Friday, October 30, 2020

🅱️ मिक्स टापिक पोस्ट 🅱️


                         *_अप्रैल फूल_*
―――――――――――――――――――――

_*ये भी एक अलमिया है कि मुसलमान झूट बोलकर या धोखा देकर अपने भाई को बेवकूफ बनाता है और उसपे फख्र करता है कि मैंने फलां को बेवकूफ बनाया हालांकि झूट बोलना और धोखा देना दोनों ही हराम काम है,जैसा कि हदीसे पाक में मज़कूर है हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि*_

*_जिस के अन्दर ये बातें पायी जाए यानि जब बात करे तो झूट बोले वादा करे तो पूरा ना करे और अमानत रखी जाए तो उसमे खयानत करे तो वो खालिस मुनाफिक़ है अगर चे वो नमाज़ पढ़े रोज़ा रखे और मुसलमान होने का दावा करे_*

_*📕 मुस्लिम, जिल्द 1, सफह 56*_

*_बेशक झूट गुनाह की तरफ ले जाता है और गुनाह जहन्नम में_*

_*📕 बुखारी, जिल्द 2, सफह 900*_

*_उस शख्स के लिए खराबी है जो किसी को हंसाने के लिए झूट बोले_*

_*📕 अत्तर्गीब वत्तर्हीब, जिल्द 3, सफह 599*_

*_झूटा ख्वाब बयान करना सबसे बड़ा झूट है_*

_*📕 मुसनद अहमद, जिल्द 1, सफह 96*_

*_मोमिन की फितरत में खयानत और झूट शामिल नहीं हो सकती_*

_*📕 इब्ने अदी, जिल्द 1, सफह 44*_

*_झूटे के मुंह को लोहे की सलाखों से गर्दन तक फाड़ा जायेगा_*

_*📕 बुखारी, जिल्द 2, सफह 1044*_

_*अब कुछ हुक्म क़ुरान से भी पढ़ लीजिए*_

*_झूटों पर अल्लाह की लानत है_*

_*📕 पारा 3, सूरह आले इमरान, आयत 61*_

*_बेशक अल्लाह उसे राह नहीं देता जो हद से बढ़ने वाला बड़ा झूटा हो_*

_*📕 पारा 24, सूरह मोमिन, आयत 28*_

*_मर जाएं दिल से तराशने वाले (यानि झूट बोलने वाले)_*

_*📕 पारा 26, सूरह ज़ारियात, आयत 10*_

*_झूट और बोहतान वही बांधते हैं जो अल्लाह की आयतों पर ईमान नहीं रखते_*

_*📕 पारा 14, सूरह नहल, आयत 105*_

_*और वादे के ताल्लुक़ से अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान में इरशाद फरमाता है*_

*_और वादा पूरा करो कि बेशक क़यामत के दिन वादे की पूछ होगी_*

_*📕 पारा 15, सूरह असरा, आयत 34*_

*_ऐ ईमान वालो वादों को पूरा करो_*

_*📕 पारा सूरह मायदा, आयत 1*_

_*ज़रा गौर कीजिये कि किस क़दर इताब की वईद आयी है झूट बोलने और धोखा देने के बारे में,हंसी मज़ाक करना या दिल बहलाना हरगिज़ गुनाह नहीं बस शर्त ये है कि झूट ना बोला जाए और किसी का दिल ना दुखाया जाए, हां मगर तीन जगह झूट बोलना जायज़ है*_

*_1. जंग मे - दुश्मन पर रौब तारी करने के लिये कहा कि हमरी इतनी फौज और आ रही है या दुश्मनों की फौज मे भगदड़ मचाने के लिये अफवाह उड़ा दी कि उनका सिपाह सालार मारा गया वगैरह वगैरह_*

*_2. दो मुसलमानों के बीच सुलह कराने मे - एक दूसरे से दोनो की झूटी तारीफ की कि वो तो तुमहारी बड़ी तारीफ कर रहा था इस तरह दोनो को मिलाना_*

*_3. शौहर का बीवी से - बीवी नाराज़ हो गयी तो उसको मनाने की गर्ज़ से कह दिया कि मैं तुम्हारे लिये ये ले आऊंगा वो ले आऊंगा या उसके पूछने पर कि कैसी लग रही हूं तो अगर चे अच्छी नहीं भी लग रही थी कह दिया कि बहुत अच्छी लग रही हो वगैरह वगैरह_*

_*📕 तिर्मिज़ी, जिल्द 4, हदीस 1939*_

_*इस्लाम में तफरीहात हरगिज़ मना नहीं बल्कि रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम से साबित है, पढ़िए*_

*_एक मर्तबा एक ज़ईफा बारगाहे नबवी में आईं और कहने लगी कि हुज़ूर मेरे लिए दुआ फरमा दें कि अल्लाह मुझे जन्नत में दाखिल करे, आप सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने उससे फरमाया कि कोई बुढ़िया जन्नत में नहीं जाएगी, इस पर वो रोने लगी तो आपने मुस्कुराते हुए फरमाया कि ऐ अल्लाह की बन्दी मेरे कहने का ये मतलब है कि कोई बूढ़ी औरत जन्नत में नहीं जाएगी बल्कि हर बूढ़ी को जवान बनाकर जन्नत में भेजा जायेगा, तो वो खुश हो गयी इसी तरह एक सहाबी हाज़िर हुए और सवारी के लिए ऊंट मांगा तो आप फरमाते हैं कि मैं ऊंटनी का बच्चा दूंगा तो वो कहते हैं कि हुज़ूर मैं बच्चे पर सवारी कैसे करूंगा तो आप मुस्कुराकर फरमाते हैं कि ऊंट भी तो ऊंटनी का बच्चा ही होता है ऐसे ही कई सच्ची तफरीहात अम्बिया व औलिया व सालेहीन से मनक़ूल है_*

_*📕 रूहानी हिकायत, सफह 151*_

*_एक फक़ीह किसी के घर में किराए पर रहते थे, मकान बहुत पुराना और बोसीदा था अकसर दीवारों और छतों से चिड़चिड़ाने की आवाज़ आती रहती थी, एक दिन जब मकान मालिक किराया लेने के लिए आये तो फक़ीह साहब ने फरमाया कि पहले मकान तो दुरुस्त करवाइये तो कहने लगे कि अजी अल्लामा साहब आप बिल्कुल न डरें ये दीवार और छत तस्बीह करती रहती है उसकी आवाज़ें हैं, तो फक़ीह बोले कि तस्बीह तक तो गनीमत है लेकिन अगर किसी रोज़ आपकी दीवार और छत पर रिक़्क़त तारी हो गयी और वो सजदे में चली गयी तब क्या होगा_*

_*📕 मुस्ततरफ, सफह 238*_

_*कहने का मतलब सिर्फ इतना है की हंसी मज़ाक करिये बिल्कुल करिये मगर झूट ना बोलिये गाली गलौच ना कीजिये और ना किसी की दिल आज़ारी कीजिये, मौला से दुआ है कि हम सबको हक़ सुनने हक़ समझने और हक़ पर चलने की तौफीक अता फरमाये-आमीन*_
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━






 _*अक़ायद- अम्बिया ज़िन्दा हैं*_
―――――――――――――――――――――

_*वहाबियों के इमाम इस्माईल देहलवी ने अपनी नापाक किताब तक़वियातुल ईमान में हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की शान में बहुत सारी गुस्ताखियां की और उसी में ये भी लिख मारा कि खुद हुज़ूर फरमाते हैं कि "एक दिन मैं भी मर कर मिटटी में मिल जाऊंगा" माज़ अल्लाह, आईये क़ुर्आन से ही पूछ लेते हैं कि क्या वाकई ऐसा है तो जवाब में मौला इरशाद फरमाता है कि,*_

_*और जो खुदा की राह में मारे जायें उन्हें मुर्दा ना कहो बल्कि वो ज़िंदा हैं हां तुम्हें खबर नहीं*_

_*📕 पारा 2, सूरह बक़र, आयत 154*_

_*इस आयत में शहीद का मौत के बाद भी ज़िंदा होने का सबूत है अब अगर कोई कहे कि ये ज़िन्दगी दुनिया में नहीं बल्कि क़यामत के बाद की बताई गयी है तो वो सबसे बड़ा जाहिल है क्योंकि क़यामत के बाद तो मुसलमान ही क्या बल्कि काफिरो मुशरिक मुर्तद सब ही ज़िंदा हो जायेंगे और अपने आमाल के हिसाब से ठिकाना पायेंगे तो फिर मौला को सराहतन ये ज़िक्र करने की क्या ज़रूरत थी कि "वो ज़िंदा हैं और तुम्हें शुऊर नहीं" बल्कि दूसरी जगह इरशाद फरमाता है कि "वो रोज़ी भी पाते हैं" तो मालूम हुआ कि वो दुनिया में ही मरकर फिर जिस्म जिस्मानियत के साथ ज़िंदा हो जाते हैं बस उनकी ज़िन्दगी को हम समझ नहीं सकते, यहां ऐतराज़ करने वाला एक ऐतराज़ और कर सकता है बल्कि करता है कि ये आयत तो शहीद के हक़ में नाज़िल हुई है तो इसमें अम्बिया की ज़िन्दगी कैसे साबित है तो याद रखिये कि ये ऐतराज़ करके उसने अपने जाहिल होने का एक और सबूत दे दिया वो इस तरह कि ये ऐतराज़ ऐसा ही है जैसा कि कोई ये कहे कि जितनी पावर एक सिपाही को है उतनी तो इंस्पेक्टर को भी नहीं है या जितनी पावर इंस्पेक्टर को है उतनी तो डी.एम को भी नहीं है, बात समझ में आ गयी होगी यानि कि जो मरतबे में बड़ा होता जायेगा उसका इख्तियार और पावर भी बढ़ता जायेगा और उस बड़े का पावर कभी कभी छोटे के पावर को दिखाकर बताई जाती है मसलन घर की औलाद यानि बेटा बेटी जो भी सामान इस्तेमाल करते हैं चाहे वो कार हो बाईक हो मोबाइल हो कैश हो कुछ भी हो उससे पता यही चलता है कि इनका बाप बड़ा अमीर आदमी है जब ही तो अपने बच्चों को इतना सब कुछ दे रखा है, अब असल बात की तरफ चलते हैं कि एक बशर से लेकर मुस्तफा जाने रहमत सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के मरतबे के बीच 27 दर्जों का फर्क है और शहीद तो सिर्फ चौथे ही दर्जे पर फायज़ है तो उसके ऊपर वाले जितने भी मरतबे के लोग हैं चाहे वो मुजतहिद हों औताद हों अबदाल हों क़ुतुब हों क़ुतुबुल अक़्ताब हों ग़ौस हों ग़ौसे आज़म हों ताबई हों सहाबी हों जितने भी होंगे उन सबको उससे ज़्यादा फज़ीलत हासिल होगी, तो जब शहीद को मौला तआला ज़िन्दा कह रहा है तो उसके ऊपर वाले जितने हैं सब ज़िंदा होंगे तो अब अंदाज़ा लगाइये ऐसे जाहिलों की जिहालत की कि वो नबियों को माज़ अल्लाह मुर्दा कह रहे हैं, इतनी तम्हीद के बाद क़ुर्आन की ये आयत पेश करने की ज़रूरत नहीं थी फिर भी इसे पढ़कर अपना ईमान ताज़ा कर लीजिये मौला फरमाता है कि,*_

_*फिर जब हमने उस पर मौत का हुक्म भेजा, और जिन्नों को उसकी मौत ना बताई मगर ज़मीन की दीमक ने कि उसका असा खाती थी फिर जब सुलेमान ज़मीन पर आया जिन्नो की हक़ीक़त खुल गई*_

_*📕 पारा 22, सूरह सबा, आयत 14*_

_*वाक़िया ये है कि हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम मस्जिदे अक़सा यानि बैतुल मुक़द्दस की तामीर फरमा रहे थे और आपने उस काम में जिन्नातों को लगा रखा था, दिन भर जिन्नात काम करते और आप उन सबका मुआयना करते रहते जब आप रात को वापस जाते तो वो सब भी भाग जाते और काम बंद कर देते, अचानक एक दिन हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम अपने असा पर टेक लगाकर खड़े थे और आपकी रूह कब्ज़ हो गयी और जिन्नात काम में मशगूल रहे अब जब रात हुई तो हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम हिले ही नहीं बल्कि वैसे ही खड़े रहे अब जिन्नातों को इतनी हिम्मत नहीं हुई कि वो काम बन्द कर पाते तो रातों दिन वो काम करते रहे इसी तरह पूरा एक साल बीत गया और मस्जिदे अक़्सा बनकर मुकम्मल हो गई, इस बीच आपके असा को दीमक खाती रही जब साल गुज़रा तो असा टूट गया और आपका जिस्म मुबारक ज़मीन पर आ गया तब जिन्नातों को मालूम हुआ कि हज़रत तो साल भर पहले ही विसाल फरमा चुके हैं और उन्होंने अपने बारे में जो ये फैला रखा था कि हम ग़ैब की बातें जानते हैं तो उसकी हक़ीक़त खुल गई कि अगर उन्हें ग़ैब होता तो क्यों साल भर पहले ही हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम की मौत का इल्म ना हुआ और क्यों साल भर मेहनत मशक़्क़त में पड़े रहे, अब ज़रा सोचिये कि अगर अम्बिया अलैहिस्सलाम मरकर मिट्टी में मिल जाने वाले लोग होते माज़ अल्लाह तो क्या साल भर उनका जिस्म वैसे ही तारो ताज़ा रहता जबकि आम इंसान की लाश से दूसरे दिन ही बदबू आने लगती है तो मानना पड़ेगा कि वो दुनिया में ही मौत के बाद भी ज़िंदा ही रहते हैं इसीलिए तो मेरे आलाहज़रत अज़ीमुल बरकत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि*_

_*अम्बिया को भी अजल आनी है*_
_*मगर ऐसी कि फक़त आनी है*_
_*फिर उसी आन के बाद उनकी हयात*_
_*मिस्ल साबिक़ वही जिस्मानी है*_
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━







_*अल्लाह तआला को ऊपर वाला बोलना कैसा*_
―――――――――――――――――――――

_*अल्लाह तआला को ऊपर वाला बोलना कैसा और भी कुछ ज़रूरी मसाऐल*_

*_कुछ लोग अल्लाह तआला का नाम लेने के बाजाऐ उसको ऊपर वाला बोलते हैं ये निहायत गलत बात है बल्किह अगर ये अक़ीदह रख कर ये लफ्ज़ बोले कि अल्लाह तआला ऊपर है तो ऐ कुफ्र है कियोंकि अल्लाह की ज़ात ऊपर नीचे आगे पीछे दाहने बाऐं तमाम सिम्तों हर मकान और हर ज़मान से पाक है बरतर व बाला है- पूरब पच्छिम उत्तर दख्खिन ऊपर नीचे दाहने बाऐं आगे पीछे ज़मान व मकान को उसी ने पैदा किया है तो अल्लाह के लिऐ ये नहीं बोला जा सकता कि वह ऊपर है या नीचे है पूरब में है पच्छिम में है कियोंकि जब उसने इन चीज़ों को पैदा नहीं किया था वह तब भी था, कहां था और किया था उसकी हक़ीक़त को उसके अलावह कोई नहीं जानता, अब अगर कोई कहे कि अल्लाह तआला अर्श पर है तो उस से पूछो कि जब उसने अर्श को पैदा नहीं किया था तो वह कहां था? यूंहि अगर कोई कहे कि अल्लाह तआला ऊपर है तो उस से पूछो कि ऊपर को पैदा करने से पहले वह कहां था?_*

_*📕 गलत फहमिया और उनकी इस्लाह, सफह 15*_

*_हां अगर कोई शख्स अल्लाह तआला को ऊपर वाला इस ख्याल से कहे कि वह सबसे बुलन्द व बाला है और उसका मर्तबा सबसे ऊपर है तो ये कुफ्र नहीं है लेकिन फिर भी अल्लाह तआला के लिये एैसे अल्फाज़ बोलना सह़ी नहीं जिन से कुफ्र का शुबह हो, अल्लाह तआला को ऊपर वाला कहना बहर हाल मना है जिस से बचना ज़रूरी है_*

_*📕 गलत फहमियां और उनकी इस्लाह 15*_

*_कुछ लोग अल्लाह तआला को, :अल्लाह: कहने के बजाऐ सिर्फ -मालिक - कहते हैं कि मालिक ने जो चाहा तो ऐसा होजायेगा या मालिक जो करेगा वह होगा वगैरह वगैरह ये भी अच्छा और इस्लामी तरीक़ा नहीं - सबसे ज़्यादा सीधी सच्ची अच्छी बात ये है कि अल्लाह को अल्लाह ही कहा जाऐ कियोंकि उसका नाम लेना इबादत है और उसका ज़िक्र करना ही इन्सान की ज़िन्दगी का सबसे बडा मक़सद और मुसलमान की पहचान है यानि यूं कहना चाहिये कि अल्लाह जो चाहेगा वह होगा अल्लाह जो करेगा वह होगा_*

_*📕 गलत फहमिया और उनकी इस्लाह, सफह 16*_

*_बाज़ लोग कहते हैं कि ऊपर वाला जैसा चाहेगा वैसा होगा और कहते हैं कि ऊपर अल्लाह हा नीचे तुम हो या इस तरह कहते हैं कि ऊपर अल्लाह है नीचे पन्च हैं- ऐ सब जुम्ले गुमराही के हैं मसलमानों को इनसे बचना निहायत ज़रूरी है_*

_*📕अनवारे शरीअत, सफह 8*_

 *_कुछ लोग अल्लाह तआला को - अल्लाह मियां- कहते हैं तो ये भी समझ लें कि अल्लाह मियां कहना मना है कियोंकि लफ्ज़ -मियां- के तीन माना हैं एक मौला दूसरा शौहर तीसरा ज़िना का दलाल, तो एक माना सही है और बाद वाले दो माना बहुत गलत है तो अल्लाह के लिऐ लफ्जे मियां नहीं बोलना चाहिऐ_*

_*📕 अल्मलफूज़, हिस्सा 1, सफह 116*_

*_कुछ लोग अल्लाह तआला को बोलते हैं कि अल्लाह हर जगह हाज़िर व नाज़िर है तो अल्लाह तआला को हर जगह हाज़िर व नाज़िर भी नहीं कहना चाहिऐ कियोंकि अल्लाह तआला हर जगह से पाक है ये लफ्ज़ बहुत बुरे माना का अह़तमाल रखता है इस से बचना लाज़िम है_*

_*📕फतावा रज़विया, जिल्द 6, सफह 132*_
_*📕मख्ज़ने मआलूमात, सफह 21*_

*_अल्लाह तआला को उनहीं अल्फाज़ से पुकार सकते हैं जिनका इस्तेमाल क़ुरआन व हदीस या इजमाऐ उम्मत से साबित है जैसे लफ्ज़ -खुदा'- कि इसका इस्तेमाल अगरचे क़ुरआन ह़ादीस में नहीं है लेकिन इजमाऐ उम्मत से साबित है तो लफ्ज़े खुदा बोल सकते हैं_*

_*📕खाज़िन, जिल्द 2, सफह 262*_

*_हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैही वसल्लम ने अपने सर की आंखों से रबका दीदार किया है यानि रब को देखा है एक बार सिदरतुल मुन्तहा पर और एक बार अर्शे आज़म पर_*

_*📕 फतावा ह़दीसिया, सफह 108*_
_*📕 मवाहिबुल लदुन्निया, जिल्द 2, सफह 35*_

*_और आखिरत यानि हश्र के मैदान में मोमिन व काफिर सबको दीदार होगा लेकिन मोमिनीन को रह़मो करम और काफिरीन को क़हरो गज़ब की ह़ालत में फिर उसके बाद कुफ्फार हमेशा के लिऐ इस नेअमत से महरूम कर दिये जायेंगे_*

_*📕 तकमीलुल ईमान, सफह 6*_
_*📕 शरह फिक़्ह अकबर बह़रूल उलूम, सफह 66*_

*_अल्लाह तआला के नामों की कोई गिन्ती और शुमार नहीं है कि उसकी शान गैर महदूद है मगर इमाम राज़ी ने अपनी किताब तफसीरे कबीर में पांच हज़ार नामों का तज़किरह किया है- जिन में से क़ुरआन में एक हज़ार, तौरात में एक हज़ार, इन्जील में एक हज़ार ज़बूर में एक हज़ार और लौहे मह़फूज़ में एक हज़ार हैं_*

_*📕 तफसीरे कबीर, जिल्द 1, सफह 119*_
_*📕अह़कामे शरीअत, हिस्सा 2, सफह 157*_
_*📕 मख्ज़ने मालूमात, सफह 20*_

*_तमाम नामों में लफ्ज़,, अल्लाह,, ज़्यादा मशहूर है_*

_*📕 खाज़िन, जिल्द 2, सफह 262*_

*_अल्लाह तआला के बारे में ये अक़ीदह रखना चाहिये कि अल्लाह तआला एक है उसका कोई शरीक नहीं आसमान ज़मीन और सारी मखलूक़ात का पैदा करने वाला वही है- वही इबादत का मसतहिक़ है दूसरा कोई मुसतहिक़ इबादत नहीं ना वह किसी का बाप है ना बेटा ना उसकी बीबी ना उसके कोई औलाद, वही सबको रोज़ी देता है अमीरी गरीबी और इज़्ज़त व ज़िल्लत सब उसके अख्तियार में है जिसे चाहता है इज़्ज़त देता है और जिसे चाहता है ज़िल्लत देता है उसका हर काम ह़िकमत है बन्दों की समझ में आये या ना आये वह कमाल व खूबी वाला है झूठ, दगा, ख्यानत, ज़ुल्म, जहल वगैरह हर एैब से पाक है उसके लिये किसी एैब का मानना कुफ्र है लिहाज़ा जो ऐ अक़ीदा रखे कि खुदा झूठ बोल सकता है वह गुमराह व बद मज़हब है_*

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफह 2*_
_*📕 हमारा इस्लाम, हिस्सा 2, सफह 46*_
_*📕 क़ानूने शरीअत, हिस्सा 1, सफह 13*_
_*📕 अनवारे शरीअत, सफह 7*_
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━







     _*आदाबे मस्जिद*_
―――――――――――――――――――――

_*दाहिना पैर मस्जिद में दाखिल करें और पढ़ें बिस्मिल्लाही अस्सलातु वस्सलामु अलैका या सय्यिदिल मुरसलीन व आला आलिका व आला जमीअ असहाबिका व आला इबादिल लाहिस सालिहीन अल्लाहुम्मफ तहली अब्वाबा रहमतिका नवैतु सुन्नतल एतिकाफ*_
*بسم الله الصلات واسلام علىك ىا سىد المرسلىن واعلى الك واعلى جمىع اصحابك واعلى عباد الله اصالحىن اللهم افتح لى ابواب رحمتك نوىت سنت اعتكاف*

_*निकलते वक़्त बायां पैर पहले निकालें और पढ़ें बिस्मिल्लाही अस्सलातु वस्सलामु अलैका या सय्यिदिल मुरसलीन व आला आलिका व आला जमीअ असहाबिका व आला इबादिल लाहिस सालिहीन अल्लाहुम्मा इन्नी असअलुका मिन फ'दलिका*_
*بسم الله الصلات واسلام علىك ىا سىد المرسلىن واعلى الك واعلى جمىع اصحابك واعلى عباد الله اصالحىن اللهم انى اسًلك من فضلك*

_*मस्जिद में दाखिल होते वक़्त अगर लोग मौजूद हों और वो ज़िक्रो तिलावत में मशगूल ना हों तो उन्हें सलाम करें वरना पढ़ें अस्सलामो अलैना मिर्रब्बना व आला इबादिल लाहिस सालिहीन*_
*السلام علينا من ربنا وعلى عباد الله الصالحين* 

_*वक़्ते मकरूह ना हो तो 2 रकात तहयतुल मस्जिद पढ़ें*_

_*मस्जिद में खरीदो फरोख्त न करें*_

_*गुमी हुई चीज़ मस्जिद में न ढूंढ़े*_

_*ज़िक्र के सिवा हरगिज़ आवाज़ को बुलंद ना करें*_

_*लोगों की गर्दनें ना फलांगें*_

_*जहां जगह मिले बैठ जायें*_

_*इस तरह ना बैठें कि दूसरों को तक़लीफ हो*_

_*नमाज़ी के आगे से ना गुजरें*_

_*मस्जिद में थूके नहीं*_

_*उंगलियां ना चटकायें*_

_*मस्जिद में खाना पीना या सोना सिवाये मोअतकिफ़ के दूसरों को नाजायज़ है*_

_*नमाज़ के बाद मुसल्ला हटा देना अच्छा है मगर कुछ लोग सिर्फ कोना मोड़ देते हैं और उनका ख्याल ये होता है कि शैतान इस पर बैठेगा, ये बे अस्ल है*_

_*औरतों का मस्जिद मे जाना मना है*_

_*📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 16,सफह 119-122*_

_*नजासत से पागलों और बहुत छोटे बच्चों को मस्जिद से दूर रखें युंही हर मूज़ी को मस्जिद में आने से रोका जाये इसी लिए उल्मा फरमाते हैं कि सुन्नियों की मस्जिद में वहाबी देवबंदी क़ादियानी खारजी राफ्ज़ी अहले हदीस जमाते इस्लामी व दीगर बदमज़हबो को आने से रोकना वाजिब है*_

_*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 3,सफह 582*_

_*बिला उज़्रे शरई मस्जिद की छत पर चढ़ना मकरूह है यहां तक कि गर्मी की वजह से मस्जिद की छत पर नमाज़ पढ़ना भी मकरूह है कि ये मस्जिद की बे अदबी है हां मस्जिद नमाज़ियों से फुल हो गई है तो अब छत पर नमाज़ पढ़ सकते हैं*_

_*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 3,सफह 575*_

_*आज़ाये वुज़ू के पानी का मस्जिद में गिराना नाजायज़ो हराम है लिहाज़ा इसे वुज़ू खाने से उठने पर ही सुखा लें*_

_*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 1,सफह 733*_

_*कच्ची प्याज़ या लहसुन या कोई भी बदबूदार खाना खाकर या जिसके मुंह से बहुत ज़्यादा बदबू उड़ती हो वो हरगिज़ मस्जिद में ना जाये बल्कि उसको जमाअत की हाज़िरी भी माफ है घर में नमाज़ पढ़े*_

_*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 3,सफह 598*_

_*मस्जिद में दुनिया की जायज़ बात करना नेकियों को ऐसे खा जाता है जैसे आग लकड़ी को खा जाती है और मस्जिद में हंसना क़ब्र में अंधेरा लाता है*_

_*📕 अहकामे शरियत,हिस्सा 1,सफह 109*_

_*ⓩ मगर आजकल तो मआज़ अल्लाह मस्जिदों में लोग व्हाट्सप्प और फेसबुक चलाते भी दिख जाते हैं,और अब तो रमज़ान शुरू होने वाला है कुछ हराम-खोर तरावीह के नाम पर मस्जिदों में हुल्लड़ मचाने के लिए कमर भी कस चुके होंगे,2-4 रकात नमाज़ पढ़कर इंटरवल करेंगे और फिर पूरे वक़्त वही हराम-खोरी कभी इधर की बात तो कभी उधर की बात*_

_*मस्जिद में मोअतक़िफ का भी इस तरह खाना पीना या बिस्तर या सामान रखना कि नमाज़ की जगह घिरे या मस्जिद का फर्श गंदा हो सख्त नाजायज़ो हराम है*_

_*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 3,सफह 594*_

_*मस्जिद में भीख मांगना हराम है,जो मस्जिद में भीख मागंने वाले को 1 रूपये देगा तो उसको 70 रूपये कफ्फारह देना होगा*_

_*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 3,सफह 436*_
_*📕 अहकामे शरीयत,हिस्सा 1,सफह 113*_

_*ⓩ अक्सर मसजिदों में देखा जाता है कि जैसे ही इमाम साहब ने सलाम फेरा फौरन एक आवाज़ आती है कि भाई मैं फलां हूं फलां जगह से आया हूं बहुत परेशान हूं ऐसे लोगों को देना सख्त मना है बल्कि गुनाह है जब ही तो कफ्फारह देने को कहा गया,हां ज़रूरत मन्द आदमी अगर अपनी हाजत पहले ही इमाम साहब से कहदे और फिर इमाम साहब उसके लिये लोगों से कहें तो ऐसा करना जायज़ बल्कि सुन्नत है क्योंकि हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम अक्सर अपने गरीब सहाबा की मदद के लिये ग़नी सहाबा में ऐलान करते थे,हां जो फक़ीर मस्जिद के बाहर बैठे रहतें हैं बिला शुब्ह उन को दिया जाये*_
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━










                       _*आयतल कुर्सी*_
―――――――――――――――――――――

_*ⓩ मुस्लिम शरीफ की हदीसे पाक है कि क़ुर्आन की आयतों में सबसे अज़मत वाली आयत आयतल कुर्सी है, इसके बेशुमार फज़ायल हैं चन्द यहां ज़िक्र करता हूं*_

_*1). मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जो शख्स हर फर्ज़ नमाज़ के बाद आयतल कुर्सी पढ़ेगा तो वो मरते ही फौरन जन्नत में दाखिल होगा*_

_*📕 मिश्कात, जिल्द 1, सफह 89*_

_*2). जो कोई जुमा के दिन बाद नमाजे अस्र 313 बार आयतल कुर्सी पढ़े तो ऐसी खैरो बरकत हासिल हो कि क़यास में ना आये और जो कोई हर फर्ज़ नमाज़ के बाद पढ़ता रहे तो मौला तआला उसे शाकिरों का क़ल्ब सिद्दीक़ों का अमल और अम्बिया का सवाब अता फरमायेगा और उसको जन्नत में दाखिल होने से कोई चीज़ माने नहीं यानि मरते ही फौरन जन्नत में जायेगा*_

_*📕 वज़ाइफे रज़वियह, सफह 131*_

_*3). अगर मकान में ऊंची जगह कुंदा करदे तो उसके घर में कभी फाक़ा ना होगा रिज़्क़ में खूब बरकत होगी और ना ही कभी उसके घर चोरी होगी*_

_*📕 जन्नती ज़ेवर, सफह 460*_

_*4). कोई भी हाजत हो तो बाद नमाज़े फज्र सलाम फेरने के फौरन बाद उसी तरह बैठे बैठे 25 बार और मग़रिब बाद उसी तरह 8 बार आयतल कुर्सी पढ़े इन शा अल्लाह बहुत जल्द मुराद पायेगा, बलगम अगर सीने पर जमा हो गया हो तो सुबह नमक की 7 कंकरियों पर 7-7 बार पढ़कर दम करके खा लें मर्ज़ से इज़ाला होगा, दिमाग की तेज़ी के लिए चीनी की प्लेट पर लिखकर धोकर पियें*_

_*📕 आमाले रज़ा, हिस्सा 3, सफह 42-45*_

_*5). अपनी अपने घर की अपने अहलो अयाल की जानो माल इज़्ज़त आबरू की हिफाज़त के लिए सुबह शाम पढ़कर उन पर दम करता रहे, और रात को अव्वल आखिर दरूद शरीफ और 1 बार आयतल कुर्सी पढ़कर खुद पर व घर के तमाम अफराद पर और घर के चारो कोनों पर दम करदे तो सबकी हिफाज़त की ज़िम्मेदारी रब की यहां तक कि उसका घर ही नहीं बल्कि आस पड़ोस के घर भी चोरी से महफूज़ हो जायेंगे इन शा अल्लाह तआला*_

_*📕 अलवज़ीफतुल करीमा, सफह 21*_

_*ⓩ दम करने के लिए सबका सामने होना कुछ ज़रूरी नहीं बस तसव्वुर करके दम कर दें युंही पूरे घर का तसव्वुर करके दम करें, आयतल कुर्सी की फज़ीलत में ये रिवायत पढ़िये और एक बहुत काम का मसअला भी समझ लीजिये*_

_*6). एक मर्तबा हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रत अबु हुरैरह रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को सदक़ये फित्र की हिफाज़त के लिए मुक़र्रर किया, एक रात आपने देखा कि एक चोर चंद बोरियां उठाए लिए जा रहा है आपने उसे पकड़ लिया जिस पर वो रोने लगा कि मैं बहुत ग़रीब आदमी हूं मुझे जाने दीजिये, हज़रत अबु हुरैरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का दिल पिघल गया और आपने उसे छोड़ दिया, दूसरे दिन जब सरकार सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम से मुलाक़ात हुई तो मेरे आक़ा सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम खुद ही इरशाद फरमाते हैं कि ऐ अबू हुरैरह रात वाले चोर का क्या किया, इस पर वो फरमाते हैं कि मुझे रहम आ गया और मैंने उसे जाने दिया तो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि वो झूठा है आज फिर आयेगा होशियार रहना, रात को फिर वही चोर आया और पकड़ा गया इस बार फिर उसने रो रोकर दुहाई दी तो फिर से हज़रत अबु हुरैरह रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को उस पर रहम आ गया और उसे जाने दिया, फिर दूसरे दिन सरकार ने पूछा कि उस चोर का क्या किया तो वो बोले कि उसने अपनी मोहताजी की शिकायत की तो मैंने उसे छोड़ दिया फिर आक़ा फरमाते हैं कि वो झूठा है आज फिर आयेगा, रात को फिर वही आया और फिर से पकड़ा गया अब हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने कहा कि आज तो मैं तुझे हरगिज़ नहीं छोड़ूंगा जब चोर ने जान लिया कि आज निकलना मुश्किल है तो कहने लगा कि अगर आप मुझे छोड़ने का वादा करें तो मैं आपको एक बहुत इल्म वाली बात बताऊं, इस पर हज़रत अबु हुरैरह रज़ियल्लाहु तआला अन्हु तैयार हो गए तो वो बोला कि जब भी आप सोने को बिस्तर पर जाओ तो आयतल कुर्सी पढ़ लिया करो कि इससे अल्लाह तुम्हारी रात भर हिफाज़त फरमायेगा और शैतान तुम्हारे नज़दीक नहीं आ पायेगा, ये सुनकर हज़रत अबु हुरैरह रज़ियल्लाहु तआला अन्हु बहुत खुश हुए और उसे छोड़ दिया, सुबह को रात का सारा वाक़िया आपने हुज़ूर को बताया तो मेरे आक़ा इरशाद फरमाते हैं कि बात तो उसने सच्ची कही मगर है वो बहुत बड़ा झूठा जो पिछली तीन रातों से तुम्हारे पास चोर बनकर आ रहा था वो कोई और नहीं बल्कि इब्लीस था*_

_*📕 मिश्कात, जिल्द 1, सफह 177*_

_*ⓩ जैसा कि आपने पढ़ लिया कि हर अच्छी बात करने वाला व नेकी की दावत देने वाला अच्छा ही हो ये कोई ज़रूरी नहीं क्योंकि नेकी की दावत देना सिर्फ मुसलमान ही नहीं करते बल्कि ज़रूरत पड़ने पर शैतान और उसके चेले भी नेकियों की दावत दिया करते हैं मगर इसमें उनका छुपा हुआ मक़सद कुछ और ही होता है, जैसा कि आजकल के बद अक़ीदे वहाबियों का मामूल बन चुका है कि झोला झप्पड़ टांग कर मस्जिदों को नजासत आलूद करने और मुसलमानों का इमान बर्बाद करने के लिए निकल पड़ते हैं, बज़ाहिर तो वो नेकियों की दावत देते हुए दिखाई देते हैं मगर उनका मक़सद सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों को गुमराह करना और काफिर बनाना है लिहाज़ा ऐसों से दूर रहने में ही ईमान की भलाई है*_
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━









  _*इबलीस का पोता*_
―――――――――――――――――――――

_*बेहकी में अमीर-उल-मोमिनीन हजरते उमर फारूक रजी अल्लाहो व सल्लम के हमराह से रिवायत हैं के एक रोज हम हुजूर सल-लल्लाहो अलेह व सल्लम के हमराह तहामा की पहाड़ी पर बैठें थे के अचानक एक बूढ़ा हाथ मे असा लिए हुजूर रसूल-उल-सकलेन सय्यद-उल-अम्बिया सल लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम के सामने हाजिर हुआ और सलाम अर्ज किया।*_

_*हुजूर ने जवाब दिया और फरमाया उसकी आवाज जिनों की सी है।फिर आपने उससे दरयाफ्त किया तु कौन हैं..?*_

_*उसने अर्ज किया मैं जिन्न हूँ। मेरा नाम हामा हैं , बेटा हेम का और हेम बेटा लाकिस का और लाकीस बेटा इबलीस का है। हुजूर ने फरमाया तो गोया तेरे और इबलीस के दरमियान सिर्फ दो पुश्तें है।*_

_*फिर फरमाया अच्छा ये बताओ तुम्हारी उम्र कितनी हैं..?*_

_*उसने कहा या रसूल अल्लाह!जितनी उम्र दुनिया की हैं उतनी ही मेरी हैं।कुछ थोड़ी सी कम है। हुजूर जिन दिनो काबील ने हाबिल को कत्ल किया था उस वक्त मैं कई बरस का बच्चा ही था मगर बात समझता था पहाड़ो में दौड़ता फिरता था और लोगों का खाना व गल्ला चोरी कर लिया करता था और लोगों के दिलों में वसवसे भी डाल देता था के वो अपने अपने खवीश व अक्रबत से बदसलूकी करे।*_

_*हुजूर ने फरमाया- तब तो तुम बहुत बुरे हो उसने अर्ज की हुजूर मुझे मलामत ना फरमाईये इसलिए के अब मैं हुजूर कि खिदमत में तौबा करने हाजिर हुआ हूँ। या रसूल अल्लाह !*_

_*मैंने हजरते नूह अलेहिस्सलाम से मुलाकत की है और एक साल तक उनके साथ उनकी मस्जिद में रहा हूँ उससे पहले मैं उनकी बारगाह में भी तौबा कर चुका हूँ ।हजरते हूद, हजरते याकूब और हजरते युसूफ अलेहिस्सलाम की सोहब्बतो में भी रह चुका हूँ।और उन से तौरात सीखी है और उनका सलाम हजरत ईसा अलेहिस्सलाम को पहुँचाया था।और ऐ नबीयो के सरदार ईसा अलेहिस्सलाम ने फरमाया था के अगर तु मोहम्मद रसूल अल्लाह सल -लल्लाहो तआला अलेही व सल्लम से मुलाकात करें तो मेरा सलाम उनको पहुँचाना सो हुजूर! अब मैं इस अमानत से सबुकदोश होने को हाजिर हुआ हूँ। और ये भी आरजु हैं के आप अपनी जुबाने हक तर्जुमान से मुझे कुछ कलाम अल्लाह तलीम फरमाईये। हुजूर अलेहिस्सलाम ने उसे सूरह मुरसलात, सुरह अम्मायतासअलून, अख्लास और मऊजतीन और इजा अश्शम्स तालीम फरमायी।और ये भी फरमाया के ऐ हारा ! जिस वक्त तुम्हें कोई अहेतियाज हो फिर मेरे पास आ जाना और हम से मुलाकात ना छोड़ना।*_

_*हजरते उमर रजी अल्लाहो फरमाते है कि हुजूर अलेहिस्सलाम ने तो विसाल फरमाया लेकिन हामा की बाबत फिर कुछ ना फरमाया, खुदा जाने हामा अब जिन्दा है या मर गया है।*_

_*📝सबक- हमारे हुजूर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम रसूल-उल-सकलेन और रसूल अलकुल है और आपकी बारगाहे आलियो जिन्नो इन्स की मरजऐ हैं।*_

_*📕 खुलासत-उल-तफासीर सफा 170*_
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━








  _*​इब्लीस​ शैतान की कुछ मालुमात*_
―――――――――――――――――――――

_*अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने दरकये सिज्जीन में दो सूरतें पैदा फरमाई एक सांप की शक्ल में जिसका नाम खबलीस था और दूसरी भेड़िये की शक्ल में जिसका नाम नबलीस था दोनों ने आपस में जुफ्ती खाई तो इब्लीस पैदा हुआ*_

_*📕 माअरेजुन नुबूवत, जिल्द 1, सफह 15*_

_*इब्लीस की बीवी का नाम रसुल है*_

_*📕 नुज़हतुल मजालिस 6, सफह 117*_

_*इब्लीस जिन्न की क़ौम से है यानि आग से पैदा किया गया है इसलिए शरीर जिन्नो को भी शयातीन कहा जाता है*_

_*📕 खाज़िन, जिल्द 2, सफह 176*_
_*📕 तकमीलुल ईमान, सफह 10*_

_*पहले आसमान पर इब्लीस का नाम आबिद दूसरे पर ज़ाहिद तीसरे पर आरिफ चौथे पर वली पांचवे पर तक़ी छठे पर खाज़िन सातवे पर अज़ाज़ील और लौहे महफूज़ में इब्लीस था, ये 40000 साल तक जन्नत का खज़ांची रहा, 14000 साल तक अर्शे आज़म का तवाफ करता रहा, 80000 साल तक फरिश्तो के साथ रहा जिसमे से 20000 साल तक फरिश्तो का वाज़ो नसीहत करता रहा और 30000 साल कर्रोबीन फरिश्तो का सरदार रहा और 1000 साल रूहानीन फरिश्तो का सरदार रहा*_

_*📕 तफसीरे सावी, जिल्द 1, सफह 22*_
_*📕 तफसीरे जमल, जिल्द 1, सफह 50*_

_*इब्लीस ने 50000 साल तक अल्लाह की इबादत की यहां तक कि अगर उसके सजदों को जमीन पर बिछाया जाए तो तो एक बालिश्त जगह भी खाली ना बचे*_

_*📕 ज़रकानी, जिल्द 1, सफह 59*_

_*इनके यहां शादी ब्याह भी होती है और बच्चे भी मगर तरीके कई हैं,कुछ की दाहिनी रान में नर की अलामत और बाईं रान में मादा की अलामत पाई जाती है, खुद ही जिमअ करता है खुद ही हामिला होता है और खुद ही बच्चा जनता है, और कुछ रोज़ाना अण्डे दिया करते हैं हर अंडे से 70 शैतान और 70 शैतानिया पैदा होते हैं*_

_*📕 खाज़िन, जिल्द 4, सफह 176*_
_*📕 उम्दतुल क़ारी, जिल्द 7, सफह 271*_
_*📕 तफसीरे सावी, जिल्द 3, सफह 35*_
_*📕 तफसीरे जमल, जिल्द 3, सफह 35*_
_*📕 तफसीरे नईमी, जिल्द 1, सफह 174*_

_*पहले शैतान आसमानों पर जाया करते थे और वहां फरिश्तो की बातें सुनकर यहां काहिनों और नुजूमियों को बताते मगर जब से हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम तशरीफ लाये तब से इनको आसमानो पर जाने से रोक दिया गया*_

_*📕 महाहिबुल लदुनिया, जिल्द 1, सफह 398*_

_*हर इन्सान के साथ एक शैतान पैदा होता है जिसका नाम हमज़ाद है जब मुसलमान का इन्तेक़ाल होता है तो रब तआला उसके हमज़ाद को क़ैद कर लेता है लेकिन जब कोई काफिर मरता है तो उसके हमज़ाद को क़ैद नही किया जाता यही भूत कहलाता है अब हर शैतान आपस मे एक दूसरे से पूछ रखते हैं ज़िन्दा इन्सान का हमज़ाद किसी मरे हुए शख्स के हमज़ाद से उसकी ज़िन्दगी की सारी मालूमात करता है और फिर ज़िन्दा शख्स के मुंह से वो सारी बातें बोलता है ताकि उन लोगों को गुमराह कर सके और कुछ लोग इसी को पुनर्जन्म या आवा-गवन समझ लेते हैं*_

_*📕 अलमलफ़ूज़, हिस्सा 3, सफह 28*_
_*📕 तफसीरे नईमी, जिल्द 1, सफह 674*_

_*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का हमज़ाद बल्कि तमाम नबियों के हमज़ाद उनकी सोहबत में रहकर मुसलमान हो गए*_

_*📕 तफसीरे नईमी, जिल्द 1, सफह 221*_
_*📕 तफसीरे अलम नशरह, सफह 199*_

_*इब्लीस का परपोता हम्मा बिन हीम बिन लाक़ीस बिन इब्लीस भी हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में हाज़िर होकर आप पर ईमान लाया और अपनी उम्र के बारे में कहा कि जब क़ाबील ने हाबील का क़त्ल किया तो मैं उस वक़्त बच्चा था*_

_*📕 क्या आप जानते हैं, सफह 484*_
_*📕 खुलासतुत तफासीर, सफह 170*_

_*मुअल्लमुल मलाकूत होने और लाखों बरस इबादत करने के बावजूद सिर्फ एक सज्दा हज़रते आदम अलैहिस्सलाम को ना करने की बिना पर उसको रांदये बरगाह कर दिया गया, उसके एक सजदा ना करने में 4 कुफ्र थे मुलाहज़ा फरमाएं*_

_*1. उसने कहा कि तूने मुझे आग से बनाया और इसको मिटटी से मैं इससे बेहतर हूं, इसमें मलऊन का मक़सद ये था कि तू बेहतर को अदना के आगे झुकने का हुक्म दे रहा है जो कि ज़ुल्म है, और उसने ये ज़ुल्म की निस्बत खुदा की तरफ की जो कि कुफ्र है*_

_*2. एक नबी को हिकारत से देखा, और नबी को बनज़रे हिक़ारत देखना कुफ्र है*_

_*3. नस के होते हुए भी अपना फलसफा झाड़ा, मतलब ये कि जब हुक्मे खुदा हो गया कि सज्दा कर तो उस पर अपना क़ौल लाना कि मैं आग से हूं ये मिटटी से है ये भी कुफ्र है*_

_*4. इज्माअ की मुखालिफत की,यानि जब सारे के सारे फरिश्ते झुक गए तो इसको भी झुक जाना चाहिए था चाहे बात समझ में आये या नहीं क्योंकि इज्माअ की मुखालिफत भी कुफ्र है*_

_*📕 नुज़हतुल मजालिस, जिल्द 2, सफह 34*_

_*सोचिये कि जब लाखों बरस इबादत करने वाला एक नबी यानि हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की तौहीन करने की बनिस्बत लाअनती हो गया तो जो लोग नबियों के सरदार हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की तौहीन कर रहे हैं उनका क्या होगा, उलमाये इकराम फरमाते हैं कि जिसने हुज़ूर की नालैन शरीफ की तौहीन कर दी वो भी काफिर है और आपके नालें पाक के नक्श के लिए आलाहज़रत फरमाते हैं कि*_

_*उलमाये इकराम ने हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की नालैन मुबारक की तस्वीर को अस्ल की तरह बताया और उसकी वही इज़्ज़त और एहतेराम है जो असल की है*_

_*📕 अहकामे तस्वीर, सफह 20*_

_*तो जब नालैन मुबारक की या सिर्फ उसकी नक्ल यानि तस्वीर की तौहीन करने वाला काफिर है तो जो आपकी ज़ात व औसाफ व हाल व अक़वाल की तौहीन करेगा वो कैसे ना काफिर होगा बल्कि वो काफिर नहीं काफिर से बदतर है*_

_*रिवायत में आता है कि एक दिन ये हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की बारगाह में हाज़िर हुआ और कहा कि रब से मेरी शिफारिश कर दीजिए मैं तौबा करना चाहता हूं, आपने उसके लिए दुआ फरमाई तो मौला फरमाता है कि ऐ मूसा इससे कह दो कि जाकर आदम की क़ब्र को सज्दा करले मैं इसे माफ कर दूंगा, ये बात जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने मलऊन को बताई तो खबीस कहने लगा कि जब मैंने उनको उनकी ज़िन्दगी में सज्दा नहीं किया तो अब उनकी क़ब्र को सज्दा करूंगा ये कहकर चला गया, यहां तक कि मौला उसको जहन्नम में 1 लाख साल जलाने के बाद निकालेगा और कहेगा कि अब भी आदम को सज्दा करले तो मैं तुझे माफ कर दूंगा इस पर वो इंकार करेगा और हमेशा के लिए जहन्नम में डाला जायेगा*_

_*📕 तफसीर रूहुल बयान, जिल्द 1, सफह 72*_
_*📕 तफसीरे अज़ीज़ी, जिल्द 1, सफह 158 इलियास मोहम्मद खान् degana*_
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━







    _*इल्म ए दीन किस से हासिल करें*_
―――――――――――――――――――――

_*🌹हज़रत इब्ने सीरीन रज़ीअल्लाहु तआला अन्ह ने फ़रमाया*_

_*ये (यानी क़ुरआन व हदीस का) इल्म ए दीन है तो देखलो के तुम अपना दीन किस से हासिल कर रहे हो*_

_*📕 मिश्कात शरीफ़, सफ़ा 37*_

_*हज़रत फ़क़ीह ए मिल्लत मुफ्ती जलाल‌उद्दीन अहमद अमजदी रज़ीअल्लाहु तआला अन्ह फ़रमाते हैं:*_

_*यानी गुमराह बेदीन और दुनियां दार से क़ुरआन व हदीस का इल्म न हासिल करो के गुमराही, बेदीनी और दुनियां दारी पैदा होगी और किसी इजतिमा में बदमज़हब का व‌अज़ (तक़रीर) भी सुनने के लिए न जाओ के बदमज़हबी असर कर जाएगी इसलिए बदमज़हब (वहाबी देवबंदी अहले हदीस शिआ क़ादयानी वगैरह) की तक़रीर सुनने के लिए जाना हराम व नजाइज़ है,*_

_*📕 इल्म और उल्मा, सफ़ा 32*_

_*📚 हदीस शरीफ़:- हज़रत इब्ने उमर रज़ीअल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत है*_

_*तालिब ए इल्म लोगों में सबसे ज़्यादा भूका है और उनमें जिसका पेट भरा है वो इल्म को तलाश नहीं करता,*_

_*📕 कन्ज़ुल उम्माल, जिल्द 10, सफ़ा 78*_

_*📚 हदीस शरीफ़:- हज़रत अबू ज़र और हज़रत अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत है,👇🏻*_

_*जबके तालिब ए इल्म को मौत आजाए और वो तलब ए इल्म की हालत पर मरे तो वो शहीद है..!*_

_*📕 कन्ज़ुल उम्माल, जिल्द 10, सफ़ा 79*_
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━









       _*ईदुलफीत्र (ईद) की नमाज़ का तरीक़ा*_
―――――――――――――――――――――

_*🔖 पहले नियत करें*_

_*👉🏻 नियत की मैने दो रकात नमाज ईदुलफीत्र की जाईद छः तकबीरो क साथ मुॅह मेरा काबा शरीफ की तरफ वासते अल्लाह तआला के पीछे ईस ईमाम के.*_
_*👉🏻 फिर अल्लाह हू अकबर कहैं*_

_*इमाम तकबीर कहकर हाथ बांधकर सना पढ़ेगा । इसके बाद ज़ाईद तकबीरैं होंगी ।*_

_*✍🏻 पहली - तकबीर केहकर हाथ कानों तक उठाकर छौड़ना हे ।*_
_*✍🏻 दुसरी - तकबीर केहकर हाथ कानों तक उठा कर छौड़ना हे ।*_
_*✍🏻 तीसरी - तकबीर कहकर हाथ कानों तक उठाकर बांधना हे*_

_*🔖 इसके बाद क़िरात होगी और रुकु सजदा करके पहली रकात मुकम्मल करली जाऐगी।*_

_*📌 दुसरी रकात के लिऐ उठते ही इमाम क़िरात करेगा यानी सुराऐ फ़ातिहा और सूरत पढ़ेगा इसके बाद ज़ाईद तीनों तकबीरैं होंगी*_

_*✍🏻 पहली - तकबीर केहकर हाथ कानों तक उठाकर छौड़ना है*_
_*✍🏻 दुसरी - तकबीर केहकर हाथ कानों तक उठा कर छौड़ना है*_
_*✍🏻 तीसरी - तकबीर केहकर हाथ कानों तक उठा कर छोड़ना है।*_
_*☝🏻यहां तक ज़ाईद तकबीरें मुकम्मल हो गई ।*_

_*👉🏻 अब इसके बाद बिना हाथ उठाऐ तकबीर कहकर रुकू में जाऐगें ।*_
_*👉🏻 और बस आगे की नमाज़ दुसरी नमाज़ौं की तरह हे।*_

_*फिर सलाम फेरना होगा..।*_
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━









                    _*ईमान और कुफ़्र*_
―――――――――――――――――――――

*_हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि ईमान ये है कि तू इस बात की गवाही दे कि अल्लाह के सिवा कोई माअबूद नहीं और मुहम्मद सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम अल्लाह के रसूल हैं और ईमान ये है कि तू खुदाए तआला और उसके रसूलों उसके फ़रिश्तों उसकी किताबों और क़यामत के दिन और तक़दीर पर यक़ीन रखे_*

_*📕 मुस्लिम, जिल्द 1, सफह 438*_

*_यानि जो बात हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम से क़तई व यक़ीनी तौर पर साबित हो उसकी तस्दीक़ करना ईमान है और उनसे इनकार करना कुफ़्र है_*

_*📕 अशअतुल लमआत, जिल्द 1, सफह 38*_
_*📕 शरह फ़िक़्हे अकबर, सफह 86*_
_*📕 तफ़सीरे बैदावी, सफह 23*_

*_अहले सुन्नत वल जमाअत के सही व मुस्तनद अक़ायद जानने के लिए हुज़ूर सदरुश्शरीया मौलाना अमजद अली आज़मी अलैहिर्रहमा की किताब बहारे शरीयत हिस्सा अव्वल का मुताला ज़रूर करें जो कि हिंदी उर्दू इंग्लिश हर ज़बान में मौजूद है, अक़ायद का पूरा मसायल एक लंबा और तवील मज़मून है जिसका यहां दर्ज कर पाना बहुत ही मुश्किल है मैं यहां कुछ मुख़्तसर ज़िक्र करता हूं_*

*_अल्लाह एक है उसका कोई शरीक नहीं ना ज़ात में ना सिफात में ना अफ़आल में ना अहकाम में और ना अस्मा में, ना उसका कोई बाप है और ना बेटा, वो अज़्ली व अब्दी है यानि जब कुछ ना था तो वो था और जब कुछ ना रहेगा तब भी वो होगा एक उसके सिवा सब कुछ हादिस है यानि फ़ना है_*

*_! वो सबसे बे परवाह है यानि किसी का मोहताज नहीं सारा जहान उसका मोहताज है_*

*_! वो हर ऐब से पाक है मसलन झूट, दग़ा, खयानत, ज़ुल्म, जहल, बेहयाई_*

*_! वो जिस्म जिस्मानियत से पाक है मसलन हयात, क़ुदरत, सुनना, देखना, कलाम, इल्म, इरादा सब उसकी सिफ़ात है मगर इसके लिए उसे ना तो जिस्म की ज़रूरत है ना रूह की ना कान की और ना आंख की_*

*_! वो ज़माना और मकान से पाक है,लिहाज़ा उल्मा इसी लिए ऊपर वाला कहने से मना फरमाते हैं_*

*_! हर भलाई और बुराई का पैदा करने वाला वही है मगर किसी गुनाह की निस्बत उसकी तरफ करना सख़्त हिमाक़त है बल्कि अपने नफ़्स की शरारत कहें_*

*_! उसके हर काम में कसीर हिकमतें होती हैं भले ही वो हमें अच्छी लगे या बुरी, लिहाज़ा क़ुदरत के किसी भी फेअल को हमेशा अपने लिए भला ही जानें_*

*_किसी भी अम्बिया की शान में अदना सी गुस्ताखी या बे अदबी करना कुफ़्र है_*

*_! तमाम अंबिया मासूम हैं यानि उनसे गुनाह का होना मुहाल यानि नामुमकिन है, और उनसे जो भी लग्ज़िशें हुई उनका ज़िक्र सिवाये क़ुरान की तिलावत या हदीस की रिवायत के अलावा हराम हराम और सख्त हराम है_*

*_! नुबूव्वत विलायत की तरह कसबी नहीं कि कोई भी अमल के ज़रिये नुबूव्वत हासिल कर ले, लिहाज़ा जो ऐसा जाने काफिर है_*

*_! कोई वली कितने ही बड़े मर्तबे का हो हरगिज़ किसी भी नबी की बराबरी नहीं कर सकता सो जो अपने आपको किसी नबी से बराबरी का दावा करे काफिर है_*

*_! अम्बिया की तादाद मुतअय्यन करना जायज नहीं कि इस मसले पर इख़्तिलाफ़ बहुत हैं लिहाज़ा जो भी तादाद बतायी जाए मसलन 124000 या 224000 तो वो कमो-बेश के साथ कही जाए_*

*_! हुज़ूर खातेमुन नबीयीन हैं जो उनके बाद किसी को नुबूव्वत का मिलना जाने काफिर है_*

*_! हुज़ूर को जिस्म ज़ाहिरी के साथ मेराज हुई, जो मस्जिदे हराम से मस्जिदे अक्सा तक के सफर का इन्कार करे काफिर है और आगे का मुनकिर गुमराह_*

*_! हुज़ूर को हर किस्म की शफाअत हासिल है जो इन्कार करे गुमराह है_*

*_! हुज़ूर मालिको मुख्तार हैं जो इन्कार करे काफिरो गुमराह है_*

*_फ़रिश्ते भी मासूम होते हैं इनके अलावा तमाम औलिया व अब्दाल गुनाह से महफूज़ होते हैं मासूम नहीं_*

*_! किसी भी फ़रिश्ते की तनकीस कुफ्र है मसलन अपने किसी दुश्मन को देखकर ये कहना कि मलकुल मौत आ गया करीब कल्मये कुफ्र है_*

*_तमाम आसमानी किताबों पर ईमान लाना ज़रूरी है,मगर हुक्म अब सिर्फ क़ुरान का ही चलेगा_*

*_! जो कुरान को ना मुक़म्मल जाने काफिर है_*

*_! क़ुरान की आयतों से मज़ाक करना भी कुफ्र है मसलन दाढ़ी मुंडा कल्ला सौफा पेश करे या भूखा कहे कि मेरा पेट क़ुल हुवल्लाह पढ़ता है_*

*_ये अक़ीदा रखना कि मरने के बाद रूह किसी और जिस्म में या जानवर में चली गयी है कुफ्र है_*

*_! हश्र रूह और जिस्म दोनों का होगा जो ये कहे कि अज़ाब या हिसाब सिर्फ रूह का होगा जिस्म का नहीं काफिर है_*

*_अज़ाबे क़ब्र, हश्र, जन्नत, दोज़ख सब हक़ हैं_*

*_यूंही आमाले दीन मसलन किसी से नमाज़ पढ़ने को कहा और उसने जवाब दिया कि बहुत पढ़ ली कुछ नहीं होता काफिर हो गया_*

*_! रमज़ान के रोज़े रखने को कहा और जवाब दिया कि रोज़ा वो रखे जिसके घर खाने को ना हो काफिर हो गया_*

*_! यूंही एक हल्की सुन्नत मसलन नाख़ून काटने को कहा तो जवाब दिया कि नहीं काटता अगर चे सुन्नत ही क्यों ना हो काफिर हो गया_*

*_! यूंही किसी आलिम की तौहीन इसलिये की ये आलिमे दीन है कुफ्र है_*

*_! यूंही किसी काफिर के त्यौहार मसलन होली, दीवाली, राम-लीला, जन-माष्ट्मी के मेलों में शामिल होकर शानो शौकत बढ़ाना भी कुफ्र है_*

*_! यूंही किसी बदमज़हब फिरके को पसंद करना या मज़ाक में ही अपने आपको उन बातिल फिरकों का बताना कुफ़्र है_*

*_! युंहि किसी मुसलमान को काफ़िर कहना कुफ़्र है उसी तरह किसी कफ़िर को मुसलमान कहना भी कुफ़्र ही है, याद रखें कि वहाबी देवबन्दी क़ादियानी खारजी राफजी अहले हदीस जमाते इसलामी और जितने भी 72 बद-मज़हब फ़िरके हैं सब काफ़िरो मुर्तद हैं_*

_*📕 बहारे शरीयत, हिस्सा 1, सफह 1--79*_
_*📕 अनवारुल हदीस, सफह 90-91*_
_*📕 अहकामे शरीयत, हिस्सा 2, सफह 163*_
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━








   *_ईमान किया है_*
―――――――――――――――――――――
*_🔘 ईमान कुर्ता पैजामा पहनने दाढ़ी रखने या टोपी लगाने का नाम नहीं है बल्कि ईमान सिर्फ और सिर्फ ये हैं कि अपने नबी से अपनी जान से भी ज़्यादा मुहब्बत की जाये_*
*_ये मैं नहीं कह रहा बल्कि खुद हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि_*
*_तुम में से कोई उस वक़्त तक मुसलमान नहीं होगा जब तक कि मैं उसे उसके मां-बाप उसकी औलाद और सबसे ज़्यादा महबूब ना हो जाऊं_*
_*📕 बुखारी, जिल्द 1, सफह 7*_
*_और मुहब्बत में सबसे खास बात क्या होती है जानते हैं ये कि मोहिब अपने महबूब की सारी कमियां नज़र अंदाज़ करके फक़त उसकी खूबियां ही बयान करता है हालांकि ये आम मुहिब और उनके महबूब सब के सब सर से लेकर पैरों तक ऐबों का मुजस्समा होते हैं, मगर रब के वो महबूब हमारे और आपके आक़ा जनाबे मुहम्मदुर रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम जो कि हर ऐब से पाक और मासूम पैदा किये गए हैं मगर कुछ हरामखोर उनके अंदर भी ऐब तलाश करते फिरते हैं और दावा मुसलमान होने का करते हैं, जबकि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान मुक़द्दस में इरशाद फरमाता है कि_*
*_खुदा की कसम खाते हैं कि उन्होंने नबी की शान में गुस्ताखी नहीं की अल्बत्ता बेशक वो ये कुफ्र का बोल बोले और मुसलमान होकर काफिर हो गए_*
_*📕 पारा 10, सूरह तौबा, आयत 74*_
*_अब हर पढ़े लिखे और बे पढ़े लिखे से ये सवाल है कि नीचे वहाबियों की किताबों से दी गई इबारतें पढ़ें या पढ़वाकर सुनले और अक़्ल से फैसला करे कि क्या ये कलिमात हुज़ूर की शान में गुस्ताखी के नहीं हैं और क्या ऐसा कहने वालों या या ऐसा कहने वालों को जो सही कहे क्या उन्हें मुसलमान समझा जा सकता है, पढ़िए_*
_*! तक़वियतुल ईमान सफह 27 पे हुज़ूर को चमार से ज़्यादा ज़लील लिखा, माज़ अल्लाह, क्या ये गुस्ताखी नहीं है*_
_! *तक़वियतुल ईमान सफह 56 पे लिखा कि नबी को किसी बात का इख़्तियार नहीं है, माज़ अल्लाह, क्या ये गुस्ताखी नहीं है*_
_! *तक़वियतुल ईमान सफह 75 पे लिखा कि नबी के चाहने से कुछ नहीं होता, माज़ अल्लाह, क्या ये गुस्ताखी नहीं है*_
_! *तहज़ीरुन्नास सफह 8 पे लिखा कि उम्मती भी नबी से अमल में आगे बढ़ जाते हैं, माज़ अल्लाह, क्या ये गुस्ताखी नहीं है*_
_! *तहज़ीरुन्नास सफह 43 पे लिखा कि हुज़ूर खातेमुन नबीयीन नहीं है, माज़ अल्लाह, क्या ये गुस्ताखी नहीं है*_
_! *बराहीने कातिया सफह 122 पे लिखा कि हुज़ूर का इल्म शैतान से भी कम है, माज़ अल्लाह, क्या ये गुस्ताखी नहीं है*_
_! *हिफज़ुल ईमान सफह 7 पे लिखा कि हुज़ूर का इल्म तो जानवरों की तरह है, माज़ अल्लाह, क्या ये गुस्ताखी नहीं है*_
_! *सिराते मुस्तक़ीम सफह 148 पे लिखा कि नबी का ख्याल नमाज़ में लाना गधे और बैल से भी बदतर है, माज़ अल्लाह, क्या ये गुस्ताखी नहीं है*_
*_अगर ये सब बातें इन वहाबियों के बाप-दादा की शान में की जाए तो क्या वो इसे अच्छा समझेंगे नहीं और यक़ीनन नहीं तो फिर कैसे एक मुसलमान इन काफिरों को अच्छा समझे, जिसने मेरे आक़ा की शान में गुस्ताखी की और उन्हें ईज़ा दी तो उसके लिए रब का ये फरमान है,पढ़ लें_*
*_वो जो रसूल अल्लाह को ईज़ा देते हैं उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है_*
_*📕 पारा 10, सूरह तौबा, आयत,61*_
*_और फुक़्हा का ऐसे बद बख्तों के बारे में क्या कहना है ये भी पढ़ें_*
*_जो किसी नबी की गुस्ताखी के सबब काफिर हुआ तो किसी भी तरह उसकी तौबा क़ुबूल नहीं और जो कोई उसके कुफ्र में या अज़ाब में शक करे वो खुद काफिर है_*
_*📕 रद्दुल मुख़्तार, जिल्द 3, सफह 317*_
*_और मेरे आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि_*
*_किसी भी काफिर की तौबा क़ुबूल है मगर जो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताखी करके काफिर हुआ तो किसी भी अइम्मा के नज़दीक उसकी तौबा क़ुबूल नहीं, अगर इस्लामी हुक़ूमत हो तो ऐसो को क़त्ल ही किया जाए अगर चे उनकी तौबा सच्ची ही क्यों ना हो अगर तौबा सही हुई तो क़यामत के दिन बख्शा जायेगा मगर यहां उसकी सज़ा मौत ही है_*
_*📕 तम्हीदे ईमान, सफह 42*_
*_अब सोचिये खुदा और रसूल के ये मुजरिम जो क़त्ल के मुस्तहिक़ हो चुके उनसे बात करना उनसे सलाम जवाब करना उनके साथ खाना पीना उनके यहां रिश्तेदारी करना किस हद तक शर्म की बात है, और क्या इस मेल-जोल पर हम खुदा का क़हर मोल नहीं ले रहे हैं ये आखिरी रिवायत पढ़ लीजिए समझदार के लिए बहुत है_*
*_मौला ने हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम को हुक्म दिया कि फलां बस्ती पर अज़ाब नाज़िल करदे तो जिब्रील अलैहिस्सलाम बोले कि मौला उस बस्ती में तेरा एक नेक बन्दा है जो एक आन के लिए भी तेरी इबादत से ग़ाफिल ना रहा, मौला फरमाता है कि फिर भी सब पर अज़ाब नाज़िल कर बल्कि पहले उस नेक पर अज़ाब नाज़िल कर क्योंकि उसने गुनाह को देखकर भी अनदेखा कर दिया_*
_*📕 अशअतुल लमआत, जिल्द 4, सफह 183*_
*_जब कोई क़ौम में गुनाह होता है और कोई नेक बन्दा रोकने की ताक़त रखने के बावजूद भी उसे ना रोके तो सब अज़ाबे इलाही के मुस्तहिक़ होंगे_*
_*📕 मिश्कात, सफह 437*_

*_अस्तग़फ़ेरुल्लाह, क्या ही इबरतनाक रिवायत है,सिर्फ गुनाह को गुनाह और मुजरिम को मुजरिम ना समझने पर अज़ाब की वईद आई है तो अंदाजा लगाइये कि जो खुद उस गुनाह में शामिल हो जाए वो कैसे मौला के अज़ाब से बचेगा, और आजकल तो ऐसे मुसलमानों की कसरत है जो दुश्मनाने रसूल को दुश्मन ही नहीं समझते हालांकि अगर कोई उनके मां-बाप को गाली देदे तो हाथा पाई पर उतर आएंगे मगर जो नबी की शान में गुस्ताखियां करते फिरते हैं उन्हें अपना अज़ीज़ समझते हैं, मौला तआला से दुआ है कि मुसलमानों को अपने हबीब से सच्ची मोहब्बत करने की तौफीक़ अता फरमाए और हम सबको मसलके आलाहज़रत पर क़ायम रखे और इसी पर मौत नसीब अता फरमाये-आमीन_*
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━







*ईमान व अक़ीदे से ज़्यादा अमल को अहमियत देना*_
―――――――――――――――――――――

*_हमारे काफी अवाम भाई किसी की ज़ाहिरी नेकी और अच्छाई यानि अच्छा काम देख कर उसकी तरीफ करने लगते हैं और उस से मुतअस्सिर हो जाते हैं जब्किह इस्लामी नुक़तऐ नज़र से कोई भी नेकी उस वकत तक क़ुबूल नहीं जब तक कि उसका ईमान व अक़ीदा दुरूस्त ना हो_*

_*📕 गलत फहमियां और उनकी इस्लाह सफह 20*_

*_हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैही वसल्लम ने जब एैलाने नुबुव्वत फरमाया था तो पहले नमाज़ व ज़कात रोज़ा व ह़ज्ज का हुक्म नहीं दिया था बल्किह ये फरमाया था कि अल्लाह को एक मानों बुतों की पूजा उसकी इबादत से बाज़ आवो और मुझ को अल्लाह का रसूल मानों आज भी जब किसी काफिर को मुसलमान करते हैं तो सबसे पहले उसको नमाज़ रोज़े का हुक्म नहीं देते अच्छाईयां करने और बुराईयां छोडने का हुक्म नहीं दिया जाता बल्किह पहले कल्मा पढ़ा कर मुसलमान किया जाता है फिर बाद में अच्छाई बुराई और अहकामे इस्लाम से आगाह किया जाता है_*

_*📕 गलत फहमियां और उनकी इस्लाह सफह 20*_

*_ह़दीस:- हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैही वसल्लम ने फरमाया कि अगर कोई शख्स उह़द पहाड के बराबर भी सोना राहे खुदा में खर्च करे खुदा ऐ तआला क़ुबूल नहीं फरमायेगा जब तक कि वह तक़दीर पर ईमान ना लाये_*

_*📕 मिशकात शरीफ सफह 23*_

_*इस ह़दीस सेे ये खूब अच्छी तरह मालूम हो गया कि जो इस्लाम के लिये ज़रूरी अक़ाएद ना रखता हो उसकी कोई नेकी, नेकी नहीं अल्लाह तआला फरमाता है*_

*_कन्ज़ल ईमान:- ये क़ुरआन हिदायत है मुत्तक़ीन (डर वलों) के लिये जो बगैर देखे ईमान लाये हैं,और नमाज़ अदा करते और हमारे दिये हुऐ माल मेंसे हमारी राह में खर्च करते हैं_*

_*📕 पारा 1, रूकू,1*_

*_इस आयते करीमा में भी अल्लाह तआला ने नमाज़ और राहे खुदा में खर्च करने से पहले ईमान क़ ज़िक्र फरमाया है- खुलासा ऐ है कि जिस शख्स का ईमान व अक़ीदा दुरूस्त ना हो या वह गैर इस्लामी ख्यालात व अक़ाऐद रखता हो उस से कभी मुतअस्सिर नहीं होना चाहिये ना उसकी तारीफ करना चाहिये चाहे जितना अच्छा काम करे क़ुरआन करीम में गैर इस्लामी अक़ाऐद रखने वालों की नेकियों और उनके कारनामों को बेकार व फुज़ूल फरमाया गया है और उसकी मिसाल उस गर्दो गुबार से दी गई है जो किसी चट्टान पर लग जाती है फिर उसे बारिश धोकर बहा देती है और उसका नाम व निशान तक बाक़ी नहीं रहता_*

*_कुछ हमारे भाई बद अक़ीदों की बडी तरीफ करते कि वह रोज़ा नमाज़ बहुत करते हैं वह तो मुझ से अच्छे हैं वह लोगों को रोज़ा नमाज़ की तरफ बुलाते मदर्सा मस्जिद बनवाते हैं नेक काम बहुत करते वह मुझ से अच्छे हैं और उन से मुतअस्सिर हो कर उनसे मेल जोल रखते सलाम कलाम करते वह लोग भी सुन लें कि जिसका अक़ीदा दुरूस्त नहीं वह कोई भी नेकी करे रबकी बारगाह में क़ुबूल नहीं उहद पहाड के बराबर सोना खैरात करदें फिर भी रब क़ुबूल नहीं फरमायेगा जब तक कि पहले वह ईमान व अक़ीदा दुरूस्त ना कर ले_*

_*📕 मिशकात शरीफ सफह 23*_

*_ह़दीस:- बद मज़हबों से दूर रहो और उन्हें अपने से दूर रखो कहीं एैसा ना हो कि वह तम्हें गुमराह करदें और फितना में मुब्तिला करदें_*

_*📕 मुस्लिम शरीफ जिल्द 1 सफह 10*_
_*📕 फतावा फिक्ह मिल्लत जिल्द 2 सफह 170*_

*_किसी भी बद मज़हब से कोई तआउन लेना जायज़ नहीं कि उनसे किसी तरह का तअल्लुक़ दीन व ईमान के लिये ज़हर क़ातिल है_*

_*📕 फतावा फिक़्ह मिल्लत जिल्द 2 सफह 242*_
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━







   _*उल्मा की तौहीन कुफ्र है*_
―――――――――――――――――――――

_*🌹उल्मा की आ़लिम ए दीन होने की बिना पर तौहीन कुफ्र है । अगरचे ये तौहीन बतौर हंसी मजा़क हो*_

_*और फतहु़ल क़दीर में है कि जिसने ये लफ़्ज बतौर मजा़क कहा तो वह काफिर व मुरतद हो गया अगरचे वह इसका अ़की़दा न रखे ।*_

_*📕 दुर्रे मुख्तार, किताबुलजि़हाद, जिल्द 6, सफह़ 356*_
_*📕 अल इशबाह वन्नजा़इर, जिल्द 2, सफह़ 87*_
_*📕 बहारे शरीअत, जिल्द 2, हिस्सा 9*_
_*📕 फ़तावा शारेह़ बुखारी, जिल्द 2, सफह़ 472*_
_*📕 फ़तावा फैजु़र्रसूल, जिल्द 2, सफह़ 136*_
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━








   _*औरतों की मजारात पर हाजिरी देना कैसा*_
―――――――――――――――――――――

_*📖सवाल - इस्लामी बहने कब्रिस्तान या मजाराते औलिया पर जा सकती है या नही..?*_

_*✍🏻जवाब - औरतो के लिए बाज उलमा मे जियारते कुबुर को जाईज बताया दुर्रे मुख्तार मे यही कौल इख्तियार किया*_

_*मगर अजीजो की कुबुर पर जाएगी तो जजअ व फजअ यानी रोना पीटना करेगी लिहाजा मना है*_

_*सालिहीन की कुबुर पर बरकत के लिए जाए तो बुढीयो के लिए हर्ज नही और जवानो के लिए मना*_

_*📕 दुर्रे मुख्तार जिल्द-3, सफा-178*_

_*अल्लामा मुफ्ती मुहम्मद अमजद अली आजमी अलैही रहमतुल्लाह फरमाते है :*_

_*और अस्लम यानी सलामती का रास्ता यह है कि औरते मुत्लकन मना की जाए कि अपनो की कुबुर की जियारत मे तो वह जजअ व फजअ यानी रोना पीटना है*_

_*और सालिहीन की कुबुर पर या ताजीम मे हद से गुजर जाएगी या बे अदबी करेगी तो औरतो मे यह दोनो बाते कसरत से पाई जाती है*_

_*📕 बहारे शरीअत, जिल्द अव्वल, सफा 849*_

_*मेरे आला हजरत अजीमुल बरकत मुजदद्दीदे दीनो मिल्लत ने औरतो को मजारात पर जाने की जाब जा बजा मुमा न अत फरमाई चुनान्चे*_

_*एक मकाम पर फरमाते है इमाम काजी रहमतूल्लाह तआला अलैही से इस्तिफ्ता सवाल हुआ कि*_

_*औरतो का मकबिर को जाना जाईज है या नही..!*_

_*तो आप ने फरमाया ऐसी जगह जवाजे व आदमे जवाज यानी जाईज व ना जाईज का नही पुछते यह पुछो कि*_

_*📍औरत पर कितनी लानत पडती है*_

_*जब घर से कुबुर की तरफ चलने का इरादा करती है अल्लाह तआला और फरिश्तो की लानत होती है*_

_*जब घर से बाहर निकलती है सब तरफो से शैतान उसे घेर लेते है*_

_*जब कब्र तक पहुचती है मय्यत की रूह उस पर लानत करती है जब तक वापस आती है अल्लाह तआला की लानत मे होती है.!*_

_*📕 फतावा रजविया, जिल्द 9, सफा 557*_

_*🕋अल्लाह तआला हमारे माँ बहनो को इन सब बातों पर अमल करने की तौफिक बख्शे..!*_
_*🌹आमीन सुम्मा आमीन*_
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━










                 _*औलाद के क़ातिल*_
―――――――――――――――――――――

_*हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है उन्होंने कहा कि मैंने हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम से पूछा कि या रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम कौन सा गुनाह सबसे बड़ा है तो फ़रमाया कि तू अल्लाह का किसी को शरीक ठहराये हालांकि उसने तुझे पैदा किया फिर पूछा कि उसके बाद कौन सा तो आप सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि तू अपनी औलाद को इस डर से क़त्ल करे कि वो तेरे साथ खायेगी*_

_*📕 बुखारी शरीफ,जिल्द 2, सफह 887*_

_*आज के इस मॉडर्न दौर में Birth Control का तरीका उरूज पर है,एक दो बच्चे हो जाने के बाद मर्द या तो नसबंदी करा लेता है या फिर औरत का ही ऑपरेशन करवाकर सिलसिलाए तनासुल ही ख़त्म कर देता है, हालांकि ऐसा करना सख़्त नाजायज़ों हराम और बड़ा गुनाह है, इसी तरह उन दवाओं का इस्तेमाल भी हराम है जिससे कि हमेशा के लिए बच्चे की पैदाइश रोकी जाए, आजकल आम तौर पर लोगों का और मॉडर्न मुसलमानों का भी यही ख्याल हो गया है कि ज़्यादा बच्चे हो जायेंगे तो खाने पीने या उनकी परवरिश की दिक़्क़त हो जायेगी, यक़ीनन ऐसा अक़ीदा रखना नाजायज़ों हराम है, इंसान की क्या औक़ात कि वो किसी को खिला सके या परवरिश कर सके, बेशक़ हक़ीक़त में खिलाने पिलाने और सबकी रोज़ी का ख्याल रखने वाला सिर्फ अल्लाह है जैसा कि क़ुरान में खुद इरशाद फरमाता है कि*_

_*और ज़मीन पर चलने वाला कोई ऐसा नहीं जिसका रिज़्क़ अल्लाह के ज़िम्मे करम पर ना हो*_

_*📕 पारा 12,सूरह हूद,आयत 6*_

_*दूसरी जगह इरशाद फरमाता है कि*_

_*और अपनी औलाद को मुफलिसी की डर से क़त्ल न करो कि हम उन्हें भी रोज़ी देंगे और तुम्हे भी बेशक क़त्ल बड़ी खता है*_

_*📕 पारा 15,सूरह बनी इसराईल, आयत 31*_

_*एक और जगह इरशाद फरमाता है कि*_

_*तहक़ीक़ कि तबाह हुए वो जो अपनी औलाद को क़त्ल करते हैं अहमक़ाना जिहालत से*_

_*📕 पारा 8,सूरह इनाम,आयत 140*_

_*फ़िक़ह*_

_*सय्यदना सरकारे आलाहज़रत रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि 👇🏻*_

_*ऐसी दवा का इस्तेमाल जिससे हमल न होने पाए अगर किसी ज़रूरते शदीद क़ाबिले क़ुबूल शरह के सबब है तो हर्ज नहीं वरना सख्त बुरा व माअयूब है और शरअन ऐसा करना नाजायज़ों हराम है*_

_*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 9, सफह 563*_
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

No comments:

Post a Comment

You did very well by messaging, we will reply you soon thank you

🅱️ बहारे शरीअत ( हिस्सा- 03 )🅱️

_____________________________________   _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 089)*_ ―――――――――――――――――――――             _*🕌नमाज़ पढ़ने का तरीक...