―――――――――――――――――――――
_*✨तयम्मुम के मसाइल✨*_
_*💫8: मसअला : - अगर ज़्यादा गुमान यह है कि मील के अन्दर पानी नहीं है तो तलाश करना ज़रूरी नहीं फिर अगर तयम्मुम कर के नमाज़ पढ़ली और न तलाश किया और न कोई ऐसा है जिससे पूछे और बाद में मालूम हुआ कि पानी यहाँ से करीब है तो नमाज़ लौटाने की ज़रूरत नहीं मगर यह तयम्मुम अब जाता रहा और अगर कोई वहाँ था मगर उससे पूछा नहीं और बाद में मालूम हुआ कि पानी करीब है तो नमाज़ लौटाई जायेगी ।*_
_*💫9: मसअला : - और अगर करीब में पानी होने और न होने किसी का गुमान नहीं तो तलाश कर लेना मुस्तहब है और बगैर तलाश किये तयम्मुम कर के नमाज़ पढ़ ली तो नमाज़ हो गई ।*_
_*💫10: मसअला : - साथ में ज़म ज़म शरीफ है जो लोगों के तबर्रुक के लिये ले जा रहा है या बीमार को पिलाने के लिये और इतना है कि वुजू हो जायेगा तो तयम्मुम जाइज़ नहीं ।*_
_*💫11: मसअला : - अगर चाहे कि ज़मज़म शरीफ से वुजू न करे और तयम्मुम जाइज हो जाये तो उसका तरीका यह है कि किसी ऐसे आदमी को कि जिस पर भरोसा हो कि वह वापस दे देगा , वह पानी उसे हिबा कर दे यानी दे दें और उसका कुछ बदला ठहराये तो अब तयम्मुम जाइज़ हो जायेगा ।*_
_*💫12: मसअला : - जो न आबादी में हो और न आबादी के करीब हो और उसके साथ पानी मौजूद हो लेकिन याद न हो और तयम्मुम कर के नमाज़ पढ़ ली तो नमाज़ हो गई और अगर आबादी या आबादी के करीब में हो तो नमाज़ दोहरा ले ।*_
_*💫13: मसअला : - अगर अपने साथी के पास पानी है और उसे यह गुमान है कि माँगने से दे देगा तो मागने से पहले तयम्मुम जाइज नहीं फिर अगर नहीं माँगा और तयम्मुम कर के नमाज़ पढ़ ली और नमाज के बाद माँगा तो उसने दे दिया या बिना माँगे उसने दिया तो वुजू कर के नमाज़ लौटाना जरूरी है और अगर माँगा और न दिया तो नमाज़ हो गई और अगर बाद को भी न माँगा जिससे उसके देने या न देने का हाल खलता और न उसने खुद दिया तो नमाज़ हो गई और अगर देते का गालिब गुमान नहीं और तयम्मुम करके नमाज पढ़ ली जब भी यही सूरतें हैं कि बाद को पानी दे दिया तो वुजू करे नमाज दोहरा ले वरना हो गई ।*_
_*💫14: मसअला : - नमाज पढ़ते में किसी के पास पानी देखा और गालिब गुमान यह है कि वह दे देगा तो चाहिये कि नमाज तोड़ दे और उससे पानी माँगे और अगर नहीं माँगा और पूरी कर ली और अब उसने खुद या उसके माँगने पर दे दिया तो नमाज़ का लौटाना ज़रूरी है और न दे तो हो गई और अगर देने का गुमान न था और नमाज के बाद उसने खुद दे दिया या माँगने से दिया जब भी नमाज़ लौटाये और अगर न उसने खुद दिया न उसने माँगा कि हाल मालूम होता तो नमाज़ हो गई और अगर नमाज पढ़ते में उसने खुद कहा कि पानी लो और वुजू कर लो और वह कहने वाला मुसलमान है तो नमाज़ जाती रही । नमाज़ का तोड़ देना फर्ज है और कहने वाला काफिर है तो न तोडे फिर नमाज के बाद अगर उसने पानी दे दिया तो वुज करके नमाज़ दोहरा ले ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 51/52*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 65)*_
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_*✨तयम्मुम के मसाइल✨*_
_*💫15: मसअला : - और अगर यह गुमान है कि मील के अन्दर तो पानी नहीं मगर एक मील से कुछ ज्यादा दूरी पर मिल जायेगा तो नमाज़ के आखिरी मुस्तहब वक़्त तक इन्तेजार करना मुस्तहब है मगर मगरिब और इशा में इतनी देर न करे कि मकरूह वक़्त आ जाये और अगर देर न की और तयम्मुम कर के नमाज पढ़ ली तो नमाज़ हो जायेगी ।*_
_*✨( 3 ) इतनी सर्दी हो कि नहाने से मर जाने या बीमार होने का सख्त खतरा हो और लिहाफ वगैरा कोई ऐसी चीज़ उसके पास नहीं जिसे नहाने के बाद ओढ़े और सर्दी के नुकसान से बचे और न आग है जिससे ताप सके तो तयम्मुम जाइज है ।*_
_*✨( 4 ) दुश्मन का डर कि अगर उसने देख लिया तो मार डालेगा या माल छीन लेगा या उस गरीब नादार पर किसी का कर्जा है कि उसे कैद करा देगा या उस तरफ साँप है कि वह काट खायेगा या शेर है कि फाड़ खायेगा या कोई बदकार शख्स है और यह औरत या मर्द अमरद ( नौ जवान लड़का जिस के खत न निकला हो ) है जिसे अपनी बे - आबरूई का सख्त खतरा है तो तयम्मुम जाइज है ।*_
_*💫16: मसअला : - अगर ऐसा दुश्मन है कि वैसे उससे कुछ न बोलेगा मगर कहता है कि अगर वुजू के लिये पानी लोगे तो मार डालूँगा या कैद करा दूंगा तो इस सूरत में हुक्म यह है कि तयम्मुम करके नमाज पढ़ ले और फिर जब मौका मिले तो वुजू करके नमाज़ दोहरा ले ।*_
_*💫17: मसअला - कैदी को जेल खाने वाले वुजू न करने दें तो तयम्मुम करके पढ़ ले और नमाज दोहराये और अगर वह दुश्मन या कैद वाले नमाज भी न पढ़ने दें तो इशारे से पढ़े और फिर नमाज दोहरा ले ।*_
_*✨( 5 ) अगर जंगल में डोल रस्सी नहीं कि पानी भरे तो तयम्मुम जाइज है ।*_
_*💫18: मसअला - अगर उसके साथी के पास डोल रस्सी है और वह यह कहता है कि ठहर जाओ मैं पानी भर लूँ तो तुमको दूंगा तो मुस्तहब है कि इन्तेजार करे और अगर इन्तेज़ार न किया और तयम्मुम कर के नमाज़ पढ़ ली तो नमाज़ हो गई ।*_
_*💫19: मसअला : - अगर रस्सी छोटी है कि पानी तक नहीं पहुँचती मगर उसके पास कोई कपड़ा ( रूमाल , इमामा , या दुपट्टा वगैरा ) ऐसा है कि उसके जोड़ने से पानी मिल जायेगा तो तयम्मुम जाइज़ नहीं ।*_
_*✨( 6 ) अगर प्यास का डर हो यानी उस के पास पानी है मगर वुजू या गुस्ल के काम में लाये तो खुद या दूसरा मुसलमान या अपना या उसका जानवर अगर्चे वह कुत्ता जिसका पालना जाइज़ है प्यासा रह जायेगा और अपनी या उनमें से किसी की प्यास चाहे अभी हो या आगे उसका सही अन्देशा हो कि वह रास्ता ऐसा है कि दूर तक पानी का पता नहीं तो तयम्मुम जाइज़ है ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 52/53*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 66)*_
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_*✨तयम्मुम के मसाइल✨*_
_*20: 💫मसअला : - बदन या कपड़ा इस कद्र नाजिस है जिससे कि नमाज़ जाइज़ नहीं और पानी सिर्फ इतना है कि चाहे वुजू कर ले या उसको पाक कर ले दोनों काम नहीं हो सकते तो पानी से उसको पाक कर ले फिर तयम्मुम करे और अगर पहले तयम्मुम कर लिया उसके बाद पाक किया तो अब फिर तयम्मुम करे कि पहला तयम्मुम न हुआ ।*_
_*20: 💫मसअला : - मुसाफ़िर को रास्ते में कहीं रखा हुआ पानी मिला तो अगर कोई वहाँ है तो उससे पूछ ले अगर वह कहे कि यह पानी सिर्फ पीने के लिये है तो तयम्मुम करे वुजू जाइज़ नहीं चाहे कितना ही हो और अगर उसने कहा कि पीने के लिये भी है और वुजू के लिये भी तो तयम्मुम जाइज़ नहीं और अगर कोई ऐसा नहीं जो बता सके और पानी थोड़ा हो तो तयम्मुम करे और ज्यादा हो तो वुजू करे ।*_
_*( 7 ) पानी का महंगा होना यानी वहाँ के हिसाब से जो कीमत होनी चाहिये उससे दो गुना माँगता है तो तयम्मुम जाइज़ है और अगर कीमत में इतना फर्क नहीं तो तयम्मुम जाइज़ नहीं ।*_
_*21: 💫मसअला : - अगर पानी मोल मिलता है और आदमी के पास जरूरत से ज़्यादा पैसे नहीं तो तयम्मुम जाइज है ।*_
_*( 8 ) और अगर यह गुमान हो कि पानी तलाश करने में काफिला नजरों से ओझल हो जायेगा या रेल छूट जायेगी तो तयम्मुम जाइज़ है ।*_
_*💫( 9 ) और अगर यह ख़तरा हो कि नहाने से ईद की नमाज़ जाती रहेगी चाहे इस तरह कि इमाम नमाज़ पढ़ कर फ़ारिग हो जायेगा या ज़वाल का वक़्त आजायेगा तो इन दोनों सूरतों में तयम्मुम जाइज़ है ।*_
_*22: 💫मसअला : - कोई आदमी वुजू कर के ईद की नमाज़ पढ़ रहा था कि नमाज़ के बीच उसका वुजू टुट गया तो अगर वुजू करेगा तो नमाज़ का वक़्त जाता रहेगा या जमाअत हो चुकी होगी तो तयम्मुम कर के नमाज़ पढ़ ले ।*_
_*23: 💫मसअला : - गहन की नमाज़ के लिए भी तयम्मुम जाइज़ है जबकि वुजू करने में गहन खुल जाने या जमाअत हो जाने का अन्देशा हो ।*_
_*24: 💫मसअला : - अगर वुजू करने से जोहर या मग़रिब या इशा या जुमे की पिछली सुन्नतों का या चाश्त की नमाज़ का वक़्त जाता रहेगा तो तयम्मुम कर के नामज़ पढ़ ले ।*_
_*💫( 10 ) गैरे वली को जनाज़े की नमाज़ छूट जाने का खौफ हो तो तयम्मुम जाइज़ है , वली को नहीं कि उसका लोग इन्तेज़ार करेंगे और लोग बिना उसकी इजाज़त के पढ़ भी लें तो यह दोबारा पढ़ सकता है ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 53/54*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 67)*_
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_*✨तयम्मुम के मसाइल✨*_
_*25: 💫मसअला : - वली ने जिसको नमाज़ पढ़ाने की इजाजत दी हो उसे तयम्मुम जाइज़ नहीं और वली को इस सूरत में अगर नमाज़ फौत होने का खौफ हो तो तयम्मुम जाइज़ है । ऐसे ही अगर वली उससे बढ़कर मौजूद है तो उसके लिये तयम्मुम जाइज़ है । फौत होने के डर का मतलब यह है कि चारों तकबीरें जाती रहने का डर हो और अगर यह मालूम हो कि एक तकबीर मिलन तो तयम्मुम जाइज़ नहीं ।*_
_*26: 💫मसअला : - एक जनाज़े के लिये तयम्मुम किया और नमाज़ पढ़ी फिर दूसरा जनाज़ा आया , बीच में इतना वक़्त मिला कि वुजू करना चाहता तो कर लेता मगर न किया और अब वुजू करेगा तो नमाज़ हो चुकेगी तो इसके लिये अब दोबारा तयम्मुम करे और अगर इतना वक़्त न हो कि कर सके तो वही पहला तयम्मुम काफी है ।*_
_*27: 💫मसअला : - सलाम का जवाब देने , दूरूद शरीफ़ वज़ीफों के पढ़ने , सोने या बे वुजू को मस्जिद के जाने या जुबानी कुर्आन शरीफ पढ़ने के लिये तयम्मुम जाइज़ है अगर्चे पानी पर कुदरत हो ।*_
_*28: 💫मसअला : - जिस पर नहाना फर्ज है उसे बिना ज़रूरत मस्जिद में जाने के लिये तयम्मुम जाइज़ नहीं । हाँ अगर मजबूरी हो जैसे डोल रस्सी मस्जिद में हो और कोई उसका लाने वाला नहीं हो तो तयम्मुम करके जाये और जल्द से जल्द लेकर निकल आये ।*_
_*29: 💫मसअला : - मस्जिद में सोया था और नहाने की ज़रूरत हो गई तो आँख खुलते ही जहाँ सोया था वहीं फौरन तयम्मुम करके निकल आये वहाँ ठहरना हराम है ।*_
_*30: 💫मसअला : - अगर किसी को पानी पर कुदरत हो तो उसे कुर्आन मजीद के लिये या सजदए तिलावत के लिये या सजदए शुक्र के लिये तयम्मुम जाइज़ नहीं ।*_
_*31: 💫मसअला : - वक़्त इतना तंग हो गया कि वुजू या गुस्ल करेगा तो नमाज़ कज़ा हो जायेगी तो चाहिए कि तयम्मुम कर के नमाज़ पढ़ ले और फिर वुजू या गुस्ल कर के नमाज़ का दोहरना लाज़िम है ।*_
_*32: 💫मसअला : - औरत हैज़ या निफास से पाक हुई और उसे पानी पर कुदरत नहीं तो वह तयम्मुम करेगी ।*_
_*33: 💫मसअला : - अगर मुर्दे को नहला न सकें चाहें इस वजह से कि पानी नहीं है या इस वजह से कि उसके बदन को हाथ लगाना जाइज़ नहीं जैसे अजनबी औरत या अपनी औरत कि मरने के बाद उसे छू नहीं सकता तो उसे तयम्मुम कराया जाये । गैर महरम को अगर्चे शौहर हो औरत को तयम्मुम कराने में कपड़े को हाथ में हाइल होना चाहिए ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 53*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 68)*_
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_*✨तयम्मुम के मसाइल✨*_
_*💫34: मसअला : - जुनुब , हैज़ वाली औरत , मय्यत और बेवुजू यह सब एक जगह हैं और किसी ने नहाने भर को पानी देकर यह कहा कि जो चाहे खर्च करे तो बेहतर यह है कि जुनुब उससे नहाये और मुर्दे को तयम्मुम कराया जाये और दूसरे भी तयम्मुम करें और अगर यह कहा कि इसमें तुम सबका हिस्सा है और हर एक को उसमें से इतना हिस्सा मिला जो उसके काम के लिए पूरा नहीं तो चाहिए कि मुर्दे के गुस्ल के लिये अपना अपना हिस्सा दे दें और सब तयम्मुम करें ।*_
_*💫35: मसअला : - दो आदमियों में एक बाप और एक बेटा है और किसी ने इतना पानी दिया कि उससे एक का वुजू हो सकता है तो वह पानी बाप के खर्च में आना चाहिए ।*_
_*💫36: मसअला : - अगर कोई ऐसी जगह है कि न पानी मिलता है और न पाक मिट्टी कि वुजू या तयम्मुम कर सके तो उसे चाहिए कि नमाज के वक़्त में नमाज़ी की तरह सूरत बनाये यानी नमाज़ की तमाम हरकतें बिना नमाज़ की नीयत के बजा लाये ।*_
_*💫37: मसअला : - अगर कोई ऐसा है कि वुजू करता है तो पेशाब के कतरे टपकते हैं और तयम्मुम करे तो नहीं तो उसे लाज़िम है कि तयम्मुम करे ।*_
_*💫38: मसअला : - इतना पानी मिला जिससे वुजू हो सकता है और उसे नहाने की ज़रूरत है तो उस पानी से वुजू कर लेना चाहिये और गुस्ल के लिये तयम्मुम करे ।*_
_*💫39: मसअला : - तयम्मुम का तरीका यह है कि दोनो हाथ की उंगलियाँ कुशादा करके यानी फैलाकर किसी ऐसी चीज़ पर जो ज़मीन की किस्म से हो मार कर लौट लें और ज़्यादा गर्द लग जाये तो झाड़ लें और उस से सारे मुँह का मसह करें फिर दूसरी मर्तबा यूँही करे और दोनों हाथों का नाखून से कोहनियों समेत मसह करें ।*_
_*💫40: मसअला : - वुजू और गुस्ल दोनों का तयम्मुम एक ही तरह है ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 54//55*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 69)*_
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_*✨तयम्मुम के मसाइल✨*_
_*💫41: मसअला : - तयम्मुम में तीन फर्ज हैं ।*_
_*👉1: नियत करना : - अगर किसी ने हाथ मिट्टी पर मार कर मुँह और हाथों पर फेर लिया और नियत न की तयम्मुम न होगा ।*_
_*💫42: मसअला : - काफिर ने इस्लाम लाने के लिये तयम्मुम किया तो उससे नमाज़ जाइज नहीं कि वह उस वक़्त तयम्मुम के अहल नहीं था अगर वह पानी पर कुदरत नहीं रखता तो सिरे से तयम्मुम करे ।*_
_*💫43: मसअला : - नमाज़ उस तयम्मुम से जाइज़ होगी जो पाक होने की नियत या किसी ऐसी इबादते मकसूदा ( इरादा की हुई किसी ऐसी इबादत ) के लिए किया गया हो जो बिना पाकी के जाइज न हो तो अगर मस्जिद में जाने , या निकलने या कुनि मजीद छूने या अज़ान और इकामत ( यह सब इबादते मकसूदा नहीं ) या सलाम करने या सलाम के जवाब देने या कब्रों की जियारत या मय्यत के दफन करने या बे वुजू ने कुर्आन मजीद पढ़ने ( इन सब के लिए तहारत शर्त नहीं ) के लिए तयम्मुम किया हो तो उससे नमाज़ ' जाइज़ नहीं बल्कि जिस काम के लिये तयम्मुम किया गया है उसके अलावा कोई इबादत भी जाइज़ नहीं ।*_
_*💫44: मसअला : - जुनुब ने कुर्आन मजीद पढ़ने के लिये तयम्मुम किया हो तो उससे नमाज़ पढ़ सकता है और अगर किसी ने सजदए शुक्र की नियत से तयम्मुम किया तो उससे नमाज़ न होगी दूसरे को तयम्मुम का तरीका बताने के लिये जो तयम्मुम किया उससे भी नमाज़ जाइज़ नहीं ।*_
_*💫45: मसअला : - नमाज़े जनाजा या ईदैन या सुन्नतों के लिए इस गर्ज से तयम्मुम हो कि वुजू करेगा तो यह नमाजें फौत हो जायेंगी तो इस तयम्मुम से उस खास नमाज के सिवा कोई दूसरी नमाज़ जाइज़ नहीं ।*_
_*💫46: मसअला : - नमाज़े जनाज़ा या ईदैन के लिए तयम्मुम इस तरह से किया कि बीमार था या पानी मौजूद न था तो उससे फर्ज़ और दूसरी इबादतें सब जाइज हैं ।*_
_*💫47: मसअला : - सजदए तिलावत के तयम्मुम से भी नमाजे जाइज़ हैं ।*_
_*💫48: मसअला : - जिस पर नहाना फर्ज है उसे यह जरूरी नहीं कि गुस्ल और वुजू दोनों के लिये दो तयम्मुम करे बल्कि एक ही में दोनों की नियत कर ले दोनों हो जायेंगे और अगर सिर्फ गुस्ल या वुजू की नियत की जब भी काफी है ।*_
_*💫49: मसअला : - बीमार या बिना हाथ पैर वाला अगर अपने आप तयम्मुम नहीं कर सकता तो उसे कोई दूसरा आदमी तयम्मुम करा दे और उस वक़्त तयम्मुम कराने वाले नियत का एअतेबार नहीं बल्कि अस्ल नियत उसकी मानी जायेगी जिसको तयम्मुम कराया जा रहा है ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 55//56*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 70)*_
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_*✨तयम्मुम के मसाइल✨*_
_*👉2 . सारे मुँह पर हाथ फेरना*_
_*💫50: मसअला : - सारे मुँह पर इस तरह हाथ फेरा जायेगा कि तयम्मुम की जगह का कोई हिस्सा बाकी न रह जाये अगर बाल बराबर भी कोई जगह रह गई तयम्मुम न होगा ।*_
_*💫51: मसअला : - दाढ़ी , मूछों और भवों के बालों पर हाथ फिर जाना ज़रूरी है । मुँह कहाँ से कहाँ तक है इसको हमने वुजू में बयान कर दिया है । भवों के नीचे और आँखों के ऊपर जो जगह है और नाक के निचले हिस्से का ध्यान रखें कि अगर इन पर ध्यान न दिया गया तो उन पर हाथ न फिरेगा और ऐसी हालत में तयम्मुम न होगा ।*_
_*💫52: मसअला : - अगर औरत नाक में फूल पहने हो तो उसे उतार ले नहीं तो फूल की जगह बाकी रह जायेगी और अगर नथ पहने हो जब भी ध्यान रखे कि नथनी की बजह से कोई जगह बाकी तो नहीं रह गई ।*_
_*💫53: मसअला : - नथनों के अन्दर मसह कुछ ज़रूरी नही ।*_
_*💫54: मसअला : - होंट का वह हिस्सा जो मुँह बंद होने की हालत में दिखाई देता है उस पर भी हाथ फेरना ज़रूरी है अगर किसी ने मसह करते वक़्त होंटों को ज़ोर से दबा लिया कि कुछ हिस्सा बाकी रह गया तो तयम्मुम न होगा ऐसे ही अगर ज़ोर से आँखें बन्द कर ली जब भी तयम्मुम न होगा ।*_
_*💫55: मसअला : - मूंछ के बाल इतने बढ़ गये कि होंट छुप गया तो उन बालों को उठा कर होंट पर हाथ फेरे , बालों पर हाथ फेरना काफी नहीं ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 56*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 70)*_
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_*✨तयम्मुम के मसाइल✨*_
_*👉2 . सारे मुँह पर हाथ फेरना*_
_*💫50: मसअला : - सारे मुँह पर इस तरह हाथ फेरा जायेगा कि तयम्मुम की जगह का कोई हिस्सा बाकी न रह जाये अगर बाल बराबर भी कोई जगह रह गई तयम्मुम न होगा ।*_
_*💫51: मसअला : - दाढ़ी , मूछों और भवों के बालों पर हाथ फिर जाना ज़रूरी है । मुँह कहाँ से कहाँ तक है इसको हमने वुजू में बयान कर दिया है । भवों के नीचे और आँखों के ऊपर जो जगह है और नाक के निचले हिस्से का ध्यान रखें कि अगर इन पर ध्यान न दिया गया तो उन पर हाथ न फिरेगा और ऐसी हालत में तयम्मुम न होगा ।*_
_*💫52: मसअला : - अगर औरत नाक में फूल पहने हो तो उसे उतार ले नहीं तो फूल की जगह बाकी रह जायेगी और अगर नथ पहने हो जब भी ध्यान रखे कि नथनी की बजह से कोई जगह बाकी तो नहीं रह गई ।*_
_*💫53: मसअला : - नथनों के अन्दर मसह कुछ ज़रूरी नही ।*_
_*💫54: मसअला : - होंट का वह हिस्सा जो मुँह बंद होने की हालत में दिखाई देता है उस पर भी हाथ फेरना ज़रूरी है अगर किसी ने मसह करते वक़्त होंटों को ज़ोर से दबा लिया कि कुछ हिस्सा बाकी रह गया तो तयम्मुम न होगा ऐसे ही अगर ज़ोर से आँखें बन्द कर ली जब भी तयम्मुम न होगा ।*_
_*💫55: मसअला : - मूंछ के बाल इतने बढ़ गये कि होंट छुप गया तो उन बालों को उठा कर होंट पर हाथ फेरे , बालों पर हाथ फेरना काफी नहीं ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 56*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 71)*_
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_*✨तयम्मुम के मसाइल✨*_
_*👉3 . दोनों हाथों का कुहनियों समेत मसह करना*_
_*💫56: मसअला : - इसमें भी ध्यान रहे कि दोनों हाथों की ज़री बराबर कोई जगह बाकी न रहे नहीं तो तयम्मुम न होगा ।*_
_*💫57: मसअला : - अगर अँगूठी छल्ले पहने हो तो उन्हें उतार कर उनके नीचे हाथ फेरना फर्ज है । औरतों को इसमें ध्यान देना चाहिये कंगन , चूड़ियाँ , और जितने ज़ेवर औरत हाथ में पहने हों सब को हटाकर या उतार कर जिस्म के हर हिस्से पर हाथ पहुँचाये । इसकी एहतेयात वुजू से बढ़कर है । हाँ तयम्मुम में सर और पाँव को मसह नहीं है ।*_
_*💫58: मसअला : - एक ही बार हाथ मार कर मुँह और हाथों पर मसह कर लिया तो तयम्मुम न हुआ । हाँ अगर एक हाथ से सारे मुँह का का मसह किया और दूसरे से एक हाथ का और एक हाथ जो बच रहा है उसके लिए फिर हाथ मारा और उस पर मसह कर लिया तो हो गया मगर सुन्नत के खिलाफ है ।*_
_*💫59: मसअला : - जिस आदमी के दोनों हाथ या एक पहुँचे से कटा हो तो कुहनियों तक जितना बाकी रह गया उस पर मसह करे और अगर कुहनियों से ऊपर तक कट गया तो उसे बाकी हाथ पर मसह करने कि जरूरत नहीं फिर भी अगर उस जगह पर जहाँ से कट गया है मसह कर ले तो बेहतर है ।*_
_*💫60: मसअला : - कोई लुंजा है या उसके दोनों हाथ कटे हैं और कोई ऐसा नहीं जो उसे तयम्मुम करा दे तो वह अपने हाथ और गाल जहाँ तक मुमकिन हो सके ज़मीन या दीवार से मस करे यानी छुआ कर नमाज पढ़े मगर वह ऐसी हालत में इमामत नहीं कर सकता । हाँ अगर उस जैसा कोई और भी है तो वह उसकी इमामत कर सकता है ।*_
_*💫61: मसअला : - तयम्मुम के इरादे से जमीन पर लोटा और मुँह और हाथों पर जहाँ तक जरूरी है हर जर्रें पर गर्द लग गई तो तयम्मुम हो गया वर्ना नहीं और इस सूरत में मुँह और हाथों पर हाथ फेर लेना चाहिए ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 56//57*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 72)*_
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_*✨तयम्मुम की सुन्नतें✨*_
_*💫तयम्मुम की सुन्नतें यह हैं : ⤵️*_
_*1 . बिस्मिल्लाह कहना ।*_
_*2 . हाथों को ज़मीन पर मारना ।*_
_*3 . उंगलियाँ खुली हुई रखना ।*_
_*4 . हाथों को झाड़ लेना यानी एक हाथ के अंगूठे की जड़ को दूसरे हाथ के अंगूठे की जड़ पर मारना इस तरह कि ताली की तरह आवाज न निकले ।*_
_*5 . ज़मीन पर हाथ मार कर लौट देना ।*_
_*6 . पहले मुँह फिर हाथ का मसह करना ।*_
_*7 . दोनों का मसह पै दर पै होना ।*_
_*8 . पहले दाहिने हाथ फिर बायें हाथ का मसह करना ।*_
_*9 . दाढ़ी का ख्याल करना ।*_
_*10 . उंगलियों का खिलाल करना जब कि गुबार पहुँच गया हो और अगर गुबार न पहुँचा जैसे पत्थर वगैरा किसी ऐसी चीज़ पर हाथ मारा जिस पर गुबार न हो तो खिलाल फर्ज है । हाथों के मसह में अच्छा तरीका यह है कि बायें हाथ के अंगूठे के अलावा चार उंगलियों का पेट दाहिने हाथ की पीठ पर रखे और उंगलियों के सरों से कुहनी तक ले जाये और फिर वहाँ से बायें हाथ की हथेली से दाहिने पेट को छूता गट्टे तक लाये । और बायें अँगूठे के पेट से दाहिने अँगूठे की पीठ को मसह करे ऐसे ही दाहिने हाथ से बायें का मसह करे और एक दम से पूरी हथेली और उंगलियों से मसह कर लिया तो तयम्मुम हो गया चाहे कुहनी से उंगलियों की तरफ लाया या उंगलियों से कुहनी की तरफ ले गया मगर पहली सूरत में सुन्नत के खिलाफ हुआ ।*_
_*💫1: मसअला : - अगर मसह करने में सिर्फ तीन उंगलियाँ काम में लाया जब भी हो गया और अगर एक या दो से मसह किया तो तयम्मुम नहीं होगा अगर्चे तमाम उज्व पर उनको फेर लिया हो ।*_
_*💫2: मसअला : - तयम्मुम होते हुए दोबारा तयम्मुम न करे ।*_
_*💫3: मसअला : - खिलाल के लिये ज़मीन पर हाथ मारना ज़रूरी नहीं ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 57*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 73)*_
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_*✨किस चीज़ से तयम्मुम जाइज है और किस से नहीं ✨*_
_*💫1: मसअला : - तयम्मुम उसी चीज़ से हो सकता है जो जिन्से जमीन ( यानी ज़मीन की किस्म ) से हो और जो चीज़ जमीन की जिन्स से नहीं उससे तयम्मुम जाइज़ नहीं ।*_
_*💫2: मसअला : - जिस मिट्टी से तयम्मुम किया जाये उसका पाक होना ज़रूरी है यानी न उस पर किसी नजासत का असर हो न यह हो कि महज़ सूख जाने से नजासत का असर जाता रहा हो ।*_
_*💫3: मसअला : - किसी चीज पर नजासत गिरी और सूख गई उस से तयम्मुम नहीं कर सकते अगर्चे नजासत का असर बाकी न हो अलबत्ता उस पर नमाज़ पढ़ सकते हैं ।*_
_*💫4: मसअला : - यह वहम कि कभी नजिस हुई होगी फुजूल है उसका एअतेबार नहीं ।*_
_*💫5: मसअला : - जो चीज़ आग से जल कर न राख होती है , न पिघलती है , न नर्म होती है वह जमीन की जिन्स से है उससे तयम्मुम जाइज़ है जैसे रेता , चूना सुर्मा हड़ताल , गन्धक , मुर्दासंग , गेरू पत्थर जबरजद , फीरोज़ा , अकीक और ज़मर्रद वगैरा जवाहिरात से तयम्मुम जाइज़ है अगरचें उन पर गुबार न हो ।*_
_*💫6: मसअला : - पक्की ईंट चीनी या मिट्टी के बर्तन से जिस चीज़ पर किसी ऐसी चीज़ की रंगत में जो ज़मीन के जिन्स से हो जैसे गेरू , खरिया मिट्टी या वह चीज़ जिस की रंगत ज़मीन के जिन्स से तो नहीं मगर बर्तन पर उसका जिर्म ( कण ) न हो तो इन दोनों सूरतों में उससे तयम्मुम जाइज है। और अगर ज़मीन के जिन्स से न हो और उसका जिर्म बर्तन पर हो तो जाइज़ नहीं ।*_
_*💫7: मसअला : - शोरा जो अभी पानी में डाल कर साफ नहीं किया गया उस से तयम्मुम जाइज है वरना नहीं ।*_
_*💫8: मसअला : - जो नमक पानी से बनता है उससे तयम्मुम जाइज़ नहीं और जो कान से निकलता है जैसे सेंधा नमक तो उस से जाइज़ है ।*_
_*💫9: मसअला : - जो चीज़ आग ' से जल कर राख हो जाती हो जैसे लकड़ी , घास आदि या पिघल जाती हो या नर्म हो जाती हो जैसे चाँदी , सोना , ताँबा , पीतल , लोहा वगैरा धातें , वह जमीन की जिन्स से नहीं उससे तयम्मुम जाइज़ नहीं , हाँ यह धातें अगर कान से निकाल कर पिघलाई न गई कि उन पर मिट्टी के ज़र्रें अभी बाकी हैं तो उनसे तयम्मुम जाइज़ है और अगर पिघलाकर साफ कर ली गई और उन पर इतना गुबार बाकी है कि हाथ मारने से उसका असर हाथ में ज़ाहिर होता है उस गुबार से तयम्मुम जाइज़ है वर्ना नहीं ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 57//58*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 74)*_
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_*✨किस चीज़ से तयम्मुम जाइज है और किस से नहीं ✨*_
_*💫 10: मसअला : - गल्ला गैहूँ , जौ वगैरा और लकड़ी या घास और शीशे पर गुबार हो तो उस गुबार से तयम्मुम जाइज़ है जबकि इतना हो कि हाथ में लग जाता हो वर्ना नहीं और मुश्क , अम्बर , काफूर और लोबान से तयम्मुम जाइज़ नहीं ।*_
_*💫 11: मसअला : - मोती , सीप और घोंगे से तयम्मुम जाइज़ नहीं अगर्चे पिसे हों और इन चीजों के चूने से भी तयम्मुम नाजाइज़ है ।*_
_*💫 12: मसअला : - राख , सोने , चाँदी और फौलाद वगैरा के कुश्तों से भी तयम्मुम जाइज़ नहीं ।*_
_*💫 13: मसअला : - ज़मीन या पत्थर जल कर स्याह हो जाये तो उससे तयम्मुम जाइज़ है । मसअला : - अगर खाक में राख मिल जाये और खाक ज्यादा हो तो तयम्मुम जाइज़ है वर्ना नहीं । मसअला : - पीले , लाल , हरे और काले रंग की मिट्टी से तयम्मुम जाइज़ है मगर जब रंग छूट कर हाथ मुँह को रंगीन कर दे तो बिना सख्त ज़रूरत के उससे तयम्मुम करना जाइज़ नहीं और अगर कर लिया तो हो गया और भीगी मिट्टी से तयम्मुम जाइज़ है जब कि मिट्टी ज्यादा हो ।*_
_*💫 14: मसअला : - मुसाफिर का ऐसी जगह पर गुज़र हुआ कि सब तरफ कीचड़ ही कीचड़ है और उस पानी नहीं मिलता कि वुजू , या गुस्ल कर सके और कपड़े में भी गुबार नहीं तो उसे चाहिये कि कपडा कीचड़ से सानकर सुखा ले और उससे तयम्मुम करे और वक़्त जा रहा हो तो मजबूरी का कीचड़ ही से तयम्मुम कर ले जबकि मिट्टी गालिब हो यानी मिट्टी ज़्यादा हो ।*_
_*💫 15: मसअला : - गद्दे और दरी वगैरा में गुबार है तो उससे तयम्मुम कर सकता है अगर्चे वहाँ मिट्टी मौजूद हो जब कि गुबार इतना हो कि हाथ फेरने से उंगलियों का निशान बन जाये ।*_
_*💫 16: मसअला : - नजिस कपड़े में गुबार हो उससे तयम्मुम जाइज नहीं हाँ अगर उसके सूखने के बाद गुबार पड़ा तो जाइज है ।*_
_*💫 17: मसअला : - मकान बनाने या गिराने में या किसी और सूरत से मुँह और हाथों पर गर्द पड़ी और तयम्मुम की नियत से मुँह और हाथों पर मसह कर लिया तो तयम्मुम हो गया ।_*💫
_*💫 18: मसअला : - गच की दीवार पर तयम्मुम जाइज़ है ।*_
_*💫 19: मसअला : - बनावटी मुदीसंग से तयम्मुम जाइज नहीं और मूंगे और उसकी राख से तयम्मुम जाइज नहीं ।*_
_*💫 20: मसअला : - जिस जगह से एक ने तयम्मुम किया दूसरा भी उसी जगह से तयम्मुम कर सकता है और यह जो मशहूर है कि मस्जिद की दीवार या ज़मीन से तयम्मुम नाजाइज या मकरूह है यह गलत है ।*_
_*💫 21: मसअला : - तयम्मुम के लिये हाथ ज़मीन पर मारा और मसह से पहले ही तयम्मुम टुटने का कोई सबब पाया गया तो उससे तयम्मुम नहीं कर सकता ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 58/59*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 75)*_
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_*✨तयम्मुम किन चीजों से टूटता है*_
_*📍जिन चीजों से वुजू टूटता है या गुस्ल वाजिब होता है उस से तयम्मुम भी जाता रहेगा और अलावा उनके पानी पर कादिर होने , से भी तयम्मुम टूट जायेगा ।*_
_*💫1: मसअला : - मरीज़ ने गुस्ल का तयम्मुम किया था और अब इतना तन्दुरूस्त हो गया कि नहाने से नुकसान न पहुँचेगा तो ऐसी हालत में तयम्मुम टूट जायेगा ।*_
_*💫2: मसअला : - किसी ने गुस्ल और वुजू दोनों के लिये एक ही तयम्मुम किया था फिर वुजू तोड़ने वाली कोई चीज़ पाई गई या इतना पानी पाया जिससे सिर्फ वुजू कर सकता है या बीमार था और अब इतना तन्दुरूस्त हो गया कि वुजू नुकसान न करेगा और गुस्ल से नुकसान होगा तो सिर्फ वुजू के हक में तयम्मुम जाता रहा और गुस्ल के हक में बाकी रहेगा ।*_
_*💫3: मसअला : - जिस हालत में तयम्मुम नाजाइज़ था अगर वह हालत तयम्मुम के बाद पाई गई तो तयम्मुम टूट जायेगा जैसे तयम्मुम वाले का ऐसी जगह गुज़र हुआ कि वहाँ से एक मील के अन्दर पानी है तो तयम्मुम जाता रहेगा यह ज़रूरी नहीं कि वह पानी के पास ही पहुँच जाये ।*_
_*💫4: मसअला : - इतना पानी मिला कि वुजू के लिये काफी नहीं यानी एक बार मुँह और एक - एक बार दोनों हाथ पाँव नहीं धो सकता है तो तयम्मुम नहीं टुटा और अगर एक - एक बार धो सकता है तो तयम्मुम जाता रहा ऐसे ही गुस्ल के तयम्मुम करने वालों को इतना पानी मिला जिस से गुस्ल नहीं हो सकता तो तयम्मुम नहीं गया ।*_
_*💫5: मसअला : - अगर कोई आदमी ऐसी जगह गुज़रा कि वहाँ से पानी करीब है मगर पानी के पास शेर , सॉप या दुश्मन है जिससे जान माल या इज्जत का वाकई खतरा है या काफिला इन्तेजार न करेगा और नजरों से गायब हो जायेगा या सवारी से उतर नहीं सकता जैसे रेल या घोड़ा कि उसके रोकने से नहीं रुकता या घोड़ा ऐसा है कि उतरने तो देगा मगर फिर चढ़ने न देगा या यह इतना कमजोर है कि फिर चढ़ न सकेगा या कुँए में पानी है मगर उसके पास डोल रस्सी नहीं तो इन सब सूरतों में तयम्मुम नहीं टूटा ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 59/60*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 76)*_
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_*✨तयम्मुम किन चीजों से टूटता है*_
_*6: 💫मसअला : - अगर कोई पानी के पास से सोता हुआ गुजरा तो तयम्मुम नहीं टुटा हाँ अगर तयम्मुम वुजू का था और नींन्द उस की हद है जिस से वुजू जाता रहे तो बेशक तयम्मुम जाता रहा मगर इस वजह से नहीं कि पानी पर गुजरा बल्कि सो जाने से और अगर ओंघता हुआ पानी पर गुजरा और पानी कीजानकारी उसे हो गई तो तयम्मुम टुट गया वरना नहीं ।*_
_*7: 💫मसअला - अगर कोई पानी के करीब से गुजरा और उसे अपना तयम्मुम याद नहीं जब भी तर जाता रहा ।*_
_*8: 💫मसअला : - अगर किसी ने नमाज पढते में गधे या खच्चर का झूठा पानी देखा तो नमाज पूरी करे फिर उससे वुजू करे फिर तयम्मुम करे और नमाज लौटाये ।*_
_*9: 💫मअसला : - अगर कोई नमाज़ पढ़ रहा था और उसे दूर से रेता चमकता हुआ दिखाई दिया है उसे पानी समझकर एक कदम भी चला फिर पता चला कि रेता है नमाज़ फासिद हो गई तयम्मुम न गया ।*_
_*10: 💫मसअला : - कुछ लोग तयम्मुम किये हुए थे कि किसी ने उनके पास एक वुजू के लाइक पानी लाकर कहा कि जिसका जी चाहे उस से वुजू कर ले तो सबका तयम्मुम जाता रहेगा और अगर वह सब नमाज में थे तो नमाज भी सब की जाती रही अगर यह कहा कि तुम सब इस से वुजू कर लो तो किसी का भी तयम्मुम न टूटेगा ऐसे ही अगर यह कहा कि मैंने तुम सबको इसका मालिक किया जब भी तयम्मुम न गया ।*_
_*11: 💫मसअला : - पानी न मिलने की वजह से तयम्मुम किया था अब पानी मिला तो ऐसा बीमार हो गया कि पानी नुकसान करेगा तो पहला तयम्मुम जाता रहा और अब बीमारी की वजह से फिर तयम्मुम करे ऐसे ही बीमारी की वजह से तयम्मुम किया अब अच्छा हुआ तो पानी नहीं मिलता जब भी नया तयम्मुम करे ।*_
_*12: 💫मसअला : - किसी ने गुस्ल किया मगर थोड़ा सा बदन सूखा रह गया यानी उस पर पानी न बहा और पानी भी नहीं कि उससे धो ले अब गुस्ल का तयम्मुम किया फिर बेवुजू हुआ और वुजू का भी तयम्मुम किया फिर उसे इतना पानी मिला कि वुजू भी कर ले और वह सूखी जगह भी धो ले तो वुजू और गुस्ल दोनों के तयम्मुम जाते रहे और अगर इतना पानी मिला कि न उससे वुजू हो सकता है न वह जगह धुल सकती है तो दोनों तयम्मुम बाकी रहेंगे और उस पानी को उस खुश्क हिस्से के धोने में खर्च करे जितना धुल सके और अगर इतना मिला कि वुजू हो सकता है और खुश्की के लिए काफी नहीं तो वुजू का तयम्मुम जाता रहा उस से वुजू करे और अगर सिर्फ खुश्क हिस्से को धो सकता है और वुजू नहीं कर सकता तो गुस्ल का तयम्मुम जाता रहा और वुजू का बाकी है उस पानी को उसके धोने में खर्च करे और अगर एक कर सकता है चाहे वुजू कर ले चाहे उसे धो ले तो गुस्ल का तयम्मुम जाता रहा उससे उस जगह को धो ले और वुजू का तयम्मुम बाकी है ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 60*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 77)*_
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_*✨मोज़ों पर मसह का बयान*_
_*📚हदीस न . 1 : - इमाम अहमद व अबू दाऊद ने मुगीरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की वह फ़रमाते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहिवसल्लम ने मोज़ों पर मसह किया मैंने अर्ज की या रसूलल्लाह हुजूर भूल गए । फरमाया बल्कि तू भूला मेरे रब ने इसी का हुक्म दिया है ।*_
_*📚हदीस न . 2 : - दारे कुतनी ने अबु बक्र रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मुसफ़िर को तीन दिन तीन रातें और मुकीम को एक दिन एक रात मोज़ों पर मसह करने की इजाजत दी जब कि तहारत के साथ पहने हों ।*_
_*📚हदीस न . 3 : - तिर्मिज़ी और नसई सफवान इब्ने अस्साल रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत करते हैं कि जब हम मुसाफिर होते तो हुजूर अलैहिस्सलाम हुक्म फरमाते कि तीन दिन और तीन रातें हम मोज़े न उतारें मगर जिस पर नहाना फ़र्ज़ हो वह ज़रूर उतार दे लेकिन पाखाना पेशाब और सोने के बाद न उतारे ।*_
_*📚हदीस न . 4 : - अबू दाऊद ने रिवायत की कि हज़रते अली रदियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि दीन अगर अपनी राय से होता तो मोज़े का तला ऊपर की निस्बत के मसह में बेहतर होता । ( यानी बजाए ऊपर के नीचे से मसह करते । यहाँ अल्लाह और उसके रसूल का हुक्म यूँही है ।*_
_*📚हदीस न . 5 : - अबू दाऊद और तिमिज़ी रिवायात करते हैं कि मुगीरा इब्ने शोअबा रदियल्लाहु तआला अन्हु कहते हैं कि मैंने रसूलुल्ला सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को देखा कि मोजों की पुश्त पर मसह फरमाते ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 61*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 78)*_
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_*✨मोज़ो पर मसह के मसाइल*_
_*💫जो शख्स मोज़ा पहने हुये हो वह अगर वुजू में पाँव धोने के बजाये मसह करे तो जाइज है और पाँव धोना बेहतर है मगर शर्त यह है कि मसह जाइज़ समझे और मसह के जाइज़ होने में बहुत हदीसें हैं जो तवातुर के करीब हैं इसी लिये इसमें की कर्खी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि फरमाते हैं कि जो मसह को जाइज़ न जाने उसके काफ़िर हो जाने का अन्देशा है । इमाम शैखुल इस्लाम फरमाते हैं कि जो इसे जाइज़ न माने गुमराह है । हमारे इमामे आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु से अहले सुन्नत व जमाअत की अलामत पूछी गई तो उन्होंने फरमाया कि :*_
_*📝तर्जमा : - यानी हजरत अमीरूल मोमिनीन अबू बक्र सिद्दीक और अमीरूल मोमिनीन फारूके आजम रदियल्लाहु तआला अन्हुमा को तमाम सहाबा से बुजुर्ग जानना और अमीरुल मोमिनीन उसमाने गनी और अमीरुल मोमिनीन हज़रते अली रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से मुहब्बत रखना और मोज़ो पर मसह करना । इन तीन बातों की तखसीस . इस लिए फ़रमाई कि हज़रत कूफे में थे और वहाँ राफिज़ियों की कसरत थी तो वही अलामत इरशाद फरमाई जो उनका रद्द हैं । इस रिवायत के यह मअ्ना नहीं कि सिर्फ इन तीन बातों का पाया जाना सुन्नी होने के लिए काफी है अलामत शय में पाई जाती है और शय लाज़िमे अलामत नहीं होती जैसे बुखारी शरीफ की हदीस में वहाबियों की अलामत बताई गई है और वह यह है । ( उनकी अलामत सर मुंडाना है । ) इसका - - यह मतलब नहीं कि सर मुंडाना ही वहाबी होने के लिए काफी है । और इमाम अहमद इब्ने हम्बल रहमतुल्लाहि तआला अलैह फरमाते हैं कि मेरे दिल में मोजे मसह के जाइज़ होने पर कुछ शक नहीं कि इस में चालीस सहाबा से मुझको हदीसें पहुंची ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 61/62*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 79)*_
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_*✨मोज़ो पर मसह के मसाइल*_
_*💫1: मसअला : - जिस पर नहाना फर्ज़ है वह मोज़ों पर मसह नहीं कर सकता ।*_
_*💫2: मसअला : - औरतें भी मसह कर सकती हैं । मसह करने के लिए कुछ शर्ते है ।*_
_*1 . मोज़े ऐसे हों कि टखने छुप जायें इससे ज्यादा होने की ज़रूरत नहीं और अगर दो एक उंगल कम हों जब भी मसह दुरुस्त है एड़ी खुली हुई न हो ।*_
_*2 . मोज़ा पाँव से चिपटा हो कि उसको पहन कर आसानी के साथ खुब चल फ़िर सकें ।*_
_*3 . मोज़ा चमड़े का हो या सिर्फ तला चमड़े का और बाकी किसी और मोटी चीज़ का जैसे किरमिच वगैरा ।*_
_*💫4: मसअला : - हिन्दुस्तान में आम तौर पर जो सूती या ऊनी मोज़े पहने जाते हैं उन पर मसह जाइज नहीं , उनको उतार कर पाँव धोना फर्ज है ।*_
_*4 . मोज़ा वुजू करके पहना हो यानी पहनने के बाद और हदस से पहले एक ऐसा वक़्त हो कि उस वक़्त में वह शख्स बा - वुजू हो ख्वाह पूरा वुजू कर के पहने या सिर्फ पाँव धोकर पहने और बाद में वुजू पूरा कर ले ।*_
_*💫5: मसअला : - अगर पाँव धोकर मोज़े पहन लिये और हदस से पहले मुँह हाथ धो लिया और सर का मसह कर लिया तो भी मसह जाइज़ है और अगर सिर्फ पाँव धोकर पहने और पहनने के बाद वुज पूरा किया और हदस हो गया तो अब वुजू करते वक़्त मसह जाइज़ नहीं ।*_
_*💫6: मसअला : - बे - वुजू मोज़ा पहन कर पानी में चला कि पाँव धुल गये अब अगर हदस से पहले वुजू के दूसरे उज्व धो लिये और सर का मसह कर लिया तो मसह जाइज़ है वर्ना नहीं ।*_
_*💫7: मसअला : - वुजू करके एक ही पाँव में मोज़ा पहना और दूसरा न पहना यहाँ तक कि हदस हुआ तो उस एक पर भी मसह जाइज़ नहीं दोनों पाँव का धोना फर्ज है ।*_
_*💫8: मसअला : - तयम्मुम करके मोज़े पहने गये तो मसह जाइज़ नहीं ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 62*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 80)*_
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_*✨मोज़ो पर मसह के मसाइल*_
_*💫9: मसअला : - माजूर को सिर्फ उस एक वक़्त के अन्दर मसह जाइज़ है जिस वक़्त में पहना हो । हां अगर पहनने के बाद और हदस से पहले उज्र जाता रहा तो उसके लिये वह मुद्दत है जो तन्दुरुस्त के लिए है ।*_
_*5 . जनाबत की हालत में मोज़े न पहने हों और न पहनने के बाद जुनुबी हुआ हो ।*_
_*💫10: मसअला : - जुनुबी ने जनाबत का तयम्मुम किया और वुजू कर के मोज़ा , पहना , तो मसह कर सकता है मगर जब जनाबत का तयम्मुम जाता रहे तो अब मसह जाइज़ नहीं ।*_
_*💫11: मसअला : - जुनुबी ने गुस्ल किया मगर थोड़ा सा बदन खुश्क रह गया और मौज़े पहन लिये और हदस से पहले उस जगह को धो डाला तो मसह जाइज़ है और अगर वह जगह वुजू के उज्व में धोने से रह गई थी और धोने से पहले हदस हुआ तो मसह जाइज़ नहीं ।*_
_*6. मोज़ों पर मसह मुद्दत के अन्दर हो और उसकी मुद्दत मुकीम के लिये एक दिन और एक रात और मुसाफिर के लिए तीन दिन और तीन रातें हैं ।*_
_*💫12: मसअला : - मोज़ा पहनने के बाद पहली बार जो हदस हुआ उस वक़्त से उसका शुमार है जैसे सुबह के वक्त मोजा पहना और जोहर के वक़्त पहली बार हदस हुआ तो मुकीम दूसरे दिन की जोहर तक मसह करे और मुसाफ़िर चौथे दिन की ज़ोहर तक ।*_
_*💫13: मसअला : - मुकीम को एक दिन एक रात पूरा न हुआ था कि सफर किया तो अब हदस की शुरूआत से तीन दिन तीन रातों तक मसह कर सकता है और मुसाफ़िर ने इकामत की नियत कर ली तो अगर एक दिन रात पूरा कर चुका है तो मसह जाता रहा और पाँव धोना फर्ज हो गया और नमाज़ में था तो नमाज जाती रही और अगर चौबीस घन्टे पूरे न हुए तो जितना बाकी है पूरा कर ले ।*_
_*7 . कोई मोजा पाँव की छोटी तीन उंगलियों के बराबर फटा न हो यानी चलने में तीन उंगल बदन न ज़ाहिर होता हो और अगर तीन उंगल फटा हो और बदन तीन उंगल से कम दिखाई देता है तो मसह जाइज़ है और अगर दोनों तीन - तीन उंगल से कम फटे हों और सब का जोड़ तीन उंगल या ज्यादा है तो भी मसह हो सकता है । सिलाई खुल जाये जब भी यही हुक्म है कि हर एक में तीन उंगल से कम है तो जाइज़ है नहीं तो नहीं ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 62/63*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 81)*_
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_*✨मोज़ो पर मसह के मसाइल*_
_*💫14: मसअलाा : - मोजा फट गया या सिलाई खुल गई और वह पहने रहने की हालत में तीन उंगल पाँव जाहिर नहीं होता मगर चलने में तीन उंगल दिखाई दे तो उस पर मसह जाइज़ नहीं ।*_
_*💫15: मसअला : - ऐसी जगह फटा या सिलाई खुली कि उंगलिया खुद दिखाई दें तो छोटी बड़ी एअतेबार नहीं बल्कि तीन उंगलियाँ ज़ाहिर हों तो मसह टुट जाएगा ।*_
_*💫16: मसअला : - एक मोजा चन्द जगह कम से कम इतना फट गया हो कि उसमें सुतली ( चमड़ा सोना के औज़ार ) जा सके और उन सब का जोड़ तीन उंगल से कम है तो मसह जाइज़ है वर्ना और टखने के ऊपर कितना ही फटा हो उसका एअतिबार नहीं ।*_
_*💫17:मसअला : - मसह का तरीका यह है कि दाहिने हाथ की तीन उंगलियाँ दाहिने पाँव की पुश्त सिरे और बायें हाथ की उंगलियाँ बायें पाँव की पुश्त के सिरे पर रखकर पिन्डली की तरफ़ का कम तीन उंगल की मिकदार खींच ली जायें और सुन्नत यह है कि पिंडली तक पहुँचायें ।*_
_*💫18: मसअला : - उंगलीयों का तर होना ज़रूरी है हाथ धोने के बाद जो तरी बाकी रह गई उससे - जाइज़ है और सर का मसह किया और अभी हाथ में तरी मौजूद है तो यह काफी नहीं बल्कि नये पानी से हाथ तर कर ले कुछ हिस्सा हथेली का भी शामिल हो तो हर्ज नहीं ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 63*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 82)*_
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_*✨मोज़ो पर मसह के मसाइल*_
_*👉मसह में फर्ज दो हैं*_
_*✨1 हर मोज़े का मसह हाथ की छोटी तीन उंगलियों के बराबर होना ।*_
_*✨2 मसह मोजे की पीठ पर , होना ।*_
_*💫20: मसअला : - एक पाँव का मसह दो उंगल के मिकदार किया और दूसरे का चार उंगल तो मसह नहीं हुआ ।*_
_*💫21: मसअला : - मोजे के तली या करवटों या टखने या पिडली या एड़ी पर मसह किया तो मसह नहीं हआ ।*_
_*💫22: मसअला : - पूरी तीन उंगलियों के पेट से मसह करना और पिंडली तक खींचना और मसह करते वक्त उंगलियाँ खुली रखना सुन्नत है ।*_
_*💫23: मसअला : - अगर उंगलियों की पीठ से मसह किया या पिन्डली की तरफ से उंगलियों की तरह खींचा या मोज़े की चौड़ाई का मसह किया या उंगलियाँ मिली हुई रखीं या हथेली से मसह किया तो इन सब सूरतो में मसह तो हो गया लेकिन सुन्नत के खिलाफ हुआ ।*_
_*💫24: मसअला : - अगर एक ही उंगली से तीन बार नये पानी से हर मर्तबा तर कर के तीन जगह पर किया जब भी हो गया मगर सुन्नत अदा न हुई और अगर एक ही जगह मसह हर बार किया । हर बार तर न किया तो मसह न हुआ ।*_
_*💫25: मसअला : - उंगलियों की नोक से मसह किया तो अगर उन में इतना पानी है कि तीन उंगल तक बराबर टपकता रहा तो मसह हुआ वर्ना नहीं ।*_
_*💫26: मसअला : - मोजे की नोक के पास कुछ जगह खाली है कि वहाँ पाँव का कोई हिस्सा नहीं , उस खाली जगह का मसह किया तो मसह न हुआ और अगर किसी तरह एहतियात के साथ उंगलियाँ पहुँचा दी और अब मसह किया तो हो गया मगर जब वहाँ से पाँव हटेगा तो फौरन मसह जाता रहेगा ।*_
_*💫27: मसअला : - मसह में न नियत ज़रूरी है और न तीन बार करना सुन्नत बल्कि एक बार कर लेना काफी है ।*_
_*💫28: मसअला : - मौजे पर पाइताबा पहना और उस पाइताबे पर मसह किया तो अगर मौजे तक तरी पहुँच गई मसह हो गया वरना नहीं ।*_
_*💫29: मसअला : - मोजे पहन कर शबनम में चला या उस पर पानी गिर गया या मेंह की बूंदे गिरी और जिस जगह मसह किया जाता है तीन उंगल के बराबर तर हो गया तो मसह हो गया हाथ फेरने की भी ज़रूरत नहीं ।*_
_*💫30: मसअला : - अंग्रेज़ी बूट , जूते पर मसह जाइज है मगर शर्त यह कि टखने उससे छुपे हों । इमामा , नकाब और दस्ताने पर मसह जाइज नहीं ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 63/64*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 83)*_
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_*✨मसह किन चीज़ों से टूटता है*_
_*💫1: मसअला : - जिन चीज़ों से वुजू टुटता है उनसे मसह भी जाता रहता है ।*_
_*💫2: मसअला : - मुद्दत पूरी हो जाने से मसह जाता रहता है और इस सूरत में अगर वुजू है तो सिर्फ पाँव धो लेना काफी है फिर से पूरा वुजू करने की ज़रूरत नहीं और अच्छा यह है कि पूरा वुजू कर ले ।*_
_*💫3: मसअला : - मसह की मुद्दत पूरी हो गई और कवी अन्देशा है कि मौजे उतारने में सर्दी के सबब पाँव जाते रहेंगे तो न उतारे और टखनों तक पूरे मौज़े का ( नीचे , ऊपर अगल बगल और एड़ियों पर ) मसह करे कि कुछ न रह जाये ।*_
_*💫4: मसअला : - मोज़े उतार देने से मसह टूट जाता है अगर्चे एक ही उतारा हो ।*_
_*💫5: मसअला : - ऐसे ही अगर एक पाँव आधे से ज्यादा मोज़े से बाहर हो जाये तो मसह जाता रहता है । मोज़ा उतारने या पाँव का ज्यादा हिस्सा बाहर होने में पाँव का वह हिस्सा मोतबर है जो गट्टा से पंजों तक है और पिंडली का एअतेबार नहीं इन दोनों सूरतों में पाँव का धोना फर्ज है ।*_
_*💫6: मसअला : - मोज़ा ढीला है कि चलने से एड़ी निकल जाती है तो मसह नहीं जाता हाँ अगर उतारने की नियत से बाहर की तो टूट जाता है ।*_
_*💫7: मसअला : - मोजे पहन कर पानी में चला कि एक पाँव का आधे से ज्यादा हिस्सा धुल गया या और किसी तरह से मोज़े में पानी चला गया और आधे से ज्यादा पाँव धुल गया तो मसह जाता रहा ।*_
_*💫8: मसअला : - पायताबों पर इस तरह मसह किया कि मसह की तरी मोजों तक पहुँची तो पायताबों के उतारने से मसह नहीं जायेगा ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 64/65*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 84)*_
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_*💦वुजू के अअजा पर मसह करने के मसाइल*_
_*💫मसअला : - वुजू के आज़ा अगर फट गये हों या उनमें फोड़ा या और कोई बीमारी हो और उन पर पानी बहाना नुकसान करता हो या सख्त तकलीफ होती हो तो भीगा हाथ फेर लेना काफी है और अगर यह भी नुकसान करता हो तो उस पर कपड़ा डालकर कपड़े पर मसह करे और अगर इससे भी तकलीफ़ है तो माफ है और अगर उसमें कोई दवा भर ली हो तो उसका निकालना जरूरी नहीं बल्कि उस पर से पानी बहा देना काफी है ।*_
_*💫मसअला : - किसी फोड़े या जख्म या फस्द की जगह पर पट्टी बाँधी हो कि उसको खोल कर पानी बहाने से या उस जगह मसह करने से या खोलने से नुकसान हो या खोलने वाला बाँधने वाला न हो तो उस पट्टी पर मसह कर ले और अगर पट्टी खोल कर पानी बहाने में नुकसान न हो तो धोना जरूरी है या खुद उज्व पर मसह कर सकते हों तो पट्टी पर मसह करना जाइज़ नहीं और अगर ज़ख्म के आस पास पानी बहाना नुकसान न करता हो तो धोना ज़रूरी है नहीं तो उस पर मसह कर लें और पूरी पट्टी पर मसह कर लें तो अच्छा है और अक्सर हिस्से पर ज़रूरी है और एक बार मसह काफी है तकरार की ज़रूरीत नहीं और अगर पट्टी पर भी मसह न कर सकते हों तो खाली छोड़ दें जब इतना आराम हो जाये कि पट्टी पर मसह करना नुकसान न करे तो फौरन मसह कर लें फिर जब इतना आराम हो जाये कि पट्टी पर से पानी बहाने में नुकसान न हो तो पानी बहायें फिर जब इतना आराम हो जाये कि खास उज्व पर मसह कर सकता हो तो फौरन पट्टी खोल कर मसह कर ले फिर जब इतनी सेहत हो जाये कि उज्व पर पानी बहा सकता हो तो पट्टी खोल कर पानी बहाये । गर्ज आला पर जब कुदरत हासिल हो और जितनी हासिल होती जाये अदना पर इक्तिफा जाइज़ नहीं यानी अगर पानी बहाने लाइक ज़ख़्म ठीक हो जाए तो पानी बहाए मसह जाइज़ नहीं ।*_
_*💫मसअला : - हड्डी के टूट जाने से तख्ती बाँधी गई हो तो उसका भी यही हुक्म है ।*_
_*💫मसअला : - तख्ती या पट्टी खुल जाये और अभी बाँधने की ज़रूरत हो तो फिर दोबारा मसह नहीं किया जायेगा बल्कि वही पहला मसह काफी है और जो फिर बाँधने की ज़रूरत न हो तो मसह टूट गया अब उस जगह को धो सके तो धो लें नहीं तो मसह कर लें ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 65*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 85)*_
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_*🩸हैज़ का बयान*_
_*🕋अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है ⤵️*_
_*📝तर्जमा : - " ऐ महबूब तुमसे हैज़ के बारे में लोग सवाल करते हैं तुम फरमा दो वह गन्दी चीज़ है तो हेज में औरतों से बचो और उनसे कुर्बत ( हमबिस्तरी ) न करो जब तक पाक न हो लें , तो जब पाक हो जायें तो उनके पास उस जगह से आओ जिसका अल्लाह ने तुम्हें हुक्म दिया बेशक अल्लाह दोस्त रखता है तौबा करने वालों को और दोस्त रखता है पाक होने वालों को । "*_
_*📚हदीस न . 1 : - सहीह मुस्लिम में अनस इब्ने मालिक रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है फ़रमाते हैं कि यहूदियों में जब किसी औरत को हैज ( माहवरी ) आता तो उसे न अपने साथ खिलाते और न अपने साथ घरों में रखते । सहाबा ने नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम से पूछा उस पर अल्लाह तआला ने وَیَسْءَلُوْ نَکَ عَنِالْ مَحَبْضِ नाज़िल फरमाई तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने इरशाद फरमाया कि जिमा ( हमबिस्तरी ) के सिवा हर चीज़ करो । इस की खबर यहूदियों को पहुँची तो कहने लगे यह ( नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ) हमारी हर बात के खिलाफ करना चाहते हैं । उस पर उसैद इब्ने हुजैर और इबाद इब्ने बिश्र रदियल्लाहु तआला अन्हुमा ने आकर अर्ज की कि यहूदी ऐसा ऐसा कहते हैं तो क्या हम उनसे जिमा न करें ( कि पूरी मुखालफत हो जाये ) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का मुबारक चेहरा बदल गया यहाँ तक कि हमको गुमान हुआ कि हुजूर ने उन दोनों पर गज़ब फरमाया । वह दोनों चले गये उनके पीछे दूध का हदिया नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के पास आया । हुजूर ने आदमी भेजकर उनको बुलवाया और दूध पिलाया तो वह समझे कि हुजूर ने उन पर गज़ब नहीं फरमाया था ।*_
_*📚हदीस न . 2 - सहीह बुखारी में है उम्मुल मोमिनीन सिद्दीका रदियल्लाहु तआला अन्हा फरमाती हैं कि हम हज के लिये निकले जब सरिफ ( मक्का शरीफ के करीब एक जगह का नाम ) में पहुँचे तो मुझे हैज आया तो मैं रो रही थी कि हुजूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम मेरे पास तशरीफ लाये फरमाया तुझे क्या हुआ , क्या तुझे हैज़ आया ? अर्ज की हाँ ! फरमाया यह एक - ऐसी चीज़ है जिसको अल्लाह तआला ने आदम की लड़कियों के लिये लिख दिया है तू खानए कअबा के तवाफ के सिवा सब कुछ अदा करे जिसे हज करने वाला अदा करता है और फरमाती है कि हुजूर ने अपनी बीवियों की तरफ से एक गाय कुर्बानी की ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 65/66*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 86)*_
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_*🩸हैज़ का बयान*_
_*📚हदीस न . 3 : - बुखारी शरीफ में है कि उर्वा से सवाल किया गया क्या हैज़ वाली औरत मेरी खिदमत कर सकती है और क्या जुनुबी औरत मुझ से करीब हो सकती है ? उर्वा ने जवाब दिया यह सब मुझ पर आसान है और यह सब मेरी ख़िदमत कर सकती हैं और किसी पर उसमे कोई हर्ज नहीं । मुझे उम्मुल मोमिनीन आइशा सिद्दीका रदियल्लाहु तआला अन्हा ने खबर दी कि यह हैज की हालत में हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के कंघा करतीं और हुजूर एअतिकाफ में थे अपने सर को उनसे करीब कर देते और यह अपने हुजूरे ( कमरे ) ही में होतीं ।*_
_*📚हदीस न. 4 : - उम्मुल मोमिनीन सिद्दीका रदियल्लाहु तआला अन्हा फरमाती हैं कि हैज़ के जमाने में मैं पानी पीती फिर हुजूर को दे देती तो जिस जगह मेरा मुँह लगा होता हुजूर वहीं अपना मुंह रखकर पीते और हैज़ की हालत में हड्डी से गोश्त नोच कर मैं खाती फिर हुजूर को दे देती तो हुजूर अपना मुँह उस जगह रखते जहाँ मेरा मुँह लगा होता ।*_
_*📚हदीस न . 5 : - बुख़ारी और मुस्लिम में उन्हीं से रिवायत है वह फरमाती हैं कि मैं हैज़ की हालत में होती और हुजूर मेरी गोद में तकिया लगाकर कुर्आन पढ़ते ।*_
_*📚हदीस न . 6 : - मुस्लिम में उन्हीं से रिवायत है वह फरमाती हैं कि हजुर ने मुझ से फ़रमाया कि हाथ बढ़ा कर मस्जिद से मुसल्ला उठा देना । मैंने अर्ज किया मैं हैज़ की हालत में हूँ । हुजूर ने फरमाया तेरा हैज़ तेरे हाथ में नहीं ।*_
_*📚हदीस न . 7 : - बुखारी और मुस्लिम में उम्मुल मोमिनीन मैमूना रदियल्लाहु तआला अन्हा से मरवी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम एक चादर में नमाज़ पढ़ते थे जिसका कुछ हिस्सा मुझ पर था और कुछ हुजूर पर और मैं हैज़ की हालत में थी ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 66/67*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 87)*_
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_*🩸हैज़ का बयान*_
_*📚हदीस न . 8 : - तिर्मिज़ी और इब्ने माजा अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जो आदमी हैज वाली से या औरत के पीछे मुकाम में जिमा ( हमबिस्तरी ) करे या काहिन के पास जाये उसने उस चीज़ का कुफरान ( खिलाफ ) किया जो मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम पर उतारी गई ।*_
_*📚हदीस न . 9 : - रजीन की रिवायत में है कि मआज इब्ने जबल रदियल्लाहु तआला अन्हु ने अर्ज की या रसूलल्लाह मेरी औरत जब हैज़ में हो तो मेरे लिए क्या चीज़ उस से हलाल है ? फ़रमाया तहबन्द यानी नाफ से ऊपर और उससे भी बचना बेहतर है ।*_
_*📚हदीस न . 10 : - असहाबे सुनने अरबा ने इब्ने अब्बास रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत की कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जब कोई शख्स अपनी बीवी से हैज़ में जिमा करे तो आधा दीनार सदका करे । तिर्मिज़ी की दूसरी रिवायत उन्हीं से यूँ है कि फरमाया कि जब सुर्ख खून हो तो एक दीनार और जब पीला हो तो आधा दीनार ।*_
_*🩸हैज़ की हिकमत : - बालिगा औरत के बदन में फितरी तौर पर ज़रूरत से कुछ ज़्यादा खून पैदा होता है कि हमल की हालत में वह खून बच्चे की गिज़ा में काम आये और बच्चे के दूध पीने के ज़माने में वही खून दूध हो जाये और ऐसा न हो तो हमल और दूध पिलाने के ज़माने में उसकी जान पर बन जाये । यही वजह है कि हमल और शीरख्वारगी ( बच्चे के दूध पीने की हालत ) की इब्तिदा में खून नहीं आता और जिस ज़माने में न हमल हो न दूध पिलाना वह खून अगर बदन से न निकले तो किस्म - किस्म की बीमारियाँ पैदा हो जायें ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 67*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 88)*_
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_*🩸हैज़ के मसाइल*_
_*💫मसअला - बालिगा औरत के आगे के मकाम से जो खून आदत के तौर पर निकलता है और बीमारी या बच्चा पैदा होने की वजह से न हो उसे हैज कहते हैं , बीमारी से हो तो इस्तिहाज़ा और बच्चा होने के बाद हो तो निफास कहते हैं ।*_
_*💫मसअला : - हैज़ की मुद्दत कम से कम तीन दिन तीन रातें यानी पूरे 72 घन्टे से अगर एक मिनट भी कम है तो हैज नहीं और ज्यादा से ज्यादा दस दिन दस रातें हैं ।*_
_*💫मसअला : - 72 घन्टे से जरा भी पहले खत्म हो जाये तो हैज नहीं बल्कि इस्तिहाजा है । हाँ अगर किरन चमकी थी कि हैज शुरू हुआ और तीन दिन तीन रातें पूरी होकर किरन चमकने ही के वक़्त खत्म हुआ तो हैज़ है अगर्चे दिन बढ़ने के जमाने में तलअ रोज़ बरोज़ पहले और गुरूब बाद को होता रहेगा और दिन छोटे होने के जमाने में आफताब का निकलना बाद को और डूबना पहले होता रहेगा जिसकी वजह से उन तीन दिन रात की मिकदार 72 घन्टा होना जरूरी नहीं मगर ठीक तुलूअ से तुलूअ गुरूब से गुरूब तक ज़रूरी एक दिन एक रात है उनके अलावा अगर और किसी वक़्त शुरू हुआ तो वही चौबीस घन्टे पूरे का एक दिन रात लिया जायेगा । जैसे आज सुबह को ठीक नौ बजे शुरू हुआ और उस वक़्त पूरा पहर दिन चढ़ा था तो कल ठीक नौ बजे एक दिन रात होगा । अगर्चे अभी पूरे पहर भर दिन न आया जबकि आज का तुलूअ कल के तुलू से बाद हो या पहर भर से ज्यादा दिन आ गया हो जबकि आज का तुलूअ कल के तुलूअ से पहले हो ।*_
_*💫मसअला : - दस दिन रात से कुछ भी ज्यादा खून आया तो अगर यह हैज पहली बार उसे आया है तो दस दिन तक हैज़ है और बाद का इस्तिहाज़ा और अगर पहले से उसे हैज़ आ चुके हैं और आदत दस दिन से कम की ही थी तो आदत से जितना ज्यादा हो इस्तिहाज़ा है । इसे यूँ समझो कि उसको पाँच दिन की आदत थी अब आया दस दिन तो कुल हैज़ है और बारह दिन आया तो पाँच दिन हैज़ के बाकी सात दिन इस्तिहाजा के और अगर एक हालत मुकर्रर न थी बल्कि कभी चार दिन कभी पाँच दिन तो पिछली बार जितने दिन थे वही अब भी हैज़ के हैं और बाकी इस्तिहाजा के ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 67/68*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 88🅱️)*_
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_*🩸हैज़ के मसाइल*_
_*💫मसअला : - यह जरूरी नहीं कि मुद्दत में हर वक़्त खून जारी रहे तभी हैज़ हो बल्कि अगर किसी वक़्त भी आये तब भी हैज है ।*_
_*💫मसअला : - कम से कम नौ बरस की उम्र से हैज शुरू होगा और आखिरी उम्र हैज़ आने की 55 साल है इस उम्र वाली औरत को आइसा और इस उम्र को सिने - अयास कहते हैं ।*_
_*💫मसअला : - नौ बरस की उम्र से पहले जो खून आये इस्तिहाज़ा है यूँ ही पचपन साल की उम्र के बाद जो खून आये इस्तिहाज़ा है , हाँ पिछली सूरत में अगर खालिस खून आये या जैसा पहले आता था उसी रंग का आया तो हैज़ है ।*_
_*💫मसअला : - हमल वाली के जो खून आया इस्तिहाज़ा है , ऐसे ही बच्चा होते वक़्त जो खून आया और अभी आधे से ज्यादा बच्चा बाहर नहीं निकला , वह इस्तिहाज़ा है ।*_
_*💫मसअला : - दो हैज़ों के बीच कम से कम पूरे पन्द्रह दिन का फासिला ज़रूरी है ऐसे ही निफास और हैज़ के दरमियान भी पन्द्रह दिन का फ़ासिला ज़रूरी है तो अगर निफास खत्म होने के बाद पन्द्रह दिन पूरे न हुये थे कि खून आया तो यह इस्तिहाज़ा है ।*_
_*💫मसअला : - हैज़ उस वक़्त से शुमार किया जायेगा कि खून फर्ज ( शर्मगाह ) से बाहर आ गया तो अगर कोई कपड़ा रख लिया है जिसकी वजह से फर्ज से बाहर नहीं आया और अन्दर ही रुका रहा तो जब तक कपड़ा न निकालेगी वह हैज वाली न होगी , नमाजें पढ़ेगी और रोज़ा रखेगी ।*_
_*💫मसअला : - हैज के छह रंग है : - 1 . काला 2 . पीला 3 . लाल 4 . हरा 5 . गदला 6 . मटीला और सफेद रंग की रतूबत हैज़ नहीं ।*_
_*💫मसला : - दस दिन के अन्दर रतूबत में ज़रा भी मैलापन है तो वह हैज़ है और दस दिन रात के बाद भी मैलापन बाकी है तो आदत वाली के लिये जो दिन आदत के हैं हैज़ हैं और आदत से बाद वाले इस्तिहाज़ा और अगर कुछ आदत नहीं तो दस दिन रात तक हैज है और बाकी इस्तिहाजा है ।*_
_*💫मसअला : - गद्दी जब तर थी तो उसमें जर्दी ( पीलापन ) या मैलापन था और सूख जाने के बाद सफेद हो गई तो हैज़ की मुद्दत में हैज़ ही है और अगर जब देखा था सफेद थी सूख कर पीली हो गई तो यह हैज नहीं ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 68/69*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 89)*_
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_*🩸हैज़ के मसाइल*_
_*💫मसअला : - जिस औरत को पहली बार खून आया और उसका सिलसिला महीनों या बर्सौं बराबर जारी रहा कि बीच में पन्द्रह दिन के लिये भी न रुका तो जिस दिन में खून आना शुरू हुआ उस रोज़ से दस दिन तक हैज़ और बीस दिन इस्तिहाजा के समझे और जब तक खून जारी रहे यही काइदा बरते ।*_
_*💫मसअला : - और अगर उससे पहले हैज़ आ चुका है तो उससे पहले जितने दिन हैज के थे हर तीस दिन में उतने दिन हैज के समझे बाकी जो दिन बचे इस्तिहाजा है ।*_
_*💫मसअला : - जिस औरत को उम्र भर खून आया ही नहीं या आया मगर तीन दिन से कम आया तो उम्र भर वह पाक रही और अगर एक बार तीन दिन रात खून आया फिर कभी न आया तो वह सिर्फ तीन दिन रात हैज के हैं बाकी हमेशा के लिए पाक ।*_
_*💫मसअला : - जिस औरत को दस दिन खून आया उसके बाद साल भर तक पाक रही फिर बराबर खून जारी रहा तो वह उस ज़माने में नमाज़ रोज़े के लिये हर महीने में दस दिन हैज के समझे और बीस दिन इस्तिहाज़ा के ।*_
_*💫मसअला : - किसी औरत को एक बार हैज़ आया उसके बाद कम से कम पन्द्रह दिन तक पाक रही फिर खून बराबर जारी रहा और यह याद नहीं के पहले कितने दिन हैज़ के थे और कितने पाकी के मगर यह याद है कि महीने में एक ही बार हैज़ आया था तो इस बार जब से खून शुरू हुआ तीन दिन तक नमाज़ छोड़ दे फिर सात दिन तक हर नमाज़ के वक़्त में गुस्ल करे और नमाज़ पढ़े और इन दस दिनों में शौहर के पास न जाये । फिर बीस दिन तक हर नमाज़ के वक़्त ताज़ा वुजू कर के नमाज पढ़े और दूसरे महीने में उन्नीस दिन वुजू कर के नमाज़ पढ़े और उन बीस या उन्नीस दिनों में शौहर उसके पास जा सकता है , और जो यह भी याद न हो कि महीने में एक बार आया था या दो बार तो शुरू के तीन दिन में नमाज़ न पढ़े फिर सात दिन तक हर वक़्त में गुस्ल कर के नमाज़ पढ़े फिर आठ दिन तक हर वक़्त में वुजू कर के नमाज़ पढ़े और सिर्फ उन आठ दिनों में शौहर उसके पास जा सकता है और उन आठ दिन के बाद भी तीन दिन तक हर वक़्त में वुजू कर के । नमाज़ पढ़े फिर सात दिन तक गुस्ल कर के और उसके बाद आठ दिन तक वुजू कर के नमाज़ पढ़े और यही सिलसिला हमेशा जारी रखे और अगर तहारत के दिन याद हैं जैसे पन्द्रह दिन थे और बाकी कोई बात याद नहीं तो शुरू के तीन दिन तक नमाज़ न पढ़े फिर सात दिन तक हर वक़्त गुस्ल कर के ' नमाज़ पढ़े फिर आठ दिन वुजू कर के नमाज़ पढ़े और उसके बाद फिर तीन दिन और वुजू कर के नमाज पढ़े फिर चौदह दिन तक हर वक़्त गुस्ल कर के नमाज पढ़े फिर एक दिन वुजू हर वक़्त में करे और नमाज़ पढ़े फिर हमेशा के लिए जब तक खून आता रहे हर वक़्त गुस्ल करे , और अगर हैज के दिन याद हैं जैसे तीन दिन थे और तहारत के दिन याद न हों तो ?*_
_*📍बाकी अगले पोस्ट में*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 69*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 90)*_
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_*🩸हैज़ के मसाइल*_
_*👉🏻शुरू के तीन दिन में नमाज़ छोड़ दे फिर अट्ठारह दिन तक हर वक़्त वुजू कर के नमाज़ पढ़े जिन में पन्द्रह पहले तो यकीनी तुहर ( पाकी के ) हैं और तीन दिन पिछले मशकूक ( शक वाले ) फिर हमेशा हर वक़्त गुस्ल कर के नमाज पढ़े । और अगर यह याद है कि महीने में एक ही बार हैज आया भी और यह कि वह तीन दिन था मगर यह याद नहीं कि वह क्या तारीखें थीं तो हर माह के इब्तिदाइ तीन दिनों में वुजू कर के नमाज़ पढ़े और सत्ताईस दिन तक हर वक़्त गुस्ल करे । यूँही चार दिन या पाँच दिन हैज़ के होना याद हों तो उन चार पाँच दिनों में वुजू करे बाकी दिनों में गुस्ल और अगर यह मालूम है कि आखिर महीने में हैज़ आता था और तारीखें भूल गई तो सत्ताईस दिन वुजू कर के नमाज़ पढ़े और तीन दिन न पढ़े फिर महीना खत्म होने पर एक बार नहा ले , और अगर यह मालूम है कि इक्कीस से शुरू होता था और यह याद नहीं कि कितने दिन तक आता था तो बीस के बाद तीन दिन तक नमाज़ छोड़ दे । उसके सात दिन जो रह गये उनमें हर वक़्त गुस्ल कर के नमाज़ पढ़े और अगर यह याद है कि फुलाँ पाँच तारीखों में तीन दिन आया था मगर यह याद नहीं कि उन पाँच में वह कौन कौन दिन हैं तो दो पहले दिनों में वुजू कर के नमाज पढ़े और एक दिन बीच का छोड़ दे और उसके बाद के दो दिनों में हर वक़्त गुस्ल कर के पढ़ें , और चार दिन में तीन दिन हैं तो पहले दिन वुजू कर के पढ़े और चौथे दिन हर वक़्त में गुस्ल कर के नमाज़ पढ़े और बीच के दो दिनों में न पढ़े और अगर छ : दिनों में तीन दिन हों तो पहले तीन दिनों में वुजू कर के पढ़े पिछले तीन दिनों में हर वक़्त में गुस्ल कर के नमाज़ पढ़े । और अगर सात या आठ आ नौ या दस दिन में तीन दिन हों तो पहले तीन दिनों में वुजू और बाकी दिनों में हर वक़्त गुस्ल कर के नमाज पढ़ें ।*_
_*✨खुलासा यह कि जिन दिनों हैज़ का यकीन हो और ठीक से यह याद न हो कि उनमें वह कौन से दिन हैं तो यह देखना चाहिये कि यह दिन हैज़ के दिनों से दूने हैं या दूने से कम या ज्यादा अगर दूने से कम हों तो उन में जो दिन यकीनी हैज़ होने के हों उन में नमाज न पढ़े और जिनके हैज होने न होने दोनों का इहतिमाल हो ( शुबह ) हो वह अगर अव्वल के हों तो उनमें वुजू कर के नमाज पढ़े और अगर आख़िर के हों तो हर वक़्त में गुस्ल कर के नमाज़ पढ़े और अगर दूने या दूने से ज्यादा हों तो हैज के दिनों के बराबर शुरू के दिनों में वुजू कर के नमाज पढ़े फिर हर वक़्त में गुस्ल कर के नमाज पढ़ें और अगर याद न हों कि कितने दिन हैज़ के थे और कितने दिन पाकी के न यह कि महीने के शुरू के दस दिनों में था या बीच के दस दिन या आखिर के दस दिनों में तो दिल में सोचे जिस तरफ दिल जमे उस पर पाबन्दी करे , और अगर किसी बात पर दिल नहीं जमता तो हर नमाज के लिये गुस्ल करे , और फ़र्ज , व वाजिब और सुन्नते मुअक्कदा पढ़े मुस्तहब और नफ्ल न पढ़े और फर्ज़ रोज़े रखे नफ़्ल रोज़े न रखे और उनके अलावा और जितनी बातें हैज़ वाली को जाइज़ नहीं उसको भी नाजाइज़ हैं जैसे कुर्आन पढ़ना या छूना मस्जिद में जाना और सजदए तिलावत वगैरा ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 70*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 91)*_
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_*🩸हैज़ के मसाइल*_
_*💫मसअला : - जिस औरत को न पहले हैज के दिन याद न यह याद कि किन तारीखों में आया था अब तीन दिन या ज्यादा खुन आकर बन्द हो गया फिर पाकी के पन्द्रह दिन पुरे न हए थे कि फिर खून जारी हुआ और हमेशा को जारी हो गया तो उसका वही हक्म है जैसे किसी को पहले पहल खून आया और हमेशा को जारी हो गया ऐसी हालत में दस दिन हैज के शुमार करे फिर बीस दिन तहारत के ।*_
_*💫मसअला : - जिसकी एक आदत मुकर्रर न हो कभी छः दिन हैज के हों और कभी सात दिन और अब जो खून आया तो बन्द होता ही नहीं तो उसके लिये नमाज़ रोजे के हक में कम मुद्दत यानी छ : दिन हैज के करार दिय जायेगा औरर सातवें रोज नहा कर नमाज पढ़ें और रोजे रखे मगर सात दिन पूरे होने के बाद फिर नहाने का हुक्म है और सातवें दिन जो फर्ज रोज़ा रखा है उसकी कजा करे और इद्दत गुजारने या शौहर के पास रहने के बारे में ज्यादा मुददत यानी सात दिन हैज के माने जायेंगें यानी सातवें दिन उससे हमबिस्तरी जाइज नहीं ।*_
_*💫मसअला : - किसी को एक दो दिन खून आकर बन्द हो गया और दस दिन पूरे न हुए कि फिर खुन आया और दसवें दिन बन्द हो गया तो यह दसों दिन हैज के हैं और अगर दस दिन के बाद भी जारी रहा तो अगर आदत पहले की मालूम हो तो आदत के दिनों में हैज है और बाकी इस्तिहाजा नहीं तो दस दिन हैज़ के और बाकी इस्तिहाजा ।*_
_*💫मसअला : - किसी की आदत थी कि फूलाँ तारीख में हैज़ हो अब उससे एक दिन पहले खून आकर बन्द हो गया फिर दस दिन तक नहीं आया और ग्यारहवें दिन फिर आ गया तो खून न आने के जो यह दस दिन हैं उनमें से अपनी आदत के बराबर हैज करार दे और अगर तारीख तो मुकर्रर थी मगर हैज के दिन मुकर्रर न थे तो यह दसों दिन खून न आने के हैज़ हैं यानी खून न आने के जो दस दिन हैं वह हैज़ के दिन हैं ।*_
_*💫मसअला : - जिस औरत को तीन दिन से कम खून आ कर बन्द हो गया और पन्द्रह दिन पूरे न हुये फिर आ गया तो पहली बार जब से खून आना शुरू हुआ है हैज़ है अब अगर उसकी कोई आदत है तो आदत के बराबर हैज़ के दिन शुमार कर ले वर्ना शुरू से दस दिन तक हैज और पिछली बार का खून इस्तिहाज़ा होगा ।*_
_*💫मसअला : - किसी को पूरे तीन दिन रात खून आकर बन्द हो गया और उसकी आदत इस से ज्यादा की थी फिर तीन दिन रात के बाद सफेद रतूबत आदत के दिनों तक आती रही तो उस के लिए सिर्फ तीन ही दिन रात हैज़ के हैं और आदत बदल गई ।*_
_*💫मसअला : - तीन दिन रात से कम खून आया फिर पन्द्रह दिन तक पाक रही फिर तीन दिन रात से कम आया तो न पहली बार का हैज़ है और न यह , बल्कि दोनों इस्तिहाज़ा हैं ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 70/71*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 92)*_
―――――――――――――――――――――
_*🩸निफास का बयान*_
_*🩸निफास किस को कहते हैं यह हम पहले बयान कर चुके हैं अब उसके मुताल्लिक कुछ मसाइल बयान करते हैं ।*_
_*💫मसअला : - निफास में कमी के बारे में कोई मुद्दत मुकर्रर नहीं आधे से ज्यादा बच्चा निकलने के बाद एक आन भी खून आया तो वह निफास है और ज्यादा से ज़्यादा उस का ज़माना चालीस दिन रात है और निफास की मुददत का शुमार उस वक़्त से होगा कि आधे से ज्यादा बच्चा निकल आया । इस बयान में जहाँ बच्चा होने का लफ़्ज़ आयेगा मतलब आधे से ज्यादा बाहर आ जाना है ।*_
_*💫मसअला : - किसी को चालीस दिन से ज़्यादा खून आया तो अगर उस के पहली बार बच्चा पैदा हुआ है या यह याद नहीं कि इस से पहले बच्चा पैदा होने में कितने दिन खून आया था तो चालीस दिन रात निफास हैं और बाकी इस्तिहाज़ा और जो पहली आदत मालूम हो तो आदत के दिनों तक निफास हैं और जितना ज्यादा है वह इस्तिहाजा जैसे आदत तीस दिन की थी इस बार 45 दिन आया तो तीस दिन निफास के हैं और पन्द्रह दिन इस्तिहाज़ा के ।*_
_*💫मसअला : - बच्चा पैदा होने से पहले जो खून आया वह निफास नहीं है बल्कि इस्तिहाजा है अगर्चे बच्चा आधा बाहर आ गया हो । मसअला : - हमल साकित हो गया यानी बच्चा गिर गया और उसका कोई उज्व ( अंग ) बन चुका है जैसे हाथ पाँव या उंगलियाँ तो यह निफास है वरना अगर तीन दिन रात तक रहा और इस से पहले पन्द्रह दिन तक पाक रहने का ज़माना गुजर चुका है तो हैज़ है और जो तीन दिन से पहले ही बन्द हो गया या अभी पूरे पन्द्रह दिन पाकी के नहीं गुज़रे हैं तो इस्तिहाजा है ।*_
_*💫मसअला : - पेट से बच्चा काट कर निकाला गया तो उसके आधे से ज्यादा निकालने के बाद निफास है । मसअला : - हमल साकित होने से पहले कुछ खून आया और कूछ बाद को तो पहले वाला इस्तिहाज़ा है और बाद वाला निफास यह उस सूरत में है जब कोई उज्व बन चुका हो वर्ना पहले वाला अगर हैज हो सकता है तो हैज़ है नहीं तो इस्तिहाज़ा है ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 71/72*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 93)*_
―――――――――――――――――――――
_*🩸निफास का बयान*_
_*💫मसअला : - हमल साकित होने से पहले कुछ खून आया और कूछ बाद को तो पहले वाला इस्तिहाज़ा है और बाद वाला निफास यह उस सूरत में है जब कोई उज्व बन चुका हो वर्ना पहले वाला अगर हैज हो सकता है तो हैज़ है नहीं तो इस्तिहाज़ा है ।*_
_*💫मसअला : - हमल साकित हुआ और यह मालूम नहीं कि उज्व बना था या नहीं और न यह याद हो कि हमल कितने दिन का था ( कि इसी से उज्व का बनना या न बनना मालूम हो जाता यानी एक सौ बीस दिन हो गये हैं तो उज्व बन जाना करार दिया जायेगा ) और इस्कात ( गर्भ गिर जाने ) के बाद खून हमेशा को जारी हो गया तो उसे हैज़ के हुक्म में समझे कि हैज़ की जो आदत थी उसके गुज़रने के बाद नहा कर नमाज़ शुरू कर दे और आदत न थी तो दस दिन के बाद नहा कर नमाज़ पढ़े और बाकी वही अहकाम हैं जो हैज़ के अहकाम में लिखे गये है ।*_
_*💫मसअला : - जिस औरत के दो बच्चे जुड़वाँ पैदा हुये यानी दोनों के बीच छ : महीने से कम ज़माना है तो पहला ही बच्चा पैदा होने के बाद से निफास समझा जायेगा फिर अगर दूसरा चालीस दिन के अन्दर पैदा हुआ और खून आया तो पहले से चालीस दिन तक निफास है फिर इस्तिहाजा और अगर चालीस दिन के बाद पैदा हुआ तो इस पिछले के बाद जो खून आया इस्तिहाज़ा है मगर दूसरे के पैदा होने के बाद भी नहाने का हुक्म दिया जायेगा ।*_
_*💫मसअला : - जिस औरत के तीन बच्चे पैदा हुये कि पहले और दूसरे में छ : महीने से कम फासला है । यूँही दूसरे और तीसरे में छ : महीने का फासला हो जब भी निफास पहले ही से है फिर अगर चालीस दिन के अन्दर यह दोनों भी पैदा हो गये तो पहले के बाद से ज़्यादा से ज्यादा चालीस दिन तक निफास है और अगर चालीस दिन के बाद दूसरे और तीसरे बच्चे पैदा हुए तो तीसरे के बाद जो खून आयेगा यह इस्तिहाज़ा है मगर उनके बाद भी गुस्ल का हुक्म है ।*_
_*💫मसअला : - अगर दोनों में छ : महीने या ज़्यादा का फासला है तो दूसरे के बाद भी निफास है ।*_
_*💫मसअला : - चालीस दिन के अन्दर कभी खून आया और कभी नहीं आया तो सब निफास ही है अगर्चे पन्द्रह दिन का फ़ासिला हो जाये ।*_
_*💫मसअला : - इस के रंग के बारे में वही अहकाम हैं जो हैज में बयान हुए हैं ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 72*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 94)*_
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_*🩸हैज़ व निफास के मुतअल्लिक अहकाम*_
_*💫मसअला : - हैज़ और निफास वाली औरत को कुर्आन मजीद देखकर या ज़बानी पढ़ना और उसका छूना अगर्चे उसकी जिल्द या चोली या हाशिये को हाथ या उंगली की नोक या बदन का कोई हिस्सा लगे यह सब हराम हैं ।*_
_*💫मसअला : - कागज़ के पर्चे पर कोई सूरह या आयत लिखी हो तो उसका भी छूना हराम है ।*_
_*💫मसअला : - जुजदान में कुर्आन मजीद हो तो उस जुजदान के छूने में हर्ज नहीं ।*_
_*💫मसअला : - इस हालत में कुर्ते के दामन या दुपट्टे के आँचल से या किसी ऐसे कपड़े से जिसको पहने या ओढ़े हुये हो उस्से कुर्आन मजीद छूना हराम है । गर्ज इस हालत में कुर्आन मजीद और दीनी किताबें पढ़ने और छूने के बारे में वही सब अहकाम हैं जो उस शख्स के बारे में हैं जिस पर नहाना फर्ज है और जिनका बयान गुस्ल के बाब में गुजर चुका है ।*_
_*💫मसअला : - मुअल्लिमा को हैज या निफास हुआ तो एक एक कलिमा सांस तोड़ - तोड़ कर पढ़ाये ' और हिज्जे कराने में कोई हर्ज नहीं ।*_
_*💫मसअला : - दुआये कुनूत पढ़ना उस हालत में मकरूह है । अल्लाहुम्मा इन्नी नस्तईनुका से लेकर बिल्कुफ्फारि मुल्हिक तक दुआए कुनूत है ।*_
_*💫मसअला : - कुर्आन मजीद के अलावा और तमाम अज़कार कलिमा शरीफ और दुरूद शरीफ वगैरा पढ़ना जाइज़ है मकरूह नहीं बल्कि मुस्तहब है और इन चीजों को वुजू या कुल्ली कर के पढ़ना बेहतर है और वैसे ही पढ़ लिया जब भी हर्ज नहीं और उनके छूने में भी हरज नहीं ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 73*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 95)*_
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_*🩸हैज़ व निफास के मुतअल्लिक अहकाम*_
_*💫मसअला : - ऐसी औरत को अज़ान का जबाब देना जाइज़ है ।*_
_*💫मसअला : - ऐसी औरत को मस्जिद में जाना हराम है ।*_
_*💫मसअला : - औरत अगर चोर या दरिन्दे से डर कर मस्जिद में चली गई तो जाइज़ है उसे चाहिए कि तयम्मुम कर ले यूँही मस्जिद में पानी रखा है या कुँआ है और पानी कहीं और नहीं मिलता तो तयम्मुम करके मस्जिद में जाना जाइज़ है ।*_
_*💫मसअला : - ईदगाह के अन्दर जाने में कोई हर्ज नहीं है ।*_
_*💫मसअला : - हाथ बढ़ाकर कोई चीज़ मस्जिद से लेना जाइज़ है ।*_
_*💫मसअला : - खानाए कबा के अन्दर जाना और उसका तवाफ करना अगर्चे मस्जिदे हराम के बाहर से हो , उनके लिए हराम है ।*_
_*💫मसअला : - इस हालत में रोज़ा रखना और नमाज पढ़ना हराम है ।*_
_*💫मसअला : - इन दिनों में नमाजें मुआफ हैं उनकी कज़ा भी नहीं और रोजों की कजा दूसरे दिनों में रखना फर्ज है ।*_
_*💫मसअला : - नमाज का आखिर वक़्त हो गया और अभी तक नमाज़ नहीं पढ़ी कि हैज़ आया या बच्चा पैदा हुआ तो उस वक़्त की नमाज़ मुआफ हो गई , अगर्चे इतना तंग वक़्त हो गया हो कि उस नमाज़ की गुन्जाइश न हो ।*_
_*💫मसअला : - नमाज़ पढ़ने में हैज़ आ गया या बच्चा पैदा हुआ तो वह नमाज़ मुआफ है अलबत्तान अगर नफ्ल नमाज़ थी तो उसकी कज़ा वाजिब है ।*_
_*💫मसअला : - नमाज़ के वक़्त में वुजू कर के उतनी देर तक ज़िक्रे इलाही दूरूद शरीफ और वजीफे पढ़ लिया करे जितनी देर तक नमाज़ पढ़ा करती थी कि आदत रहे ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 73/74*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 96)*_
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_*🩸हैज़ व निफास के मुतअल्लिक अहकाम*_
_*💫मसअला : - हैज़ वाली को तीन दिन से कम खून आकर बन्द हो गया तो रोजे रखे और वुजू कर के नमाज पढ़े नहाने की ज़रूरत नहीं । फिर उसके बाद अगर पन्द्रह दिन के अन्दर खून आया है अब नहाये और आदत के दिन निकाल कर बाकी दिनों की कज़ा पढ़े और जिसकी कोई आदत वह दस दिन के बाद की नमाजें कज़ा करे । हाँ अगर आदत के दिनों के बाद या बे वाली ने - आदत वाली दस दिन के बाद गुस्ल कर लिया था तो इन दिनों की नमाजें हो गई कज़ा करने की ज़रूरत नहीं और आदत के दिनों से पहले के रोज़ों की कज़ा करे और बाद के रोजे हर हाल में हो गये ।*_
_*💫मसअला : - जिस औरत को तीन दिन रात के बाद हैज़ बन्द हो गया और आदत के दिन अभी पूरे न हुए या निफास का खून आदत पूरी होने से पहले बन्द हो गया तो बन्द होने के बाद ही गुस्ल करके नमाज़ पढ़ना शुरू कर दे और आदत के दिनों का इन्तिज़ार न करे ।*_
_*💫मसअला : - आदत के दिनों से खून आगे बढ़ गया तो हैज़ में दस और निफ़ास में चालीस दिन तक इन्तिज़ार करे , अगर इस मुद्दत के अन्दर बन्द हो गया तो अब से नहा धोकर नामज पढे और जो इस मुद्दत के बाद भी जारी रहा तो नहाये और आदत के बाद बाकी दिनों की कज़ा करे । मसअला : - हैज़ या निफास आदत के दिन पूरे होने से पहले बन्द हो गया तो आखिर मुस्तहब वक़्त तक इन्तिज़ार करके नहा कर नमाज़ पढ़े और जो आदत के दिन पूरे हो चुके तो इन्तिजार की कोई ज़रूरत नहीं ।*_
_*💫मसअला : - हैज पूरे दस दिन पर और निफास पूरे चालीस दिन पर ख़त्म हुआ और नमाज़ के वक़्त में अगर इतना भी वक़्त बाकी हो कि अल्लाहु अकबर का लफ्ज़ कहे तो उस वक़्त की नमाज़ उस पर फ़र्ज़ हो गई । नहा कर उसकी कज़ा पढ़े और अगर उससे कम में बन्द हुआ और इतना वक़्त है कि जल्दी से नहाकर और कपड़े पहनकर एक बार अल्लाहु अकबर कह सकती है तो फर्ज हो गयी कजा करे वर्ना नहीं ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 74*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 97)*_
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_*🩸हैज़ व निफास के मुतअल्लिक अहकाम*_
_*💫मसअला : - अगर पूरे दस दिन पर पाक हुई और इतना वक़्त रात का बाकी नहीं कि एक बार अल्लाहु अकबर कह ले तो उस दिन का रोज़ा उस पर वाजिब है और जो कम में पाक हुई और इतना वक़्त है कि सुबह सादिक होने से पहले नहा कर कपड़े पहन कर एक बार अल्लाहु अकबर कह सकती है तो रोज़ा फर्ज है अगर नहा ले तो बेहतर है नहीं तो बे नहाये नियत कर ले और सुबह को नहा ले और जो इतना वक़्त भी नहीं तो उस दिन का रोजा फर्ज़ न हुआ अलबत्ता रोज़ा दारों की तरह रहना वाजिब है कोई बात ऐसी जो रोज़े के खिलाफ हो जैसे खाना पीना हराम है ।*_
_*💫मसअला : - रोज़े की हालत में हैज़ या निफास शुरू हो गया तो वह रोज़ा जाता रहा उसकी कज़ा रखे अगर रोजा फर्ज था तो कजा फर्ज है और नफ्ल था तो कज़ा वाजिब है ।*_
_*💫मसअला : - हैज और निफास की हालत में सजदए शुक्र और सजदए तिलावत हराम है और आयते सजदा सुनने से उस पर सजदा वाजिब नहीं ।*_
_*💫मसअला : - अगर सोते वक़्त औरत पाक थी और सुबह को सोकर उठी तो हैज का असर देखा तो उसी वक़्त से हैज़ का हुक्म दिया जायेगा और इशा की नमाज़ नहीं पढ़ी थी तो पाक होने पर उसकी कज़ा फर्ज है ।*_
_*💫मसअला : - हैज वाली सोकर उठी और गद्दी पर कोई निशान हैज़ का नहीं तो रात ही से पाक है नहा कर इशा की कज़ा पढ़े ।*_
_*💫मसअला : - इस हालत में सोहबत हमबिस्तरी ( सम्भोग ) हराम है ।*_
_*💫मसअला : - ऐसी हालत में सोहबत को जाइज़ जानना कुफ्र है और हराम समझ कर कर लिया तो सख्त गुनहगार हुआ उस पर तौबा फर्ज है और हैज़ के आने के ज़माने में किया तो एक दीनार और खत्म होने के करीब किया तो आधा दीनार खैरात करना मुस्तहब है ।*_
_*💫मसअला : - इस हालत में नाफ से घुटने तक औरत के बदन का अपने किसी उज्व से छूना जाइज़ नहीं जबकि कपड़ा या किसी और चीज़ की रुकावट न हो शहवत से हो या बे शहवत और अगर ऐसा हाइल हो कि बदन की गर्मी महसूस न होगी तो कोई हर्ज नहीं ।*_
_*💫मसअला : - नाफ से ऊपर और घुटने से नीचे छूने या किसी और तरह का नफा लेने में कोई हर्ज नहीं । यूँही चूमना भी जाइज़ है ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 74/75*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 98)*_
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_*🩸हैज़ व निफास के मुतअल्लिक अहकाम*_
_*💫मसअला : - अपने साथ खिलाना या एक साथ सोना जाइज़ है बल्कि इस वजह से साथ न सोना मकरूह है ।*_
_*💫मसअला : - इस हालत में औरत मर्द के बदन के हर हिस्से को हाथ लगा सकती है ।*_
_*💫मसअला : - अगर साथ सोने में शहवत के ज्यादा होने और अपने को काबू में न रख सकने का खतरा हो तो साथ न सोये और अगर गालिब गुमान हो तो साथ सोना गुनाह है ।*_
_*💫मसअला : - हैज़ पूरे दस दिन पर खत्म हुआ तो पाक होते ही औरत से सोहबत करना जाइज़ है अगर्चे अब तक न नहाई हो मगर मुस्तहब यह है कि नहाने के बाद सोहबत करे ।*_
_*💫मसअला : - अगर औरत दस दिन से कम में पाक हुई तो जब तक कि नहा न ले या नमाज़ का वक़्त जिसमें वह पाक हुई गुज़र न जाये सोहबत जाइज़ नहीं और अगर वक़्त इतना नहीं था कि उसमें नहा कर कपड़े पहन कर अल्लाहु अकबर कह सके तो उसके बाद का वक़्त गुज़र जाये या नहा ले तो जाइज़ है वर्ना नहीं ।*_
_*💫मसअला : - आदत के दिन पूरे होने से पहले ही खत्म हो गया तो अगर्चे गुस्ल कर ले सोहबत नाजाइज़ है जब तक कि आदत के दिन पूरे न हों जैसे किसी की आदत छह दिन की थी और इस बार पाँच ही दिन आया तो उसे हुक्म है कि नहा कर नमाज़ शुरू कर दे मगर सोहबत के लिए एक दिन और इन्तिजार करना वाजिब है ।*_
_*💫मसअला : - हैज से पाक हुई और पानी पर कुदरत नहीं कि गुस्ल करे और गुस्ल का तयम्मुम किया तो इससे सोहबत जाइज नहीं जब तक इस तयम्मुम से नमाज़ न पढ़ ले नमाज़ पढ़ने के बाद अगर्चे पानी पर कादिर होकर गुस्ल न किया सोहबत जाइज है ।*_
_*📍फाइदा : - इन बातों में निफास के वही अहकाम हैं जो हैज़ के हैं ।*_
_*💫मसअला : - निफास में औरत का जच्चाखाने से निकलना जाइज है । उसको साथ खिलाने या बल जाने उसका झूठा खाने में हरज नहीं । हिन्दुस्तान में जो कुछ जगह उनके बर्तन तक अलग कर देते हैं बल्कि उनके बर्तनों को नापाक बर्तनों की तरह मसझती हैं यह गलत है यह हिन्दुओं की ऐसी बेहूदा रस्मों से बचना जरूरी है । अकसर औरतों में यह रिवाज है कि जब तक चिल्ला पूरा न हो ले अगर्चे निफास खत्म हो लिया हो न नमाज पढ़ें न अपने को नमाज के काबिल जा सरासर जिहालत है । जिस वक़्त निफास खत्म हुआ उसी वक़्त से नहा कर नमाज शुरू कर अगर नहाने से बीमारी का पूरा अन्देशा हो तो तयम्मुम कर लें ।*_
_*💫मसअला : - बच्चा अभी आधे से ज्यादा पैदा नहीं हुआ और नमाज़ का वक़्त जा रहा है और गुमान है कि आधे से ज्यादा बाहर होने से पहले वक़्त खत्म हो जायेगा तो उस वक़्त की नमाज़ जिस तरह मुमकिन हो पढ़ें और अगर खड़ी न हो सके , रूकूअ और सजदा न कर सके तो उस से नमाज़ पढ़े और वुजू न कर सके तो तयम्मुम से पढ़े और अगर न पढ़ी तो गुनहागार हुई तौबा करे और पाकी के बाद कजा पढ़े ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 75/76*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 99)*_
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_*🩸इस्तिहाज़ा का बयान*_
_*📚हदीस न . 1 : - सहीहैन में उम्मुल मोमिनीन सिद्दीका रदियल्लाहु तआला अन्हा से मरवी कि फातिम बिन्ते अबी जैश रदियल्लाहु तआला अन्हा ने अर्ज की कि या रसूलल्लाह ! मुझे इस्तिहाज़ा आता है और पाक नहीं रहती तो क्या नमाज छोड़ दूँ ? फरमाया नहीं यह तो रग का खून है हैज नहीं तो जब हैज के दिन आयें तो नमाज़ छोड़ दे और जब जाते रहें खून धो और नमाज़ पढ़ ।*_
_*📚हदीस न . 2 : - अबू दाऊद और नसई की रिवायत में फातिमा बिन्ते अबी जैश रदीयल्लाहु तआला अन्हा से यूँ है कि उनसे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जब हैज का खून हो तो काला होगा और पहचान में आयेगा जब यह हो तो नमाज़ से बचो और जब दूसरी तरह का हो तो वुजू करो और नमाज़ पढ़ो कि वह रग का खून है ।*_
_*📚हदीस न . 3 : - इमामे मालिक व अबू दाऊद व दारमी की रिवायत में है कि एक औरत के खून बहता रहता उसके लिए उम्मुल मोमिनीन उम्मे सलमा रदियल्लाहु तआला अन्हा ने हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से फतवा पूछा । इरशाद फरमाया कि इस बीमारी से पहले महीने में जितने दिन रातें हैज आता था उनकी गिनती शुमार करे , महीने में उन्हीं की मिकदार नमाज़ छोड़ दे और जब वह दिन जाते रहें तो नहाये और लंगोट बाँध कर नमाज़ पढ़े ।*_
_*📚हदीस न . 4 : - अबू दाऊद व तिर्मिज़ी की रिवायत है इरशाद फरमाया जिन दिनों में हैज़ आता था उनमें नमाजें छोड़ दे फिर नहाये और हर नमाज़ के वक़्त वुजू करे और रोज़ा रखे और नमाज पढे ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 76*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 100)*_
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_*🩸इस्तिहाज़ा के अहकाम*_
_*🩸इस्तिहाजा में न नमाज मुआफ है न रोजा और न ऐसी औरत से सोहबत हराम है ।*_
_*🌀माजूर के मसाइल*_
_*💫मसअला : - इस्तिहाजा अगर इस हद तक पहुँच गया कि उसको इतनी मोहलत नहीं मिलती । वुजू कर के फर्ज नमाज अदा कर सके तो नमाज़ का पूरा एक वक़्त शुरू से आखिर तक इस हालत में गुजर जाने पर उसको माजूर और मजबूर कहा जायेगा । एक वुजू से उस वक़्त में । नमाजें चाहे पढ़े खून आने से उसका वुजू न जायेगा ।*_
_*💫मसअला : - मगर कपड़ा वगैरा रख कर इतनी देर तक खून रोक सकती है कि वुजू करके फ़र्ज़ पढ़ ले तो उसका माजूर होना साबित न होगा ।*_
_*💫मसअला : - हर वह शख्स जिसको ऐसी कोई बीमारी है कि एक वक़्त पूरा ऐसा गुजर गया कि वुजू के साथ नमाजे फ़र्ज़ अदा न कर सका वह माजूर है उसका भी यही हुक्म है कि वक़्त में वुजू कर ले और आखिर वक़्त तक जितनी नमाजें चाहे उस वुजू से पढ़े । उस बीमारी से उसका वुजू नहीं जाता जैसे कतरे का मर्ज या दस्त आना या हवा खारिज होना या दुखती आँख से पानी गिरना या फोड़े या नासूर से हर वक़्त रतूबत बहना या कान , नाफ या छाती से पानी निकलना कि ये सब बीमारियाँ वुजू तोड़ने वाली हैं उनमें जब पूरा एक वक़्त ऐसा गुज़र गया कि हर चन्द कोशिश की मगर तहारत के साथ नमाज़ न पढ़ सका तो यह मज़बूरी होगी और माजूर समझा जायेगा ।*_
_*💫मसअला : - जब उज्र साबित हो गया तो जब तक हर वक़्त में एक एक बार भी यह चीज़ पाई जाये माजूर ही रहेगा जैसे औरत को एक वक़्त तो इस्तिहाज़ा ने तहारत की मोहलत नहीं दी अब इतना मौका मिलता है कि वुजू कर के नमाज़ पढ़ ले मगर अब भी एक आध बार हर वक़्त में खून आ जाता है तो अब भी माजूर है । यूँही तमाम बीमारीयों में । और जब पूरा वक़्त गुज़र गया और खून नहीं आया तो अब माजूर न रहीं जब फिर कभी पहली हालत पैदा हो जाये तो फिर माजूर है उसके बाद फिर अगर पूरा वक़्त खाली गया तो उज्र जाता रहा ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 76/77*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 101)*_
―――――――――――――――――――――
_*🩸इस्तिहाज़ा के अहकाम*_
_*🩸इस्तिहाजा में न नमाज मुआफ है न रोजा और न ऐसी औरत से सोहबत हराम है ।*_
_*💫मसअला : - नमाज़ का कुछ वक़्त ऐसी हालत में गुज़रा कि उज्र न था और नमाज़ न पढ़ी और अब पढ़ने का इरादा किया तो इस्तिहाज़ा या बीमारी से वुजू जाता रहता है गर्ज यह बाकी वक़्त ऐसे ही गुज़र गया और इसी हालत में नमाज़ पढ़ ली तो अब इसके बाद का वक़्त भी पूरा अगर इसी इस्तिहाज़ा या बीमारी में गुज़र गया तो वह पहली भी हो गई और इस वक़्त इतना मौका मिला कि वुजू कर के फ़र्ज़ पढ़ ले तो पहली नमाज़ को लौटाये ।*_
_*💫मसअला : - खून बहते में वुजू किया और वुजू के बाद खून बन्द हो गया और उसी वुजू से नमाज़ पढ़ी और उसके बाद जो दूसरा वक़्त आया वह भी पूरा गुज़र गया कि खून न आया तो पहली नमाज़ को लौटाये यूँही अगर नमाज़ में बन्द हुआ और उसके बाद दूसरे में बिल्कुल न आया जब भी नमाज़ लौटाये ।*_
_*💫मसअला : - फर्ज़ नमाज़ का वक़्त जाने से माजूर का वुजू टूट जाता है जैसे किसी ने अस्र के वक़्त वुजू किया था तो आफताब के डूबते ही वुजू जाता रहा और अगर किसी ने आफताब निकलने के बाद वुजू किया तो जब तक ज़ोहर का वक़्त ख़त्म न हो वुजू न जायेगा कि अभी तक किसी फर्ज नमाज़ का वक़्त नहीं गया ।*_
_*💫मसअला : - वुजू करते वक़्त वह चीज़ नहीं पाई गई जिसकी वजह से वह माजूर है और वुजू के बाद भी न पाई गई यहाँ तक कि बाकी पूरा वक़्त नमाज़ का खाली गया तो वक़्त के जाने से वुजू नहीं टूटा । यूँही अगर वुजू से पहले पाई गई मगर न वुजू के बाद बाकी वक़्त में पाई गई न उसके बाद दूसरे वक़्त में तो वक़्त जाने से वुजू न टुटेगा ।*_
_*💫मसअला : - और अगर उस वक़्त में वुजू से पहले वह चीज़ पाई गई और वुजू के बाद भी वक़्त में पाई गई या वुजू के अन्दर पाई गई और वुजू के बाद उस वक़्त में न पाई गई मगर बाद वाले में पाई गई तो वक़्त खत्म होने पर वुजू जाता रहेगा अगर्चे वह हदस न पाया जाये ।*_
_*💫मसअला : - माजूर का वुजू उस चीज़ से नहीं जाता जिसकी वजह से माजूर है हाँ अगर को दूसरी चीज़ वूजू तोड़ते वाली पाई गई तो वुजू जाता रहा जिसको कतरे का मर्ज़ है , हवा निकल से वुजू जाता रहेगा और जिसको हवा निकलने का मर्ज है , कतरे से वुजू जाता रहेगा ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 77/78*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 102)*_
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_*🩸इस्तिहाज़ा के अहकाम*_
_*💫मसअला : - माजूर ने किसी हद्स के बाद वुजू किया और वूजू करते वक़्त वह चीज़ नहीं है जिस सबब माजूर है फिर वूजू के बाद वह उन वाली चीज़ पाई तो वुजू जाता रहा जैसे इस्तिहाजा वाली ने पाखाना पेशाब के बाद वुजू किया और वुजू करते वक़्त खून बन्द था वुजू के बाट आया तो वुजू टूट गया और अगर वुजू करते वक़्त वह उज़्र वाली चीज़ भी पाई जाती थी तो अब वुजू की ज़रूरत नहीं ।*_
_*💫मसअला : - माजूर के एक नथने से खून आ रहा था और वुजू के बाद दूसरे नथने से आया तो वुजू जाता रहा या एक ज़ख्म बह रहा था अब दूसरा बहा यहाँ तक कि चेचक के एक दाने से पानी आ रहा था अब दूसरे दाने से आया तो वुजू टूट गया ।*_
_*💫मसअला : - अगर किसी तरकीब से उज्र जाता रहे या उसमें कमी हो जाये तो उस तरकीब का करना फर्ज है जैसे खड़े होकर पढ़ने से खून बहता है और बैठ कर पढ़े तो न बहेगा ते बैठ कर पढ़ना फर्ज है ।*_
_*💫मसअला : - माजूर को ऐसा उज़्र है जिसके सबब कपड़े नजिस हो जाते हैं तो अगर एक दिरहम से ज़्यादा नजिस हो गया और यह जानता है कि इतना मौका है कि उसे धोकर पाक कपड़े से नमाज पढ़ लेगा तो धो कर नमाज़ पढ़ना फ़र्ज़ है और अगर जानता है कि नमाज़ पढ़ते पढ़ते फिर उतना ही नजिस हो जायेगा तो धोना ज़रूरी नहीं उसी से पढ़े अगर्चे मुसल्ले पर भी नजासत लग जाये कुछ हरज नहीं और अगर दिरहम के बराबर है तो पहली सूरत में धोना वाजिब और दिरहम से कम है तो सुन्नत और दूसरी सूरत में न धोने में कोई हरज नहीं ।*_
_*💫मसअला : - इस्तिहाज़ा वाली औरत अगर गुस्ल करके जोहर की नमाज़ आख़िर वक़्त में और अस्र की नमाज़ वुजू करके अव्वले वक़्त में और मगरिब की नमाज़ गुस्ल करके आखिर वक़्त में और इशा की नमाज़ वुजू कर के अव्वले वक़्त में पढ़े और फज़्र की भी गुस्ल करके पढ़े तो बेहतर है और तअज्जुब नहीं कि यह अदब जो हदीस में इरशाद हुआ है उस पर अमल की बरकत से उसके मर्ज़ को भी फाइदा पहुंचे ।*_
_*💫मसअला : - किसी जख्म से ऐसी रतूबत निकले कि बहे नहीं तो न उसकी वजह से वुजू टूटे न माजूर हो और न वह रतूबते नापाक है ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 78*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 103)*_
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_*💠नजासतों का बयान 💠*_
_*📚हदीस न . 1 : - सहीह बुखारी व मुस्लिम में असमा बिन्ते अबू बक्र रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से मरवी कि एक औरत ने अर्ज की कि या रसूलल्लाह ! हम में जब किसी के कपड़े को हैज़ का खून लग जाये तो क्या करें ? फरमाया जब तुम में से किसी के कपड़े को हैज़ का खून लग जाये तो उ खुर्चे फिर पानी से धोये तब उसमें नमाज पढे ।*_
_*📚हदीस न . 2 : - सहीहैन में हैं कि उम्मुल मोमिनीन सिददीका रदियल्लाह तआला अन्हा फ़रमाती हैं के रसलल्लह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के कपड़े से मनी को मैं धोती फिर हुजूर नमाज़ को तशरीफ ले जाते और धोने का निशान उसमें होता ।*_
_*📚हदीस न . 3 : - मुस्लिम शरीफ में है कि सिद्दीक़ा रदियल्लाह तआला अन्हा फरमाती हैं कि मैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के कपड़े को मल डालती फिर हजुर उसमें नमाज़ पढ़ते ।*_
_*📚हदीस न4 : - सहीह मुस्लिम शरीफ़ में अब्दुल्ला इब्ने अब्बास रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से मरवी हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं चमड़ा जब पका लिया जाए , पाक हो जाएगा ।*_
_*📚हदीस न . 5 : - इमामे मालिक उम्मुल मोमिनीन सिद्दीका रदियल्लाहु तआला अन्हा से रावी हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हुक्म फरमाया कि मुदीर की खालें जब कि पका ली जायें तो उन्हें काम में लाया जाये ।*_
_*📚हदीस न . 6 : - इमामे अहमद , अबू दाऊद और नसई ने रिवायत की कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने दरिन्दों की खाल से मना फ़रमाया है ।*_
_*📚हदीस न . 7 : - दूसरी रिवायत में है कि उनके पहनने और उन पर बैठने से मना फ़रमाया है ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 78/79*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 104)*_
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_*💠नजासतों के मुतअल्लिक अहकाम💠*_
_*✨नजासत दो किस्म की हैं । एक वह जिसका हुक्म सख्त है उसको गलीजा कहते हैं । दूसरी वह जिसका हुक्म हल्का है उसे खफ़ीफ़ा कहते है ।*_
_*💫मसअला : - नजासते गलीज़ा का हुक्म यह है कि अगर कपड़े या बदन में एक दिरहम से ज्यादा लग जाये तो उसका पाक करना फ़र्ज़ है अगर बे पाक किये नमाज़ पढ़ ली तो होगी ही नहीं और अगर जान बूझकर पढ़ी तो गुनाह भी हुआ और अगर इस्तिकाफ ( हलका समझना ) की नियत से है तो कुफ्र है । और अगर दिरहम के बराबर है तो पाक करना वाजिब है अगर बे पाक किये नमाज़ पढ़ी तो मकरूहे तहरीमी हुई यानी ऐसी नमाज़ का लौटाना वाजिब है और जान बूझ कर पढ़ी तो गुनाहगार भी हुआ अगर दिरहम से कम है तो पाक करना सुन्नत है कि बे पाक किये नमाज़ हो गई मगर सुन्नत के खिलाफ है और उसका लौटाना बेहतर है ।*_
_*💫मसअला : - अगर नजासत गाढ़ी है जैसे पाखाना लीद या गोबर तो दिरहम के बराबर या कम या ज़्यादा के मना यह हैं कि वज़न में उस के बराबर या कम या ज़्यादा हो और दिरहम का वज़न इस जगह शरीअत में साढ़े चार माशे और ज़कात में तीन माशा 1-1-5 रत्ती है और अगर पतली है जैसे आदमी का पेशाब और शराब तो दिरहम से मुराद उसकी लम्बाई चौड़ाई है और शरीअत ने उसकी मिकदार हथेली की गहराई के बराबर बताई यानी हथेली खूब फैला कर बराबर रखें और उस पर आहिस्ता से इतना पानी डालें कि उससे ज्यादा पानी न रुक सके अब पानी का जितना फैलाव है उतना बड़ा दिरहम समझा जाये और उसकी मिकदार तकरीबन यहाँ के 10 रुपये के सिक्के के बराबर है ।*_
_*💫मसअला : - नजिस तेल कपडे पर गिरा और उस वक़्त दिरहम के बराबर न था फिर फैल कर दिरहम के बराबर हो गया तो उस में उलमा को बहुत इख्तिलाफ है लेकिन तरजीह इस बात में । कि पाक करना वाजिब हो गया ।*_
_*💫मसअला : - नजासते खफीफा का यह हक्म है कि कपड़े के जिस हिस्से या बदन के जिस उज्व में नजासत लगी है अगर उसकी चौथाई से कम है ( जैसे दामन में लगी है तो दामन की चौथा से कम , आस्तीन में लगी है तो आस्तीन की चौथाई से कम और ऐसे ही हाथ में हाथ की चौथाई से कम है ) तो माफ है कि उस से नमाज़ हो जायेगी और अगर पूरी चौथाई में हो तो बे धोये नमाज़ न होगी ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 79/80*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 105)*_
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_*💠नजासतों के मुतअल्लिक अहकाम💠*_
_*💫मसअला : - नजासते गलीजा और खफीफा के जो अलग - अलग हुक्म बताये गये यह उसी वक़्त है कि बदन या कपड़े में लगे और अगर किसी पतली चीज़ जैसे पानी या सिरका में गिरे तो चाहे गलीजा हो या खफीफा कुल नापाक हो जायेगा अगर्चे एक कतरा गिरे जब तक वह पतली चीज कसरत की हद पर यानी दह - दर - दह न हो । दह - दर - दह का मतलब यह है कि लम्बाई दस हाथ और चौड़ाई दस हाथ . हो ( यानी जिसका क्षेत्रफल सौ हाथ हो ) और गहराई इतनी हो कि जमीन न खुले ।*_
_*💫मसअला : - इन्सान के बदन से जो ऐसी चीज़ निकले कि उससे गुस्ल या वुजू वाजिब हो नजासते गलीजा है जैसे पाखाना , पेशाब बहता खून , पीप , भर मुँह कै , हैज़ निफास , इस्तिहाज़ा का खून , मनी , मजी और वदी ।*_
_*💫मसअला : - शहीदे फिकही ( यानी वह शहीद जिसे गुस्ल नहीं दिया जाता ) उसका खून जब तक उसके बदन से जुदा न हो पाक है ।*_
_*💫मसअला : - दुखती आँख से जो पानी निकले नजासते गलीज़ा है यूँही नाफ या पिस्तान से दर्द के साथ पानी निकले नजासते गलीज़ा है ।*_
_*💫मसअला : - बलगमी रतूबत नाक या मुँह से निकले नजिस नहीं अगर्चे पेट से चढ़े या बीमारी के सबब हो ।*_
_*💫मसअला : - दूध पीते लड़के लड़की का पेशाब नजासते गलीज़ा है । यह जो अक्सर अवाम में मशहूर है कि दूध पीते बच्चों का पेशाब पाक है बिल्कुल गलत है ।*_
_*💫मसअला : - दूध पीने वाले बच्चे ने दूध डाल दिया अगर भर मुँह है तो नजासते गलीजा है ।*_
_*💫मसअला : - खुश्की के हर जानवर का बहता खून , मुर्दार का गोश्त और चर्बी ( यानी वह जानवर जिसमें बहता हुआ खून होता है अगर शरई तौर पर ज़िबह किये बगैर मर जाये मुर्दार है अगर्चे जिबह किया गया हो जैसे मजूसी या बुत परस्त या मुरतद का ज़बह किया हुआ जानवर अगर्चें उसने हलाल जानवर जैसे बकरी वगैरह को जिबह किया हो उसका गोश्त पोस्त सब नापाक हो गया और अगर हराम जानवर शरई तौर पर ज़बह कर लिया गया तो उसका गोश्त पाक हो गया अगर्चे खाना हराम है खिन्जीर कि वह नजिसुल ऐन है किसी तरह पाक नहीं हो सकता । ) हराम चौपाये जैसे कुत्ता , शेर , लोमड़ी , बिल्ली , चूहा , गधा , खच्चर , हाथी और सुअर का पाखाना , पेशाब और घोड़े की लीद और हर हलाल चौपाय का पाखाना जैसे गाय भैंस का गोबर , बकरी ऊँट की मेगनी और जो परिन्दा कि ऊँचा न उड़े उसकी बीट जैसे मुर्गी और बत्तख चाहे छोटी हो या बड़ी और हर किस्म की शराब और नशा लाने वाली ताड़ी और सेंधी और साँप का पाखाना पेशाब और उस जंगली साँप और मेंढक का गोश्त जिनमें बहता खून होता है अगर्चे ज़िबह किये गये हों यूँही उनकी खाल अगर्चे पका ली गई हो और सुअर का गोश्त हड्डी और बाल अगर्चे ज़िबह किया गया हो यह सब नजासते गलीजा हैं ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 80/81*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 106)*_
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_*💠नजासतों के मुतअल्लिक अहकाम💠*_
_*💫मसअला : - छिपकली या गिरगिट का खून नजासते गलीजा है ।*_
_*💫मसअला : - अंगूर का शीरा कपड़े पर पड़ा तो अगर्चे कई दिन गजर जायें कपड़ा पाक है ।*_
_*💫मसअला : - हाथी की सूंड की रतूबत और शेर , कुत्ते , चीते और दूसरे दरिन्दे चौपायों का लुआब नजासते गलीज़ा है ।*_
_*💫मसअला : - जिन जानवरों का गोश्त हलाल है जैसे गाय , बैल , भैंस बकरी और ऊँट वगैरा उनका पेशाब और घोड़े का पेशाब और जिस परिन्द का गोश्त हराम है चाहे शिकारी हों या नहीं जैसे कौआ , चील शिकरा , बाज़ बहरी उसकी बीट नजासते खफीफा है ।*_
_*💫मसअला : - चमगादड़ की बीट और पेशाब दोनों पाक हैं ।*_
_*💫मसअला : - जो परिन्द हलाल ऊँचे उड़ते हैं जैसे कबूतर , मैना , मुर्गाबी और काज़ उनकी बीट पाक है ।*_
_*💫मसअला : - हर चौपाये की जुगाली का वही हुक्म है जो उसके पाखाने का है ।*_
_*💫मसअला : - हर जानवर के पित्ते का वही हुक्म है जो उसके पेशाब का है । हराम जानवरों का पित्ता नजासते गलीज़ा और हलाल जानवरों का नजासते ख़फीफा है ।*_
_*💫मसअला : - नजासते गलीज़ा अगर खफीफा में मिल जाये तो कुल गलीज़ा है ।*_
_*💫मसअला : - मछली और पानी के दूसरे जानवरों और खटमल और मच्छर का खून और खच्चर और गधे का लुआब और पसीना पाक है ।*_
_*💫मसअला : - पेशाब की निहायत बारीक छींटे सुई की नोंक बराबर की बदन या कपड़े पर पड़ जायें तो कपड़ा और बदन पाक रहेगा ।*_
_*💫मसअला : - जिस कपड़े पर ऐसी ही पेशाब की बारीक छींटें पड़ गई अगर वह कपड़ा पानी में पड़ गया तो पानी भी नापाक न होगा ।*_
_*💫मसअला : - जो खून जख्म से बहा न हो वह पाक है ।*_
_*💫मसअला : - गोश्त , तिल्ली और कलेजी में जो खून बाकी रह गया पाक है और अगर यह चीजें बहते खून में सन जायें तो नापाक हैं , बगैर धोये पाक न होंगी ।*_
_*💫मसअला : - जो बच्चा मुर्दा पैदा हुआ हो उसको गोद में लेकर नमाज़ पढ़ी अगर्चे उसको गुस्ल दे लिया हो नमाज़ न होगी और अगर जिन्दा पैदा होकर मर गया और बे नहलाये गोद में लेकर नमाज़ पढ़ी जब भी न होगी । हाँ अगर उसको गुस्ल दे कर गोद में लिया था तो हो जायेगी मगर मुस्तहब के खिलाफ है । यह बातें उस वक़्त हैं कि मुसलमान का बच्चा हो और काफ़िर का मुर्दा बच्चा है तो किसी हाल में नमाज़ न होगी गुस्ल दिया हो या नहीं ।*_
_*💫मसअला : - अगर नमाज़ पढ़ी और जेब वगैरह में शीशी है और उसमें पेशाब या खून या शराब है तो नमाज़ न होगी और जेब में अंडा है और उसकी ज़र्दी खून हो चूकी है तो नमाज़ हो जायेगी ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 81*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 107)*_
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_*💠नजासतों के मुतअल्लिक अहकाम💠*_
_*💫मसअला : - रुई का कपड़ा उधेड़ा गया और उसके अन्दर चूहा सूखा हुआ मिला तो अगर उसमें सूराख है तो तीन दिन तीन रातों की नमाजें लौटाये और न हो तो जितनी नमाजें उससे पढ़ी है सब को लौटाये ।*_
_*💫मसअला : - किसी कपड़े या बदन पर चन्द जगह नजासते गलीज़ा लगी और किसी जगह दिरहम के बराबर नहीं मगर सब को मिलाकर दिरहम के बराबर है तो दिरहम के बराबर समझी जायेगी और ज्यादा है तो ज्यादा और नजासते खफीफा में भी मजमुआ ( कुल ) पर ही हुक्म दिया जायेगा ।*_
_*💫मसअला : - हराम जानवरों का दूध नजिस है अलबत्ता घोड़ी का दूध पाक है मगर खाना जाइज़ नहीं ।*_
_*💫मसअला : - चूहे की मेंगनी गेहूँ में मिलकर पिस गई या तेल में पड़ गई तो आटा और तेल पाक और हाँ अगर मजे में फर्क आ जाये तो नजिस है और अगर रोटी के अन्दर मिली तो उसके आस पास से थोड़ी सी अलग कर दें बाकी में कोई हर्ज नहीं ।*_
_*💫मसअला : - रेशम के कीड़े की बीट और उसका पानी पाक है ।*_
_*💫मसअला : - नापाक कपड़े में पाक कपड़ा या पाक में नापाक कपड़ा लपेटा और उस नापाक कपडे से यह पाक कपड़ा नम हो गया तो नापाक न होगा बशर्ते कि नजासत का रंग या बू उस पाक कपडे में जाहिर न हो वर्ना नम हो जाने से भी नापाक हो जायेगा । हाँ अगर भीग जाये तो नापाक हो जायेगा और यह उसी सूरत में है कि यह नापाक कपड़ा पानी से तर हुआ हो और अगर पेशाब या शराब की तरी उसमें है तो वह पाक कपड़ा नम हो जाने से भी नजिस हो जायेगा और अगर नापाक कपडा सूखा था और पाक तर था और उस पाक की तरी से वह नापाक तर हो गया और उस नापाक को इतनी तरी पहुँची किं उससे छूट कर इस पाक को लगी तो यह नापाक हो गया वर्ना नहीं ।*_
_*💫मसअला : - भीगे हुए पाँव नजिस जमीन या बिछौने पर रखे तो नापाक न होंगे अगर्चे पाँव की तरी का उस पर धब्बा मालूम हो अगर उस ज़मीन या बिछौने को इतनी तरी पहूँची कि उसकी तरी पाव को लगी तो पाँव नजिस हो जायेंगे ।*_
_*💫मसअला : - भीगी हुई नापाक ज़मीन या नजिस बिछौने पर सूखे हये पाँव रखे और पाँव में तरी आ गई तो नजिस हो गये और सील है तो नहीं ।*_
_*💫मसअला : - जिस जगह को गोबर से लेसा और वह सूख गई तो भीगा कपड़ा उस पर रखने से नजिस न होगा जब तक कपड़े की तरी उसे इतनी न पहुँचे कि उससे छूट कर कपड़े को लगे ।*_
_*💫मसअला : - नजिस कपड़ा पहनकर या नजिस बिछौने पर सोया और पसीना आया अगर पसीने से कपडे की वह नापाक जगह भीग गई फिर उससे बदन तर हो गया तो नापाक हो गया वरना नहीं ।*_
_*💫मसअला : - नापाक चीज पर हवा होकर गुजरी और बदन या कपड़े को लगी तो नापाक न होगा ।*_
_*💫मसअला : - नापाक चीज़ का धुआँ कपड़े या बदन को लगे तो नापाक नहीं ऐसे ही नापाक चीज के जलाने से जो धुंए ( भाप ) उठे उनसे भी नजिस न होगा अगर्चे उनसे कपड़ा भीग जाये । हाँ अगर नजासत का असर उसमें जाहिर हो तो नजिस हो जायेगा ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 82*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 108)*_
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_*💠नजासतों के मुतअल्लिक अहकाम💠*_
_*💫मसअला : - उपले का धुआँ अगर रोटी में लगे तो रोटी नापाक न हई ।*_
_*💫मसअला : - कोई नजिस चीज़ दह - दर - दह पानी में फेंकी और उस फेंकने की वजह से पानी की छीटे कपड़े पर पड़ी तो कपड़ा नजिस न होगा । हाँ अगर मालूम हो कि यह छीटें उस नजिस चीज की हैं तो इस सूरत में नजिस हो जायेगा ।*_
_*💫मसअला : - अगर पाखाने पर से मक्खियाँ उड़ कर कपड़े पर बैठीं तो कपड़ा नजिस न होगा ।*_
_*💫मसअला : - रास्ते की कीचड़ पाक है जब तक उसका नजिस होना मालूम न हो तो अगर पाँव या कपड़े में लगी और बे धोये नमाज पढ़ ली तो हो गयी मगर धो लेना बेहतर है ।*_
_*💫मसअला : - सड़क पर पानी छिड़का जा रहा था और जमीन से छीटें उड़ कर कपड़े पर पड़ी तो कपड़ा नजिस न हुआ मगर धो लेना बेहतर है ।*_
_*💫मसअला : - आदमी की खाल अगर्चे नाखून बराबर थोड़े पानी ( यानी दह - दर - दह से कम में ) पड़ जाये तो वह पानी नापाक हो गया और खुद नाखून गिर जाये नापाक नहीं ।*_
_*💫मसअला : - पेशाब पाखाने के बाद ढेले से इस्तिन्जा कर लिया फिर उस जगह से पसीना निकल कर कपड़े या बदन में लगा तो बदन और कपड़े नापाक न होंगे ।*_
_*💫मसअला : - अगर पाक मिट्टी में नापाक पानी मिलाया तो नजिस हो गई ।*_
_*💫मसअला : - अगर पाक मिट्टी में नापाक भुस मिलाया तो अगर थोड़ा हो पाक है और जो ज्यादा हो तो जब तक सूख न जाये नापाक है ।*_
_*💫मसअला : - कुत्ता बदन या कपड़े से छू जाये तो अगर्चे उसका जिस्म तर हो बदन और कपड़ा पाक है हाँ अगर उस के बदन पर नजासत लगी हो तो और बात है और अगर उसका लुआब लगे नापाक कर देगा ।*_
_*💫मसअला : - कुत्ता वगैरा किसी ऐसे जानवर ने जिसका लुआब नापाक है आटे में मुहँ डाला तो अगर गुंधा हुआ था तो जहाँ उसका मुहँ पड़ा उसको अलग कर दें और बाकी पाक है और सूखा तो जितना तर हो गया वह फेंक दें ।*_
_*💫मसअला : - इस्तिमाल किया हुआ पानी पाक है और नौसादर भी पाक है ।*_
_*💫मसअला : - सूअर के अलावा तमाम जानवर की वह हड्डी जिस पर मुदीर की चिकनाई न लगी हो पाक है और उनके बाल और दाँत भी पाक हैं ।*_
_*💫मसअला : - औरत के पेशाब की जगह से जो रतूबत निकले पाक है । अगर कपड़े या बदन में लगे तो धोना जरूरी नही हाँ बेहतर है ।*_
_*💫मसअला : - जो गोश्त सड़ गया और उस में से बदबू पैदा हो गई उसका खाना हराम है अगर्चे नजिस नहीं ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 82/83*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 109)*_
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_*🩸नजिस चीजों के पाक करने का तरीका*_
_*✨जो चीजें ऐसी हैं कि वह खुद नजिस हैं ( जिनको नापाकी और नजासत कहते ) हैं जैसे शराब या गलीज ऐसी चीजें जब तक अपनी अस्ल को छोड़कर कुछ और न हो जायें पाक नहीं हो सकतीं शराब जब तक शराब है नजिस ही रहेगी और सिरका हो जाये तो अब पाक है ।*_
_*💫मसअला - जिस बर्तन में शराब थी और सिरका हो गई तो वह बर्तन भी अन्दर से उतना पाक हो गया जहाँ तक उस वक़्त सिरका है । अगर बर्तन के मुहँ पर शराब की छीटें पड़ी थीं वह शराब के सिरका होने से पाक न होंगी यँही अगर शराब मुहँ तक भरी फिर कुछ गिर गई कि बर्तन थोड़ा खाली हो गया उसके बाद सिरका हुई तो बर्तन के ऊपर का हिस्सा जो पहले नापाक हो चुका था पाक न होगा अगर सिरका उससे उंडेला जायेगा तो वह सिरका भी नापाक हो जायेगा क्यूँकि बर्तन के ऊपर का हिस्सा नापाक है हाँ अगर पली , चमचा वगैरा से निकाल लिया जाये तो पाक है और अगर प्याज लहसुन शराब में पड़ गये थे तो सिरका होने के बाद पाक हो गये ।*_
_*💫मसअला : - शराब में चूहा गिर कर फूल , फट गया तो सिरका होने के बाद भी पाक न होगा और अगर फूला फटा नहीं था तो अगर सिरका होने से पहले निकाल कर फेंक दिया उसके बाद सिरका हुई तो पाक है और अगर सिरका होने के बाद निकाल कर फेंका तो सिरका भी नापाक है ।*_
_*💫मसअला : - शराब में पेशाब का कतरा गिर गया या कुत्ते ने मुँह डाल दिया या नापाक सिरका मिला दिया तो सिरका होने के बाद भी हराम और नजिस है ।*_
_*💫मसअला : - मुसलमान के लिये शराब को खरीदना , मंगाना , उठाना या रखना हराम है अगर्चे सिरका करने की नियत से हो ।*_
_*💫मसअला : - नजिस जानवर नमक की खान में गिर कर नमक हो गया तो वह नमक पाक और हलाल है ।*_
_*💫मसअला : - उपले की राख पाक है और अगर राख होने से पहले बुझ गया तो नापाक है ।*_
_*💫मसअला : - जो चीजें ज़ाती तौर पर नजिस नहीं बल्कि किसी नजासत के लगने से नापाक हई उनके पाक करने के मुख्तलिफ तरीके हैं ।*_
_*💦पानी और हर बहने वाली पतली चीज़ से जिस से नजासत दूर हो जाये धो कर नजिस चीज़ को पाक कर सकते हैं जैसे सिरका और गुलाब कि उनसे नजासत दूर कर सकते हैं तो बदन या कपड़ा उन से धोकर पाक कर सकते हैं ।*_
_*📍फायदा : - बगैर ज़रूरत गुलाब और सिरके वगैरा से पाक करना नाजाइज है इसलिये कि फुजूलखर्ची है ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 83/84*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 110)*_
―――――――――――――――――――――
_*🩸नजिस चीजों के पाक करने का तरीका*_
_*💫मसअला : - इस्तेमाल किये पानी और चाय से धोये तो पाक हो जायेगा ।*_
_*💫मसअला : - थूक से अगर नजासत दूर हो जाये पाक हो जायेगा जैसे बच्चे ने दूध पीकर पिस्तान पर कै की फिर कई बार दूध पिया यहाँ तक कि उसका असर जाता रहा तो पाक हो गया और शराबी के मुँह का मसला ऊपर गुज़र चुका ।*_
_*💫मसअला : - दूध , शोंरबा और तेल से धोने से पाक न होगा कि उनसे नजासत दूर न होगी ।*_
_*💫मसअला : - नजासत अगर दलदार हो ( जैसे पाखाना , गोबर और खून वगैरा ) तो धोने में गिनती की कोई शर्त नहीं बल्कि उसको दूर करना ज़रूरी है तब पाक होगा अगर एक बार धोने से नापाकी दूर हो जाए तो एक ही मरतबा धोने से पाक हो जाएगा और अगर चार पाँच बार धोने से दूर हो तो चार पाँच बार धोना पड़ेगा हाँ अगर तीन मर्तबा से कम धोने में नजासत दूर हो जाये तो तीन बार पूरा कर लेना मुस्तहब है ।*_
_*💫मसअला : - अगर नजासत दूर हो गई मगर उसका कुछ असर रंग या बू बाकी है तो उसे भी दूर करना जरूरी है । हाँ अगर उसका असर मुश्किल से जाये तो असर दूर करने की ज़रूरत नहीं तीन बार धो लिया पाक हो गया । साबुन खटाई या गर्म पानी से धोने की ज़रूरत नहीं ।*_
_*💫मसअला : - कपड़े या हाथ में नजिस रंग लगा या नापाक मेंहदी लगाई तो इतनी बार धोयें कि साफ पानी गिरने लगे तो पाक हो जायेगा अगर्चे कपडे या हाथ पर रंग बाकी हो ।*_
_*💫मसअला : - जाफरान या रंग कपड़ा रंगने के लिये घोला था उसमें किसी बच्चे ने पेशाब कर दिया या और कोई नजासत पड़ गई तो उस से अगर कपडा रंग लिया तो तीन बार कपड़ा धो डालें तो पाक हो जायेगा ।*_
_*💫मसअला : - गोदना कि सुई चुभोकर उस जगह सुर्मा भर देते हैं तो अगर खुन इतना निकला कि बहने के काबिल हो तो ज़ाहिर है कि वह खुन नापाक है और सुर्मा जो उस पर डाला गया वह भी नापाक हो गया फिर उस जगह को धो डालें पाक हो जायेगी अगर्चे नापाक सुर्मे का रंग भी बाका रहे यूँही जख्म में राख भर दी फिर धो लिया तो पाक हो गया अगर्चे रंग बाकी हो ।*_
_*💫मसअला : - कपड़े या बदन में नापाक तेल लगा था तो तीन बार धो लेने से पाक हो जायेगा अगर्चे तेल की चिकनाई मौजूद हो । इस तकल्लुफ की ज़रूरत नहीं कि साबुन या गर्म पानी से धोयें लेकिन अगर मुदीर की चरबी लगी थी तो जब तक उसकी चिकनाई न जाये पाक न होगा ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 84/85*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 111)*_
―――――――――――――――――――――
_*🩸नजिस चीजों के पाक करने का तरीका*_
_*💫मसअला : - अगर नजासत पतली हो तो तीन बार धोने और तीन बार ज़ोर से निचोड़ने से पाक होगा और जोर के साथ निचोड़ने का मतलब यह है कि वह शख्स अपनी ताकत भर इस तरह निचोड़े कि अगर फिर निचोड़े तो उससे कोई कतरा न टपके अगर कपड़े का ख्याल करके अच्छी तरह नहीं निचोड़ा तो पाक न होगा ।*_
_*💫मसअला : - अगर धोने वाले ने अच्छी तरह निचोड़ लिया मगर अभी ऐसा है कि अगर कोई दूसरा शख्स जो ताकत में उससे ज्यादा है निचोड़े तो दो एक बूंद टपक सकती है तो धोने वाले के हक में पाक और इस दूसरे के हक में नापाक है इस दूसरे की ताकत का एअतेबार नहीं है हाँ अगर यह धोता और उसी कद्र निचोड़ता तो पाक न होता ।*_
_*💫मसअला : - पहली और दूसरी बार निचोडने के बाद हाथ पाक कर लेना ज़रूरी है और जो कपड़े में इतनी तरी रह गई हो कि निचोड़ने से एक आध बूंद टपकेगी तो कपड़ा और हाथ दोनों नापाक हैं ।*_
_*💫मसअला : - पहली या दूसरी बार हाथ पाक नहीं किया और उसकी तरी से कपड़े का पाक हिस्सा भीग गया तो यह भी नापाक हो गया फिर अगर पहली बार निचोड़ने के बाद भीगा है तो उसे दो बार धोना ज़रूरी है और दूसरी बार निचोड़ने के बाद हाथ की तरी से भीगा है तो एक बार धोया जाये । यूँही उस से जो एक बार धोकर निचोड़ लिया गया है कोई पाक कपड़ा भीग जाये तो यह दूसरा कपड़ा दो बार धोया जाये और अगर दूसरी बार निचोड़ने के बाद उससे वह कपड़ा भीगा तो एक बार धोने से पाक हो जायेगा ।*_
_*💫मसअला : - कपड़ा कि तीन बार धोकर हर बार खूब निचोड़ लिया है कि अब निचोड़ने से न टपकेगा फिर उसको लटका दिया और उससे पानी टपका तो यह पानी पाक है और अगर खूब नहीं निचोड़ा था तो यह पानी नापाक है ।*_
_*💫मसअला : - दूध पीते लड़के और लड़की का एक ही हुक्म है कि उनका पेशाब कपडे या बदन में लगा है तो तीन बार धोना और निचोड़ना पड़ेगा ।*_
_*💫मसअला : - जो चीज निचोड़ने के काबिल नहीं है ( जैसे चटाई , बर्तन और जूता वगैरा ) उसको धोकर छोड़ दें कि पानी टपकना रुक जाये यँही दो मरतबा और धोयें तीसरी मरतबा जब पानी टपकना बन्द हो गया तो वह चीज़ पाक हो गई । उसे हर बार धोने के बाद सुखाना जरूपी नहीं , यूँही जो कपड़ा बहुत नाजुक होने की वजह से निचोड़ने के काबिल नहीं उसे भी ऐसे ही पाक किया जायेगा ।*_
_*💫मसअला : - अगर ऐसी चीज़ हो कि उस में नजासत जज्ब न हुई जैसे चीनी के बर्तन या मिटटी का पुराना इस्तेमाली चिकना बर्तन या लोहे ताँबे पीतल वगैरा धातों की चीजें तो उसे सिर्फ तीन बार धो लेना काफी है इसकी भी जरूरत नहीं कि उसे इतनी देर छोड़ दें कि पानी टपकना रुक जाये ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 85/86*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 112)*_
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_*🩸नजिस चीजों के पाक करने का तरीका*_
_*💫मसअला : - नापाक बर्तन को मिट्टी से माँझ लेना बेहतर है ।*_
_*💫मसअला : - पकाया हुआ चमड़ा अगर नापाक हो गया तो अगर उसे निचोड़ सकते हैं तो निचोड़ें नहीं तो तीन बार धोयें और हर बार इतनी देर तक छोड़ दें कि पानी टपकना बन्द हो जाये ।*_
_*💫मसअला : - दरी टाट या कोई नापाक कपड़ा बहते पानी में रात भर पड़ा रहने दें तो पाक हो जायेगा और अस्ल यह है कि जितनी देर में यह गालिब गुमान हो जाये कि पानी से नजासत बह गई तो पाक हो गया बहते पानी से पाक करने में निचोड़ना शर्त नहीं ।*_
_*💫मसअला : - कपड़े का कोई हिस्सा नापाक हो गया और यह याद नहीं कि वह कौन सी जगह है तो बेहतर यही है कि पूरा ही धो डालें ( यानी जब बिल्कूल न मालूम हो कि किस हिस्से में नापाकी लगी है और अगर मालूम है कि जैसे आस्तीन या कली नजिस हो गई मगर यह नहीं मालूम कि आस्तीन या कली का कौन सा हिस्सा है तो आस्तीन या कली का धो लेना ही पूरे कपड़े का धोना है ) और अगर अन्दाज़ से सोचकर उसका कोई हिस्सा धो लें जब भी पाक हो जायेगा और जो बिला सोचे हुये कोई टुकड़ा धो लिया जब भी पाक है मगर इस सूरत में अगर चन्द नमाजें पढ़ने के बाद मालूम हो कि नजिस हिस्सा नहीं धोया गया तो फिर धोये और नमाजें लौटाये और जो सोच कर धो लिया था और बाद को गलती मालूम हुई तो अब धो ले लेकिन नमाजों के लौटाने की जरूरत नहीं ।*_
_*💫मसअला : - यह जरूरी नहीं कि एक दम तीनों बार धोयें बल्कि अलग - अलग वक़्तों बल्कि अलग - अलग दिनों में यह तादाद पूरी की जाये जब भी पाक हो जायेगा । मसअला : - लोहे की चीज़ जैसे चाकू तलवार और छुरी वगैरा जिसमें न जंग हो और न बेल , बूटे बने हों अगर उसमें नजासत लग जाये तो अच्छी तरह पोंछ डालने से वह छुरी या इस किस्म की दूसरी चीजें पाक हो जायेंगी और इस सूरत में नजासत के दलदार या पतली होने में कुछ फर्क नहीं । इसी तरह चाँदी , सोने , पीतल , गिलट और हर किस्म की धात की चीजें पोंछने से पाक हो जाती हैं । मगर शर्तः यह है कि नकशी न हों और अगर नकशी हों या लोहे में जंग हो तो धोना जरूरी है पोछने से पाक न होगी ।*_
_*💫मसअला : - आईना और शीशे की तमाम चीजें और चीनी के बर्तन या मिट्टी के रोगनी बर्तन या पालिश की हई लकड़ी गर्ज कि वह तमाम चीजें जिनमें सुराख न हों कपड़े या पत्ते से इस कद्र पोछ ली जाये कि नजासत का असर बिल्कुल जाता रहे तो पाक हो जाती हैं ।*_
_*💫मसअला : - मनी अंगर कपड़े में लग कर सूख जाये तो सिर्फ मलकर झाड़ने और साफ करने से कपड़ा पाक हो जायेगा अगर्चे मलने के बाद उसका कुछ असर कपड़े में बाकी रह जाये इस मसले में औरत , मर्द , इन्सान हैवान तन्दुरुस्त और जिरयान के मरीज़ सब की मनी का एक ही हुक्म है ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 86/87*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 113)*_
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_*🩸नजिस चीजों के पाक करने का तरीका*_
_*💫मसअला : - बदन में अगर मनी लग जाये तो भी इसी तरह पाक हो जायेगा ।*_
_*💫मसअला : - पेशाब कर के तहारत न की पानी से न ढ़ेले से और मनी उस जगह पर गुज़री जहाँ पेशाब लगा हुआ है तो यह मलने से पाक न होगी बल्कि धोना जरूरी है अगर तहारत कर चुका था या मनी जस्त करके यानी कूद कर निकली कि उस नजासत की जगह पर न गुज़री तो मलने से पाक हो जायेगी ।*_
_*💫मसअला : - जिस कपड़े को मलकर पाक कर लिया अगर वह पानी से भीग जाये तो नापाक न होगा ।*_
_*💫मसअला : - अगर मनी कपड़े में लगी है और अब तक तर है तो धोने से पाक होगा मलना काफी नहीं । यानी जब मनी सूख जाए तो मल कर पाक कर सकते हैं और तर होने की हालत में कपड़ा या बदन पाक करना है तो धोना जरूरी है ।*_
_*💫मसअला : - चमड़े वाले मोजे या जूते में दलदार नजासत लगी जैसे पाखाना गोबर या मनी तो अगर्च वह नजासत तर हो खुरचने और रगड़ने से पाक हो जायेगा ।*_
_*💫मसअला : - और अगर पेशाब की तरह कोई पतली नजासत चमड़े वाले जूते या चमड़े वाले मोजे में लगी हो और उस पर मिट्टी या राख या रेता वगैरा डाल कर रगड़ डालें जब भी पाक हो जायेगी और अगर ऐसा न किया यहाँ तक कि वह नजासत सूख गई तो अब बे - धोये पाक न होगी ।*_
_*💫मसअला : - अगर नापाक ज़मीन सूख जाये और नजासत का असर यानी रंग और बू जाती रहे तो पाक हो जायेगी चाहे वह हवा से सूखी हो या धूप या आग से मगर उससे तयम्मुम करना जाइज़ नहीं अलबत्ता उस पर नमाज़ पढ़ सकते हैं ।*_
_*💫मसअला : - जिस कुँए में नापाक पानी हो और वह कुँआ सूख जाये तो पाक हो जायेगा ।*_
_*💫मसअला : - पेड़ , पौधे , घास , दीवार और ऐसी ईंट जो ज़मीन में जड़ी हो सूखने के बाद पाक हो जाती है और अगर ईंट जड़ी न हो तो सूखने से पाक न होगी बल्कि धोना ज़रूरी हैं । इसी तरह नापाक दरख्त या नापाक घास सूखने से पहले काट लीं तो पाक करने के लिए धोना जरूरी है ।*_
_*💫मसअला : - अगर पत्थर ऐसा हो कि ज़मीन से जुदा न हो सके तो खुश्क होने से पाक है नहीं तो धोने की ज़रूरत है ।*_
_*💫मसअला : - चक्की का पत्थर सूख जाने से पाक हो जायेगा ।*_
_*💫मसअला : - कंकरी जो ज़मीन के ऊपर है सूखने से पाक न होगी , और जो जमीन में चिपकी हुई हो वह ज़मीन के हुक्म में है ।*_
_*💫मसअला : - जो चीज़ जमीन से लगी हुई थी और नजिस हो गई फिर सूखने के बाद अलग की गई तो अब भी पाक ही है ।*_
_*💫मसअला : - अगर किसी ने नापाक मिट्टी से बर्तन बनाये तो जब तक कच्चे हैं नापाक हैं लेकिन पकाने के बाद पाक हो जायेंगे ।*_
_*💫मसअला : - तन्दूर या तवे पर नापाक पानी का छींटा डाला और आँच से उसकी तरी जाती रही अब उसमें जो रोटी पकाई गई पाक है ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 87*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 114)*_
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_*🩸नजिस चीजों के पाक करने का तरीका*_
_*💫मसअला : - उपले जलाकर खाना पकाने को लोग मकरूह कहते हैं मगर ऐसा नहीं है बल्कि उपले जलाकर खाना पकाना जाइज है । जो चीज़ सूखने या रगड़ने से पाक हो गई उसके बाद भीग गई तो नापाक न होगी ।*_
_*💫मसअला : - सुअर के अलावा हर जानवर चाहे वह हलाल या हराम हो जब कि जिबह करने के काबिल हो और बिस्मिल्लाह कह कर जिबह किया गया हो तो उसका गोश्त और खाल पाक है कि नमाज़ी के पास अगर वह गोश्त है या उसकी खाल पर नमाज़ पढ़ी तो नमाज़ हो जायेगी मगर हराम जानवर जिबह करने से हलाल न होगा बल्कि हराम ही रहेगा ।*_
_*💫मसअला : - सुअर के सिवा हर मुर्दार जानवर की खाल सुखाने से पाक हो जाती है चाहे उसको खारी नमक वगैरा किसी दवा से पकाया हो या सिर्फ धूप या हवा में सुखा लिया हो और उसकी तमाम रतूबत खत्म होकर बदबू जाती रही हो तो इन दोनों सूरतों में पाक हो जायेगी और उस पर नमाज जाइज होगी ।*_
_*💫मसअला : - दरिन्दे की खाल अगर्चे पकाली गई हो , न तो उस पर बैठना चाहिए और न उस पर नमाज पढ़नी चाहिये क्योंकि इससे मिजाज में सख्ती और गुरूर पैदा होता है । बकरी और मेंढे की खाल पर बैठने और पहनने से मिज़ाज में नर्मी और आजिजी पैदा होती है । कुत्ते की खाल अगर्च पकाली गई हो या वह ज़िबह कर लिया गया हो इस्तिअमाल में न लाना चाहिए कि इमामों का इस में इख्तिलाफ़ और लोगों को इस से नफरत है इसलिए इस से बचना ही ठीक है ।*_
_*💫मसअला : - रूई का अगर इतना हिस्सा नजिस है कि उसे धुनने से उड़ जाने का सही गुमान हो तो रूई धुनने से पाक हो जायेगी नहीं तो बिना धोये पाक न होगी । हाँ अगर यह पता न हो कि रूई कितनी नजिस है तो भी धुनने से पाक हो जायेगी ।*_
_*💫मसअला : - गल्ला जब पैर में हो और उसके निकालते वक़्त बैलों ने उस पर पेशाब किया तो अगर गल्ला चन्द शरीकों में तकसीम हुआ या उसमें से मज़दूरी दी गई या खैरात की तो सब पाक हो गया और अगर गल्ला सब का सब उसी तरह मौजूद है तो नापाक है अगर उसमें से इस कद्र धोकर पाक कर लें कि जिसमें यह एहतेमाल ( शक ) हो सके कि इससे ज्यादा नजिस न होगा तो सब पाक हो जायेगा ।*_
_*💫मसअला : - रांग और सीसा पिघलाने से पाक हो जाता है ।*_
_*💫मसअला : - जमे हुए घी में चूहा गिर कर मर गया तो चूहे के आस पास का घी निकाल डालें बाकी पाक है उसे खा सकते हैं और अगर पतला है तो सब नापाक हो गया उसका खाना जाइज नहीं अलबत्ता उसे ऐसे काम में ला सकते हैं कि जिसमें नजिस चीज़ों का इस्तेमाल मना न हो और तेल का भी यही हुक्म है ।*_
_*💫मसअला : - शहद नापाक हो जाये तो उसके पाक करने का तरीका यह है कि उससे ज्यादा पानी डालकर इतना जोश दें कि शहद जितना था उतना ही रह जाये तीन बार ऐसा ही करें पाक हो जायेगा ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 88*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 115)*_
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_*🩸नजिस चीजों के पाक करने का तरीका*_
_*💫मसअला : - नापाक तेल के पाक करने का तरीका यह है कि उसमें उतना ही पानी डालकर खूब हिलाये फिर ऊपर से तेल निकाल लें और पानी फेंक दें यूँ ही तीन बार करें या उस बर्तन में नीचे तरीकों में से के पाक करना नहीं तो कि सूराख कर दें कि पानी बह जाये और तेल रह जाये ऐसे भी तीन बार में पाक हो जायेगा या ऐसा करें कि उतना ही पानी डाल कर उस तेल को पकायें यहाँ तक कि पानी जल जाये और तेल रह जाये यूँही तीन बार में पाक हो जायेगा और ऐसे भी कर सकते है कि पाक तेल या पानी दूसरे बर्तन में रखकर इस नापाक और उस पाक दोनों की धार मिलाकर ऊपर से गिरायें मगर इसमें यह जरूर ध्यान रखें कि नापाक की धार उसकी धार से किसी वक़्त अलग न हो और न उस बर्तन में कोई नापाक कतरा पहले से पहुँचा हो और न बाद को नहीं तो फिर नापाक हो जायेगा । बहती हुई आम चीजें घी वगैरा के पाक करने के भी यही तरीके है । और अगर घी जमा हो उसे पिघलाकर उन्हीं तरीकों में से किसी तरीके पर पाक करें और एक तरीका इन चीजों के पाक करने का यह भी है कि परनाले के नीचे कोई बरतन रखें और छत पर से उसी जिन्स की पाक चीज़ पानी के साथ इस तरह मिलाकर बहायें कि परनाले से दोनों धारें एक हो कर गिरें सब पाक हो जायेगा या उसी जिन्स या पानी से उबाल लें पाक हो जायेगा ।*_
_*💫मसअला : - जानमाज में हाथ पांव पेशानी और नाक रखने की जगह का नमाज पढ़ने में पाक होना जरूरी है बाकी जगह अगर निजासत हो नमाज में हरज नहीं । हाँ नमाज़ में नजासत के कुर्ब से बचना चाहिए ।*_
_*💫मसअला : - किसी कपड़े में निजासत लगी और वह निजासत उसी तरफ रह गई दूसरी तरफ उसने असर नहीं किया तो उसको लौट कर दूसरी तरफ जिधर नजासत नहीं लगी है नमाज़ नहीं पढ़ सकते अगर्चे कितना ही मोटा हो मगर जबकि वह नजासत मवाजेए सूजूद ( सजदे वाली जगहों ) से अलग हो तो पढ़ सकते हैं ।*_
_*💫मसअला : - जो कपड़ा दो तह का है अगर एक तह उसकी नजिस हो जाए तो अगर दोनों मिलाकर सी लिए गए हों तो दूसरी तह पर नमाज़ जाइज नहीं और अगर सिले न हों तो जाइज़ है ।*_
_*💫मसअला : - लकड़ी का तख्ता एक रुख से नजिस हो गया तो अगर इतना मोटा है कि मोटाई में चिर सके तो लौट कर उस पर नमाज़ पढ़ सकते हैं वर्ना नहीं ।*_
_*💫मसअला : - जो ज़मीन गोबर से लेसी गई अगर्चे सूख गई हो उस पर नमाज़ जाइज नहीं । हाँ अगर वह सूख गई और उस पर कोई मोटा कपड़ा बिछा लिया तो उस पर नमाज पढ़ सकते हैं अगर्चे कपड़े में तरी हो मगर इतनी तरी न हो कि जमीन भीग कर उस को तर कर दे कि इस सूरत में यह कपड़ा नजिस हो जायेगा और नमाज़ न होगी ।*_
_*💫मसअला : - आँखों में नापाक सुर्मा या काजल लगाया या फैल गया तो धोना वाजिब है और अगर आँखों के अन्दर ही हो बाहर न लगा हो तो मुआफ है ।*_
_*💫मसअला : - किसी दूसरे मुसलमान के कपड़े में निजासत लगी देखी और गालिब गुमान है कि उस को खबर करेगा तो पाक कर लेगा तो खबर करना वाजिब है ।*_
_*💫मसअला : - फासिकों के इस्तेअमाली कपड़े जिनका नजिस होना मालूम न हो पाक समझे जायेंगे मगर बेनमाजी के पाजामे वगैरा में एहतियात यही है कि रुमाली पाक कर ली जाए क्यूंकि अकसर बेनमाजी पेशाब करके वैसे ही पाजामा बांध लेते हैं और कुफ्फार के इन कपड़ों के पाक करने में तो बहुत ख्याल करना चाहिए ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 88/89*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 116)*_
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_*💦इस्तिन्जे का बयान💦*_
_*🕋अल्लाह तआला फरमाता है :*_
_*📝तर्जमा : - " उस मस्जिद यानी मस्जिदे कुबा शरीफ में ऐसे लोग हैं जो पाक होने को पसन्द रखत हैं और अल्लाह दोस्त रखता है पाक होने वालों को ।*_
_*📚हदीस न . 1 - इब्ने माजा में अबू अय्यूब , जाबिर और अनस रदियल्लाहु तआला अन्हुम से रिवायत है कि जब यह आयत शरीफ नाज़िल हुई तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि ऐ गिरोहे अनसार अल्लाह तआला ने तहारत ( पाकी ) के बारे में तुम्हारी तारीफ की तो बताओ तुम्हारी तहारत क्या है ? उन्होंने अर्ज किया कि नमाज के लिये हम वुजू करते हैं , जनाबत से गुस्ल करते हैं और हम पाखाना करके पहले तीन ढेलों से जगह को पाक करते हैं उसके बाद फिर पानी से इस्तिन्जा करते हैं । फरमाया तो वह यही है इसको करते रहो ।*_
_*📚हदीस न . 2 : - अबू दाऊद और इब्ने माजा जैद इब्ने अरकम रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि यह पाखाने ( लैट्रीने ) जिनों और शैतानों के हाज़िर रहने की जगह हैं तो जब कोई पाखाने को जाये तो यह दुआ पढ़ ले :*_
اَعُوْذُ بِاللّٰهِ مِنَ الْخُبُپِ وَ الْخَبَائِثِ
_*" अऊजु बिल्लाहि मिनल खुबसि वल खबाइसि*_
_*📝तर्जमा - मैं अल्लाह की पनाह माँगता हूँ पलीदी और शैतानों से ।*_
_*📚हदीस न . 3 : - बुखारी शरीफ और मुस्लिम शरीफ में यह दुआ इस तरह है :*_
اَللّٰہُمَّ اِنِّیْ اَعُوْذَ بِکَ مِنَ الْخُبُثِ وَلْخَبَائِثِ
_*अल्लाहुम्मा इन्नी अऊजु बिका मिनल खुबसि वल खबाइसि*_
_*📝तर्जमा : - ऐ अल्लाह मैं तेरी पनाह माँगता हूँ पलीदी और ( नापाकी ) और शैतानों से ।*_
_*📚हदीस न4 : - अमीरुल मोमिनीन हज़रते अली रदियल्लाहु तआला अन्हु से इस तरह रिवायत है कि जिन्नात की आँखों और औलादे आदम के सतर में पर्दा यह है , कि जब पाखाने को जाये तो कह ले:*_
*_بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْم_*
_*बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*_
_*📚हदीस न . 5 : - तिर्मिजी इब्ने माजा और दारमी उम्मुल मोमिनीन सिददीका रदियल्लाह तआला अनहा से रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जब बैतुलखला से बाहर आते तो यूँ फरमाते :*_
_*غُفْرَا انَکَ गुफरानाका*_
_*📝तर्जमा : - अल्लाह से मगफिरत का सवाल करता हूँ ।*_
_*📚हदीस न . 6 : - इब्ने माजा की रिवायत हजरते अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से इस तरह है । जब हुजूर बैतुलखला से तशरीफ लाते तो यह फरमाते :*_
اَلْحَمْدُ لِلّٰهِ الَّذِیْ اَذْھَبَ عَنِّی الْاَذٰی وَعَافَانِیْ
_*अललहम्दु लिल्लाहिल लजी अजहबा अन्निल अज़ा व आफानी*_
_*📝तर्जमा : - " हम्द है अल्लाह के लिए जिसने अजीयत ( तकलीफ ) की चीज मुझ से दूर कर दी और मुझे आफियत ( आराम ) दी ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 90/91*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 117)*_
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_*💦इस्तिन्जे का बयान💦*_
_*📚हदीस न . 7 : - हिस्ने हसीन में है कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इस तरह इरशाद फरमाते :*_
اَلْحَمْدُ لِلّٰهِ الَّذِیْ اَخْرَجَ مِنْ بَطْنِیْ مَایَضُرُّ نِیْ وَاَبْقٰی فِیْهِ مَا یَنْفَعُنِیْ
_*अललहम्दु लिल्लाहिल लजी अखरजा मिम बतनी मा यदुर्रूनी व अब्का फीहि मा यन फउनी*_
_*📝तर्जमा : - " तारीफ है अल्लाह के लिये जिसने मेरे पेट से वह चीज़ निकाल दी जो मुझे तकलीफ देती और वह चीज़ बाकी रखी जो मुझे नफा देगी " ।*_
_*📚हदीस न . 8 : - कई किताबों में बहुत से सहाबए किराम रदियल्लाहु तआला अन्हुम से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जब पाखानों को जाओ तो किब्ले को न मुँह करो और न पीठ और उज्वे तनासुल ( पेशाब की जगह ) को दाहिने हाथ से इस्तिन्जा करने से मना फरमाया ।*_
_*📚हदीस न . 9 : - अबू दाऊद , तिर्मिज़ी और नसई अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जब बैतुलखला को जाते तो अगूंठी उतार लेते कि उसमें नामे मुबारक खुदा था ।*_
_*📚हदीस न . 10 : - अबू दाऊद और तिर्मिज़ी ने उन्हीं से रिवायत की कि जब हुजूर कज़ाये हाजत का इरादा फरमाते तो कपड़ा न हटाते जब तक कि ज़मीन से करीब न हो जाते ।*_
_*📚हदीस न . 11 : - अबू दाऊद जाबिर रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत करते हैं कि हुजूर जब कज़ाये हाजत को तशरीफ ले जाते तो इतनी दूर जाते कि उन्हें कोई न देखता ।*_
_*📚हदीस न . 12 : - हज़रते अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रदियल्लाहु तआला अन्हु से तिर्मिजी और नसई ने रिवायत की कि हुजुर अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि गोबर और हड्डियों से इस्तिन्जा न करो कि वह तुम्हारे भाईयों जिन्नों की खुराक है और अबू दाऊद की एक रिवायत में कोयले से भी इस्तिन्जा मना फरमाया ।*_
_*📚हदीस न 13 : - अबू दाऊद तिर्मिज़ी और नसई अब्दुल्लाह इब्ने मिगफल रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि कोई गुस्लखाने में पेशाब न करे फिर उसमें नहाये या वुजू करे कि अक्सर वसवसे उसी से होते हैं ।*_
_*📚हदीस न14 : - अबू दाऊद और नसई अब्दुल्लाह इब्ने सरजिस रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत करते हैं कि हुजूर ने सूराख में पेशाब करने से मना फरमाया ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 91*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 118)*_
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_*💦इस्तिन्जे का बयान💦*_
_*📚हदीस न . 15 : - अबू दाऊद और इब्ने माजा मआज रदियल्लाहु तआला अन्हु से बयान करते हैं कि हुजूर ने फरमाया कि तीन चीजें लअ्नत का सबब है उनसे बचों वह तीन चीज़ें ये हैं*_
_*💫(1) खाट पर पेशाब करना*_
_*💫(2)बीच रास्ते में पेशाब करने से*_
_*💫(3) और पेड़ के साये में पेशाब करने से ।*_
_*📚हदीस न . 16 - इमामे अहमद तिर्मिजी और नसई उम्मुल मोमिनीन सिद्दीका रदियल्लाह अन्हा से रिवायत करते हैं कि वह फरमाती है कि जो शख्स तुम से यह कहे कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम खड़े हो कर पेशाब करते थे तो तुम उसे सच्चा न जानो हुजूर नहीं पेशाब फरमाते मगर बैठ कर ।*_
_*📚हदीस न . 17 - इमाम अहमद , अबू दाऊद और इब्ने माजा अबू सईद रदियल्लाहु तआला अन्हु ने रिवायत करते है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि दो आदमी पाखाने को जायें और सत्र खोल कर बातें करें तो अल्लाह उन पर गजब फरमाता है ।*_
_*📚हदीस न 18 - बुखारी शरीफ और मुस्लिम शरीफ में अब्दुल्ला इब्ने अब्बास रदियल्लाहु ताल अन्हुमा से मरवी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने दो कब्रों पर गुजर फरमाया तो यह फरमाया कि उन दोनों को अजाब होता है और किसी बड़ी बात में अजाब नहीं दिए जा र हैं उन में से एक पेशाब की छीट से नहीं बचता था और दूसरा चुगली खाता फिर हुजूर ने खजूर की एक तर शाख ले कर उसके दो हिस्से किए और हर कब्र पर एक एक टुकड़ा गाड दिशा सहाबा ने अर्ज किया कि या रसूलुल्लाह यह क्यूँ किया फरमाया इस उम्मीद पर कि जब तक यह खुश्क न हो उन पर अजाब में तखफीफ ( कमी ) हो*_
_*📍नोट - इस हदीस से पता चलता है कि कब्रों पर फूल डालना जाइज है कि फूल भी जब तक हरे भरे रहेगे अजाब हल्का होगा और इनकी तस्बीह से मय्यत का दिल बहलता है ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 91/92*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 119)*_
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_*💦इस्तिन्जे के मुतअल्लिक मसाइल💦*_
_*📖मसअला : - जब आदमी पाखाने को जाये तो मुस्तहब है कि पाखाने से बाहर यह पढ़ ले :*_
بِسْمِ اللّٰهِ اللّٰہُمَّ اِنِّیْ اَعُوْذُ بِکَ مِنَلْخُبُثِ وَالْخَبَائِثِ
_*बिस्मिल्लाहि अल्लाहुम्मा इन्नी अऊजु बिका मिनल खुबसि बल खबाइसि*_
_*📝तर्जमा - " ऐ अल्लाह मैं तेरी पनाह माँगता हूँ नापाकी और शैतानों से " । फिर बायाँ पाँव दाखिल करे और निकलते वक़्त पहले दाहिना पैर बाहर निकाले और बाहर निकल कर यह पढ़े :*_
غُفْرَا نَکَ اَللْحَمْدُ لِلّٰهِ الَّذِیْ اَذْھَبَ عَنِّیْ مَا یُؤْ ذِیْنِیْ وَاَمْسِکَ عَلَیَّ مَا یَنْفَعُنِیْ
_*गुफरानाका अल्लहम्दु लिल्ला हिल्लजी अजहबा अन्नी मा युअजीनी व अम सिक अलय्या मा यन फउनी*_
_*📝तर्जमा - " अल्लाह से मगफिरत का सवाल करता हूँ हम्द है अल्लाह के लिए उसने मेरे पेट से वह चीज निकाली जो मुझे तकलीफ देती और वह चीज रोकी जो मुझे नफा देगी ।*_
_*📖मसअला - पाखाना या पेशाब फिरते वक़्त या तहारत करने में या किसी वक़्त शर्मगाह खुली हो तो न किब्ले की तरफ मुंह हों और न पीठ हो और यह आम हुक्म है चाहे मकान के अन्दर हो या मैदान में अगर भूल से किब्ले की तरफ मुँह , पीट कर के बैठ गया तो याद आते ही फौरन रूख बदल दे कि इस में उम्मीद है कि फौरन उस के लिये मगफिरत कर दी जाये ।*_
_*📖मसअला - बच्चे को पाखाना पेशाब फिराने वाले को मकरूह है कि उस बच्चे का मुँह किब्ले को हो यह फिराने वाला गुनाह गार होगा ।*_
_*📖मसअला : - पाखाना पेशाब करते वक़्त सूरज और चाँद की तरफन मुंह हो न पीठ । ऐसे ही हवा के रुख पेशाब करना मना है ।*_
_*📖मसअला : - कुँए हौज या चश्में के किनारे या पानी में अगर्चे बहता हुआ हो या घाट पर या फलदार पेड़ के नीचे या उस खेत में जिस में खेती मौजद हो या साये में जहाँ लोग उठते बैठते हो या मस्जिद या ईदगाह के करीब में या कब्रिस्तान या रास्ते में या जिस जगह पर मवेशी बंधे हो इन सब जगह में पेशाब पाखाना मकरूह है यूँ ही जिस जगह वुजू या गस्ल किया जाता हो वहाँ पेशाब करना मकरूह है ।*_
_*📖मसअला : - खुद नीची जगह बैठना और पेशाब की धार ऊँची जगह गिरना यह मना ।*_
_*📖मसअला : - ऐसी सख्त ज़मीन पर जिस से पेशाब की छींटे उड़ कर आयें पेशाब करना मना है ऐसी जगह को कुरेद कर नर्म कर लेना चाहिये या गढ्ढा खोद कर पेशाब करना चाहिए ।*_
_*📖मसअला : - खड़े हो कर या लेट कर या नंगे हो कर पेशाब करना मकरूह है ।*_
_*📖मसअला : - नंगे सर पाखाना पेशाब को जाना या अपने साथ कोई ऐसी चीज ले जाना जिस पर कोई दुआ या अल्लाह और रसूल या किसी बुजुर्ग का नाम लिखा हो मना है युही बात करना भी मकरूह है ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 92/93*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 120)*_
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_*💦इस्तिन्जे के मुतअल्लिक मसाइल💦*_
_*📖मसअला : - आगे या पीछे से जब नजासत निकले तो ढेलों से इस्तिन्जा करना सुन्नत है और अगर सिर्फ पानी ही से धोलिया तो भी जाइज़ है मगर मुस्तहब यह है कि ढेले लेने के बाद पानी से धोये ।*_
_*📖मसअला : - आगे और पीछे से पेशाब और पाखाने के सिवा कोई और नजासत जैसे खून पीप वगैरा निकले या उस जगह बाहर से कोई नजासत लग जाये तो भी ढेले से साफ कर लेने से तहारत हो जायेगी जबकि उस जगह से अलग न हो मगर धो डालना मुस्तहब है ।*_
_*📖मसअला : - ढेलों की कोई मुकर्रर गिन्ती सुन्नत नहीं बल्कि जितने से सफाई हो जाये तो अगर एक से सफाई होगई तो सुन्नत अदा होगई और अगर तीन ढेले लिए और फिर सफाई न हुई तो सुन्नत अदा न होगी । अलबत्ता मुस्तहब यह है कि ढेले ताक ( विषम ) हों और कम से कम तीन हों तो अगर एक या दो से सफाई हो जाये तो तीन की गिन्ती पूरी कर ले और अगर चार से सफाई हो जाये तो एक और बढ़ा ले कि ताक ढेले हो जायें ।*_
_*📖मसअला : - ढेलों से पाकी उस वक़्त होगी कि नजासत से नजासत निकलने की जगह या उस के आसपास की जगह एक दिरहम से ज़्यादा न सनी हो और अगर एक दिरहम से ज़्यादा सन जाये तो धोना फर्ज है मगर ढेले लेना अब भी सुन्नत है ।*_
_*📖मसअला : - कंकर पत्थर और फटा हुआ कपड़ा यह सब ढेले के हुक्म में है इन से भी साफ करना जाइज़ है मकरूह नहीं । दीवार से भी इस्तिन्ज़ा सुखाया जा सकता है मगर बशर्ते कि वह दूसरे की दीवार न हो । अगर दीवार दूसरे की हो या वक्फ हो तो उससे इस्तिन्जा करना मकरूह है और अगर कर लिया तो पाकी हासिल हो जायेगी । अगर किसी के पास किराये का मकान है ता उसकी दीवार से इस्तिन्जा सुखा सकता है ।*_
_*📖मसअला : - पराई दीवार से इस्तिन्जे के ढेले लेना जाइज़ नहीं अगर्चे वह मकान उसके किराये में हो ।*_
_*📖मसअला : - हड्डी , और खाने और गोबर , पक्की ईट , ठीकरी , शीशा , कोयला , जानवर के चार " और ऐसी चीज़ से जिसकी कुछ कीमत हो अगर्चे एक आध पैसा हो इन चीजों से इस्तिन्जा किया मकरूह है ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 94*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 121)*_
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_*💦इस्तिन्जे के मुतअल्लिक मसाइल💦*_
_*📖मसअला : - कागज से इस्तिन्जा मना है अगरचे उस पर कुछ लिखा न हो या अबूजहल ऐसे काफ़िर का नाम लिखा हो ।*_
_*📖मसअला : - दाहिने हाथ से इस्तिन्जा करना मकरूह है अगर किसी का बायाँ हाथ बेकार हो गया हो तो उसके लिए दाहिने हाथ से इस्तिन्जा करना जाइज़ है ।*_
_*📖मसअला : - पेशाब के आले को दाहिने हाथ से छूना या दाहिने हाथ में ढेला लेकर उससे इस्तिन्जा करना मकरूह है जिस ढेले से एक बार इस्तिन्जा कर लिया उसे दोबारा काम में लाना मकरूह है मगर दूसरी करवट उसकी साफ हो तो उससे कर सकते हैं ।*_
_*📖मसअला : - पाखाने के बाद मर्द के लिये ढेलों के इस्तेमाल का मुस्तहब तरीका यह है कि गर्मी के मौसम में पहला ढेला आगे से पीछे को ले जाये और दूसरा पीछे से आगे की तरफ और तीसरा आगे से पीछे की तरफ ले जाये । और जाड़ों में पहला पीछे से आगे को और दूसरा आगे से पीछे को और तीसरा पीछे से आगे को ले जाए ।*_
_*📖मसअला : - औरत पाखाने के बाद हर ज़माने में उसी तरह ढेले से इस्तिन्जा करे जैसे मर्दो के लिए गर्मियों में हुक्म है ।*_
_*📖मसअला : - पाक ढेले दाहिनी जानिब रखना और काम में लाने के बाद बाई तरफ इस तरह पर डाल देना कि जिस रूख में नजासत लगी हो नीचे हो मुस्तहब है ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 95*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 122)*_
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_*💦इस्तिन्जे के मुतअल्लिक मसाइल💦*_
_*📖मसअला : - पेशाब के बाद जिसको यह शक हो कि कोई कतरा बाकी रह गया या पेशाब फिर आयेगा तो उस पर इस्तिबरा करना यानी पेशाब के बाद ऐसा काम करना कि अगर कतरा रूका हो तो गिर जाये वाजिब है । भी इस्तिबरा टहलने से होता है या जमीन पर जोर से पाँव मारने या दाहिने पाँव को बायें या बायें को दाहिने पर रख कर ज़ोर करने या ऊँचाई से नीचे उतरने या नीचे से बलन्दी पर चढ़ने या खंकारने या बाई करवट पर लेटने से होता है और इस्तिबरा उस वक़्त तक करें कि दिल को इत्मिनान हो जाये । टहलने की मिकदार कुछ आलिमों ने चालीस कदम रखी है मगर सही यह है कि जितने में इत्मिनान हो जाये । इस्तिबरा का हुक्म मर्दो के लिये है औरत फारिग होने के बाद थोड़ी देर ठहरे फिर धो ले । पाखाने के बाद पानी से इस्तिन्जा का मुस्तहब तरीका यह है कि फैल कर बैठे और धीरे धीरे पानी डाले और उंगलियों के पेट से धोये उंगलियों का सिरा न लगे और पहले बीच की उंगली ऊँची रखे फिर जो उससे मिली है उसके बाद छंगुलिया ऊँची रखे और खूब मुबालगा के साथ ( खूब अच्छी तरह ) धोये । तीन उंगलियों से ज़्यादा से तहारत न करे और आहिस्ता - आहिस्ता मले यहाँ तक कि चिकनाई जाती रहे ।*_
_*📖मसअला : - हथेली से धोने से भी तहारत हो जायेगी ।*_
_*📖मसअला : - औरत हथेली से धोये और मर्द के मुकाबिले में ज्यादा फैल कर बैठे । तहारत के बाद हाथ पाक हो गये मगर धो लेना बल्कि मिट्टी लगाकर धोना मुस्तहब है । जाड़ों में गर्मियों के मुकाबले खूब धोये और अगर जाड़ों में गर्म पानी से इस्तिन्जा करे तो उसी कद्र मुबालगा करे जितना गर्मियों में मगर गर्म पानी से इस्तिन्जा ( तहारत करने ) में उतना सवाब नहीं जितना ठंडे पानी से और गर्म पानी से बीमारी का भी खतरा है ।*_
_*📖मसअला : - रोजे के दिनों में न ज्यादा फैल कर बैठे और न मुबालगा ( धोने में ज्यादती ) करे ।*_
_*📖मसअला : - मर्द लुंजा हो तो उसकी बीवी इस्तिन्जा करा दे और औरत ऐसी हो तो उसका शौहर और बीवी न हो या औरत के शौहर न हो तो किसी और रिश्तेदार बेटा बेटी भाई बहन से ही नहीं करा सकते माफ है ।*_
_*📖मसअला : - जमजम शरीफ से इस्तिन्जा पाक करना मकरूह है और ढेला न लिया हो तो नाजाइज़ ।*_
_*📖मसअला : - वुजू के बचे हुये पानी से तहारत करना अच्छा नहीं है ।*_
_*📖मसअला : - इस्तिन्जे के बचे हुये पानी से वुजू कर सकते हैं उस पानी को कुछ लोग फेंक देते हैं फेंकना नहीं चाहिए फेंकना फुजूलखर्ची है ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 95/96*_
_*📮बहारे शरिअत हिस्सा 2 खत्म हुआ इंशा'अल्लाह अब हिस्सा 3 से पोस्ट शुरुआत करेंगे*_