ये मुर्दे के लिये दुआ नही बल्कि ज़िन्दों के लिए ईबरत है जो अपनी मौत से बेखबर है ।
मय्यत को दफनाते वक़्त जब कब्र पर मिट्टी डालने कि पुकार उठती है तो लोग मिट्टी डालने के लिए दोड़ पड़ते है और मिट्टी डालने कि दुआ पढ़ते हुवे मिट्टी डालने लगते है ,,,वो भी मसरुरीयत के साथ ,,बिना चेहरे पर शिकन लाए मिट्टी डालते जाते है। दुआ पढ़ते जाते है और सोचते है कि ये दुआ और मिट्टी हमने मुर्दे के लिये डाली है.
अरे नादानों वो कब्र पर मिट्टी डालने कि दुआ मुर्दे के लिये नही है बल्कि ज़िन्दों के लिये है मिट्टी डालने वालो के लिए है उसमे ईशारा व साफ नसीहत है ज़िन्दा इन्सानो के लिये ,
देखिये-
मिन्हा खलकना कुम {-इसी मिट्टी से हमने तुमको बनाया}
व फिहा नुईदुकुम {-और इसी मिट्टी मे तुमको मिलाएगे}
व मिन्हा नुखरिजुकुम तारतन ऊखरा {- और आखिरत मे इसी मिट्टी से तुमको उठांएगे}
ज़िन्दगी की भाग दौड़ और आपा-धापी में हम अपनी आख़री मंज़िल को तो भूल ही जाते है।
हर जानदार चीज़ को मौत का मज़ा चखना है और अपने परवरदिगार के सामने जवाबदेही होना है हमे अपने उसी विरान कब्रस्तान मे छोड़ आएंगे जहा हमारे साथ किड़े मकोड़े और तन्हाई होगी उसकी फिक्र करे साथ ईमान और अल्लाह की खुशनूदी लेकर जाए।
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