उसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता कि पाक है या नापाक तो उस पर बगैर कुछ बिछाये नंगे पैर खड़े हो कर नमाज़ पढ़ी जा सकती है।_*
_ज़मीन नापाक है लेकिन जूते पहन कर नमाज़ पढी और जूते का तला पाक है नमाज़ सही हो जायेगी। ज़मीन भी नापाक है जूते का तला भी नापाक है। लेकिन जूते उतार कर उन पर खड़े हो कर नमाज़ पढ़ी नमाज़ हो जायेगी क्योंकि अब उस नापाकी का बदन जिस्म से कोई तअल्लुक नहीं और अगर पहने हो तो वह नापाकी जिस्म का हिस्सा मानी जायेगी।_
*_खुलासा यह है कि ज्यादा एहतियात उसी में है कि जूते उतार कर उन पर खड़े हो कर नमाज अदा करे यह सब से बेहतर और मुहतात तरीका है। आला हज़रत फरमाते हैं: ।_*
_अगर वह जगह पेशाब वगैरा से नापाक थी या जिस के जूतों के तले नापाक थे और उस हालत में जूता पहने हुये नमाज़ पढ़ी उन की नमाज़ न हई। एहतियात यही है।_
*_कि जूता उतार कर उस पर पाव रख कर नमाज़ पढ़ी जाये। कि ज़मीन या तला अगर नापाक हो तो नमाज़ में खलल न आये ।_*
📗 *(फतावा रज़विया जदीद 9/188)*
_और एक मकाम पर लिखते हैं। अगर कोई शख्स बहालते नमाज निजासत पर खड़ा हुआ और उसके दोनों पैरों में जूते या जुराबे हैं तो उसकी नमाज़ सही न होगी और अगर यह चीज़ें जुदा है तो हो जाएगी ।_
📚 *(फ़तावा रज़विया जदीद 962)*
*_एक जगह लिखते हैं :- शुबह से कोई चीज़ नापाक नहीं होती कि असल तहारत है।_*
📚 *फतावा रज़विया जदीद जि•4,स•394)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,183 184*
POST 169】हिजड़े की नमाज़े जनाज़ा*
*_कुछ लोग हिजड़े की नमाज़े जनाज़ा पढ़ने न पढ़ने के बारे शक करते हैं कि पढ़ना जाइज़ है या नहीं तो मसअला यह है कि हिजड़ा अगर मुसलमान है तो उस की नमाज़े जनाज़ा पढी जायेगी और उस को मुसलमानों के कब्ररिस्तान में दफन किया जायेगा। कुछ लोग पूछते हैं_*
_कि हिजड़े की नमाज़ की नियत और उस में जो दुआ पढ़ी जायेगी वह मरदों वाली हो या औरतों वाली शायद उन लोगों को यह मालूम नहीं कि मरदों और औरतों की नमाज़े जनाज़ा और उस की नियत में कोई फर्क नहीं दोनों का तरीका एक ही है और वहीं तरीका हिजड़े के लिए भी रहेगा। हाँ नाबालिग बच्चे और बच्ची की दुआ में फर्क है और वह बहुत मामूली ज़मीरों का फर्क है तो अगर हिजड़ा नाबालिग बच्चा हो तो उस के लिए लड़के वाली दुआ पढ़ दें या लड़की वाली हर तरह नमाज दुरूस्त हो जायेगी ।_
📚 *फतावा रज़विया जदीद ज•9 ,स•74*
📚 *फतावा बहरुल उलूम जि•5 ,स•174*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,185
POST 170】हज़रत बिलाल के अज़ान न देने का वाकिआ*
*_हजरत बिलाल रदियल्लाहु तआला अन्हु के मुतअल्लिक एक वाकिआ बयान किया जाता है कि एक मर्तबा कुछ हज़रात ने उन की अज़ान पर एतराज़ किया वह शीन को सीन कहते हैं हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उन को माजूल कर दिया और किसी दूसरे साहब ने अज़ान दी तो सुबह न हुई जब अज़ान हज़रत बिलाल ने दी तब सुबह हुई।_*
_यह वाकिआ बे असल है मुस्तनद व मोअतबर हदीस व तारीख की किताबों में कही नहीं जो साहब बयान करें। उन से मालूम करना चाहिए कि उन्होंने यह वाकिआ कहाँ देखा। और यह हदीस कि हज़रत रसूल पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमायाः_
* ﺳﻴﻦ ﺑﻼﻝ ﻋﻨﺪ ﺍﻟﻠﻪ ﺷﻴﻦ *
*_बिलाल की सीन भी अल्लाह के नज़दीक शीन है। इस हदीस को हज़रत मौलाना अली कारी मक़्क़ी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि ने गढ़ी हुई फ़रमाया है।_*
📚 *(मौज़ूआत कबीर स 43,फतावा बहरूल उलूम जि.5,स.380)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,186*
POST 171】क्या औरत पीर हो सकती है*
*_औरत का पीर बनना मुरीद करना जाइज़ नहीं न मर्दों को न औरतों को। आज कल तो यह तक सुनने में आया है कि औरतें पीर बन कर मुरीदों में दौरे तक करने लगी हैं।_*
_यह सब गलत बातें और औरतों का पीरी मुरीदी करना सही नहीं।_
*_इमाम अब्दुलवहाब शोअरानी अपनी मशहूर किताब मीज़ानुश्शरीअतुल कुबरा में तहरीर फरमाते हैं:_*
* ﻗﺪ ﺍﺟﻤﻊ ﺍﻫﻞ ﺍﻟﻜﺸﻒ ﻋﻠﻰ ﺍﺷﺘﺮﺍﻁ ﺍﻟﺬﻛﻮﺭﺓ ﻓﻰ ﻛﻞ ﺩﺍﻉ ﺍﻟﻰ ﺍﻟﻠﻪ*
_बुज़ुर्गों का इस बाबत पर इत्तिफ़ाक है कि दाई इलल्लाह होने के लिए मर्द होना शर्त है ।_
📙 *(मीज़ानुश्शरीअतुल कुबरा बाबुल अक़्ज़िया जि.2,स.189)*
*_आज कल औरतों के जलसे हो रहे हैं और औरतों को मुबल्लेगा और मुकर्रिरा बना कर जगह जगह घुमाया जा रहा है यह भी सब मेरी समझ में नहीं आता।_*
_और इमाम अब्दुलवहाब शोअरानी का जो कौल हमने नकल किया उससे भी हमारे ख्याल की ताईद होती है।_
*वल्लाहु तआला अअलमु*
*_आला हज़रत फरमाते हैं:_*
_सलफ़ सालेहीन से ले कर आज तक कोई औरत न पीर बनी न बैअत किया_
📗 *(फतावा रज़विया जदीद,जि.21,स.494)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,187*
POST 172】क्या कब्र पर तख्ते रखने में मर्द व औरत में फर्क है*
*_कुछ लोग पूछते हैं कि मय्यत को कब्र में रखने के बाद अगर मर्द हो तो तख़्ते लगाना किधर से शुरू करना चाहिए सिरहाने या पाइंती से और औरत के लिए किधर से मसअला यह है कि मर्द हो या औरत तख़्ते सिरहाने से लगाना शुरू करें और दोनों में फर्क समझना गलती है।_*
_(फतावा मुस्तफविया स.271 मतबूआ रज़ा एकेडमी मम्बई)_
*यानी दोनों के तख्ते सिरहाने से शुरू किये जायें।*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,187*
POST 173】नूर नामा और शहादत नामे*
_"नूर नामा'नाम से एक किताब उर्दू नज़्म में खूब पढ़ी जाती है उस में हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की पैदाइश का वाकिआ और आप के नूर का किस्सा जिस तरह बयान किया गया है वह बे असल और गलत है किसी मुस्तनद व मोअतबर हदीस व तारीख की किताब में उस का ज़िक्र नहीं ।_
*_ऐसे ही शहादत नामा नाम से जो किताबें हज़रत सय्यदिना इमाम हसन और सय्यदिना इमाम हुसैन रदियल्लाहु तआला अन्हुमा के वाकिआत व हालात से मुतअल्लिक राइज हैं वह भी अकसर गलत बे सरोपा वाकिआत व हिकायत पर मुश्तमिल हैं।_*
_आला हज़रत फरमाते हैं:_
*_नूर नामे के नाम से जो रिसाला मशहूर है उस की रिवायत बे असल है उसको पढ़ना जाइज़ नहीं।_*
📚 *(फतावा रज़विया जदीद, जि.26,स.610)*
*और फ़रमाते हैं:*
_शहादत नामे नज़्म या नसर जो आजकल अवाम में राइज हैं अकसर रिवायते बातिला व बे सरोपा से ममल और अकाज़ीब मोज़ूआ (गढ़ी हुई झूटी हिकायतें) पर मुश्तमिल हैं ऐसे बयान का पढ़ना सुनना मुतलकन हराम व नाजाइज़ है।_
📚 *फतावा रज़विया, जदीद जि.24 ,स.513*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,188*
POST 174】तीजे के चनों का मसअला*
*_न्याज व फातिहा तीजे दसवीं,चालीसवीं,और तबारक वगैरा यह सब सिर्फ जाइज़ अच्छे और मुस्तहब काम हैं न शरअन फ़र्ज़ हैं न वाजिब न सुन्नत कोई न करे तब भी कोई हर्ज व गुनाह नहीं लेकिन आज कल उन कामों को इतना ज़रूरी समझ लिया गया है कि गरीब से गरीब आदमी के लिए भी उन का करना इतना ज़रूरी हो गया है कि ख्वाह कही से करे कैसे ही करे उधार कर्ज़ लेकर मगर करे ज़रूर यह सुन्नियत के नाम पर ज़्यादती हो रही है।_*
_हक यह है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम और आप के सहाबा व ताबेईन के ज़माने में मय्यत को सवाब पहुँचाते और उसकी मगफिरत की दुआ के लिए सिर्फ जनाज़े की नमाज़ होती थी और किसी चीज़ का रिवाज़ न था यह सब काम बहुत बाद में राइज हुये कुछ मौलवियों ने उन्हें एक दम नाजाइज़ व हराम कह दिया सिर्फ इसलिए कि यह सब नये काम है। लेकिन उलमा-ए-अहले हक अहले सुन्नत वलजमाअत ने फरमाया कि यह सब काम अगचें नये हैं मगर अच्छे हैं बुरे नहीं लिहाज़ा जाइज़ हैं मुस्तहब हैं लेकिन उन्होने भी फर्ज़ या वाजिब या शरअन लाज़िम व ज़रूरी नहीं कहा मैंने इस बयान को तफ़सील व तहकीक के साथ अपनी किताब “बारहवीं शरीफ़ जलसे जुलूस"और दरमियान उम्मत में भी लिख दिया है।_
*_आज कल बाज़ जगह तो गरीब से गरीब आदमी के लिए भी इस न्याज़ व फातिहा के रिवाज़ो को जो ज़रूरी खियाल किया जा रहा है यह बड़ी ज़्यादती है ।_*
_तीजे के मौके पर जो चनों पर कलमा पढने का मुआमला है इसकी हकीकत सिर्फ इतनी है कि एक हदीस में यह आया है कि जो सत्तर हजार 70000/मर्तबा कलमा पढ़े या किसी दूसरे को पढ़ कर बख्शे तो इस की मगफिरत हो जाती है।_
*आला हज़रत फरमाते हैं:*
*_कलमा तय्यबा सत्तर हज़ार(70000) मर्तबा मअ दुरूद शरीफ पढ़ कर बख्श दिया जाये इन्शाअल्लाह पढ़ने वाले और जिस को बख्शा है दोनों के लिए ज़रीआ निजात होगा।_*
📚 *(अलमलफूज, जि.1 ,स.103/मतबूआ रज़वी किताब घर देहली)*
_हजरत मौलाना अली कारी मक्की रहमतुल्लाहि तआला अलैहि ने भी *मिरकात शरह मिश्कात किताबुस्सलात बाब मा अललमामूमे मिनलमुताबअत फस्ले सानी, स.102 में इस हदीस को नकल किया है अन्वारे सातिआ स.232/पर भी मिरकात शरह मिश्कात के हवाले से यह सत्तर हजार की हदीस मन्कूल है।* बुज़ुर्गों ने इस गिन्ती को पूरा करने के लिए साढ़े बारा सेर दरमियानी किस्म के चनों का अन्दाजा लगाया था।_
*_आज कल की नई तोल के मुताबिक चुंकि “किलो इस सेर से कुछ छोटा होता है लिहाजा साढ़े चौदह किलो या फिर ज्यादा से ज्यादा पन्द्रह किलो चनों में पूरा सोयम् यानी सत्तर हजार बार कलमा मुकम्मल हो जायेगा।_*
_बरेली शरीफ से शाइअ फतावा मरकज़ी दारूलइफता में है। चने की मिक़दार शरअन मुतअय्यन नहीं हाँ हदीस पाक में यह आया है कि "जिस ने या जिस के लिए सत्तर हज़ार कलमा शरीफ पढ़ा गया अल्लाह तआला अपने फज़ल व करम से उसे बख्श देता है। लोगों ने अपनी आसानी के लिए चने इख्तियार कर लिए कि उस में शुमारे कलमा है और बाद में सदका भी और मशहूर है कि साढ़े बारह सेर चने में यह तादाद पूरी हो जाती है।_
📚 *(फ़तावा मरकज़ी, दारूलइफता स.302)*
*_कुछ मुल्लाजी लोग 32 बत्तीस किलो चने ख़रीदवाते है यह उन की ज़्यादती है खास कर गरीबों मजदूरों पर तो एक तरह का ज़ुल्म है और वह सोयम के चने पढ़ने की मज्लिस हो या कोई और आम लोगों को जमा कर के बहुत देर तक बैठाना भी इस्लामी मिजाज़ के खिलाफ है।_*
_आला हज़रत फरमाते हैं:_
*_:शरीअत मुत्तहरा रिफक व तन्सीर (नर्मी और आसानी)को पसन्द फ़रमाती है न कि मआज़ल्लाह तदीक व तशदीद (तंगी और सख्ती)_*
📚 *(फतावा रजविया जदीद11/151)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,188 189 190*
POST 175】गुर्दे खाने का मसअला*
_गुर्दे खाना जाइज़ है लेकिन हुज़ूर अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने पसन्द न फरमाया इस वजह से कि पेशाब इसमें हो कर मसाने में जाता है ।_
📗 *(अलमलफूज़ स.341 रज़वी किताब घर देहली)*
*_इस का खुलासा यह है कि हलाल जानवर के गुर्दे खाये जा सकते हैं उन्हें खाना हराम नहीं लेकिन हजुर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को ना पसन्द थे इसलिए न खाना बेहतर है ।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,191*
POST 176】छोटी तकतीअ में कुरआन*
*_कुछ लोग बहुत ज़्यादा बारीक ख़त में लिखे हुये और बहुत छोटे साइज़ में कुरआन छापते हैं जिन्हें हमाइल शरीफ कहा जाता है बच्चों के गले में डालने के लिए तावीज़ की तरह पूरे कुरआन को बहुत बारीक और छोटा कर देते हैं यह नाजाइज़ है। दुर्रे मुख्तार में हैः_* * ﻳﻜﺮﻩ ﺗﺼﻐﻴﺮ ﻣﺼﺤﻒ *
_यानी कुरआने करीम को छोटा बनाना मकरूह है।_
📗 *(दुर्रे मुख्तार ,किताब हजर वल इबाहत फस्ल फिलबैअ,जि.2 ,स.245)*
*आला हज़रत फरमाते हैं:*
*_हजरत उमर फारूके आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु ने एक शख्स के पास कुरआन मजीद लिखा हुआ देखा है। इसको मकरूह रखा और उस शख्स को मारा।_*
📚 *(फतावा रज़विया,जि.4,स.610)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,191*
POST 177】नमाज़ में अत्तहियात वगैरा से पहले बिस्मिल्लाह पढ़ना*
*_नमाज में अलहम्दु शरीफ से पहले बिस्मिल्लाह पढना सुन्नत है और उस के बाद जब कोई सूरत शुरू करे तब भी बिस्मिल्लाह पढ़ना मुस्तहब है। उस के अलावा रुक सजदे,कादा वगैरा में बिस्मिल्लाह पढ़ने की इजाजत नहीं।_*
_अत्तहियात से पहले या दुआये कुनूत या दुरूद शरीफ और उस के बाद की दुआ से पहले बिस्मिल्लाह पढ़ना मना है।_
*_क्योंकि बिस्मिल्लाह कुरआन की आयत है और नमाज में कियाम की हालत में अलहम्दु शरीफ और उसके बाद किरअत कुरआन मशरुअ है उसके अलावा किरअत मम्नूअ है।_*
📚 *फतावा रजविया जदीद जि.6,स.350*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,191*
POST 178】होली,दीवाली की फातिहा*
*_होली,दीवाली यह खालिस गैर मुस्लिमों के त्यौहार है ।इस्लाम और मुसलमानों का उन से कोई तअल्लुक नहीं। मुसलमानों को उन दिनों में ऐसे रहना चाहिए जैसे आज कुछ है ही नहीं और इन दिनों को किसी किस्म की कोई खुसूसियत नहीं देना चाहिए।_*
_कही कही कुछ लोग होली के मौका पर होलिका नाम की औरत की फातिहा दिलाते हैं कुछ लोगों ने होलीका का नाम मुराद बीवी रख लिया है और उस नाम से फ़ातिहा दिलाते हैं और कहते हैं कि होलीका हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर आशिक हो गई थी और उन पर ईमान लाई थी तो यह सब गढ़ी हुई हिकायते और झूटी कहानियाँ हैं जिनका हकीकत से किसी किस्म को कोई तअल्लुक नहीं और हरगिज़ होली को कोई हैसियत देते हुये इससे मुतअल्लिक किसी किस्म की कोई फातिहा नहीं करना चाहिए_
📚 *फतावा बहरुलउलूम जि•1,स•162*
*_दीवाली के मौके पर कुछ लोग मछली पका कर फातिहा पढ़वाते हैं यह भी गलत हैं कहते हैं कि दीवाली के मौके पर करने धरने और टूटके बहुत होते हैं और मछली पर फातिहा पढ़ने से वह बे असर हो जाते हैं तो यह सब जाहिलाना ख्यालात और वहम परस्ती की बातें और एक मुसलमान को उन सब से बचना ज़रूरी है_*
_अगर दीवाली के मौका पर मछली पर फातिहा का रिवाज़ पड़ गया तो कभी यह भी हो सकता है कि घरों को सजाना और रोशनिया करना हिन्दूओं की दीवाली होगी और मछली पर फातिहा मुसलमानों की दीवाली लिहाज़ा इन दिनों में किसी किस्म का कोई नया काम नहीं करना चाहिए और आम हालात में जैसे रहते हैं वैसे ही रहना चाहिए।_
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,192*
POST 179】खाने के शुरू में नमक या नमकीन*
*_बाज़ रिवायात में है कि जब खाना खाओ तो नमक से शुरू करो और नमक पर ख़त्म करो यह सत्तर बीमारियों का एलाज है। कुछ हज़रात इस सुन्न्त की अदायेगी के लिए खाने से पहले और बाद में नमक चाटना ज़रूरी ख्याल करते हैं। हांलाकि इस सुन्नत की अदायेगी के लिए नमक चाटना जरूरी नहीं बल्कि नमकीन खाना पहले और बाद में खाया_*
_जाये तब भी यह सुन्नत अदा हो जायेगी क्योंकि खाने में भी नमक ज़रूर होता है और नमक जिसे अरबी में (मिल्ह) ﻣﻠﺢ कहते हैं इसके मअना नमकीन और खारी चीज़ के भी आते हैं कुरआन करीम में समन्दर के पानी के लिए फ़रमाया गया।_
*{ ﻫﺬﺍ ﻣﻠﺢ ﺍﺟﺎﺝ { [ ﺍﻟﻔﺮﻗﺎﻥ 53 ]*
_यह खारी है निहायत तल्ख_
📖 *(कन्ज़ूल ईमान,सूरह फुरकान,आयत 53)*
*_मौलवी मुहम्मद हुसैन साहब मेरेठी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि फ़रमाते हैं कि आला हज़रत के लिए सेहरी में फिरीनी और चटनी लाई गई, मैंने पूछा हुज़ूर चटनी फिरीनी का किया जोड़ | फरमाया नमक से खाना शुरू करना और नमक पर ही ख़त्म करना सुन्नत है इसलिए यह चटनी आई है।_*
📗 *(हयाते आला हज़रत, जि.1, स.151 ,मतबूआ बरकात रज़ा पूरबन्दर)*
_तो आला हज़रत के नज़दीक भी इस सुन्नत की अदायेगी के लिए नमकीन खाना पहले और बाद में खाना काफी है नमक चाटना ज़रूरी नहीं वरना वह चटनी के बजाये नमक मंगवाते अल्लामा आलम फकरी लिखते हैं,हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से मरवी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि तीन लुकमे नमकीन खाने से पहले और तीन लुक्मे खाने के बाद बनी आदम को बहत्तर बलाओ से महफूज रखते हैं।_
📗 *(आदाब सुन्नत 94)*
*_खुलासा यह कि जब दसतर ख्वान पर नमकीन मीठा सब तरह का खाना मौजूद हो तो सुन्नत है नम्कीन खाये फिर मीठा और बाद में फिर नम्कीन और इस सुन्नत की अदायेगी के लिए यही काफी है दसतर ख्वान पर नमक रखने या उसको मंगा कर चाटने की ज़रूरत नही।_*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,193*
POST 180】क्या हज़रत फातमा रदियल्लाहु तआला अन्हा की रूह मलकुलमौत ने नहीं क़ब्ज़ की*
*_कुछ लोग कहते हैं कि ख़ातूने जन्नत हज़रत सय्यदा फ़ातमा ज़हरा रदियल्लाहु तआला अन्हुमा की रूहे मुबारक अल्लाह तआला ने बज़ाते खुद कब्ज़ फ़रमाई मलकुलमौत ने आप की रूह कब्ज़ नहीं की यह बात शायद इसलिए कही जाती है कि हज़रत सय्यदा फातमा रदियल्लाहु तआला अन्हा बहुत बा हया और पर्दे वाली थीं तो मालूम होना चाहिए कि फिरिशते बे नफ्स बे गुनाह और मासूम हैं उन से पर्दा नहीं फिरिश्ते तो उनके घर में उनकी खिदमत के लिए आते रहते थे हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के काशाना-ए-नबूवत में बे शुमार फिरिश्ते ख़ास कर हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम अकसर आते जाते रहते थे_*
_कभी हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने किसी अपनी ज़ोजए मोहतरमा से नहीं फरमाया कि यह फलाँ फिरिश्ता इस वक़्त मेरे पास है तुम उस से पर्दा करो एक मर्तबा हुज़ूर पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की पहली रफ़ीकाए मोहतरमा सय्यदा ख़दीजातुल कुबरा रदियल्लाहु तआला अन्हा सय्यदा फातमा की वालिदा मोहतरमा भी हैं_
*_वह हाज़िरे ख़िदमत थीं हजरत जिब्राईल अमीन हाज़िर हुये तो हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने सय्यदा ख़दीजातुल कुबरा से यह तो फ़रमाया यह जिब्राईल (अलैहिस्सलाम) मेरे पास हैं यह तुम्हें अल्लाह तआला का सलाम पहुँचाने आये हैं, लेकिन यह न फ़रमाया कि तुम उन से पर्दा करो। यह सब बातें अहादीस की किताबों में आसानी से देखी जा सकती हैं और इल्म वालों से छुपी हुई नहीं हैं।_*
_खुलासा यह है कि यह बात बे सनद और रिवयतन सही नहीं कि हज़रत फातमा रदियल्लाहु तआला अन्हा की रूह अल्लाह तबारक व तआला ने बगैर मलकुल मौत खुद कब्ज़ फ़रमाई_
*मलकुलमौत फिरिश्ते के ज़रीये नहीं*
_हज़रत बहरुल उलूम से एक मर्तबा यह सवाल किया गया तो उन्होंने जवाब में फ़रमाया तमाम इंसानों की रुह कब्ज़ करने वाले मलकुलमौत हैं कुरआन शरीफ में है।_
* ﻗﻞ ﻳﺘﻮﻓﺎﻛﻢ ﻣﺎﻟﻚ ﺍﻟﻤﻮﺕ ﺍﻟﺬﻯ ﻭ ﻛﻞ ﺑﻜﻢ ﺛﻢ ﺇﻟﻰ ﺭﺑﻜﻢ ﺗﺮﺟﻌﻮﻥ ( ﺍﻟﺴﺠﺪﻩ - ١١ )*
_*तर्जमा:-* तुम सब लोगों की रूह कब्ज करने के लिए मलकुलमौत मुकर्रर हैं।_
📚 *(फतावा बहरुल उलूम 2/76)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,193 194 195*
POST 181】माथे या मांग में सिन्दूर*
*_मुसलमान औरतों को माथे पर सिन्दूर लगाना और सर की मांग में सिन्दूर भरना जाइज़ नहीं क्योंकि यह गैर मुस्लिमों की औरतों में राइज है लिहाज़ा ऐसा करने में उनकी मुशाबहत है और हदीस पाक में है जो जिस कौम की मुशाबहत करे वह उन्हीं में है।_*
📚 *(फतावा अजमलिया,जि.4 स.101)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,196*
POST 182】बुज़ुर्गों के नाम के चिराग जलाना*
*_आज कल इस का काफी रिवाज़ हो गया,किसी बुज़ुर्ग के नाम का चिराग जला कर उस के सामने बैठते हैं। यह गलत है हाँ अगर इस चिराग जलाने का कोई मकसद हो इस से किसी राह गीर वगैरा को फाइदा पहुँचे या दीनी तालीम हासिल करने पढ़ने पढ़ाने वालो को राहत मिले या किसी जगह ज़िक्र व शुक्र इबादत व तिलावत करने वालों को इस से नफ़अ पहुँचे तो ऐसी रोशनियाँ करना बिलाशुबह जाइज़ बल्कि कारे सवाब है और जब इस में सवाब है तो उस से किसी बुज़ुर्ग की रूहे पाक को सवाब पहुँचाने की नियत भी की जा सकती है आमाल और वजाइफ की किताबों में जो आसेब वगैरा के इलाज़ के लिए छोटा चिराग और बड़ा चिराग रोशन करने के लिए लिखा है वह अलग चीज़ है वह किसी बुज़ुर्ग के नाम से नहीं रोशन किया जाता।_*
_खुलासा यह है कि यह जो हुज़ूर गौसे पाक रदियल्लाहु तआला अन्हु वगैरा किसी बुज़ुर्ग के नाम के चिराग जला कर उस के सामने बैठने का मामूल है यह बे सनद बे सुबूत बे मकसद है और बे असल है।_
📖 *_हदीस पाक में है हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमायाः_*
_जो हमारे दीन में कोई ऐसी बात निकाले जिस की उस में असल न हो तो वह कबूल नहीं है।_
📚 *(इब्ने माजा 3 हदीस 17)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,196*
POST 183】दलाली का पेशा*
*_बेचने और खरीदने वाले के दरमियान सौदा कराने वाले को दलाल कहते हैं इस मुआमले में उस को कुछ मेहनत और दौड़ धूप भी करना पड़ती है वक़्त भी खर्च होता है लिहाज़ा वह उसकी उजरत ले सकता है बेचने वाले से या खरीद ने वाले से या दोनों से जैसा भी वहाँ रिवाज़ हो हर तरह जाइज़ है लेकिन यह पेशा कोई अच्छा काम नहीं अगचे हराम व नाजाइज़ भी नहीं ।_*
📚 *(शामी जि.7स.93बहारे शरीअत ,जि.11स639 मकतबतुल मदीना)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,197*
POST 184】रिशवत लेने और देने का मसअला*
_*हदीस पाक में है:-}* रसलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने रिशवत देने और लेने वाले पर लअनत फ़रमाई।_
📗 *(मिश्कात,बाब रिज़्क़ुलवला,सफहा 326)*
*_लेकिन यह रिशवत लेने देने की चार सूरतें हैं।_*
*(1) कोई मनसब या ओहदा कबूल करने के लिए रिशवत देना और लेना दोनों हराम हैं।*
*(2) अपने हक में फैसला कराने के लिए हाकिम को रिशवत दे यह भी दोनों के लिए हराम है ख्याह वह फैसला हक़ पर हो या न हो क्योंकि फैसला करना हाकिम की ज़िम्मेदारी है इसके लिए इसको कुछ लेना या किसी का उस को कुछ देना हराम है। अफसरों को कोई काम करने के लिए कुछ माल देना और उनका लेना दोनों हराम हैं।*
*(3) अपने जान व माल इज़्ज़त व आबरू की हिफाज़त के लिए किसी ज़ालिम को कुछ देना पड़ जाये तो यह देना जाइज़ है लेकिन लेने वाले के लिए यह भी हराम है। मैं समझता हूँ कि इस का मतलब यह है कि अगर कोई शख्स आप को गाली गलोज करता हो,लूटने मारने की धम्की देता हो,उस वक़्त उसको कुछ देकर आप अपने जान व माल की हिफाज़त कर लें तो यह जाइज़ है हाकिमों अफसरों को जो कुछ दिया जाता है यह तो बहरहाल सब रिशवत है और हराम है ख्वाह अपना हक़ हासिल करने या अपने हक़ में सही फैसला कराने के लिए दे क्योकि हक़ फैसला करना इस की डियूटी है।*
*(4) किसी शख्स को इसलिए रिशयत दी कि वह उसको बादशाह या हाकिम तक पहुँचा दे तो यह देना जाइज़ है*
*_लेकिन लेने वाले के लिए हराम है_*
📚 *(फतावा रज़विया जदीद जि.18 स.496)*
📚 *(शरह सही मुस्लिम मौलाना गुलाम रसूल सईदी. जि5. स.70)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,197 198*
POST 185】दो बे सनद हदीसे*
*_वतन की मोहब्बत ईमान से है।जाबेह बकर और कातेअ शजर वाली हदीस यानी जिस हदीस में गायेज़िबह करने वाले या पेड़ काटने वाले की बख्शिश नहीं बयान किया जाता है।_*
📖 *_आला हजरत फरमाते है:_*
*_वतन की मोहब्बत ईमान का हिस्सा है न हदीस से साबित है न हर गिज़ उस के यह मअना_*
📚 *(फतावा रज़विया जदीद जि.15 स292)*
📖 *और फरमाते हैं:*
*_जिबह का पेशा शरअन मम्नूअ नहीं न उस पर कुछ मुवाखिज़ा है वह जो हदीस लोगों ने दरबार-ए-जाबेह बकर व कातिअए शजर बना रखी है महज़ बातिल व मोज़ूअ है।_*
📚 *(फतावा रज़विया जदीद जि.20स.250)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,199*
No comments:
Post a Comment
You did very well by messaging, we will reply you soon thank you