_*वुज़ू का बयान*_
―――――――――――――――――――――
_*वुज़ू में 4 फ़र्ज़ हैं*_
*_1. मुंह धोना,यानि पेशानी से थोड़ी तक,एक कान से दूसरे कान तक_*
*_2. नाख़ून से कुहनी तक दोनों हाथ धोना_*
*_3. चौथाई सर का मसह करना_*
*_4. गट्टो तक दोनों पैर धोना_*
*_धोने का मतलब ये कि हर जगह कम से कम 2 बूंद पानी बह जाये,वरना वुज़ू न होगा_*
_*वुज़ू की सुन्नते*_
_*! नियत करना*_
_*! बिस्मिल्लाह शरीफ पढ़ना*_
_*! गट्टो तक हाथ धोना*_
_*! मिस्वाक करना*_
_*! कुल्ली करना*_
_*! नाक में पानी डालना*_
_*! नाक साफ़ करना*_
_*! दाढ़ी व उंगलियों का ख़िलाल करना*_
_*! हर उज़ू को 3 बार धोना*_
_*! पूरे सर का 1 बार मसह करना*_
_*! तरतीब से वुज़ू करना*_
_*! हर हिस्से को लगातार धोना*_
_*! कानों का मसह करना*_
_*! हर मकरूहात से बचना*_
_*वुज़ू के मकरूहात*_
_*! औरत के वुज़ू या गुस्ल के बचे हुए पानी से वुज़ू या गुस्ल करना*_
_*! नजिस जगह बैठना*_
_*! मस्जिद के अन्दर वुज़ू का पानी टपकाना*_
_*! पानी के बरतन में आज़ाये वुज़ू का पानी टपकाना*_
_*! क़िब्ला की तरफ़ थूकना या नाक सिनकना*_
_*! बिला ज़रूरत दुनिया की बात करना*_
_*! ज़्यादा पानी खर्च करना*_
_*! इत्ना कम पानी खर्च करना कि सुन्नत भी अदा ना हो*_
_*! एक हाथ से मुंह धोना*_
_*! गले का मसह करना*_
_*! बायें हाथ से कुल्ली करना और दायें हाथ से नाक साफ़ करना*_
_*! धूप के गर्म पानी से वुज़ू करना*_
_*वुज़ू इन बातों से टूटता है*_
_*! पेशाब-पाखाना-मनी-मज़ी-कीड़ा या कुछ भी आगे या पीछे के मक़ाम से निकला या हवा ख़ारिज की*_
_*! जो जगह गुस्ल मे धोना फ़र्ज़ है वहां से खून या पीप का बहना*_
_*! दुखती आंख से पानी का बहना*_
_*! मुंह भरके उल्टी होना*_
_*! सो जाना*_
_*! बेहोशी*_
_*! नमाज़ में आवाज़ से हंसना*_
_*! थूक में खून का ग़ालिब आना*_
_*! इतना नशा होना कि लड़खड़ाये*_
_*कुछ मसायल*_
_*मसअला*_
*_अवाम में जो ये मशहूर है कि घुटना खुल जाने या अपना या पराया सतर देखने से वुज़ू टूट जाता है ये बे अस्ल बात है,हां नाफ़ से लेकर घुटनो तक ग़ैर के सामने खोलना हराम है_*
_*मसअला*_
*_बैठे बैठे ऊंघने से वुज़ू नहीं टूटता_*
_*मसअला*_
*_युंहि बैठे हुए ऊंघ रहा था और गिर पड़ा मगर फ़ौरन आंख खुल गई तो वुज़ू नहीं गया_*
_*मसअला*_
*_विल्हान एक शैतान का नाम है जो वुज़ू में वस्वसे पैदा करता है कि फलां उज़ू धोया कि नहीं धोया, अगर पहली बार ऐसा हुआ है तो धो लें और अगर हमेशा ऐसा होता है तो बिलकुल उसकी तरफ़ तवज्जह न दें कि उसकी तरफ़ तवज्जह करना भी एक वस्वसा ही है_*
_*मसअला*_
*_जो बा वुज़ू था उसे अब शक हुआ कि वुज़ू है कि नहीं तो शक़ से वुज़ू नहीं टूटता,उसका वुज़ू बाकी है_*
_*मसअला*_
*_मियानी में तरी देखी कि पानी है या पेशाब, तो अगर उम्र का ये पहला वाक़या है तो धोकर वुज़ू करलें, और अगर बारहा ऐसा होता है तो ये एक शैतानी वस्वसा है, उसपर ध्यान न दें_*
_*मसअला*_
*_आखें या होंट इतनी ज़ोर से बंद कर लेना कि कुछ हिस्सा धुलने से बाकी रह गया तो वुज़ू ही ना हुआ_*
_*📕 बहारे शरीयत, हिस्सा 2, सफ़ह 9-30*_
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_*वुज़ू में 4 फ़र्ज़ हैं*_
*_1. मुंह धोना,यानि पेशानी से थोड़ी तक,एक कान से दूसरे कान तक_*
*_2. नाख़ून से कुहनी तक दोनों हाथ धोना_*
*_3. चौथाई सर का मसह करना_*
*_4. गट्टो तक दोनों पैर धोना_*
*_धोने का मतलब ये कि हर जगह कम से कम 2 बूंद पानी बह जाये,वरना वुज़ू न होगा_*
_*वुज़ू की सुन्नते*_
_*! नियत करना*_
_*! बिस्मिल्लाह शरीफ पढ़ना*_
_*! गट्टो तक हाथ धोना*_
_*! मिस्वाक करना*_
_*! कुल्ली करना*_
_*! नाक में पानी डालना*_
_*! नाक साफ़ करना*_
_*! दाढ़ी व उंगलियों का ख़िलाल करना*_
_*! हर उज़ू को 3 बार धोना*_
_*! पूरे सर का 1 बार मसह करना*_
_*! तरतीब से वुज़ू करना*_
_*! हर हिस्से को लगातार धोना*_
_*! कानों का मसह करना*_
_*! हर मकरूहात से बचना*_
_*वुज़ू के मकरूहात*_
_*! औरत के वुज़ू या गुस्ल के बचे हुए पानी से वुज़ू या गुस्ल करना*_
_*! नजिस जगह बैठना*_
_*! मस्जिद के अन्दर वुज़ू का पानी टपकाना*_
_*! पानी के बरतन में आज़ाये वुज़ू का पानी टपकाना*_
_*! क़िब्ला की तरफ़ थूकना या नाक सिनकना*_
_*! बिला ज़रूरत दुनिया की बात करना*_
_*! ज़्यादा पानी खर्च करना*_
_*! इत्ना कम पानी खर्च करना कि सुन्नत भी अदा ना हो*_
_*! एक हाथ से मुंह धोना*_
_*! गले का मसह करना*_
_*! बायें हाथ से कुल्ली करना और दायें हाथ से नाक साफ़ करना*_
_*! धूप के गर्म पानी से वुज़ू करना*_
_*वुज़ू इन बातों से टूटता है*_
_*! पेशाब-पाखाना-मनी-मज़ी-कीड़ा या कुछ भी आगे या पीछे के मक़ाम से निकला या हवा ख़ारिज की*_
_*! जो जगह गुस्ल मे धोना फ़र्ज़ है वहां से खून या पीप का बहना*_
_*! दुखती आंख से पानी का बहना*_
_*! मुंह भरके उल्टी होना*_
_*! सो जाना*_
_*! बेहोशी*_
_*! नमाज़ में आवाज़ से हंसना*_
_*! थूक में खून का ग़ालिब आना*_
_*! इतना नशा होना कि लड़खड़ाये*_
_*कुछ मसायल*_
_*मसअला*_
*_अवाम में जो ये मशहूर है कि घुटना खुल जाने या अपना या पराया सतर देखने से वुज़ू टूट जाता है ये बे अस्ल बात है,हां नाफ़ से लेकर घुटनो तक ग़ैर के सामने खोलना हराम है_*
_*मसअला*_
*_बैठे बैठे ऊंघने से वुज़ू नहीं टूटता_*
_*मसअला*_
*_युंहि बैठे हुए ऊंघ रहा था और गिर पड़ा मगर फ़ौरन आंख खुल गई तो वुज़ू नहीं गया_*
_*मसअला*_
*_विल्हान एक शैतान का नाम है जो वुज़ू में वस्वसे पैदा करता है कि फलां उज़ू धोया कि नहीं धोया, अगर पहली बार ऐसा हुआ है तो धो लें और अगर हमेशा ऐसा होता है तो बिलकुल उसकी तरफ़ तवज्जह न दें कि उसकी तरफ़ तवज्जह करना भी एक वस्वसा ही है_*
_*मसअला*_
*_जो बा वुज़ू था उसे अब शक हुआ कि वुज़ू है कि नहीं तो शक़ से वुज़ू नहीं टूटता,उसका वुज़ू बाकी है_*
_*मसअला*_
*_मियानी में तरी देखी कि पानी है या पेशाब, तो अगर उम्र का ये पहला वाक़या है तो धोकर वुज़ू करलें, और अगर बारहा ऐसा होता है तो ये एक शैतानी वस्वसा है, उसपर ध्यान न दें_*
_*मसअला*_
*_आखें या होंट इतनी ज़ोर से बंद कर लेना कि कुछ हिस्सा धुलने से बाकी रह गया तो वुज़ू ही ना हुआ_*
_*📕 बहारे शरीयत, हिस्सा 2, सफ़ह 9-30*_
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_*🚿 ग़ुस्ल*_
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_*ग़ुस्ल इन 5 बातों से फ़र्ज़ होता है*_
*_1. मनी का शहवत के साथ निकलना ( चाहे माज़ अल्लाह हाथ से निकाले )_*
*_2. एहतेलाम यानि Nightfall हो_*
*_3. सोहबत करने से_*
*_4. हैज़ (M.C.) के बाद_*
*_5. निफ़ास (बच्चे की पैदाइश के बाद)_*
*_इसके अलावा कैसी ही नजासत लगे, क़तरा गिरे, उसका धोना फ़र्ज़ है,ग़ुस्ल फ़र्ज़ नहीं_*
_*ग़ुस्ल में 3 फ़र्ज़ है*_
*_1. कुल्ली इस तरह करना की होंट से हलक़ तक दांतो की सारी जड़ में पानी पहुंच जाये_*
*_2. नाक की नर्म हड्डी तक पानी चढ़ाना_*
*_3. सर से लेकर पैर तक ऐसा पानी बहाना कि 1 बाल बराबर जगह भी सुखी न रहे, इन तीनो में से कुछ भी छूटा तो हरगिज़ ग़ुस्ल नहीं होगा और जब गुस्ल नहीं हुआ तो वुज़ु नहीं होगा और जब वुज़ु नहीं होगा तो नमाज़ कहां से होगी_*
_*ग़ुस्ल की सुन्नते*_
_*! नियत करना*_
_*! दोनों हाथ गट्टो तक धोना*_
_*! इस्तिन्जा की जगह या कहीं नजासत लगी हो तो पहले उसे धोना*_
_*! वुज़ू करना*_
_*! बदन पे पानी मलना*_
_*! 3 बार दाए कंधों पर 3 बार बाएं कंधों पर फिर सर से पानी डालना*_
_*! किबला रुख न होना*_
_*! ऐसी जगह नहांये की कोई ना देखे*_
_*! नहाते हुए बात या कोई दुआ न पढ़े*_
_*📝 मसअला*_
*_अगर पेशाब के साथ मनी के कुछ कतरात आ जाये तो गुस्ल फ़र्ज़ नहीं_*
_*📝 मसअला*_
*_युंहि अगर बिला शहवत मनी के कुछ कतरे निकल आये तो वुज़ु टूट जायेगा मगर गुस्ल फ़र्ज़ नहीं_*
_*📝 मसअला*_
*_अगर ख्वाब याद है मगर कपड़ों पर कुछ असरात मनी के मौजूद नहीं तो गुस्ल फ़र्ज़ नहीं_*
_*📝 मसअला*_
*_और अगर कपड़ों पर मनी या मज़ी के निशान है और ख्वाब याद नहीं तो गुस्ल फ़र्ज़ है_*
_*📝 मसअला*_
*_जिनपर गुस्ल फ़र्ज़ है उनको मस्जिद मे जाना, क़ुरान मजीद छूना, ज़बान से क़ुरान की आयत पढ़ना, किसी आयत का लिखना हराम है युंहि क़ुरान की नुक़ूश वाली अगूठी पहन्ना भी_*
_*📝 मसअला*_
*_जिनपर गुस्ल फ़र्ज़ है अगर उन्होने हाथ धोने से पहले किसी बाल्टी या टब में हाथ डाल दिया बल्कि सिर्फ नाखून ही डुबो दिया तो सारा पानी मुशतमिल हो गया अब उससे गुस्ल या वुज़ू कुछ नहीं हो सकता,इस बात का खयाल रखें_*
*_अगर कोई गुस्ल खाने मे बरहना होकर नहाता है और नहाने से पहले या बाद को कुल्ली करता और नाक में पानी चढ़ा लेता है,उसका गुस्ल हो गया और जिसने गुस्ल कर लिया उसका वुज़ू भी हो गया_*
_*📕 बहारे शरीयत, हिस्सा 2, सफ़ह 30-43*_
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_*चुगलखोर*_
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_*चुगलखोर वो शख्स होता है जो लोगों के दर्मियान दुश्मनी लगाने के लिए एक दूसरे तक बातें पहुंचाता है और ये मुत्तफिक है कि चुगली करना हराम है*_
_*चुगलखोर जन्नत में नहीं जायेगा*_
_*📕 मुस्लिम, जिल्द 1, सफह 70*_
_*दुनिया में जो शख्स 2 ज़बानों वाला होगा यानि चुगलखोर तो क़यामत के दिन मौला उसके मुंह में आग की 2 ज़बान लगा देगा*_
_*📕 अत्तर्गीब वत्तर्हीब, जिल्द 3, सफह 604*_
_*बदतरीन हैं वो लोग जो दोस्तों के दरमियान चुगली करके जुदाई डालते फिरते हैं*_
_*📕 अनवारुल हदीस, सफह 415*_
_*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का गुज़र दो क़ब्रो पर हुआ तो आपने फरमाया कि इन दोनों पर अज़ाब हो रहा है और किसी बड़े गुनाह की वजह से नहीं बल्कि मामूली गुनाह की वजह से,एक तो पेशाब की छींटों से नहीं बचता था और दूसरा चुगली करता था, फिर आपने एक तर शाख तोड़ी और आधी आधी करके दोनो क़ब्रों पर रख दी और फरमाया कि जब तक ये शाखें तर रहेगी तस्बीह करती रहेगी जिससे कि मय्यत के अज़ाब में कमी होगी*_
_*📕 बुखारी, जिल्द 1, सफह 34*_
_*इससे कई बातें साबित हुई पहली तो ये कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ग़ैब दां हैं जब ही तो क़ब्र के अन्दर का अज़ाब देख लिया और दूसरी ये कि जब शाख क़ब्र पर रखी जा सकती है तो फूल भी उसी किस्म से है लिहाज़ा कब्र पर फूल डालना भी साबित हुआ और तीसरी ये कि जब तर शाख की तस्बीह से अज़ाब में कमी हो सकती है तो फिर मुसलमान अगर अपने मरहूम के ईसाले सवाब के लिए क़ुर्आन पढ़कर बख्शे तो क्योंकर मुर्दों पर से अज़ाब ना हटेगा और चौथी ये भी कि चुगली करना और पेशाब की छींटों से ना बचना अज़ाबे क़ब्र का बाईस बन सकता है लिहाज़ा इनसे बचें*_
_*हिकायत*_
_*एक ग़ुलाम को ये कहकर बेचा जा रहा था कि इसके अन्दर सिवाये चुगली करने के कोई भी ऐब नहीं है, पस एक शख्स ने उसे खरीद लिया कि चुगली करना कोई बड़ा ऐब थोड़ी है, एक दिन ग़ुलाम अपने मालिक के पास पहुंचा और कहने लगा कि आज मैंने बेगम साहिबा को किसी गैर मर्द से बातें करते हुए सुना और वो दोनों आपके क़त्ल की तैयारी में लगे हैं, ये सुनकर शौहर बड़ा घबराया और अपनी बीवी से खिंचा खिंचा सा रहने लगा, फिर कुछ दिन बाद ये बेगम साहिबा से कहने लगा कि आपके मियां के किसी दूसरी औरत से भी ताल्लुकात हैं और वो उससे शादी करना चाहते हैं इसी लिए वो आपसे दूर दूर रहने लगे हैं, फिर बोला कि मैं एक बुज़ुर्ग को जानता हूं जो आपकी मदद कर सकते हैं मगर उसके लिए आपको अपने मियां की दाढ़ी से एक बाल काटकर मुझे देना होगा, एक उस्तरा उसे देते हुए कहा कि बेहतर है कि आज रात ही ये काम कर लीजिये औरत तैयार हो गयी, उधर ये शौहर के पास पहुंचा और कहा कि आज रात आपकी बीवी आपका काम तमाम करने वाली है होशियार रहियेगा मैंने उनके पास उस्तरा देखा है, खैर रात हुई मियां ने आंख बंद करके सोने का नाटक किया जब औरत को ये एहसास हुआ कि मेरा शौहर सो गया है तो उसकी दाढ़ी का बाल काटने के लिए जैसे ही उस्तरा लेकर क़रीब आई फौरन मियां ने आंखें खोली और उस्तरा छीनकर उसी को क़त्ल कर डाला, सुबह को जब औरत के घर वालों को खबर हुई तो उन्होंने घर पर धावा बोला और उसके आदमी को क़त्ल कर दिया*_
_*📕 किताबुल कबायेर, सफह 271*_
_*📕 शैतान की हिकायत, सफह 137*_
_*ये होता है चुगली करने का अंजाम कि एक हंसता खेलता परिवार आन की आन में तबाहो बर्बाद हो गया, लिहाज़ा हर सुनी सुनाई बात को बयान करना सख्त बुरा है और उस पर यक़ीन करना बिल्कुल मुनासिब नहीं है जब तक कि तहक़ीक़ ना कर लें, अब जब बात सुनी सुनाई बात पर आ ही गई है तो एक बात और कह दूं आज कल सोशल मीडिया पर इस क़दर जिहालत फैलाई जा रही है कि जिसकी कोई हद नहीं और कहीं ना कहीं इसमें हम और आप ही ज़िम्मेदार हैं, जब भी कोई नफ़्ल रोज़ा रखने का महीना आता है तो ये मैसेज ज़रूर आता है कि ये रोज़ा रखने पर 2 साल का सवाब और किसी को बताने पर 80 साल का सवाब माज़ अल्लाह, जान लीजिये कि ये मैसेज ज़रूर ज़रूर ज़रूर किसी मरदूद लाअनती का बनाया हुआ है जो ये चाहता है कि लोग इबादत से गाफिल हो जायें और सिर्फ नेट पर बैठकर अपना टाइम खराब करते रहे वरना एक मुसलमान ये सोच भी नहीं सकता कि खुद इबादत ना करे और सिर्फ किसी दुसरे को वही इबादत की तलक़ीन करदे तो उससे ज़्यादा सवाब मिलेगा, मगर हाय रे आज के जाहिल मुसलमानों की अक्ल जैसे ही कोई मैसेज आया लगे तुरंत उसको फारवर्ड करने ये भी नहीं सोचते कि पहले इसकी तहक़ीक़ तो कर लें कि ये बात सही भी है या नहीं, खुद मेरे पास पर्सनल में यही मैसेज आशूरह के तअल्लुक़ से सैकड़ो की गिनती से आये हैं अब क्या कहूं लोगों को, मेरे भाई दीनी बात शेयर करना अच्छा है मगर वही जो सही है हर गलत सलत बात किसी को बताने से सवाब नहीं मिलता उल्टा गुनाह मिलता है और कहीं माज़ अल्लाह अगर वो बात गुमराही की हुई तो आप गुमराह हुए और कुफ्र तक पहुंच गई तो आपका ईमान खतरे में आ गया लिहाज़ा हर मैसेज को शेयर करना बिल्कुल भी अच्छा नहीं है*_
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
_*जज़ाक अल्लाहु ख़ैर*_
―――――――――――――――――――――
_*👉🏻जो लोगों का शुक्र अदा नही करता वह अल्लाह का भी शुक्र अदा नही करता ।*_
_*📕 तिर्मिज़ी: 1954*_
_*जिस शख़्स के साथ एहसान किया जाए और वह एहसान करने वाले के हक़ मे यह कहे: जज़ाक अल्लाहु ख़ैर (अल्लाह तुझे जज़ाऐ ख़ैर दे) तो उसने एहसान करने वाले की पुरी तारीफ़ कर दी ।*_
_*📕 तिर्मिज़ी: 2035*_
_*और एक से ज़्यादा एहसान करने वाले हो तो*_
_*कहे: जज़ाकुम अल्लाहु ख़ैर (अल्लाह तुम्हे जज़ाऐ ख़ैर दे)*_
_*📕 इब़्न हब्बान: 7277*_
_*जिस को जज़ाक अल्लाहु ख़ैर कहा जाए वह जवाब मे कहे: व अंतुम फ़ा जज़ाकुम अल्लाहु ख़ैर (और तुम्हे भी अल्लाह जज़ाऐ ख़ैर दे) ।*_
_*📕 इब़्न हब्बान: 6231*_
_*(जज़ाक अल्लाहु ख़ैर = Jazak Allahu Khair)*_
_*(जज़ाकुम अल्लाहु ख़ैर = Jazakum Allahu Khair)*_
_*व अंतुम फ़ा जज़ाकुम अल्लाहु ख़ैर = Wa Antum Fa Jazakumullahu Khair)*_
_*⛔ याद रखो... Thank You, Ok, कहने से कुछ नही मिलता मगर Jazak Allahu Khair / Jazakum Allahu Khair कहने से एक सुन्नत पर अमल हो जाता है...*_
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_*💫एक जन्तर मन्तर से इलाज करने वाला*_
―――――――――――――――――――――
_*कबीलाऐ अज्दशनवत मे एक शख्स था।जिसका नाम जमाद था वो अपने जन्तर मन्तर से लोगों के जिन्न भूत वगेरा के साए उतारा करता था।एक मर्तबा वो मक्का मोअज्जमा में आया तो बाज लोगों को ये कहते सुना के मोहम्मद को जिन्न का साया है या जुनून (मआज अल्लाह) जमाद ने कहा मै ऐसे बीमारो का इलाज अपने जन्तर मन्तर से कर लेता हूँ।मुझे दिखाओ वो कहाँ है..? वो उसे हुजूर के पास ले। जमाद जब हुजूर के पास बैठा तो हुजूर ने फरमाया-जमाद ! अपने जन्तर मन्तर फिर सुनाना पहले मेरा कलाम सुनो। चुनाँचे आपने अपनी जबाने हक से ये खुत्बा पढ़ना शुरू किया-*_
_*"अल्हम्दुल्लाही नहमदहू व नसंतईनुहू व नसतगफिरहू व नोअमिनू बिहि व नतावक्कलु अलेहि व नऊजूबिल्लाही मिन शुरूरी अनफुसिना व मिन सय्यीआती अआमालिना मंयहदीहील्लाह फला मुजिल्ल-ललाहू वमंय-युजलिलहू फला हादीयलाहू व अशहद अन्ला-ईलाहा इल-लल्लाहू वहदाहू लाशरीकलाहू व अशहदु अन्ना मोहम्मदन अब्दुहू व रसूलुहू"*_
_*जमाद ने ये खुत्बाऐ मुबारका सुना तो मबहूत रह गया और अर्ज करने लगा हुजूर! एक बार फिर पढिए।हुजूर ने फिर यहीं खुत्बा पढ़ा। अब जमाद (वो जमाद जो साया उतारने आया था उसका अपना सायाऐ कुफ्र उतरता है देखिये) ना रह सका और बोला:-*_
_*"खुदा की कसम ! मैंने कई काहिनों, साहिरो और शायरों की बातें सुनी लेकिन जो आपसे मैंने सुना है ये तो मुअनन एक बहेरे जखार हैं अपना हाथ बढाईए! मैं आपकी बैअत करता हूँ। ये कहकर मुसलमान हो गया और जो लोगों उसे इलाज करने के लिए लाए थे हैरान व परेशान वापस फिरे"*_
_*📝सबक - हमारे हुजूर सल-लल्लाहो ताला अलेह व सल्लम की जबाने हक तर्जुमान मे वो तासीर पाक थी के बड़े बड़े संग दिल मोम हो जाते थे। और ये भी मालूम हुआ के हमारे हुजूर को जो लोग साहिर व मजर्नृ कहते थे दरअसल वो खूद मजनून थे।इसी तरह आज भी जो शख्स हुजूर के इल्म व इख्यितार और आपके नूरे जमाल का इंकार करता है वो दरअसल खूद ही जाहिल, सियार दिल और सियाह रू है।*_
_*📕 मुस्लिम सफा 320, जिल्द 1*_
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
_*ज़बान की हिफाज़त*_
―――――――――――――――――――――
_*हज़रत माज़ बिन जबल रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि ऐ माज़ क्या तुझे सारे उमूर की असल ना बताऊं फिर आपने अपनी ज़बान को पकड़कर फ़रमाया कि इसकी हिफाज़त कर लोगों को जहन्नम में उनकी ज़बान की ग़ुफ्तुग़ू ही तो पहुंचाएगी*_
_*📕 मिश्क़ात, सफह 14*_
_*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि क़यामत के दिन उस शख्स का अंजाम सबसे बुरा होगा जिसको लोग उसकी बद कलामी की वजह से छोड़ देंगे*_
_*📕 अलइतहाफ, जिल्द 6, सफह 88*_
_*आक़ाए करीम सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जो दिन को रोज़ा रखे और रात भर नमाज़ पढ़े मगर उसकी ज़बान से लोग परेशान होते हों तो उसमें कोई भलाई नहीं बल्कि ये उसे जहन्नम में ले जायेगी*_
_*📕 अलमुस्तदरक, जिल्द 4, सफह 166*_
_*चुगलखोर का ठिकाना जहन्नम है*_
_*📕 मुस्लिम, जिल्द 1, सफह 70*_
_*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि मैंने एक क़ौम को देखा कि वो अपने नाखूनों से अपने चेहरे और सीनों को छील रहे थे ये वो लोग थे जो अपने भाई का गोश्त खाते हैं यानि ग़ीबत करते हैं*_
_*📕 अलइतहाफ, जिल्द 7, सफह 533*_
_*बेशक यही ज़बान है जिससे हम झूठ बोलते हैं, चुग़ली करते हैं, ग़ीबत करते हैं, गालियां बकते हैं, वादा करके तोड़ते हैं, बिला वजह कसमें खाते फिरते हैं, झूठी गवाही देते हैं, बोहतान तराशी करते हैं, एहसान करके जताते हैं,औलाद अपने मां-बाप की और औरतें अपने शौहरों की नाफ़रमानियां करती हैं गर्ज़ कि नाजायज़ों हराम व कुफ्रो शिर्क तक इसी ज़बान से बका जाता है, मुसलमानों के दिल को मुनव्वर करने का ये उसूल हमेशा याद रखें*_
_*! कम खाना*_
_*! कम सोना*_
_*! कम बोलना*_
_*! झूट से बिलकुल परहेज़ करना*_
_*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जो चुप रहा उसने निजात पाई*_
_*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जो चीज़ इंसान को जन्नत से ज़्यादा क़रीब करने वाली है वो तक़वा और अच्छा इख़लाक़ है*_
_*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जो ज़बान और शर्मगाह की हिफाज़त का ज़ामिन हो जाए मैं उसके लिए जन्नत का ज़ामिन हूं.!*_
_*📕 बहारे शरीयत, हिस्सा 16, सफह 138*_
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
*73 में से 1 हक़ पर कौन.?*_
―――――――――――――――――――――
_*हदीस - हज़रत इब्ने उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि मेरी उम्मत पर एक ज़माना ज़रूर ऐसा आयेगा जैसा कि बनी इस्राईल पर आया था बिल्कुल हु बहु एक दूसरे के मुताबिक, यहां तक कि बनी इस्राईल में से अगर किसी ने अपनी मां के साथ अलानिया बदफेअली की होगी तो मेरी उम्मत में ज़रूर कोई होगा जो ऐसा करेगा और बनी इस्राईल 72 मज़हबो में बट गए थे और मेरी उम्मत 73 मज़हबो में बट जायेगी उनमें एक मज़हब वालों के सिवा बाकी तमाम मज़ाहिब वाले नारी और जहन्नमी होंगे सहाबये किराम ने अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम वह एक मज़हब वाले कौन होंगे तो हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि वह लोग इसी मज़हबो मिल्लत पर कायम रहेंगे जिस पर मैं हूं और मेरे सहाबा हैं*_
_*📕 तिर्मिज़ी,हदीस नं 171*_
_*📕 अबु दाऊद,हदीस नं 4579*_
_*📕 इब्ने माजा,सफह 287*_
_*📕 मिश्कात,जिल्द 1,सफह 30*_
_*तशरीह - हज़रत शेख अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु इस हदीस शरीफ के तहत फरमाते हैं कि "निजात पाने वाला फिरक़ा अहले सुन्नत व जमाअत का है अगर ऐतराज़ करे कि कैसे नाजिया फिरक़ा अहले सुन्नत व जमाअत है और यही सीधी राह है और खुदाये तआला तक पहुंचाने वाली है और दूसरे सारे रास्ते जहन्नम के रास्ते हैं जबकि हर फिरक़ा दावा करता है कि वो राहे रास्त पर है और उसका मज़हब हक है तो इसका जवाब ये है कि ये ऐसी बात नहीं जो सिर्फ दावे से साबित हो जाये बल्कि इसके लिए ठोस दलील चाहिये, और अहले सुन्नत व जमाअत की हक़्क़ानियत की दलील ये है कि ये दीने इस्लाम हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से मन्क़ूल होकर हम तक पहुंचा है और अक़ायदे इस्लाम मालूम करने के लिए सिर्फ अक़्ल का ज़रिया काफी नहीं है, जबकि हमें अखबारे मुतवातिर से मालूम हुआ और आसारे सहाबा और अहादीसे करीमा की तलाश से यक़ीन हुआ कि सल्फ सालेहीन यानि सहाबा ताबईन और उनके बाद के तमाम बुज़ुर्गाने दीन इसी अक़ीदा और इसी तरीक़े पर रहे और अक़्वाले मज़ाहिब में बिदअत व नफसानियत ज़मानये अव्वल के बाद पैदा हुई, सहाब-ए किराम और सल्फ मुताक़द्देमीन यानि ताबईन तबअ ताबईन व मुज्तहेदीन में से कोई भी उस नए मज़हब पर नहीं थे उससे बेज़ार थे बल्कि नए मज़हब के ज़ाहिर होने पर मुहब्बत और उठने बैठने का जो लगाओ पहले क़ौम के साथ था वो तोड़ लिया और ज़बानो क़लम से उसका रद्द फरमाया*_
_*सियाह सित्तह व हदीस की दूसरी मुसतनद किताबों की जिन पर अहकामे इस्लाम का मदार व मबनी हुआ उसके मुहद्देसीन और हनफी शाफई मालिकी व हंबली के फुक़्हा व अइम्मा और उनके अलावा दूसरे उल्मा जो उनके तबक़े में थे सब इसी मज़हबे अहले सुन्नत व जमाअत पर क़ायम थे, इसके अलावा अशारिया व मातुरीदिया जो उसूले कलाम के अइम्मा हैं उन्होंने भी सल्फ के मज़हब यानि अहले सुन्नत व जमाअत की ताईद व हिमायत फरमाई और दलायले अक़्लिया से इसे साबित फरमाया और जिन बातों पर सुन्नते रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम और इजमाये सल्फ सालेहीन जारी रहा उसको ठोस क़रार दिया इसीलिए अशारिया और मातुरीदिया का नाम अहले सुन्नत व जमाअत पड़ा, अगर चे ये नाम नया है मगर मज़हबो एतेक़ाद उनका पुराना है और उनका तरीक़ा अहादीसे नब्वी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की इत्तेबा और सल्फ सालेहीन के अक़वाल व आमाल की इक़्तिदा करना है, सूफियाये किराम की निहायत क़ाबिल और एतेमाद किताब तअर्रुफ है जिसके बारे में सय्यदना शेख शहाब उद्दीन सुहरवर्दी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि अगर तअर्रुफ किताब ना होती तो हम लोग मसायल तसव्वुफ से नावाकिफ रह जाते, इस किताब में सूफियाये किराम के जो इजमाली अक़ायद बयान किये गए हैं वो सबके सब बिला कम वा कास्त अहले सुन्नत ही के अक़ायद हैं, हमारे इस बयान की सच्चाई ये है कि हदीस-तफ़्सीर-कलाम-फिक़ह-तसव्वुफ-सैर और तारीखे मोअतबर की किताबें जो भी मशरिक से लेकर मग़रिब तक के इलाके में मशहूर व मारूफ हैं उन सबको जमा किया जाये और उनकी छान-बीन की जाये और मुखालेफीन भी अपनी किताबें लायें ताकि आशकार हो जाये की हक़ीक़त हाल क्या है, खुलासये कलाम ये कि दीने इस्लाम में सवादे आज़म मज़हबे अहले सुन्नत व जमाअत ही है*_
_*📕 अशअतुल लमआत,जिल्द 1, सफह 140*_
_*ⓩ अब आज जो लोग सुन्नियों से ये कहते नज़र आते हैं कि क्यों फिरकों में मुसलमानो को उलझा रखा है दर असल वो जाहिल अहमक़ और बे ईमान किस्म के लोग हैं वरना ऐसी आफताब रौशन हदीस से रद्द गरदानी ना करते, ये फिरका सुन्नी नहीं बनाते बल्कि कुछ बे ईमान अहले सुन्नत व जमाअत से निकलकर एक अलग गुमराह जमाअत बना डालते हैं सुन्नी उसी की निशान देही कराता है, और फिरक़ा बनना तो हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के ज़मानये मुबारक में ही शुरू हो गया था कुछ बे ईमान मुसलमानों से अलग एक जमाअत बना चुके थे जिसे मुनाफिक़ कहा गया और उन मुनाफिक़ों के हक़ में कई आयतें नाज़िल हुई और कई हदीसे पाक मरवी है*_
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*_73 में से हक़ पर कौन_*
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*_कुछ लोगों को कुरान में किसी फिरके का नाम नहीं मिलता_*
*_उन्हें सबके सब मुस्लमान नज़र आते हैं_*
*_क्या वाकई सारे 73 फिरके वाले मुस्लमान हैं_*
*_आइये क़ुरान से पूछते है_*
*_अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त कुरान में फरमाता है_*
*_(1). ये गंवार कहते हैं की हम ईमान लाए, तुम फरमादो ईमान तो तुम न लाये, हाँ यूँ कहो की हम मुतिउल इस्लाम हुए, ईमान अभी तुम्हारे दिलों में कहाँ दाखिल हुआ_*
_*📕 पारा 26,सूरह हुजरात, आयत 14*_
*_(2). मुनाफेकींन जब तुम्हारे हुज़ूर हाज़िर होते हैं तो कहते हैं की हम गवाही देते हैं कि बेशक हुज़ूर यक़ीनन खुदा के रसूल हैं और अल्लाह खूब जानता है कि बेशक तुम ज़रूर उसके रसूल हो और अल्लाह गवाही देता है कि बेशक ये मुनाफ़िक़ ज़रूर झूठे हैं_*
_*📕 पारा 28,सूरह मुनाफेकूंन, आयत 1*_
*_(3). तो क्या अल्लाह के कलाम का कुछ हिस्सा मानते हो और कुछ हिस्सों के मुंकिर हो_*
_*📕 पारा 1,सूरह बकर, आयत 85*_
*_(4). इज़्ज़त तो अल्लाह उसके रसूल और मुसलमानो के लिए है और मुनाफ़िक़ों को खबर नहीं_*
_*📕 पारा 28,सूरह मुनाफेकूंन, आयत 8*_
*_(5). कहते हैं हम ईमान लाए अल्लाह और रसूल पर और हुक्म माना फिर कुछ उनमें के उसके बाद फिर जाते हैं और वो मुस्लमान नहीं_*
_*📕 पारा 18,सूरह नूर, आयत 47*_
*_लीजिये जनाब सब क़ुरान से साबित हो गया की मुस्लमान कोई और है काफिर कोई और और मुनाफ़िक़ कोई और, मुस्लमान और काफिर के बारे में तो जग ज़ाहिर है मगर मुनाफ़िक़ उसे कहते हैं की दिखने में मुस्लमान जैसा हो और काम से काफिर, जैसा की खुद मौला फरमाता है_*
*_(6). ये इसलिए की वो ज़बान से ईमान लाए और दिल से काफिर हुए तो उनके दिलों पर मुहर कर दी गयी तो वो अब कुछ नहीं समझते_*
_*📕 पारा 28,सूरह मुनाफेकूंन, आयत 3*_
*_वहाबी, कादियानी, खारजी, शिया, अहले हदीस, जमाते इस्लामी ये सब बदमजहब मुनाफ़िक़ ही हैं, और सब 72 फिर्को वाले ही हैं यानि हमेशा की जहन्नम वाले, ये मैं नहीं बल्कि खुद मौला फरमाँ रहा है_*
*_(7). बेशक अल्लाह मुनाफ़िक़ों और काफिरों सबको जहन्नम में इकठ्ठा करेगा_*
_*📕 पारा 5,सूरह निसा, आयत 140*_
*_अब इन नाम निहाद मुसलमानो की इबादत और इबादतगाहो की असलियत भी खुद रब से ही सुन लीजिए, इन मुनाफ़िक़ों की मस्जिदें मस्जिद कहलाने के लायक नहीं, उनकी कोई ताज़ीम नहीं, खुद ही पढ़ लीजिए_*
*_(8). और वो जिन्होंने मस्जिद (मस्जिदे दररार) बनायीं नुक्सान पहुंचाने को कुफ्र के सबब और मुसलमानों में तफर्का डालने को और उसके इंतज़ार में जो पहले से अल्लाह और उसके रसूल का मुख़ालिफ़ है और वो ज़रूर कस्मे खाएंगे की हमने तो भलाई चाही और अल्लाह गवाह है की वो बेशक झूठे हैं. उस मस्जिद में तुम कभी खड़े न होना यानि (हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम)_*
_*📕 पारा 11,सूरह तौबा, आयत 107-108*_
*_क्या काफिर भी मस्जिद बनाते हैं, नहीं बल्कि ये नाम निहाद मुसलमान बनाते हैं इसी लिए हुज़ूर ने सहबा इकराम को हुक्म दिया की वो 'मस्जिदे दररार' गिरा दें, और ऐसा ही किया गया और पढ़िए_*
*_(9). और नमाज़ को नहीं आते मगर जी हारे और खर्च नहीं करते मगर ना गवारी से_*
_*📕 पारा 10,सूरह तौबा,आयत 54*_
*_ये है इन मुनाफ़िक़ों की इबादत का हाल, की खुद रब कह रहा है की नमाज़ बेदिल से पढ़ते है और ज़कात बोझ समझ कर अदा करते हैं,और पढ़िए_*
*_(10). और उनमें से किसी की मय्यत पर कभी नमाज़ न पढ़ना और न उनकी कब्र पर खड़े होना बेशक वो अल्लाह और उसके रसूल से मुंकिर हुए_*
_*📕 पारा 10,सूरह तौबा,आयत 84*_
*_अब बताइये जिनकी मस्जिदे मस्जिदे नहीं, जिनकी नमाज़ नमाज़ नहीं, जिनकी ज़कात ज़कात नहीं, जिनकी कब्र पर जाना नहीं, जिनकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ना नहीं पढ़ाना नहीं तो क्या अब भी उन मुनाफ़िक़ों को मुस्लमान समझा जाए, हमसे हर बात पर कुरान से हवाला मांगने वाले वहाबियों ने क्या सुन्नियों को भी अपनी तरह जाहिल समझ रखा है अभी तक मैंने सिर्फ क़ुरान से ही बात की है, इनके दीने बातिल पर ये आखरी कील ठोंकता हूँ, आप भी पढ़िए_*
*_(11). वो जो रसूल अल्लाह को ईज़ा देते हैं उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है_*
_*📕 पारा 10,सूरह तौबा,आयत 61*_
*_क्या माज़ अल्लाह नबी को चमार से ज़्यादा ज़लील कहना, उनको ईज़ा देना नहीं है_*
*_📕तकवियतुल ईमान,सफह 27_*
*_क्या माज़ अल्लाह नबी को किसी बात का इख्तियार नहीं है ये कहना, उनको ईज़ा देना नहीं है-_*
_*📕 तकवियतुल ईमान,सफह 56*_
_*क्या माज़ अल्लाह नबी के चाहने से कुछ नहीं होता ये कहना, उनको ईज़ा देना नहीं है-*_
_*📕 तकवियतुल ईमान,सफह 75*_
*_क्या माज़ अल्लाह उम्मती भी अमल में नबी से आगे बढ़ जाते हैं ये कहना, उनको ईज़ा देना नहीं है-_*
*_📕 तहजीरुन्नास, सफह 8_*
*_क्या माज़ अल्लाह हमारे नबी को आखरी नबी ना मानना,उनको ईज़ा देना नहीं है-_*
*_📕 तहजीरुन्नास,सफह 43_*
_*क्या माज़ अल्लाह नबी के इल्म को शैतान के इल्म से कम मानना, उनको ईज़ा देना नहीं है-*_
_*📕 बराहीने कातया,सफह 122*_
_*क्या माज़ अल्लाह नबी के इल्म को जानवरों और पागलो से तस्बीह देना,उनको ईज़ा देना नहीं है-*_
*_📕 हिफजुल ईमान,सफह 7_*
_*क्या माज़ अल्लाह गधे और बैल का ख्याल आने से नमाज़ हो जाती है और नबी का ख्याल आने से नमाज़ बातिल हो जाती है ये लिखना, उनको ईज़ा देना नहीं है-*_
*_📕 सिराते मुस्तक़ीम,सफह 148_*
*_ये उन बद अक़ीदो खबिसो के कुछ अक़ायद हैं, क्या इनपर कुफ्र का फतवा नहीं लगेगा, क्या कोई अक़्लमन्द आदमी ऐसा लिखने वालों को छापने वालो को या जानकार भी इनके उसी बुरे मज़हब पर कायम रहने वालो को मुसलमान जानेगा, नहीं हरगिज़ नहीं, चलते चलते एक हदीसे पाक सुन लीजिए और बात खत्म_*
*_(12). हज़रत इब्ने उमर रज़ी अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि मेरी उम्मत पर एक ज़माना ज़रूर ऐसा आएगा जैसा की बनी इस्राईल पर आया था बिलकुल हु बहु एक दुसरे के मुताबिक यहाँ तक की बनी इस्राईल में से अगर किसी ने अपनी माँ के साथ अलानिया बदफैली की होगी तो मेरी उम्मत में ज़रूर कोई होगा जो ऐसा करेगा और बनी इस्राईल 72 मज़हबो में बट गए थे और मेरी उम्मत 73 मज़हबो में बट जाएगी उनमें एक मज़हब वालों के सिवा बाकी तमाम मज़ाहिब वाले नारी और जहन्नमी होंगे सहाबा इकराम ने अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम वह एक मज़हब वाले कौन है तो हुज़ूर ने फ़रमाया कि वह लोग इसी मज़हबो मिल्लत पर कायम रहेंगे जिसपर मैं हूँ और मेरे सहाबा हैं_*
_*📕 तिर्मिज़ी,हदीस नं 171*_
_*📕 अब दाऊद,हदीस नं 4579*_
_*📕 इब्ने माजा,सफह 287*_
*_ये वहाबी, कादियानी, खारजी, शिया, अहले हदीस, जमाते इस्लामी वाले पहले अपने आपको अहले सुन्नत वल जमात के इस मिल्लत पर तो ले आएं बाद में मुसलमान होने की बात करें_*
*_अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बारगाह में दुआ है की हम सबको मसलके आलाहज़रत पर सख्ती से क़ायम रहने की तौफीक़ अता फरमाये_*
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_*अज़ाने क़ब्र*_
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_*ⓩ कुछ लोगों को सिवाये ऐतराज़ करने के और कोई काम नहीं रह गया है ऐसे लोग अगर पैदा होते ही बोल पाते तो अपने मां बाप पर भी ऐतराज़ कर देते कि हमको पैदा क्यों कर दिया इन जैसे लोगों की अक़्ल पर इस क़दर पत्थर पड़ गए हैं कि इन्हें ना तो क़ुर्आन की आयतें दिखाई देती हैं और ना ही हदीसे मुबारका और हमेशा बस एक ही रोना ये शिर्क है ये बिदअत है ये हराम है अब इनको कौन समझाये कि ये भी तो क़ुरूने सलासा में ना थे तो इनका पैदा होना भी तो बिदअत ही हुआ, खैर बात को आगे बढ़ाने से पहले किसी काम के जायज़ होने की दलील क्या है ये समझ लीजिये*_
_*जिस काम को हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने किया वो जायज़*_
_*जिस काम को हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने कहा वो जायज़*_
_*जिस काम को लोगों को करता देखकर हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने मना ना किया हो वो भी जायज़*_
_*ⓩ चलिये अब अज़ाने क़ब्र पर दलील मुलाहज़ा करें*_
_*01). अपने मुर्दों को लाइलाहा इल्लल्लाह सिखाओ*_
_*📕 अबू दाऊद, जिल्द 2, सफह 522*_
_*ⓩ अब मुर्दों को कल्मा सिखाने का क्या मतलब ज़ाहिर सी बात है कि मुर्दे सब सुनते समझते हैं और क़ब्र में उससे नकीरैन 3 सवाल करेंगे जिसका उसे जवाब देना पड़ेगा तो फरमाया जा रहा है कि उनको कल्मा सिखाओ यानि तुम उनको बताओगे तो उन्हें जवाब देने में आसानी होगी जैसा कि हदीसे पाक में है हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि*_
_*02). जब मुर्दों को दफ्न कर दो तो कुछ देर वहां रुको और उसे तलक़ीन करते रहो कि अब उससे सवाल होगा*_
_*📕 अबू दाऊद, जिल्द 2, सफह 556*_
_*ⓩ और ये तलक़ीन करना खुद हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम से साबित है, पढ़िये*_
_*03). हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहो तआला अन्हु फरमाते हैं कि जब हज़रत सअद रज़िल्लाहो तआला अन्हु को दफ्न किया गया तो बहुत देर तक हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम सुब्हान अल्लाह सुब्हान अल्लाह कहते रहे तो सहाबा भी साथ साथ पढ़ते रहे फिर हुज़ूर अल्लाहो अकबर अल्लाहो अकबर कहने लगे तो सहाबा इकराम भी यही पढ़ने लगे फिर हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि इस नेक बन्दे पर क़ब्र तंग हो गयी थी यहां तक कि अल्लाह ने उसकी ये तंगी दूर फरमा दी*_
_*📕 मिश्कात, जिल्द 1, सफह 26*_
_*ⓩ तो मुर्दों को लाइलाहा इल्लललाह सिखाने के लिए अज़ान से बेहतर क्या होगा कि अज़ान में सब कुछ मौजूद है, अल्लाह की गवाही भी, अज़ान जिस दीन में है वो इस्लाम भी, और खुद हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का तज़किरा भी और यही नहीं क़ब्र पर अज़ान देने के और भी फायदे हैं उन्हें भी पढ़ लीजिये*_
_*फायदा नं - 1*_
_*ⓩ इमाम तिर्मिज़ी मुहम्मद इब्ने अली अपनी किताब नवादिरूल उसूल में फरमाते हैं कि जब फरिश्ता क़ब्र में सवाल करता है कि मन रब्बोका यानि तेरा रब कौन है तो शैतान वहां भी पहुंच जाता है और बन्दे को बहकाने की कोशिश करता है लिहाज़ा शैतान को भगाने के लिए अज़ान दी जाती है जैसा कि हदीसे पाक में आता है कि*_
_*04). जब मुअज़्ज़िन अज़ान कहता है तो शैतान हवा छोड़ते हुए भागता है*_
_*📕 बुखारी शरीफ, जिल्द 1, सफह 316*_
_*05). जब अज़ान होती है तो शैतान 36 मील यानि 58 किलोमीटर दूर भाग जाता है*_
_*📕 तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द 1, सफह 310*_
_*फायदा नं - 2*_
_*ⓩ अगर माज़ अल्लाह सुम्मा माज़ अल्लाह बन्दे की क़ब्र में अज़ाब आ गया यानि आग में पड़ गया तो उस आग को बुझाने यानि अज़ाबे इलाही को दूर करने के लिए अज़ान दी जाती है जैसा कि हदीसे पाक में आता है कि*_
_*06). जब आग देखो तो तकबीर यानि अल्लाहो अकबर कहते रहो कि ये आग को बुझा देगा*_
_*📕 इब्ने असाकिर*_
_*07). खुदा के ज़िक्र से बढ़कर कोई भी चीज़ अज़ाबे इलाही से बचाने वाली नहीं है*_
_*📕 तिर्मिज़ी, जिल्द 2, सफह 566*_
_*08). जिस जगह अज़ान दी जाती है अल्लाह तआला उस दिन उस जगह को अज़ाब से महफूज़ कर देता है*_
_*📕 मोअज़्ज़म कबीर*_
_*09). जिस जगह ज़िक्रे खुदा होता है फरिश्ते उस जगह को घेर लेते हैं और वहां रहमत की बारिश शुरू हो जाती है*_
_*📕 तिर्मिज़ी, जिल्द 2, सफह 567*_
_*फायदा नं - 3*_
_*ⓩ मुर्दा जब क़ब्र में पहुंचता है तो ऐसा तंग और अंधेरी जगह देखकर घबराता है लिहाज़ा उसकी घबराहट को दूर करने के लिए अज़ान दी जाती है जैसा कि हदीसे पाक में है कि*_
_*10). जब हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को ज़मीन पर उतारा गया तो उन्हें बहुत घबराहट महसूस हुई तो रब ने हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम को भेजा और उन्होंने आकर अज़ान दी जिससे कि हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की घबराहट दूर हो गई*_
_*📕 अबु नुअैम, इब्ने असाकिर*_
_*फायदा नं - 4*_
_*ⓩ बन्दे को जब दफ्न करके लोग जाने लगते हैं तो वो बेहद ग़मगीन हो जाता है और अपने अज़ीज़ों को पुकारता है उसके इसी ग़म को दूर करने के लिए अज़ान दी जाती है जैसा कि हदीसे पाक में आता है कि*_
_*11). एक मरतबा हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने मौला अली रज़ियल्लाहो तआला अन्हु को ग़मगीन देखा तो आपने फरमाया कि ऐ अली किसी से कहो कि तुम्हारे कान में अज़ान कह दे कि ये ग़मों को दूर कर देती है*_
_*📕 मुसनदुल फिरदौस*_
_*फायदा नं - 5*_
_*ⓩ और ऐसा करके यानि अज़ान देकर मुर्दे के लिए आसानी पैदा करने की कोशिश करना अल्लाह को बहुत पसंद है जैसा कि हदीसे पाक में आता है कि*_
_*12). फर्ज़ों के बाद किसी मुसलमान का दिल खुश करना अल्लाह के नज़दीक सबसे ज़्यादा पसन्दीदा अमल है*_
_*📕 तिबरानी शरीफ*_
_*13). अल्लाह तआला उस बन्दे की मदद करता है जो अपने मुसलमान भाई की मदद करता है*_
_*📕 मुस्लिम, अबु दाऊद, तिर्मिज़ी, इब्ने माजा*_
_*14). जो शख्स किसी मुसलमान की हाजत पूरी करता है तो अल्लाह उसकी हाजत पूरी करता है और जो शख्स किसी मुसलमान पर से तक़लीफ को दूर करता है तो अल्लाह उसकी तक़लीफ को दूर कर देता है*_
_*📕 अबु दाऊद*_
_*ⓩ और वहाबियों के मौलवी इस्हाक़ देहलवी ने अपनी किताब में लिखा है कि*_
_*15). कब्र के पास खड़े रहकर दुआ करना सुन्नत से साबित है*_
_*📕 मीता मसायल*_
_*ⓩ अज़ान ज़िक्र है और हर ज़िक्र दुआ है जैसा कि रिवायत में है कि मुल्ला अली क़ारी मिरकात शरहे मिश्कात में फरमाते हैं कि हर दुआ ज़िक्र है और हर ज़िक्र दुआ है और दुआ की क़ुबुलियत के लिये हदीसे पाक में है कि*_
_*16). दो दुआयें रद्द नहीं की जाती एक अज़ान के वक़्त और दूसरी जिहाद के वक़्त*_
_*📕 अबु दाऊद, जिल्द 1, सफह 237*_
_*17). जब अज़ान दी जाती है तो आसमान के दरवाज़े खुल जाते हैं यानि दुआयें क़ुबूल होती है*_
_*📕 अबु दाऊद, हाकिम, अबु याला*_
_*ⓩ अब ऐतराज़ करने वाल कहेगा कि ये हदीस ज़ईफ है वो ज़ईफ है,तो हमसे हर बात पर क़ुर्आन और हदीस से हवाला मांगने वाले कभी खुद भी तो क़ुर्आन और हदीस से हवाला देकर ये साबित करें कि मीलाद मनाना, उर्स मनाना,चादर चढ़ाना, फातिहा दिलाना, सलाम पढ़ना, क़ब्र पर अज़ान देना ये सब शिर्क और बिदअत है, अरे क़ुर्आन से ना सही तो हदीस ही दिखा दो,चलो सही हदीस ना सही तो हुस्न ही सही, अरे हुस्न भी नहीं मिल रही तो चलो कोई ज़ईफ हदीस पेश कर दो जिसमे लिखा हो कि क़ब्र पर अज़ान देना शिर्क है हराम है बिदअत है, मगर दिखायेंगे कहां से जब होगी तब तो दिखायेंगे,ये तो सारी ज़िन्दगी बस पागलों की तरह शिर्क शिर्क बिदअत बिदअत चिल्लाते रहेंगे, खैर अज़ाने क़ब्र की ये तमाम बहस आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की किताब "इज़ानुल अज्रे फि अज़ानिल क़ब्रे" जो कि हिंदी में "अज़ाने क़ब्र" के नाम से छप चुकी है उससे पेश की गई है जिसे इससे भी ज़्यादा तफसील की दरकार हो या अस्ल हदीस देखने का शौक़ हो तो वो अस्ल किताब की तरफ रुजू करें*_
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_*अंजीर - Fig*_
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_*ⓩ अंजीर बुनियादी तौर पर मशरिके वुस्ता और एशियाई कोचक का फल है अगर चे अब ये हिंदुस्तान में भी पाया जाता है मगर मुसलमानों की हिंदुस्तान में आमद से पहले इसका कोई सुराग नहीं मिलता, इसलिए यही सही है कि इसे मुसलमान ही हिंदुस्तान लेकर आये और इसकी काश्त की मगर 1000 साल गुज़र जाने के बाद भी आज इसकी काश्त इस तौर पर नहीं की जाती कि वो तमाम लोगों की ज़रूरत को पूरा कर सके लिहाज़ा तुर्की, इटली, स्पेन, पुर्तगाल, ईरान, फिलिस्तीन, शाम और लेबनान से इसे मंगाया जाता है, कहते हैं फलों में ये सबसे नाज़ुक फल है कि पकने के बाद खुद ही पेड़ से गिर जाता है और दूसरे दिन तक इसे महफूज़ रखना मुश्किल हो जाता है सो इसे सुखाकर ही इस्तेमाल लायक बनाया जाता है, इसके फज़ायल के लिए इतना ही काफी है कि क़ुर्आन में अल्लाह तबारक व तआला इसकी कसम याद फरमाता है, इरशाद फरमाया*_
_*कंज़ुल ईमान - कसम अंजीर और ज़ैतून की*_
_*📕 पारा 30, सूरह वत्तीन, आयत 1*_
_*तफसीर - अंजीर एक उम्दा मेवा है जिसमे फुज़्ला नहीं है बहुत तेज़ हज़म होने वाला जिगर और मेदे की इस्लाह करने वाला बलगम को निकालने वाला और कमज़ोर जिस्म को फरबा करने वाला है*_
_*📕 खज़ाएनुल इरफान, सफह 709*_
_*हदीस - हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में अंजीर से भरा हुआ एक तश्त आया तो आप फरमाते हैं कि अगर कोई कहे कि क्या जन्नत से फल ज़मीन पर आ सकता है तो मैं कहूंगा यही है वो, तो इसे खाओ कि अंजीर बवासीर को खत्म कर देता है और गठिया यानि जोड़ों के दर्द में मुफीद है*_
_*तिब - इसके अलावा ये गुर्दे और पित्त से पथरी को तोड़कर निकाल देने में कारगर है मगर बासी मुंह 6 दाने के अंजीर के साथ कलौंजी और कासनी (हिन्दबा-Chicori) का मुरक़्क़ब इस्तेमाल करें, हलक़ की सोजिश सीने पर बोझ फेफड़ों की सूजन जिगर और तिल्ली की सफाई पेट से हवा निकालता है और अगर इसके साथ बादाम मिलाकर खाया जाे तो पेट की बहुत सारी बीमारियों का इलाज हो जाये, पुरानी खांसी और प्यास की शिद्दत को कम करता है अगर चे ये खुद मीठा है मगर शुगर के मरीज़ को नुकसान नहीं पहुंचाता, पुरानी क़ब्ज़ दमा खांसी चेहरे का रंग निखारने के लिए 5 दाने जबकि मोटापा कम करने के लिए 3 दाने ही काफी है, औरत को हैज़ की तकलीफ से निजात के साथ साथ उसके दूध बढ़ाने में भी मुफीद है, खून की नालियों में जमी हुई गलाज़त को साफ करता है और ब्लड प्रेशर के मरीज़ को राहत देता है*_
_*तरीक़ा - रात को 5 या 7 अंजीर को धोकर पानी में भिगो दें और सुबह बासी मुंह अंजीर को खा लें और उस पानी को कपड़े से छानकर पियें ताकि उसमे बैठा हुआ गर्द छन जाये वरना नुकसान देह हो सकता है*_
_*📕 तिब्बे नब्वी और जदीद साईंस, सफह 17-27*_
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