Wednesday, November 4, 2020

73 फिरको में एक जन्नती

*फ़िर्कों में ना बटो*

क़ुरआन ए मुक़द्दस में - अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है👇

तर्जमा👇
और अल्लाह की रस्सी को मजबूती से थाम लो सब मिलकर और आपस में फट ना जाना 
(फिरकों में ना बट जाना)

 📚पारा 4,सूरह आले इमरान,आयत 103,

कुछ लोग इस आयत को पेश करके ये बताना चाहते हैं के फिरके में बटने के लिए मौला तआला ने मना फरमाया है जो लोग फिरका फिरका कर रहे हैं वो गलत राह पर हैं,

तो इसका जवाब ये है के बेशक मौला तआला ने फिरकों में बटने से मना फरमाया है मगर ये भी बताईये के ये फिरकों में बाट कौन रहा है आखिर वो कौन लोग हैं जो अलग फिरका बनाकर अपनी अलग रविश इख्तियार करते हैं,

अलहम्दुलिल्लाह
हम अहले सुन्नत व जमाअत तो 1400 साल से उसी अक़ीदे पर क़ायम हैं जो अक़ीदा हमारे नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हमें दिया और जिसकी तालीम सहाब-ए किराम ताबईन तबअ ताबेईन अइम्मा ए मुजतहिदीन उल्मा-ए कामेलीन औलिया ए किराम हमको देते चले आये हैं हम तो अल्हम्दुलिल्लाह आज भी उसी राह पर चल रहे हैं जिस पर हमारे नबी ने हमको छोड़ा था, तो इस आयत पर अमल करने का सबसे पहला हक़ उन बदअक़ीदों का है जो अहले सुन्नत व जमाअत से अलग होकर अपनी नफ़्सानी ख़्वाहिशात से एक नया फिरका बनाते हैं सुन्नी तो सिर्फ उस फिरके की निशान देही करता है,
ये तो वही बात हो गयी के "उल्टा चोर कोतवाल को डांटे" मतलब ये के कुछ हराम खोर सुन्नियों से अलग होकर बातिल अक़ीदों के साथ एक गुमराह कुन जमाअत बना डालते हैं मुसलमानों में तफरका डालते हैं और कहते हैं के हम गलत नहीं करते हम तो सबको एक करने में लगे हैं,

लेकिन अगर कोई सुन्नी अपने मुसलमान भाई के ईमान की हिफाज़त के लिए उस बातिल फिरके की पहचान बता दे तो ये सुलहकुल्ली कहता है के सुन्नी फितने बाज़ हो गया,
हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता,

अगर इस आयत से ये मुराद लेकर ये कहना चाहते हैं की सभी कलमा पढ़ने वाले हक़ पर है किसी को बुरा नही कहना चाहिये तो ऐसे लोग क़ुरआन के ख़िलाफ़ करते हैं और अपना ही बेड़ा गर्क कर रहे हैं! 

फिरक़ा मे मत बटो चलो देखते हैं कौन फिरका मे बटा है! ये पढ़ने के बाद अगर हक़ हलक़ से नीचे ना उतरे तो समझ लेना!

अल्लाह तआला ने अन्धा बेहरा और गूंगा कर दिया है!

अलहम्दुलिल्लाह
हमको तो हमारे नबी ए करीम सल्लल्लाहू तआला अलैही वस्सललम ने सीधी राह बता दी है हमे उसीपर चलना है।

खैर अब मेन मुद्दे पर आते है तो क़ुरआन शरीफ़ की तिलावत की जाए ताके अपने लिये हक की राह और निजात का रास्ता पा सकें तो जब हमने क़ुरआन ए मुकद्दस को देखा तो रहनुमाई फरमा दी और इश्को इरफान की राह के खुतुतो नुकुश (निशान) जाहिर फ़रमा दिये!

अल्लाह तआला ने इरशाद फ़रमाया
कुरआन : तर्जमा👇

ऐ महबुब ﷺ अगर तुम इन गुस्ताखों की 70 बार भी माफ़ी चाहोगे तो अल्लाह हरगिज़ इन्हे नही बख़्शेगा!

📚पारा 9 सूरह तौबा आयत 80,

मैने कोशिश की के अपने आप को किसी फिरके से ना जोड़ूं मगर ऐसी कोई राह ना मिली।

क्योकी अल्लाह के नबी ﷺ की हदीसे पाक ने हमारी रहनुमाई की और हमारे इमान व इस्लाम की हिफ़ाजत फरमाई।

हदीस शरीफ़

हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने फरमाया👇

बनी इस्राइल 72 फिरकों मे बट गई! और मेरी उम्मत 73 फिरको मे बट जाएगी! और सारे फिरके जहन्नमी होंगे सिवाये एक के!
📚 तिर्मिज़ी शरीफ़ जिल्द 2 किताबुल ईमान!

हर जगह 73 फिरके मे 72 फिरका गुस्ताखी ए नबी करने की वजह से मुनाफ़िक़ , झुठे, जहन्नमी,काफिर और बे इमान और बद दीन व गुमराह नज़र आयें! 
इन 73 मे से सिर्फ़ एक फिरका कामयाब जन्नती सच्चा हक़ और दीन पर नज़र आया जिसकी वजाहत कुरआन ए मजीद ने खुद फरमा दी और कयामत तक के मुस्लमानो के लिये कामयाबी और निजात का रास्ता बता दिया!

अगर कुरआन मे कहीं *मुसलमान* लफ्ज़ का ज़िक्र आया है तो इससे मुराद इमान वाले ही हैं मुनाफ़िक़ या गुस्ताखे रसूल नही।

कुरआन कहता है।

सब मिलकर अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से थाम लो और फिरको मे मत बटो

📗 सूरह आले इमरान आयत 103,

तरीका ए बुज़ुर्गाने दीन मज़हबे अहले सुन्नत है उसके सिवा कोई दुसरी राह इख़्तियार करना तफरका बाज़ी (फिरको मे बटना ) है जो की मना है मगर चूकी मुनाफ़िक़ीन ने उम्मत को अपनी नफ़्सानी ख़्वाहिशात के लिए जानबूझकर फिरको मे बांट दिया है इस लिये कुरआन कहता है।

तर्जमा👇

"और वो जिन्होंने मस्जिद बनाई (इस्लाम को) नुकसान पहुंचाने को और कुफ़्र के सबब और मुस्लमानो में तफरका डालने को और उसके इन्तजार में जो पहले से अल्लाह और उसके रसूल का मुखालिफ़ है और वो (मुनाफ़िक) भलाई की कसमे भी खाऐंगे मगर अल्लाह गवाह है के वो बेशक झूटे हैं!
📗पारा 9 सूरह तौबा आयत 107

देखो इस आयते करीमा से मालूम होता है के कुछ नाम निहाद मुसलमान यानी मुनाफ़िक़ों ने हुज़ूर अलैहिस्सलाम से अलग होकर एक मस्जिद बनाई
जिसको रब तआला ने क़ुरआन में मस्जिद ए ज़िरार कहा तो हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने कुछ सहाबा ए किराम को हुक्म दिया के उस मस्जिद को आग लगा दो, और एसा ही हुआ,,,,

अल्लाह तआला ने इरशाद फ़रमाया
क़ुरआन तर्जमा👇

ऐ ईमान वालो!अपने बाप और अपने भाईयों को दोस्त ना बनाओ अगर वो इमान पर कुफ़्र पसन्द करें! और तुम में से जो कोई उनसे दोस्ती करेगा तो वही ज़ालिम है!
📗 पारा 9 सूरह तौबा आयत 23,

क़ुरआन तर्जमा👇

और इन में से किसी की मैय्यत पे कभी नमाज़ ना पढ़ना और ना इनकी क़ब्र पे खड़े होना! बेशक वो अल्लाह व उसके रसूल से मुन्किर हुए और फ़िस्क में ही मर गये!
📗 पारा 9 सूरह तौबा आयत 84,

इन सब वाजेह आयाते करीमा के बावजूद अगर आशिके रसूलﷺ, और गुस्ताखे नबी और मुनाफ़िक़ सब ही मुस्लमान है तो अल्लाह के इस फ़रमान का क्या मतलब है,,

नबी ए करीम ﷺ के इल्मे ग़ैब पे जब मुनाफ़िक़ीन ने हँसी की तो अल्लाह तआला ने इरशाद फरमाया

तर्जमा👇

बहाने ना बनाओ तुम काफिर हो चुके हो मुसलमान होकर।
📗 पारा 9 सूरह तौबा आयत 66,

और आज भी मुनाफ़िक़ीन यानी वहाबी देवबंदी नक़ली अहले हदीस यानी ग़ैर मुक़ल्लिदीन नबी ﷺ में कमियां ही तलाश करने की कोशिश कर रहे हैं कोई कहता है के नबी को इल्मे ग़ैब नहीं कोई कहता है के नबी हमारे जैसे हैं कोई कहता है के नबी को किसी चीज़ का इख़्तियार नहीं, वग़ैरह वग़ैरह।

एसों ही के बारे में अल्लाह तआला ने इरशाद फरमाया👇

तर्जमा
अल्लाह ने मुनाफ़िक़ मर्दों मुनाफ़िक़ औरतों और काफिरो को जहन्नम की आग का वादा दिया है जिसमें (मुनाफ़िक और काफिर) हमेशा रहेंगे! 
📗 पारा 9 सूरह तौबा आयत 68

इससे साफ़ साफ़ जाहिर होता है की कलमा पढ़ने वाला अगर गुस्ताखी कर दे तो वो मुस्लमान नही रहता बल्के काफ़िर हो जाता है! इसलिये ये कहना गलत साबित हुवा की हर फिरका हक़ पर है क्योकी गुस्ताखियां करने वाला और दीन में तब्दीलियां करने वाला कभी हक़ पर नही होता।इसलिये 
अल्लाह तआला ने इरशाद फरमाया👇

काफिरों और मुनाफ़िक़ों पर सख़्ती करो और इनका ठिकाना दोज़ख है!
📗 पारा 9 सूरह तौबा आयत 73

अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है👇

तर्जमा
(ऐ नबी ﷺ) जब मुनाफ़िक तुम्हारे हुजूर हाज़िर होते है,कहते है की हम गवाही देते है की हुजूर बेशक यकीनन अल्लाह के रसूल हैं!
और अल्लाह जानता है के तुम उसके रसूल हो और अल्लाह गवाही देता है के ये मुनाफ़िक़ ज़रूर झूटे हैं,
📚 पारा 63 सूरह मुनाफिकून आयत 1,

इस लिये के वो (मुनाफ़िक़) ज़बान से इमान लाये थे ना के दिल से फिर दिल से काफिर हुवे तो उनके दिलों पर अल्लाह ने मुहर कर दी! तो अब वो कुछ नही समझतें!

📗 सूरह मुनाफिकून आयत 3,

कुरआन ए मुक़द्दस की इन आयतों को पढ़कर हर अकलमंद अब खुद फैसला कर सकता है के फ़िरक़े किसने बनाए और हमे किन की पैरवी करनी है और किस रास्ते पर चलना है क्योकी हक़ और बातिल के दरमियान फर्क बताकर कुरआन मजीद ने अल्लाह के रसूल और सहाबा ए किराम और औलिया ए किराम के तरीके और इनके रास्ते को सच्चा और हक़ फरमा कर इनकी जमाअत को सच्चा और उनके साथ रहने वालो को सच्चा और हक़ पर कायम रहने वाला बताया है और हमेशा उनके साथ रहने की तालीम भी दे दी है लिहाजा साबित हुवा मज़हबे अहले सुन्नत व जमाअत जिसको पहचान के लिए *मसलक ए आलाहज़रत* कहा जाता है मुकम्मल तोर पर क़ुरआन व हदीस के मुवाफ़िक़ हक़ व सदाकत का एक वाहिद कामयाब और जन्नती फिरक़ा है।
तो तमाम लोगों को चाहिए के मसलक-ए-आलाहज़रत पर सख़्ती से क़ायम रहें,

अल्लाह पाक हक बात समझने की तौफीक अता फरमायें और ता हयात सुन्नियत पे कायम रखे और तमाम फ़िरक़ाहाए बातिला से हम तमाम सुन्नियों को महफ़ूज़ रखे! आमीन बिजाही सय्यिदिल मुरसलीन सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम,




Post. 1️⃣

73 फिरको में एक  जन्नती  
*हदीस शरीफ़*👇

 हज़रत इब्ने उमर रज़िअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है के रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया के मेरी उम्मत पर एक ज़माना ज़रूर ऐसा आयेगा जैसा कि बनी इस्राईल पर आया था बिल्कुल हु बहु एक दूसरे के मुताबिक, यहां तक कि बनी इस्राईल में से अगर किसी ने अपनी मां के साथ एलानिया बदफैली की होगी तो मेरी उम्मत में ज़रूर कोई होगा जो ऐसा करेगा और बनी इस्राईल 72 मज़हबो में बट गए थे और मेरी उम्मत 73 मज़हबो में बट जायेगी उनमें से एक मज़हब वालों के सिवा बाकी तमाम मज़ाहिब वाले नारी और जहन्नमी होंगे सहाबा ए किराम ने अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम वह एक मज़हब वाले कौन होंगे तो हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि वह लोग इसी मज़हबो मिल्लत पर कायम रहेंगे जिस पर मैं हूं और मेरे सहाबा हैं

📚 तिर्मिज़ी,हदीस नं 171
📚 अबु दाऊद,हदीस नं 4579
📚 इब्ने माजा,सफह 287
📚 मिश्कात,जिल्द 1,सफह 30,

*तशरीह* – हज़रत शेख अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी रज़िअल्लाहु तआला अन्हु इस हदीस शरीफ के तहत फरमाते हैं कि “निजात पाने वाला फिरक़ा अहले सुन्नत व जमाअत का है अगर ऐतराज़ करें कि कैसे नाजिया (निजात पाने वाला) फिरक़ा अहले सुन्नत व जमाअत है और यही सीधी राह है और खुदा ए तआला तक पहुंचाने वाली है और दूसरे सारे रास्ते जहन्नम के रास्ते हैं जबकि हर फिरक़ा दावा करता है कि वो राहे रास्त पर है और उसका मज़हब हक है तो इसका जवाब ये है कि ये ऐसी बात नहीं जो सिर्फ दावे से साबित हो जाये बल्कि इसके लिए ठोस दलील चाहिये,और अहले सुन्नत व जमाअत की हक़्क़ानियत की दलील ये है कि ये दीने इस्लाम हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से मन्क़ूल होकर हम तक पहुंचा है और अक़ाइदे इस्लाम मालूम करने के लिए सिर्फ अक़्ल का ज़रिया काफी नहीं है, जबकि हमें अखबारे मुतवातिर से मालूम हुआ और आसारे सहाबा और अहादीसे करीमा की तलाश से यक़ीन हुआ कि सल्फ सालेहीन यानि सहाबा ताबईन और उनके बाद के तमाम बुज़ुर्गाने दीन इसी अक़ीदा और इसी तरीक़े पर रहे और अक़्वाले मज़ाहिब में बिदअत व नफसानियत ज़माना ए अव्वल के बाद पैदा हुई, सहाब-ए किराम और सल्फ मुताक़द्देमीन यानि ताबईन तबअ ताबईन व अइम्मा ए मुज्तहेदीन में से कोई भी उस नए मज़हब पर नहीं थे उससे बेज़ार थे बल्कि नए मज़हब के ज़ाहिर होने पर मुहब्बत और उठने बैठने का जो लगाओ पहले क़ौम के साथ था वो तोड़ लिया और ज़बानो क़लम से उसका रद्द फरमाया

सियाह सित्तह व हदीस की दूसरी मुसतनद किताबों की जिन पर अहकामे इस्लाम का मदार व मबनी हुआ उसके मुहद्दिसीन और हनफी शाफई मालिकी व हंबली के फुक़्हा व अइम्मा और उनके अलावा दूसरे उल्मा जो उनके तबक़े में थे सब इसी मज़हबे अहले सुन्नत व जमाअत पर क़ायम थे, इसके अलावा अशारिया व मातुरीदिया जो उसूले कलाम के अइम्मा हैं उन्होंने भी सल्फ के मज़हब यानि अहले सुन्नत व जमाअत की ताईद व हिमायत फरमाई और दलायले अक़्लिया से इसे साबित फरमाया और जिन बातों पर सुन्नते रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम और इजमाये सल्फ सालेहीन जारी रहा उसको ठोस क़रार दिया इसीलिए अशारिया और मातुरीदिया का नाम अहले सुन्नत व जमाअत पड़ा,अगर चे ये नाम नया है मगर मज़हबो एतेक़ाद उनका पुराना है और उनका तरीक़ा अहादीसे नब्वी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की इत्तेबा और सल्फ सालेहीन के अक़वाल व आमाल की इक़्तिदा करना है, सूफिया ए किराम की निहायत क़ाबिल और एतेमाद किताब *तअर्रुफ* है जिसके बारे में सय्यदना शेख शहाब उद्दीन सुहरवर्दी रज़िअल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि अगर तअर्रुफ किताब ना होती तो हम लोग मसाइल तसव्वुफ से नावाकिफ रह जाते, इस किताब में सूफिया ए किराम के जो इजमाली अक़ाइद बयान किये गए हैं वो सबके सब बिला कम वा कास्त अहले सुन्नत ही के अक़ाइद हैं, हमारे इस बयान की सच्चाई ये है कि हदीस-तफ़्सीर-कलाम-फिक़्ह-तसव्वुफ-सैर और तारीखे मोअतबर की किताबें जो भी मशरिक से लेकर मग़रिब तक के इलाके में मशहूर व मारूफ हैं उन सबको जमा किया जाये और उनकी छान-बीन की जाये और मुखालिफीन भी अपनी किताबें लायें ताकि आशकार हो जाये की हक़ीक़ते हाल क्या है, खुलासा ए कलाम ये कि दीने इस्लाम में सवादे आज़म मज़हबे अहले सुन्नत व जमाअत ही है

📚 अशअतुल लमआत,जिल्द 1,सफह 140,

अब आज जो लोग सुन्नियों से ये कहते नज़र आते हैं कि क्यों फिरकों में मुसलमानो को उलझा रखा है दर असल वो जाहिल अहमक़ और बे ईमान किस्म के लोग हैं वरना ऐसी आफताब रौशन हदीस से रू गरदानी ना करते, ये फिरका सुन्नी नहीं बनाते बल्कि कुछ बे ईमान अहले सुन्नत व जमाअत से निकलकर एक अलग गुमराह जमाअत बना डालते हैं सुन्नी उसी की निशान देही कराता है, और फिरक़ा बनना तो हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के ज़माना ए मुबारक में ही शुरू हो गया था कुछ बे ईमान मुसलमानों से अलग एक जमाअत बना चुके थे जिसे मुनाफिक़ कहा गया और उन मुनाफिक़ों के हक़ में कई आयतेंनाज़िल हुईं और कई हदीसे पाक मरवी है,

जारी रहेगा………..

————————–————
*Maslak E AalaHazrat to 09675378691,,*

*HADEES* – Hazrat ibne umar raziyallahu taala anhu se riwayat hai ki huzoor sallallahu taala alaihi wasallam ne farmaya ki meri ummat par ek zamana zaroor aisa aayega jaisa ki bani israyeel par aaya tha bilkul hu bahu ek doosre ke mutabik,yahan tak ki agar kisi ne bani israyeel me apni maa ke saath alaniya bad feily ki hogi to meri ummat me bhi zaroor koi hoga jo aisa karega aur bani israyeel 72 mazhabo me bat gaye the aur meri ummat 73 mazhabo me bat jayegi unme ek mazhab waalo ke siwa baaki tamam mazahib waale naari aur jahannami honge,sahabaye kiram ne arz kiya ki ya Rasool ALLAH sallallahu taala alaihi wasallam wo ek mazhab waale kaun log honge to huzoor sallallahu taala alaihi wasallam ne farmaya ki wo log isi mazhabo millat par qaayam rahenge jis par main hoon aur mere sahaba hain

📚 Tirmizi,hadees 171,
📚 Abu daood,hadees 4579,
📚 Ibne maaja,safah 287,
📚 Mishkat,jild 1,safah 30,

*TASHREEH* – Hazrat shaikh abdul haq muhaddis dehlavi raziyallahu taala anhu is hadees sharif ke tahat farmate hain ki “Nijaat paane waala firqa ahle sunnat wa jamaat ka hai agar aitraaz kare ki kaise naajiya firqa ahle sunnat wa jamaat hai aur yahi seedhi raah hai aur khudaye taala tak pahunchane waali hai aur doosre saare raaste jahannam ke raaste hain jabki har firqa daawa karta hai ki wo raahe raast par hai aur uska mazhab haq hai to iska jawab ye hai ki ye aisi baat nahin jo sirf daawe se saabit ho jaaye balki iske liye thos daleel chahiye,aur ahle sunnat wa jamaat ki haqqaniyat ki daleel ye hai ki ye deene islam huzoor sallallahu taala alaihi wasallam se manqool hokar hum tak pahuncha hai aur aqayade islaam maloom karne ke liye sirf aql ka zariya kaafi nahin hai,jabki hamein akhbare mutawatira se maloom hua aur aasare sahaba aur ahadeese karima ki talaash se yaqeen hua ki salf saaleheen yaani sahaba tabayeen aur unke baad ke tamam buzurgane deen isi aqeeda aur isi tareeqe par rahein aur aqwaale mazahib me bid’at wa nafsaniyat zamanaye awwal ke baad paida huyi,sahabaye kiraam aur salf mutaqaddemeen yaani tabayeen taba tabayeen wa mujtahedeen me se koi bhi us naye mazhab par nahin tha usse bezaar the balki naye mazhab ke zaahir hone par muhabbat aur uthne baithne ka jo lagao pahle qaum ke saath tha wo tod liya aur zabaano qalam se uska radd farmaya

Siyah sitta wa hadees ki doosri musnatad kitabon ki jin par ahkaame islaam ka madaar wa mabni hua uske muhaddeseen aur hanfi shafayi maaliki wa hambli ke fuqha wa ayimma aur unke alawa doosre ulma jo unke tabqe me the sab isi mazhabe ahle sunnat wa jamaat par qaayam the,iske alawa ashariya wa maturidiya jo usoole kalaam ki ayimma hain unhone bhi salf ke mazhab yaani ahle sunnat wa jamaat ki tayeed wa himayat farmayi aur dalayle aqliya se ise saabit farmaya aur jin baaton par sunnate rasool sallallahu taala alaihi wasallam aur ijmaye salf saaleheen jaari raha usko thos qaraar diya isiliye ashariya aur maturidiya ka naam ahle sunnat wa jamaat pada,agar che ye naam naya hai magar mazhabo eteqaad unka puraana hai aur unka tariqa ahadeese nabwi sallallahu taala alaihi wasallam ki itteba aur salf saaleheen ki aqwaal wa aamaal ki iqtida karna hai,sufiyaye kiraam ki nihayat qaabil aur etemaad kitab Ta’arruf hai jiske baare me sayyadna shaikh sahab uddin suharwardi raziyallahu taala anhu farmate hain ki agar Ta’arruf kitab na hoti to hum log masayle tasawwuf se nawaaqif rah jaate,is kitab me sufiyaye kiraam ke jo ijmaali aqaayad bayaan kiye gaye hain wo sabke sab bila kam wa kaast ahle sunnat hi ke aqayad hain,hamare is bayaan ki sachchai ye hai ki hadees-tafseer-kalaam-fiqah-tasawwuf-sair aur tareekhe motabra ki kitabein jo bhi mashrik se lekar maghrib tak ke ilaaqe me mashhoor wa maroof hain un sabko jama kiya jaaye aur unki chaan been ki jaaye aur mukhalefeen bhi apni kitabein laayein taaki aashkaar ho jaaye ki haqiqat haal kya hai,khulasaye kalaam ye ki deene islaam me sawade aazam mazhabe ahle sunnat wa jamaat hi hai

📚 Ashatul lam’aat,jild 1,safah 140,

Ab aaj jo log sunniyon se yekahte nazar aate hain ki kyun firkon me musalmano ko uljha rakha hai dar asal wo jaahil ahmaq aur be imaan kism ke log hain warna aisi aaftab raushan hadees se radd gardaani na karte,ye firka sunni nahin banate balki kuchh be imaan ahle sunnat wa jamaat se nikalkar ek alag gumraah jamaat bana daalte hain suuni usi ki nishaan dehi karta hai,aur firqa banna to huzoor sallallahu taala alaihi wasallam ke zamane mubarak me hi shuru ho gaya tha kuchh be imaan musalmano se alag ek jamaat bana chuke the jise munafiq kaha gaya aur un munafiqon ke haq me kayi aaytein naazil huyi aur kayi hadise paak marwi hai,

To be continued…





, Post 2️⃣
*73 फिरको में एक जन्नती*

जो लोग सुन्नियों से ये कहते हुए नज़र आते हैं के मुसलमानों को फिरकों में क्यों उलझा रखा है दर असल वो जाहिल अहमक़ और बे ईमान किस्म के लोग हैं वरना आफताब रौशन दलीलों से रू गरदानी ना करते क्योंकि फिरका सुन्नी नहीं बनाते बल्कि कुछ बे ईमान लोग अहले सुन्नत व जमाअत से निकलकर एक अलग गुमराह जमाअत बना डालते हैं सुन्नी बस उसी गुमराह जमाअत की निशान देही कराता है,और रही फिरक़ा बनने की बात तो ये तो हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के ज़माना ए मुबारक में ही शुरू हो गया था कुछ बे ईमान मुसलमानों से अलग एक जमाअत बना चुके थे जिसे मुनाफिक़ कहा गया और उन मुनाफिक़ों के हक़ में कई आयतें नाज़िल हुई और कई हदीसे पाक मरवी है,मुलाहज़ा फरमायें👇

अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है

*कंज़ुल ईमान*

 मुनाफेक़ीन जब तुम्हारे हुज़ूर हाज़िर होते हैं तो कहते हैं कि हम गवाही देते हैं कि बेशक हुज़ूर यक़ीनन खुदा के रसूल हैं और अल्लाह खूब जानता है कि बेशक तुम ज़रूर उसके रसूल हो,और अल्लाह गवाही देता है कि बेशक ये मुनाफिक़ ज़रूर झूठे हैं……..इज़्ज़त तो अल्लाह और उसके रसूल और मुसलमानों के लिए है मगर मुनाफिकों को खबर नहीं

📚 पारा 28,सूरह मुनाफिक़ून,आयत 1/8,

और फ़रमाता है

*कंज़ुल ईमान* 

कहते हैं हम ईमान लाये अल्लाह और रसूल पर और हुक्म माना,फिर कुछ उनमें से उसके बाद फिरजाते हैं और वो मुसलमान नहीं

📚 पारा 18,सूरह नूर,आयत 47,

और फ़रमाता है

*कंज़ुल ईमान*

तर्जमा
ये गंवार कहते हैं के हम ईमान लाये तुम फरमा दो के तुम ना लाये हां युं कहो कि हम मुतीउल इस्लाम हुए, ईमान अभी तुम्हारे दिलो में कहां दाखिल हुआ,

📚 पारा 26,सूरह हुजरात,आयत 14,

और फ़रमाता है

*कंज़ुल ईमान*

तो क्या अल्लाह के कलाम का कुछ हिस्सा मानते हो और कुछ हिस्सों के मुनकिर हो, तो जो कोई तुममें से ऐसा करे तो उसका बदला दुनिया की ज़िन्दगी में रुस्वाई और क़यामत के दिन सबसे ज़्यादा अज़ाब की तरफ पलटे जायेंगे, और अल्लाह तुम्हारे करतूतों से बे खबर नहीं.यही लोग हैं जिन्होंने अक़्ल बेचकर दुनिया खरीदी, तो ना उन पर से कुछ अज़ाब हल्का हो और न उनको मदद पहुंचे

📚 पारा 1,सूरह बक़र,आयत 85-86,

इन आयतों को ग़ौर से पढ़िये और बताइये के वो कौन लोग थे जो अल्लाह पर ईमान लाते थे जो हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की नुबूवत की गवाही देते थे,ज़ाहिर सी बात है कि काफिर तो ऐसा करते नहीं हैं क्योंकि वो तो सिरे से मुनकिर हैं तो मानना पड़ेगा कि ये वही लोग थे जो बज़ाहिर तो दाढ़ी रखते टोपी लगाते नमाज़ पढ़ते रोज़ा रखते हज करते ज़कात देते जिहाद में शरीक होते मगर फिर भी दिल से ईमान नहीं लाते थे और ये वही लोग थे जो क़ुर्आन की वो आयतें मानते जो इनके लिए बज़ाहिर नफा बख्श होतीं और जो इनके हक़ में ना होती यानि जिनसे अम्बिया व औलिया की शान बयान होती उसका फौरन इंकार कर देते,मुनाफिक़ की यही खसलत वहाबी देवबंदी क़ादियानी खारजी राफ्ज़ी अहले हदीस जमाअते इस्लामी और तमाम बदमज़हबो के अंदर पाई जाती है कि क़ुर्आन की जो आयत इनके हक़ में है उस पर फौरन ईमान ले आये और जो इनके हक़ में नहीं उससे इंकार कर दिया मगर याद रहे कि क़ुर्आन की एक भी आयत का इन्कार कुफ्र है,बहर हाल ऐसी सैकड़ों आयतें पेश की जा सकती है मगर उन सबको ना लिखकर सिर्फ उनका हवाला लिखता हूं जिनको शौक हो वो क़ुर्आन खोलकर देख सकता है👇

📚 पारा 1,सूरह बक़र,आयत 39,
📚 पारा 26,सूरह मुहम्मद,आयत 34,
📚 पारा 26,सूरह फतह,आयत 26/29,
📚 पारा 18,सूरह नूर,आयत 55,
📚 पारा 5,सूरह निसा,आयत 115,
📚 पारा 4,सूरह आले इमरान,आयत 110,
📚 पारा 28,सूरह मुजादिला,आयत 22,
📚 पारा 20,सूरह अंकबूत,आयत 2,
📚 पारा 10,सूरह तौबा,आयत 23,
📚 पारा 28,सूरह मुमतहिना,आयत 1-2,
📚 पारा 6,सूरह मायदा,आयत 51,
📚 पारा 9,सूरह ऐराफ,आयत 179,
📚 पारा 25,सूरह जाशिया,आयत 23,
📚 पारा 28,सूरह जुमा,आयत 5,

रब तबारक व तआला इरशाद फ़रमाता है

*कंज़ुल ईमान*

और बीच की राह ठीक अल्लाह तक है और कुछ राहें टेढ़ी है

📗 पारा 14,सूरह नहल,आयत 9,

और फ़रमाता है

*तर्जमा कंज़ुल ईमान*

ये है मेरा सीधा रास्ता तो इस पर चलो और राहें ना चलो कि तुम्हें उसकी राह से जुदा कर देगी

📚 पारा 8,सूरह इनआम,आयत 153,

इन दोनों आयतों की तशरीह इस हदीसे पाक से होती है,मुलाहज़ा फरमायें👇

*हदीस* – हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रज़िअल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हमें समझाने के लिए एक सीधी लकीर खींची और फरमाया कि ये अल्लाह का रास्ता है फिर उसी लकीर के दायें बायें चन्द और लकीरें खींचकर फरमाया कि ये भी रास्ते हैं इनमे से हर एक रास्ते पर शैतान बैठा हुआ है जो अपनी तरफ बुलाता है फिर हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने ये आयत पढ़ी (जो ऊपर दर्ज है)

📗 मिश्कात,बाबुल सुन्नह,सफह 30,

जारी रहेगा………..

hain inme se har ek raaste par shaitan baitha hua hai jo apni taraf bulata hai phir huzoor sallallahu taala alaihi wasallam ne ye aayat padhi (jo oopar darj hai)

📚 Mishkat,bab-ul sunnah,safah 30,

To be continued……

Ab aaj jo log sunniyon se ye kahte nazar aate hain ki kyun firkon me musalmano ko uljha rakha hai dar asal wo jaahil ahmaq aur be imaan kism ke log hain warna aisi aaftab raushan hadees se radd gardaani na karte,ye firka sunni nahin banate balki kuchh be imaan ahle sunnat wa jamaat se nikalkar ek alag gumraah jamaat bana daalte hain suuni usi ki nishaan dehi karta hai,aur firqa banna to huzoor sallallahu taala alaihi wasallam ke zamane mubarak me hi shuru ho gaya tha kuchh be imaan musalmano se alag ek jamaat bana chuke the jise munafiq kaha gaya aur un munafiqon ke haq me kayi aaytein naazil huyi aur kayi hadise paak marwi hai,

*KANZUL IMAAN* – Munafeqeen jab tumhare huzoor haazir hote hain to kahte hain ki hum gawahi dete hain ki beshak huzoor yaqinan khuda ke Rasool hain aur ALLAH khoob jaanta hai ki beshak tum zaroor uske rasool ho,aur ALLAH gawahi deta hai ki beshak ye munafiq zaroor jhoote hain……..Izzat to ALLAH aur uske Rasool aur musalmano ke liye hai magar munafikon ko khabar nahin,

📚 Paara 28,surah munafekoon,aayat 1/8,

*KANZUL IMAAN* – Kahte hain hum imaan laayein ALLAH aur Rasool par aur hukm maana,phir kuchh unme se uske baad phir jaate hain aur wo musalman nahin

📚 Paara 18,surah noor,aayat 47,

*KANZUL IMAAN* – Ye ganwaar kahte hain ki hum imaan laaye tum farma do ki tum na laaye haan yun kaho ki hum mutiul islaam hue,imaan abhi tumhare dilo me kahan daakhil hua

📚 Paara 26,surah hujraat,aayat 14,

*KANZUL IMAAN* – To kya ALLAH ke kalaam ka kuchh hissa maante ho aur kuchh hisso ke munkir ho,to jo koi tumme se aisa kare to uska badla duniya ki zindagi me ruswayi aur qayamat ke din sabse zyada azaab ki taraf palte jayenge,aur ALLAH tumhare kartuto se be khabar nahin.yahi log hain jinhone aql bechkar duniya khareedi,to na unpar se kuchh azaab halka ho aur na unko madad pahunche

📚 Paara 1,surah baqar,aayat 85-86,

In aayto ko gaur se padhiye aur bataiye ki wo kaun log the jo ALLAH par imaan laate the huzoor sallallahu taala alaihi wasallam ki nubuwat ki gawahi dete the,zaahir si baat hai ki kaafir to aisa karte nahin hain kyunki wo to sire se munkir hain to maanna padega ki ki ye wahi log the jo ba zaahir to daadhi rakhte topi lagate namaz padhte roza rakhte hajj karte zakat dete magar phir bhi dil se imaan nahin laate the aur ye wahi log the jo quran ki wo aayte maante jo inke liye nafa bakhsh hoti aur jo inke haq me na hoti yaani jinse ambiya wa auliya ki shaan bayaan hoti uska fauran inkaar kar dete,munafiq ki yahi khaslat wahabi devbandi qaadiyani khaarji raafji ahlehadees jamate islami aur tamam bad mazhabo ke andar paayi jaati hai ki quran ki jo aayat inke haq me hai uspar fauran imaan le aaye aur jo inke haq me nahin usse inkaar kar diya magar yaad rahe ki quran ki ek bhi aayat ka inkaar kufr hai,bahar haal aisi saikdon aaytein pesh ki ja sakti hai magar un sabko na likhkar sirf unka hawala likhta hoon jinko uski taraf ruju karna ho wo quran kholkar dekh sakta hai👇

📚 Paara 1,surah baqar,aayat 39,
📚 Paara 26,surah muhammad,aayat 34,
📚 Paara 26,surah fatah,aayat 26/29,
📚 Paara 18,surah noor,aayat 55,
📚 Paara 5,surah nisa,aayat 115,
📚 Paara 4,surah aale imran,aayat 110,
📚 Paara 28,surah mujadila,aayat 22,
📚 Paara 20,surah ankaboot,aayat 2,
📚 Paara 10,surah tauba,aayat 23,
📚 Paara 28,surah mumtahina,aayat 1-2,
📚 Paara 6,surah maaydah,aayat 51,
📚 Paara 9,surah eraaf,aayat 179,
📚 Paara 25,surah jashia,aayat 23,
📚 Paara 28,surah juma,aayat 5,

*KANZUL IMAAN* – Aur beech ki raah theek ALLAH tak hai aur kuchh raahein tedhi hai

📚 Paara 14,surah nahal,aayat 9,

*KANZUL IMAAN* – Ye hai mera seedha raasta to ispar chalo aur raahein na chalo ki tumhein uski raah se juda kar dengi

📚 Paara 8,surah inaam,aayat 153,

In dono aayto ki tasreeh is hadise paak se hoti hai,mulahza farmayein

*HADEES* – Hazrat abdullah ibne masood raziyallahu taala anhu farmate hain ki huzoor sallallahu taala alaihi wasallam ne hamein samjahne ke liye ek seedhi lakeer kheenchi aur farmaya ki ye ALLAH ka raasta hai phir usi lakeer ke daayein baayein chund aur lakirein kheenckar farmaya ki bhi raaste





Post 3️⃣ 
73 फिरको में एक जन्नती 


*हदीस शरीफ़* 

हुज़ूर सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया👇

मेरी उम्मत का एक गिरोह क़यामत आने तक हक़ पर रहेगा और दुश्मन उसका कुछ ना बिगाड़ सकेंगे

📚 बुखारी,जिल्द 1,सफह 61,

कहीं मेरे आक़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ये फरमाते हैं के मेरी उम्मत 73 फिरकों में बट जायेगी तो कहीं आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ये फरमाते हैं कि मेरी उम्मत का एक ही गिरोह हक़ पर रहेगा तो मानना पड़ेगा कि उम्मत तो फिरको में बटेगी और उनमे 1 ही हक़ पर होगा बाक़ी सब जहन्नमी और उस एक का नाम अहले सुन्नत व जमाअत है, इस बात की दलील मैं पिछली पोस्ट में दे चुका हूं फिर भी कुछ और मुलाहज़ा फरमा लें,👇

*हदीस शरीफ़* 

 हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं

के मेरी उम्मत गुमराही पर जमा ना होगी और जब तुम इख्तिलाफ देखो तो बड़ी जमाअत को लाज़िम पकड़ो

📚 इब्ने माजा,सफह 283

अब बड़ी जमाअत से क्या मुराद है और कौन सी बड़ी जमाअत है वो भी इसी हदीस के मातहत इसी इब्ने माजा शरीफ के हाशिये में लिखा है के,👇

*फुक़्हा फ़रमाते हैं*👇

बा वुजूद तमाम 72 फिरकों के अगर वो मिलाकर भी तुम देखो तो वो अहले सुन्नत के दसवें हिस्से को भी नहीं पहुंचते

📚 इब्ने माजा,हाशिया 1,सफह 292,

बाक़ायदा नाम के साथ फरमाया गया है के बड़ी जमाअत अहले सुन्नत व जमाअत ही है लिहाज़ा इसमें ज़र्रा बराबर भी शक व शुबह की गुंजाइश नहीं के अहले सुन्नत ही हक़ पर है,अब रही इसकी बात के हर फिरका ही अपने को हक़ पर बता रहा है तो कैसे पता चलेगा के वाक़ई हक़ पर कौन है तो ये मसअला तो मुसलमानों की जमाअत का है यानि ये फिरके नाम निहाद मुसलमान ही होंगे काफिरो में से नहीं क्योंकि काफ़िरों की गिनती 73 फिरको में नहीं है,ये इसलिए बता रहा हूँ कि अगर वहाबी कहता है कि वो हक़ पर है तो हिन्दू भी तो कहता है कि वो हक़ पर है अगर देवबन्दी कहता है कि वो हक़ पर है तो ईसाई भी तो कहता है कि वो हक़ पर है अगर शिया कहते है कि वो हक़ पर हैं तो यहूदी भी तो यही कहता है कि वो हक़ पर है, मतलब ये कि हक़ पर होने का दावा तो सब कर रहे हैं मगर सिर्फ ज़बान से कहने से कोई हक़ पर नहीं हो जायेगा उसके लिए दलील व सबूत की ज़रूरत पड़ेगी और बेशुमार दलीलों से साबित है कि हक़ पर सिर्फ अहले सुन्नत व जमाअत ही है,गैरों के मुक़ाबले मुसलमान हक़ पर है इसका ज़िक्र क़ुर्आन में है जैसा कि मौला तआला इरशाद फरमाता है कि👇

*तर्जमा कंज़ुल ईमान*

बेशक अल्लाह के यहां इस्लाम ही दीन है

📚 पारा 3,सूरह आले इमरान,आयत 19,

और मुसलमानों की बात की जाये तो हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से लेकर हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम तक जितने भी अम्बिया ए किराम गुज़रे हैं उन सबमें सबसे अफज़ल उम्मत उम्मते मुहम्मदिया है इसका भी तज़किरा क़ुर्आन में युं है,👇

*तर्जमा कंज़ुल ईमान*

और बात यूंही है के हमने तुम्हे किया सब उम्मतों में अफज़ल ताकि तुम लोगों पर गवाह हो और ये रसूल तुम्हारे निगेहबान और गवाह,

📚 पारा 2,सूरह बक़र,आयत 143,

*हदीस शरीफ़*

एक मर्तबा हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम के सामने से एक जनाज़ा गुज़रा तो सहाब ए किराम ने उसकी तारीफ की तो सरकार अलैहिस्सलाम ने फरमाया कि वाजिब हो गयी फिर एक दूसरा जनाज़ा गुज़रा जिसकी उन लोगों ने बुराई बयान की तो हुज़ूर सल्लललाहू तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि वाजिब हो गयी, तो हज़रते उमर फारूक़े आज़म रज़िअल्लाहु तआला अन्हु ने पूछा के या रसूल अल्लाह सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम क्या चीज़ दोनों पर वाजिब हो गयी तो आप सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं के जिसकी तुम लोगों ने तारीफ की उस पर जन्नत वाजिब हो गयी और जिसकी तुम लोगों ने बुराई बयान की उस पर जहन्नम वाजिब हो गयी क्योंकि तुम ज़मीन पर अल्लाह के गवाह हो,

📚 बुखारी,जिल्द 1,सफह 555,

इस आयत से और हदीसे पाक से साफ ज़ाहिर होता है कि अल्लाह वाले अगर किसी को काफिर कहते हैं तो वो अल्लाह के नज़दीक भी काफिर ही है और अगर वो किसी को गुमराह कहते हैं तो यक़ीनन वो खुदा के नज़दीक भी गुमराह ही है लिहाज़ा उसको चाहिए कि सामने वाले को गाली देने की बजाये अपने गुनाहों की माफी मांगे और तौबा करे तो ये ज़्यादा बेहतर है,

जारी रहेगा………..


*HADEES Shareef* – Meri ummat ka ek giroh qayamat aane tak haq par rahega aur dushman uska kuchh na bigaad sakenge

📚 Bukhari,jild 1,safah 61,

Kahin mere aaqa sallallahu taala alaihi wasallam ye farmate hain ki meri ummat 73 firkon me bat jayegi to kahin aap sallallahu taala alaihi wasallam ye farmate hain ki meri ummat ka ek hi giroh haq par rahega to maanna padega ki ummat to firko me bategi aur unme 1 hi haq par hoga baaqi sab jahannami aur us ek ka naam ahle sunnat wal jamaat hai,is baat ki daleel main pichhli post me de chuka hoon phir bhi kuchh aur mulahza farma lein,

*HADEES Shareef* – Huzoor sallallahu taala alaihi wasallam irshaad farmate hain ki meri ummat gumrahi par jama na hogi aur jab tum ikhtilaf dekho to badi jamaat ko laazim pakdo

📚 Ibne maaja,safah 283,

Ab badi jamaat se kya muraad hai aur kaun badi jamaat hai wo bhi isi hadees ke maathat isi ibne maaja sharif ke haashia me likha hai ki,

*FUQHA* – Ba wajood tamam 72 firko ke agar wo milakar bhi tum dekho to wo ahle sunnat ke daswe hisse ko bhi nahin pahunchte,

📚 Ibne maaja,hashia 1,safah 292,

Baqayda naam ke saath farmaya gaya hai ki badi jamaat ahle sunnat wa jamaat hi hai lihaza isme zarra barabar bhi shaq w shubah ki gunjayish nahin ki ahle sunnat hi haq par hai,ab rahi iski baat ki har firka hi apne ko haq par bata raha hai to kaise pata chalega ki waqayi haq par kaun hai to ye masla to musalmano ki jamaat ka hai yaani ye firke naam nihaad musalman hi honge kaafiro me se nahin kyunki unki ginti 73 firko me nahin hai,ye isliye bata raha hoon ki agar wahabi kahta hai ki wo haq par hai to hindu bhi to kahta hai ki wo haq par hai agar devbandi kahta hai ki wo haq par hai to eesayi bhi to kahta hai ki wo haq par hai agar shiya kahta hai ki wo haq par hai to yahudi bhi to yahi kahta hai ki wo haq hai,matlab ye ki haq par hone ka daawa to sab kar rahe hain magar sirf kahne bhar se koi haq par nahin ho jayega uske liye daleel wa suboot ki zarurat padegi aur beshumar daleelon se saabit hai ki haq par sirf ahle sunnat wa jamaat hi hai,gairon ke muqaable musalman haq par hai iska zikr quran me hai jaisa ki maula taala irshaad farmata hai ki,

*KANZUL IMAAN* – Beshak ALLAH ke yahan islaam hi deen hai

📚 Paara 3,surah aale imran,aayat 19,

Aur musalmano ki baat ki jaaye to hazrat aadam alaihissalam se lekar huzoor sallallahu taala alaihi wasallam tak jitne bhi ambiyaye kiraam guzre hain un sabme sabse afzal ummat ummate muhammadiya hai iska bhi tazkira quran me yun hai,

*KANZUL IMAAN* – Aur baat yunhi hai ki humne tumhe kiya sab ummato me afzal taaki tum logon par gawaah ho aur ye rasool tumhare nigehban aur gawaah

📚 Paara 2,surah baqar,aayat 143,

*HADEES Shareef* – Ek martaba huzoor sallallaho taala alaihi wasallam ke saamne se ek janaza guzra to sahabaye kiram ne uski tareef ki to sarkar alaihissalam ne farmaya ki waajib ho gayi phir ek doosra janaza guzra jiski un logon ne burayi bayaan ki to huzoor sallallaho taala alaihi wasallam farmate hain ki waajib ho gayi,to hazrate umar farooqe aazam raziyallahu taala anhu ne poochha ki ya RASOOL ALLAH sallallaho taala alaihi wasallam kya cheez dono par waajib ho gayi to aap sallallaho taala alaihi wasallam farmate hain ki jiski tum logon ne tareef ki uspar jannat waajib ho gayi aur jiski tum logon ne burayi bayaan ki uspar jahannam waajib ho gayi kyunki tum zameen par ALLAH ke gawaah ho

📚 Bukhari,jild 1,kitabul janayaz,safah 555,

Is aayat se aur hadeese paak se saaf zaahir hota hai ki ALLAH waale agar kisi ko kaafir kahte hain to wo ALLAH ke nazdeek bhi kaafir hi hai aur agar wo kisi ko gumrah kahte hain to yaqinan wo khuda ke nazdeek bhi gumrah hi hai lihaza usko chahiye ki saamne waale ko gaali dene ki bajaye apne gunahon ki maafi maange aur tauba kare to ye zyada behtar hota,

To be continued……….





*Post 4️⃣
73 फिरको में एक जन्नती 


दौरे हाज़िर (आज कल) में एक जमाअत ऐसी भी पाई जाती है जो के 73 फिरकों वाली हदीसे पाक का पूरा मफहूम ही बदलने पर उतर आई है,जैसा कि हज़रत नौशाद रज़वी साहब के साथ इलाहाबाद में गुज़रा आप फ़रमाते हैं के मदरसा गरीब नवाज़ के एक मौलवी साहब हैं उनसे मेरी बात हुई तो कहने लगे के 72 फिरकों में वहाबी देवबंदी शिया वगैरह शामिल नहीं हैं बल्के इनके कुफ्र करने से ही ये उम्मते इजाबत से निकलकर उम्मते दावत में शामिल हो गये यानि काफिरों की जमाअत में खड़े हो गए तो मैंने पूछा के फिर 73 फिरकों में कौन होगा तो बोले इससे मुसलमानों की अंदरूनी जमाअत जैसे क़ादिरी चिश्ती नक़्शबंदी अबुल ओलाई नियाज़ी वारिसी साबरी वग़ैरह मुराद हैं और ये सब के सब जन्नती हैं, मुझे बड़ी हैरत हुई मैंने कहा कि आज तक तो पूरी उम्मते मुस्लिमा यही अक़ीदा रखती है के 72 फिरकों से मुराद वहाबी देवबंदी अहले हदीस शिआ वगैरह ही हैं ये आज आपसे एक नई बात सुनने को मिली है तो क्या आज तक हमारे सारे आलिम गलत बयानी कर रहे थे तो कहने लगे कि हमारे उल्मा से इस हदीस को समझने में गलती हुई, खैर मुझे अल्लाह के फज़्ल से इतना इल्म तो था ही कि वो गलत बोल रहे हैं इसलिए मैं वहां से चला आया ये मुआमला 2012 में मेरे साथ पेश आया और उसके बाद से लेकर आज तक कभी उनके पास नहीं गया मगर उनका मुंह बंद करने के लिए मैंने बरैली शरीफ से एक इस्तिफता किया तो वहां से जवाब आया कि ऐसा शख्स गुमराह है और तौबा व तज्दीदे ईमान का हुक्म दिया गया (फतवे के लिए इमेज देखें),जब मैंने इसकी और तहक़ीक़ की तो मुझे पता चला कि ऐसा कहने वाला वो अकेला शख्स नहीं है बल्कि इसके पीछे पूरी एक लॉबी काम कर रही है और इनका मक़सद यही है कि ये खुद तो सुलह कुल्ली टाइप के लोग हैं और कुफ्रो इर्तिदाद की जो तलवार वहाबियों बदअक़ीदों पर लटक रही है उसी तलवार की ज़द में ये लोग खुद भी हैं लिहाज़ा ऐसी सूरत में ये चाहते हैं कि 72 फिरकों की हदीस का इन्कार कर दिया जाये यानि मायने ही बदल दिया जाये ताकि इस सूरत में अगर कोई इनको अहले सुन्नत व जमाअत से खारिज भी कर देगा तब भी ये अपने आपको 72 फिरकों में गिनकर जन्नती होने का परवाना हासिल कर लेंगे मगर ये शायद भूल गये कि क़ुर्आनो हदीस का जो मायने हमारे अस्लाफ कर गए हैं वो क़यामत तक के लिए हमारे लिए पत्थर की लकीर है और वही हुक्म अल्लाह के नज़दीक भी है लिहाज़ा इनकी अपनी मन घड़न्त बातो से ये अपने आपको बहला तो सकते हैं मगर हमेशा के लिए जहन्नम में जाने से बचा नहीं सकते, इनके लिए बस एक ही रास्ता है या तो फौरन अपने किये पर शर्मिंदा होकर तौबा करें और पूरे तरीके से अक़ाइदे अहले सुन्नत पर क़ायम हो जायें वरना जहन्नम में जाने के लिए तैयार रहे, एक और बात बअज़ जाहिल किस्म के लोग कुर्आन की एक आयत पेश करते हैं पहले वो आयत मुलाहज़ा करें,👇

अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है

*तर्जमा कंज़ुल ईमान*

और अल्लाह की रस्सी को मजबूती से थाम लो सब मिलकर और आपस में फट ना जाना (फिरकों में ना बट जाना)

📚 पारा 4,सूरह आले इमरान,आयत 103,

इस आयत को पेश करके वो ये बताना चाहते हैं कि फिरके में बटने के लिए मौला तआला ने मना फरमाया है तो जो लोग फिरका फिरका कर रहे हैं वो गलत राह पर हैं तो इसका जवाब ये है कि बेशक मौला तआला ने फिरकों में बटने से मना फरमाया है मगर ये भी बताईये कि ये फिरकों में बाट कौन रहा है आखिर वो कौन लोग हैं जो अलग फिरका बनाकर अपनी अलग रविश इख्तियार करते हैं,हम अहले सुन्नत व जमाअत तो 1400 साल से उसी अक़ीदे पर क़ायम है जो अक़ीदा हमारे नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हमें दिया और जिसकी तालीम सहाब-ए किराम ताबईन तबअ ताबेईन ए किराम अइम्मये मुजतहिदीन उल्मा-ए कामेलीन हमको देते चले आये हैं हम तो अल्हम्दुलिल्लाह आज भी उसी राह पर चल रहे हैं जिस पर हमारे नबी ने हमको छोड़ा था,तो इस आयत पर अमल करने का सबसे पहला हक़ उन बदअक़ीदों का है जो अहले सुन्नत व जमाअत से अलग होकर एक नया फिरका बनाते हैं सुन्नी तो सिर्फ उस फिरके की निशान देही करता है,ये तो वही बात हो गयी कि "उल्टा चोर कोतवाल को डांटे" मतलब ये कि कुछ हराम खोर सुन्नियों से अलग होकर बातिल अक़ीदों के साथ एक गुमराह कुन जमाअत बना डालते हैं मुसलमानों में तफरका डालते हैं फिर कहते हैं हम गलत नहीं करते,
लेकिन अगर कोई सुन्नी अपने मुसलमान भाई के ईमान की हिफाज़त के लिए उस बातिल फिरके की पहचान बता दे तो सुन्नी फितने बाज़ हो गया,वाह रे मन्तिक ऐसी अहमकाना और बे सर पैर की बातें तो सिर्फ बदअक़ीदों की डिक्शनरी में ही पाई जाती हैं और कहीं नहीं मिलती,

हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम.
वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता,

जारी रहेगा...........


-------------------------------------
Daure haaza me ek jamaat aisi bhi paayi jaati hai jo ki 73 firkon waali hadise paak ka poora mafhoom hi badalne par utar aayi hai,jaisa ki khud Hazrat Naushad Sahib Razvi Farmate Hain K mere saath guzra Allahabad me madarsa gareeb nawaz ke maulvi sahab hain unse meri baat huyi to kahne lage ki 72 firkon me wahabi devbandi shiya wagairah shaamil nahin hain balki inke kufr karne se hi ye ummate ijabat se nikalkar ummate daawat me shaamil ho gaye yaani kaafiron ki jamaat me khade ho gaye to maine poochha ki phir 73 firkon me kaun hoga to bole isse musalmano ki andruni jamaat jaise qadiri chishty naqsh bandi abul olayi niyazi warisi saabri wagairah muraad hain aur ye sab ke sab jannati hain,mujhe badi hairat huyi maine kaha ki aaj tak to poori ummate muslima yahi aqeeda rakhti hai ki 72 firkon se muraad wahabi devbandi wagairah hi hain ye aaj aapse ek nayi baat sunne ko mili hai to kya aaj tak hamare saare aalim galat bayani kar rahe the to kahne lage ki hamare ulma se is hadees ko samajhne me galti huyi,khair mujhe to ALLAH ke fazl se itna ilm to tha hi ki wo galat bol rahe hain isliye main wahan se chala aaya ye muaamla 2012 me mere saath pesh aaya aur uske baad se lekar aaj tak kabhi unke paas nahin gaya magar unka munh bund karne ke liye maine baraily sharif se ek istifta kiya to wahan se jawab aaya ki aisa shakhs gumrah hai aur tauba wa tajdeede imaan ka hukm diya gaya (Fatwe ke liye image dekhen),jab maine iski aur tahqeeq ki to mujhe pata chala ki aisa kahne waala wo akela shakhs nahin hai balki iske peechhe poori ek lobby kaam kar rahi hai aur inka maqsad yahi hai ki ye khud to sulah kulli type ke log hain aur kufro irtidaad ki jo talwar wahabiyon bad aqeedo par latak rahi hai usi talwar ki zad me ye log khud bhi hain lihaza aisi soorat me ye chahte hain ki 72 firkon ki hadees ka inkaar kar diya jaaye yaani maayne hi badal diya jaaye taaki is soorat me agar koi inko ahle sunnat wal jamaat se kharij bhi kar dega tab bhi ye apne aapko 72 firkon me ginkar jannati hone ka parwana haasil kar lenge magar ye shayad bhool gaye ki qurano hadees ka jo maayne hamare aslaaf kar gaye hain wo qayamat tak ke liye hamare liye patthar ki laqeer hai aur wahi hukm ALLAH ke nazdeeq bhi hai lihaza inki apni man ghadant baato se ye apne aapko bahla to sakte hain magar hamesha ke liye jahannam me jaane se bacha nahin sakte,inke liye bas ek hi raasta hai ya to fauran apne kiye par sharminda hokar tauba karen aur poore tariqe se aqayde ahle sunnat par qaayam ho jaayein warna jahannam me jaane ke liye taiyar rahein,ek aur baat baaz jaahil kism ke log quran ki ek aayat pesh karte hain pahle wo aayat mulahza karen,

*KANZUL IMAAN* - Aur ALLAH ki rassi ko mazbooti se thaam lo sab milkar aur aapas me phat na jaana (firkon me na bat jaana)

📚 Paara 4,surah aale imran,aayat 103,

Is aayat ko pesh karke wo ye batana chahte hain ki firke me baatne ke liye maula taala ne mana farmaya hai to jo log firka firka kar rahe hain wo galat raah par hain to iska jawab ye hai ki beshak maula taala ne firkon me batne se mana farmaya hai magar ye bhi bataiye ki ye firkon me baat kaun raha hai aakhir wo kaun log hain jo alag firka banakar apni alag rawish ikhtiyar karte hain,hum ahle sunnat wa jamaat to 1400 saal se usi aqeede par qaayam hai jo aqeeda hamare nabi sallallahu taala alaihi wasallam ne hamen diya aur jiski taleem sahabaye kiram tabayine kiram ayimmaye mutahideen ulmaye kaameleen humko dete chale aaye hain hum to ALHAMDULILLAH aaj bhi usi raah par chal rahe hain jispar hamare nabi ne humko chhoda tha,to is aayat par amal karne ka sabse pahla haq un bad aqeedo ka hai jo ahle sunnat wa jamaat se alag hokar ek naya firka banate hain sunni to sirf us firke ki nishan dehi karata hai matlab,ye to wahi baat ho gayi ki "ulta chor kotwal ko daate" matlab ye ki kuchh haraam khor sunniyon se alag hokar baatil aqeedo ke saath ek gumrah kun jamaat bana daalte hain musalmano me tafarqa daalte hain magar wo galat nahin karte lekin agar koi sunni apne musalman bhai ke imaan ki hifazat ke liye us baatil firke ki pahchaan bata de to sunni fitna baaz ho gaya,aisi ahmakana aur be sar pair ki baatein to sirf bad aqeedo ki dictionary me hi paayi jaati hain aur kahin nahin milti,

Hum aah bhi karte hain to ho jaate hain badnaam.
Wo qatl bhi karte hain to charcha nahin hota,

To be continued..........






*Post 5️⃣
73 फिरको में एक जन्नती 

पिछली 4 पोस्ट में आपने पढ़ ही लिया होगा कि इस उम्मत में 73 फिरके होंगे जिनमे 1 हक़ पर होगा और 72 जहन्नमी होंगे और इसके दलाइल में मैं क़ुर्आनो हदीस और फुक़्हा के क़ौल भी नकल कर चुका और ये भी बता चुका कि फिरकों में बांटना सुन्नियों का काम नहीं बल्कि बातिल फिरकों का जनम खुद हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के ज़माने में यानि सहाब-ए किराम के दौर में हो चुका था,तो चलिए कुछ बातिल फिरकों के अक़ाइद और उनकी तफसील मुलाहज़ा कीजिये,👇

*1.क़दरिया* – इस बातिल फिरके का बानी बसरा का रहने वाला एक शख्स जिसका नाम मअबद जुहनी था और इसका अक़ीदा था कि इंसान खुद ही अपने अमल का ख़ालिक़ है जब वो कुछ करना चाहता है तब ही वो काम वजूद में आता है और तक़दीर कोई चीज़ नहीं यानि पहले से कुछ भी लिखा हुआ नहीं है और ये भी कि अल्लाह तआला को भी किसी काम का इल्म तब ही होता है जब बंदा कोई काम कर लेता है *मआज़ अल्लाह*

*हदीस शरीफ़*

हज़रते यहया बिन मअमर से मरवी है कि सबसे पहले तक़दीर का जिसने इंकार किया वो मअबद जुहनी है यह्या कहते हैं की मैं और हुमैद बिन अब्दुर्रहमान हज के लिए मक्का मुअज़्ज़मा गए तो हमने कहा कि अगर हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के सहाबा में से हमें कोई मिला तो हम उनसे तक़दीर के बारे में मालूमात करेंगे,इत्तिफ़ाक से हमें अब्दुल्लाह बिन उमर रज़िअल्लाहु तआला अन्हु मिल गए जो मस्जिद शरीफ में दाखिल हो रहे थे तो हम दोनों उनके दाएं और बाएं हो लिए,यह्या कहते हैं कि मैं जानता था कि हुमैद खुद बात ना करके मुझसे ही बात करवायेंगे लिहाज़ा मैंने हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़िअल्लाहु तआला अन्हु से अर्ज़ किया के हमारे यहां कुछ लोग हैं जो क़ुर्आन पढ़ते हैं इल्मे दीन हासिल करते हैं और भी कुछ उनकी तारीफ करके मैंने कहा कि वो लोग खयाल करते हैं कि उनका अक़ीदा है के तक़दीर कोई चीज़ नहीं है और इंसान का करना ही सब कुछ है और इंसान अपने कामों का खुद ही ख़ालिक़ है,ये सब सुनकर हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़िअल्लाहु तआला अन्हु ने फरमाया कि जब तुम लोग उनसे मुलाकात करना तो मेरी तरफ से कह देना के वो मेरे नहीं और मैं उनका नहीं फिर उसके बाद आपने कसम खा कर फरमाया कि अगर कोई शख़्स उहद पहाड़ के बराबर सोना राहे ख़ुदा में खर्च करे तो अल्लाह तआला उसकी ख़ैरात को हरगिज़ क़ुबूल ना करेगा जब तक के वो तकदीर पर ईमान ना लाये,इसके बाद हज़रत ने हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की एक तवील हदीस हमको सुनाई जिसका मफहूम ये था के अच्छी बुरी तक़्दीर का अक़ीदा रखना ईमान के लिए ज़रूरी है

📚 मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 27,

हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने खुद इनके बारे में पहले से ही फरमा दिया था,मुलाहज़ा फरमायें,👇

*हदीस शरीफ़*

क़दरिया इस उम्मत के मजूसी हैं अगर वो बीमार हों तो उनकी इयादत ना करो और अगर वो मर जायें तो उनके जनाज़े में शरीक ना हो

📚 मिश्कात,बाबुल ईमान,सफह 22,

एक मुसलमान को यही अक़ीदा रखना चाहिये कि कायनात में जो कुछ होता है उन सबका ख़ालिक़ो मालिक सिर्फ अल्लाह ही है और जो भी अच्छे या बुरे काम होते हैं वो सब पहले से लिखा हुआ है और सबका पैदा करने वाला अल्लाह है और उसके इल्म में है लेकिन इंसान जो कुछ करता है उसमे उसका इरादा भी शामिल होता है और इसी इरादे की वजह से अच्छे काम पर सवाब और बुरे काम पर गुनाह व सज़ा का मुस्तहिक़ होता है,ये भी पता चला कि अगर चे कोई शख्स लाख कल्मा गोई करे नमाज़ो रोज़ा व सदक़ा खैरात करे लेकिन अगर उसका अक़ीदा दुरुस्त नहीं तो हरगिज़ हरगिज़ उसका कोई भी अमल क़ुबूल नहीं होगा और ऐसे नाम निहाद मुसलमानो से नफरत करना और उनसे दूर रहना यही सहाब-ए किराम की तालीम है और यही हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का तरीक़ा है,लिहाज़ा जो लोग ये कहते हैं कि सुन्नी इख्तिलाफ करता है तो ऐसे लोगों को खुद अपनी इस्लाह की ज़रूरत है ना कि सुन्नियों को,

*2.जबरिया* –

जारी रहेगा………..



pichhli 4 post me aapne padh hi liya hoga ki is ummat me 73 firke honge jinme 1 haq par hoga aur 72 jahannami honge aur iske dalayal me main qurano hadees aur fuqha ke qaul bhi nakal kar chuka aur ye bhi bata chuka ki firko me baantna sunniyo ka kaam nahin balki baatil firko ka janam khud huzoor sallallahu taala alaihi wasallam ke zamane me yaani sahabaye kiraam ke daur me ho chuka tha,to chaliye kuchh baatil firkon ke aqayad aur unki tafseel mulahza kariye,

*1.QADRIYA* – is baatil firke ka baani basra ka rahne waala ek shakhs jiska naam maabad juhni tha aur iska aqeeda tha ki insan khud hi apne amal ka khaaliq hai jab wo kuchh karna chahta hai tab hi wo kaam wajood me aata hai aur taqdeer koi cheez nahin yaani pahle se kuchh bhi likha hua nahin hai aur ye bhi ki ALLAH taala ko bhi kisi kaam ka ilm tab hi hota hai jab banda koi kaam kar leta hai maaz ALLAH

*HADEES SHAREEF* 

Hazrate yahya bin maamar se marwi hai ki sabse pahle taqdeer ka jisne inkaar kiya wo maabad juhni hai yahya kahte hain ki main aur humaid bin abdur rahman hajj ke liye makka muazzama gaye to hamne kaha ki agar huzoor sallallahu taala alaihi wasallam ke sahaba me se hamein koi mila to hum unse taqdeer ke baare me malumaat karenge,ittifaq se hamein abdullah bin umar raziyallahu taala anhu mil gaye jo masjid sharif me daakhil ho rahe the to hum dono unke daayein aur baayein ho liye,yahya kahte hain ki main jaanta tha ki humaid khud baat na karke mujhse hi baat karwayenge lihaza maine hazrat abdullah bin umar raziyallahu taala anhu se arz kiya ki hamare yahan kuchh log hain jo quran padhte hain ilme deen haasil karte hain aur bhi kuchh unki tareef karke maine kaha ki wo log khayal karte hain ki unka aqeeda hai ki taqdeer koi cheez nahin hai aur insaan ka karna hi sab kuchh hai aur insaan apne kaamo ka khud hi khaaliq hai,ye sab sunkar hazrat abdullah bin umar raziyallahu taala anhu ne farmaya ki jab tum log unse mulakaat karna to meri taraf se kah dena ki wo mere nahin aur main unka nahin phir uske baad aapne kasam kha kar farmaya ki agar koi shakhs uhad pahaad ke barabar sona raahe khuda me kharch kare to ALLAH taala uski khairat ko hargiz qubool na karega jab tak ki wo taqdeer par imaan na laaye,iske baad hazrat ne huzoor sallallahu taala alaihi wasallam ki ek taweel hadees humko sunayi jiska mafhoom ye tha ki achchhi buri taqdeer ka aqeeda rakhna imaan ke liye zaruri hai

📚 Muslim,jild 1,safah 27,

Huzoor sallallahu taala alaihi wasallam ne khud inke baare me pahle se hi farma diya tha,mulahza farmayein,

*HADEES SHAREEF* 

Qadriya is ummat ke majoosi hain agar wo beemar hon to unki iyaadat na karo aur agar wo mar jaayein to unke janaze me shareek na ho

📚 Mishkat,bab-ul imaan,safah 22,

Ek musalman ko yahi aqeeda rakhna chahiye ki kaaynat me jo kuchh hota hai un sabka khaaliq o maalik sirf ALLAH hi hai aur jo bhi achchhe ya bure kaam hote hain wo sab pahle se likha hua hai aur sabka paida karne waala ALLAH hai aur uske ilm me hai lekin insaan jo kuchh karta hai usme uska iraada bhi shaamil hota hai aur isi iraade ki wajah se achchhe kaam par sawab aur bure kaam par gunaah wa saza ka mustahiq hota hai,ye bhi pata chala ki agar che koi shakhs laakh kalma goyi kare namazo roza wa sadqa khairat kare lekin agar uska aqeeda durust nahin to hargiz hargiz uska koi bhi amal qubool nahin hoga aur aise naam nihaad musalmano se nafrat karna aur unse door rahna yahi sahabaye kiraam ki taleem hai aur yahi huzoor sallallahu taala alaihi wasallam ka tariqa hai,lihaza jo log ye kahte hain ki sunni ikhtilaaf karta hai aise logon ko khud apni islaah ki zarurat hai na ki sunniyon ko,

2.JABRIYA,

To be continued……….






Post 6️⃣
 73 फिरको में एक जन्नती 

इससे पहले की पोस्ट में आपने क़दरिया फ़िर्क़े के बारे में जानकारी हासिल की के वो तक़दीर का इन्कार करने के सबब काफ़िर है, अब आइये दूसरा फ़िर्क़ा जबरिया के बारे में जानकारी हासिल करें👇

*जबरिया,*
ये एक दूसरा फ़िर्क़ा है जो क़दरियों के बिल्कुल मुक़ाबिल वुजूद में आया और उन्होंने बीच का रास्ता इख़्तियार ना करके तक़दीर के मुआमले में इंसान को बिल्कुल मजबूर महज़ पेड़ों, पत्थरों की तरह क़रार दिया यानी इंसान जो कुछ करता है उसमें उसका इरादा कोई चीज़ नहीं और उसकी नियत का कोई दख़ल नहीं और उसको किसी क़िस्म की कोई क़ुदरत व ताक़त हासिल नहीं, उसको बिल्कुल इख़्तियार नहीं वो तक़दीर यानी लिखे हुए के आगे मिट्टी के ढेलों, पेड़ों, पत्थरों की तरह मजबूर है यानी जिस तरह लकड़ी पत्थर और ढेले वग़ैरह की हरकात हैं के इधर से उधर जाने, नीचे उतरने और ऊपर चढ़ने में उन चीजों का ना अपना इरादा है ना इख़्तियार, ना ताक़त व क़ुव्वत बल्के जो उन्हें जब जहां चाहे ले जाए ऐसे ही इंसान है,
जबरिया फ़िर्क़े के नज़दीक किसी इंसान का शराब पीना ऐसा ही है जैसे किसी लकड़ी या पत्थर में सुराख़ करके शराब उनके अन्दर पहुंचा दी गई जिस तरह लकड़ी या पत्थर के अपने इरादे,
ख़्याल और नियत को दख़ल नहीं इंसान भी तक़दीर के आगे इसी तरह मजबूर है यानी उसका इरादा और नियत कोई चीज़ नहीं,

इस फ़िर्क़े का ये अक़ीदा भी इस्लामी नुक़्ता ए नज़र से बड़ी गुमराही व बददीनी है क्योंके ये अक़ीदा रखना अल्लाह तआला को *मअज़ अल्लाह* ज़ालिम क़रार देना है क्योंके इंसान जब अच्छे या बुरे काम करने में तक़दीर के आगे ऐसा मजबूर है के उसमें उसका अपना इरादा और नियत भी शामिल नहीं तो उसपर अज़ाब करना ज़ुल्म ही कहा जाएगा हालांके क़ुरआन ए करीम में फ़रमान ए इलाही है👇

وما انا بظلام للعبيد،
तर्जमा
में बन्दों पर ज़ुल्म नहीं फ़रमाता,
📚 क़ुरआन मजीद,

और फ़रमाता है👇

جزاء بما كانو يعلمون،
तर्जमा
(ये अज़ाब) बदला है उनके करतूतों का,
📚क़ुरआन मजीद,

रब्बे कायनात और फ़रमाता है👇

من شاء فليو من و من شاء فليكفر،
तर्जमा
जो चाहे ईमान लाए और जो चाहे कुफ़्र करे,
📚 कन्ज़ुल ईमान फ़ी तर्जमातिल क़ुरआन,

यानी इंसान जो कुछ करता है उसमें तक़दीर के साथ साथ उसका अपना इरादा भी शामिल है और जो काम उसके इरादे की शमूलियत से वुजूद में आते हैं उन्हीं पर अज़ाब दिया जाएगा,

जो क़दरिया और जबरिया के ख़यालात को तफ़्सील से जानना चाहे वो इल्मे अक़ाइद व कलाम की किताबों का मुतालअ करे,

इस बारे में मज़हबे अहले सुन्नत व जमाअत👇

ऊपर के बयान से आप पर ज़ाहिर हो गया के दोनों बातिल फ़िर्क़े क़दरिया और जबरिया ने तक़दीर के मुआमले में सख़्त ग़लती की एक ने तक़दीर का सिरे से इन्कार कर दिया और इंसान ही को उसके अफ़आल का ख़ालिक़ और मुकम्मल तौर पर क़ादिर मान लिया जब्के दूसरे ने इंसान को लकड़ी, पत्थर और मिट्टी के ढेलों की तरह बिल्कुल मजबूर क़रार दे दिया, लेकिन राहे हक़ जो अहले सुन्नत व जमाअत का अक़ीदा है और क़ुरआन व हदीस के मुताबिक़ है वो दरमियानी रास्ता है,
अहले सुन्नत का अक़ीदा इस बारे में ये रहा है और आज भी है
इंसान कोई अच्छा काम करे या बुरा, वो उस काम को करने का इरादा करता है और अल्लाह तआला उस फ़ैएल को पैदा कर देता है तो ख़ालिक़ अल्लाह ही है और वो काम अगरचे अल्लाह जल्ल शानहू के इल्म में पहले से है लेकिन उसकी तख़्लीक़ और पैदाइश इंसान के इरादा करने के बाद ही वुजूद में आती है,

ख़ुलासा ये है के इंसान ना ख़ुदा ए तआला की तरह क़ादिरे मुतलक़ और ना ख़ालिक़ व मोजिद है, (जैसा के क़दरिया का अक़ीदा है)
और ना पेड़, पत्थर की तरह पूरी तरह मजबूर बे इरादा और बे नियत और बे अक़्ल है, (जैसा के जबरिया का अक़ीदा है) सीधा रास्ता दरमियान में है यानी ख़ालिक़ व क़ादिरे मुतलक़ और मोजिद हर शय का अल्लाह ही है लेकिन इंसान की करनी में चूंके उसका इरादा भी शामिल है लिहाज़ा वो जज़ा और सज़ा का मुस्तहिक़ है,

इस मसअले को तफ़्सील से समझने के लिए देखिए किताब👇
📗 दरमियानी उम्मत,







*Post 7️⃣

73 फिरको में एक जन्नती 
*शिया और सुन्नी👇*

जैसा के आपने इसी टोपिक के पार्ट 1.में पढ़ा ही होगा के मेरे आक़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद ने फ़रमाया हैं के मेरी उम्मत में 73 फिरके होंगे उसमें से एक ही जन्नती होगा और 72 हमेशा जहन्नम में रहेंगे उन्ही जहन्नमी फिरकों में राफजी यानि शिया भी एक फिरका है, ये अपने आपको शैदाइये अहले बैत कहता है और उनके इसी
या अली या हुसैन कहने पर हमारे बहुत से सुन्नी मुसलमान धोखा खा जाते हैं और उन्हें काफिर कहने से परहेज़ करते हैं मगर ये क़ौम अहले बैते अत्हार की मुहब्बत की आड़ लेकर ना जाने कितने ही कुफ्रिया अक़ाइद रखती है, वैसे तो हुक्मे कुफ्र एक ही ज़रूरियाते दीन के इन्कार पर लग जाता है मगर इनके यहां तो कुफ्र की भरमार है,इनकी चंद कुफ्री इबारतें पेश करता हूं मुलाहज़ा फरमायें,👇

----------
शिया अक़ाइद👇

मुहम्मद सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने जिस खुदा की ज़ियारत की वो कुल 30 साल का था, मआज़ अल्लाह,

📕 उसूले काफी, जिल्द 1, सफह 49,

सुन्नी अक़ाइद👇

बेशक खुदा ए तआला जिस्म जिस्मानियत से पाक है,

📚 बहारे शरीयत, हिस्सा 1, सफह 3,
----------
शिया अक़ाइद👇

अल्लाह तआला कभी कभी झूठ भी बोलता है, मआज़ अल्लाह,

📕 उसूले काफी, जिल्द 1, सफह 328,

सुन्नी अक़ाइद👇

और अल्लाह से ज़्यादा किसी की बात सच्ची नहीं,

📚 पारा 5, सूरह निसा, आयत 122,
----------
शिया अक़ाइद👇

अल्लाह तआला गलती भी करता है,मआज़ अल्लाह,

📕 उसूले काफी, जिल्द 1, सफह 328,

सुन्नी अक़ाइद👇

बेशक अल्लाह तआला हर ऐब से पाक है,

📚 बहारे शरीयत, हिस्सा 1 , सफ़ह 4,
----------
शिया अक़ाइद👇

अल्लाह तआला ने हज़रत जिब्रील को पैग़ामे रिसालत देकर अली के पास भेजा था लेकिन वो गलती करके मुहम्मद सल्लललाहु अलैहि वसल्लम के पास चले गए, मआज़ अल्लाह,

📕 अनवारुल नोमानिया,सफह 237,

📕 तज़किरातुल अइम्मा,सफह 78,

सुन्नी अक़ाइद👇

और वो (फरिश्ते) कभी भी कुसूर (गलती) नहीं करते,

📚 पारा 7, सूरह इनआम,आयत 61,
----------
शिया अक़ाइद👇

हज़रत अली खुदा हैं, मआज़ अल्लाह,

📕 तज़किरातुल अइम्मा,सफह 77,

सुन्नी अक़ाइद👇

अल्लाह एक है,

📚 पारा 30, सूरह अहद,आयत 1,
----------
शिया अक़ाइद👇

तमाम सहाबा सिवाये तीन चार को छोड़कर सब मुर्तद हैं, मआज़ अल्लाह,

📕 फरोग़े काफी, जिल्द 3, सफह 115,

सुन्नी अक़ाइद👇

और उन सबसे ( यानी सहाबा से) अल्लाह जन्नत का वादा फरमा चुका,

📚 पारा 27 सूरह हदीद,आयत 10,
----------
शिया अक़ाइद👇

मौजूदा क़ुर्आन नाक़िस (अधूरा) है और क़ाबिले हुज्जत नहीं, मआज़ अल्लाह_ 

📕 उसूले काफी, जिल्द 1, सफह 26-263,

सुन्नी अक़ाइद👇

वो बुलंद मर्तबा किताब (क़ुर्आन) जिसमे शक की कोई गुंजाइश नहीं,

📚 पारा 1, सूरह बक़र, आयत 1,
----------
शिया अक़ायद👇

मौजूदा क़ुर्आन तहरीफ शुदा है, मआज़ अल्लाह,

📕 हयातुल क़ुलूब, जिल्द 3, सफह 10,

सुन्नी अक़ाइद👇

बेशक हमने उतारा है ये क़ुर्आन और बेशक हम खुद इसके निगहबान हैं,

📚 पारा 14, सूरह हजर,आयत 8,
----------
जब रब तआला ख़ुद क़ुरआन की हिफ़ाज़त करता है तो फिर किसकी मजाल जो उसमें तब्दीली या कम या ज्यादा कर सके,

शिया अक़ाइद👇

क़ुर्आन को हुज़ूर के विसाल के बाद जमा करना उसूलन गलत था, मआज़ अल्लाह,

📕 हज़ार तुम्हारी दस हमारी,सफह 560,

सुन्नी अक़ायद👇

हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अपनी ज़िन्दगी में ही क़ुर्आन को तरतीब दे दिया था लेकिन किताबी शक्ल में जमा करने की सआदत हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ को हासिल है,

📚 तफसीरे नईमी, जिल्द 1, सफह 114,
----------
शिया अक़ाइद👇

मर्तबा ए इमामत पैगम्बरी से अफज़ल व आला है, मआज़ अल्लाह,

📕 हयातुल क़ुलूब, जिल्द 3, सफह 2,

सुन्नी अक़ाइद👇

जो किसी ग़ैरे नबी को नबी से अफज़ल बताये वो काफिर है,

📚 बहारे शरीयत, हिस्सा 1, सफह 15,
----------
शिया अक़ाइद👇

हज़रत आईशा का शरीयत से कुछ ताल्लुक़ नहीं और वो वाजिबुल क़त्ल हैं, मआज़ अल्लाह,

📕 शरियत और शियाइयत,सफह 45,

📕 बागवाये बनी उमय्या और माविया, सफह 474,

सुन्नी अक़ाइद👇

हज़रते आईशा सिद्दीका की शानो अज़मत में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने क़ुर्आने करीम की सूरह नूर में 17 या 18 आयतें नाज़िल फरमाई और उनसे 2210 हदीस मरवी है,

📚 मदारिजुन नुबूवत, जिल्द 2, सफह 808,
----------
शिया अक़ायद👇

मौला अली का इमामत को तर्क कर देने से खुल्फा ए सलासा मुर्तद हो गए, मआज़ अल्लाह,

📕 उसूले काफी, जिल्द 1, सफह 420,

सुन्नी अक़ाइद👇

हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अशरये मुबश्शिरा यानि 10 सहाबये किराम का नाम लेकर जन्नती होने की गवाही दी जिनमें खुल्फा ए सलासा भी शामिल हैं,

📚 इबने माजा, जिल्द 1, सफह 61,
----------
शिया अक़ायद👇

हज़रत उमर बड़े बेहया थे, मआज़ अल्लाह,

📕 नूरुल ईमान, सफह 75, 

सुन्नी अक़ाइद👇

हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि मेरे बाद अगर कोई नबी होता तो उमर होते,

📚 तिर्मिज़ी, हदीस 3686,
अल्लाह अल्लाह
कौन अंदाज़ा लगा सकता है हज़रत उमर की शान व मर्तबे का
----------

शिया अक़ाइद👇

हज़रत उसमान गारत गर था और उनकी खिलाफत में फहहाशी का सिलसिला शुरू हुआ, मआज़ अल्लाह,

 📕 कशफुल इसरार, सफह 107,

सुन्नी अक़ायद👇

हज़रते उसमान ग़नी शर्मीली तबियत के मालिक हैं,

📗 शाने सहाबा, सफह 114,
----------
शिया अक़ाइद👇

जिस ने एक बार मूता किया उसका मर्तबा हज़रते हुसैन के बराबर और जिसने दो बार मूता किया उसका मर्तबा हज़रते हसन के बराबर और जिसने तीन बार मूता किया उसका मर्तबा हज़रते अली के बराबर और जिसने चार बार मूता किया उसका मर्तबा नबी के बराबर हो जाता है, मआज़ अल्लाह,

📕 बुरहाने मूता व सवाबे मूता, सफह 52,

सुन्नी अक़ाइद👇
मूता हराम है,

📚 तोहफये अस्ना ए शरिया, सफह 67,

मूता एग्रीमेंट मैरिज को कहते हैं मतलब ये कि अगर निकाह से पहले कोई मुद्दत तय की गयी मसलन 1 दिन के लिए या 1 हफ्ते के लिए या 1 महीने के लिए या 1 साल के लिए गर्ज़ की कोई भी मुद्दत तय हुई के इतने दिन के लिए हम शादी करते हैं तो ये निकाह हराम मिस्ल ज़िना है, जो कुछ मैंने यहां ज़िक्र किया वो तो बस चंद बातें हैं वरना इन काफिरों की किताबों में तो सैकड़ों ही कुफ्री इबारतें भरी पड़ी है,अगर ऐसा अक़ीदा रखने वाले सिर्फ ज़बानी अहले बैत अतहार का नाम लें तो क्या उन्हें मुसलमान समझ लिया जायेगा नहीं और हरगिज़ नहीं, अब हदीसे पाक में इस जहन्नमी फिरके का तज़किरा भी पढ़ लीजिए मौला अली रज़िअल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं के,

हदीस शरीफ़👇

आखिर ज़माने में एक क़ौम पाई जायेगी जिसका एक खास लक़ब होगा इन्हें राफज़ी कहा जायेगा ये हमारी जमात में होने का दावा करेगा मगर ये हम में से नहीं होगा इनकी पहचान ये होगी कि ये हज़रत अबु बकर व हज़रत उमर को बुरा कहेंगे,

📚 कंज़ुल उम्माल, जिल्द 6, सफह 81,

फुक़्हा फ़रमाते हैं👇
 
राफज़ी यानी शिओं को काफिर कहना ज़रूरी है ये फिरका इस्लाम से खारिज है मुर्तदीन के हुक्म में है,

📚 फतावा आलमगीरी,जिल्द 3, सफह 264,

 जारी रहेगा.........

 ONLY Aᴅᴍɪɴ Pᴏsᴛ Gʀᴏᴜᴘ
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
*AHLE SUNNAT WAL JAMAAT-GROUP*
_*~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~*_
*RAZA WAHIDI...*
*📲📱+91 9997763511*
╰┄─━━━━━━━━─┄╮
*➪ 👑 islamic status ke liye is link per click Karen*
╰┄─━━━━━━━━─┄╮
https://www.youtube.com/channel/UCTVRcy0WN6EUIrXKPQdrbYQ

•●┄─┅━━★✰★━━━┅─┄●•
*Islah Sabki Karni Hai*
•●┄─┅━━★✰★━━━┅─┄●•
💗💗💗💗💗💗💗💗💗💗💗
*अल्लाह ताआला कहने, सुनने से ज्यादा अम्ल करने की तौफिक अता फरमाये। आमीन।*
⤵ *_Group Admin_*
🌹 *_Raza Wahidi_*🌹
📲https://wa.me/+919997763511
•••┈┈┈┈┈••✦✿✦••┈┈┈┈┈•••
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

1 comment:

You did very well by messaging, we will reply you soon thank you

🅱️ बहारे शरीअत ( हिस्सा- 03 )🅱️

_____________________________________   _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 03 (पोस्ट न. 089)*_ ―――――――――――――――――――――             _*🕌नमाज़ पढ़ने का तरीक...