Wednesday, November 25, 2020

🅰️ बहारे शरीअत ( हिस्सा- 03 ) 🅰️


  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 001)*_
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                _*🕌नमाज़ का बयान🕌*_
 
_*💫ईमान व तस्हीहे अकाइद मुताबिके मजहबे अहले सुन्नत व जमाअत ' के बाद नमाज़ तमाम फराइज में निहायत अहम व अअज़म है । कुर्आन मजीद अहादीसे नबीये करीम अलैहिस्सलातु वत्तस्लीम इसकी अहमियत से मालामाल हैं , जा - ब - जा इसकी ताकीद आई और इसके छोड़ने वाले पर वईद फ़रमाई यानी नमाज़ की बहुत ताकीद फरमाई गई और इसके तर्क ( छोड़ना ) करने पर अजाब की खबर दी गई । चन्द आयतें और हदीसें ज़िक्र की जाती हैं कि मुसलमान अपने रब तआला और प्यारे नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के इरशादात सुनें और उसकी तौफीक से उस पर अमल करें ।*_ 

_*🕋अल्लाह तआला फ़रमाता है :*_ 

_*📝तर्जमा : - " यह किताब परेहज़गारों को हिदायत है जो गैब पर ईमान लाते और नमाज काइम रखते और हमने जो दिया उसमें से हमारी राह में खर्च करते हैं " ।*_  

_*📝तर्जमा : - " नमाज़ काइम करो और ज़कात दो और रूकु करने वालों के साथ नमाज़ पढ़ो ' यानी मुसलमानों के साथ कि रूकु हमारी ही शरीअत में है या बाजमाअत अदा करो । और फ़रमाता है ।*"

_*📝तर्जमा : - " तमाम नमाज़ों खुसूसन बीच वाली नमाज़ ( अस्र ) की मुहाफज़त रखो और अल्लाह के हुजूर अदब से खड़े रहो ' । और फ़रमाता है :*_

_*📝तर्जमा : - " नमाज़ शाक है मगर खुशू करने वालों पर " ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 5*_

_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 002)*_
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                _*🕌नमाज़ का बयान🕌*_
 
_*⚜️नमाज़ का मुतलकन तर्क तो सख़्त हौलनाक चीज़ है उसे कज़ा कर के पढ़ने वालों को फरमाता है :*_ 

_*📝तर्जमा : - " खराबी उन नमाजियों के लिये जो अपनी नमाज़ से बे खबर हैं वक़्त गुजार कर पढ़ने उठते हैं " जहन्नम में एक वादी है जिसकी सख्ती से जहन्नम भी पनाह माँगता है उसका नाम वैल है कस्दन नमाज़ कज़ा करने वाले उसके मुस्तहक हैं । और फरमात है :*_

_*📝तर्जमा : - " उन के बाद कुछ नाखलफ पैदा हुये जिन्हों ने नमाजें जाय कर दी और नफ्सानी ख्वाहिशों का इत्तिबाअ किया । अन्करीब उन्हें सख्त अज़ाबे तवील व शदीद से मिलना होगा । गय्य जहन्नम में एक वादी है जिसकी गर्मी और गहराई सब से ज्यादा है उसमें एक कुआँ हैं के जिसका नाम हबहब है जब जहन्नम की आग बुझने पर आती है अल्लाह तआला उस कुँए को खोल देता है जिस से वह बदस्तूर भड़कने लगती है । अल्लाह तआला फरमाता है :*_

_*📝तर्जमा : - " जब बुझने पर आयेगी हम उन्हें और भड़क ज्यादा करेंगे यह कुआँ बे नमाजियों और जानियों और शराबियों और सूद खोरों और माँ बाप को ईजा देने वालों के लिये है नमाज की अहमियत का इससे भी पता चलता है कि अल्लाह तआला ने सब अहकाम अपने हबीब सल्लल्लाहे तआला अलैहि वसल्लम को जमीन पर भेजे और जब नमाज़ फर्ज़ करनी मन्जूर हुई हुजूर को अपने पास अर्श अअजम पर बुला कर उसे फर्ज किया और शबे असरा में तोहफा दिया ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 5/6*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 003)*_
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             _*🕌नमाज़ का बयान🕌*_
 
                  _*📚अहादीस 📚*_

_*📚हदीस न . 1 : - सही बुखारी और मुस्लिम में इब्ने उमर रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से मरवी । रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं इस्लाम की बुनियाद पाँच चीज पर है । इस बात की शहादत देना कि अल्लाह के सिवा कोई सच्चा मअबूद ( पूजने के काबिल ) नई और मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम उस के खास बन्दे और रसूल हैं और नमाज काइम करना और जकात देना और हज करना और माहे रमजान का रोज़ा रखना ।*_

_*📚हदीस न . 2 : - इमाम अहमद व इब्ने माजा रिवायत करते है कि हजरत मआज रदियल्लाहु तआला अन्हु कहते है मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सवाल किया वह अमल इरशाद हो कि मुझे जन्नत में ले जाये और जहन्नम से बचाये फरमाया अल्लाह तआला की इबादत कर और उस के साथ किसी को शरीक न रख और नमाज़ काइम रख और जकात दे और रमज़ान का रोजा रख और बैतुल्लाह का हज कर इस हदीस में यह भी है कि इस्लाम का सुतून नमाज है ।*_

_*📚हदीस न . 3 : - सही मुस्लिम में अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया पाँच नमाजें और जुमे से जुमे तक और रमज़ान से रमज़ान तक उन तमाम गुनाहों को मिटा देते हैं जो इनके दरमियान हो जबकि कबाइर ( यानी गुनाहे कबीरा ) से बचा जाये ।*_

_*📚हदीस न . 4 : - सहीहैन में अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि बताओ तो किसी के दरवाजे पर नहर हो वह उसमें हर रोज़ पाँच बार गुस्ल करे क्या उसके बदन पर मैल रह जायेगा । अर्ज की नहीं यही मिसाल पाँचों नमाजों की है कि अल्लाह तआला उन के . सबब खताओं को मिटा देता है ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 6*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 004)*_
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              _*🕌नमाज़ का बयान🕌*_
 
                   _*📚अहादीस 📚*_

_*📚हदीस न . 5 : - सहीहैन में इब्ने मसऊद रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि एक सहाबी से एक गुनाह सादिर हुआ हाजिर हो कर अर्ज की । उस पर यह आयत नाज़िल हुई :*_

_*📝तर्जमा : - " नमाज़ काइम कर दिन के दोनों किनारों और रात के कुछ हिस्से में बेशक नेकियाँ गुनाहों को दूर करती हैं यह नसीहत है नसीहत मानने वालों के लिए । उन्होंने अर्ज की या रसूलल्लाह क्या यह खास मेरे लिए है फरमाया मेरी सब उम्मत के लिए ।*_

_*📚हदीस न . 6 : - सही बुखारी व मुस्लिम में है कि अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रदियल्लाहु तआला अन्हु कहते हैं मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सवाल किया अअमाल में अल्लाह तआला के नज़दीक सब से ज़्यादा महबूब क्या है फरमाया वक़्त के अन्दर नमाज़ मैंने अर्ज की फिर क्या फरमाया माँ बाप के साथ नेकी करना मैंने अर्ज की फिर क्या राहे खुदा में जिहाद ।*_

_*📚हदीस न . 7 : - बैहकी ने हजरते उमर रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि एक साहब ने अर्ज की या रसूलल्लह ! इस्लाम में सब से ज़्यादा अल्लाह के नज़दीक महबूब क्या चीज है फरमाया वक़्त में नमाज़ पढ़ना और जिस ने नमाज़ छोड़ी उस का कोई दीन नहीं नमाज़ दीन का सुतून है ।*_

_*📚हदीस न . 8 : - अबू दाऊद ने अम्र इब्ने शुऐब अन अबीहे अन जद्देही रिवायत की कि हुजूर ने फरमाया जब तुम्हारे बच्चे सात बरस के हों तो उन्हें नमाज़ का हुक्म दो और जब दस बरस के हो जायें तो मार कर पढ़ाओ ।*_  

_*📚हदीस न . 9 : - इमाम अहमद रिवायत करते हैं कि अबू जर रदियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जाड़ों में बाहर तशरीफ ले गये पतझड़ का जमाना था दो टहनियाँ पकड़ लीं पत्ते गिरने लगे फरमाया अबू ज़र ! मैंने अर्ज की लब्बैक या रसूलल्लाह फरमाया मुसलमान बन्दा अल्लाह के लिए नमाज़ पढ़ता है तो उस से गुनाह ऐसे गिरते हैं जैसे इस दरख्त से यह पत्ते ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 6/7*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 005)*_
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              _*🕌नमाज़ का बयान🕌*_
 
                   _*📚अहादीस 📚*_

_*📚हदीस न . 10 : - सहीह मुस्लिम शरीफ़ में अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो शख्स अपने घर में तहारत ( वुजू या गुस्ल ) कर के फर्ज़ अदा करने के लिए मस्जिद को जाता है तो एक कदम पर एक गुनाह माफ होता है यानी एक गुनाह मिट जाता है और एक दर्जा बुलन्द होता है ।*_

_*📚हदीस न . 11 : - इमाम अहमद , जैद इब्ने खालिद जुहनी रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी है कि हुजूर ने फ़रमाया जो दो रकअत नमाज़ पढ़े और उन में सहव ( भूल ) न करे तो जो कुछ पेश्तर उस के गुनाह हुए हैं अल्लाह तआला माफ फ़रमादेता है यानी सगाइर ( छोटा गुनाह )*_

_*📚हदीस न . 12 : - तबरानी अबू उमामा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत कि हुजूर ने फरमाया कि बन्दा जब नमाज़ के लिये खड़ा होता है उसके लिये जन्नतों के दरवाजे खोल दिये जाते हैं और उसके परवरदिगार के दरमियान से हिजाब हटा दिया जाता है और हूरें उसका इस्तिकबाल करती हैं जब तक नाक सिनके न खंकारे ।*_

 _*📚हदीस न . 13 : - तबरानी ने औसत में और जिया ने अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि हुजूर ने फरमाया कि सब से पहले कयामत के दिन बन्दे से नमाज़ का हिसाब लिया जायेगा अगर यह दुरुस्त हुई तो बाकी अअमाल भी ठीक रहेंगे और यह बिगड़ी तो सभी बिगड़े और एक रिवायत में है कि वह खाइब व खासिर हुआ ।*_

_*📚हदीस न . 14 : - इमाम अहमद व अबू दाऊद व नसई व इब्ने माजा की रिवायत तमीम दारी रदियल्लाहु तआला अन्हु से यूँ है अगर नमाज़ पूरी की है तो पूरी लिखी जायेगी और पूरी नहीं ( यानी उस में नुकसान है ) तो मलाइका से फरमाया गया देखों मेरे बन्दे के नवाफिल हों तो फर्ज पूरे कर दो फिर जकात का इसी तरह हिसाब होगा फिर यूँ ही बाकी अअमाल का ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 7/8*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 006)*_
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              _*🕌नमाज़ का बयान🕌*_
 
                   _*📚अहादीस 📚*_

_*📚हदीस न . 15 : - अबू दाऊदव इब्ने माजा अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि ही हुज़ूर सल्लल्लाहु ताआल अलैहि वसल्लम ने फरमाया ( जो मुसलमान जहन्नम में जायेगा वलअयाजु बिल्लाहि तआला ) उसके पूरे बदन को आग खाायेगी सिवाए आजाए सुजूद के अल्लाह तआला . उस का खाना आग पर हराम कर दिया है ।*_

_*📚हदीस न . 16 : - तबरानी औसत में रावी कि हुजूर ने फरमाया अल्लाह तआला के नज़दीक बन्दे की यह हालत सब से ज़्यादा पसन्द है कि उसे सजदा करता देखे कि अपना मुँह खाक पर रगड़ रहा है ।*_ 

_*📚हदीस न . 17 : - तबरानी औसत में अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि हुजूर ने फरमाया कोई सुबह व शाम नहीं मगर ज़मीन का एक टुकड़ा दूसरे को पुकारता है आज तुझ पर कोई नेक बन्दा गुजरा जिसने तुझ पर नमाज़ पढ़ी या जिक्रे इलाही किया अगर वह हाँ कहे तो उसके लिए इस सबब से अपने ऊपर बुजुर्गी तसव्वुर करता है ।*_
 
_*📚हदीस न . 18 : - सही मुस्लिम में जाबिर रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी कि हुजूर ने फरमाया कि जन्नत की कुंजी नमाज़ है और नमाज़ की कुंजी तहारत है ।*_

_*📚हदीस न . 19 : - अबू दाऊद ने अबू उमामा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि हुजूर ने फरमाया जो तहारत कर के अपने घर से फर्ज नमाज़ के लिए निकला उसका अज्र ऐसा है जैसा हज करने वाले मुहरिम ( इहराम बांधने वाले ) का और जो चाश्त के लिए निकला उसका अज्र उमरा करने वाले की मिस्ल है और एक नमाज़ दूसरी नमाज़ तक के दोनों के दरमियान में कोई लगवियात न हो तो वह नमाज़ इल्लीयीन में लिखी हुई है यानी दर्जए कबूल को पहुँचती है ।*_

_*📚हदीस न . 20 , 21 : - इमाम अहमद व नसई इब्ने माजा ने अबू अय्यूब अन्सारी व उकबा इब्ने आमिर रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि हुजूर ने फ़रमाया कि जिसने वुजू किया जैसा हुक्म है और नमाज़ पढ़ी जैसा नमाज़ का हुक्म है तो जो कुछ पहले किया है माफ हो गया ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 8*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 007)*_
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              _*🕌नमाज़ का बयान🕌*_
 
                   _*📚अहादीस 📚*_

_*📚हदीस न . 22 : - इमाम अहमद अबू ज़र रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि हुजूर ने फरमाया जो अल्लाह के लिये एक सजदा करता है उस के लिये एक नेकी लिखता है और एक गुनाह माफ करता है और एक दर्जा बुलन्द करता है ।*_

_*📚हदीस न . 23 : - कन्जुल उम्माल में है कि जो तनहाई में दो रकअत नमाज़ पढ़े कि अल्लाह और फरिश्ते कि सिवा कोई न देखे उस के लिए जहन्नम से बराअत ( आजादी ) लिख दी जाती है ।*_

_*📚हदीस न . 24 : - मुन्यतुल मुसल्ली में है कि इरशाद फरमाया कि हर शय के लिए एक अलामत होती है ईमान की अलामत नमाज़ है ।*_

_*📚हदीस न . 25 : - मुन्यतुल मुसल्ली में है इरशाद फरमाया नमाज़ दीन का सुतून है जिसने इसे काइम रखा दीन को काइम रखा और जिसने इसे छोड़ दिया दीन को ढा दिया ।*_

 _*📚हदीस न . 26 : - इमाम अहमद व अबू दाऊद उबादा इब्ने सामित रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावा कि हुजूर ने फरमाया कि पाँच नमाजें अल्लाह तआला ने बन्दों पर फर्ज़ की , जिस ने अच्छी तरह वुजू किया और वक़्त में नमाजें पढ़ी और रूकू व खुशूअ को पूरा किया तो उस के लिये अल्लाह तआला ने अपने ज़िम्मए करम पर अहद कर लिया कि उसे बख्श दे और जिसने न किया उस के लिए अहद नहीं चाहे बख्श दे चाहे अज़ाब करे ।*_

_*📚हदीस न . 27 : - हाकिम ने अपनी तारीख में उम्मुल मोमिनीन सिद्दीका रदियल्लाहु तआला अन्हा से रिवायत है की हुजूर फरमाते हैं कि अल्लाह तआला फरमाता है कि अगर वक़्त में नमाज काइम रखे तो मेरे बन्दे का मेरे जिम्मेकरम पर अहद है कि उसे अज़ाब न दूँ और बेहिसाब जन्नत में दाखिल करूँ ।*_

_*📚हदीस न . 28 : - दैलमी अबू सईद रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि हुजूर ने फरमाया कि अल्लाह तआला ने कोई ऐसी चीज़ फर्ज़ न की जो तौहीद और नमाज़ से बेहतर हो अगर इससे बेहतर कोई चीज़ होती तो वह ज़रूर मलाएका पर फर्ज़ करता । उनमें कोई रूकू में है कोई सजदा में ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 8/9*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 008)*_
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              _*🕌नमाज़ का बयान🕌*_
 
                   _*📚अहादीस 📚*_

_*📚हदीस न . 29 : - अबू दाऊद व तियाल्सी अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि हुजूर ने फरमाया जो बन्दा नमाज़ पढ़ कर उस जगह जब तक बैठा रहता है फरिश्ते उस के लिये इस्तिगफार करते हैं उस वक़्त तक कि बे वुजू हो जाए उठ खड़ा हो । मलाइका का इस्तिगफार उस के लिए यह है :*_

_*📝तर्जमा : - " ऐ अल्लाह तू उसको बख्श दे , ऐ अल्लाह तू इस पर रहम कर , ऐ अल्लाह इसकी तौबा कबूल फरमा " । और बहुत सी हदीसों में आया है कि जब तक नमाज़ के इन्तिज़ार में है उस वक़्त तक वह नमाज़ ही में है यह फजाईल मुतलकन नमाज़ के हैं और खास खास नमाज़ों के मुतअल्लिक जो अहादीस वारिद । हुई उन में यह है :*_

_*📚हदीस न. 30 : - तबरानी इब्ने उमर रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि हुजूर इरशाद फरमाते हैं जो सुबह की नमाज़ पढ़ता है वह शाम तक अल्लाह के जिम्मे है । दूसरी रिवायत में है तुम अल्लाह का जिम्मा न तोड़ो जो अल्लाह तआला का ज़िम्मा तोड़ेगा अल्लाह तआला उसे औंधा करके दोज़ख में डालेगा ।*_

_*💫हदीस न . 31 : - इब्ने माजा सलमान फारसी रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि हुजूर ने फरमाया जो सुबह नमाज़ को गया ईमान के झन्डे के साथ गया ।*_ 

_*📚हदीस न . 32 : - बैहकी ने शोअबुल ईमान में उसमान रदियल्लाहु तआला अन्हु से मौकूफन रिवायत की ( जो रिवायत हुजूर का ज़िक्र छोड़ कर की जाए वह मौकुफ़ कहलाती है ) जो सुबह की नमाज़ के लिए तालिबे सवाब होकर हाज़िर हुआ गोया उसने तमाम रात कियाम किया ( इबादत की ) और जो नमाज़े इशा के लिए हाज़िर हुआ गोया वह निस्फ ( आधी ) , शब कियाम किया ।*_

_*📚हदीस न . 33 : - खतीब ने अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि हुजूर ने फ़रमाया जिस ने चालीस दिन नमाजे फज़्र व इशा बाजमाअत पढ़ी उसको अल्लाह तआला दो बरअतें अता फरमायेगा एक नार से दूसरी निफाक से ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 9*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 009)*_
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              _*🕌नमाज़ का बयान🕌*_
 
                   _*📚अहादीस 📚*_

_*📚हदीस न . 34 : - इमाम अहमद अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि फरमाते हैं रात और दिन के मालाइका नमाजे फज्र व अस्र में जमा होते हैं जब वह जाते हैं तो अल्लाह तआला उन से फरमाता है कहाँ से आये हालाँकि वह जानता है । अर्ज करते हैं तेरे बंदों के पास से जब के पास उन के पास गये तो वह नमाज़ पढ़ रहे थे और उन्हें नमाज़ पढ़ता छोड़कर तेरे पास पास हाज़िर हुए ।*_

 _*📚हदीस न . 35 : - इब्ने माजा इब्ने उमर रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रावी कि हुजूर फरमाते हैं मस्जिद में जमाअत चालीस रातें नमाज़े इशा पढ़े कि रकअते ऊला फौत न हो अल्लाह तआला उस के लिए दोज़ख से आज़ादी लिख देता है ।*_

_*📚हदीस न . 36 : - तबरानी ने अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि हुजूर फरमाते हैं सब नमाज़ों में ज़्यादा गिराँ मुनाफेकीन पर नमाज़े इशा व फज्र हैं और जो इनमें फजीलत है अगर जानते तो ज़रूर हाज़िर होते अगरचे सुरीन के बल घिसटते हुए यानी जैसे भी मुमकिन होता हाज़िर होते ।*_

_*📚हदीस न . 37 : - बज़्ज़ाज़ ने इब्ने उमर रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत की कि हुजूर फरमात हैं जो नमाज़े इशा से पहले सोए , अल्लाह उसकी आँख को न सुलाए नमाज़ न पढ़ने पर जो वईंदें आई उन में बाज़ यह हैं ।*_ 

_*📚हदीस न . 38 : - सहीहैन में नौफल इब्ने मुआविया रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी हुजूरे अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं जिसकी नमाज़ फौत हुई गोया उसके अहल व माल जाते रहे ।*_

_*📚हदीस न . 39 : - अबू नईम अबू सईद रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि हुजूर ने फरमाया जिस ने कस्दन ( जानबूझ कर ) नमाज़ छोड़ी जहन्नम के दरवाजे पर उसका नाम लिख दिया जाता है ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 9/10*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 010)*_
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              _*🕌नमाज़ का बयान🕌*_
 
                   _*📚अहादीस 📚*_

_*📚हदीस न . 40 : - इमाम अहमद उम्मे ऐमन रदियल्लाहु तआला अन्हा से रावी कि हुजूर ने फरमाया कस्दन नमाज़ तर्क न करो कि जो कस्दन नमाज़ तर्क कर देता है अल्लाह व रसूल उससे बरिउज्जिम्मा हैं ।*_

_*📚हदीस न . 41 : - शैखैन ने उसमान इब्ने अबी आस रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि हुजूर फरमाते हैं जिस दीन में नमाज़ नहीं उसमें कोई खैर नहीं ।*_

_*📚हदीस न . 42 : - बैहकी हज़रते उमर रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि हुजूर फरमाते हैं जिसने नमाज़ छोड़ दी उसका कोई दीन नहीं नमाज़ दीन का सुतून है ।*_ 

_*📚हदीस न . 43 : - बज्जाज़ ने अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि फरमाते हैं इस्लाम में उसका कोई हिस्सा नहीं जिस के लिए नमाज न हो ।*_

_*📚हदीस न . 44 : - इमाम अहमद व दारमी व बैहकी शोअबुल ईमान में रावी कि हुजूर ( सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ) ने फरमाया जिस ने नमाज़ पर मुहाफज़त ( मुदावमत यानी हमेशा पढ़ी ) की कियामत के दिन वह नमाज़ उसके लिए नूर व बुरहान व नजात होगी और जिस ने मुहाफजत न की उसके लिए न नूर है और न बुरहान न नजात और कयामत के दिन कारून व फिरऔन हामान व उबई इब्ने खल्फ के साथ होगा ।*_

_*📚हदीस न . 45 : - बुखारी व मुस्लिम व इमाम मालिक नाफेअ रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी हजरते अमीरूल मोमिनीन फारूके आजम रदियल्लाह तआला अन्हु ने अपने सूबों के पास फरमान भेजा कि तुम्हारे सब कामों से अहम मेरे नजदीक नमाज है जिस ने उसकी हिफाजत की और उस पर मुहाफजत की उस ने अपना दीन महफूज रखा और जिस ने उसे जाए ( तबाह व बरबाद ) किया वह औरों को बदर्जए औला जाए करेगा ।*_

_*📚हदीस न . 46 : - तिर्मिज़ी अब्दुल्लाह इब्ने शकीक रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि सहाबा किराम किसी अमल के तर्क को कुफ्र नहीं जानते सिवा नमाज के । बहुत सी ऐसी हदीसें आई जिन का जाहिर यह है कि कस्दन नमाज़ का तर्क कुफ्र है और बाज़ सहाबए किराम मसलन हज़रते अमीरूल मोमिनीन फारूके अअज़म व अब्दुर्रहमान इब्ने औफ व अब्दुल्लाह व मआज इब्ने जबल व अबू हुरैरा व अबू दर्दा रदियल्लाहु तआला अन्हुम का यही मज़हब था और बाज अइम्मा मस्लन इमाम अहमद इब्ने हम्बल व इसहाक इब्ने राहविया व अब्दुल्लाह इब्ने मुबारक व इमाम नखई का भी यही मजहब था अगर्चे हमारे इमाम आज़म व दीगर अइम्मा व बहुत से सहाबए किराम भी उसकी तकफीर नहीं करते फिर भी यह क्या थोड़ी बात है कि इन जलीलुलकद्र हज़रात के नज़दीक ऐसा शख्स काफिर है ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 10/11*_

_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 011)*_
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                _*🕌नमाज़ का बयान🕌*_
 
    ‌‌ _*📑अहकामे फिक़्हिय्या📑*_

_*📖मसअला : - हर मुकल्लफ यानी आकिल बालिग पर नमाज़ फर्ज ऐन है । उसकी फर्जियत का मुन्किर काफिर है और जो कस्दन ( जानबूझ कर ) छोड़े अगर्चे एक ही वक़्त की वह फासिक है और जो नमाज न पढ़ता हो कैद किया जाए , यहाँ तक कि तौबा करे और नमाज़ पढ़ने लगे बल्कि अइम्मा सलासा मालिक व शाफेई व अहमद रदियल्लाहु तआला अन्हुम के नज़दीक सुलताने इस्लाम को उसके कत्ल का हुक्म है ।*_

_*📖मसअला : - बच्चे की जब सात बरस की उम्र हो उसे नमाज़ पढ़ना सिखाया जाए और जब दस बरस का हो तो मार कर पढ़ाना चाहिए । नमाज़ ख़ालिस इबादते बदनी है उसमें नियाबत जारी नहीं हो सकती यानी एक की तरफ से दूसरा नहीं पढ़ सकता । न यह हो सकता है कि ज़िन्दगी में नमाज़ के बदले कुछ माल बतौर फिदया अदा कर दें । अलबत्ता अगर किसी पर कुछ नमाजें रह गई हैं और इन्तेकाल कर गया और वसीयत कर गया कि उसकी नमाजों का फिदया अदा कर दिया जाए और उम्मीद है कि इन्शाअल्लाह तआला कबूल हो और बे - वसीयत भी वारिस उसकी तरफ से फिदया दें कि उम्मीद कबूल व अफ्व है यानी गुनाहों के माफ होने की उम्मीद है ।*_

_*📖मसअला : - नमाज़ की फ़र्जियत का सबबे हकीकी अल्लाह का हुक्म है और सबबे ज़ाहिरी वक़्त है कि अव्वल वक़्त से आखिर वक़्त तक जब अदा करे अदा हो जायेगी और फर्ज जिम्मा से साकित हो जायेगा और अगर अदा न की यहाँ तक वक़्त का एक ख़फीफ हिस्सा बाकी है तो यही आखिरी हिस्सा सबब है तो , अगर कोई मजनून या बेहोश होश में आया या हैज़ व निफास वाली पाक हुई या बच्चा बालिग हुआ या मुसलमान हुआ और वक़्त सिर्फ इतना है कि अल्लाहु अकबर कह ले तो उन सब पर उस वक़्त की नमाज़ फर्ज हो गई और जुनून व बेहोशी पाँच वक़्त से ज़्यादा को घेरे न हो यानी नमाज के पाँच वक़्तों को न घेरे हों तो अगर्चे तकबीरे तहरीमा का भी वक़्त न मिले नमाज फर्ज है कज़ा पढ़े ‌। हैज़ व निफास वाली में तफसील है जो हैज़ के बयान में ज़िक्र हुई ( यानी हैज वाली अगर पूरी मुद्दत में पाक हुई तो सिर्फ अल्लाहु अकबर की गुंजाइश वक़्त में होने से नमाज़ फर्ज हो जाएगी और अगर पूरी मुद्दत से पहले पाक हुई यानी हैज़ में दस दिन से पहले निफास में चालीस दिन से पहले तो इतना वक़्त दरकार है कि गुस्ल करके कपड़े पहनकर अल्लाहु अकबर कह सके गुस्ल कर सकने में गुस्ल के दूसरे काम जैसे पानी लाना कपड़े उतारना करना भी दाखिल हैं ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 11/12*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 012)*_
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                _*🕌नमाज़ का बयान🕌*_
 
    ‌‌ _*📑अहकामे फिक़्हिय्या📑*_

_*📖मसअला : - नाबालिग ने वक़्त में नमाज़ पढ़ी थी और अब आखिर वक़्त में बालिग हुआ तो उस फर्ज है कि अब फिर पढ़े । यूँही अगर मआज़ल्लाह कोई मुर्तद हो गया फिर आखिर वक़्त में हस्लाम लाया उस पर उस वक़्त की नमाज़ फर्ज़ है अगर्चे अव्वल वक़्त में कब्ल इरतेदाद यानी मुरतद होने से पहले नमाज़ पढ़ चुका हो ।*_

_*📖मसअला : - नाबालिग इशा की नमाज़ पढ़ कर सोया था उसको एहतिलाम हुआ और बेदार न हुआ यहाँ तक फज़्र तुलू होने के बाद आँख खुल , गई दुबारा पढ़े और अगर तुलूए फ़ज़्र से पहले आँख खुली तो उस पर इशा की नमाज बिलइजमाअ यानी हर एक के नज़दीक फर्ज है ।*_

_*📖मसअला : - किसी ने अव्वल वक़्त में नमाज़ न पढ़ी थी और आख़िर वक़्त में कोई ऐसा उज्र पैदा होगया जिस से नमाज़ साकित हो जाती है मसलन आखिर वक़्त में हैज व निफास हो गया या खुन या बेहोशी तारी हो गई तो उस वक़्त की नमाज़ माफ हो गई । उस की कज़ा भी उन पर नहीं है मगर जुनून या बेहोशी में शर्त है कि अललइत्तिसाल पाँच नमाज़ों से जाएद को घेर लें यानी लगातार छ : नमाज़ के वक़्त तक बेहोशी रहे वर्ना कज़ा लाज़िम होगी ।*_

_*📖मसअला : - यह गुमान था कि अभी वक्त नहीं हुआ नमाज़ पढ़ ली नमाज़ के बाद मालूम हुआ कि वक़्त हो गया था नमाज़ न हुई ।*_
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           ‌ _*⏰नमाज़ के वक़्तों का बयान⏰*_ 

_*🕋अल्लाह तआला ने फरमाया :*_

_*📝*तर्जमा : - " बेशक नमाज़ ईमान वालों पर फर्ज़ है वक़्त बाँधा हुआ " । और फरमाता है :*_

_*📝तर्जमा : - " अल्लाह की तस्बीह करो जिस वक़्त तुम्हें शाम हो ( नमाज़े मगरिब व इशा ) और जिस वक़्त सुबह हो ( नमाज़े फज्र ) और उसी की हम्द है आसमानों और ज़मीन में और पिछले पहर को नमाजे अस्र और जब तुम्हें दिन ढले ( नमाजे जोहर )*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 12*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 013)*_
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       _*⏰नमाज़ के वक़्तों का बयान⏰*_ 

                    _*📚अहादीस 📚*_

_*📚हदीस न . 1 : - हाकिम ने इब्ने अब्बास रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत की नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं फज़्र दो हैं एक वह जिसमें खाना हराम यानी रोजदार के लिए और नमाज़ हलाल ' दूसरी वह कि उसमें नमाज़े फ़ज़्र हराम और खाना हलाल।*_ 

_*📚हदीस न . 2 : - नसई अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि फरमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जिस शख्स ने फज्र की एक रकअत कब्ले तुलूए आफताब पा ली तो उसने नमाज़ पाली (उस पर फर्ज हो गई ) और जिसे एक रकअत अस्र की कब्ले गुरूबे आफताब मिल गई उसने नमाज़ पाली यानी उसकी नमाज़ हो गई । यहाँ दोनों जगह रकअत से तकबीरे तहरीमा मुराद ली जायेगी यानी अस्र की नियत बाँध ली तकबीरे तहरीमा कह ली उस वक़्त तक आफ़ताब न डूबा था फिर डूब गया नमाज़ हो गई और काफिर मुसलमान हुआ था और बच्चा बालिग हुआ उस वक़्त कि आफताब तुलू होने तक तकबीरे तहरीमा कह लेने का वक़्त बाकी था , इस फज़्र की नमाज़ उस पर फर्ज़ हो गई कज़ा पढ़े और तुलूए आफ़ताब के बाद मुसलमान या बालिग हुआ , तो वह नमाज़ उस पर फ़र्ज़ न हुई।*_

_*📚हदीस न . 3 : - तिर्मिज़ी राफेअ इब्ने खुदैज रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि फरमाते है सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फज्र की नमाज़ उजाले में पढ़ो कि इसमें बहुत अज़ीम सवाब है।*_

_*📚हदीस न . 4 : - दैलमी की रिवायत अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से है कि इससे तुम्हारी मगफिरत हो जायेगी और दैलमी की दूसरी रिवायत उन्हीं से है कि जो फज्र को रौशन कर के पढ़ेगा अल्लाह तआला उसकी कब्र और कल्ब को मुनव्वर करेगा और उसकी नमाज़ कबूल फ़रमायेगा।*_ 

_*📚हदीस न . 5 : - तबरानी औसत में अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि हुजूर फरमाते हैं मेरी उम्मत हमेशा फितरत यानी दीने हक पर रहेगी जब तक फज्र को उजाले में पढ़ेगी।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 12/13*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 014)*_
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     ‌ _*⏰नमाज़ के वक़्तों का बयान⏰*_ 

                  _*📚अहादीस 📚*_

_*📚हदीस न . 6 : - इमाम अहमद व तिर्मिज़ी अबू हुरैरा रदियल्लाहुतआला अन्हु से रावी कि हुजूर अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम फरमाते हैं नमाज़ के लिये अव्वल व आखिर हैं अव्वल वक़्त जोहर का उस वक़्त है कि आफ़ताब ढल जाए और आख़िर उस वक़्त कि सूरज पीला हो जाए और अव्वल वक़्त मगरिब का उस वक़्त कि सूरज डूब जाए और उसका आख़िर वक़्त जब शफक डूब जाए और अव्वल वक़्त इशा का ज़ब शफक डूब जाए और आखिर वक़्त जब आधी रात हो जाए (यानी वक़्ते मुबाह बिला कराहत)*_

_*📚हदीस न . 7 : - बुख़ारी व मुस्लिम अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि फरमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ज़ोहर को ठंडा करके पढ़ो कि सख्त गर्मी जहन्नम के जोश से है दोज़ख ने अपने रब के पास शिकायत की कि मेरे बाज़ हिस्से बाज़ को खाए लेते हैं उसे दो मर्तबा साँस की इजाज़त हुई एक जाड़े में एक गर्मी में।*_

_*📚हदीस न . 8 : - सही बुख़ारी शरीफ़ बाबुल अज़ान लिलमुसाफेरीन में है अबू ज़र रदियल्लाहु तआला अन्हु कहते हैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के साथ एक सफर में थे मुअज्जिन ने अजान कहनी चाही । फ़रमाया ठंडा कर फिर इरादा किया फरमाया ठंडा कर फिर इरादा किया फ़रमाया ठंडा कर यहाँ तक कि सांया टीलों के बराबर हो गया।*_

_*📚हदीस न . 9 . 10 . : - इमाम अहमद अबू दाऊद अबू अय्यूब व उक्बा इब्ने आमिर रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रावी कि फरमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मेरी उम्मत हमेशा फितरत पर रहेगी जब तक मगरिब में इतनी ताख़ीर न करे कि सितारे गुत्थ जायें।*_

_*📚हदीस न . 11 : - अबू दाऊद ने अब्दुल अज़ीज़ इब्ने रफीअ् रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत कि फरमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम दिन की नमाज़ (अस्र) अब्र के दिन में जल्दी पढ़ो और मगरिब में ताख़ीर करों।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 13/14*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 015)*_
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       _*⏰नमाज़ के वक़्तों का बयान ⏰*_ 

                 _*📚अहादीस 📚*_

_*📚हदीस न . 12 : - इमाम अहमद अबू हुरैरह रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी है कि फरमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम अगर यह बात न होती कि मेरी उम्मत पर मशक्कत हो जायेगी तो मैं उनको हुक्म फरमा देता कि हर वुजू के साथ मिस्वाक करें और इशा की नमाज तिहार आधी रात तक मुअख्खर कर देता कि रब तबारक व तआला आसमान पर ख़ास तजल्लीए रह़मत फरमाता है और सुबह तक फरमाता रहता है कि है कोई साइल कि उसे दूँ है कोई मगफिरत चाहने वाला कि उसकी मगफिरत करूँ , है कोई दुआ करने वाला कि कबूल करूँ ।*_ 

_*📚हदीस न . 13 : - तबरानी औसत में अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि फरमाते है सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जब फज्र तुलू कर आए तो कोई नफ्ल नमाज नहीं सिवा दो रकअत फ़ज़्र के ।*_

_*📚हदीस न . 14 : - बुखारी व मुस्लिम में अबू सईद खुदरी रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी कि फरमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम बादे सुबह नमाज़ नहीं जब तक कि आफ़ताब बलन्द न हो जाए और अस्र के बाद नमाज नहीं यहाँ तक कि गुरूब हो जाए ।*_

_*📚हदीस न . 15 : - सहीहैन में अब्दुल्लाह सनाबेही रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी फरमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम आफताब शैतान के सींग के साथ तुलूअ करता है जब बुलन्द हो जाता है तो जुदा हो जाता है फिर जब सर की सीध पर आता है तो शैतान उससे करीब हो जाता है जब ढल जाता है तो हट जाता है फिर जब गुरूब होना चाहता है शैतान उससे करीब हो जाता है जब डूब जाता है जुदा हो जाता है तो इन तीन वक़्तो में नमाज़ न पढ़ो ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 14*_

_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 016)*_
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           ‌ _*⏰नमाज़ के वक़्तों का बयान⏰*_ 

    ‌‌ _*📑अहकामे फिक़्हिय्या📑*_

_*📖मसअला : - वक़्ते फज्र : - फ़ज़्र का वक़्त सुबहे सादिक से सूरज की किरण चमकने तक है ।*_

_*💫फायदा : - सुबहे सादिक उस सौशनी को कहते हैं कि पूरब की तरफ आज जहाँ से सूरज निकलने वाला है वहाँ आसमान के किनारे पर दिखाई देती है और बढ़ती जाती है यहाँ तक कि पूरे आसमान पर फैल जाती है और ज़मीन पर उजाला हो जाता है । सुबहे सादिक पर पहले बीच आसमान में एक दराज़ सफेदी ज़ाहिर होती है जिसके नीचे सारा उफक ( सूरज निकलने और डूबने की जगहों को उफक कहते हैं ) स्याह होता है , सुबहे सादिक उसके नीचे से फूटकर उत्तर और दक्षिण दोनों पहलूओं पर फैल कर ऊपर बढ़ती है और यह दराज़ सफेदी उसमें गायब हो जाती है , इसको सुबहे काज़िब ( यानी यूँ समझिए कि झूटी सुबह या धोका देने वाली सुबहे जिससे फज्र के होने का धोका होता है ) कहते हैं इस से फज्र का वक़्त नहीं होता । यह जो बाज़ ने लिखा है कि सुबहे काज़िब की सफेदी जाकर बाद को तारीकी हो जाती है महज़ गलत है सही वह है जो हमने बयान किया ।*_

_*📖मसअला : - अफजल यह है कि फज्र की नमाज़ में सुबहे सादिक की सफेदी चमक कर ज़रा फैलनी शुरू हो उसका एअतिबार किया जाए और इशा और सहरी खाने में सफेदी के तुलू के शुरू होने का एअतेबार किया जाए । ( कहने का मतलब यह है कि अगर इशा या सहरी का वक़्त निकलना है तो जिस वक़्त तुलूअ शुरू हो उस वक़्त को मानें और अगर फज्र का वक़्त निकलना हो तो सुबहे सादिक की सफेदी चमक कर जब फैले उस वक़्त को मानें । जैसे कि आगे के मसाइल से साफ हो जाएगा )*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 14/15*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 017)*_
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           ‌ _*⏰नमाज़ के वक़्तों का बयान⏰*_ 

    ‌‌ _*📑अहकामे फिक़्हिय्या📑*_

_*💫फायदा : - सुबहे सादिक चमकने से तुलूए आफ़ताब तक उन शहरों में कम से कम 1 घंटा 18 मिनट है और ज़्यादा से ज़्यादा 1 घंटा 35 मिनट , न इससे कम होगा न इससे ज़्यादा । 21 मार्च को 11 घंटा 18 मिनट होता है फिर बढ़ता रहता है यहाँ तक कि 22 जून को पूरा 1 घंटा 35 मिनट हो , जाता है । फिर घटना शुरू होता है यहाँ तक कि 22 सितम्बर को 1 घंटा 18 मिनट हो जाता है । फिर बढ़ता है यहाँ तक कि 22 दिसम्बर को 1 घंटा 24 मिनट होता है । फिर कम होता रहता है । यहाँ तक कि 21 मार्च को वही 1 घंटा 18मिनट हो जाता है । जो शख्स सही वक़्त न जानता हो । उसे चाहिए कि गर्मियों में सूरज निकलने से 1 घंटा 40 मिनट पहले सहरी छोड़ दे खुसूसन जून जुलाई में और जाड़ों में डेढ़ घंटा रहने पर खुसूसन दिसम्बर जनवरी में और मार्च सितम्बर के अवाख़िर ( इन दोनों . महीने के आखिरी पाँच छः दिन ) में जब दिन रात बराबर होते हैं तो सहरी 1घंटा 24 मिनट पर छोड़े और सहरी छोड़ने का जो वक़्त बयान किया गय उसके आठ दस मिनट बाद अज़ान कही जाए ताकि सहरी और अज़ान दोनों तरफ एहतियात रहे ।*_ 

_*✨बाज़ नावाकिफ आफ़ताब निकलने से दो पौने दो घंटे पहले अज़ान कह देते हैं फिर उसी वक़्त सुन्नत बल्कि फज्र भी बाज़ दफा पढ़ लेते हैं , न यह अज़ान हुई न नमाज़ । बाज़ों ने रात का सातवाँ हिस्सा वक़्ते फज्र समझ रखा है यह हरगिज़ सही नहीं । माह जून व जुलाई में जबकि दिन बड़ा होता है । और रात तकरीबन दस घंटे की होती है इन दिनों में तो अलबत्ता वक़्ते सुबह रात का सातवाँ हिस्सा या उससे चन्द मिनट पहले हो जाता है मगर दिसम्बर जनवरी में जबकि रात चौदह घंटे की होती है उस वक़्त फज्र का वक़्त नवाँ हिस्सा बल्कि उससे भी कम हो जाता है । फज्र का वक़्त कब शुरू होता है इसकी शनाख्त दुश्वार है खुसूसन उस वक़्त जब कि गुबार हो या चाँदनी रात हो लिहाज़ा हमेशा तुलूए आफ़ताब का ख्याल रखें कि आज जिस वक़्त तुलूअ हुआ दूसरे दिन उसी हिसाब से ऊपर ज़िक्र हुए वक़्त के अन्दर अन्दर अज़ान व नमाज़े फ़ज़्र अदा की जाए ।*_


_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 15*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 018)*_
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           ‌ _*⏰नमाज़ के वक़्तों का बयान⏰*_ 

    ‌‌ _*📑अहकामे फिक़्हिय्या📑*_

_*⌚वक़्ते जोहर व जुमा : - आफताब ढलने से उस वक़्त तक है कि हर चीज़ का साय अलावा सायए असली के दो गुना हो जाए ।*_

_*💫फाइदा : - हर दिन का साया असली वह साया है कि उस दिन आफ़ताब के खत्ते निस्फुन्नहार ( उत्तर से दक्षिण दिशा में खींची गई वह रेखा है जिस वक़्त सूरज ठीक ऊपर होता है यानी आधा दिन हो गया होता है और इस रेखा से सूरज के ढलते ही जोहर का वक़्त शुरू हो जाता है ) पर पहुँचने के वक़्त होता है । सायए असली मौसम और शहरों के मुख़्तलिफ होने से मुख्तलिफ़ होता है । दिन जितना घटता है साया उतना बढ़ता जाता है और दिन जितना बढ़ता जाता है साया कम होता जाता है यानी जाड़ों में ज़्यादा होता है और गर्मियों में कम और उन शहरों में जो कि खत्ते इस्तेवा ( विषुवत रेखा ) के करीब में है कम होता है बल्कि बाज़ मौसम में बाज़ जगह बिल्कुल होता ही नहीं । जब आफताब बिल्कुल सिम्ते रास पर होता है चुनाँचे सर्दी के मौसम दिसम्बर में हमारे मुल्क के , बलद ( अक्षाँश ) 28 डिग्री के करीब पर है साढ़े आठ कदम से ज़्यादा यानी सवाए के करीब हो जाता है और मक्का मुअज्जमा में जो 21 डिग्री पर है इन दिनों में सात कदम से कुछ ही ज़्यादा होता है इस से ज़्यादा फिर नहीं होता । इसी तरह गर्मी के मौसम में मक्का मुअज्जमा में मई से 30 मई तक दोपहर के वक़्त बिल्कुल साया नहीं होता उसके बाद फिर वह साया उलटा ज़ाहिर होता है यानी साया जो उत्तर को पड़ता था अब मक्का मुअज्जमा में दक्षि को पड़ता है और 22 जून तक पाव कदम तक बढ़कर फिर घटता है यहाँ तक कि 15 जुलाई में 18 जुलाई तक फिर खत्म हो जाता है । इस के बाद फिर उत्तर की तरफ जाहिर होता है और मुल्क में न कभी दक्षिण की तरफ पड़ता है न खत्म होता है बल्कि सब से कम साया 22 जून को आधा कदम बाकी रहता है ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 15/16*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 019)*_
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           ‌ _*⏰नमाज़ के वक़्तों का बयान⏰*_ 

    ‌‌ _*📑अहकामे फिक़्हिय्या📑*_

_*💫फायदा : - आफताब ढलने , की पहचान यह है कि बराबर ज़मीन में एक सीधी लकड़ी इस तरह सीधी गाड़ें कि पूरब या पश्चिम को बिल्कुल झुकी न हो । आफताब जितना बलन्द होता जाएगा उस लकड़ी का साया कम होता जाएगा जब कम होना रूक जाए उस वक़्त खत्ते निस्फुन्नहार पर पहुंचा और उस वक़्त का साया सायए अस्ली है , उस के बाद बढ़ना शुरू होगा । यह दलील है कि खत्ते निस्फुन्नहार से मुताज़ाविज़ हुआ यानी आगे बढ़ा अब ज़ोहर का वक़्त हुआ । यह एक तख़मीना यानी अन्दाज़ा है इसलिए कि साये का कम या ज्यादा होना खुसूसन गर्मी के मौसम में जल्द पहचान ने में नहीं आता यानी फर्क पता नहीं चल पाता ।*_

_*✨इससे बेहतर तरीका खत्ते निस्फुन्नहार निकालने का यह है कि बराबर ज़मीन में निहायत सही कम्पास से सुई की सीध पर खत्ते निस्फुन्नहार खींच दें और इन मुल्कों में उस खत के दक्षिणी किनारे पर कोई मखरूती शक्ल ( लम्ब व्रत्तीय शंकु ) निहायत बारीक नोकदार लकड़ी खूब सीधी गाड़ दें कि पूरब या पश्चिम को बिल्कुल न झुकी हो और वह खत्ते निस्फुन्नहार उस काएदे के ठीक बीच में हो जब उसकी नोक का साया उस ख़त ( रेखा ) पर ठीक ठीक आ जाए यानी उस को दक ले तो उस वक़्त ठीक दोपहर होगी । जब यह बाल बराबर पूरब को झुके दोपहरं ढल गया ज़ोहर का वक़्त आ गया ।*_

_*⌚वक़्ते अस्र :- ज़ोहर का वक़्त खत्म होने के बाद यानी सिवा सायए असली के दो मिस्ल साया होने से आफताब डूबने तक है ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 16*_

_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 020)*_
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           ‌ _*⏰नमाज़ के वक़्तों का बयान⏰*_ 

    ‌‌ _*📑अहकामे फिक़्हिय्या📑*_

_*💫फायदा : - इन शहरों में अस्र का वक्त कम अज़ कम 1 घंटा 35 मिनट और ज़्यादा से ज़्यादा 2 घंटा 6 मिनट है । इसकी तफसील यह है कि 24 अक्तूबर तहवीले अकरब से आखिर माह तक 1 घंटा 36 मिनट फिर 1 नवम्बर से 18 फरवरी यानी पौने चार महीने तक तकरीबन एक घंटा 35 मिनट । साल में यह सब सै छोटा अस्र का वक़्त है । इन शहरों में कभी अस्र का वक़्त इससे कभ नहीं होता । फिर 19 फरवरी तहवीले हूत से ख़त्म माह तक 1 घंटा 36 मिनट । फिर मार्च के पहले हफते में 1 घंटा 37 मिनट दूसरे हफ्ते में 1 घंटा 38 तीसरे हफ्ते में 1 घंटा 40 मिनट । फिर 21 मार्च तहवीले हमल से आखिर माह तक 1 घंटा 41 मिनट फिर अप्रैल के पहले हफ्ते में 1 घंटा 43 मिनट दूसरे हफ्ते में 1 घंटा 45 मिनट तीसरे हफ्ते में 1 घंटा 48 मिनट । फिर 20 व 21 अप्रैल तहवीले सौर ( वर्ष ) से आखिर माह तक 1 घंटा 50 मिनट फिर मई के पहले हफ्ते में 1 घंटा 53 मिनट दूसरे हफ्ते में 1 घन्टा 55 मिनट तीसरे हफ्ते में 1 घन्टा 58 मिनट । फिर 22 व 23 मई तहवीले जौज़ा से आखिर माह तक 2 घंटा 1 मिनट फिर जून के पहले हफ्ते में 2 घंटा 3 मिनट दूसरे हफ्ते में 2 घंटा 4 मिनट तीसरे हफ्ते में 2 घंटा 5 मिनट ।*_

                         _*फिर 22 जून तहवीले सरतान से आखिर माह तक 2 घंटें 6 मिनट फिर जुलाई के पहले हफ्ते में 2 घंटे 5 मिनट और दूसरे हफ्ते में 2 घंटे 4 मिनट तीसरे हफ्ते में 2 घंटे 2 मिनट फिर 23 जुलाई तहवीले असद को 2 घंटे 1 मिनट इसके बाद आख़िर से माह तक 2 घंटे फिर अगस्त के पहले हफ्ते में 1 घंटे 58 मिनट दूसरे हफ्ते में 1 घंटा 55 मिनट तीसरे हफ्ते में 1 घंटा 51 मिनट । फिर 23 व 24 अगस्त को तहवीले सुम्बला को 1 घंटा 50 मिनट फिर उसके बाद से आख़िर " माह तक 1 घंटा 48 मिनट फिर सितम्बर के पहले हफ्ते में 1 घंटा 46 मिनट फिर दूसरे हफ्ते में 1 घंटा 44 मिनट , तीसरे हफ्ते में 1 घंटा 42 मिनट । फिर 23 व 24 सितम्बर तहवीले मीज़ान 1 घंटा 41 मिनट फिर उसके बाद आख़िर माह तक 1 घंटा 40 मिनट फिर अक्तूबर के पहले हफ्ते में 1 घंटे 39 मिनट , दूसरे हफ्ते में 1 घंटे 38 मिनट तीसरे हफ्ते में 23 अक्तूबर तक 1 घंटा 37 मिनट में गुरूबे आफ़ताब से पहले वक्ते अस्र शुरू होता है ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 16/17*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 021)*_
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           ‌ _*⏰नमाज़ के वक़्तों का बयान⏰*_ 

    ‌‌ _*📑अहकामे फिक़्हिय्या📑*_

_*⌚वक़्ते मगरिब : - गुरूबे आफताब से गुरूबे शफक तक है ।*_

_*📖मसअला : - शफक हमारे मज़हब में उस सफेदी का नाम है जो पश्चिम की जानिब में सुर्थी डूबने के बाद उत्तर दक्षिण दिशा में सुबहे सादिक की तरह फैली रहती है ।*_  

_*✨और यह वक़्त उन शहरों में कम से कम 1 घंटा 18 मिनट और ज़्यादा से ज़्यादा 1 घंटा 35 मिनट होता है फकीर ने भी इसका बकसरत तजर्बा किया ।*_

_"💫फ़ायदा : - हर रोज़ के सुबह और मग़रिब दोनों के वक़्त बारबर होते है ।*_

_*⌚वक़्ते इशा व वित्र : - वह सफेदी जिसके रहने तक मगरिब का वक़्त रहता है जब वह खत्म हो जाती है उस वक़्त से लेकर सुबहे सादिक यानी फज्र का वक़्त शुरू होने तक है । उस उत्तर दक्षिण फैली हुई सफेदी के बाद जो सफेदी पूरब पश्चिम दूर तक फैली रहती है उसका कुछ एअतेबार नहीं । वह पूरब की तरफ़ वाली सुबहे काज़िब की तरह है ।*_

_*📖मसअला : - अगर्चे इशा और वित्र का वक़्त एक है मगर उन में तरतीब फ़र्ज़ है कि इशा से पहले वित्र की नमाज़ पढ़ ली तो होगी ही नहीं अलबत्ता भूल कर अगर वित्र पहले पढ़ लिए या बाद को मालूम हुआ कि इशा की नमाज़ बेवुजू पढ़ी थी और वित्र वुजू के साथ तो वित्र हो गए ।*_

_*📖मसअला : - जिन शहरों में इशा का वक़्त ही न आए कि शफ़क डूबते ही या डूबने से पहले फज्र तुलूअ कर आए ( जैसे बुलगार व लन्दन कि इन जगहों में हर साल चालीस रातें ऐसी होती हैं कि इशा का वक़्त आता ही नहीं और बाज़ दिनों में सेकन्डों और मिनटों के लिए होता है ) तो वहाँ वालों को चाहिए कि इन दिनों की इशा व वित्र की कज़ा पढ़ें ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 17*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 022)*_
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   _*⏰नमाज़ों के मुस्तहब वक़्तों का बयान ⏰*_ 

_*💫फज्र में ताख़ीर ( देरी ) मुस्तहब है यानी इस्फार ( जब खूब उजाला हो यानी ज़मीन रौशन जाए ) में शुरू करे मगर ऐसा वक़्त होना मुस्तहब है कि चालीस से साठ आयत तक तरतील के साथ पढ़ सके फिर सलाम फेरने के बाद इतना वक़्त बाकी रहे कि अगर नमाज़ दोहराना पड़े तो तहारत करके तरतील के साथ चालीस से साठ आयतें दोबारा पढ़ सके और इतनी देर करना मकरूह है कि तुलूए आफ़ताब का शक हो जाए ।*_

_*📖मसअला : - हाजियों के लिए मुज़दलेफा में बिल्कुल अव्वल वक़्त फज्र पढ़ना मुस्तहब है ।*_

_*📖मसअला : - औरतों के लिए हमेशा फज्र की नमाज़ अव्वल वक़्त यानी तारीकी में पढ़ना मुस्तहब है और बाकी नमाज़ों में यह बेहतर है कि मर्दो की जमाअत का इन्तिज़ार करें जब जमाअत हो चुके तो पढ़ें ।*_

_*📖मसअला : - जाड़ों की जोहर जल्दी मुस्तहब है गर्मियों में ताख़ीर ख्वाह तन्हा पढ़े या जमाअत के साथ । हाँ अगर गर्मियों में जोहर की नमाज़ अव्वल वक़्त में होती हो तो मुस्तहब वक़्त के लिए जमाअत का तर्क करना जाइज़ नहीं । रबी का मौसम जाड़ों के हुक्म में है और खरीफ गर्मियों के हुक्म में ।*_

_*📖मसअला : - जुमे का मुस्तहब वक़्त वही है जो ज़ोहर के लिए है ।*_ 

_*📖मसअला : - अस्र की नमाज़ में हमेशा ताख़ीर मुस्तहब है मगर इतनी ताखीर की कि कुर्से आफताब यानी आफताब की टिकिया में ज़र्दी आ जाए कि उस पर बेतकल्लुफ बे गुबार व बुखार निगाह जमने लगे , धूप ज़र्दी का एअतेबार नहीं ।*_

_*📖मसअला : - बेहतर यह है कि जोहर मिस्ले अव्वल में पढ़े और अस्र मिस्ले सानी के बाद ।*_

_*📖मसअला : - तजर्वे से साबित हुआ कि कुर्से आफताब में यह ज़र्दी उस वक़्त आ जाती है जब गुरूब में बीस मिनट बाकी रहते हैं तो इसी कद्र वक़्त कराहत हैं यूँही तुलूअ् के 20 मिनट के के बाद नमाज के जवाज़ का वक़्त हो जाता है । कहने का मतलब यह है कि तुलअ के बाद नमाज़ या कोई भी दूसरा सजदा मना है और बीस मिनट के बाद दूसरी नमाज़ जैसे कज़ा नवाफिल या इश्राक की नमाज़ का वक़्त हो जाता है ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 18*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 023)*_
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   _*⏰नमाज़ों के मुस्तहब वक़्तों का बयान ⏰*_ 

_*📖मसअला : - ऊपर ताख़ीर का लफ़्ज़ आया है उसका मतलब यह है मुस्तहब वक़्त के दो हिस्से किए जाये पिछले हिस्से यानी बाद वाले हिस्से में अदा करें ।*_

_*📖मसअला : - अस्र की नमाज़ मुस्तहब वक्त में शुरू की थी मगर इतना तूल दिया कि मकरूह वक्त आ गया तो इसमें कराहत नहीं । ( बादल ) हो उस दिन के सिवा मगरिब में हमेशा जल्दी करना मुस्तहब है और दो रकअत से ज़्यादा की देर करना मकरूह तन्ज़ीही और इतनी देर करना कि तारे गुथ जायें मकरूहे तहरीमी है , हाँ अगर उज़्र है जैसे मुसाफ़िर या मरीज़ तो हरज नहीं ।*_

_*मसअला : - इशा में तिहाई रात तक ताखीर मुस्तहब है और आधी रात तक ताखीर मुबाह यानी जबकि आधी रात तक होने से पहले फर्ज पढ़ चुके और इतनी ताखीर कि रात ढल ' मकरूह है कि ऐसा करने से जमाअत छोटी होगी ।*_

_*📖मसअला : - इशा की नमाज़ से पहले सोना और इशा के बाद दुनिया की बातें करना किस्से कहानी कहना सुनना मकरूह है , ज़रूरी बातें और तिलावत कुर्आन मजीद और ज़िक्र और दीनी मसाइल और नेक लोगों के किस्से और मेहमान से बातचीत करने में हरज नहीं । यूँही तुलूए फज़्र से तुलूए आफताब तक जिक्रे इलाही के सिवा हर बात मकरूह है ।*_

_*📖मसअला : - जो शख्स जागने पर एअतेमाद रखता हो उसको आखिर रात में वित्र पढ़ना मुस्तहब है वर्ना सोने से पहले पढ़ ले फिर अगर पिछले पहर को आँख खुली तो तहज्जुद पढ़े वित्र का लौटाना जाइज नहीं ।*_

_*📖मसअला : - अब्र के दिन अस्र व इशा में जल्दी करना मुस्तहब है और बाकी नमाज़ों में ताखीर ।*_

_*📖मसअला : - सफर वगैरा किसी उज्र की वजह से दो नमाज़ों का एक वक्त में जमा करना हराम है ख्वाह यूँ हो कि दूसरी को पहले ही के वक्त में पढ़े या यूँ कि पहली में इस कद्र ताखीर करे कि उस का वक्त जाता रहे और दूसरी के वक्त में पढ़े मगर इस दूसरी सूरत में पहली नमाज़ जिम्मे से साकित हो गई कि बसूरत कजा पढ़ली अगर्चे नमाज़ के कज़ा करने का कबीरा गुनाह सर पर हुआ और पहली सूरत में तो दूसरी नमाज़ होगी ही नहीं और फ़र्ज़ जिम्मे पर बाकी है । हाँ अगर किसी उज्र मसलन सफर या मर्ज वगैरा से इस तरह पढ़ी कि हकीकतन दोनों अपने अपने वक्तों में अदा हों तो कोई हरज नहीं ।*_

_*📖मसअला - अरफा और मुज्दलफा इस हुक्म में अलग है कि अरफा में ज़ोहर व अस्र वक्ते जोहर मे पढ़ी जायें और मुज्दलफा में मगरिब व इशा इशा के वक्त में पढ़ी जायेंगी ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 18/19*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 024)*_
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   _*⏰नमाज़ के मकरूह वक़्तों का बयान ⏰*_ 

_*☀️तुलूअ व गुरूब व निस्फुन्नहार इन तीनों वक़्तों में कोई नमाज़ जाइज़ नहीं न फ़र्ज़ न वाजिब न नफ्ल न अदा न कज़ा यूँही सजदए तिलावत व सजदए सहव भी नाजाइज़ है । अल्बत्ता उस रोज़ अगर अस्र की नमाज़ नहीं पढ़ी तो अगच्रे आफ़ताब डूबता हो पढ़ ले मगर इतनी ताखीर करना हराम है । हदीस में इसको मुनाफिक की नमाज़ फ़रमाया । तुलू से मुराद आफताब का किनारा ज़ाहिर होने से उस वक़्त तक है कि उस पर निगाह चौधयाने लगे जिसकी मिकदार किनारा चमकने से बीस मिनट तक है और वह वक़्त से कि आफताब पर निगाह ठहरने लगे डूबने तक गुरूब है यह वक़्त भी बीस मिनट है । निस्फुन्नहार से मुराद निस्फुन्नहार शरई से निस्फुन्नहार हकीकी यानी आफताब ढलने तक है । निस्फुन्नहारे शरई जिसको जहवए कुबरा कहते हैं यानी तुलूए फज्र से गुरूब आफ़ताब तक आज जो वक़्त है उसके बराबर बराबर दो हिस्से करें । पहले हिस्से के ख़त्म पर निस्फुन्नहार शरई है और उस वक़्त से आफताब ढलने तक वक्ते इस्तेवा और हर नमाज़ के लिए इस वक़्त में मुमानअत ( मना ) है ।*_

_*📖मसअला : - अवाम अगर सुबह की नमाज़ आफताब निकलने के वक़्त पढ़े तो मना न किया जाये ।*_

_*📖मसअला : - ममनूअ वक़्त ( यानी जिन वक्तों में नमाज़ मना है ) अगर जनाज़ा लाया जाए तो उस वक़्त पढ़ें कोई कराहत नहीं । कराहत उस सूरत में है कि पहले से जनाज़ा तैयार था और इतनी देर की कि वक्ते कराहत आ गया ।*_

_*📖मसअला : - कराहत वाले वक्तों में अगर आयते सजदा पढ़ी तो बेहतर यह है कि सजदे में ताखीर करे यहाँ तक कि कराहत का वक़्त जाता रहे और मकरूह वक़्त में अगर सजदा कर लिया तो भी जाइज है अगर आयते सजदा उस वक़्त पढ़ी थी कि मकरूह वक़्त नहीं था और अब सजदा मकरूह वक़्त में कर रहा है तो ऐसा करना मररूहे तहरीमी है ।*_

_*📖मसअला : - मकरूह वक्तों में कज़ा नमाज़ नाजाइज़ है और अगर कज़ा शुरू कर ली तो वाजिब है कि कजा तोड़ दे और अगर तोड़ी नहीं तो फर्ज साकित हो जाएगा मगर गुनाहगार होगा ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 19/20*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 025)*_
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   _*⏰नमाज़ के मकरूह वक़्तों का बयान ⏰*_ 

_*📖मसअला : - किसी ने खास इन्हीं वक़्तों में नमाज़ पढ़ने की नज़र मानी या मुतलकन नमाज़ पढ़ने की नज़र मानी दोनों सूरतों में इन वक़्तों में उस नज़र का पूरा करना जाइज़ नहीं बल्कि वक्ते कामिल में अपनी नज़र पूरी करे ।*_ 

_*📖मसअला : - इन वक़्तों में नफ़्ल नमाज़ शुरू की तो वह नमाज़ वाजिब हो गई अगर उस वक़्त पढ़ना जाइज़ नहीं । लिहाज़ा वाजिब है कि तोड़ दे और वक्ते कामिल में कज़ा पढ़े और अगर पूरी कर ली तो गुनाहगार हुआ और अब कज़ा वाजिब नहीं ।*_ 

_*📖मसअला : - जो नमाज़ वक्ते मुबाह या मकरूह में शुरू कर के फ़ासिद कर दी थी उसको भी इन वक्तों में पढ़ना नाजाइज़ है ।*_

_*📖मसअला : - इन वक्तों में कुर्आन की तिलावत बेहतर नहीं बेहतर यह है कि ज़िक्र व दुरूद शरीफ में मशगूल रहे ।*_

_*📖मसअला : - बारह वक़्तों में नवाफिल पढ़ना मना है और उनके बाज़ यानी न . 6 व न . 12 में फ़राइज़ व वाजिबात व नमाज़े जनाज़ा सजदए तिलावत तक की भी मुमानअत है ।*_

_*✨( 1 ) तुलूए फज्र से तुलए आफताब तक कि इस दरमियान में सिवा दो रकअत सुन्नते फ़ज़्र के कोई नफ्ल नमाज़ जाइज नहीं ।*_

_*📖मसअला : - अगर कोई शख्स तुलूए फज्र से पहले नमाज़े नफ़्ल पढ़ रहा था , एक रकअत पढ़ चुका था कि फ़ज़्र तुलू कर आई तो दूसरी भी पढ़ कर पूरी कर ले और यह दोनों रकअतें सुन्नते फ़ज़्र के काइम मुकाम नहीं हो सकतीं और अगर चार रकअत की नियत की थी और एक रकअत के बाद तुलूए फ़ज़्र हुआ और चारों रकअतें पूरी कर ली तो पिछली दो रकअतें सुन्नत के काइम मकाम हो जायेंगी ।*_ 

_*📖मसअला : - नमाजे फज्र के बाद से तुलूए आफताब तक अगर्चे वक़्त ज्यादा बाकी हो अगचे सुन्नत फज्र फर्ज से पहले न पढ़ी थी और अब पढ़ना चाहता हो जाइज़ नहीं ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 20 /21*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 026)*_
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   _*⏰नमाज़ के मकरूह वक़्तों का बयान ⏰*_ 

_*📖मसअला : - फर्ज़ से पहले सुन्नते फज्र शुरू करके फासिद कर दी थी और अब फर्ज के बाद उसकी कज़ा पढ़ना चाहता है यह भी जाइज़ नहीं ।*_

_*💫( 2 ) अपने मज़हब की जमाअत के लिये इकामत हुई तो इकामत से ख़त्म जमाअत तक नफ्ल व सुन्नत पढ़ना मकरूहे तहरीमी है । अलबत्ता अगर नमाजे फज्र काइम हो चुकी और जानता है कि सुन्नत पढ़ेगा जब भी जमाअत मिल जायेगी अगर्चे कअदा में शिरकत होगी तो हुक्म है कि जमाअत से अलग और दूर सुन्नते फज़्र पढ़कर जमाअत में शरीक हो और जो जानता है कि सुन्नत में मशगूल होगा तो जमाअत जाती रहेगी और सुन्नत के ख्याल से जमाअत तर्क की यह नाजाइज़ व गुनाह है और बाकी नमाज़ों में अगर्चे जमाअत मिलना मालूम हो सुन्नतें पढ़ना जाइज़ नहीं ।*_

_*💫( 3 ) अपने मज़हब की जमाअत के लिये इकामत हुई तो इकामत से खत्म जमाअत तक नफ्ल मना है । नफ्ल नमाज़ शुरू कर के तोड़ दी थी उसकी कज़ा भी उस वक़्त में मना है और पढ़ ली तो नाकाफी है कज़ा उसके जिम्मे से साकित न हुई ।*_

_*💫( 4 ) गुरूबे आफताब से फर्जे मगरिब तक कोई दूसरी नमाज़ नफ्ल या कज़ा मना है । मगर इमाम इब्ने हुमाम ने दो रकअत ख़फ़ीफ का इस्तिस्ना फ़रमाया ।*_

_*💫( 5 ) जिस वक़्त इमाम अपनी जगह से खुतबए जुमा के लिये खड़ा हो उस वक़्त से फर्जे जुमा खत्म होने तक नमाजे नफ्ल मकरूह है यहाँ तक कि जुमा की सुन्नतें भी ।*_

_*💫( 6 ) ऐन खुतबे के वक़्त अ अगर्चे पहला हो या दूसरा और जुमे का हो या खुतबए ईदैन , कुसूफ ( सूरज ग्रहण की नमाज ) व इस्तिस्का ( बारिश के लिये पढ़ी जाने वाली नमाज ) हज़ व निकाह का हो हर नमाज हत्ताकि कज़ा भी नाजाइज़ है मगर साहिबे तरतीब ( साहिबे तरतीब वह कि जिसकी छ : या इस से ज़्यादा नमाजें कज़ा बाकी हों ) के लिया खुतबए जुमा के वक़्त कज़ा की इजाज़त है ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 21*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 027)*_
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   _*⏰नमाज़ के मकरूह वक़्तों का बयान ⏰*_

_*📖मसअला : - जुमे की सुन्नतें शुरू की थीं कि इमाम खुतबे के लिए अपनी जगह से उठा चारों रकअतें पूरी कर ले ।*_

_*💫( 7 ) नमाज़े ईदैन से पहले नफ़्ल मकरूह है ख़्वाह घर में पढ़े या ईदगाह व मस्जिद में ।*_

( 8 ) नमाज़े ईदैन के बाद नफ्ल मकरूह है जबकि ईदगाह या मस्जिद में पढ़े घर में पढ़ना मकरूह नहीं । अरफ़ात में जो ज़ोहर व अस्र मिलाकर पढ़ते हैं उनके दरमियान में और बाद में भी नफ्ल व सुन्नत मकरूह है ।

( 10 ) मुज़दलेफ़ा में जो मगेरिब व इशा जमा किये जाते हैं फ़कत इनके दरमियान में नफ्ल व सुन्नत पढना मकरूह है बाद में मकरूह नहीं ।

 ( 11 ) फ़र्ज़ का वक़्त तंग हो तो हर नमाज यहाँ तक कि सुन्नते फज्र व जोहर मकरूह हैं । 

( 12 ) जिस बात से दिल बटे और दफा कर सकता हो उसे बे दफा किये हर नमाज मकरूह है मसलन पाखाने या पेशाब या रियाह ( गैस या वायु ) का गलबा हो मगर जब वक़्त जाता हो तो पढ़ ले फिर फेरे‌। यूँ ही खाना सामने आ गया और उसकी ख्वाहिश गरज़ कोई ऐसा काम हो जिससे दिल बटे खुशूअ में फर्क आए उन वक़्तों में भी नमान मकरूह ।

मसअला : - फज्र और ज़ोहर के पूरे वक़्त अव्वल से आखिर तक बिला कराहत हैं या यानी यह नमाज़े अपने वक़्त के जिस हिस्से में पढ़ी जायें हरगिज़ मकरूह नहीं ।

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 21/22*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 028)*_
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             _*📢अज़ान का बयान 📢*_

        _*🕋अल्लाह तआल फ़रमाता है :*_

_*📝तर्जमा : - " उससे अच्छी किसकी बात जो अल्लाह की तरफ बुलाए और नेक काम करे और यह कहे कि मैं मुसलमान हूँ "। अमीरूल मोमिनीन फारूके आजम और अब्दुल्लाह इब्ने जैद बिन अब्दे रब्बेही रदियल्ला तआला अन्हुमा को अज़ान ख्वाब में तालीम हुई। हुजूर अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया यह ख्वाब हक़ है और अब्दुल्ला इब्ने जैद रदियल्लहु तआला अनहु से फरमाया जाओ बिलाल को तलकीन करो वह अज़ान कहें कि वह तुम से ज़्यादा बलन्द आवाज़ हैं। इस हदीस को अबू दाऊद व तिर्मिज़ी व इब्ने माजा व दारमी ने रिवायत किया रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने बिलाल रदियल्लाहु तआला अन्हु को हुक्म फरमाया कि अज़ान के वक़्त कानों में उँगलियाँ कर लो कि इसके सबब आवाज़ बलन्द होगी। इस हदीस को इब्ने माजा ने अब्दुर्रहमान इब्ने सअ्द रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत किया अज़ान कहने की बड़ी फजीलतें हदीसों में आई हैं , बाज़ फज़ाइल ज़िक्र किए जाते हैं।*_

_*📚हदीस न . 1 : - मुस्लिम व अहमद व इब्ने माजा मुआविया रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि फरमाते हैं नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मुअज्जिनों की गर्दनें कयामत के दिन सबसे ज़्यादा दराज़ होंगी । अल्लामा अब्दुर्रऊफ मनादी तैसीर में फ़रमाते हैं यह हदीस मुतावातिर है और हदीस के मअना यह बयान फरमाते हैं कि मुअज्ज़िन रहमते इलाही के बहुत उम्मीदवार होंगे कि जिसको जिस चीज़ की उम्मीद होती है उसकी तरफ गर्दन दराज़ करता है या उसके यह मना हैं उनको सवाब बहुत है और बाज़ों ने कहा कि इससे यह इशारा है कि शर्मिन्दा न होंगे , इसलिए कि जो शर्मिन्दा होता है , उसकी गर्दन झुक जाती है।*_

_*📚हदीस न . 2 : - इमाम अहमद अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि मुअज्जिन की जहाँ तक आवाज पहुँचती है उसके लिए मगफिरत कर दी जाती है और हर तर व खुश्क जिसने उसकी आवाज़ सुनी उसकी तस्दीक करता है और एक रिवायत में है हर तर व खुश्क जिसने आवाज़ सुनी उसके लिये गवाही देगा। रिवायत में है हर ढेला और पत्थर उसके लिए गवाही देगा।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 22*_

_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 029)*_
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            _*📢अज़ान का बयान 📢*_

_*📚हदीस न . 3 : - बुखारी व मुस्लिम व मालिक और अबू दाऊद अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला " रावी कि फरमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जब अज़ान कही जाती है शैतान गोज़ मारता हुआ भागता है (यानी आवाज़ के साथ हवा खारिज करता हुआ भागता हैं ) यहाँ तक कि अज़ान की आवाज़ उसे न पहुंचे। जब अज़ान पूरी हो जाती है चला आता है फिर जब इकामत कही जाती है भाग जाता है जब पूरी हो लेती है आ जाता है और खतरा डालता है फलाँ बात याद कर फलाँ बात याद कर वह जो पहले याद न थी यहाँ तक कि आदमी को यह नहीं मालूम होता कि कितनी पढ़ी।*_

_*📚हदीस न . 4 : - सही मुस्लिम में जाबिर रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी कि हुजूर फरमाते हैं शैतान जब अज़ान सुनता है इतनी दूर भागता है जैसे रौहा (जगह का नाम ) और रौहा मदीने से छत्तीस मील के फासले पर है।*_

_*📚हदीस न . 5 : - तबरानी इब्ने उमर रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रावी कि फरमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम अज़ान देने वाला कि सवाब का तालिब है उस शहीद की मिस्ल है कि खून में आलूदा है और जब मरेगा कब्र में उसके बदन में कीड़े नहीं पड़ेंगे।*_

_*📚हदीस न . 6 : - इमाम बुखारी अपनी तारीख में अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि फरमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जब मुअज्जिन अज़ान कहता है रब तआला अपना दस्ते कुदरत उसके सर पर रखता है और यूंहीं रहता है यहाँ तक कि अज़ान से फारिग हो और उसकी मगफिरत कर दी जाती है जहाँ तक आवाज़ पहुँचे जब वह फारिग हो जाता है रब तआला फरमाता है " मेरे बन्दे ने सच कहा और तूने हक गवाही दी लिहाज़ा तुझे बशारत हो "।*_

_*📚हदीस न . 7 : - तबरानी सगीर में अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि फरमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जिस बस्ती में अज़ान कही जाये अल्लाह तआला अपने अज़ाब से उस दिन उसे अमन देता है।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 22/23*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 030)*_
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            _*📢अज़ान का बयान 📢*_

_*📚हदीस न . 8 : - तबरानी मअकल इब्ने यसार रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि फरमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जिस कौम में सुबह को अज़ान हुई उनके लिए अल्लाह के अज़ाब से शाम तक अमान है और जिनमें शाम को अज़ान हुई उनके लिये अल्लाह के अज़ाब से सुबह तक अमान है ।*_

_*📚हदीस न . 9 : - अबू यअला मुसनद में उबई रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि फरमाते हैं सल्लल्लाह तआला अलैहि वसल्लम मैं जन्नत में गया उसमें मोती के गुम्बद देखे उसकी खाक मुश्क की है । फरमया ऐ जिब्रील , यह किस के लिए है । अर्ज की हुजूर की उम्मत के मुअज्जिनों और इमामों के लिए ।*_

_*📚हदीस न . 10 : - इमाम अहमद अबू सईद रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि फरमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम अगर लोगों को मालूम होता कि अज़ान कहने में कितना सवाब है तो उस पर आपस में तलवार चलती ।*_

_*📚हदीस न . 11 : - तिर्मिज़ी व इब्ने माजा इब्ने अब्बास रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रावी कि फ़रमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जिसने सात बरस सवाब के लिये अज़ान कही अल्लाह तआला उसके लिये नार से बराअत ( दोज़ख से आज़ादी ) लिख देगा ।*_

_*📚हदीस न . 12 : - इब्ने माजा व हकीम इब्ने उमर रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि फरमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जिसने बारह बरस अज़ान कही उसके लिये जन्नत वाजिब हो गई और हर रोज़ उसकी अज़ान के बदले साठ नेकियाँ और इकामत ( नमाज़ से पहले कही जाने वाली तकबीर ) के बदले तीस नेकियाँ लिखी जायेंगी ।*_

_*📚हदीस न . 13 : - बैहकी की रिवायत सौबान रदियल्लाहु तआला अन्हु से यूँ है कि फरमाते हैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जिसने साल भर अज़ान पर मुहाफ़ज़त की यानी हमेशा अज़ान दी उसके लिए जन्नत वाजिब हो गई ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 23/24*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 031)*_
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            _*📢अज़ान का बयान 📢*_

_*📚हदीस न . 14 : - बैहकी ने अबूहुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि फ़रमाते हैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जिसने पाँच नमाज़ों की अज़ान ईमान की बिना पर सवाब के लिये कही उसके जो गुनाह पहले हुए हैं माफ़ हो जायेंगे जो अपने साथियों की पाँच नमाज़ों में इमामत करे ईमान की बिना पर सवाब के लिए तो जो गुनाह पहले हुए मुआफ कर दिये जायेंगे ।*_

_*📚हदीस न . 15 : - इब्ने असाकिर अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि फरमाते है सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जो साल भर अज़ान कहे और उस पर उजरत तलब न करे कयामत के दिन बुलाया जायेगा और जन्नत में दरवाजे पर खड़ा किया जायेगा और उस से कहा जायेगा जिस के लिए तू चाहे शफाअत कर ।*_

_*📚हदीस न . 16 : - खतीब व इब्ने असाकिर अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि फरमाते हैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मुअज्जिनों का हश्र यूँ होगा कि जन्नत की ऊँटनियों पर सवार होंगे उनके आगे बिलाल रदियल्लाहु तआला अन्हु होंगे सब के सब बलन्द आवाज़ से अज़ान कहते हुए आयेंगे लोग उनकी तरफ़ नज़र करेंगे और पूछेगे यह कौन लोग हैं ? कहा जाएगा उम्मते मुहम्मदी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के मुअज्ज़िन हैं लोग खौफ में हैं और उनको खौफ नहीं लोग गम में है उनको गम नहीं ।*_

_*📚हदीस न . 17 : - अबुश्शैख़ अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत करते हैं कि फ़रमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जब अज़ान कही जाती है आसमान के दरवाजे खोल दिये जाते हैं और दुआ कबूल होती है जब इकामत का वक़्त होता है दुआ रद्द नहीं की जाती । अबू दाऊद व तिर्मिज़ी की रिवायत उन्हीं ' से है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्ल्म ने फरमाया अजान व इकामत के दरमियान दुआ रद्द नहीं की जाती ।*_ 

_*📚हदीस न . 18 : - दारमी व अबू दाऊद ने सुहैल इब्ने सअद रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की हुजूरे अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं दो दुआयें रद्द नहीं होती या बहुत कम रद्द होती हैं अज़ान के वक़्त और जिहाद की शिद्दत के वक़्त ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 24*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 032)*_
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            _*📢अज़ान का बयान 📢*_

_*📚हदीस न . 19 : - अबुश्शैख ने रिवायत की कि फरमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ऐ इब्ने अब्बास अज़ान ' को नमाज़ से तअल्लुक है तो तुम में कोई शख्स अज़ान न कहे मगर पाकी की हालत में।*_

_*📚हदीस न . 20 : - तिर्मिज़ी , अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि फरमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम :*_

_*📝तर्जमा : - " कोई शख्स अज़ान न दे मगर बा - वुजू "।*_ 

_*📚हदीस न . 21 : - बुखारी व अबू दाऊद व तिर्मिज़ी व नसई व इब्ने माजा व अहमद जाबिर रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि फरमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जो अजान सुनकर यह दुआ पढ़े उसके लिए मेरी शफाअत वाजिब हो गई । दुआ यह है :*_ 
_*اَللّٰہُمَّ رَبَّ ھٰذِہِ الدَّعْوَةِ التَّآمَّةِ وَالصَّلٰوةِ الْقَآئِمَةِ اٰتِ سَیّ‌ِدَنَا مُحَمَّدَنِ الْوَسِیْلَةَ وَالْفَضِیْلَةَ وَالدَّرَجَۃَ الرَّفِیْعَۃَ وَابْعَثْہُ مَقَامًا مَّحْمُوْدَ نِ الَّذِیْ وَعَدْتَّهٗ وَاجْعَلْنَا فِیْ شَفَاعَتِهٖ یَوْمَ الْقِیٰمَۃِ اِنَّکَ لَاتُخْلِفُ الْمِیْعَادَ٠*_
_*📝तर्जमा : - " ऐ अल्लाह इस दुआए ताम और नमाज़ बरपा होने वाले के मालिक तू हमारे सरदार मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को वसीला और फजीलत और बलन्द दर्जा अता कर और उनको मुकामे महमूद में खड़ा कर जिसका तूने वअदा किया है बेशक तू वादे के खिलाफ नहीं करता।*_

_*📚हदीस न . 22 : - इमाम अहमद व मुस्लिम व अबू दाऊद व तिर्मिज़ी व नसई की रिवायत इब्ने उमर रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से है कि मुअज्जिन का जवाब दे फिर मुझ पर दुरूद पढ़े फिर वसीले का सवाल करे।*_

_*📚हदीस न . 23 : - तबरानी की रिवायत में इब्ने अब्बास रदियल्लहु तआला अन्हुमा से यह भी है :*_
*_وَاجْعَلْنَا فِیْ شَفَاعَتِهٖ یَوْمَ الْقِیٰمَۃِ_*
_*📝तर्जमा : - " और कर दे हमको उनकी शफाअत में कयामत के दिन "।*_

_*📚हदीस न . 24 : - तबरानी कबीर में कअ्ब इब्ने अज़रह रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत करते हैं कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने फरमाया जब तू अज़ान सुने तो अल्लाह के दाई (अल्लाह की तरफ बुलाने वाले ) का जवाब दे ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 24/25*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 033)*_
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            _*📢अज़ान का बयान 📢*_

_*📚हदीस न . 25 : - इब्ने माजा अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि फरमाते हैं रसूलुल्लाहि सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जब मुअज्जिन को अज़ान कहते सुनो तो जो वह कहता हो तुम भी कहो।*_

_*📚हदीस न . 26 : - फरमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मोमिन को बदबख्ती व नामुरादी के लिए काफी है कि मुअज्जिन को तकबीर कहते सुने और जवाब न दे।*_

_*📚हदीस न . 27 : - कि फरमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जुल्म है पूरा जुल्म और कुफ्र है और निफाक है यह कि अल्लाह के मुनादी (एअलान करने वाले ) को अज़ान कहते सुने और हाजिर न हो यह दोनों हदीसें तबरानी ने मआज इब्ने अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की अजान के जवाब का निहायत अज़ीम सवाब है।*_

_*📚हदीस न . 28 : - अबुश्शैख की रिवायत मुगीरा इब्ने शुबा रदियल्लाहु तआला अन्हु से है जो मगफिरत हो जायेगी।*_

_*📚हदीस न . 29 : - इब्ने असाकिर ने रिवायत की कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाया ऐ गिरोहे ज़नान (औरतों का गिरोह ) जब तुम बिलाल को अज़ान और इकामत कहते हो तो जिस तरह वह कहता है तुम भी कहो कि अल्लाह तआला तुम्हारे लिए हर कलिमे के बदले एक लाख नेकी लिखेगा और हजार दर्जे बलन्द फरमायेगा और हज़ार गुनाह मिटा देगा औरतों में अर्ज की कि यह तो औरतों के लिए है मर्दों के लिए क्या है। फरमाया मर्दो के लिए दूना।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 25/26*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 034)*_
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            _*📢अज़ान का बयान 📢*_

_*📚हदीस न . 30 : - तबरानी की रिवायत हज़रते मोमिन रदियल्लाहु तआला अन्हा से है कि औरतों के लिए हर कलिमे के मुकाबिल दस लाख दरजे बलंद किये जायेंगे। फारूके आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु ने अर्ज की कि यह औरतों के लिए है मर्दो के लिए क्या है ? फरमाया मदों के लिए दूना।*_

_*📚हदीस न . 31 : - हाकिम व अबू नईम अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि हुजूर ने फ़रमाया मुअज्जिन को नमाज़ पढ़ने वाले पर दो सौ बीस नेकी ज्यादा हैं मगर वह जो उसके मिस्ल कहे और अगर इकामत कहे तो एक सौ चालीस नेकी हैं मगर वह जो उसके मिस्ल कहे।*_

_*📚हदीस न . 32 : - सहीह मुस्लिम में अमीरूल मोमिनीन हजरत उमर रदियल्लाहु तआला अन्ह से मरवी कि फरमाते है सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मुअज्जिन अजान दे तो जो शख्स उसके मिस्ल कहे और जब वह हय्याअलस्सलाह और हय्याअललफलाह ' कहे तो यह लाहौ-ला-वला कुवता इल्ला बिल्ला कहे जन्नत में दाखिल होगा।*_

_*📚हदीस न . 33 : - अबूदाऊद व तिर्मिज़ी व इब्ने माजा ने रिवायत की ज़ियाद इब्ने हारिस सदाई रदियल्लाहु तआला अन्हु कहते हैं नमाज़े फज्र में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अजान कहने का मुझे हुक्म दिया। मैंने अज़ान कही बिलाल रदियल्लाहु तआला अन्हु ने इकामत कहना चाही फरमाया सुदाई ने अज़ान कही और जो अज़ान दे वही इकामत कहे।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 26*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 035)*_
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             _*📢अज़ान का बयान 📢*_

           _*📑मसाइले फ़िक़हिया 📑*_

_*✨अज़ान उर्फे शरअ् में एक खास किस्म का एलान है जिसके लिए अलफाज़ मुकर्रर हैं। अज़ान के अलफ़ाज़ यह हैं :*_

_*٠اَللّٰهُ‌اَکْبَرْ٠٠اَللّٰهُ‌اَکْبَرْ٠٠اَللّٰهُ‌اَکْبَرْ٠٠اَللّٰهُ‌اَکْبَرْ٠*_

_*٠اَشْهَدُ اَن‌لَّا اِلٰهَ اِلَّا اللّٰه٠٠اَشْهَدُ اَن‌لَّا اِلٰهَ اِلَّا اللّٰه٠*_

_*٠اَشْهَدُ اَنَّ مُحَمَّدًا رَّسُوْلُ اللّٰه٠٠اَشْهَدُ اَنَّ مُحَمَّدًا رَّسُوْلُ اللّٰه٠*_

 _*٠حَیَّ عَلَی الصَّلٰوۃ٠ ٠حَیَّ عَلَی الصَّلٰوۃ٠*_

_*٠حَیَّ عَلَی الْفَلَاحْ٠ ٠حَیَّ عَلَی الْفَلَاحْ٠*_

_*٠اَللّٰهُ‌اَکْبَرْ٠٠اَللّٰهُ‌اَکْبَرْ٠*_

_*٠لَااِلٰهَ اِلَّا اللّٰه٠*_

_*📖मसअला : - फ़र्ज पंजगाना ( यानी पाँचों वक्तों की नमाज़ ) कि उन्हीं में जुमा भी है जब जमाअते मुस्तहब्बा के साथ मस्जिद में वक़्त पर अदा किए जायें तो उनके लिए अज़ान सुन्नते मुअक्कदा है और इसका हुक्म वाजिब की तरह है कि अगर अज़ान न कही तो वहाँ के सब लोग गुनाहगार होंगें यहाँ तक कि इमामे मुहम्मद रहमतुल्लाहि अलैहि ने फरमाया अगर किसी शहर के सब लोग अजान तर्क कर दें तो मैं उन से जंग करूँगा और अगर एक शख्स छोड़ दे तो उसे मारूँगा और कैद करूँगा।*_

_*📕 खानिया, जिल्द 1, पेज 66 व हिन्दिया, जिल्द 1, पेज 150*_
_*📕 दुर्रे मुख्तार, रद्दुल मुहतार*_

_*📖मसअला : - मस्जिद में बिला अज़ान व इकामत जमाअत पढ़ना मकरूह।*_

_*📕 आलमगीरी*_

_*📖मसअला : - कज़ा नमाज़ मस्जिद में पढ़े तो अज़ान न कहे । अगर कोई शख्स शहर में घर में नमाज़ पढ़े और अज़ान न कहे तो कराहत नहीं कि वहाँ की मस्जिद की अज़ान उसके लिए काफी है और कह लेना मुस्तहब है।*_

_*📕 रद्दुल मुहतार 1-257*_

_*📖मसअला : - गाँव में मस्जिद है कि उसमें अज़ान व इकामत होती है तो वहाँ घर में नमाज़ पढ़ने वाले का वही हुक्म है जो शहर में है और मस्जिद न हो तो अज़ान व इकामत में उसका हुक्म मुसाफ़िर का सा है।*_

_*📕 आलमगीरी*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 26/27*_

_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 036)*_
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             _*📢अज़ान का बयान 📢*_

           _*📑मसाइले फ़िक़हिया 📑*_

_*📖मसअला : - अगर शहर के बाहर व गाँव, बाग या खेती वगैरा में है और वह जगह करीब है तो गाँव या शहर की अज़ान किफायत करती है फिर भी अज़ान कह लेना बेहतर है और जो करीब न हो तो काफी नहीं। करीब की हद यह है कि यहाँ तक पहुँचती हो।*_

_*📖मसअला : - लोगों ने मस्जिद में जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ी बाद को मालूम हुआ कि वह नमाज़ सही न हुई थी और वक़्त बाकी है तो उसी मस्जिद में जमाअत से पढ़ें और अजान को लौटाना वहीं और ज्यादा देर न हुई हो तो इकामत की भी हाजत नहीं और ज्यादा वक्फा हुआ तो इकामत कहे और वक़्त जाता रहा तो गैरे मस्जिद में अज़ान व इकामत के साथ पढ़ें।*_

_*📖मसअला : - जमाअत भर की नमाज़ कज़ा हो गई तो अजान व इकामत से पढ़ें और अकेला भी कज़ा के लिए अज़ान व इकामत कह सकता है जबकि जंगल में तन्हा हो वा कज़ा का इज़हार गुनाह है व लिहाज़ा मस्जिद में कज़ा पढ़ना मकरूह है और पढ़े तो अजान न कहे और वित्र की कजा में दुआए कुनूत के वक़्त दोनों हाथ कानों तक न उठाये। हाँ अगर किसी ऐसे सबब से कज़ा हो गई जिसमें वहाँ के तमाम मुसलमान मुबतला हो गये। तो अगर्चे मस्जिद में पढ़े तो अजान कहें।*_

_*📖मसअला : - अहले जमाअत से चन्द नमाजें कज़ा हुई तो पहली के लिए अज़ान व इकामत दोनों कहें और बाकियों में इख्तेयार है ख्वाह दोनों कहें या सिर्फ इकामत कहें और दोनों कहना बेहतर यह उस सूरत में है कि एक मज्लिस में वह सब पढ़ें और अगर मुख्तलिफ वक़्तों में पढ़ें तो हर मज्लिस में पहली के लिए अजान कहें।*_

_*📖मसअला : - वक़्त होने के बाद अज़ान कही जाये वक़्त से पहले कही गई या वक़्त होने से पहले शुरू हुई और इसी बीच अज़ान होते ही में वक़्त आ गया तो लौटाई जाये।*_ 

_*📖मसअला : - अज़ान का मुस्तहब वक़्त वहीं है जो नमाज़ का है यानी फज्र में रौशनी फैलने के बाद और मगरिब और जाड़ों की, जोहर में अव्वले वक़्त और गर्मियों की ज़ोहर और हर मौसम की अस्र व इशा में निस्फ वक़्त और गर्मियों की ज़ोहर और हर मौसम की अस्र व इशा में निस्फ वक़्त गुजरने के बाद मगर अस्र में इतनी ताखीर न हो कि नमाज पढ़ते पढ़ते मकरूह वक़्त आ जाये और अगर अव्वल वक़्त अज़ान हुई और आखिर वक़्त में नमाज़ हुई तो भी सुन्नते अज़ान अदा हो गई।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 27/28*_

_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 037)*_
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             _*📢अज़ान का बयान 📢*_

           _*📑मसाइले फ़िक़हिया 📑*_

_*📖मसअला : - फराइज़ के सिवा बाकी नमाजें मसलन वित्र, जनाज़ा ईदैन, नज़्र, सुनने रवातिबा (सुन्नते मुअक्कदा ) तरावीह , इस्तिस्का (एक नफ्ल नमाज़ जो बारिश की दुआ के लिए पढ़ी जाती है । चाश्त , कुसूफ (नफ्ल नमाज़ जो चाँद गहन के वक़्त पढ़ी जाती है ) इन सारी नफ्ल नमाज़ों में अजान नहीं।*_

_*📖मसअला : - बच्चे और मगमूम (गमगीन ) के कान में और मिर्गी वाले और ग़ज़बनाक और बदमिजाज़ ' आदमी या जानवर के कान में और लड़ाई की शिद्दत और आग लगने के वक़्त और मय्यत को दफन करने के बाद और जिन्न की सरकाशी के वक़्त और मुसाफ़िर के पीछे और जंगल में जभ रास्ता भूल जाये और कोई बताने वाला न हो उस वक़्त अज़ान मुस्तहब है। वबा के ज़माने में भी मुस्तहब है।*_

_*📖मसअला : - औरतों को अज़ान व इकामत कहना मकरूहे तहरीमी है कहेंगी गुनाहगार होंगी और अज़ान दोहराई जायेगी।*_

_*📖मसअला : - औरतें अपनी नमाज़ अदा पढ़ती हों या क़ज़ा उसमें अज़ान व इकामत मकरूह है अगर्च जमाअत से पढ़ें उनकी जमाअत खुद मकरूह है।*_

 _*📖मसअला : - खुन्सा (हिजड़ा ) व फासिक अगर्चे आलिम ही हो और नशा वाले और पागल और नासमझ बच्चे और जुनुबी (बेगुस्ला ) की अज़ान मकरूह है इन सब की अज़ान का इआदा किया जाये यानी दोहराई जाये।*_

_*📖मसअला : - समझदार बच्चे और गुलाम और अंधे और वलदुज्जिना (यानी जो ज़िना से पैदा हों ) और बे - वुजू की अजान सही है। मगर बे - वुजू अज़ान कहना मकरूह है।*_

_*📖मसअला : - जुमे के दिन शहर में जोहर की नमाज़ के लिए अज़ान नाजाइज़ है अगर्चे जोहर पढ़ने वाले माजूर हों जिन पर जुमा फर्ज न हो।*_

_*📖मसअला : - अज़ान कहने का अहल वह है जिसे नमाज़ के वक़्तों की पहचान हो और वक़्त न पहचानता हो और वक़्त न पहचानता हो तो उस सवाब का मुस्तहक़ नहीं जो मुअज्ज़िन के लिए है।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 28*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 038)*_
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             _*📢अज़ान का बयान 📢*_

           _*📑मसाइले फ़िक़हिया 📑*_

_*📖मसअला : - मुस्तहब यह है कि मुअज्जिन मर्द आकिल, नेक, परहेज़गार, आलिम, सुन्नत का जानने वाल इज्जत वाला लोगों के अहवाल का निगरों और जो जमाअत से रह जाने वाले हों, उनको डाँटने वाला हो, अजान पर मुदावमत करता हो (यानी हमेशा पाबन्दी से पढ़ता हो ) और सवाब के लिए अजान कहता हो यानी अजान पर उजरत न लेता हो अगर मुअज्जिन नाबीना हो और वक़्त बताने वाला कोई ऐसा है कि सही बता दे तो उसका और आँख वाले की अजान कहना यकसाँ है।*_

_*📖मसअला : - अगर मुअज्जिन ही इमाम भी हो तो बेहतर है । एक शख्स को एक वक़्त में दो मस्जिदों में अजान कहना मकरूह है।*_

_*📖मसअला : - अज़ान व इमामत की विलायत बानीए मस्जिद को है यानी जो उस मस्जिद को बनाने वाला हो उसका हक है कि मुअज्जिन व इमाम वही मुकर्रर करे। वह न हो तो उसकी औलाद उसके खानदान वालों को और अगर अहले मुहल्ला ने किसी ऐसे को मुअज्ज़िन या इमाम किया जो बानी के मुअज्जिन व इमाम से बेहतर है तो वही बेहतर है।*_

_*📖मसअला : - अगर अज़ान देते में मुअज्ज़िन मर गया या उसकी जुबान बन्द हो गई या रूक गया और कोई बताने वाला नहीं या उसका वुजू टूट गया और वुजू करने चला गया या बेहोश हो गया तो इन सब सूरतों में सिरे से अज़ान कही जाये , वही कहे ख्वाह दूसरा कहे।*_
  
_*📖मसअला : - अज़ान के बाद मआज़ल्लाह मुरतद हो गया (यानी इस्लाम से फिर गया ) तो दोहराने की हाजतं नहीं और दोहराना बेहतर है और अगर अज़ान कहते में मुर्तद हो गया तो बेहतर है कि दूसरा शख्स सिरे से कहे और अगर उसी को पूरा करे तो भी जाइज़ है। यानी यह दूसरा शख्स बाकी को पूरा करले यह कि वह इस्लाम से फिरने के बाद उसको पूरा करे कि काफ़िर की अजान सही नहीं और अज़ान का टूकड़े टुकड़े पढ़ना सही नहीं बाज़ (थोड़ी ) का खराब होना कुल का खराब होना है जैसे नमाज़ की पिछली रकअत में फसाद हो यानी किसी वजह से नमाज़ जाती रहे तो सब फासिद है।*_

_*📖मसअला : - बैठ कर अज़ान कहना मकरूह है अगर कही दोहराई जाये मगर मुसाफिर अगर सवारी पर अज़ान कह ले तो मकरूह नहीं और इकामत मुसाफिर भी उतर कर कहे अगर न उतरा और सवारी पर कह ली लो हो जायेगी।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 28/29*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 039)*_
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             _*📢अज़ान का बयान 📢*_

           _*📑मसाइले फ़िक़हिया 📑*_

_*📖मसअला : - अज़ान किबला रू कहे और इसके खिलाफ करना मकरूह है और अज़ान दोहराई जाये मगर मुसाफिर जब सवारी पर अज़ान कहे और उसका मुँह किब्ले की तरफ न हो तो हरज़ नहीं।*_

_*📖मसअला : - अज़ान कहने की हालत में बिला उज्र खकारना मकरूह है और अगर गला पड़ गया या आवाज़ साफ करने के लिए खंकारा तो हरज नहीं।*_

_*📖मसअला : मुअज्जिन को अज़ान की हालत में चलना मकरूह है और अगर कोई चलता जाये और उसी हालत में अज़ान कहता जाये तो इआदा करे।*_

_*📖मसअला : - अज़ान के बीच में बातचीत करना मना है अगर कलाम किया तो फिर से अज़ान कहे।*_

_*📖मसअला : - अज़ान के अलफाज़ में लहन हराम है मसलन अल्लाह या अकबर के हमज़ा को मद के साथ आल्लाह 'या ' आकबर ; पढ़ना यूँही अकबर में 'बे ' के बाद अलिफ बढ़ाना हराम है यानी 'अकबार ' पढ़ना हराम है।*_

_*📖मसअला : - यूँही कलिमाते अज़ान को कवाइदे मौसीकी पर गाना भी लहन व नाजाइज़ है यानी संगीत के नियमों के अनुसार पढ़ना या गाना हराम है।*_

_*📖मसअला : - सुन्नत यह है कि अजान बलन्द जगह कही जाये कि पड़ोस वालों खूब सुनाई दे और बलन्द आवाज़ से कहे।*_

_*📖मसअला : - ताकत से ज्यादा आवाज़ बलन्द करना मकरूह है।*_

_*📖मसअला : - अजान मेज़ना पर कही जाए मस्जिद में जो जगह अजान कहने के लिए खास हो उसे मेज़ना कहते हैं या खारिजे मस्जिद हर मस्जिद के दो हिस्से होते हैं एक दाखिले मस्जिद और दूसरी खारिजे मस्जिद कहलाती है वहाँ लोग वुजू वगैरा करते हैं और मस्जिद में अजान न कहे (खुलासा आलमगीरी ) मस्जिद में अजान कहना मकरूह है यह हुक्म हर अजान के लिए है फिक्ह की किसी किताब में कोई अज़ान इससे मुसतस्ना (अलग ) नहीं। अज़ाने सानी यानी जुमे के खुतबे से पहले जो अजान होती है वह भी इसी में दाखिल है। इमाम इतकानी व इमाम इब्नुल हुमाम ने यह मसअला खास बाबे जुमा में लिखा, हाँ इसमें एक बात अलबत्ता यह जाइद है कि खतीब के महाजी हो यानी सामने बाज़ जगह हिन्दुस्तान में अक्सर जगह रिवाज पड़ गया है मस्जिद के अन्दर मिम्बर से दो हाथ के फासले पर होती है इसकी कोई सनद किसी किताब में नहीं , हदीस व फिक्ह दोनों के खिलाफ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 29/30*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 040)*_
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                _*📢अज़ान का बयान 📢*_

                _*📑मसाइले फ़िक़हिया 📑*_

_*📖मसअला : - अजान के कलिमात ठहर ठहर कर कहे अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर दोनों मिलकर एक कलिमा है । दोनों के बाद सकता करे यानी ठहरे , दरमियान में नहीं और सकता की मिकदार यह है कि जवाब देने वाला जवाब दे ले और सकता का तर्क मकरूह है और ऐसी अजान के लौटाना मुस्तहब ।*_

_*📖मसअला : - अगर कलिमाते अज़ान या इकामत में किसी जगह तकदीम व ताखीर हो गई ( यान तरतीब बिगड़ गई ) तो उतने को सही कर ले सिरे से दोहराने की हाजत नहीं और अगर सही न की और नमाज़ पढ़ ली तो नमाज़ लौटाने की हाजत नहीं ।*_

_*📖मसअल : - हय्याअलस्सलाह ' दाई तरफ मुँह करके कहे और हय्याअललफलाह बाई जानिब अगर्च अज़ान नमाज के लिए न हो बल्कि मसलन बच्चे के कान में या और किसी लिए कही । यह फेरना फकत मुँह का है सारे बदन से न फिरे ।*_

_*📖मसअला : - अगर मीनार पर अज़ान कहे तो दाहिनी तरफ के ताक से सर निकाल कर हय्याअल स्सलाह कहे और बायें जानिब के ताक से हय्याअललफलाह ( शरहे वकाया ) यानी जब बगैर इसके आवाज़ पहुँचना पूरे तौर पर न हो । यह वहीं होगा कि मीनार बन्द है और दोनों तरफ ताक खुले हैं और खुले मीनार पर ऐसा न करे बल्कि वहीं सिर्फ मुँह फेरना हो और कदम एक जगह काइम ।*_

_*📖मसअला : - सुबह की अज़ान में हय्याअललफलाह के बाद अस्सलातु खैरूम मिनन नौम ' कहना मुस्तहब है ।*_

_*📖मसअला : - अजान कहते वक़्त कानों के सूराख में उंगलियाँ डाले रहना और अगर दोनों हाथ कानों पर रख लिए तो भी अच्छा है । और अव्वल ज्यादा अच्छा है कि इरशादे हदीस के मुताबिक है और बलन्द आवाज़ में ज्यादा मुईन ( मददगार ) । कान जब बन्द होते हैं आदमी समझता है कि अभी आवाज़ पूरी न हुई ज़्यादा बलन्द करता है ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 30/31*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 041)*_
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                _*📢अज़ान का बयान 📢*_

                _*📑मसाइले फ़िक़हिया 📑*_

_*📖मसअला : - इकामत अज़ान की तरह है यानी जो अहकाम ज़िक्र हुए वह इसके लिए भी हैं सिर्फ बाज़ बातों में फर्क है इसमें ' हय्याअललफलाह के बाद ' कदकामतिस्सलाह दो बार कहे इसमें भी आवाज़ बलन्द होगी मगर न अज़ान जैसी बल्कि इतनी कि हाज़िरीन तक आवाज़ पहुँच जाये । तकबीर के कलिमात जल्द जल्द कहे दरमियान में सकता न करे , न कानों पर हाथ रखना है , न कानों में उंगलियाँ रखना है और सुबह की इकामत में ' अस्सलातुखैरूम मिनन नौम ' नहीं । इकामत बलन्द जगह या मस्जिद से बाहर होना सुन्नत नहीं अगर इमाम ने इकामत कही तो कदकामति स्सलाह के वक़्त आगे बढ़ कर मुसल्ले पर चला जाये ।*_

_*📖मसअला : - इकामत में भी हय्याअलस्सलाह हय्यअललफलाह के वक़्त दायें बायें मुँह फेरे ।*_

_*📖मसअला : - इकामत का सुन्नत होना अज़ान की बनिस्बत ज़्यादा मुअक्कद है ।*_

_*📖मसअला : - जिसने अज़ान कही अगर मौजूद नहीं तो चाहे जो इकामत कह ले और बेहतर इमाम है और मुअज्जिन मौजूद है तो उसकी इज़ाज़त से दूसरा कह सकता है कि यह उसी का हक है और अगर बे - इजाज़त कही और मुअज्जिन को नागवार हो तो मकरूह है ।*_

_*📖मसअला : - जुनुब ( नापाक ) व मुहदिस ( जिसे हदस हुआ हो मसलन किसी वजह से वुजू टुटा हो ) की इकामत मकरूह है मगर लौटाई नहीं जायेगी । अगर जुनुब अज़ान कहे तो दोहराई जाए वह इस लिए कि अज़ान की तकरार जाइज़ है और इकामत दो बार नहीं ।*_

_*📖मसअला : - इकामत के वक़्त कोई शख्स आया तो उसे खड़े होकर इन्तिज़ार करना मकरूह है बल्कि बैठ जाये जब ' हय्याअललफलाह पर पहुँचे उस वक़्त खड़ा हो । यूँही जो लोग मस्जिद में मौजूद हैं वह भी बैठे रहें , उस वक़्त उठे जब मुकब्बिर ( तकबीर या इकामत कहने वाला ) हय्याअललफलाह ' पर पहुंचे । यही हुक्म इमाम के लिए है ।आजकल अक्सर जगह रिवाज़ पड़ गया है कि इकामत के वक़्त सब लोग खड़े रहते हैं बल्कि अक्सर जगह तो यहाँ तक है कि जब तक इमाम मुसल्ले पर खड़ा न हो उस वक़्त तक तकबीर नहीं कही जाती यह खिलाफे सुन्नत है ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 31*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 042)*_
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                _*📢अज़ान का बयान 📢*_

                _*📑मसाइले फ़िक़हिया 📑*_

_*📖मसअला : - मुसाफिर ने अज़ान व इकामत दोनों न कही या इकामत न कही तो मकरूह है और अगर सिर्फ इकामत पर इक्तिफा किया तो कराहत नहीं मगर बेहतर यह है कि अज़ान भी कहे अगर्चे तन्हा हो या उसके सब हमराही वहीं मौजूद हों ।*_

_*📖मसअला : - शहर के बाहर किसी मैदान में जमाअत काइम की और इकामत न कही तो मकरूह है और अज़ान न कही तो हरज नहीं मगर खिलाफे औला है ।*_

_*📖मसअला : - मस्जिदे मुहल्ला यानी जिसके लिए इमाम व जमाअत मुअय्यन हो कि वही जमाअते ऊला काइम करता हो उस में जब जमाअते ऊला हो कि वहीं जमाअते ऊला सुन्नत तरीके से हो चुकी हो तो दोबारा अज़ान कहना मकरूह है और बगैर अज़ान अगर दूसरी जमाअत काइम की जाये तो इमाम मिहराब में न खड़ा हो बल्कि दाहिने या बायें हट कर खड़ा हो कि इम्तियाजा (खास) रहे इस दूसरी जमाअत के इमाम को मिहराब में खड़ा होना मकरूह है और मस्जिदे मुहल्ला जैसे सड़क,बाजार,स्टेशन,सरायें की मस्जिदें जिन में चन्द शख्स आते हैं और पढ़कर चले जाते हैं फिर कुछ और आये और पढ़ी इसी तरह होता हो तो इस मस्जिद में तकरारे अज़ान मकरूह नहीं बल्कि अफज़ल यही है कि हर गिरोह जो नया आये अपनी अज़ान व इकामत के साथ जमाअत ऐसी मस्जिद में हर इमाम मिहराब में खड़ा हो ।*_

_*मिहराब से मुराद वस्ते मस्जिद है यानी मस्जिद के बीच में होना ताक हो या न हो जैसे मस्जिदुल हराम शरीफ जिसमें यह मिहराब असलन नहीं या हर मस्जिदे सैफी (वह जगह जहाँ गर्मियों में नमाज़ पढ़ी जाती है) यानी सिहने मस्जिद उसका वस्त मिहराब है अगचे वहां इमारत असलन(बिल्कुल)नहीं होती,मिहराबे हकीकी यही हैं और ताक की शक्ल,में मिहराब ज़मानए रिसालत व ज़माने खुलफा ए राशेदीन में न थी। वलीद बादशाह मार्वान के जमाने में बनाई गई ।*_

_*बाज़ लोगों के ख्याल में है कि दूसरी जमाअत का इमाम पहले के मुसल्ले पर न खड़ा हो लिहाज़रा मुसल्ला हटा कर वहीं खड़े होते हैं जो इमामे अव्वल के कियाम की जगह है यह जहालत है उस जगह से दाहिने बायें हटना चाहिए मुसल्ले अगर्चे वही हों ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 31/32*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 043)*_
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                _*📢अज़ान का बयान 📢*_

                _*📑मसाइले फ़िक़हिया 📑*_

_*📖मसअ्ला : - अगर अज़ान आहिस्ता हुई तो फिर अज़ान कही जाये और पहली जमाअत जमाअते ऊला नहीं । मुहल्ले की मस्जिद में कुछ मुहल्ले वालों ने अपनी जमाअत पढ़ली उन के बाद इमाम और बाकी लोग आये तो जमाअते ऊला इन्हीं की है पहलों के लिए कराहत यूँही अगर गैर मुहल्ले वाले पढ़ गये उन के बाद मुहल्ले के लोग आये तो जमाअते ऊला यही है और इमाम अपनी जगह पर खड़ा होगा ।*_

_*📖मसअ्ला : - इकामत के बीच में भी मुअज्जिन को कलाम ( बातचीत ) करना नाजाइज है जिस तरह अज़ान में ।*_

_*📖मसअ्ला : - अज़ान व इकामत के बीच में उसको किसी ने सलाम किया तो जवाब न दे । खत्म के बाद भी जवाब देना वाजिब नहीं ।*_

_*📖मसअ्ला : - जब अजान सुने तो जवाब देने का हुक्म है यानी मुअज्जिन जो कलिमा कहे उसके बाद सुनने वाला भी वही कलिमा कहे मगर ' हय्याअलस्सलाह ' और ' हय्याअललफलाह के जवाब लाहौ - ल वला कुव्व - ता इल्ला बिल्लाह ' कहे और बेहतर यह है कि दोनों कहे बल्कि इतना लफ्ज और मिला ले :*_
_*٠مَاشَاءَ اللّٰهُ کَانَ وَمَالَمْ یَشَأ لَمْ یَکُنْ٠*_
_*📝तर्जमा : - जो अल्लाह ने चाहा हुआ जो नहीं चाहा नहीं हुआ ।*_

_*📖मसअ्ला : - " अस्सलातु खैरूम मिनन नौम ' के जवाब में कहे :*_
_*٠صَدَقْتَ وَبَرَرْتَ وَبِلْحَقّ‌ِ وَنَطَقْتْ٠*_
_*📝तर्जमा : - तू सच्चा और नेकोकार है तूने हक कहा ।*_  

_*📖मसअ्ला : - जब अज़ान हो तो उतनी देर के लिये सलाम कलाम और जवाबे सलाम तमाम अशगाल रोक दे यहाँ तक कि कुर्आन मजीद की तिलावत में अज़ान की आवाज़ आये तो तिलावत रोक दे और अज़ान को गौर से सुने और जवाब दे । यूँही इकामत में ।*_

_*📖मसअ्ला : - जुनुब भी अज़ान का जवाब दे हैज व निफास वाली औरत और खुतबे सुनने वाले और नमाजे जनाजा पढ़ने वाले और जो जिमाअ् (हम्बिसतरी) में मशगूल या कजाए हाजत में हो उन पर जवाब नहीं ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 32/33*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 044)*_
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                _*📢अज़ान का बयान 📢*_

                _*📑मसाइले फ़िक़हिया 📑*_

_*📖मसअ्ला : - जो अज़ान के वक़्त बातों में मशगूल रहे उस पर मआजअल्लाह खातमा बुरा होने का खौफ है ।*_

_*📖मसअ्ला : - रास्ता चल रहा था कि अज़ान की आवाज़ आई तो उतनी देर खड़ा हो जाये सुने और जवाब दे ।*_

_*📖मसअ्ला : - इकामत का जवाब मुस्तहब है इसका जवाब भी उसी तरह है फर्क इतना है कि कदकामतिस्सलाह के जवाब में यह कहे :*_
٠اَقَامَهَا اللّٰهُ وَاَدَامَها مَادَامَتّ‌ِ سَّمٰوٰتُ وَلْاَرْضُ٠
_*📝तर्जमा : - " अल्लाह इसको काइम रखे और हमेशा रखे जब तक कि आसमान व ज़मीन है । " या यह कहे ।*_
٠اَقَامَهَا اللّٰهُ وَاَدَامَها وَجَعَلْنَا مِنْ صَالِحِیْ اَھْلِهَا اَحْیَاءً وَّ اَمْوَاتًا٠
_*📝तर्जमा : - " अल्लाह इसको काइम रखे और हमेशा रखे और हमको ज़िन्दगी और मरने के बाद इसके नेक लोगों में रखे ।*_

_*📖मसअ्ला : - अगर चन्द अज़ाने सुने तो उस पर पहली ही का जवाब है और बेहतर यह है कि सब का जवाब दे ।*_

_*📖मसअ्ला : - अगर अज़ान के वक़्त जवाब न दिया तो अगर ज़्यादा देर न हुई हो अब दे ले ।*_

_*📖मसअ्ला : - जब अज़ान खत्म हो जाये तो मुअज्जिन और सामेईन ( सुनने वाले ) दूरूद शरीफ पढ़ें उसके बाद यह दुआ :*_
٠اَللّٰہُمَّ رَبَّ ھٰذِہِ الدَّعْوَةِ التَّآمَّةِ وَالصَّلٰوةِ الْقَآئِمَةِ اٰتِ سَیّ‌ِدَنَا مُحَمَّدَنِ الْوَسِیْلَةَ وَالْفَضِیْلَةَ وَالدَّرَجَۃَ الرَّفِیْعَۃَ وَابْعَثْہُ مَقَامًا مَّحْمُوْدَ نِ الَّذِیْ وَعَدْتَّهٗ وَاجْعَلْنَا فِیْ شَفَاعَتِهٖ یَوْمَ الْقِیٰمَۃِ اِنَّکَ لَاتُخْلِفُ الْمِیْعَادَ٠
_*📝तर्जमा : - " ऐ अल्लाह इस दुआए ताम और नमाज़ बरपा होने वाले के मालिक तू हमारे सरदार मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को वसीला और फजीलत और बलन्द दर्जा अता कर और उनको मुकामे महमूद में खड़ा कर जिसका तूने वअदा किया है बेशक तू वादे के खिलाफ नहीं करता ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 33*_

_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 045)*_
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                _*📢अज़ान का बयान 📢*_

                _*📑मसाइले फ़िक़हिया 📑*_

_*📖मसअ्ला : - जब मुअज़्ज़िन अश्हदुअन न मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह' कहे तो सुनने वाला दुरूद शरीफ पढ़े और मुस्तहब है कि अगूंठों को बोसा देकर आँखों से लगा ले और कहे :*_
٠قُرَّۃُ عَنِّنْ بِکَ یَا رَسُوْلَ اللّٰهِ اَللّٰہُمَّ مَتِّعْنِیْ بِسَّمْعِ وَالْبَصَرِ٠
तर्जमा :- " या रसूलल्लाह! मेरी आंखों की ठंडक हुजूर से है ऐ अल्लाह सुनने और देखने की कुव्वत के साथ मुझे फायदा पहुँचा"।*_

_*📖मसअ्ला : - अज़ाने नमाज़ के अलावा और अज़ानों का भी जवाब दिया जायेगा जैसे बच्चा पैदा होते वक़्त की अज़ान ।*_

_*📖मसअ्ला : - अगर अज़ान गलत कही गई मसलन लहन के साथ तो उस का जवाब नहीं बल्कि ऐसी अज़ान सुने भी नहीं।*_

_*📖मसअ्ला : - मुताअख्खिरीन (बाद वाले उलेमा) ने तसवीब मुस्तहसन रखी है यानी अज़ान के बाद नमाज़ के लिये,दोबारा एअलान करना और उसके लिये शरीअत ने कोई खास अलफाज़ मुकर्रर नही किए बल्कि जो वहाँ का उर्फ हो मसलन :
٠اَلصَّلوٰۃُ اَلصَّلوٰۃُ قَامَتْ قَامَتْ یا اَلصَّلوٰۃُ وَالسَّلَامُ عَلَیْکَ یَا رَسُوْلَ اللّٰهِ ٠
_*📖मसअ्ला : - मगरिब की अज़ान के बाद तसवीब नहीं होती (इनाया)और दो बार कह लें तो हरज नहीं ।*_

_*📖मसअ्ला : - अज़ान व इक़ामत के दरमियान वफ़ा करना सुन्नत है । अज़ान कहते ही इकामत कह देना मकरूह है मगर मगरिब में वक्फा तीन छोटी आयतों या एक बड़ी आयत के बराबर हो,बाकी नमाजों में अज़ान व इक़ामत के दरमियान इतनी देर तक ठहरे कि जो लोग पाबन्दे जमाअ्त हैं आ जायें मगर इतना इन्तिज़ार न किया जाये कि वक़्ते कराहत आ जाये ।*_

_*📖मसअ्ला : - जिन नमाज़ों से पहले सुन्नत या नफ्ल हैं उनमें औला यह है कि मुअज्जिन अज़ान के बाद सुन्नत व नवाफिल पढ़े वर्ना बैठा रहे।*_

_*📖मसअ्ला : - रईस मुहल्ला का उसकी रियासत के सबब इन्तिज़ार मकरूह है हाँ अगर वह शरीफ है और वक़्त में गुन्जाइश है तो इन्तिज़ार कर सकते हैं।*_

_*📖मसअ्ला : - मुतकद्दिमीन यानी पहले के उलमा ने अज़ान पर उज़रत लेने को हराम बताया मगर मुतअख्खिरीन यानी बाद के उलमा ने जब लोगों में सुस्ती देखी तो इजाज़त दी और अब इसी पर फतवा है मगर अज़ान कहने पर अहादीस में जो सवाब इरशाद हुये वह उन्हीं के लिये है जो उज़रत नहीं लेते सिर्फ अल्लाह तआला की रज़ा के लिए इस खिदमत को अन्जाम देते हैं। हाँ अगर लोग बतौरे खुद मुअज़्ज़िन को साहिबे हाजत समझ कर दे दें तो यह बिलइत्तेफाक जाइज़ बल्कि बेहतर है और यह उजरत नहीं जबकि यह मशहूर न हो जाए कि उज़रत जरूर मिलेगी।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 34*_

_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 046)*_
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           _*🕌नमाज़ की शर्तो का बयान 🕌*_

_*✨तम्बीह : - इस बाब में जहाँ यह हुक्म दिया गया कि नमाज़ सही है या हो जायेगी या जाइज़ है उससे मुराद फर्ज़ अदा होना है यह मतलब नहीं कि बिला कराहत व मुमानअत व गुनाह सही व जाइज होगी अकसर जगहें ऐसी हैं कि मकरूह तहरीमी व तर्के वाजिब होगा और कहा जायेगा कि नमाज़ हो गई कि यहाँ इससे बहस नहीं , इसको बाबे मकरूहात में इन्शाअल्लाह तआला बयान किया जायेगा । यहाँ शर्तों का बयान है कि बे उनके नमाज़ होगी ही नहीं । सेहते नमाज़ यानी नमाज़ के सही होने की छ : ( 6 ) शर्ते हैं ।*_

_*💫1 . तहारत ( पाकी )*_
_*💫2 . सत्रे औरत ( बदन का वह हिस्सा जिसका ढकना फर्ज है )*_ 
_*💫3. इस्तिकबाले किब्ला*_
_*💫4. वक़्त*_
_*💫5. नियत*_ 
_*💫6. तहरीमा ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 34/35*_

_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 047)*_
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                   _*💦पहली शर्त तहारत💦*_
 
_*✨यानी नमाज़ी के बदन का हदसे अकबर व असगर और नजासते हकीकिया कद्रे माने से यानी नजासत की वह मिकदार जिसके लगे रहने से नमाज़ न हो उससे पाक होना । उसके कपड़े और उस जगह का जिस पर नमाज़ पढ़े नजासते हकीकिया कद्रे माने से पाक होना ( मुतून ) हदसे अकबर यानी वह काम जिनसे गुस्ल फ़र्ज़ हो जाए और हदसे असग़र यानी वह काम जिनसे वुजू जाता रहता है और उनसे पाक होने का तरीका वुजू व गुस्ल के बयान में गुज़रा और नजासते हकीकिया से पाक करने का बयान दूसरे हिस्से में पाकी से मुतअल्लिक यह सब बयान गुज़र चुके यह बातें वहाँ से मालूम की जायें इस पहली नमाज़ शर्त का मतलब यह है कि इस कद्र नजासत से पाक होना है कि बगैर पाक किए नमाज़ होगी ही नहीं मसलन खफीफा कपड़े या बदन के उस हिस्से की चौथाई से ज़्यादा जिस में लगी हो इसका नाम कद्रे माने है और अगर इससे कम है तो इस का जाइल करना सुन्नत है । यह मसाइल भी बाबुल नजासत ( बहारे शरीअत के दूसरे हिस्से ) में ज़िक्र किए गये ।*_

_*📖मसअ्ला : - किसी शख्स ने अपने को बे वुजू गुमान किया और उसी हालत में नमाज़ पढ़ ली बाद को ज़ाहिर हुआ कि बे वुजू न था नमाज़ न हुई ।*_

_*📖मसअ्ला : - मुसल्ली अगर ऐसी चीज़ को उठाए हो कि उसकी हरकत से वह भी हरकत करे अगर उसमें नजासत कद्रे माने हो तो नमाज़ जाइज़ नहीं मसलन चाँदनी का एक सिरा ओढ़कर नमाज़ पढ़ी और दूसरे में नजासत है अगर रूकू व सुजूद व कियाम व कादा में उसकी हरकत से उस नजासत की जगह तक हरकत पहुँचती है तो नमाज़ न होगी वर्ना हो जायेगी । यूँही अगर गोद में इतना छोटा बच्चा लेकर नमाज़ पढ़ी कि खुद उसकी गोद में अपनी ताकत से न रूक सके बल्कि उसके रोकने से थमा हुआ है अगर वह अपनी ताकत से झुका हुआ है उसके रोकने का मुहताज नहीं तो नमाज़ हो जायेगी कि अब यह उसे उठाये हुये नहीं फिर भी बे - ज़रूरत कराहत से खाली नहीं अगर्चे उसके बदन और कपड़े पर नजासत भी न हो ।*_

 _*📖मसअ्ला : - अगर नजासत कद्रे माने से कम है जब भी मकरूह है फिर नजासते गलीज़ा दिरहम के बराबर है तो मकरूह तहरीमी और उससे कम तो खिलाफे सुन्नत ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 35*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 048)*_
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                   _*💦पहली शर्त तहारत💦*_

_*📖मसअ्ला : - छत , खेमा शामियाने का ऊपरी हिस्सा अगर नजिस हो और मुसल्ली के सर से खड़े होने में लगे जब भी नमाज़ न होगी । याअ्नी अगर शामियाने वगैरा की नजिस जगह बक़द्रे माने नमाज़ी के सर को बकद्रे अदाये रूक्न लगे यानी इतनी देर जितनी देर तीन बार सुवब्हानल्लाह कहने में लगे मतलब यह है कि अगर कद्रे माने नजासत से छुआ ओर फौरन हटा दिया कि इतना वक़्त न होने पाया कि जितनी देर में तीन बार सुब्हानल्लाह कह ले तो नमाज़ हो जायेगी और अगर तीन तस्बीह के बराबर या ज़यादा देर की तो नमाज़ न होगी ।*_

_*📖मसअ्ला : - अगर नमाज़ी का कपड़ा या बदन नमाज़ के दरमियान में बकद्रे माने नापाक हो गया और तीन तस्बीह का वक्फा हुआ नमाज़ न हुई और अगर नमाज़ शुरू करते वक़्त कपड़ा नापाक था या किसी नापाक चीज़ को लिये हुए था और उसी हालत में शुरू कर ली और ' अल्लाहु अकबर कहने के बाद जुदा किया तो नमाज़ मुनअ्किद ही नहीं हूई यानी शुरूअ् ही नहीं ‌।*_

_*📖मसअ्ला : - मुसल्ली ( नमाजी ) का बदन जुनुब या हैज व निफास वाली औरत के बदन से मिला रहा या उन्होंने उसकी गोद में सर रखा तो नमाज़ हो जायेगी ।*_ 

 _*📖मसअ्ला : - मुसल्ली के बदन पर नजिस कबूतर बैठा नमाज़ हो जायेगी ।*_

_*📖मसअ्ला : - जिस जगह नमाज पढ़े उसके पाक होने से मुराद सज्दे व कदम रखने की जगह का पाक होना है जिस चीज़ पर नमाज़ पढ़ता हो उसके सब हिस्से का पाक होना सेहते नमाज़ के लिए शर्त नहीं ।*_ 

_*📖मसअ्ला : - मुसल्ली के एक पाँव के नीचे दिरहम से ज्यादा नजासत हो नमाज न होगी । यूँही अगर दोनों पाँव के नीचे थोड़ी - थोड़ी नजासत है कि जमा करने से एक दिरहम हो जायेगी और अगर एक कदम की जगह पाक थी और दूसरा कदम जहाँ रखेगा नापाक है उसने इस पाँव को उठाकर नमाज पढी हो गई हाँ बै जरूरत एक पाँव पर खड़े होकर नमाज़ पढ़ना मकरूह है ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 35/36*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 049)*_
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                   _*💦पहली शर्त तहारत💦*_

_*📖मसअ्ला : - पेशानी पाक जगह है और नाक नजिस जगह तो नमाज़ हो जायेगी कि नाक दिरहम से कम जगह पर लगती है और बिला ज़रूरत यह भी मकरूह ।*_

_*📖मसअ्ला : - सजदे में हाथ या घुटना नजिस जगह होने से सही मजहब में नमाज़ न होगी और अगर हाथ नजिस जगह हो और हाथ पर सजदा किया तो बिलइजमा यानी सब के नज़दीक नमाज़ न होगी ।*_

_*📖मसअ्ला : - आस्तीन के नीचे नजासत है और उसी आस्तीन पर सजदा किया नमाज़ न होगी अगर्चे नजासत हाथ के नीचे न हो बल्कि चौड़ी आस्तीन के खाली हिस्से के नीचे हो यानी आस्तीन फ़ासिल ( आड़ , रोक ) न समझी जायेगी अगर्चे कपड़ा मोटा हो कि उसके बदन की ताबेअ है बखिलाफ़ और मोटे कपड़े के कि नजिस जगह बिछा कर पढ़ी और उसकी रंगत या बू महसूस न हो तो नमाज़ हो जायेगी कि यह कपड़ा नजासत व मुसल्ली में फासिल ( रोक ) हो जायेगा कि बदने मुसल्ली का ताबेअ नहीं । यूँही अगर चौड़ी आस्तीन का खाली हिस्सा सजदा करने में नजासत की जगह पड़े और वहाँ न हाथ हो न पेशानी तो नमाज़ हो जयेगी अगर्चे आस्तीन बारीक हो कि अब उस नजासत को बदने मुसल्ली से कोई तअल्लुक नहीं ।*_ 

_*📖मसअ्ला : - अगर सजदा करने में दामन वगैरा नजिस जमीन पर पड़ते हों तो मुज़िर नहीं ( नमाज़ में नुकसान नहीं )*_

_*📖मसअ्ला : - अगर नजिस जगह पर इतना बारीक कपड़ा बिछा कर नमाज़ पढ़ी जो सत्र के काम में नहीं आ सकता यानी उसके नीचे की चीज़ झलकती हो नमाज़ न हुई और अगर शीशे पर नमाज़ पढ़ी और उसके नीचे नजासत है अगर्चे नुमायाँ ( जाहिर ) हो नमाज़ हो गई ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 36*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 050)*_
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                _*✨दूसरी शर्त सत्रे औरत✨*_

_*💫यानी बदन का वह हिस्सा जिसका छुपाना फ़र्ज़ है उसको छुपाना । अल्लाह तआला फरमाता है :*_

_*📝तर्जमा : - " हर नमाज़ के वक़्त कपड़े पहनो " । और फ़रमाता है :*_

_*📝तर्जमा : - " औरतें ज़ीनत यानी जीनत की जगहों को ज़ाहिर न करें मगर वह कि ज़ाहिर हैं । ( कि उनके खुले रहने पर जाइज़ होने की वजह से आदत पड़ी हुई है )*_

_*📚हदीस : - में है जिस को इब्ने अदी ने कामिल में इब्ने उमर रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत किया कि फरमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जब नमाज़ पढ़ो तहबंद बाँध लो और चादर ओढ़ लो और यहूदियों की मुशाबहत न करो और अबू दाऊद व तिर्मिजी व हाकिम व इब्ने खुजैमा उम्मुल मोमिनीम सिद्दीका रदियल्लाहु तआला अन्हा से रावी कि फ़रमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम बालिग औरत की नमाज़ बगैर दुपट्टे के अल्लाह तआला कबूल नहीं फ़रमाता अबू दाऊद ने रिवायत की कि उम्मुल मोमिनीन उम्मे सलमा रदियल्लाहु तआला अन्हा ने अर्ज़ की क्या बगैर इज़ार यानी बिला पाजामा वगैरा पहने सिर्फ कुर्ते और दुपट्टे में औरत नमाज़ पढ़ सकती है । इरशाद फ़रमाया जब कुर्ता पूरा हो कि पुश्ते कदम को छिपा ले और दार कुतनी बरिवायते अम्र इब्ने शुऐब अ़न अबीहे अ़न जद्देही रावी कि फ़रमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम नाफ़ के नीचे से घुटने तक औरत है और तिर्मिज़ी ने अब्दुल्ला इब्ने मसऊद रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की फरमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम औरत औरत है यानी छुपाने की चीज़ है जब निकलती है शैतान उसकी तरफ़ झाँकता है ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 37*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 051)*_
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                _*✨दूसरी शर्त सत्रे औरत✨*_

_*📖मसअ्ला : - सत्रे औरत हर हाल में वाजिब यानी फ़र्ज़ है ख्वाह नमाज़ में हो या नहीं , तन्हा हो या किसी के सामने बिला किसी सही गर्ज़ के तन्हाई में भी खोलना जाइज़ नहीं और लोगों के सामने या नमाज़ में तो सत्र बिलइजमाअ फ़र्ज़ है यहाँ तक कि अगर अँधेरे मकान में नमाज़ पढ़ी अगर्चे वहाँ कोई न हो और उसके पास इतना पाक कपड़ा मौजूद है कि सत्र का काम दे और नंगे पढ़ी बिलइजमा नमाज़ न होगी मगर औरत के लिए तन्हाई में जबकि नमाज़ में न हो तो सारा बदन छुपाना वाजिब नहीं बल्कि सिर्फ नाफ़ से घुटने तक और मुहारिम के सामने पेट और पीठ का . छुपाना भी वाजिब है और गैर महरम के सामने और नमाज़ के लिए अगर्चे तन्हा अंधेरी कोठरी में हो तमाम बदन सिवा पाँच उज्व के जिसका बयान आयेगा छुपाना फ़र्ज़ है बल्कि जवान औरत को गैर मर्दो के सामने मुँह खोलना भी मना है ।*_

_*📖मसअला : - इतना बारीक कपड़ा जिससे बदन चमकता हो सत्र के लिए काफ़ी नहीं उससे नमाज़ पढ़ी तो न हुई । यूँही अगर चादर में से औरत के बालों की सियाही चमके नमाज़ न होगी । बाज़ लोग बारीक साड़ियाँ और तहबंद बांधकर नमाज़ पढ़ते हैं कि रान चमकती हैं उनकी नमाजें नहीं होती और ऐसा कपड़ा पहनना जिससे सत्रे औरत न हो सके अलावा नमाज के भी हराम है ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 37*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 052)*_
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                _*✨दूसरी शर्त सत्रे औरत✨*_

_*📖मसअ्ला : - दबीज़ ( मोटा ) कपड़ा जिससे बदन का रंग न चमकता हो मगर बदन से बिल्कुल ऐसा चिपका हुआ है कि देखने से उज्व की हैअत ( बनावट ) मालूम होती है ऐसे कपड़े से नमाज़ हो जायेगी मगर उस उज्व की तरफ दूसरों को निगाह करना जाइज़ नहीं । और ऐसा कपड़ा लोगों के सामने पहनना भी मना है और औरतों के लिए बदर्जा औला यानी और ज़्यादा मुमानअत ( मना है ) बाज़ औरतें जो बहुत चुस्त पाजामे पहनती हैं इस मसले से सबक लें ।*_

_*📖मसअ्ला : - नमाज़ में सत्र के लिए पाक कपड़ा होना ज़रूरी है यानी इतना नजिस न हो जिससे नमाज़ न हो सके तो अगर पाक कपड़े पर कुदरत है और नापाक पहनकर नमाज़ पढ़ी नामज़ न हुई ।*_

_*📖मसअ्ला : - उसके इल्म में कपड़ा नापाक है और उसमें नमाज़ पढ़ी फिर मालूम हुआ कि पाक था नमाज़ न हुई ।*_

_*📖मसअ्ला : -गैर नमाज़ में ( यानी जब नमाज़ में न हो ) नजिस कपड़ा पहना तो हरज़ नहीं अगर्चे पाक कपड़ा मौजूद हो और जो दूसरा नहीं तो उसी को पहनना वाजिब है । यह उस वक़्त है कि उसकी नजासत खुश्क हो छूट कर बदन को न लगे वर्ना पाक कपड़ा होते हुए ऐसा कपड़ा पहनना मुतलकन मना है कि बिला वजह बदन नापाक करना है ।*_

_*📖मसअ्ला : - मर्द के लिए नाफ़ के नीचे से घुटनों के नीचे तक औरत है यानी उसका छुपाना फर्ज है नाफ उसमें दाखिल नहीं और घुटने दाखिल हैं । इस ज़माने में बहुतेरे ऐसे हैं कि तहबंद या पाजामा इस तरह पहनते हैं कि पेडू का कुछ हिस्सा खुला रहता है अगर कुर्ते वगैरा से इस तरह छुपा हो कि जिल्द ( चमड़े ) की रंगत न चमके तो खैर वर्ना हराम है और नमाज़ में चौथाई की मिकदार खुला रहा तो नमाज़ न होगी और बाज़ बेबाक ऐसे हैं कि लोगों के सामने घुटने बल्कि रान तक खोले रहते हैं यह भी हराम है और इसकी आदत है तो फासिक है ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 38*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 053)*_
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                _*✨दूसरी शर्त सत्रे औरत✨*_

_*📖मसअ्ला : - आज़ाद औरतों और खुन्सा मुश्किल ( ऐसा हिजड़ा जिस को औरत या मर्द में शामिल करना मुश्किल हो ) के लिए सारा बदन औरत है सिवा मुँह की टकली और हथेलियों और पाँव के तलवों के , उसके सर के लटतके हुए बाल और गर्दन और कलाईयाँ भी औरत हैं उनका छुपाना फर्ज़ है ।*_

_*📖मसअ्ला : - इतना बारीक दुपट्टा जिससे बाल की सियाही चमके औरत ने ओढ़ कर नमाज़ पढ़ी न होगी जब तक कि उस पर कोई ऐसी चीज़ न ओढ़े जिससे बाल वगैरा का रंग छुप जाए ।*_

_*📖मसअ्ला : - बाँदी के लिए सारी पीठ और दोनों पहलू और नाफ से घुटनों से नीचे तक औरत है खुन्सा मुश्किल रकीक ( गुलाम ) हो तो उसका भी यही हुक्म है ।*_

_*📖मसअ्ला : - बाँदी सर खोले नमाज़ पढ़ रही थी , नमाज़ के दरमियान ही में मालिक ने उसे आज़ाद कर दिया अगर फौरन अमले कलील यानी एक हाथ से उसने सर छुपा लिया तो नमाज़ हो गई वर्ना हीं ख़्वाह उसे अपने आजाद होने का इल्म हुआ या नहीं , हाँ अगर उसके पास कोई ऐसी चीज़ ही न थी जिससे सर छुपाये तो हो गई ।*_ 

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 38*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 054)*_
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                _*✨दूसरी शर्त सत्रे औरत✨*_

_*📖मसअ्ला : - जिन आज़ा का सत्र फ़र्ज़ है उनमें कोई उज्व चौथाई से कम खुल गया नमाज़ हो गई और अगर चौथाई उज्व खुल गया और फौरन छुपा लिया जब भी हो गई और अगर बकद्र एक रूक्न यानी तीन मर्तबा सुब्हानल्लाह कहने के खुला रहा या बिलकस्द खोला ( यानी जानबूझ कर ) अगर्चे फौरन छुपा लिया नमाज़ जाती रही ।*_

_*📖मसअ्ला : - अगर नमाज़ शुरू करते वक़्त उज्व की चौथाई खुली है यानी उसी हालत पर अल्लाहु अकबर कह लिया तो नमाज़ शुरू ही न हुई ।*_

 _*📖मसअ्ला : - अगर चन्द आजा में कुछ कुछ खुला रहा , कि हर एक उस उज्व की चौथाई से कम है मगर मजमुआ उनका उन खुले हुए आज़ा में जो सब से छोटा है उसकी चौथाई की बराबर है नमाज़ न हुई मसलन औरत के कान का नवाँ हिस्सा और पिंडली का नवाँ हिस्सा खुला रहा तो मजमुआ दोनों का कान की चौथाई की कद्र ज़रूर है नमाज़ जाती रही ।*_

_*📖मसअ्ला : - औरते गलीज़ यानी कुल व दुबुर ( पाख़ाने और पेशाब का मकाम ) और उन के आस पास की जगह और औरते ख़फीफा और इन के अलावा जो आजाए औरत हैं । इस हुक्म में सब बराबर हैं गिलज़त व खिफ़्फ़त बा एअतिबारे हुरमते नज़र के है यानी ज़्यादती और कमी देखने के एअतिबार से हराम है कि गलीज़ा की तरफ देखना ज्यादा हराम है कि अगर किसी को घुटना खोले हुए देखे तो नर्मी के साथ मना करे अगर बाज़ न आये तो उससे झगड़ा न करे और अगर रान खोले हुए है तो सख्ती से मना करे और बाज़ न आया तो मारे नहीं और अगर औरते गलीज़ा खोले हुए है तो जो मारने पर कादिर हो मसलन बाप या हाकिम वह मारे ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 39*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 055)*_
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                _*✨दूसरी शर्त सत्रे औरत✨*_

_*📖मसअ्ला : - सत्र के लिए यह जरूरी नहीं कि अपनी निगाह भी उन आज़ा पर न पड़े तो अगर किसी ने सिर्फ लम्बा कुर्ता पहना और उसका गिरेबान खुला हुआ है कि अगर गिरेबान से नज़र करे तो आज़ा दिखाई देते हैं नमाज़ हो जायेगी अगर्चे बिलकस्द ( जानबूझ कर ) उधर नज़र करना मकरूहे तहरीमी है ।*_ 

_*📖मसअ्ला : - औरों से सत्र फर्ज होने के यह मअ्ना हैं कि इधर उधर से न देख सकें तो मआज़ ल्लाह अगर किसी शरीर ने नीचे झुक कर आज़ा को देख लिया तो नमाज़ न गई ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 39*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 056)*_
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                _*✨दूसरी शर्त सत्रे औरत✨*_

_*📖मसअ्ला : - मर्द में आज़ाए औरत नौ हैं आठ अल्लामा इब्राहीम हलबी व अल्लामा शामी व अल्लामा तहतावी वगैराहुम ने गिने।

_*🍂1. ज़कर (लिंग) मु अपने सब अज्व हसफा (सुपारी) व कस्बा(ज़कर की गिरह या उसकी लम्बाई) व कुलफा (ज़कर का चमड़ा) के।*_

_*🍂2. अंडकोष यह दोनों मिलकर एक अज्व हैं उन में फकत एक की चौथाई खुलना मुफसिदे नमाज़ नहीं ।*_

_*🍂3. दुबुर यानी पाखाना का मकाम ।*_

_*🍂4, व 5. हर एक सुरीन जुदा औरत है।*_

_*🍂6, व 7. हर रान जुदा औरत है। चढ्ढे यानी रान के ऊपर के जोड़ से घुटने तक रान है घुटना भी इस में दाखिल है अलग उज्व नहीं तो अगर पूरा घुटना बल्कि दोनों खुल जायें नमाज़ हो जायेगी कि दोनों मिलकर भी एक रान की चौथाई को नहीं पहुचते।*_

_*🍂8. नाफ के नीचे से अज्वे तनासुल (लिंग) की जड़ तक और उसके सीध में पुश्त (पीठ) और दोनों करवटों की जानिब सब मिलकर एक औरत है।*_

_*🌹आला हज़रत रदियल्लाहु तआला अन्हु (जो कि अपने वक़्त के मुजद्दिदे आज़म हैं ) ने यह तहकीक फरमाई कि दुबुर व अंडकोष के दरमियान की जगह भी एक मुस्तक्लि औरत है।*_

_*✨और उन आज़ा का शुमार और उनके तमाम अहकाम को चार शेरों में जमा फरमाया।*_

_*📝तर्जमा :- मर्द की शर्मगाह नौ हैं नाफ़ के नीचे से जानू के नीचे तक इनमें से जिसका चौथाई एक रूक़्न यानी तीन बार सुब्हानल्लाह के मिक्दार खुल जाये या खोल दे नमाज़ न होगी ज़कर, खुसिया, दोनों इर्द गिर्द उसके दोनों चूतड़ और पिछली शर्मगाह के नीचे और नाफ के नीचे हर तरफ से।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 39/40*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 057)*_
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                _*✨दूसरी शर्त सत्रे औरत✨*_

_*📖मसअ्ला : - आज़ाद औरतों के लिए अलावा पाँच उज़्व कि जिनका बयान गुज़रा सारा बदन औरत है औरत वह तीस आज़ा पर मुश्तमिल कि उनमें जिसकी चौथाई खुल जाये नमाज़ का वही हुक्म है जो ऊपर बयान हुआ 
1. सर यानी पेशानी के ऊपर से शुरू गर्दन तक और एक कान से दूसरे कान तक यानी आदतन जितनी जगह पर बाल जमते हैं ।*_
_*2. बाल जो लटकते हों ।*_
_*3 व 4.दोनों कान ।*_
_*5.गर्दन इसमें गला भी दाखिल है ।*_
_*6 व 7. दोनों शाने ।*_ 
_*8 व 9. दोनों बाजू इनमें कोहनियाँ भी दाखिल हैं ।*_ 
_*10 व 11. दोनों कलाईयाँ यानी कोहनी के बाद से ।*_ 
_*12. सीना यानी गले के जोड़ से दोनों पिस्तान की हद नीचे तक यानी जहाँ पिस्तान की हद ख़त्म होती है ।*_ 
_*13. व 14. दोनों हाथों की पुश्त ।*_ 
_*15. व 16. दोनों पिस्तानें जबकि अच्छी तरह उठ चुकी हों अगर बिल्कुल न उठी हों या खफीफ उभरी हों कि सीने से जुदा उज़्व की हैयत न पैदा हुई हो तो सीने की ताबे हैं जुदा उज़्व नहीं और पहली सूरत में भी उनके दरमियान की हद सीने ही में दाखिल है , जुदा उज़्व नहीं ।*_ 
_*17 . पेट यानी सीने की हद ( सीने की हद जो ऊपर ज़िक्र की गई ) से नाफ के निचले हिस्से तक यानी नाफ़ का भी पेट में शुमार है ।*_ 
_*18. पीठ यानी पीछे की जानिब सीने के मुकाबिल से कमर तक ।*_
_*19. दोनों शानों के बीच में जो जगह है बगल के नीचे सीने की नीचे हद तक दोनों करवटों में जो जगह है और उसके बाद से दोनो करवटों में कमर तक जो जगह है उसका अगला हिस्सा सीने में और पिछला शानों या पीठ में शामिल है और उसके बाद से दोनों करवटों में कमर तक जो जगह है उसका अगला हिस्सा पेट में और पिछला पीठ में दाखिल है ।*_
_*20 व 21 बग़ल दोनों सुरीन ।*_
_*22 व 23 फ़र्ज (आगे की शर्मगाह) व दुबुर (पाख़ाना की जगह) ।*_
_*24 व 25 दोनों राने घुटने भी इन्ही में शामिल हैं ।*_ 
_*26 नाफ़ के नीचे पेड़ू और उससे मिली हुई जो जगह है और उनके मुकाबिल पुश्त की जानिब सब मिलकर एक औरत है ।*_
_*27 व 28. दोनों पिंडलियाँ टखनों समेत ।*_ 
_*29 व 30 दोनों तलवे और बाज़ उलमा ने पुश्ते दस्त और तलवों को औरत में दाखिल नहीं किया ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 40*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 058)*_
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                _*✨दूसरी शर्त सत्रे औरत✨*_

_*📖मसअ्ला : - औरत का चेहरा अगचें औरत नहीं मगर फितने की वजह से गैर महरम के सामने मुंह खोलना मना है यूँही उसकी तरफ़ नज़र करना गैर महरम के लिए जाइज़ नहीं और छूना तो और ज्यादा मना है ।*_

_*📖मसअ्ला : - अगर किसी मर्द के पास सत्र के लिए जाइज़ कपड़ा न हो और रेशमी कपड़ा है तो फ़र्ज़ है कि उसी से सत्र करे और उसी में नमाज़ पढ़े अलबत्ता और कपड़े के होते हुए मर्द को रेश्मी कपड़ा पहनना हराम है और उस में नमाज़ मकरूहे तहरीमी ।*_

 _*📖मसअ्ला : - कोई शख्स बरहना ( नंगा शख्स ) अगर अपना सारा जिस्म सर समेत किसी एक कपड़े में छुपा कर नमाज़ पढ़े नमाज़ न होगी और अगर सर उससे बाहर निकाल ले हो जायेगी ।*_

_*📖मसअ्ला : - किसी के पास बिल्कुल कपड़ा नहीं तो बैठ कर नमाज़ पढ़े दिन हो या रात घर में हो या मैदान में ख्वाह वैसे बैठे जैसे नमाज़ में बैठते हैं यानी मर्दो मर्दो की तरह और औरतें औरतों की तरह या पाँव फैला कर और औरते गलीज़ा पर हाथ रखकर और यह बेहतर है और रूकू व सुजूद की जगह इशारा करे और यह इशारा रूकूअ व सुजूद से उसके लिये अफज़ल है और यह बैठकर पढ़ना खड़े होकर पढ़ने से अफ़ज़ल ख़्वाह क़ियाम में रूकूअ व सुजूद के लिए इशारा करे या रूकू व सुजूद करे ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 40/41*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 059)*_
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                _*✨दूसरी शर्त सत्रे औरत✨*_

_*📖मसअ्ला : - ऐसा शख्स बरहना ( नंगा ) नमाज़ पढ़ रहा था किसी ने आ़रियतन ( यानी थोड़ी देर के लिए ) उसको कपड़ा दे दिया या मुबाह ( जाइज़ ) कर दिया नमाज़ जाती रही कपड़ा पहनकर सिरे से पढ़े ।*_

_*📖मसअ्ला : - अगर कपड़ा देने का किसी ने वादा किया तो आखिर वक़्त तक इन्तेज़ार करे जब देखे कि नमाज़ जाती रहेगी तो बरहना ही पढ़ ले ।*_

_*📖मसअ्ला : - अगर दूसरे के पास कपड़ा है और गालिब गुमान है कि माँगने से दे देगा तो माँगना वाजिब है ।*_

_*📖मसअ्ला : - अगर कपड़ा मोल मिलता है और उसके पास दाम हाजते अस्लिया से ज़ाइद हैं तो अगर इतने दाम माँगता हो जो अन्दाज़ा करने वालों के अन्दाज़े से बाहर न हों तो ख़रीदना वाजिब । यूँही अगर उधार देने पर राज़ी हो जब भी खरीदना वाजिब होना चाहिए ।*_

 _*📖मसअ्ला : - अगर उसके पास कपड़ा ऐसा है कि पूरा नजिस है तो नमाज़ में उसे न पहने और अगर एक चौथाई पाक है तो वाजिब है कि उसे पहनकर पढ़े बरहना जाइज़ नहीं । यह सब उस वक़्त है कि ऐसी चीज़ नहीं कि कपड़ा पाक कर सके या उसकी नजासत कद्रे माने से कम कर सके वर्ना वाजिब होगा कि पाक करे या तकलीले नजासत यानी नजासत को कम करे ।*_

 _*📖मसअ्ला : - चन्द शख्स बरहना हैं तो तन्हा तन्हा दूर दूर नमाजें पढ़ें और अगर जमाअत की तो इमाम बीच में खड़ा हो ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 41*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 060)*_
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                _*✨दूसरी शर्त सत्रे औरत✨*_

_*📖मसअ्ला : - अगर बरहना शख्स को चटाई या बिछौना मिल जाये तो उसी से सत्र करे नंगा न पढ़े यूँही घास या पत्तों से सत्र कर सकता है तो यही करे ।*_

_*📖मसअ्ला : - अगर पूरे सत्र के लिये कपड़ा नहीं और इतना है कि बाज़ आज़ा का सत्र हो जायेगा तो उससे सत्र वाजिब है और उस कपड़े से औरते गलीज़ा यानी कुबुल, दुबुर (अगली पिछली शर्मगाह) को छुपाये ।*_

_*📖मसअ्ला : - जिसने ऐसी मजबूरी में बरहना नमाज़ पढ़े तो बादे नमाज़ कपड़ा मिलने पर इआदा नहीं नमाज़ हो गई ।*_

_*📖मसअ्ला : - अगर सत्र का कपड़ा या उसके पाक करने की चीज़ न मिलना बन्दों की जानिब से तो नमाज़ पढ़े फिर बाद में लौटाए ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 41/42*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 061)*_
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        _*🕋तीसरी शर्त इस्तिक़बाले क़िब्ला 🕋*_

 _*यानी नमाज में किब्ला यानी काबा की तरफ मुँह करना अल्लाह तआला फरमाता है :*_
 سَيَقُوۡلُ السُّفَهَآءُ مِنَ النَّاسِ مَا وَلّٰٮهُمۡ عَنۡ قِبۡلَتِهِمُ الَّتِىۡ كَانُوۡا عَلَيۡهَا ؕ قُل لِّلّٰهِ الۡمَشۡرِقُ وَالۡمَغۡرِبُ ؕ يَهۡدِىۡ مَنۡ يَّشَآءُ اِلٰى صِراطٍ مُّسۡتَقِيۡمٍ‏ (١٤٢)

_*📝तर्जमा : - बेवकूफ लोग कहेंगे कि जिस किब्ले पर मुसलमान लोग थे उन्हें किस चीज़ ने उस से फेर दिया तुम फरमा दो अल्लाह ही के लिए मश्रिक व मगरिब है जिसे चाहता है सीधे रास्ते की तरफ हिदायत फरमाता है " हुजूर अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने सोलह या सत्रह महीने तक बैतुल मुक़द्दस की तरफ नमाज़ पढ़ी और हुजूर को पसन्द यह था कि काबा किब्ला हो इस पर यह आयते करीमा नाज़िल हुई और फ़रमाता है :*_

وَمَا جَعَلۡنَا الۡقِبۡلَةَ الَّتِىۡ كُنۡتَ عَلَيۡهَآ اِلَّا لِنَعۡلَمَ مَنۡ يَّتَّبِعُ الرَّسُوۡلَ مِمَّنۡ يَّنۡقَلِبُ عَلٰى عَقِبَيۡهِ ؕ وَاِنۡ كَانَتۡ لَكَبِيۡرَةً اِلَّا عَلَى الَّذِيۡنَ هَدَى اللّٰهُ ؕ وَمَا كَانَ اللّٰهُ لِيُضِيْعَ اِيۡمَانَكُمۡ ؕ اِنَّ اللّٰهَ بِالنَّاسِ لَرَءُوۡفٌ رَّحِيۡمٌ (١٤٣) قَدۡ نَرٰى تَقَلُّبَ وَجۡهِكَ فِى السَّمَآءِۚ فَلَـنُوَلِّيَنَّكَ قِبۡلَةً تَرۡضٰٮهَا فَوَلِّ وَجۡهَكَ شَطۡرَ الۡمَسۡجِدِ الۡحَـرَامِؕ وَحَيۡثُ مَا كُنۡتُمۡ فَوَلُّوۡا وُجُوۡهَكُمۡ شَطۡرَهٗ ؕ وَاِنَّ الَّذِيۡنَ اُوۡتُوا الۡكِتٰبَ لَيَـعۡلَمُوۡنَ اَنَّهُ الۡحَـقُّ مِنۡ رَّبِّهِمۡؕ وَمَا اللّٰهُ بِغَافِلٍ عَمَّا يَعۡمَلُوۡنَ (١٤٤)

_*📝तर्जमा : - जिस किब्ले पर तुम पहले थे हम ने फिर वही इसलिए मुकर्रर किया कि रसूल की इत्तिबा करने वाले उन से मुतमय्यिज़ ( अलग अलग ) हो जायें । जो एड़ियों के बल लौट जाते हैं और बेशक यह शाक़ (तकलीफ़ देह) है मगर उन पर जिन को अल्लाह ने हिदायत की और अल्लाह तुम्हारा ईमान जाए ( बर्बाद ) न करेगा बेशक अल्लाह लोगों पर बड़ा मेहरबान रहम वाला है ऐ महबूब आसमान की तरफ तुम्हारा बार बार मुँह उठाना हम देखते हैं तो ज़रूर हम तुम्हें उसी क़िब्ले की तरफ़ फेर देंगे जिसे तुम पसन्द करते हो तो अपना मुँह ( नमाज़ में ) मस्जिदे हराम की तरफ़ फेरो और ऐ मुसलमानों तुम जहाँ कहीं हो उसी की तरफ ( नमाज़ में ) मुँह करो और बेशक जिन्हें किताब दी गई वह ज़रूर जानते हैं कि वही ह़क़ है उनके रब की तरफ से और अल्लाह उनके कोतकों से गाफिल नहीं " ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 41/42*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 062)*_
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        _*🕋तीसरी शर्त इस्तिक़बाले क़िब्ला 🕋*_

_*📖मसअ्ला : - नमाज़ अल्लाह ही के लिये पढ़ी जाये और उसी के लिये सजदा हो न किसी काबा को अगर किसी ने मआ़जल्लाह क़अ्बे के लिये सजदा किया हराम व गुनाहे कबीरा किया और इबादते क़ाबा की नियत की जब तो खुला काफ़िर है के गैरे खुदा की इबादत कुफ़्र है ।*_

_*📖मसअ्ला : - इस्तिकबाले किब्ला आम है कि बिऐनिही कअ्बाए मुअ़ज़्ज़मा की तरफ़ यानी ठीक कअ्बए मुअज्जमा की तरफ मुँह हो जैसे मक्का मुकर्रमा वालों के लिए या उस जेहत ( दिशा ) को मुँह हो जैसे औरों के लिए यानी तहक़ीक़ यह है कि जो ऐने क़अ्बा कि सिम्ते खास तहकीक कर सकता है अगर्चे क़अ्बा आड़ में हो जैसे मक्का मुअ़ज़्ज़मा के मकानो में जबकि मसलन छत पर चढ़ कर काबा को देख सकते हैं तो ऐन कअ्बा की तरफ मुँह करना फर्ज़ है जेहत काफी नहीं और जिसे यह तहकीक नामुमकिन हो अगर्चे खास मक्का मुअ़ज़्ज़मा में हो उसके लिये जेहते कअ्बा को मुँह करना काफी है ।*_

_*📖मसअ्ला : - कअ्बाए मुअ़ज़्ज़मा के अन्दर नमाज़ पढ़ी तो जिस रूख चाहे पढ़े काबा की छत पर भी नमाज़ हो जायेगी मगर उसकी छत पर चढ़ना मना है ।*_

_*📖मसअ्ला : - अगर सिर्फ हतीम (कअ्बाए मुअ़ज़्ज़मा की 12 वी दीवार) की तरफ मुँह किया कअ्बा मुअ़ज़्ज़मा मुहाजात में न आया नमाज़ न हुई ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 42/43*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 063)*_
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        _*🕋तीसरी शर्त इस्तिक़बाले क़िब्ला 🕋*_

_*📖मसअ्ला : - जेहते क़अ्बा को मुँह होने के यह मना हैं कि मुँह की सतह का कोई जुज़ क़अ्बे की सिम्त में वाके हो तो अगर किब्ला से कुछ फिरा हुआ है मगर मुँह का कोई जुज़ क़अ्बे के मुवाजिहा ( मुकाबिल ) में है नमाज़ हो जायेगी इसकी मिकदार 45 डिग्री रखी गई है तो अगर 45 डिग्री से ज़ाइद मुँह फिरा हुआ है इस्तिकबाल न पाया गया नमाज़ न हुई । मसलन ' ख ' ग एक रेखा है ' क अ ' इस पर लम्ब है और फ़र्ज़ करो कि कअ्बऐ मुअ़ज़्ज़मा ठीक बिन्दु ' क ' ' के मुहाज़ी है दोनो लम्बों को आधा आधा करते हुये रेखायें ' अ च ' और ' अ छ ' खीची तो यह कोण 45-45 डिग्री के हुए कि लम्ब 90 डिग्री है अब जो शख्स मकामे अ पर खड़ा है अगर बिन्दु ‘ क की तरफ मुँह करे तो ऐन क़अ्बा को मुँह और अगर दाहिने बायें ' च ' या ' छ ' की तरफ झुके तो जब तक ‘ च क या ' छ क ' के अन्दर है जेहते कबा में है और जब ' छ ' से बढ़ कर ग या ' च ' से गुज़र कर ' ख की तरफ कुछ भी करीब होगा तो अब जेहत से निकल गया नमाज़ न होगी । ऊध्धारन के लिए उपर फोटो है ।*_

_*📖मसअ्ला : - बनाई गई उस इमारते कअ्बा का नाम किब्ला नहीं बल्कि वह फज़ा है इस बुनियाद की मुहाज़ात में सातों ज़मीन से अर्श तक किब्ला ही हैं तो अगर वह इमारत वहाँ से उठा कर दूसरी जगह रख दी जाये और अब उस इमारत की तरफ मुँह कर के नमाज़ पढ़ी न होगी या कअ्बा मुअ़ज़्ज़मा किसी वली की ज़ियारत को गया और उस फ़ज़ा की तरफ नमाज़ पढ़ी हो गई यूँही अगर बलन्द पहाड़ पर या कुँए के अन्दर नमाज़ पढ़ी और किब्ले की तरफ मुँह किया नमाज़ हो गई कि फज़ा की तरफ तवज्जोह पाई गई चाहे इमारत की तरफ़ न हो ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 43*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 064)*_
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        _*🕋तीसरी शर्त इस्तिक़बाले क़िब्ला 🕋*_

_*📖मसअ्ला : - जो शख्स इस्तिकबाले किब्ला से आजिज़ हो मसलन मरीज़ है उसमें इतनी कुव्वत नहीं कि उधर रूख बदले और वहाँ कोई ऐसा नहीं जो मुतवज्जेह कर दे या उसके पास अपना या अमानत का माल है जिसके चोरी हो जाने का सही अन्देशा हो या कश्ती के तख्ते पर बहता जा रहा है और सही अन्देशा है कि इस्तिकबाल करे तो डूब जायेगा या शरीर जानवर पर सवार है कि उतरने नहीं देता या उतर तो जायेगा मगर बे मददगार सवार न होने देगा या यह बूढ़ा है कि फिर खुद सवार न हो सकेगा और ऐसा कोई नहीं जो सवार करा दे तो इन सब सूरतों में जिस रूख नमाज़ पढ़ सके पढ़ ले और उसका इआदा यानी लौटाना भी नहीं , हाँ सवारी के रोकने पर कादिर हो तो रोक कर पढ़े और अगर रोकने में काफिला निगाह से छुप जायेगा तो सवारी ठहरना भी जरूरी नहीं यूँही रवानी में पढ़े ।*_

_*📖मसअ्ला : - चलती कश्ती में नमाज़ पढ़े तो तकबीरे तहरीमा के वक़्त किब्ले को मुँह करे और जैसे घूमती जाये यह भी किब्ले को मुँह फेरता रहे अगर्चे नफ़्ल नमाज़ हो ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 43/44*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 065)*_
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        _*🕋तीसरी शर्त इस्तिक़बाले क़िब्ला 🕋*_

_*📖मसअ्ला : - मुसल्ली के पास माल है और अन्देशा सही है कि इस्तिकबाले क़िब्ला करेगा तो चोरी हो जायेगा , ऐसी हालत में कोई ऐसा शख्स मिल गया जो हिफाज़त करे अगर्चे बाउजरते मिस्ल ( आम तौर पर आदमी उस काम की जो उजरत ले उसे उजरते मिस्ल कहते हैं ) इस्तिकबाल फ़र्ज़ है । यानी जबकि वह उज़रत हाजते असलिया से ज़ाइद इसके पास हो या मुहाफ़िज़ ( हिफाज़त करने वाला ) आइन्दा लेने पर राजी हो और अगर वह नक़द माँगता है और उसके पास नहीं या है मगर हाजते असलिया से ज़ाइद नहीं या है मगर वह उज़रते मिस्ल से बहुत ज़्यादा माँगता है तो उस वक़्त हिफाज़त के लिए उसे उजरत पर रखना ज़रूरी नहीं यूहीं पढ़े ।*_

_*📖मसअ्ला : - कोई शख्स कैद में है और वह लोग उसे इस्तिकबाल से मानअ् ( रोकते ) हैं तो जैसे भी हो सके नमाज़ पढ़ ले फिर जब मौका मिले वक़्त में या बाद में तो उस नमाज़ को दोहरा ले ।*_

 _*📖मसअ्ला : - अगर किसी शख्स को किसी जगह किब्ले की शनाख्त न हो , न कोई ऐसा मुसलमान है जो बता दे , न वहाँ मस्जिदें व मेहराबें हैं , न चाँद सूरज सितारे निकले हों या हों मगर उसको इतना इल्म नहीं कि उन से मालूम कर सके तो ऐसे के लिये हुक्म है तहर्रीं करे ( यानी सोचे जिधर क़िब्ला होना दिल में जमें उधर ही मुँह करे ) उसके हक़ में वही किब्ला है ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 44*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 066)*_
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        _*🕋तीसरी शर्त इस्तिक़बाले क़िब्ला 🕋*_

_*📖मसअ्ला : - तहर्रीं करके नमाज़ पढ़ी बाद को मालूम हुआ कि किब्ले की तरफ नमाज़ नहीं पढ़ी , हो गई लौटाने की हाजत नहीं ।*_

 _*📖मसअ्ला : - ऐसा शख्स अगर बे तहर्रीं किसी तरफ़ मुँह करके नमाज़ पढ़े नमाज़ न हुई अगर्चे ' वाकई में किब्ले ही की तरफ मुँह किया हो , हाँ अगर किब्ले की तरफ मुँह होना नमाज़ के बाद यकीन के साथ मालूम हुआ , हो गई और अगर बादे नमाज़ उस तरफ़ किब्ला होना गुमान हो यकीन न हो या नमाज़ के बीच में उसको किब्ला होना मालूम हुआ अगर्चे यकीन के साथ तो नमाज़ न हुई ।*_

_*📖मसअ्ला : - अगर सोचा और दिल में किसी तरफ़ किब्ला होना साबित हुआ अगर उसके खिलाफ दूसरी तरफ उसने मुँह किया नमाज न हुई अगर्चे वाकई में वही किब्ला था जिधर मुँह किया अगर्चे बाद को यकीन के साथ उसी का किब्ला होना मालूम हो ।*_

_*📖मसअ्ला : - अगर कोई जानने वाला मौजूद है उससे दरयाफ़्त नहीं किया खुद गौर करके किसी तरफ को पढ़ ली तो अगर किब्ले ही की तरफ मुँह था हो गई वर्ना नहीं ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 44/45*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 067)*_
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        _*🕋तीसरी शर्त इस्तिक़बाले क़िब्ला 🕋*_

_*📖मसअ्ला : - जानने वाले से पूछा उसने नहीं बताया उसने तहर्री कर के नमाज़ पढ़ ली अब नमाज़ के बाद उसने बताया नमाज़ हो गई दोहराने की हाजत नहीं ।*_

_*📖मसअ्ला : - अगर मस्जिदें और मेहराबे वहाँ हैं मगर उन का एअतिबार न किया बल्कि अपनी राय से एक तरफ को मुतवज्जेह हो लिया या तारे वगैरा मौजूद हैं और इल्म है कि उनके ज़रिये से मालूम करे और न किया बल्कि सोच कर पढ़ली दोनों सूरतों में न हुई अगर खिलाफे जेहत यानी किब्ले के रूख के खिलाफ की तरफ पढ़ी ।*_

_*📖मसअ्ला : - एक शख्स तहर्री कर के एक तरफ पढ़ रहा है तो दूसरे को उसकी इत्तिबाअ् जाइज़ नहीं बल्कि उसे भी तहर्री का हुक्म है अगर उसका इत्तिबाअ् किया तहर्री न की उस दूसरे की नमाज़ न हुई ।*_

_*📖मसअ्ला : - अगर तहर्री कर के नमाज़ पढ़ रहा था और नमाज़ के दरमियान में अगचें सजदए सहव में राय बदल गई या गलती मालूम हुई तो फर्ज है कि फौरन घूम जाये और पहले जो पढ़ चुका है उस में खराबी न आयेगी इसी तरह अगर चारों रकअते चार दिशाओं में पढ़ी जाइज़ हैं और अगर फौरन न फिरा यहाँ तक कि एक रूक्न यानी तीन बार सुबहानल्लाह कहने का वक्फ़ा हुआ नमाज़ न हुई ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 45*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 068)*_
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        _*🕋तीसरी शर्त इस्तिक़बाले क़िब्ला 🕋*_

_*📖मसअ्ला : - नाबीना ( अन्धा ) गैर किल्ले की तरफ़ नमाज़ पढ़ रहा था कोई बीना ( अंखियारा ) आया उसने अन्धे को सीधा कर के उसकी इक़्तिदा की तो अगर वहाँ कोई शख्स ऐसा था जिस से किब्ले का हाल नाबीना दरयाफ़्त कर सकता था मगर न पूछा दोनों की नमाज़ न हुई और अगर कोई ऐसा न था तो नाबीना की होगई और मुकतदी की न हुई ।*_

_*📖मसअ्ला : - तहर्री कर के गैरे किब्ला को नमाज़ पढ़ रहा था बाद को उसे अपनी राय की गलती मालूम हुई और किब्ले की तरफ़ फिर गया तो जिस दूसरे शख्स को उसकी पहली हालत मालूम हो अगर यह भी उसी किस्म का है कि उसने भी पहले वही तहर्री की थी और अब उसको भी गलती मालूम हुई तो उसकी इक्तिदा कर सकता है वर्ना नहीं ।*_

_*📖मसअ्ला : - अगर इमाम तहर्री कर के ठीक जेहत में पहले ही से पढ़ रहा है तो अगर्चे मुकतदी तहर्री करने वालो में न हो उसकी इक्तिदा कर सकता है ।*_

_*📖मसअ्ला : - अगर इमाम व मुकतदी एक ही जेहत को तहर्री कर के नमाज़ पढ़ रहे थे और इमाम ने नमाज़ पूरी कर ली और सलाम फेर दिया अब मसबूक ( जिसकी शुरू की रकअ्त छूटी हो ) व लाहिक ( जिसकी बीच की रकअत छूटी हो ) की राय बदल गई तो मसबूक घूम जाये और लाहिक सिरे से पढ़े ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 45*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 069)*_
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        _*🕋तीसरी शर्त इस्तिक़बाले क़िब्ला 🕋*_

 _*📖मसअ्ला : - अगर पहले एक तरफ को राय हुई और नमाज शुरू की फिर दूसरी तरफ को राय पलटी फिर वह पलट गया फिर तीसरी या चौथी बार वही राय हुई जो पहली मरतबा थी तो उसी तरफ फिर जाये सिरे से पढ़ने की हाजत नहीं ।*_

_*📖मसअ्ला : - अन्धेरी रात है चन्द शख्सों ने जमाअत से तहर्री कर के मुख्तलिफ जेहतों में नमाज पढ़ी मगर नमाज़ के दरमियान में यह मालूम न हुआ कि इसकी जेहत इमाम की जेहत के खिलाफ है न मुकतदी इमाम से आगे है नमाज़ हो गई और अगर बाद नमाज मालूम हुआ कि इमाम के खिलाफ इसकी जेहत थी कुछ हरज नहीं और अगर इमाम के आगे होना मालूम हुआ नमाज में या बाद को तो नमाज़ न हुई ।*_

 _*📖मसअ्ला : - मुसल्ली ने किब्ले से बिला उज़्र क़स्दन बिना किसी मजबूरी के जानबूझ कर सीना फेर दिया अगर्चे फौरन ही किब्ले की तरफ हो गया नमाज़ फासिद हो गई और अगर बिला क़स्द फिर गया और बकद्र तीन तस्बीह के वक्फा न हुआ तो हो गई ।*_

_*📖मसअ्ला : - अगर सिर्फ किल्ले से फेरा उस पर वाजिब है कि फौरन किब्ले की तरफ मुँह करे और नमाज़ न जायेगी मगर बिला उज़्र मकरूह है ।*_

               _*⏲️चौथी शर्त वक़्त है ⏲️*_

_*📍इसके मसाइल ऊपर मुस्तकिल बाब नमाज़ के वक़्तों के बयान में बयान हुए*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 45/46*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 070)*_
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                _*🔰पाँचवीं शर्त नियत है🔰*_

_*🕋अल्लाह तआला फरमाता है ।*_

(( وَ مَاۤ اُمِرُوْۤا اِلَّا لِيَعْبُدُوا اللّٰهَ مُخْلِصِيْنَ لَهُ الدِّيْنَ ))
 _*📝तर्जमा : - " उन्हें तो यही हुक्म हुआ कि अल्लाह ही की इबादत करें उसी के लिये दीन को ख़ालिस रखते हुए " । हुजूर अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं :*_ 
 (( اِنَّمَا الْاَعْمَالُ بِالنِّیَّاتِ وَلِکُلِّ امْرِئٍ مَانَوٰی  ))
_*📝तर्जमा : - " आमाल का मदार नियत पर है और हर शख्स के लिए वह है जो उसने नियत की इस हदीस को बुख़ारी व मुस्लिम और दीगर मुहद्दिसीन ने अमीरूल मोमिनीन उमर इब्ने खत्ताब रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत किया ।*_

_*📖मसअ्ला : - नियत दिल के पक्के इरादे को कहते हैं महज़ ( सिर्फ ) जानना नियत नहीं जब तक कि इरादा न हो ।*_

_*📖मसअ्ला : - नियत में ज़बान का एअ्तिबार नहीं यानी अगर दिल में मसलन ज़ोहर का इरादा किया और जुबान से लफ़्जे अस्र निकला जोहर की नमाज़ हो गई ।*_

_*📖मसअ्ला : - नियत का अदना ( सबसे कम ) दर्जा यह है कि अगर उस वक़्त कोई पूछे कौन सी नमाज़ पढ़ता है तो फौरन बिला देर किए बता दे अगर हालत ऐसी है कि सोचकर बतायेगा तो नमाज़ न होगी ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 46*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 071)*_
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                _*🔰पाँचवीं शर्त नियत है🔰*_

_*📖मसअ्ला : - ज़ुबान से कह लेना मुस्तहब है और इसमें कुछ अरबी की तख़सीस नहीं फारसी वगैरा में भी हो सकती है और तलफ्फुज़ में माज़ी का सीगा ( ऐसा लफ्ज़ जिस से गुज़रे हुए वक़्त में काम का होना ज़ाहिर हो ) हो मसलन नवैतु'या ' नियत की मैंने ।*_

_*📖मसअ्ला : - बेहतर यह है कि अल्लाहु अकबर कहते वक़्त नियत हाज़िर हो ।*_

_*📖मसअ्ला : - तकबीर से पहले नियत की और शुरू नमाज़ और नियत के दरमियान कोई अम्रे अजनबी मसलन खाना , पीना , कलाम वगैरा वह काम जो नमाज़ से गैर मुतअल्लिक हैं फासिल ( जुदा करने वाले ) न हों नमाज़ हो जायगी अगर्चे तहरीमा के वक़्त नियत हाज़िर न हो ।*_

_*📖मसअ्ला : - वुजू से पहले नियत की तो वुजू करना फासिले अजनबी नहीं नमाज़ हो जायेगी यानी ऐसा करने से नमाज़ में फर्क न आयेगा , युही वुजू के बाद नियत की उसके बाद नमाज़ के लिये चलना पाया गया नमाज़ हो जायेगी और यह चलना फासिले अजनबी नहीं ।*_

_*📖मसअ्ला : - सही यह कि नफ़्ल व सुन्नत व तरावीह में मुतलकन नमाज़ की नियत काफी है मगर एहतियात यह है कि तरावीह में तरावीह या सुन्नते वक़्त या कियामुल्लैल की नियत करे और बाकी सुन्नतों में सुन्नत या नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की मुताबअ़त ( पैरवी ) की नियत करे इसलिए कि बाज़ मशाइख सुन्नतों में मुतलकन नियत को नाकाफी करार देते हैं ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 46/47*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 072)*_
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                _*🔰पाँचवीं शर्त नियत है🔰*_

_*📖मसअ्ला : - अगर शुरू के बाद नियत पाई गई उसका एअतिबार नहीं यहाँ तक कि अगर तकबीरे तहरीमा में अल्लाहु कहने के बाद अकबर से पहले नियत की नमाज़ न होगी ।*_

_*📖मसअ्ला : - नफ्ल नमाज़ के लिए मुतलक नमाज़ की नियत काफ़ी है । अगर्चे नफ्ल नियत में न हो ।*_

_*📖मसअ्ला : - फ़र्ज़ नमाज़ में नियते फर्ज़ भी ज़रूर है मुतलकन नमाज़ या नफ़्ल वगैरा की नियत काफी नहीं । अगर फ़र्ज़ियत जानता ही न हो मसलन पाँचों वक़्त नमाज़ पढ़ता है मगर उनकी फ़र्ज़ियत इल्म में नहीं नमाज़ न होगी और उस पर उन तमाम नमाज़ों की कज़ा फ़र्ज़ है मगर जब इमाम के पीछे हो और यह नियत करे कि इमाम जो नमाज़ पढ़ाता है वही मैं भी पढ़ता हूँ तो यह नमाज़ हो जायेगी अगर जानता हो मगर फ़र्ज़ को गैरे फ़र्ज़ से अलग न किया तो दो सूरतें हैं अगर सब में फ़र्ज़ की ही नियत करता है तो नमाज़ हो जायेगी मगर जिन फर्ज़ों से पेश्तर ( पहले ) सुन्नतें हैं अगर सुन्नतें पढ़ चुका है तो इमामत नहीं कर सकता कि सुन्नतें ब - नियते फ़र्ज़ पढ़ने से इसका फर्ज़ साकित हो चुका मसलन ज़ोहर के पेश्तर चार रकअत सुन्नतें ब नियते फ़र्ज़ पढ़े तो अब फ़र्ज़ नमाज़ में इमामत नहीं कर सकता कि यह फ़र्ज़ पढ़ चुका दूसरी सूरत यह कि नियते फ़र्ज़ किसी में न की तो नमाज़ फ़र्ज़ अदा न हुई ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 47*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 073)*_
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                _*🔰पाँचवीं शर्त नियत है🔰*_

_*📖मसअ्ला : - फ़र्ज़ में यह भी ज़रूर है कि उस खास नमाज़ मसलन ज़ोहर या अस्र की नियत करे या मसलन आज के ज़ोहर या फ़र्ज़ वक़्त की नियत वक़्त में करे मगर जुमे में फ़र्ज़ वक़्त की नियत काफी नहीं खुसूसियते जुमा की नियत ज़रूरी है ।*_

_*📖मसअ्ला : - अगर वाक़्ते नमाज़ ख़त्म हो चुका और उसने फ़र्ज़ वक़्त की नियत की तो फर्ज न हुए ख्वाह वक़्त का जाता रहना उसके इल्म में हो या नहीं ।*_

 _*📖मसअ्ला : - नमाजे फर्ज़ में यह नियत कि आज के फर्ज़ पढ़ता हूँ काफी नहीं जबकि किसी नमाज़ के मुअय्यन (खास) न किया मसलन आज की ज़ोहर या इशा ।*_

_*📖मसअ्ला : - औला यह है कि यह नियत करे आज की फलाँ नमाज़ कि अगर्चे वक़्त खारिज़ हो गया हो नमाज हो जायेगी खुसूसन उस के लिए जिसे वक़्त खारिज होने में शक हो ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 47/48*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 074)*_
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                _*🔰पाँचवीं शर्त नियत है🔰*_

_*📖मसअ्ला : - अगर किसी ने उस दिन को दूसरा दिन गुमान कर लिया मसलन वह दिन पीर का और उसने मंगल समझ कर मंगल की ज़ोहर की नियत की बाद को मालूम हुआ कि पीर था नमाज़ हो जायेगी । यानी जबकि आज का दिन नियत में हो कि इस तअय्युन के बाद पीर या मंगल की तख़सीस बेकार है और उसमें गलती मुज़िर नहीं । हाँ अगर सिर्फ दिन के नाम ही से नियत की और आज के दिन का इरादा न किया मसलन मंगल की ज़ोहर पढ़ता हूँ तो नमाज़ न होगी अगर्चे वह दिन मंगल ही का हो कि मंगल बहुत हैं ।*_

 _*📖मसअ्ला : - नियत में रकअत की तादाद की ज़रूरत नहीं अलबत्ता अफ़ज़ल है तो अगर तादादे रकअत में खता वाके हुई मसलन तीन रकअते मगरिब की नियत की तो नमाज़ हो जायेगी ।*_

_*📖मसअ्ला : - फर्ज़ कज़ा हो गये हों तो उन में दिन का तअय्युन ( खास ) करना और नमाज का तअय्युन करना ज़रूरी है मसला फलाँ दिन की फलाँ नमाज़ मुतलकन जुहर वगैरा या मुतलकन नमाज़े कज़ा नियत में होना काफ़ी नहीं ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 48*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 075)*_
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                _*🔰पाँचवीं शर्त नियत है🔰*_

_*📖मसअ्ला : - अगर किसी के ज़िम्मे बहुत सी नमाज़े हैं और दिन तारीख़ भी याद न हो तो उसके लिए आसान तरीका नियत का यह है कि सब में पहली या सब में पिछली फुलाँ नमाज़ जो मेरे ज़िम्मे है ।*_

_*📖मसअ्ला : - किसी के ज़िम्मे इतवार की नमाज़ थी मगर उसको गुमान हुआ कि हफ्ते की है और उसकी नियत से नमाज़ पढ़ी बाद को मालूम हुआ कि इतवार की थी अदा न हुई ।*_

_*📖मसअ्ला : - कजा या अदा की नियत की कुछ हाजत नहीं अगर क़ज़ा ब - नियते अदा पढ़ी या अदा ब - नियते कज़ा तो नमाज़ हो गई यानी मसलन वक़्ते ज़ोहर बाकी है और उसने गुमान किया कि वक़्त जाता रहा और उस दिन की नमाजे ज़ोहर ब - नियते क़ज़ा पढ़ी या वक़्त जाता रहा और उसने गुमान किया कि बाकी है और यह ब - नियते अदा पढ़ी हो गई और यूँ न किया बल्कि वक़्त बाकी है और उसने जुहर की कज़ा पढ़ी मगर उस दिन के जुहर की नियत न की तो न हुई यूँही उसके जिम्मे किसी दिन की नमाज़े ज़ोहर थी और ब - नियते अदा पढ़ी न हुई ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 48*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 076)*_
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                _*🔰पाँचवीं शर्त नियत है🔰*_

_*📖मसअ्ला : - मुक़तदी को इक़्तिदा की नियत भी ज़रूरी है और इमाम को नियते इमामत मुकतदी की नमाज़ सही होने के लिये ज़रूरी नहीं यहाँ तक कि अगर इमाम ने यह इरादा कर लिया कि मैं फुलाँ का इमाम नहीं हूँ और उसने उसकी इक़्तिदा की नमाज़ हो गई मगर इमाम ने इमामत की नियत न की तो सवाबे जमाअ़त न पाएगा और सवाबे जमा़अत हासिल होने के लिए मुकतदी की शिरकत से पेश्तर नियत कर लेना ज़रूरी नहीं बल्कि वक़्ते शिरकत भी नियत कर सकता है ।*_

_*📖मसअ्ला : - एक सूरत में इमाम को नियते इमामत बिल इत्तेफ़ाक ज़रूरी है कि मुकतदी औरत हो और वह किसी मर्द के मुहाज़ी ( बराबर ) खड़ी हो जाये और वह नमाज़े जनाज़ा न हो तो इस सूरत में अगर इमाम ने औरतों की इमामत की नियत न की तो उस औरत की नमाज़ न हुई और इमाम की यह नियत शुरू नमाज़ के वक़्त ज़रूरी है बाद को अगर नियत कर भी ले सेहते इक़्तिदाए ज़न ( औरत की इक़्तिदा के सही होने ) के लिये काफ़ी नहीं ।*_

_*📖मसअ्ला : - जनाजे में तो मुतलकन ख्वाह मर्द के मुहाज़ी हो या न हो औरतों की इमामत की नियत बिलइत्तिफ़ाक ज़रूरी नहीं और ज़्यादा सही यह है कि जुमा व ईदैन में भी हाजत नहीं बाकी नमाज़ों में अगर मुहाज़ी मर्द के न हुई तो औरत की नमाज़ हो जायेगी अगर्चे इमाम ने औरतों की इमामत की नियत न की हो ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 48/49*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 077)*_
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                _*🔰पाँचवीं शर्त नियत है🔰*_

_*📖मसअ्ला : - मुक़तदी ने अगर सिर्फ नमाज़े इमाम या फ़र्ज़ इमाम की नियत की और इक्तिदा का इरादा न किया नमाज़ न हुई ।*_

_*📖मसअ्ला : - मुक़तदी ने इक़्तिदा की नियत से यह नियत की कि जो नमाज़ इमाम की वही नमाज़ मेरी तो जाइज़ है ।*_

_*📖मसअ्ला : - मुकतदी ने यह नियत की कि वह नमाज़ शुरू करता हूँ जो इस इमाम की नमाज़ है अगर इमाम नमाज़ शुरू कर चुका है जब तो जाहिर कि उस नियत से इक़्तिदा सही है और अगर इमाम ने अब तक नमाज़ शुरू न की तो दो सूरते हैं अगर मुकतदी के इल्म में हो कि इमाम ने अभी नमाज़ शुरू न की तो शुरू करने के बाद वही पहली नियत काफ़ी है और अगर उसके गुमान में है कि शुरू कर ली और वाकई में शुरू न की हो तो वह नियत काफ़ी नहीं ।*_

_*📖मसअ्ला : - मुक़्तदी ने नियते इक़्तिदा की मगर फ़ज्रों में फ़र्ज़ मुतअय्यन न किया तो फ़र्ज़ अदा न हुआ यानी जब तक यह नियत न हो कि नमाज़े इमाम में उस का मुक़तदी होता हूँ ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 49*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 078)*_
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                _*🔰पाँचवीं शर्त नियत है 🔰*_

_*📖मसअ्ला : - जुमे में ब - नियते इक़्तिदा नमाजे इमाम की नियत की जुहर या जुमे की नियत न की नामज़ हो गई ख्वाह इमाम ने जुमा पढ़ा हो या ज़ोहर और अगर ब - नियते इक़्तिदा जुहर की नियत की और इमाम की नमाजे जुमा थी तो न जुमा हुआ न जुहर ।*_

_*📖मसअ्ला : - मुकतदी ने इमाम को कादा पाया और यह मालूम न हो कि कअ्दा ऊला है या आख़िरा और इस नियत से इक़्तिदा की कि अगर यह कदा ऊला है तो मैंने इक़्तिदा की वर्ना नहीं तो अगर्चे कादा ऊला हो इक़्तिदा सही न हुई और अगर इस नियत से इक़्तिदा की कि क़अ्दा ऊला है तो मैंने फ़र्ज़ में इक्तिदा की वर्ना नफ्ल तो इस इक़्तिदा से फ़र्ज़ अदा न होगा अगर्चे क़अ्दा ऊला हो ।*_

_*📖मसअ्ला : - यूँही अगर इमाम को नमाज़ में पाया और यह नहीं मालूम की इशा पढ़ता है या तरावीह और यूँ इक़्तिदा की कि अगर फ़र्ज़ है तो इक़्तिदा की , तरावीह है तो नहीं तो इशा हो ख्वाह तरावीह इक़्तिदा सही न हुई । उसको यह चाहिये कि फर्ज़ की नियत करे कि अगर फ़र्ज़ जमाअ़्त थी तो फर्ज़ वर्ना नफ़्ल हो जायेंगे ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 49/50*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 079)*_
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                _*🔰पाँचवीं शर्त नियत है 🔰*_

_*📖मसअ्ला : - इमाम जिस वक़्त जाए इमामत ( इमामत की जगह ) पर गया उस वक़्त मुकतदी ने नियते इक़्तिदा कर ली अगर्चे ब - वक़्ते तकबीर नियत हाज़िर न हो इक़्तिदा सही है बशर्ते कि इस दरमियान में कोई अमल मुनाफ़िये नमाज़ ( यानी जिस से नमाज़ जाती रहे ) न पाया गया हो ।*_

_*📖मसअ्ला : - नियते इक़्तिदा में यह इल्म ज़रूर नहीं कि इमाम कौन है जैद है या अम्र और अगर यह नियत की कि इस इमाम के पीछे और इसके इल्म में वह जैद है बाद को मालूम हुआ कि अम्र है इक़्तिदा सही है और अगर इस शख्स की नियत न की बल्कि यह कि जैद की इक़्तिदा करता हूँ बाद को मालूम हुआ कि अम्र है तो नियत सही नहीं ।*_

_*📖मसअ्ला : - जमाअते कसीर हो तो मुक़तदी को चाहिए कि नियते इक़्तिदा में इमाम का तअय्युन न करे यूँही जनाज़े में यह नियत न करे कि फुलाँ मय्यत की नमाज़ ।*_

 _*📖मसअ्ला : - नमाज़े जनाज़े की यह नियत है नमाज़ अल्लाह के लिए और दुआ इस मय्यत के लिए ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 50*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 80)*_
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                _*🔰पाँचवीं शर्त नियत है 🔰*_

_*📖मसअ्ला : - मुक़तदी को शुबह हो कि मय्यत मर्द है या औरत तो यह कह ले कि इमाम के साथ नमाज़ पढ़ता हूँ जिस पर इमाम नमाज़ पढ़ता है ।*_

_*📖मसअ्ला : - अगर मर्द की नियत की बाद को औरत होना मालूम हुआ या बिलअ़क्स ( यानी इसका उल्टा ) जाइज़ न हुई बशर्ते कि मौजूदा जनाज़ा की तरफ़ इशारा न हो यूँही अगर ज़ैद की नियत की बाद को उसका अम्र होना मालूम हुआ सही नहीं और अगर यूँ नियत की कि इस जनाज़े की और इस के इल्म में वह जैद है बाद को मालूम हुआ कि अम्र है तो हो गई । यूँही अगर इसके इल्म में वह मर्द है बाद को औरत होना मालूम हुआ या बिलअक्स तो जाइज़ हो जायेगी जबकि इस मय्यत पर नमाज़ नियत में है ।*_

_*📖मसअ्ला : - चन्द जनाज़े एक साथ पढ़े तो उनकी तादाद मालूम होना ज़रूरी नहीं और अगर उसने तादाद मुअय्यन कर ली और उससे ज़ाइद थे तो किसी जनाज़े की न हुई यानी जबकि नियत में इशारा न हो सिर्फ इतना हो कि दस मय्यतों की नमाज़ और वह थे ग्यारह तो किसी पर न हुई और अगर नियत में इशारा था मसलन इन दस मय्यतों पर नमाज़ और वह हों बीस तो सब की हो गई यह अहकाम इमामे नमाज़े जनाज़ा के हैं और मुकतदी के भी अगर उसने यह नियत न की हो कि जिन पर इमाम पढ़ता है उन के जनाज़े की नमाज कि इस सूरत में अगर उसने उन को दस समझा और वह हैं ज्यादा तो इसकी नमाज़ भी सब पर हो जायेगी ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 50*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 081)*_
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                _*🔰पाँचवीं शर्त नियत है 🔰*_

_*📖मसअ्ला : - नमाजे वाजिब में वाजिब की नियत करे और उसे मुअय्यन भी करे मसलन नमाज़े ईदुल फित्र , ईदे अज़हा , नजर , नमाज़ बादे तवाफ़ या नफ्ल जिस को कस्दन फासिद किया हो कि उस की कजा भी वाजिब हो जाती है यूँही सजदए तिलावत में नियत का तअय्युन ज़रूरी है मगर जबकि नमाज़ में फौरन किया जाये और सजदए शुक्र अगर्चे नफ्ल है मगर इसमें भी नियत का तअय्युन ज़रूरी है यानी यह नियत कि शुक्र का सजदा करता हूँ और सजदए सहव को " दुर्रे मुख्तार " में लिखा कि इसमें नियत का तअय्युन जरूरी नहीं मगर " नहरूल फाइक " में जरूरी समझी और यही ज़ाहिर तर है यानी ज़्यादा सही मालूम होता है । और नज्रें बहुत सी हों तो उनमें भी हर एक की अलग तअय्युन ज़रूरी है और वित्र में फकत वित्र की नियत काफी है अगर्चे उसके साथ नियते वुजूब न हो हाँ नियते वाजिब औला है । अलबत्ता अगर नियते अ़दमे वुजूब ( वाजिब न मानकर ) है तो काफी ।*_

_*📖मसअ्ला : - यह नियत कि मुँह मेरा किब्ले की तरफ है शर्त नहीं हाँ यह ज़रूरी है कि किब्ला से एराज़ ( फ़िरने ) की नियत न हो ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 50/51*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 082)*_
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                _*🔰पाँचवीं शर्त नियत है 🔰*_

_*📖मसअ्ला : - नमाज ब - नियते फर्ज़ शुरू की फिर दरमियाने नमाज़ में यह गुमान किया कि नफ्ल है और ब - नियते नफ्ल नमाज़ पूरी की तो फर्ज़ अदा हुए और अगर ब - नियते नफ्ल शुरू की और दरमियान में फ़र्ज़ का गुमान किया और उसी गुमान के साथ पूरी की तो नफ्ल हुई ।*_

_*📖मसअ्ला : - एक नमाज़ शुरू करने के बाद दूसरी की नियत की तो अगर तकबीरे जदीद ( यानी एक दूसरी तकबीर ) के साथ है तो पहली जाती रही और दूसरी शुरू हो गई वर्ना वही पहली है ख्वाह दोनों फर्ज़ हों या पहली फर्ज़ दूसरी नफ़्ल या पहली नफ्ल दूसरी फ़र्ज़ यह उस वक़्त में है कि दोबारा नियत जुबान से न करे वर्ना पहली बहरहाल जाती रही ।*_ 

_*📖मसअ्ला : - जुहर की एक रकअ़्त के बाद फिर ब - नियत उसी जुहर की तकबीर कही तो यह वही नमाज़ है और पहली रकअ़्त भी शुमार होगी लिहाज़ा अगर कअ्दा अख़ीरा किया तो हो गई वर्ना नहीं हाँ अगर जुबान से भी नियत का लफ्ज़ कहा तो पहली नमाज़ जाती रही और वह रकअ्त शुमार नहीं ।*_ 

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 51*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 083)*_
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                _*🔰पाँचवीं शर्त नियत है 🔰*_

_*📖मसअ्ला : - अगर दिल में नमाज़ तोड़ने की नियत की मगर जुबान से कुछ न कहा तो वह बदस्तूर नमाज़ में है जब तक कोई नमाज़ को तोड़ने वाली बात न करे ।*_

_*📖मसअ्ला : - दो नमाज़ों की एक साथ नियत की इसमें चन्द सूरतें हैं :*_

_*╭┈►1 - उनमें एक फर्जे ऐन है , दूसरी जनाज़ा तो फ़र्ज़ की नियत हुई ।*_

_*╭┈►2 -और दोनों फर्जे ऐन हैं तो एक अगर वक़्ती है और दूसरी का वक़्त नहीं आया तो वक़्ती हुई ।*_

_*╭┈► 3 - और एक वक़्ती है दूसरी कज़ा और वक़्त में वुसअ़्त नहीं जब भी वक़्ती हुई ।*_ 

_*╭┈►4 - और वक़्त में वुसअ़्त है तो कोई न हुई ।*_

_*╭┈►5- और दोनों कज़ा हों तो साहिबे तरतीब के लिये पहली हुई ।*_

_*╭┈►6 – और साहिबे तरतीब नहीं तो दोनों बातिल ।*_

_*╭┈►7 - और एक फर्ज दूसरी नफ्ल तो फर्ज हुए ।*_ 

_*╭┈►8 - और दोनों नफ्ल हैं तो दोनों हुई ।*_

_*╭┈►9 - और एक नफ्ल दूसरी नमाज़े जनाज़ा तो नफ्ल की नियत रही ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 51*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 084)*_
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                _*🔰पाँचवीं शर्त नियत है 🔰*_

_*📖मसअ्ला : - नमाज़ खालिसन लिल्लाह ( यानी खास अल्लाह के लिए ) शुरू की फिर मआ़जल्लाह रिया की मिलावट हो गई तो शुरू का एअतिबार किया जायेगा ।*_

_*📖मसअ्ला : - पूरा रिया यह है कि लोगों के सामने है इस वजह से पढ़ ली वर्ना पढ़ता ही नहीं और अगर यह सूरत है कि तन्हाई में पढ़ता मगर अच्छी न पढ़ता और लोगों के सामने खूबी के साथ पढ़ता है तो उसको अस्ल नमाज का सवाब मिलेगा और उस खूबी का सवाब नहीं । और यहाँ रिया पाई गई अज़ाब बहरहाल है ।*_

_*📖मसअ्ला : - नमाज़ खुलूस के साथ पढ़ रहा था लोगों को देखकर यह ख्याल हुआ कि रिया की मुदाखलत हो जायेगी या शुरू करना चाहता था कि रिया की मुदाखलत का अन्देशा हुआ तो इस की वजह से तर्क न करे नमाज़ पढ़े और इस्तिगफार करे ।*_

_*📍पाँचवीं शर्त नियत मुकम्मल हो गई । अलह़म्दुलिल्लाह*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 51/52*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 085)*_
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          _*✨छठी शर्त तकबीरे तहरीमा है ✨*_


_*🕋अल्लाह तआला फरमाता है ।*_
{ وَ ذَكَرَ اسْمَ رَبِّهٖ فَصَلّٰىؕ۰۰ }
 _*📝तर्जमा " अपने रब का नाम लेकर नमाज़ पढ़ी " ।*_ 

_*"और अहादीस इस बारे में बहुत हैं कि हुजूरे अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ' अल्लाहु अकबर से नमाज शुरू फरमाते ।*_

_*📖मसअ्ला :-' नमाजे जनाजा में तकबीरे तहरीमा रूक्न है बाकी नमाज़ों में शर्त ।*_

_*📖मसअ्ला :-' गैर जनाजा में अगर कोई नजासत लिये हुए तहरीमा बाँधे और ' अल्लाहु अकबर खत्म करने से पेश्तर फेंक दे नमाज शुरू हो जायेगी युँही तहरीमा के शुरू में सत्र खुला हुआ था या किब्ले से मुनहरिफ था या आफताब खत्ते निस्फुन्नहार पर था और तकबीर से फारिग होने से पहले अमले कलील के साथ सत्र छुपा लिया या किब्ला को मुँह " कर लिया या निस्फुन्नहार से आफताब ढल गया नमाज़ शुरू हो जायेगी । यूँही मआज़ल्लाह बे – वुजू शख्स दरिया में गिर पड़ा और आजाए वुजू पर पानी पहुँचने से पेश्तर तकबीरे तहरीमा शुरू की मगर खत्म से पहले आज़ा धुल गये नमाज शुरू हो गई ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 52*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 086)*_
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          _*✨छठी शर्त तकबीरे तहरीमा है ✨*_


_*📖मसअ्ला :-' फर्ज की तहरीमा पर नफ्ल नमाज़ की ' बिना ' कर सकता है मसलन इशा की चारों रकतें पूरी करके बे - सलाम फेरे सुन्नतों के लिये खड़ा हो गया लेकिन कस्दन ऐसा करना मकरूह व मना है और कस्दन न हो तो हरज नहीं मसलन जुहर की चार रकअत पढ़कर कअ्दा अखीरा कर चुका था अब ख्याल हुआ कि दो ही पढ़ीं उठ खड़ा हुआ और पाँचवीं रकअत का सजदा भी कर लिया अब मालूम हुआ कि चार हो चुकी थीं तो यह रकअत नफ्ल हुई अब एक और पढ़ ले कि दो रकअतें हो जायेंगी तो यह ' बिना जानबूझ कर न हुई । लिहाज़ा इसमें कोई कराहत नहीं ।*_

_*📖मसअ्ला :-' एक नफ्ल पर दूसरी नफ्ल की बिना कर सकता है और एक फर्ज़ को दूसरी फर्ज या नफ्ल पर बिना नहीं कर सकता ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 52*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 087)*_
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          _*🕌नमाज़ पढ़ने का तरीका 🕌*_

_*📚हदीस न 1 . : बुखारी व मुस्लिम अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी कि एक शख्स मस्जिद में हाजिर हुये रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मस्जिद की एक जानिब में तशरीफ़ फ़रमा थे । उन्होंने नमाज़ पढ़ी फिर खिदमते अकदस में हाज़िर होकर सलाम अर्ज़ किया । फ़रमाया वअलैकस्सलाम , जाओ नमाज़ पढ़ो कि तुम्हारी नमाज़ न हुई । वह गये और नमाज़ पढ़ी फिर हाज़िर हो कर सलाम अर्ज़ किया फरमाया वअलैकस्सलाम जाओ नमाज़ पढ़ो कि तुम्हारी नमाज़ न हुई । तीसरी बार या उसके बाद अर्ज़ किया या रसूलल्लाह । मुझे तअलीम फरमाईये । इरशाद फ़रमाया जब नमाज़ को खड़े होना चाहो तो कामिल वुजू करो फिर किब्ले की तरफ मुँह कर के अल्लाहु अकबर कहो फिर कुर्आन पढ़ो जितना मयस्सर आये फिर रूकुअ़् करो यहाँ तक कि रूकूअ़् में तुम्हें इत्मिनान हो फिर उठो यहाँ तक कि सीधे खड़े हो जाओ फिर सजदा करो यहाँ तक कि सजदे में इत्मिनान हो जाये फिर उठो यहाँ तक कि बैठने में इत्मिनान हो फिर सजदा करो यहाँ तक कि सजदे में इत्मिनान हो जाये फिर उठो और सीधे खड़े हो जाओ फिर इसी तरह पूरी नमाज़ में करो ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 53*_

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  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 088)*_
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            _*🕌नमाज़ पढ़ने का तरीका 🕌*_

_*📚हदीस न 2 : - सही मुस्लिम शरीफ में उम्मुल मोमिनीन सिद्दीका रदियल्लाहु तआला अन्हा से मरवी कि रसूलुल्लाह सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम अल्लाहु अकबर से नमाज़ शुरू करते और  {  اَلْحَمْدُ لِلّٰہِ رَبِّ الْعٰلَمِیْنَ } से क़िरात और जब रूकू करते सर को न उठाये होते न झुकाये बल्कि दरमियानी हालत में रखते और जब रूकू से सर उठाते सजदे को न जाते जब तक कि सीधे न खड़े हो लें और सजदे से उठकर सजदा न करते जब तक कि सीधे न बैठ लें और हर दो रकअत पर अत्तहिय्यात पढ़ते और बायाँ पाँव बिछाते और दाहिना खड़ा रखते और शैतान की तरह बैठने से मना फरमाते और दरिन्दों की तरह कलाईयाँ बिछाने से मना फरमाते ( यानी सजदे में मर्दो को ) और सलाम के साथ नमाज़ ख़त्म करते ।*_

_*📚हदीस न 3 : सही बुखारी शरीफ़ में सुहैल इब्ने सअ्द रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी कि लोगों को हुक्म किया जाता कि नमाज़ में मर्द दाहिना हाथ बायीं कलाई पर रखे ।*_

_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 53*_

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You did very well by messaging, we will reply you soon thank you

🅱️ बहारे शरीअत ( हिस्सा- 03 )🅱️

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